नेत्रहीन होने के बावजूद जीने का हूनर
कुम्हरार का अन्तज्र्योति आवासीय बालिका विद्यालय, नेत्रहीन लड़कियों को पढ़ाने के साथे साथ आत्मनिर्भर बनाने का हुनर भी सिखा रहा है। इन लड़कियों को आंखें नहीं हैं तो क्या हुआ, इससे इनमें जीवन जीने का हौसला पैदा हो रहा है।
कपड़ों की सिलाई करती ई है नीता। पढ़ाई के साथे साथ इन सारे कामों को भी बाखूबी करना जानती है। एक पल के लिए षायद आप सोचे कि इसमे ऐसा क्या खास है।पर ये हम जैसी नहीं है। जी हां भगवान ने इसकी आंखे छीन ली है, लेकिन जीने का जज्बा इसमें अब भी कायम है।
यह सिर्फ अकेली नीता की कहानी नहीं है बल्कि इस जैसी हजारों लड़कियों की है जो नेत्रहीन होने के बावजूद जीने का हुनर जानती है। इन्हें जीने का गुर सिखा रही है , अन्तज्र्योति आवासीय बालिका विद्यालय। 1983 ई. में षुरू की गई इस निरूषुल्क विद्यालय में अब तक सैकड़ों नेत्रहीन बालिकाएं लाभान्वित हो रही हैं।
नेत्रहीनों को आत्मनिर्भर करने की यह कवायद सराहनीय है। इस प्रयास से जहां सैकड़ों नेत्रहीन लड़कियों की जिन्दगी रौषन हो रही हैं, वहीं समाज को भी यह प्ररेणा दे रही है।
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