Wednesday, June 3, 2009

मांदर बजाने वाले भूखमरी के कगार पर

मांदर की थाप बजाकर छप्पन करोड़ देवताओं को रिझानेवाले इसके कलाकार आज भूखमरी के कगार पर हैं। इन मांदरियों को दो जून की रोटी के लिए तरसना पड़ रहा है। जिससे इस थाप पर लोक संस्कृति की धुन बजाने वाले खुद इस पेशा से अलग हो रहे हैं।
कहा जाता है कि इनके मांदर की धुन पर देवतागण बहुत खुश हो जाते हैं। लेकिन मुजफ्फरपुर के मीनापुर में रहने वाले ये कलाकार रोटी की तलाश में दर-दर की ठोकर खा रहे हैं। जिससे मांदर की थाप दूर का ढोल साबित हो रहा है। बढ़ती भूखमरी और पेट की आग ने इन्हें पलायन को विवश कर दिया है। लगन के दिनों में मांदर बजाने के बाद बाकी के दिनों में इसके कलाकार दूसरे प्रदेशों में मजदूरी करने चले जाते हैं।
लोक संस्कृति की धुन को छेड़ने वाले कलाकर ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी बाबा बख्तौद, गोविंद महाराज, कारीक, सोखा और फेकूराम, दयाराम जैसी लोक पूजाओं में मांदर की थाप सुनने को मिल जाता है। जिसे सुनने के लिए लोगों की भारी भीड़ उमड़ पड़ती है। पहले के जमाने में इसे बजाकर जीवन बसर करने वाले गांवों में तो किसी तरह जी लेते थे। लेकिन बदलते जमाने के दौर में बढ़ती महंगाई ने इनकी हालत को बद से बद्तर कर दिया है। इस वादन से पेट भरना जहां मुश्किल है। वहीं बच्चों की पढ़ाई और बिटिया के शादी की बात तो सोचना बेमानी लगती है। अब यह पेशा महज एक शौक बनकर रह गया है।
ग्रामीण क्षेत्रों में मांदर की धुन अब यदा-कदा हीं सुनने को मिलती है। सरकार का इन कलाकारों पर कोई ध्यान नहीं है। जिसकी वजह सें इसके कलाकार अब मांदर बजाने से बेहतर नदियों, तालाबों में घोघा और सितुआ चुनना पसंद करते हैं। अगर इस पर ध्यान नहीं दिया गया तो यह धुन भी इतिहास के पन्नों में दफन होकर रह जाएगा।

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HIMMAT SE KAM LOGE TO ZMANA V SATH DEGA...HO GAYE KAMYAB TO BCHACHA-BCHCHA V NAM LEGA.....MAI EK BAHTE HWA KA JHOKA HU JO BITE PAL YAD DILAUNGA...HMESHA SE CHAHT HAI KI KUCHH NYA KAR GUZRNE KI...MAI DUNIA KI BHID ME KHONA NHI CHAHTA....