Friday, June 5, 2009

बदलते पर्यावरण के मिजाज

बिहार और झारखंड में बदलते पर्यावरण के मिजाज की। बिहार और झारखंड मंें भी तेजी से पेड़ गुम होते जा रहे हैं।इनकी जगह अब खड़े हो रहे हैं कंक्रीट के घने जंगल।इससे बीमारियों का खतरा तो बढ़ा ही है, पं्रकृति का संतुलन भी बिगड़ रहा है।
यह इलाका कभी हरे- भरे पेड़ो से गुलजार था। सुबह होते ही चिड़ियों की चहचआहट फिजा में ताजगी का राग भर देती थी पर आज न पेड़ बचे हैं और न चिड़ियों की चहचआहट। यहां इसके बदले ऊॅचे- ऊॅचे कंक्रीट के जंगल खड़े है। यह हाल सिर्फ पटना का ही नहीं बिहार और झारखंड के तमाम षहरों का है।
आबादी बढ़ने के साथ ही तेजी से पेड़ों को काटा जा रहा है।
पेड़ों के इस तरह काटे जाने से इंसान और प्रकृति के बीच का संतुलन बिगड़ता जा रहा है। इस कारण कई गंभीर बीमारियों ने दस्तक देने तो शुरू कर ही दिए हैं हालात यही रहे तो हमंे इसके भीषण परिणाम देखने को मिल सकते हैं। इसकी बानगी दिखनी शुरू भी हो गई है।
अब तक दुनिया से वनस्पतियांे और प्राणियों की 762 प्रजातियों लुप्त हो चुकी है। हमारे घर- आंगन में गाती-फुदकती गौरेयों की संख्या
भी तेजी से घटी है। आज घटते पेड़ों के साथ मुसीबतें बढ़ रही हैं।अगर समय रहते हम नहीं चेते तो दुनिया पर घुमड़ते खतरों के बादल एकाएक बरस पड़ेंगे और हमें पल भर का भी वक्त नहीं मिलेगा।

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HIMMAT SE KAM LOGE TO ZMANA V SATH DEGA...HO GAYE KAMYAB TO BCHACHA-BCHCHA V NAM LEGA.....MAI EK BAHTE HWA KA JHOKA HU JO BITE PAL YAD DILAUNGA...HMESHA SE CHAHT HAI KI KUCHH NYA KAR GUZRNE KI...MAI DUNIA KI BHID ME KHONA NHI CHAHTA....