खुनी वारदात
बात करते हैं 21 दिन और 21 से भी ज्यादा खूनी वारदातों की। बिहार की पुलिस मुष्तैद रहने के लाख दावें कर ले लेकिन मौत बेगुसराय के लोगों के सर पर मडरा रही है और दावे दूर कहीं दम तोड़ रहे हैं।
अपराधियों को प्रषासन का कोई खौफ़ नही है। वे जब चाहे जहां चाहे मौत का तांडव कर सकते हैं। हम किसी फिल्म की पटकथा को नहीं दोहरा रहे हैं बल्कि ये सच्ची कहानी, बिहार की है। बिहार के बेगूसराय में अपराधियों ने पुलिस को नाको चने चबाने के लिये मजबूर कर दिया है। अपने नापाक मंसूबों को अंजाम तक पहुंचाने में अब इन्हे किसी का डर नही है। इसका सबूत है 21 दिन में 21 से भी ज्यादा हत्या। कुछ दिनों पहले बदमाषों ने रामी सिंह हत्याकांड के गवाह को मौत के घाट उतार कर सबसे बड़े वारदात को अंजाम दिया है।
महज 10 रुपये की ख़ातिर खूंखार बदमाषों ने जमुई क्षेत्र के पषुपालक डोमन यादव की हत्या कर दी। तो वहीं बदमाषों की पिटाई से पूर्व गन्ना मंत्री की पत्नी रंजना सिंह की मौत हो गई। लेकिन पुलिस की नींद नहीं टूटी। अहम में चूर अपराधियों ने गढ़पुरा थाना क्षेत्र में बेकसूर दामोदर महतो को मौत की नींद सूला दिया। विधि व्यवस्था का माखौल उड़ाते हुए बदमाषों ने जिले में 21 दिनों के अंदर दर्जन भर से ज्यादा गोलीबारी, बमबाजी, राहजनी और बलात्कार जैसे संगीन जुर्म को करके अपने इरादे साफ कर दिये हैं।
21 दिन और 21 वारदात ये है चुस्त पुलिस के काम करने का तरीका। तो क्या हम ये मान ने अपराधिक धटनाओं में हो रहे इजाफे को रोकने में पुलिस नाकामयाब है और उसने हथियार डाल दिये हैं या फिर कहीं वो खुद तो कहीं इनके आतंक से डर तो नहीं गई है इसका जवाब पुलिस को देना ही होगा।
अभिव्यक्ति का माध्यम है कला
कहा जाता है कि कला विहिन मनुष्य पषु के समान होता है। कला के बिना जीवन षून्य होता है। कला जीवन को एक नई दिषा देती है। ये कला किसी के लिए धर्म है तो किसी के लिए पूजा । कोई मानता है इसे अभिव्यक्ति का माध्यम तो कोई ऐसेसरीज के खुबसुरत इस्तेमाल का जरिया ।
फोम ,फटे हुए कपड़े आमतौर पर बेकार माने जाते है। या तो इन्हे काबाड़ी के यहाॅ दे दिया जाता है या कुड़ेदान मे फेंक दिया जाता है ।पर इन सबके परे भी एक दुनियाॅ है जिसमें लोग इन्हीं बेकार चीजों का इस्तेमाल करते है खुबसूरती बढ़ाने के लिए ।
यह खुबसुरत नजारा इन्हीं बेकार चीजों की देन है। ये कला का ही कमाल है कि बेकार चीजें श्ी अच्छी नजर आती है । कला देती है एक नया नजरिया चीजों कों देखने और समझने का ।
कला विवधता का रूप है। एक नई पहचान के साथ -साथ अपने को बताने , दर्षाने और अभिव्यक्ति करने का श्ी ये सषक्त माध्यम बन गया है ।
संकट में बेतिया द्य्रुपद घराना
संगीत की घुन जहाॅ बजती थी वहीं बेतिया आज विरान हो अपने अस्तित्व के लिए जूझ रहा है।अंतरराष्टीय स्तर पर ख्याति प्राप्त बेतिया द्य्रुपद धराने पर संकट के बादल मंडरा रहे है।
संगीत जिंदगी में रस घोलते है।गायिकी अषांत मन को षांत कर आत्मा को सुकुन पहुचाती है। लेकिन बेतिया के ख्याति प्राप्त द्य्रुपद धराने में षिष्य -परंपरा के लोप होने से इसका गौरवपूर्ण अतीत धुंधला पड़ता दिखाई दे रहा है।
द्य्रुपद गाायन जहाॅ बड़े चाव से लोग सुनते थंे वहीं आज यह क्षय होने के कगाार पर खड़ा है । महराजा गज सिंह द्वारा स्थापित इस द्य्रुपद धराने के ढेर सारे रचित बंदिषे नष्ट हो चुकी है । 84 वर्षीय गाायक राजकिषोर मल्लिक तो पाॅच हजार द्य्रुपद जानते है। परन्तु इनके षिष्य पुत्र अरूण कुमार मल्लिक को सौ से भी कम द्य्रुपद की जानकारी है।
राजकिषोर के बाद उनके पुत्र अरूण कुमार इस द्य्रुपद गाायन परमपरा को आगे बढ़ा पाते है या ये भी एक याद बनकर हमारे बीच रह जायेगाा।
रिक्षाचालकों का........हुआ हाल बेहाल
कड़ी मेहनत के बाद भी रिक्षाचालकों को दो वक्त की रोटी तक नहीं मिल पाती और सरकार कल्याण योजनाओं और सुविधाओ के नाम पर ज्यादा पैसे वसूल रही है।
पुरानी चिथड़ो में लिपटे रिक्षाचालक है। दो जून की रोटी के लिए कोल्हू के बैल की तरह ये पिसता है पर अपनी स्थिति में सुधार नहीं ला पाया है। दिन श्र कड़ी मेहनत कर वह कुछ पैसे कमा तो लेता है पर उसमें श्ी हिस्सेदारी हो जाती है रिक्षा मालिकों की।खून पसीने की गाढ़ी कमाई का कुछ हिस्सा अपने मालिकों को देने के लिए रामप्रसाद ही नहीं इसके जैसे कई हैं। इनके कल्याण के लिए सरकार योजनाएॅ तो बनाती है पर सब बेकार
सम्मान संस्था ने रिक्षाचालकों को रिक्षा मुहैया तो कराया पर एक साल में ही ये पटना की सड़कों से कबाड़ खाने तक पहॅुच गई है। सुविधाएॅ नदारद और उपर से रिक्षा का किराया मूल्य श्ी ज्यादा है।वर्दी के तौर पर दिए गए है ये सेलफोन मुहर वाले टी-षर्ट जो रिक्षे की तरह ही बदहाल है।
तेज धूप हो या बारिष ये रिक्षाचालक हमेषा पटना की सड़कों पर दौड़ते दिखाई देते है । दिन श्र कड़ी मेहनत के बावजूद ना ही इनकी हालत में कोई सुधार आया है और ना ही सरकार इनके लिए कोई ठोस कदम उठा रही है।
अपने तीन मासूम की हत्यारिन मां
सिरदला थाना क्षे़त्र की एक महिला ने अपने तीन बच्चों को कुएॅ में फेंक कर उनकी जान ले ली। ससुराल द्वरा तंग करने की वजह से यह कदम उसने उठाया।
यह महुगाॅव का वही कुआ है जहाॅ से इन तीनों बच्चों की लाषें मिली है। मंाॅं रो रो कर बेहाल है और गाॅव वाले हैरान कि आखिर ऐसी क्या मजबूरी थी जो माॅ ने ही ऐसा कदम उठाया।
ससुराल वालों ने महेष राजवंषी की इस पत्नि को इस कदर परेषान किया कि आज ये कुछ भी बोलने की स्थिती में नही हैै। बच्चों के साथ खुदकुषी करने की कोषिष तो की पर होनी को तो कुछ और ही मंजूर था। गाॅववाले उन मासुम बच्चों को तो नहीं बचा सके लेकिन बेचारी माॅ को बचा लिया उसे उसके हाल में जीने के लिए।
धटना पर पर्दा डालने के लिए पूलिस को अब तक सूचित नहीं किया गया है तो क्या महेष के धरवाले अब भी कानून के हाथों से बच जाएगें।
निरहुआ के साथ जूनियर निरहुआ
शेजपुरी फिल्मों का कारोबार दिन ब दिन अपने पाॅव पसार रहा है। पाॅलीवुड की तो चाॅदी ही चाॅदी है, यहाॅ आये दिन कोई न कोई फिल्म रिलीज होती ही रहती है, और इस बार बारी है निरहुआ की
शेजपुरी के स्टार निरहुआ यानी की हमारे दिनेषलाल यादव पहली बार अपने निरहुआ ब्रदर प्रवेष लाल के साथ रूपहले पर्दे पर दिखाई देंगे।
चलनी के चालल दुलहा में दोनो साथ है। जूनियर निरहुआ नायक की श्ूमिका है और उनके अपोजिट है नई तारिका ष्षुभी ष्षर्मा । इस फिल्म का निर्देषन कर रहे है
दोनों निरहुआ के साथ ष्षुभी ष्षर्मा की जोड़ी दर्षकों पर क्या असर डालेगी ये तो फिल्म के रिलीज के बाद ही पता चलेगा ।
पासवान ने रिकार्ड बनाया
पी.एम बनने की ख्वाहिष जब चुनाव के हकीकत से टकराई तो सारे सपने धाराषायी हो गए । विजय के दंगल के बदले मन रहा है अब हार का मातम।
सपने जब हकीकत के मंजर से टकराते और चूर होते है तो सचमुच बहुत दर्द होता है । और इस दर्द की हद से अब गुजर रहे है लोजपा के नेता रामविलास पासवान । होठ खामोष है लेकिन अपनी हार का दर्द वो फिर श्ी नही छुपा पा रहे है ।
चुनावी दंगल में किसी की षह किसी की मात तो होती ही है , लेकिन समय का पहिया इस बार ऐसा घूमा कि हाजीपुर से कभी शरी बहुमत से जीतने वाले पासवान इसी रामसुंदर से आज हार गए है, जिन पर जीत दर्ज कर उन्होने गीनीज बुक में अपना नाम दर्ज कराया था। सियासी खेलों में हार जीत तो होती ही रहती है, जहाॅ जीत कर उन्होने रिकार्ड बनाया था वहीं ये हार श्ी अपने आप में एक अनोखा रिकार्ड है जिससे नेतागण षायद सीख लें ।
चिड़ियाघर में नौकाविहार
मौसम खुषनुमा हो तो घूमने- फिरने में बहुत आनन्द आता है। पटना का सुहाना मौसम लोगों को चिड़ियाघर की ओर खींच रहा है। पेष है एक खास रिपोर्ट ।
मौसम खुषमिजाज होते ही घूमने के लिए चिड़ियाघर लोंगो का पसंदीदा जगह बन गया है। ये छुक छुक करती रेलगाड़ी बच्चों के साथ - साथ बड़ों का भी दिल बहला रही है। तभी तो बच्चों के साथ बड़े भी छककर मजा ले रहे है ।
चांदनी रातों में नौकाविहार का आनंद अब लोग दिन में ले रहे है, वो भी चिड़ियाघर में ।यहां जमा भीड़ वोटिंग करने को बेहाल है मगर अधिकतर वोट खराब पड़े हुए है जिससे लोगों को परेषानी हो रही है और उन्हें मायुस ही लौटना पड़ रहा है । उद्यान के कर्मचारी वोटों को ठीक करवाने की जुगत में लगे है।
खुषनुमा मौसम का लुफ्त लोग जमकर उठा रहे है पर वोट की खराबी घूमने आए लोगों को उदास भी कर रही है। बहरहाल सिर्फ यही उम्मीद की जा रही है कि उद्यान के कर्मचारी वोट जल्दी ठीक करवा कर लोगों के आनन्द को दुगना करेगी ।
सिमट गई धरोहर
इतिहास के आइने में हजारों रंगीन तस्वीरें कैद है, लेकिन आज उन्हीं तस्वीरों पर धूल पड़ने लगी है।धूल श्ी ऐसी कि अब ये खत्म होने की कगार पर है। जी हाॅ आज हम बात कर रहे है कचैड़ी गली की जो कभी अपनी षान-ओ-षौकत के लिए मषहुर था।
ये पटना सिटी का वही मोहल्ला है जहाॅ मुगलों और अंगरेजी हुकूमत के वक्त कचहरी लगती थी इसलिए इसका नाम कचहरी गली पड़ा था। बदलते वक्त के साथ कचहरी लगनी श्ी बंद हो गई और गली के नुक्कड़ पर खुल गई कचैड़ियों की दुकानें,इसलिए कचहरी गली का नाम बदला और इसकी षिनाख्त कचैड़ी गली के नाम से हाने लगी
अब आइए अतीत के बाद जायजा लेते है मौजूदा हाल का। यह इस गली का वही खुबसुरत रंगमहल है जिसमें कई खुषनुमा कमरें थे, और जहाॅ सूर और साज की महफिलंें सजती थी।लेकिन आज यह वीरान है । यह अपनी जर्जर स्थिती में पहुॅच चुका है लेकिन इसकी सुध लेने वाला कोई नहीं है ।
अगर अब श्ी किसी ने इस धरोहर की सुध नहीं ली तो ये श्ी इतिहास के पन्नों में दबकर एक याद बनकर रह जाएगी ।
मच्छलियों की विलुप्त प्रजातियाॅ
अब बात बिहार के मषहूर कांवर झील से गायब हो रही मछलियों की। इन दिनों इस झील की मछलियां तेजी से से गायब हो रही है। और जिसका कारण है इस झील के संरक्षण का अभाव।
एक समय था जब केवल ये नाम ही काफी था कि ये कावर की मछलियां है। ये नाम ही मछलियों की कीमत दोगूनी कर देता था। और मछली खने के शौकीन इन मछलियों को उंचे दामों पर भी खरीदने से नही हिचकते थे। इसकी मांग सूबे में इतनी थी कि सिलीगुड़ी से लेकर मुंबई तक इन मछलियों का एक्सपोर्ट होता था।
इन मछलियों की खासियत यह थी कि इनमें गंध ना के बराबर होती थी परन्तु आज झील में फैली गन्दगी की वजह से मछलियों की ढ़ेरों प्रजातियां विलुप्त हो चुकी है। ओर जो बच गई हैं उनपर भी गुम होने का खतरा बढ़ता जा रहा है।
मीठे जल को लेकर ख्याति बटोर चुकी इस झील की सफाई नहीं की गई तो मछलियों के साथ- साथ इसकी ख्याति भी नष्ट हो जाएगी । अगर समय रहते प्रषासन ने कार्रवाई नही कि तो लोग कांवर झील की मछलियों का स्वाद भूल जाएंगे।
पुलिस-नक्सली मुठभेड़
नक्सलियों का कहर दिनोंदिन बढ़ता हीं जा रहा है। इससे निबटने के लिए पुलिस आॅपरेशन चला रही है। इस आॅपरेशन के दौरान खूंटी में 10 नक्सलियों को पुलिस ने मार गिराया। तथा भारी मात्रा में विस्फोटक भी बरामद किया ।
खूंटी के बीहड़ जंगल में नक्सलियों के खिलाफ पुलिस कांबिंग आॅपरेशन चला रही है। काम्बिंग आॅपरेशन के दौरान पुलिस और नक्सलियों में जमकर मुठभेड़ हुई। चार घंटे चले मुठभेड़ में झारखंड पुलिस को जबरदस्त सफलता हाथ लगी। जिसमे पुलिस 10 नक्सलियों को मार गिराने का दावा कर रही है। आॅपरेशन के दौरान हीं रनिया में हुई मुठभेड़ में 6 नक्सलियों को पुलिस ने पकड़ लिया। इसी जंगल से दो 20-20 किलो का केन बम और डेटोनेटर भी बरामद किया गया।
हालांकि मुठभेड़ के दरम्यान हीं नक्सली अंधेरे का फायदा उठाकर भागने में जहां सफल रहे। वहीं बीहड़ जंगल होने के कारण पुलिस शाम होने से पहले वहां से निकल लेने में हीं अपनी भलाई समझी।
घने जंगल में नक्सलियों का बसेरा होने के कारण पुलिस सही से काम नहीं कर पाती है। फिर भी इन नक्सलियों के फन कूचलने के लिए चला रही आॅपरेशन से हर संभव कोशिश जरुर कर रही है।
पूर्वोत्तर प्रदेश में मंत्रालय की खानापूर्ति
पिछली सरकार में केन्द्र में बिहार से 11 मंत्री थे। वहीं इस बार बिहार को सिर्फ एक मंत्री पर संतोष करना पड़ा। राजनैतिक महकमे में चल रही चर्चा कांग्रेस को हिन्दी प्रदेशों के साथ सौतेला रवैया विधान सभा में क्या गुल खिलाएगा। कहना मुश्किल नहीं बात तो आसान भी नहीं है।
अपने पैरों पर खड़े होने के प्रयासों में लगी कांग्रेस मनमोहन मंत्री परिषद में हिन्दी राज्यों को विशेष प्रतिनिधित्व नहीं दिला सकी। बिहार से कांग्रेस के दो सांसदों में मीरा कुमार को मंत्रालय मिला है। बिहार से उनकी सक्रियता बस नाम के लिए हीं है। जबकि पिछली बार इनके अलावे डा. शकिल अहमद को राज्य मंत्री बनाया गया था। मीरा कुमार के अलावे बिहार से जीते कांग्रेस के इसरारुल हक के भी मंत्री बनाए जाने कि चर्चा जोरों पर थी। वहीं झारखंड से कांग्रेस के केवल एक सुबोध कांत सहाय को प्रमोशन देकर कैबिनेट में जगह दी गई है।
पिछली बार मनमोहन सरकार में बिहार से कुल 11 मंत्री थे। इस बार उत्तर प्रदेश से पिछले दो दशकों में 21 सदस्य लोकसभा सदस्य चुनकर आए हैं। लेकिन उनमें से किसी को कैबिनेट मंत्री बनने का सौभाग्य नहीं मिल पाया है। जबकि पिछली बार उत्तर प्रदेश से केवल 9 सदस्य हीं जीतकर आए थे। जिसमें से दलित नेता महावीर प्रसाद को कैबिनेट, श्रीव्रकाश जायसवाल और जितिन प्रसाद को राज्य मंत्री बनाया गया था। इस बार श्रीप्रकाश जायसवाल और सलमान खुर्शीद को स्वतंत्र प्रभार वाले राज्य मंत्री, जितिन प्रसाद, प्रदीप जैन के अलावे यूपी के कुशीनगर में बसपा के अध्यक्ष और राज्य सरकार के मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य को धुल चटाने वाले को भी राज्य मंत्री बनाया गया है।
हिन्दी प्रदेशों के साथ सौतेला रवैया अपना कर मनमोहन सरकार क्या दिखाना चाहती है यह कहना आसान नहीं है। इसे एक राजनीतिक चाल कही जाए या हिन्दी प्रदेशों में मुंह की खाई कांग्रेस का गुस्सा।
पशुपालन विभाग
राज्य सरकार ने कृषि के साथ-साथ पशुपालन, मुर्गी, मत्स्यपालन व डेयरी के विकास पर पहल करना शुरू कर दिया है। इसके लिए राज्य सरकार ने एक हजार करोड़ की योजना शुरू करने वाली है।
बिहार से पलायन को रोकने की मुहिम में राज्य सरकार ने कदम उठाना शुरू कर दिया है। इसी कड़ी में राज्य के उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी की अध्यक्षता में एक बैठक हुई जिसमें पशुपालन, मुर्गी, मत्स्यपालन व डेयरी उद्योग को बढ़ावा देने पर जोर दिया गया। राज्य सरकार ने डेयरी के लिए 557 करोड़ रुपये, मुर्गी पालन में 133 करोड़, बकरी एवं सूअर पालन में 130 करोड़ और मत्स्य पालन में 133 करोड़ की योजना बनाई है।
उपमुख्यमंत्री द्वारा इन छोटे रोजगार के साधन जल्द शुरू किये जाने से पशुपालक और मत्स्यपालकों के चहेरे पर खुशी साफ दिखाई पर रही है।
सरकार ने तो अपनी योजना शुरू करने की घोषणा कर दी हैं। अब देखना हैं कि राज्य सरकार की योजना पर बैंको का क्या रूख होता है क्योंकि अभी तक तो पशुपालकों का आरोप है कि इस मामले पर बैंक की बेरुखी ही रही है।
सुसाइड जोन
एशिया में सबसे लंबे पुल के रूप में पहचान बनाने वाली गांधी सेतु इन दिनों सुसाइड जोन के लिए पहचाना जाने लगा है। पिछले एक सप्ताह में दो युवती ने छलांग लगाकर आत्महत्या की है।
राजधानी को उत्तर बिहार से जोड़ने वाली ई हैं महात्मा गांधी सेतु। इस सेतु से हजारों वाहनों का आवागमन प्रतिदिन होता है। लेकिन इन दिनों इस सेतु से गंगा नदी में छलांग लगाकर जान देने का मामला बढ़ता ही जा रहा है। पिछलें कुछ दिनों से इसकी संख्या में अप्रत्याशित वृद्धि हुई है। कुछ लोगों की माने तो पोल संख्या 40 से 44 के बीच ही इस तरह की घटनाएं अधिक घट रहीं है। इसको लेकर लोग तरह-तरह की बातें भी करने लगे है।
इस तरह की घटना से पुलिस की भी नींद उड़ी हुई है। पुलिस का कहना है कि लाख चाहने के बावजूद खुदकुशी करने वालों को वो रोक नहीं पाती। क्योंकि सेतु की लंबाई काफी अधिक है और यह व्यस्त मार्ग भी है। ऐसे में हर वक्त हर किसी पर नजर रख पाना मुमकिन नहीं है।
खुदखुशी एक पाप है। पर सवाल यह उठता है कि लोगो को कब ये समझ आयेगा कि इस जघन्य अपराध के लिए शायद भगवान भी माफ नहीं करते है।
पगार पर नक्सलियों की भर्ती
गुरिल्ला युद्ध के लिए पगार पर नक्सलियों की भर्ती की सूचना है। पड़ोसी राज्य झारखंड में भर्ती अभियान चरम पर है। साथ ही उत्तर बिहार में भी ऐसी सूचना मिल रही है। इसको लेकर पुलिस भी सकते में है
झारखंड के हजारीबाग, चतरा, पलामू एवं डाल्टेनगंज के जंगलों में दर्जनों स्थान पर प्रशिक्षण पहले से चल रहा है। मानदेय एवं परिवार के सुरक्षा की गारंटी का भरोसा दिलाकर गरीब एवं बेरोजगार युवकों को यहां गुरिल्ला युद्ध के लिए प्रशिक्षण के लिए लाया जाता है। इसमें अब उत्तर बिहार के युवक भी शामिल हो रहे हैं। शामिल युवकों को चार-पांच हजार मासिक वेतन का प्रलोभन भी दिया जा रहा है।
खुफिया विभाग के अनुसार लोकसभा चुनाव के बाद उत्तर बिहार में नक्सली हमले की आशंका जतायी गयी है। साथ ही इन इलाकों के युवकों को मासिक वेतन पर भर्ती किये जाने की बात भी सामने आयी है। इसके मद्देनजर गृह विभाग के प्रधान सचिव ने प्रभावित जिलों को एसपी को तत्काल प्रभाव से सतर्कता बढ़ाने का निर्देश दिया है।
उत्तर बिहार के इलाकों में बढ़ रहे नक्सली हमले से पुलिस ऐसे ही परेशान है। अब नक्सलियों द्वारा पगार पर इन क्षेत्रों के युवकों की भर्ती की चर्चा ने होश उड़ा दिये है। अब देखना यह होगा कि गृह विभाग द्वारा जारी किया गया निर्देश कितना काम आती है।
पलायन को मजबूर हीरामन
मैला आंचल से रोजी की तलाश में हीरामन चला परदेश - नरेगा से एक दिन भी काम नहीं मिलने से निराश।
अमर कथा शिल्पी फणीश्वर नाथ रेणु की प्रसिद्ध रचना तीसरी कसम का नायक हीरामन आज भी लोगों के जेहन में है। वो बैल गाड़ी की सवारी आज भी लोग नहीं भूल पाते है। लेकिन आज रेणु के इस क्षेत्र से न जाने कितने हीरामन रोज बेकार हो रहे है और काम की तलाश में जिले से पलायन कर रहे है
ये है रेणु जी का पैतृक गांव औराही हिंगना की कहानी। बैलगाड़ी चलाकर दो पैसे कमाना गांववासियों का प्रमुख रोजगार था। ई धनिक लाल मंडल भी पहले बैलगाड़ी ही चलाते थे। रेणु जी को सिमराहा स्टेशन से गांव और गांव से स्टेशन ले जाते थे। गाड़ियों का परिचालन घटा तो धनिक लाल बेरोजगार हो गये और काम की तलाश में बाहर चले गये। धनिक ने जब नरेगा के बारे में सुना तो गांव आ गये। जाब कार्ड भी मिला लेकिन एक भी दिन काम नहीं मिला
जिले में न जाने कितने धनिक लाल हैं। एक अनुमान के मुताबिक अररिया जिले के लगभग तीन लाख लोग काम के लिए बाहर में रह रहे हैं। वहीं, एक लाख की संख्या फ्लोटिंग है, इनका घर आना-जाना लगा रहता है। सरकार का बहुप्रचारित नरेगा योजना भी इनके पलायन को रोकने में पूरी तरह विफल दिख रहा है। इसका नजारा स्टेशन पर ट्रेनों से बाहर जाने वाली युवाओं की फौज को देखकर साफ समझी जा सकती है कि बेरोजगारों श्रमिकों के पलायन निरंतर जारी है।
करोड़ों रुपयों के फंड के बावजूद भी सरकार की बहुप्रचारित राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कार्यक्रम इस जिले में विफल ही साबित हो रहा है। योजना के क्रियान्वयन में हर स्तर पर भ्रष्टाचार का बोलबाला बना हुआ है। ऐसे में जरुरत है कड़े कदम उठाने की, जिससे इन मजदूरों को अपने घर में ही नियोजित किया जा सके।
शाही लीची
देश और दुनिया में शाही लीची के लिए बिहार का मुजफ्फरपुर मशहूर है। लेकिन मौसम के बदले मिजाज के कारण इस वर्ष उत्पादन अच्छा नहीं हुआ है। इससे किसान काफी निराश है। अब असमय होने वाली बारिश ने किसानों की कमड़ ही तोड़ दी है। हालत यह कि किसान पूरी तरह तैयार होने से पहले ही लीची तोड़कर बेचने को विवश है।
लीची किसानों का कहना है कि इस वर्ष उत्पादन लगभग 40 प्रतिशत कम होने की संभावना है। इस वर्ष अप्रैल महीने में ही तेज धूप होने और बारिश नहीं होने के कारण उत्पादन प्रभावित होने की आशंका है। अभी लीची टूटने का समय है। इस मौसम में तेज हवा और बारिश इस फसल को नुकसान पहुंचा रही है। तेज हवा और वारिश से लीची में कीड़ा लगने की संभावना बढ़ गयी है।
लीची उत्पादक किसान भोलानाथ झा ने बताया केन्द्र और राज्य सरकार द्वारा राष्ट्रीय बागवानी मिशन के तहत किसानों को नए लीची के पौधे तो उपलब्ध कराए जा रहे हैं, लेकिन पुराने बगानों को प्राकृतिक आपदाओं व मौसम की अस्थिरता से बचाने और जीर्णोद्धार करने की ओर सरकार द्वारा कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है। शहर में ही राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केन्द्र है। फिर भी वैज्ञानिक किसानों को कोई जानकारी उपलब्ध नहीं करा पाते हैं।
वहीं अनुसंधान केन्द्र के वैज्ञानिकों का कहना है कि इस वर्ष लीची तैयार होने से पहले पेड़ों से गिरने का कारण जलवायु में अस्थिरता होना है। इसके साथ ही किसानों द्वारा अपने बगानों का समय-समय पर उचित प्रबंधन नहीं किया जाना भी है।
लीची की बढ़ती लाली से किसानों के चेहरे पर लाली बढ़ती जाती थी। इस बार लीची में तो लाली तो आयी लेकिन किसानों के चेहरे पर लाली नहीं छा पायी। एक तो मौसम की मार और ऊपर से अनुसंधान केन्द्र के वैज्ञानिकों का लापरवाह रवैये ने किसानों को बेहाल कर रखा है।
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