गर्दिश में कारखाना
देश का सबसे विशाल बिस्कोमान माॅडल चावल रिसर्च सेंटर, बिक्रमगंज इकाई केन्द्रीय उदासीनता और विभागीय मनमानी के कारण गर्दिश में है। पिछले चार साल से बंद रहने के चलते 60 से अधिक कर्मचारी सहित सौ से अधिक मजदूर भुखमरी के कगार पर हैं।
ये है रोहतास जिले के बिक्रमगंज में बना माॅडल चावल रिसर्च सेंटर। जो कभी कितने मजदूरों का पालनहार हुआ करता था। लेकिन आज ये अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहा है। उम्मीद पर जी रहे इन कर्मचारियों को देखिए जिन्हें नौ साल से वेतन नहीं मिले हैं। जिससे इनके अरमान पल-पल टूटकर बिखरते नजर आ रहे हैं। बड़ी शौक से यहां नौकरी करने वाले कर्मी क्या जानते थे कि उम्र के इस पड़ाव पर इन्हें दो जून की रोटी के लाले पडे़ंगे। अपने पर आश्रित लोगों के अरमान भी इनके साथ तार-तार हो जाएंगे।
किसानों के हित और बेरोजगारी को लेकर बिक्रमगंज शहर के मुख्य मार्ग पर तत्कालीन केन्द्रीय मंत्री जगजीवन राम की अध्यक्षता में 26 जनवरी 1962 को चावल रिसर्च सेंटर का शिलान्यास किया गया था। अरबों की लागत से बने इस कारखाने को सांसद तपेश्वर सिंह की अध्यक्षता में 9 अप्रैल 1984 को मुख्यमंत्री चंद्रशेखर सिंह के हाथों किसानों को सौंप दिया गया। आश्चर्य की बात ये है कि देश की आर्थिक रीढ़ कहलाने वाले किसानों की आर्थिक मजबूती के लिए चलने वाले बिस्कोमान पर वर्ष 2000 में ग्रहण लग गये। लूट-खसोट की नीतियों से व्यवस्था चरमरा गई। इसका सीधा असर इस पर पड़ा और 2005 में यह पूरी तरह ठप्प हो गया। इसमें लगाए गए विदेशी संयंत्र भी अब खराब हो चुके हैं।
बिस्कोमान ने एक बार फिर इसकी तरफ रूख किया 8 मई 2004 को बिक्रमगंज के सभी यूनिट और सोल्मेंट प्लांट की मरम्मति के साथ रखरखाव और चालू करने के शर्त पर 11 साल के कौड़ी के मोल लीज पर प्रमेन्द्र सिंह को दे दिया गया। इसमें 3 साल तक केाई किराया नहीं देने और लीज की शर्तों को पूरा नहीं करने के चलते कार्यपालक पदाधिकारी ने सेंटर के दोनों गेटों को सील कर दिया।
सबसे ताज्जुब कि बात तो ये है कि मीरा कुमार इसी क्षेत्र से सांसद चुनीं जाती हैं मगर इस पर ध्यान देना उन्होंने भी मुनासिब नहीं समझा। सरकारें बदलती रहीं वादे होते रहे, लेकिन आज तक नहीं पूरे हुए तो इन अभागे मजदूरों की तकदीर और तस्वीर।
No comments:
Post a Comment