बेड़ियों में जकड़ी मां
ऐसी मां की दास्तान, जिसके लिए आजादी शब्द, महज एक मजाक है। भारत मां को आजाद हुए भले ही 62 साल हो गये, लेकिन एक मां आज भी बेड़ियों में जकड़ी हुई है। ये अभागिन मां रहती है रामगढ़ में, जिनको आज भी इंतजार है स्वतंत्रता की।
अभागिन मां की आंखे खोज रही है एक ऐसे हाथ को जो इसे आजाद कर सके। ये महीनो से बेड़ियों में जकड़ी हुई है। जब गैरों ने भारत मां को गुलामी की जंजीर में जकड़ा था तो उसे आजाद कराने के लिए, उसके लाखों बेटों ने कुर्बानी दी थी, लेकिन आज एक बेटे ने ही अपनी मां को जंजीर में जकड़ दिया है,, ऐसे इस मां को आखिर कौन आजाद करायेगा..
कहते हैं कि दर्द का हद से गुजर जाना है दवा होना। और अपने दर्द को दवा बना चुकी ये लाचार मां आज स्वतंत्रता का इंतजार कर रही है। ये आजाद हिन्दुस्तान की वो कड़वी तस्वीर है, जो हमें अपनी सच्ची आजादी का आइना दिखा रही है। सवाल है कि गांधीजी ने जो आजादी का सपना देखा था, क्या उसकी यही हकीकत है ?
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