दुनिया में कितना गम है ....
कुछ लोग ऐसे होते हैं जो अपना सबकुछ भूलकर गरीब और असहायों की सेवा मे गुजार देते हैं। एक ऐसा ही शख्स शेखपुरा का है जिसने अपनी जिंदगी का अहम हिस्से सिर्फ समाज सेवा में गुजार दिया और खुद बेसहारा है।
दुनिया में कितना गम है ....मेरा गम कितना कम है। हांेठों पर यही गीत गुनगुनाते चले जा रहे हैं विनोद कुमार। जो बेघर और बेसहारा हैं। इनको रहने के लिए घर नहीं है। विनोद शुरू से ही गरीब और असहायों की सेवा करते आ रहे हैं।जिनकी उम्र अभी करीब 35 साल की है। इनकी समाज सेवा की दिवानगी से आजिज आकर परिवार वाले इनका साथ छोड़ दिए। अब इनका स्थायी आशियाना प्लेटफार्म ही है। जीविका के लिए ये कभी-कभी जूते चप्पल की मरम्मत करते हैं।ये अब तक 200 विकलांगों ,चार सौ निर्धन बच्चे व सौ विधवाओं को विशेष अवसरों पर वस्त्र दे चुके हैं।
हर साल विनोद 15 अगस्त 26 जनवरी और अम्बेदकर जयंती के अवसर पर निर्धन और निरीह लोगों के बीच कपड़ा और कताब-काॅपी बांटते हैं। अभी तक ये विभिन्न सरकारी स्कूलों में आइ सौ निर्धन बच्चों को मुफ्त पुस्तकें बांट चुके हैं। घर-परिवार सब छीन जाने के बाद भी विनोद कुमार दास में वही लगन और वही दृढ़ इच्छा शक्ति है।
समाज सेवा करने में तो खुशी मिलती ही है। लेकिन ऐसी समाज सेवा जो अपना सब कुछ लुट जाने के बाद भी समाज सेवा की भावना मन में कूट-कूट कर भरी हुई है। ऐसे में विनोद की ये समाज सेवा की भावना काबिले तारीफ है।
No comments:
Post a Comment