ज़मीन को बचाने के लिए
ये है झारखंड के खूंटी जिले का तोरपा गांव।यहां के लोगों को डर है,कि कहीं सरकार इन लोगों से इनकी ज़मीन छीन कर बड़े कंपनियों के हवाले न कर दें ।यही वजह है की यहां के लोग गोलबंद हो रहे है।इस गांव में आम सभा बुलाई गई है और उनका मकसद है अपने ज़मीन को बचाना।जी हां यहां के लोग जल जंगल और ज़मीन की लड़ाई लड़ रहे है।इनको डर है की अगर सरकार इनकी ज़मीन कारखाने लगाने के लिए कंपनियों को देती है तो इसके बदले उन्हें अश्वासन के अलावा कुछ भी नही मिलेगा।और यही वजह है कि ये सब अपनी ज़मीन को बचाने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार है।
हैरत की बात यह है कि पिछले पांच सालो में सरकार ने देश की नामी-गिरामी कंपनियो के साथ सौ से भी ज्यादा MOU किए मगर किसी समझौते से पहले वहां की ग्राम सभा या पंचायत से कोई भी राय नही लिया गया।जिससे नाराज़ होकर ग्रामीनों ने पोटका में ज़िदल और भूषण के स्टील प्लांट लगाये जाने का विरोध किया।
गौरतलब है कि पिछले चार साल मे झारखंड सरकार ने दो लाख करोड़ का MOU किया है जिसमें मित्तल ,जिंदल,टाटा,जैसे बड़े निवेशक भी शामिल हैं।लगभग पचास MOU के बावजूद मात्र आधे दर्जन कंपनियों ने ही अपना काम शुरु किया हैबाकि का काम ज़मिन विवाद को लेकर अटका पड़ा है।वजह साफ है,सरकार ने अभी तक विस्थापितों के लिए कोई ठोस नीति नहीं बनाई है।
हैरत की बात यह है कि पिछले पांच सालो में सरकार ने देश की नामी-गिरामी कंपनियो के साथ सौ से भी ज्यादा MOU किए मगर किसी समझौते से पहले वहां की ग्राम सभा या पंचायत से कोई भी राय नही लिया गया।जिससे नाराज़ होकर ग्रामीनों ने पोटका में ज़िदल और भूषण के स्टील प्लांट लगाये जाने का विरोध किया।
गौरतलब है कि पिछले चार साल मे झारखंड सरकार ने दो लाख करोड़ का MOU किया है जिसमें मित्तल ,जिंदल,टाटा,जैसे बड़े निवेशक भी शामिल हैं।लगभग पचास MOU के बावजूद मात्र आधे दर्जन कंपनियों ने ही अपना काम शुरु किया हैबाकि का काम ज़मिन विवाद को लेकर अटका पड़ा है।वजह साफ है,सरकार ने अभी तक विस्थापितों के लिए कोई ठोस नीति नहीं बनाई है।
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