एक पैर का रिक्शावाला
कौन कहता है आसमान में सुराख नहीं हो सकता एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारो। जी हां, इस जुमले को सही कर दिखाया है गया के रहने वाले सुरेश ने। पैर से विकलांग होने के बावजूद भी वो रिक्शा चलाकर अपने परिवार का भरण-पोषण करते हैं।
कहा जाता है चलती का नाम ही जिंदगी है। सुरेश के जिंदगी के पहिये भी हजारों परेशानियों के बीच कभी थमे नहीं। एक सड़क हादसे में सुरेश ने अपने पैर गवां दिये। जिसके बाद तो सुरेश के घरवालों पर जैसे पहाड़ टूट पड़ा और जिंदगी बोझ बन गई, लेकिन हौसलों के धनी सुरेश को हार मानना कतई गंवारा नहीं था। सुरेश ने अपनी कमजोरी को ढ़ाल बनाकर लड़ने का फैसला किया और आज पटना में कितने ही लोगों को वो उनकी मंजिल तक पहुंचाता है।
परेशानियों से हार ना मानने वाले सुरेश के बुलंद हौसले पर ही उसकी पत्नी और बेटी की जिंदगी भी टिकी है। चिलचिलाती धूप हो या, हाड़ कपा देने वाली ठंड या फिर तेज बारिश ही क्यों ना हो, सुरेश हर रोज रिक्शा लेकर सुबह-सुबह घर से निकल जाता है। कड़ी मेहनत के बल पर अपने घरवालों के लिये वो खुशिशं खरीदने की भरपूर कोशिश करता है।
सुरेश ने अपने बेजोड़ जज्बे से ये साबित कर दिया कि हिम्मते मर्दे तो मददे खुदा। अगर इरादे बुलंद हो तो इंसान विपरित परिस्थिति में भी रास्ता निकाल हीं लेता है।
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