Wednesday, June 24, 2009


बिहार मछली उत्पादन में भी आत्मनिर्भर

चावल, सब्जी के बाद अब बिहार मछली उत्पादन में भी आत्मनिर्भर हो रहा है। और इसके लिए सूबे की सरकार ने कई कारगर योजनाएं चला
रखी है। गौरतलब है कि सूबे में मछली का उत्पादन करीब 2.56 लाख मिट्रीक टन है। जबकि बिहार में इसकी मांग 4.56 लाख मिट्रीक टन की है।
खाद्य सामानों में बिहार चावल, सब्जी के बाद मछली उत्पादन में भी आत्मनिर्भर हो रहा है। मत्स्य विभाग के अनुसार सूबे में मछली का कुल उत्पादन और मांग के बीच अन्तर को पाटने के लिए सरकार ने कई योजना भी चलायी है। मसलन-
राज्य में मछली पालन को कृषि का दर्जा, सूबे के करीब 50,000 मछुआरों का सामूहिक जीवन दुर्घटना बीमा योजना को लागू किया जाना, उत्तरी बिहार इसके उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए वृहत योजना लागू की जा रही है, तालाबों का भौतिक सर्वेक्षण कराया जाना, के साथ ही मतस्य स्नातकों को पारा एक्सटेंशन वर्कर के रूप में किसानो तक सेवाएं उपलब्ध कराने की पायलट योजना को 10 जिलों में शुरू भी कर दी गई है।
दरअसल बिहार की मंडियो में लोकल मछलियों के अलावा आंध्र प्रदेश से भी बड़े पैमाने पर मछलियां आती हैं। जानकारों की माने तो रोजाना सूबे की मछली मंडियों में आंध्रा से करीब 2500 से 3000 क्विन्टल मछली की आवक होती है। इतना के बादो सूबे के लोगों की जरूरत पूरी नहीं हो पाती है। गौरतलब है कि इन मछलियों में रोहू, कतला, मांगूर और और पंगास भेरायटी की बिक्री बहुत ज्यादा होती है। उधर सूबे में मछली उत्पादन का ग्राफ गिरने की वजह तालाब का खत्म होना और गंगा नदी पर फरक्का बांध का बनना माना जा रहा है।
सूबे में मछली उत्पादन के कम होने की सबसे बड़ी वजह जितनी मात्रा में मत्स्य स्पाॅन का उपयोग किया जाता है, उसमें मात्र दस परसेंट ही मछली के रूप में बच पाता है। अब ऐसे में राज्य सरकार छोटे किसानों को 60,000 रूपया सूद मुक्त ऋण उपलब्ध कराने की योजना बनाकर इसके लिए करोड़ो रूपये तक खर्च करने की तैयारी कर रही है।

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HIMMAT SE KAM LOGE TO ZMANA V SATH DEGA...HO GAYE KAMYAB TO BCHACHA-BCHCHA V NAM LEGA.....MAI EK BAHTE HWA KA JHOKA HU JO BITE PAL YAD DILAUNGA...HMESHA SE CHAHT HAI KI KUCHH NYA KAR GUZRNE KI...MAI DUNIA KI BHID ME KHONA NHI CHAHTA....