Sunday, June 28, 2009



गरीबी के साये में...


सारा जहां गुलजार है
फिर मेरे दामन
क्यों ?
दिन के उजाले में भी
अंधकार है.
जाने-अंजाने
जिन्दगी को उजालों से
भर देने की
खुदा से
गुजारिश करने वाले
तेरे दामन में
आज भी अंधकार है.
जमीं से आसमां तक
इंसान उड़ान
भर रहा है.
विश्व के मानचित्र पर
विकास का
परचम लहरा है.
फिर भी
गरीबी मिटाने की
बात करने वालों
जरा सोचो
कि
आज भी इनके जिन्दगी में
अंधकार है.
सदियों से
गरीबी मिटाने की
चर्चाएं होती हैं,
जहां लोग
कचड़े फेंकते हैं
वहीं इन्हें
दो जून की रोटी
नसीब होती है.
कुछ पल के लिए
भूख मिट जाते हैं
जिन्दगी के दिन चार
कट जाते हैं
पर !
तब दिल तड़प उठता है
जब जानवरों की तरह
इन्हें भी
मौत सरेआम मिलती है.
चारो ओर
गरीबी मिटाने की
चहूं ओर चर्चा होती है
गरीबी को,
विषय बनाकर
आए दिन सेमिनार
होती है.
लेकिन ये क्या?
इंसान ही इंसान को
अपना गुलाम बनाकर
गरीबी का माखौल
उड़ा रहे हैं.
रोटी तू !
जो, न करादे
इन गरीबों को
आजीवन गरीबी की
लकीर खींचने वाले
कभी मेरी जगह पर
आकर तो देख
रौशन जहां में भी
सिर्फ और सिर्फ
अंधकार है.
--मरली मनोहर श्रीवास्तव
9430623520/9234929710

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HIMMAT SE KAM LOGE TO ZMANA V SATH DEGA...HO GAYE KAMYAB TO BCHACHA-BCHCHA V NAM LEGA.....MAI EK BAHTE HWA KA JHOKA HU JO BITE PAL YAD DILAUNGA...HMESHA SE CHAHT HAI KI KUCHH NYA KAR GUZRNE KI...MAI DUNIA KI BHID ME KHONA NHI CHAHTA....