कोचिंगों पर आइटी का डंडा
आयकर के छापे ने दिखाई रंग। कोचिंग संस्थानों की अब खैर नहीं। आयकर विभाग के कसे शिकंजे से अब कोचिंग संचालकों की नीन्द उड़ गई है। सूबे के मशहूर कोचिंग सेन्टरों ने अपनी सवा सात करोड़ रूपये का किया खुलासा। यह आयकर विभाग की छापामारी का नतीजा है।
पटना का मशहूर कोचिंग सेंटर जो कभी अपनी आमदनी मात्र 15 लाख बताकर सलाना 4 लाख रुपये हीं टैक्स दिया करते थे। अब ये टैक्स के रुप में सवा दो करोड़ रुपये चुकता करेंगे।
आयकर विभाग ने गुरुवार को इनके 20 ठिकानों पर छापा मारकर करोड़ो रुपये की चल-अचल संपति के साथ उसके दस्तावेज बरामद किए थे। छापामारी ने भारी मात्रा में टैक्स चोरी उजागर की। आयकर के कठोर कदम से कोचिंग संचालकों ने अपनी बेनामी संपति को कबूल कर लिया। छापामारी में जहां एक करोड़ नगद पाया गया वहीं 32 बैंक खाते भी सील किए गये हैं।
लंबे समय से कोचिंग संचालक करोड़ो रुपये टैक्स का चुना लगाते रहे हैं। लेकिन अब आयकर की नजरों से ये बच नहीं पाएंगे।
अब शादी हो जाएगी--------
गरीब और लाचार लड़कियों की। जिनकी शादी पैसे की कमी के चलते नहीं हो रही थी। लेकिन अब इनके भी हाथ पीले होगें अब ये भी दुल्हन बनेंगी। इनके सपनों के राजकुमार को हकीकत में लाने का बीड़ा उठाया है महावीर मंदिर ने।
महावीर मंदिर न्यास समिति ने समाज के ऐसी कन्याओं की शादी कराने के लिए हाथ बढ़ाया है जिनकी शादी गरीबी के चलते नहीं हो रही थी। इसके लिए मंदिर की ओर से जानकी विपन्न विवाह योजना शुरू की गयी है। इस योजना में ऐसी लड़कियों की शादी कराई जाएगी ,जिनके पिता की हत्या अपराधियों द्वारा कर दी गयी हो या फिर किसी दुर्घटना में उनकी मौत हो गयी हो।
सभी लाचार और बेबस लड़कियों की शादी धार्मिक विधि विधान से महावीर मंदिर की ओर से करायी जाएगी। इसके लिए कदम कुआं के मछली गली में एक विशाल मंडप तैयार किया गया है। विवाह के लिए वर वधू की ओर से महावीर मंदिर में पंजियन कराया जाएगा। जो 20 मई से शुरू होगा। जो लड़का लड़की शादी के लिए तैयार होंगे उनको मंदिर की ओर से साड़ी और धोती दिया जाएगा। इसके लिए शादी में जितनी सामग्री पूजा पाठ के लिए लगेगी सब मंदिर के ओर से ही दी जाएगी। इस विवाह में दोनो पक्षों के 25-25 लोग शामिल हो सकते हैं। उनके लिए भोजन की व्यवस्था भी समिति ही करेगी
अभी तक कितनी ऐसी कन्याएं हैं जो दहेज की मांग के वजह से कुंवारी बैठी हुयी हैं। इनको इंतजार रहता है कि इनके पास भी कोई आकर कहे कि मैं तुम्हें अपना जीवन साथी बनाउंगा। राह तकते इनकी ख्वाहीश मर जाती है पर कोई नहीं आता है। क्योंकि सब लोभी हैं दहेज के। जब तक दहेज नहीं मिलेगी शादी नहीं करूंगा। फिर कौन करेगा इनसे शादी क्या ये कुंवारी बैठे रहेंगी। इन्हीं बातों को ध्यान में रखते हुए महावीर मंदिर की ओर से जानकी विपन्न योजना शुरू की जा रही है।
प्यार के दुश्मन
पे्रम शब्द सुनकर ही लगता है कि ये अधूरा शब्द जिसके भी जिंदगी में घुला उसकी भी जिंदगी अधूरी ही रह जाती है। प्यार की शुरूआत जिस खुशी से होती है असका अंत भी उतना ही दुखद होता है। बोकारो में भी एक प्रेमी युगल का यही हश्र हुआ। आइए देखते हैं इस पर एक रिपोर्ट।
(गीत-मेरे प्यार की उमर हो इतनी सनम ...तेरे नाम से शुरू...तेरे नाम से खतम)
बोकारो के पीड़ाजोड़ा थाना के सरदहा गांव में एक प्रेमी युगल को बाप ने पहले तो खूब पीटा फिर बाद में फांसी लगाकर दोनों की हत्या कर दी। दरअसल बात कल रात की है। लड़की के पिता ने दोनों प्रेमी युगलों को मिलते हुए देख लिया। इनको क्या मालूम कि ये रात इनके मिलन की आखिरी रात होगी। लेकिन हुआ ऐसा ही।
लड़की का बाप दोनों को पकड़कर अपने घर ले आया और एक कमरा में बंद कर दिया। उसके बाद दोनों की खूब पीटाई की। जब इससे भी बात न बनी तो दोनों को फांसी लगाकर हत्या कर दी। इस घटना में लड़की के परिवार के और लोग भी शामिल हैं।
इस बात की जानकारी लड़के के परिवार वालों को जैसे ही मिली सब लोग तिलमिलाए दौड़े-दौड़े लड़की के घर पहुंचे। यहां पहुंचने के बाद दोनों पक्षों मे जमकर मार पीट हुयी। जिसमे दो लोग घायल भी हो गए। जैसा अक्सर होता है सब कुछ होने के बाद पुलिस घटनास्थल पर पहुंची है ,और मामले की छानबीन करने लगी। कई लोगों पर एफआईआर भी दर्ज हुआ है।
इनको क्या मालूम था कि एक मुलाकात इनकी जान ही ले लेगी। अगर इनको मालूम होता तो शायद ये मिलते ही नहीं। प्यार की कीमत इस कदर चुकानी पड़ती है। इस घटना को सुन सबके जुबान से यही निकली प्यार ना बाबा ना।
गाड़ीयों के हाॅर्न से मरीज परेषान
स्ूाबे का सबसे बड़ा अस्पताल है पीएमसीएच। जहां पर बिहार के गांव और षहर के हर तबके के लोग आते हैं अपना इलाज कराने .....चाहे वो गरीब हो चाहे अमीर....अस्पताल में आए मरीजों को चाहीए होता है.....और अस्पतालों मे षातिं माहौल होता भी है। लेकिन पीएमसीएच का हाल ये है कि दिनभर इसके परीसर में हाॅर्न बजाते गाड़ीयो से मरीज परेषान रहते हैं।
ं अगर आपने कभी किसी अस्पताल में गया होगा तो देखा होगा कि वहां लिखा रहता है कीप साइलेंस या कृप्या षांतीं बनाए रखें। गाड़ी को कोई हाॅर्न बजाते अंदर न लाए इसके लिए मेन गेट से कुछ ही दूरी पर दो दो सुरक्षाकर्मी खडे रहते हैं लेकिन परिसर मे कौन किस स्थिती में अंदर प्रवेष कर रहे हैं इससे सुरक्षाकर्मीयों को काई मतलब नहीं है। हथुआ वार्ड के मरीजों का कहना है कि पुरे दिन तो गाड़ीयों के हार्न की आवाज सुनकर दिनभर चैन से आराम भी नहीं कर पाते हैं रात में ही आराम मिलता है।
पटना मेडीकल काॅलेज हाॅसपीटल साइलेंस जोन के श्रेणी में आता है लेकिन ये सिर्फ कहने की बात है...पूरे दिन अस्पताल परिसर में गाड़ीचालक अपने मूड में गाड़ी चलाते हैं। सुरक्षा के लिए सुरक्षाकर्मियों की बहाली भी की गयी हैं। असपताल के उपाधिक्षक ने भी बताया कि अगर कोई चालक गाड़ी हाॅर्न बजाते अंदर ले आता है तो उसपर जुर्माना किया जाता है....यहां तक कि एमबुलेंस चालक भी बिना हाॅर्न बजाए ही गाड़ी को अंदर ले आते हैं। इतना कुछ करने के बावजूद भी गाड़ी चालक आराम से हाॅर्न बजाते असपताल परिसर में अपनी गाड़ी दौड़ाते हैं।
पाबेदी के बावजूद भी बज रहे हैं हाॅर्न ....अस्पताल परीसर मे तो रहना चाहीए षांती का माहौल...ये काम वही लोग करते हैं जिनके मरीज यहां पर एउमिअ हैं ...मरीज का ख्याल रखते हुए यहां आए लोगों को षांती बनाए रखना चाहीए।
लुट गए किसान
किसान ख्ूाब मेहनत कर खून पसीने बहा खेती करते हैं क्योंकि वही उनकी कमाई होती है। उसी मेहनत से विक्रम के किसानों ने खेती की औरब धान भी खूब हुआ। जब उसको क्रय केन्द्र पर बेचने के लिए ले गए तो पुछने वाला कोई नहीं है। और धान से फिर से पौधे निकलने शुरू हो गए।
ये देखिए हजारों बोरे धान जो क्रय केन्द्र में पड़े हुए हैं जिससे फिर से पौधा निकलना शुरू हो गया, और इसको पुछने वाला कोई नहीं है। ये धान के बोरे लवारिश नहीं पड़े हैं बल्कि ये विक्रम के किसानों के धान। बहुत उम्मीद से अपनी खून पसीने से सींच धान उपजाया था इनलोगों ने। फिर क्रय केन्द्र पर बेचने के लिए ले गए। लेकिन इहां इस धान के बोरीयों को देखने आ पूछने वाला कोई नहीं। फिर इसका वाजिब दाम कहां से मिलेगा। बिजड़े के दाम भी नहीं मिला। क्रय केन्द्र के अधिकारियों की लापरवाही से धान बर्बाद हो गए। जब सरकार कृषि वर्ष मना रही है तो किसान अपनी दुर्दशा पर आंसू बहा रहे हैं। सारी मेहनत पर पानी फिर गया।
जब किसान क्रय केन्द्र पर पहुंचे तो देखते हैं कि इनके धान से पौधे निकलने शुरू हो गए हैं। बड़ी आशा के साथ क्रय केन्द्र पर धान लेकर आए थे बेचने, ये सोच कर कि जो पै सा आएगा उससे अपनी बेटी के हाथ पीले करेंगें। लेकिन आशा के बदले निराशा हाथ लगी। धान क्रय को लेकर हमेशा इनको आश्वासन मिलते रहा है कि धान की खरीद कर ली जाएगी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ और अभी तक पड़े हैं हजारों बोरे धान।
सभी किसानों की मेहनत मिट्टी में मिल गयी है। अब तो इन मेहनती किसानों के लिए बस एक ही कहावत चरितार्थ बैठता है कि अब पछतावत होत क्या जब चिड़िया चुग गयी खेत। खैर अभी तक जितने धान के बोरे बचे हुए हैं अगर इसको भी क्रय केन्द्र नहीं लेती है तो ये भी बर्बाद हो जाएंगे और फिर किसान कहीं के नहीं रहेंगे।
कुत्तों की समाधी पर पूजा-अर्चना
कहा जाता है कि औलाद जिगर का टूकड़ा होता है.....लेकिन महाकवि जानकी बल्लभ षास्त्री के लिए अनबोलता पषु हीं उनके बच्चे है.....
मुजफ्फरपुर में महाकवि अपने कुत्तों के मरने के बाद उनकी समाधी बनायी और हर रोज इनकी पूजा अर्चना भी करते हैं।
तेरी मेहरबानियां ...तेरी कदरदानियां......कुर्बान तुझपे मेरी.....तेरी मेहरबानियां.....ये गीत पूरी तरह से दरसाता है कि सचमें कितना वफादार होते हैं..... बात सदियों पुरानी है धार्मिक गुरूओं और महापुरूषों की समाधी पर हर कोई सिर झुकाता है......पूजा अर्चना करता है....मगर कुत्तों की समाधी बनाना और उनकी पूजा अर्चना करना अजूबा जरुर लगता है.....लेकिन यह सच है कि मुजफ्फरपुर के महाकवि जानकी बल्लभ षास्.त्री का पषुओं के प्रति इतना प्यार है कि उनके मरने के बाद समाधी भी बनवाते हैं......यही नहीं हर रोज समाधी पर जाकर पूजा-अर्चना भी करते हैं....इनके पास दो कुत्ते थे जिनका नाम भालचन्द्र और विनायक था....लेकिन 1997 में भालचन्द्र और 1998 में विनायक ने इनका साथ छोड़........भगवान को प्यारे हो गए।
इंसान हो या जानवर आत्मा सब में होती है.....क्योंकि इंसान और जानवर दोनों भगवान की हीं देन हैं....इनका सम्मान क्यों नहीं ......इनकी समाधी क्यों नही बन सकती है.......अगर कोई इंसान किसी को अपना समझने लगता है तो ,धोखा भी वही देता है....मगर जानवर ऐसा नहीं करता ,खासकर कुत्ते....वो जिसका खाते हैं उसके प्रति ईमानदार होते हैं....और मरते दम तक। महाकवि जी जितना अपने स्वास्थ्य की चिंता नहीं करते उससे अधिक चिंता अपने जानवरों का करते है।
आज के दौर में किसी को फुर्सत नहीं है ........कि काई किसी के प्रति प्यार दिखाए या निभाए......लेकिन महाकवि जानकी बल्लभ षास्त्री इसके मिसाल हैं....इनके द्वारा बनाए गए जानवरों के समाधी और उससे भी ज्यादा उसपर रोज पूजा करना जरुर लोगों को भाव-विभोर कर डालता है-।-------रजिया सुल्ताना
नक्सलियों का प्रकोप बच्चों पर
पेट की भूख इंसान को कुछ भी बना देता है....वो भी ऐसे लोगों को जो बिल्कुल गरीब और लाचार होते हैं....और जिनको सरकारी सुविधा नहीं मिल पाता है... जितने भी पिछड़े जाति और आदिवासी बच्चे हैं वो भी जंगलों मे रहने वाले..... इनलोगों को नक्सली बहला फुसला कर ले जाते हैं और बना देते हैं नक्सली। हम बात कर रहे हैं रोहतास प्रखण्ड की।
आजादी के 60वर्ष बित जाने के बाद भी रोहतास के प्रखण्डों में रहने वाले आदिवासी ,महादलित अनुसुचित जाति और जनजातियों को सरकारी सुविधा नहीं मिल पायी है...जिसके चलते इन क्षेत्रों मे भूखमरी अषिक्षा और बेरोजगारी फैला हुआ है। यही वजह है कि यहां के बस्तियों मे रहने वाले भोले-भाले युवक युवतियों को बहका कर ले जाने में नक्सलियों को सफलता मिलती है।
आदिवासी बस्तियों में षिक्षा , स्वास्थ्य, सड़क ,बिजली इन सारी सुविधाओं का घोर अभाव है सरकार अपनी ओर से इन बच्चों के पढ़ाई के लिए हर माह लाख रूपये खर्च करती है लेकिन सरकारी षिक्षक षिक्षा पदाधिकारियों से मिल का अपने बांट लेते हैं.....दर्जनों सरकारी स्कूल हैं मगर न यहां कोई पढ़ने जाता और नाही काई पढ़ाने......सारे बच्चे अपने माता पिता के साथ काम करते हैं या फिर पेट का आग बुझाने के लिए षिकार करते हैं। ऐसे में नक्सलियो को मिल जाता है मौका और मार लेते हैं बाजी....तरह-तरह का प्रलोभन देकर आसानी से अपनी ओर मिलाने में सफल हो जाते हैं बच्चों को।
सरकारी उपेक्षा के षिकार ये बच्चे नक्सलीयों के साथ जाने को विवष हैं....अगर यही रवैया रहा तो नक्सलियों द्वारा विकास को मुद्दा बनाकर पूरे क्षेत्र को अपने चपेट में ले लिया जाएगा।
महिला टैªफिक करेंगी वाहन चेकिंग
अब औरत किसी भी क्षेत्र मे पीछे नहीं हैं। हर क्षेत्र में पुरूष से कदम से कदम मिलाकर चल रही हैं। अभी कुछ ही दिन की बात है कि महिला टैªफिक पुलिस को आपने देखा होगा इन्हीं लोग के हाथों में वाहन कंट्रोल का कमान संभालने को मिला है और संभाल भी.रही हैं ....और अब चुनाव को देखते हुए इन्हीं के जिम्मे दिया गया है वाहन चेकिंग का।
अगर आप षहर में गाड़ी से कहीं जा रहे हैं और आपके पास कोई महिला अधिकारी वाहन चेकींग करने के लिए आ गई तो चैंकिएगा नहीं.....क्योंकि अब ये भी करेंगी वाहन का चेकिंग...वाहन चेकिंग का जिम्मादारी अब महिला अधिकारियों को सौंप दिया गया है। ये किसी भी चैक चैराहों पर किसी भी गाड़ी को रोक कर गाड़ी को चेक कर सकती हैं साथ हीं गाड़ी के कागजात को भी चेक करेंगी।
ये जिम्मेवारी महिला अधिकारीयों को सिर्फ चुनाव तक ही दिया गया है....ऐसा इसलिए किया गया है कि चुनाव के चलते साढ़े तीन हजार से अधिक अधिकारी दूसरे जिला में भेज दिए गए हैं। इसीलिए एसएसपी और डीएसपी वाहन और हथियार चेकिंग के लिए महिला अधिकारियों को ये काम सौंप दिए। सबसे बड़ी बात तो ये है कि चुनाव का वक्त होने के चलते वाहन के जरिए महीलाओं द्वारा हथियार को अपराधी तक पहुंचाया जाता...इस तरह के महीला को चेक एक महीला अधिकारी ही कर सकती है....हरएक डीएसपी को दस-दस महिला आरक्षी ओर दो-दो महिला एसआई उपलब्द्ध करा दिए गए हैं। जहां ये लोग अपने सुविधा अनुसार अपने -अपने थानों मे रोटेषन कर वाहन का चेकिंग कराएंगे।
अनाथालय हुआ अनाथ
जब किसी मासूम को कहीं सहारा नहीं मिलता है या जिसकी मां बच्चे को पैदा कर सड़क किनारे कहीं पगडंडी पर फेंक देती है तो उस नाचीज मासूम को रखने के लिए बस एक ही जगह होता है और वो है अनाथालय। अनाथालय को चलाने के लिए सरकारी अनुदान चाहीए होता है ,लेकिन भागलपुर का अनाथालय तो खुद हीं अनाथ बना हुआ है। आइए देखते हैं एक रिपोर्ट।
ये है रमानंदी देवी हिंदू अनाथालय ,जो भागलपुर के नाथनगर में है। जितने भी नवजात बच्चे सड़क या कहीं पगडंडी पर फेंके हुए होते हैं यही अनाथालय अपनी आगोश में लेता है। अनगिनत बच्चों का अभिभवक बने इस अनाथालय का देखरेख करने वाला कोई नहीं है जो इसका उद्धार कर सके। 1925 में स्थापित इस अनाथालय में आज 70 बच्चे हैं। जिनमें 8 लड़कियां और बाकी लड़के हैं।1982 में दीनबंध्ुा योजना के तहत इसको सरकारी अनुदान तो मिलता रहा लेकिन दस पन्द्रह साल के बाद वो भी बंद हो गया। तब से यह शहर के कुछ नामचीन और गुमनाम दाताओं द्वारा दिए जा रहे अनुदान पर चल रहा है।
इसमे रहनेवाले बच्चों को अच्छी शिक्षा तो दी ही जाती है उनके कैरियर और शादी ब्याह के बारे में निर्णय यहीं से होता है। छात्रों को पढ़ाई संस्कार के अलावा मनोरंजन के साधन भी उन्लब्ध कराये गए हैं। इनकी देखरेख करने के लिए चार आया एक नर्स और एक डाॅक्टर इनके साथ रहते हैं। अनाथालय प्रशासन के लिए एक कमिटी गठित की गई है। जिसका हर तीन साल के बाद चुनाव होता है। इहां रहने वाले बच्चों की मानें तो इनको इहां प्यार दुलार मिलता है कि कभी मां बाप की कमी हीं नहीं खलती है ।
अनाथालय तो होता ही है अनाथ ,बेसहारा बच्चों के लिए। इनकी सहायता करने के लिए हर कोई अपने स्तर पर हाथ बढ़ाता है। खासकर सरकार का अनुदान ऐसे जगहों पर ज्यादा होती है। लेकिन इस अनाथालय के लिए सरकार की ये उदासीनता ठीक नहीं है।
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