मुरझाने लगे मालाकार
फूल की खुश्बू और इसकी सुगंध सभी को लुभाती है। लेकिन इसकी खेती करने वाले मालाकारों की जिन्दगी उसके विपरीत रंगहीन और गंधहीन हो रही है। जिससे इसके खेतीहर मालाकार दूसरे व्यवसाय की ओर रूख कर रहे हैं।
नालंदा जिला का रुपसपुर गांव। जहां डेढ़ दशक से दर्जनों मालाकार खेत पट्टे पर लेकर फूल की खेती करते हैं। चारो ओर फूलों से लथराई इस बगीया में अपनी फूलों को निहारते मालाकार इंद्रदेव को देखिए! कितना जतन से इसे सजा-सवांर रहे हैं। समय के साथ इसकी मांग तो बाजारों में बढ़ी जरूर, लेकिन अब इस व्यवसाय में पहले वाली बात नहीं रही।
एक वर्ष में फूल के पौधे तीन बार लगाये जाते हैं। जिसके लिए पौधे कोलकाता से मंगाये जाते हैं। मौसम अनुकुल मिला तो, फूल तीन से चार महिने में तोड़े जाते हैं। अन्यथा पूरी फसल के बर्बाद होने का डर रहता है। उपर से खेत मालिकों का आर्थिक कहर भी मालाकारों को झेलनी पड़ती है। महंगे फूलों की खेती करना लगभग खत्म हो गया है। सबसे बड़ी बात तो यह है कि कई बार कृषि वैज्ञानिक यहां आए बीज दिलवाने के लिए नाम नोट करके ले भी गए। पर आज तक कोई सरकारी सहायता नहीं मिल पायी।
सुगंध बिखेरने वाले मालाकार परिवारों को सरकारी सहायता न मिलना एक छलावा है। जिसके चलते ये लोग इस रोजगार से मुंह मोड़कर दूसरे व्यवसाय की ओर जाने लगे हैं।
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