Sunday, August 30, 2009


कोसी का उद्गम और सत्कौशिकी क्षेत्र



कोसी का उद्गम मध्य -पूर्व हिमालय के विशाल हिमनदों से हुआ है । इनकी सात धाराओ मंे सबसे पश्चिम इन्द्रावती है और इसके बाद क्रमश पूरब की ओर सुन कोसी, तामा कोसी, लिक्खु या लिक्षु कोसी ; दूध कोसी, अरूण कोसी तथा तमर कोसी की धाराएॅ हैं । सप्तकौशिकी की धाराओं का क्षे़त्र पष्चिम संे पूर्व 248 किलोमीटर और दक्षिण से उतर मंें 150 किलोमीटर तक विस्तृत है । सप्तकौषिकी में सबसे बडा प्रवाह मार्ग अरूण कोसी का है इसके बाद सबसे लंबी धारा सुन कोसी की है तथापि सुन कोसी को ही मुख्य कोसी नदी मानी जाती है कोसी के सात धाराअेा के संगम हो जाने पर ,इसका नाम महा कोसी हो जाता है महाकेासी को नियंत्रित करने के लिए 1965 में भीमनगर में बराज बनाया गया । बराज के फाटकों से महाकोसी के पानी को दो तटबंधो के बीच छोडा जाता है । यही महाकोसी कुरसेला के पास गंगा से संगम करती है । सत्तकौषिकी की धाराओें में सबसे पूरब तामर कोसी है । यह तामर कोसी महाभारतकालीन तामा्र नदी हो सकती है । कंचनजधा के हिम सरोवरांे से तामर कोसी का उद्भव हुआ है । तामर कोसी अपने उद्गम स्थान से संगम तक लगभग 153 किलोमीटर का प्रभाव मार्ग बनाती है । इसका हिमनद क्षंेत्र 256 वर्गमील मेें फैला है जिसका विस्तार वर्षा के समय मेें 20 हजार वर्ग मील हो जाता है तामर कोसी अपनंे उद्गम स्थल से प्रथम दक्षिण की ओर चलकर मची अंचल मेे प्रवेष करती है । प्रवाह मार्ग में कई हिमनदांे से संगम करती हुूइ कोसी अंचल के बसंतपुर जिला मुख्यालय की बगल से बहती हुई धनकुटा पहुचती है धनकुटा के दक्षिणी भाग से होती हूइ पष्चिम दिषा में मुड जाती है यही मोलू घाट होते हूए सुन केासी और अरूण कोसी की सयुक्त धारा के साथ त्रिवेणी संगम पर अपने को विलीन करती र्है

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HIMMAT SE KAM LOGE TO ZMANA V SATH DEGA...HO GAYE KAMYAB TO BCHACHA-BCHCHA V NAM LEGA.....MAI EK BAHTE HWA KA JHOKA HU JO BITE PAL YAD DILAUNGA...HMESHA SE CHAHT HAI KI KUCHH NYA KAR GUZRNE KI...MAI DUNIA KI BHID ME KHONA NHI CHAHTA....