गैरों का सहारा
कहते हैं इंसान के जन्म लेने से पहले हीं उसके किस्मत की कहानी लिखी जाती है। जी हां कुछ ऐसा हीं हुआ सुमन के साथ पहले तो इसके सर से पिता का साया उठ गया, फिर अपनों ने इतना प्रताड़ित किया कि आठ साल के इस मासूम को घर छोड़ना पड़ा।
( अपनों को जो ठुकराएगा वो गैरों की ठोकर खाएगा......)
सीधे साधे स्वभाव। चेहरे पर मासूमियत के भाव। उम्र करीब आठ साल। आंखों में अपनों से दिए गए प्रताड़ना के खौफ। एक दिन घर से अपनी जान बचाने के लिए निकल भागी सुमन......जी हां ई कोई सिनेमा की कहानी नहीं है। बल्कि अपनों सतायी गई सुमन का सच है। जिसकी सगी बहनों और भाईयों ने पिता के मौत के बाद अपने हीं घर में सुमन की दुश्मन बन गयी।
बिहार के अरवल जिला के बैदराबाद के लखदेव शर्मा की आठ साल की बेसहारा बेटी सुमन फुलवारीशरीफ के स्व.नेता शर्मा स्मृति अनाथ आश्रम में हंसी खुशी से रह रही है। सुमन की मानें तो वह चार बहन और एक भाई में सबसे छोटी है। आए दिन घर में हो रहे मारपीट से तंग आकर नन्हीं जान एक दिन वहां से निकल गयी। नन्हीं जान जाए कहां ? पता नहीं ? अपनी किस्मत के सहारे पुनपुन स्टेशन पर ट्रेन में चढ़ गई। संयोग से आश्रम के एक कार्यकर्ता से भेट हो गई। जिससे सुमन अनाथ आश्रम पहुंच गई।
कल तक प्रताड़ना की जिन्दगी जीने वाली सुमन आज अनाथालय में खुशियों के उड़ान भर रही है। संसार में ऐसे लोगों की कमी नहीं है। इसे कहते हैं अपनों ने ठुकराया गैरों ने अपनाया।
गैरों का सहारा
कहते हैं इंसान के जन्म लेने से पहले हीं उसके किस्मत की कहानी लिखी जाती है। जी हां कुछ ऐसा हीं हुआ सुमन के साथ पहले तो इसके सर से पिता का साया उठ गया, फिर अपनों ने इतना प्रताड़ित किया कि आठ साल के इस मासूम को घर छोड़ना पड़ा।
( अपनों को जो ठुकराएगा वो गैरों की ठोकर खाएगा......)
सीधे साधे स्वभाव। चेहरे पर मासूमियत के भाव। उम्र करीब आठ साल। आंखों में अपनों से दिए गए प्रताड़ना के खौफ। एक दिन घर से अपनी जान बचाने के लिए निकल भागी सुमन......जी हां ई कोई सिनेमा की कहानी नहीं है। बल्कि अपनों सतायी गई सुमन का सच है। जिसकी सगी बहनों और भाईयों ने पिता के मौत के बाद अपने हीं घर में सुमन की दुश्मन बन गयी।
बिहार के अरवल जिला के बैदराबाद के लखदेव शर्मा की आठ साल की बेसहारा बेटी सुमन फुलवारीशरीफ के स्व.नेता शर्मा स्मृति अनाथ आश्रम में हंसी खुशी से रह रही है। सुमन की मानें तो वह चार बहन और एक भाई में सबसे छोटी है। आए दिन घर में हो रहे मारपीट से तंग आकर नन्हीं जान एक दिन वहां से निकल गयी। नन्हीं जान जाए कहां ? पता नहीं ? अपनी किस्मत के सहारे पुनपुन स्टेशन पर ट्रेन में चढ़ गई। संयोग से आश्रम के एक कार्यकर्ता से भेट हो गई। जिससे सुमन अनाथ आश्रम पहुंच गई।
कल तक प्रताड़ना की जिन्दगी जीने वाली सुमन आज अनाथालय में खुशियों के उड़ान भर रही है। संसार में ऐसे लोगों की कमी नहीं है। इसे कहते हैं अपनों ने ठुकराया गैरों ने अपनाया।
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