गरीबी एक अभिशाप
( गरीब दिवस 28 जून पर खास)
इंसान के जन्म के साथ ही गरीबी का भी जन्म होता है। यह बात अलग है कि आज भी यह कुछ खास लोगों और समुदायों के लिये अभिषाप बनी हुई है। आज गरीब दिवस है। गरीबों को इससे कोइ सरोकार भी नहीं कि उनकी मजबूरी भी देष में दिवस के रुप में मनाई जाती है। क्योकि उनकी जो स्थिति 70 साल पहले थी वह आज भी बरकरार है। राजधानी के महेन्द्रुघाट इलाके में रहता है। कागज के कबाड़ियों का एक परिवार। पूरा कुनबा 18 परिवार का है। जिसमें बच्चों को साथ ले लिया जाए तो यह पूरे मिलकर 72 हो जाएंगे। सतर साल पहले इन परिवारों के मुखिया ने पटना में कदम रखा। और शहर के कचड़े को चुनने के साथ शुरु की एक जिंदगी। सोचा बाद में चलकर वक्त बदलेगा, तो हमारा भी कुछ कल्याण होगा। लेकिन उनके बच्चे आज भी बताते हैं कि कुछ नहीं बदला।
इस परिवार के बच्चे गरीबी का दंष झेलकर जवान होते है। पढाइ-लिखाई की कोई सुविधा नहीं मिल पाती। पूरा कुनबा रद्दी कागज के टुकड़े और कुट का कार्टुन चुनकर अपनी जिविका चलाता है। इनकी दिनभर की कमाइ मात्र 50 रुपये होती है। किसी दिन वह भी नहीं मिल पाती। बस्ती के बच्चों में आये दिन बीमारी फैलते रहती है। जिसका इलाज तक नहीं हो पाता। बस्ती के सबसे बुजुर्ग सदस्य बताते हैं कि सरकार के तरफ से मिलने वाली कोइ भी सुविधा इन्हे नहीं मिल पाती। गत 50 सालों में खासकर बिहार ने कइ बड़े बदलाव देखे। लेकिन इस बदलाव का हल्का सा भी असर वैसे परिवारों पर देखने को नहीं मिला जिन्हे बदलाव की सही में जरुरत थी।
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