निराष पंचायत षिक्षक
मुख्यमंत्री का यह कहना कि अगर नहीं पोसाता है तो नौकरी छोड़ दें-इससे पंचायत शिक्षकों की हालत सांप छुछुन्दर वाली हो गई है। साथ ही अपने भविष्य को लेकर काफी निराष भी हो गए हैं। शिक्षकों का कहना है कि न तो नौकरी छोड़ सकते हैं और न ही ज्यादा दिनों तक इससे जुड़े रह सकते हैं।
पंचायत शिक्षक यानी एक ऐसी नौकरी जिसे न छोड़ा जा सकता है और न ज्यादा समय तक इससे जुड़ा रह सकते हंै। ये तो हुई सांप और छुछुंदर वाली बात । जी हां! सांप अपने शिकार को खा तो लेता है लेकिन जब वो गले में फंस जाती है तो न उगलते बनता है और न ही निगलते। कुछ ऐसा ही हाल हमारे नव नियुक्त
शिक्षकों का है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की इस घोषणा से कि इन्हें सरकारी वेतन नहीं मिलेगा;इनकी जान
सांसत में पड़ गई हैं। ये हैं-पूणियां जिला के अमित कुमार।ये एक पंचायत शिक्षक हैं। इनके घर की माली हालत अच्छी नहीं है। जब ये पंचायत शिक्षक बने थे तो इन्हें उम्मीद थी कि आज न कल इन्हें सरकारी कर्मचारी का दर्जा मिल जाएगा।इन्हें भी भविष्य निधि;बीमा और पेंशन मिलेगा।
गौरतलब है कि तकरीबन 2 लाख शिक्षकों की नियुक्ति पंचायत प्रखंड;नगर और जिला परिषद स्तर पर की गई है।-यह सच है कि इनकी नियुक्ति सरकारी स्तर पर नहीं हुई लेकिन किसी भी रोजगार की ललक में इस मिलती नौकरी को छोड़ना किसी ने गंवारा नहीं समझा।इन्हें क्या पता था कि व्यापारियों की तरह सरकार भी दो तरह के बही खाते रखने लगी है। कहा जा सकता है कि इनकी स्थिति सरकार के जाएज संतानों जैसी हो गई हैं। वैसे मुख्यमंत्री का कहना भी वाजिब है कि इन लोगों को सरकारी वेतन देने से खजाने पर भारी बोझ पड़ेगा और अनेक विकास योजनाएं ठप्प करनी पड़ेगी।
शायद मुख्यमंत्री जी मंत्रियों;अधिकारियों के लिए लक्जरी गाड़ियां खरीदने;लैपटाॅप देने और इनके आवासों को चाकचैबंद करन में आये खर्चों को भूल रहे हैं । ये तो दोहरा मापदंड है-मुख्यमंत्री जी। इससे तो आपके नीयत पर सवाल खड़े हो सकते हैं। शिक्षकों को यह कहना कि नहीें पोसाता है तो छोड़ दीजिए नौकरी-ये तो सामंती व्यवस्था की चुभन दे जाता है। अब इस जाल में फंसे नवनियुक्त शिक्षक भविष्य में बढने वाले मानदेय की आशा में या तो नौकरी करते रहें या जो मिल रहा है उसे भी छोड़ दें।
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