इब्राहिम खान का दरगाह
पीर मखदूम शाह दौलत का मकबरा स्थानीय श्रेत्र मे छोटी दरगाह के नाम से जाना जाता है । स्थानत्व कला कि दृष्टि से यह अपने समय का बिहार मे सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है इसके मघ्य मे प्रसिद्व पीर मखदूम शाह दैालत कि समाघि है जिनका देहान्त 1608 इ मंे हुआ था ।
मकबरा मे घुसते हि बाएं साइड मे पीर मखदूम शाह के शिष्य इब्राहिम खान को दफनाया गया है और इसके दाहिने साइड मे पीर मखदूम शाह कि पप्नी केा दफनाया गया है ।
हजरत मखदूम शाह दौलम मनेरी बाबा का मकबरा यह मकबरा बिहार कि मुगल इमारतो मे सबसे सुन्दर है इसकी बनावट और कारिगरो के ,द्वारा इमारत मे बनाए गए फुल पति का काम देखने योग्य है इसे मुगल समा्र्रट जहागीर के बिहार प्रान्त के शासक जो इस समय पश्चिम बगाल उडीसा क्षारखण्ड हो गया है के शासक इब्राहिम खाॅ काॅकड ने अपने गंुरू मखदूम शाह दौलत की कब्र पर 1616 इ मे बनवाया था मकबरा के पश्चिम मे एक मस्जिद है जो 1619 इ मे बनवाया गया था लेकिन 1934 के महा प्रलकारी भुकप के वजह यह संे यह क्षति ग्रस्त हो गया । जिसको को लेकर सरकार ने इसमे ताला लगा दिया इसके उतर का दरवाजा 1623 इ मे बनवाया गया था ।
मखदूम शाह के दादा सउदी के बैतुल मोकदम से आऐ थे उन्ही के राह पर चलते हुए बाबा भी पीर बन गऐ अैार अल्लाह से नाता जोड लिया बाबा उस समय के नामी पीर थे उनकी मृत्यु 1608 इ मे हुआ था ं । इसके दो तरफ स्नानागार बने हुए जिसमे स्नान करने के बाद महिलाए कपडा बदलती थी । तालाब ़के ठीक उतर किनारे पर सरकार के तरफ से सैलानियो कि लिए गेस्ट हाउस बनवाया गया है
बाबा के मकबरा के ठीक पिछे चिराग दान है । इसमे रात मे यहा के मौलवियो के द्वारा चिराग जलाया जाता है चिराग दान के ठीक पिछे एक चिल्ला खडा किया गया है जिसमे लोग धागा बाॅधकर अपनी मनौती मागते है मन्नत पुरी होने पर लोग बाबा के मजार पर चादर पोशी करके चिल्ला मे से कोइ भी एक धागा खोल देते है ।
ऐसे तो यहा शेाबेरात के चाॅद के महिना मे ज्यादा भीड लगता है लेकिन हिन्दी के जेठ महिना के आखिरी अतवार के दिन भी कम भीड नहीलगता
बाबा के वारिस के लोग अभी भी इसी मनेर मे रहते है अभी बाबा के परिवार के मुखिया शहिद शाह नुसूरूद्यीन अहमद गद्यी नसी सजदा है
बाबा जिस घर मे रहते थे आज भी वह घर बाबा के मकबरा के कुछ हि दुरी पर है जिसे खानकाह कहते है
ऐसे तो लोगो का मानना है कि बाबा जिसकेा चाहते है वही इस मकबरा के पास आता है
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