Sunday, June 14, 2009

गुम हुई डोली का रिवाज

डोली सजा के रखना और डोली हम लेकर जाएंेगे गानों मंे डोली का जिक्र तो है पर इस जमाने में डोली कही देखने को भी नहीं मिल रही। आधुनिक जमाने की तेज रफ्तार में डोली का रिवाज अब गुम होते जा रहा है। इन डोली को उठाने वाले कहार भी आज बदहाल है।
( चलो रे डोली उठाओ, कहार पिया मिलन की रूत आयी-----------)
डोली को लेकर न जाने कितने ही गीत में बनाए गए। दिखाए गए। डोली जिसपर बैठ कभी हर दुल्हन अपने पिया के घर पहली बार आती थी। इतिहासकारों का कहना है कि डोलियों का रिवाज मुगलकाल से चलन में आया पर इससे पहले ही रामायण मंे इसका जिक्र आता है। रामायण में कहा गया है कि जब त्रेतायुग में भगवान राम ने षिव का धनुष तोड़ जनकनंदनी सीता से विवाह रचाया तो सीता मइया डोली में बैठकर ही अयोध्या गयी थी।
बदलते जमाने के साथ ही डोलियां गुम होती चली गई। डोली की जगह आ गई तेज रफ्तार वाली गाडियां। डोलियों के गुम होने के साथ ही इसे कांधे पर ढोने वाले कहार भी बदहाल हो गए। इनका रोजगार छिन गया। पहले बिहार के हर गांव के आसपास कहारों की
बस्ती होती थी। ये कहार डोलियां तो उठाते ही थे साथ ही आंचलिक गीत कर रचना भी करते थे। आज ज्यादातर कहार रोजगार की तलाष में महानगरों मंे पलायन कर गए।
आज डोलियां देखने को भी नहीं मिलती। इन डोलियो के गुम होने के साथ ही एक संस्कृति भी गुम हो गई जिसे सहेजने में कभी वर्षों लगे होंगे।

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HIMMAT SE KAM LOGE TO ZMANA V SATH DEGA...HO GAYE KAMYAB TO BCHACHA-BCHCHA V NAM LEGA.....MAI EK BAHTE HWA KA JHOKA HU JO BITE PAL YAD DILAUNGA...HMESHA SE CHAHT HAI KI KUCHH NYA KAR GUZRNE KI...MAI DUNIA KI BHID ME KHONA NHI CHAHTA....