Sunday, June 7, 2009

सदा गुंजती रहेगी जहां में उस्ताद की षहनाई

दिल का सुना साज तराना ढुंढेगा, मुझको मेरे बाद जमाना ढुंढ़ेगा..........................यह पूरी तरह से सही साबित हो रहा है। शहनाई उस्ताद बिस्मिल्लाह खां के साथ। संगीत की दुनियां में फर्श से असर््ा तक का सफर तय करने वाले बिस्मिल्लाह खां ने महज एक साधारण पिपही जैसे वाद्य को विश्व में शहनाई के रुप में स्थापित कर दिया। यही वह वाद्य है जो सुख-दुख दोनों घड़ी में बजाए जाते हैं। इसकी धुन मात्र से उस घड़ी का एहसास हो जाता है कि कौन सा माहौल है। तब किसे मालूम था कि 21 मार्च 1916 को बक्सर जिला के डुमरांव राज के मोलाजिम पैगम्बर बख्श मियां के घर जन्मा कमरुदीन हीं आगे चलकर बिस्मिल्लाह खां बन जाएगा। हर इंसान के जिन्दगी का सफर कठिन होता है। लेकिन इनकी ये यात्रा काफी ट्रेजडी से लबरेज रही। बचपन से आर्थिक तंगी परिवार में जन्मे उस्ताद को अब्बा जान पढ़ा-लिखाकर बहुत बड़ा आदमी बनाना चाहते थे। पर प्राकृति को कुछ औरब हीं मंजूर था। पढ़ने में जी नहीं लगता था। पढ़ने की बात कह दो,तो मानो इनके सिर पर पहाड़ टूट गया।पढ़ाई में मन भला कैसे। बात तो यहां थी कि सुबह से हीं षहनाई की धुन गूंजने लगती थी। अब्बा जान सुबह में रियाजकर फिर डुमरांव राज के नौबतखाने में पर बैठकर हर मौसम में षहनाई वादन करते रहते थे। बालक कमरुददीन भी साथ में सवासेर का लडडु के चक्कर में दौड़ लगाता रहता। दिन निकल आया तो सभी बच्चे पढ़ने जाते वहीं बालक कमरुदीन तालाब में मच्छली मारने से लेकर गिल्ली-डंडा खेलते पूरा दिन निकल जाता था। पढ़ाई तो महज चार तक हीं हो पाई। षहनाई से लगाव देखकर आर्थिक तंगी से बेहाल पैगम्बर बख्ष के बेटे कमरुदीन षहनाई के गुर सिखने मामू अली बख्ष के बनारस जाकर षार्गिद बन बैठे। रियाज के बूते साधारण षहनाई पर षास्त्रीय धुन बजाकर पूरे विष्व को अपना मुरीद बना दिया। सबसे पहले 1930 में इलाहाबाद में कार्यक्रम पेष करने का काफी मषक्कत के बाद मौका मिला। इसके बाद तो जैसे पीछे मुड़कर देखने का मौका हीं नहीं मिला।........और वो दिन भी आ गया जब 21 अगस्त 2006 को नहीं लौटने वाली यात्रा पर निकल गये। उस्ताद को यहां तक पहुंचने के लिए जिन्दगी में बहुत ठोकर खानी पड़ी। तरूणाई अवस्था में हीं गुरु और मामू अली बख्ष तथा दोस्त सरीखे भाई षम्सुददीन की अकाल मृत्यु ने इन्हें झकझोर कर रख दिया। खैर ! गिरते-उठते इन्होने अपने संघर्स का सफर नहींश्छोड़ा। और जिन्दगी के दर्द को षहनाई में इस कदर खुद को पिरोया की षहनाई और उस्ताद सिक्के के दो पहलु हो गए। भारत रत्न से नवाजे गए उस्ताद एक संगठित परिवार के आखिरी सांस तक खेवैया बने रहे। आज भले वो हमारे बीच नहीं रहे। लेकिन लोगोे के बीच इनकी षहनाई की धुन आज भी मौजूद है। समय के साथ सब कुछ बदल गया रह गई तो बस गुंज उठी ष्षहनाई में बजाए धुन दिल का खिलौना हाय टूट गया...........इसे अपनी आवाज देकर लता जी ने इसे जीवन्त बना दिया।उस्ताद के नाम पर कि गए एनाउन्समेंट आज तक जमीन पर नहीं उतर सकी। जबकी उस्ताद को हमसे बिछड़े तीन साल से ज्यादा होने को आए। जाने कब पूरी होगे लोागों से किए गए वादे...............या यूंहीं एक दिन उस्ताद को भी बिसरा दिया जाएगा.......................श् ------मुरली मनोहर श्रीवास्तवश् 9430623520/9234929710श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्

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HIMMAT SE KAM LOGE TO ZMANA V SATH DEGA...HO GAYE KAMYAB TO BCHACHA-BCHCHA V NAM LEGA.....MAI EK BAHTE HWA KA JHOKA HU JO BITE PAL YAD DILAUNGA...HMESHA SE CHAHT HAI KI KUCHH NYA KAR GUZRNE KI...MAI DUNIA KI BHID ME KHONA NHI CHAHTA....