पिता एक विष्वास का
पिता......एक विष्वास का नाम है पिता। वैसे कहें तो......पिता आकाष है,वह सुरक्षा कवच है जो अपनी छाती पर तूफान झेलकर संतान की रक्षा करता है। पिता के होते संतान को ज्यादा चिंता नहीं होती। लेकिन जब पिता उम्र के अंतिम पड़ाव पर पहुंचकर बेटे की ओर आषा भरी निगाहों से देखता है और जब बटे की ओर से दुत्कार मिलती है तो उसका दर्द उभरकर चेहरे पर आ जाती है।
राजधानी पटना के मंदीरी इलाके में गत सतर सालों से एक पिता की निगाहें उस बेटे को बार बार खोजती हैं। जिसे जवान करने के लिए इस पिता ने अपनी पुरी जवानी कुर्बान कर दी। हम बात कर रहे हैं ..भगवान मिस्त्री की। भगवान मिस्त्री भागवत भजन करने की उम्र में.......अपना भगवान हथौड़ी और आग की भट्ठी को बना चुके हैं। जब बेटे से सेवा कराने की उम्र हुइ तो बेटे का दिमाग खराब हो गया और भगवान मिस्त्री को मिला सिर्फ दर्द और आग की भट्ठी।
आज भी सुबह से शाम तक भगवान मिस्त्री अपनी किस्मत को हथौड़े से पिटते हैं। इसके बदले में इन्हें दो हरी मिर्च और सुखी रोटी पर पूरा दिन गुजारना पड़ता है।
इतना ही नहीं जो पिता अपने सपने को कुर्बान कर उसे बेटे की उन्नती में लगाता है। उसके सपने यह होते हैं कि बेटा बुढ़ापे की लाठी का सहारा बनेगा। लेकिन ऐसा होता नहीं है।
कुछ साल पहले बी आर चोपड़ा की एक फिल्म आइ थी बागवान जिसमें यह दिखाया गया था जहां उम्र के अंतिम पड़ाव में एक पिता को जब बेटे मदद करने से मना कर देते हैं तो पिता दुबारा जीवन की शुरुआत किताब लिखकर करता है। परदे की यह कहानी हकीकत में भी कुछ ऐसी हीं है।
पिता......एक विष्वास का नाम है पिता। वैसे कहें तो......पिता आकाष है,वह सुरक्षा कवच है जो अपनी छाती पर तूफान झेलकर संतान की रक्षा करता है। पिता के होते संतान को ज्यादा चिंता नहीं होती। लेकिन जब पिता उम्र के अंतिम पड़ाव पर पहुंचकर बेटे की ओर आषा भरी निगाहों से देखता है और जब बटे की ओर से दुत्कार मिलती है तो उसका दर्द उभरकर चेहरे पर आ जाती है।
राजधानी पटना के मंदीरी इलाके में गत सतर सालों से एक पिता की निगाहें उस बेटे को बार बार खोजती हैं। जिसे जवान करने के लिए इस पिता ने अपनी पुरी जवानी कुर्बान कर दी। हम बात कर रहे हैं ..भगवान मिस्त्री की। भगवान मिस्त्री भागवत भजन करने की उम्र में.......अपना भगवान हथौड़ी और आग की भट्ठी को बना चुके हैं। जब बेटे से सेवा कराने की उम्र हुइ तो बेटे का दिमाग खराब हो गया और भगवान मिस्त्री को मिला सिर्फ दर्द और आग की भट्ठी।
आज भी सुबह से शाम तक भगवान मिस्त्री अपनी किस्मत को हथौड़े से पिटते हैं। इसके बदले में इन्हें दो हरी मिर्च और सुखी रोटी पर पूरा दिन गुजारना पड़ता है।
इतना ही नहीं जो पिता अपने सपने को कुर्बान कर उसे बेटे की उन्नती में लगाता है। उसके सपने यह होते हैं कि बेटा बुढ़ापे की लाठी का सहारा बनेगा। लेकिन ऐसा होता नहीं है।
कुछ साल पहले बी आर चोपड़ा की एक फिल्म आइ थी बागवान जिसमें यह दिखाया गया था जहां उम्र के अंतिम पड़ाव में एक पिता को जब बेटे मदद करने से मना कर देते हैं तो पिता दुबारा जीवन की शुरुआत किताब लिखकर करता है। परदे की यह कहानी हकीकत में भी कुछ ऐसी हीं है।
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