भाकपा माओवादियों का खूनी सिलसिला
भाकपा माओवादी ने अपने अब तक के सफर में खून की कई बड़ी होली खेली है। कई बार हैवानियत की हद पार कर दी है। जब सिर के उपर से पानी बहने लगा तो केन्द्र सरकार ने भाकपा माओवादी को करार दिया आतंकी संगठन। इस घोषणा के पहले न तो केन्द्र सरकार और न ही राज्य सरकार ने इस दिशा में कोई ठोस कदम उठाने की जरुरत महसूस की। पिछले एक सप्ताह से लालगढ़ में माओवादियों की कार्रवाई से परेशान केन्द्र सरकार ने इस संगठन पर प्रतिबंध लगाया।
बिहार-झारखंड के भाकपा माओवादी संगठन ने पिछले एक दशक में कई ऐसी घटनाओं को अंजाम दिया जो सिर्फ बिहार और झारखंड को ही नहीं बल्कि पूरे देश को झकझोड़ कर रख दिया। आईए डालते हैं भाकपा माओवादी की पिछले दस वर्षों की उन बड़ी घटनाओं पर जो रही सुर्खियों में ..............
कैसे-कैसे खेले हैं इस आतंकी संगठन ने खूनी खेल आइये डालते हैं एक नजर-
18 मार्च, 1999
-जहानाबाद के सेनारी गांव में माओवादियों द्वारा 35 उच्च जाति के लोगों की हत्या।
18 नवम्बर, 1999
- झारखंड के पलामू जिले में लाटू गांव में 12 लोगों की हत्या।
12 फरवरी, 2000
-झारखंड के पलामू में लैंड माइंस ब्लास्ट में 19 पुलिसकर्मी सहित 22 लोगों की मौत।
5 अक्टूबर, 2000
- लोहरदग्गा के एस पी अजय कुमार की हत्या।
12 नवम्बर, 2000
- हजारीबाग के डिप्टी कमिश्नर के पत्नी की हत्या।
18 दिसम्बर, 2000
मुजफ्फरपुर से पुलिस की छः राईफल और दो कार्बाइन की लूट
14 अप्रेल,2001 - हजारीबाग के बेल्पू गांव में 14 लोगों की हत्या।
21 मई, 2001 - रांची में पुलिस जवानों पर हमला बोल चार राईफल की लूट
24 जून, 2001 - शिवहर जिले के डेकुली पुलिस पीकेट पर हमला बोल कर छः राईफल की लूट
6 सितम्बर, 2001 - लातेहार में माओवादी हमले में दो पुलिस जवान सहित पांच लोगों की मौत
23 सितम्बर, 2001 - हजारीबाग के अबरोज जंगल में माओवादी हमले में 12 सीआरपीएफ जवानों की मौत
31 अक्टूबर, 2001 - धनबाद के तोपचांची के पास 13 पुलिसकर्मियों की हत्या।
इस तरह की कई अन्य बड़ी घटनाओं को अंजाम देते हुए माओवादियों का कारवां बढ़ता चला गया। माओवादियों ने 2005 के नवम्बर माह में जहानाबाद जेल ब्रेक कांड को अंजाम दिया जिसमें अपने संगठन के चीफ अजय कानू सहित जेल में बंद कई नक्सलियों के साथेसाथ 400 कैदियों को छुड़ा ले गए। इस वर्ष फरवरी माह में माओवादियों ने नवादा जिले के महुलीटांड गांव में एक सभा में हमला बोल 11 पुलिसकर्मियों को सदा के लिए नींद में सुला दिया और उनकी राईफलें भी लूट ली। 16 अप्रेल 2009 को माओवादियों ने 7 बीएसएफ के जवानों को उनके वाहन पर हमला बोल हत्या कर दी।
इस संगठन की गतिविधियों केा देखकर तो यही कहा जा सकता है कि इस खूनी संगठन को पहले ही निषाने पर लिया जाना चाहिये था। आखिर अबतक क्यों बरती गई ढिलाई और अगर अब इसके खूनी खेल को रोकने की दिषा में पहल की गई है तो उसमें गंभीरता होनी चाहिये ताकि इस जैसे संगठन फिर पनप न सकें।
भाकपा माओवादी ने अपने अब तक के सफर में खून की कई बड़ी होली खेली है। कई बार हैवानियत की हद पार कर दी है। जब सिर के उपर से पानी बहने लगा तो केन्द्र सरकार ने भाकपा माओवादी को करार दिया आतंकी संगठन। इस घोषणा के पहले न तो केन्द्र सरकार और न ही राज्य सरकार ने इस दिशा में कोई ठोस कदम उठाने की जरुरत महसूस की। पिछले एक सप्ताह से लालगढ़ में माओवादियों की कार्रवाई से परेशान केन्द्र सरकार ने इस संगठन पर प्रतिबंध लगाया।
बिहार-झारखंड के भाकपा माओवादी संगठन ने पिछले एक दशक में कई ऐसी घटनाओं को अंजाम दिया जो सिर्फ बिहार और झारखंड को ही नहीं बल्कि पूरे देश को झकझोड़ कर रख दिया। आईए डालते हैं भाकपा माओवादी की पिछले दस वर्षों की उन बड़ी घटनाओं पर जो रही सुर्खियों में ..............
कैसे-कैसे खेले हैं इस आतंकी संगठन ने खूनी खेल आइये डालते हैं एक नजर-
18 मार्च, 1999
-जहानाबाद के सेनारी गांव में माओवादियों द्वारा 35 उच्च जाति के लोगों की हत्या।
18 नवम्बर, 1999
- झारखंड के पलामू जिले में लाटू गांव में 12 लोगों की हत्या।
12 फरवरी, 2000
-झारखंड के पलामू में लैंड माइंस ब्लास्ट में 19 पुलिसकर्मी सहित 22 लोगों की मौत।
5 अक्टूबर, 2000
- लोहरदग्गा के एस पी अजय कुमार की हत्या।
12 नवम्बर, 2000
- हजारीबाग के डिप्टी कमिश्नर के पत्नी की हत्या।
18 दिसम्बर, 2000
मुजफ्फरपुर से पुलिस की छः राईफल और दो कार्बाइन की लूट
14 अप्रेल,2001 - हजारीबाग के बेल्पू गांव में 14 लोगों की हत्या।
21 मई, 2001 - रांची में पुलिस जवानों पर हमला बोल चार राईफल की लूट
24 जून, 2001 - शिवहर जिले के डेकुली पुलिस पीकेट पर हमला बोल कर छः राईफल की लूट
6 सितम्बर, 2001 - लातेहार में माओवादी हमले में दो पुलिस जवान सहित पांच लोगों की मौत
23 सितम्बर, 2001 - हजारीबाग के अबरोज जंगल में माओवादी हमले में 12 सीआरपीएफ जवानों की मौत
31 अक्टूबर, 2001 - धनबाद के तोपचांची के पास 13 पुलिसकर्मियों की हत्या।
इस तरह की कई अन्य बड़ी घटनाओं को अंजाम देते हुए माओवादियों का कारवां बढ़ता चला गया। माओवादियों ने 2005 के नवम्बर माह में जहानाबाद जेल ब्रेक कांड को अंजाम दिया जिसमें अपने संगठन के चीफ अजय कानू सहित जेल में बंद कई नक्सलियों के साथेसाथ 400 कैदियों को छुड़ा ले गए। इस वर्ष फरवरी माह में माओवादियों ने नवादा जिले के महुलीटांड गांव में एक सभा में हमला बोल 11 पुलिसकर्मियों को सदा के लिए नींद में सुला दिया और उनकी राईफलें भी लूट ली। 16 अप्रेल 2009 को माओवादियों ने 7 बीएसएफ के जवानों को उनके वाहन पर हमला बोल हत्या कर दी।
इस संगठन की गतिविधियों केा देखकर तो यही कहा जा सकता है कि इस खूनी संगठन को पहले ही निषाने पर लिया जाना चाहिये था। आखिर अबतक क्यों बरती गई ढिलाई और अगर अब इसके खूनी खेल को रोकने की दिषा में पहल की गई है तो उसमें गंभीरता होनी चाहिये ताकि इस जैसे संगठन फिर पनप न सकें।
No comments:
Post a Comment