पिया का इंतजार .........
सुहागिने अपने पिया की राह वर्षो से ताक रही हैं
अब बात एक ऐसे गांव की जहां की सुहागिने अपने पिया की राह वर्षो से ताक रही हैं। षादी के बाद खुब पैसा लाने का भरोसा देकर उनके पति कमाने जो बाहर गए सो लौटकर नहीं आए। दर्द भरी यह दास्तान है पूर्णिया के नवटोलिया की।
(............................ चिट्ठी न कोई संदेष )
पूर्णिया के नवटोलिया की पूनम हर सांझ इसी तरह सजधज कर देहरी पर बैठ अपने पिया का इंतजार करती है। षादी के 10 दिन बाद जो उसके पति कमाने दिल्ली गए थे। कहा था कि उसके लिए अच्छी साड़ी ले जल्द लौट आएंगे पर दिन महिने, साल, बितते गए। न तो पिया आए और न ही आया उनका कोई संदेष। जब भी गांव में डाकिया आता है पूनम दौड़ पड़ती है जमाना चिट्ठी से मोबाइल का आ गया पर पूनम का इंतजार खत्म नहीं हुआ ।
पति के विरह की पीड़ा में सिर्फ पूनम ही नहीं इस गांव की दो दर्जन से ज्यादा सुहागिनें जल रही हैं। यंे हर दिन अपने माथे में पति के नाम का सिन्दूर लगा उनके
वापस लौटने का इंतजार करती है। कईयांे ने तो खोज-खबर भी करवायी पर कोई फायदा नहीं हुआ। अब दिल मंे दर्द और आंखांे मंे इंतजार यही इनकी नियति भी है और जिन्दगी भी।
बाहर से लौटकर गांव न आने के कारणों के बारे में समाजषास्त्री ये मानते हैं कि ये महानगरों कि चकाचैध से प्रभावीत हो वहीं अपना नया घर-परिवार बसा लेते है और अपने गांव-घर वालों को भूल जाते हैं।
बहरहाल इस गांव की सुहागिनों के आंखों से आंसू थमते नहीं दिख रहे। इनकी परवाह न तो प्रषसन को है और न हीं महिलाआंे के नाम पर बंद कमरांे में सेमिनार करने वाली संस्थाओं को।
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