Monday, June 1, 2009

बांसुरी की कसक

बांसुरी की मीठी धुन बजाने वाला मोहम्मद दाऊद अब बांका पहुंचा है ।खानाबदोष की जिन्दगी जीने वाला यह इंसान घूम घूमकर लोगों को इस कला के प्रति जागरुक कर रहा है ।
-षरीर पर तन ढकने के लिए मोटी खादी कपड़े के गंदे कमीज, फटी और मैली पैंट , पैरों में टूटी चप्पल , कंघे पर लटक रहे बांसुरी के झोले इनके व्यथा की कहानी कह रहे है। वे इस कोषिष में लगे हुए है कि बांसुरी कला को जीवित रख सके । इसके लिए वे जगह जगह जा कर कलाकारों के अंदर सोए प्रतिभा को जगाने की कोषिष कर रहे है। ये भागलपुर , मुंगेर और लख्खीसराय होते हुए अब बांका पहुंचे है।
ष्यह मीठी धुन बरबस ही सबको अपनी तरफ खींच लेती है । पर इस मीठी धुन के पीछे एक पीड़ा छुपी है । इन्हें दर्द इस बात का है कि जिस धुन को सुनकर आज भी लोग उत्साहित होते है उसी धुन को लेकर लोगों संजीदा क्यों नहीं है । सरकार भी इस कला के प्रति उदासीन है और अब तक कोई सार्थक प्रयास नही किया गया है ।
बांसुरी के खत्म होते क्रेज को वापस लाने का यह प्रयास कितना सफल हो पाएगा , मालूम नही और अगर सरकार भी इसी तरह उदासीन रही तो आने वाले दिनों में यह कला जरुर लुप्त हो जाएगी ।

1 comment:

  1. aap ki chinta uchit hai par ab koi gandhi nahi ayega kisi ke liye hame khud hi kuch karna hoga

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HIMMAT SE KAM LOGE TO ZMANA V SATH DEGA...HO GAYE KAMYAB TO BCHACHA-BCHCHA V NAM LEGA.....MAI EK BAHTE HWA KA JHOKA HU JO BITE PAL YAD DILAUNGA...HMESHA SE CHAHT HAI KI KUCHH NYA KAR GUZRNE KI...MAI DUNIA KI BHID ME KHONA NHI CHAHTA....