संसद से सडक पर
कभी सरकार की तकदीर लिखने का दावा करने वाले आज अपनी ही तकदीर
पर मायूस हैें। खुद को संसद का शहंशाह समझने वालों केहालात ऐसे हो गये हैं कि अपनी अस्तित्व की लडाई के लिए ,वे अब सडकों पर हैं।ये हैं हमारे पूर्व रेलमंत्री लालू प्रसाद यादव। कल तक इनके शानके क्या कहने थे। शान भी ऐसा मानो संसद इन्हीं के शान से रौशन हो। चुनाव पहले तक इनका दावा भी यही था किइनके और इनकी पार्टी की बदौलत ही संसद की शोभा है और इनके बिना सरकार की कल्पना नहीं की जा सकती। लेकिन कहते हैं न कि सितारों की चाल बदलते ही किस्मत भी
दगा दे जाती है ।बिहार के इन दोनों सूरमाओं लालू और रामविलास के साथ भी
ऐसा ही हुआ।नौबत यहां तक आ गयी कि कल तक शाही ठाठ
का मजा लेने वाले इ नेता आज अपने अस्तित्व की लडाई के लिए
सडकों पर हैं और इस बात का इनको कौनो मलाल भी नहीं है।वो कहते हैं न कि सब दिन होत न एक समाना ।तो भइया ।कहावत को याद रखिए और इसी के आधार पर जनता को जर्नादन समझते हुए उनकी सेवा शुरु कर दिजीए।काहे कि नेताओं के किस्मत की चाभी तो जनता के ही हाथ में रहती है।
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