बुलेट नहीं बैलेट
नक्सलियों को भी समझ में आने लगी है
अब बात अनोखी पहल की .............. समाज बंदूक से नहीं वोट की ताकत से बदला जा सकता है। यह बात अब बंदूक की हिमायत करने वाले नक्सलियों को भी समझ में आने लगी है। हार्डकोर नक्सली कामेष्वर बैठा के संसद में पहुंचने के बाद कई और नक्सली बुलेट छोड़ बैलेट का रास्ता अपनाने की तैयारी में लगे हैं।
कल तक बंदूक की नली से समाज बदलने की बात कहने वाला हार्ड कोर नक्सली कामेष्वर बैठा का चुनाव जीतने के बाद अब यह कहना है कि समाज बंदूक से नहीं वोट से बदलता है।इतना ही नहीं कामेष्वर बैठा के संसद के गलियारों तक पहुंचने के बाद अब दुसरे नक्सलियों में भी लोकतंत्र के प्रति आस्था दिखने लगी है।जानकरांे
की माने तो आने वाले चुनाव में झारखंड और बिहार के नक्सली गतिविधियों से जुड़े कई लोग वोट की ताकत आजमाने को तैयार है। ये चुनाव मैदान उतरने की तैयारी कर रहे हैं।
उधर इन राज्यों के नेताओं का भी मानना है कि कामेष्वर बैठा के बहाने एक नई बयार नक्सलियों में बह सकती है। वो भी इसे सकारात्मक रूप् में देख रहे हैं।
बुलेट की जगह बैलट का दामन कितने नक्सली थाम पाते हैेेें यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा पर ऐसा अगर होता है तो इससे नक्सलियों की धमक कमजोर होने के साथ ही एक बड़ा बदलाव भी आएगा।
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