Sunday, June 14, 2009


रंगकर्म के पुरोधा हबीब तनवीर


रंगकर्म के पुरोधा कहे जाने वाले हबीब तनवीर की मृत्यु के बाद थियेटर की दुनिया एक तरह से सुनी पड़ गई है। आठ जून को हबीब तनवीर ने भोपाल में अंतीम सांस ली। इस तरह थियेटर की दुनिया ने एक प्रख्यात प्रयोगधर्मी नाटककार खो दिया। हबीब का रिष्ता राजधानी के गांधी मैदान और भारतीय नृत्य कला मंदिर से भी रहा है। उनका कुछ समय यहां भी बीता है।
आगरा बाजार और चरण दास चोर जैसे नाटकों के लिए मषहूर हबीब तनवीर मानवीय संवेदनाओं वाले नाटकों के कारण भी जाने जाते हैं। 1923 को रायपुर में जन्मे हबीब 1945 में मुंबई आये और यहां पूरी तरह थियेटर की दुनिया में रम गये। मुंबई में ही वे इप्टा से जुड़े और इसी थियेटर के माध्यम से उन्होंने लोक कलाकारों को राष्ट्रीय और अन्तरराष्ट्रीय मंच प्रदान किया। उनके प्रसिद्ध नाटकों में जहरीली हवा, मिट्टी की गाड़ी, पोंगा पंडित, गांव का नाम, ससुराल शुमार है। दो दर्जन से अधिक राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित हबीब को भारतीय थियेटर का भीष्म पितामह कहा जाता है।
बिहार आर्ट थियेटर में उनके नाटक पोगा पंडित का मंचन काफी चर्चा में रहा था। वह हबीब ही थे, जिन्होंने नाटकों को सभागारों से निकालकर आम लोगों तक पहुंचाया। उन्होंने नाटकों के जरिये आम लोगों के जीवन और उनकी समस्याओं को दिखाया। अंधविष्वास और सामाजिक बुराइयों को लेकर उन्होंने पोंगा पंडित की रचना की, जिसका उन्हें विरोध भी झेलना पड़ा। उनकी सबसे बड़ी खासियत यह थी कि उन्होंने लोक कलाकारों और झुग्गी-झोपड़ी के लोगों के साथ मिलकर कई प्ले किये, जो काफी चर्चित और प्रभावकारी रहा।
बाजार में बेचारे बन चुके आम लोगों की कहानी आगरा बाजार से मषहूर हुए हबीब की यादें आज भी बिहार की राजधानी में रची-बसी है। राजधानी के नाट्यकर्मी आज भी उनके नाटकों की पुरानी तस्वीरों को देखते हैं।

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HIMMAT SE KAM LOGE TO ZMANA V SATH DEGA...HO GAYE KAMYAB TO BCHACHA-BCHCHA V NAM LEGA.....MAI EK BAHTE HWA KA JHOKA HU JO BITE PAL YAD DILAUNGA...HMESHA SE CHAHT HAI KI KUCHH NYA KAR GUZRNE KI...MAI DUNIA KI BHID ME KHONA NHI CHAHTA....