Friday, May 29, 2009



बदहाल किला
( उपेक्षित है दाउद खां का किला
)
अपनी जांबाजी के लिए हिन्दुस्तान में विख्यात मुगल सम्राट औरंगजेब के सिपहसलार दाउद खां का किला अपने वजूद को लेकर संघर्ष कर रहा है। इस लुप्त होते धरोहर को बचाना तो दूर सरकारी उदासीनता का दंश झेल रहा है।
(बैक ग्राउण्ड म्यूजिक-कल चमन था, आज एक सहरा हुआ,देखते हीं देखते ये क्या हुआ)
ये है बिहार के औरंगाबाद का दाउद खां का किला। जो कभी लोगों के आकर्षण का केन्द्र हुआ करता था। अपनी राजसी आन-बान-शान के लिए मशहुर यह किला आज खंडहर में तब्दील हो गया है। वो भी क्या जमाना था जब इसकी रखवाली में हजारों लोग लगे रहते थे। आज वही किला लोगों के आने की राह निहारता है। शायद कोई आएगा हमारी वजूद को बचाएगा। पर आज तक इसकी तरफ किसी ने नजर-ए-इनायत करना मुनासिब नहीं समझा। जिससे यह अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहा है।
वर्ष 1659 में औरंगजेब ने दाउद खां को बिहार का सूबेदार नियुक्त किया। जिसमे मनौरा, अंछा, और गोह परगना सौंपकर अपने साम्राज्य के विस्तार के लिए रखा था। वर्ष 1660 में में उसने औरंगजेब के आदेश से पलामू किला पर फतह कर अपनी बहादूरी का सिक्का जमाया। उसके बाद गया कोठी, कुंडा किला पर फतह कर हिन्दुस्तान में अपना परचम लहराया। वर्ष 1664 में अंछा परगना के अंतर्गत दाउदनगर शहर बसाया। शहर बसने के साथ इसी साल किला निर्माण शुरु करायी, जो 1674 में बनकर तैयार हो गया।
शिल्प और वास्तु कला का बेजोड़ नमूना प्रस्तुत करने वाले इस किले के जीर्णोद्धार के लिए आज से दो वर्ष पहले विधायक सत्यनारायण यादव के फंड से 8 लाख रूपये आवंटित किये गये थे। चाहारदीवारी बनाने के लिए। चाहारदीवारी बनना तो दूर इस किले में अब तक एक ईंट भी नहीं रखी जा सकी है।
किला को बचाने के लिए स्थानीय लोगों ने कई बार कोशिश की। सबसे बड़ी बात तो यह है कि सरकारें बदली पर नहीं बदली तो इन धरोहरों की तकदीर और तस्वीर।

धान उत्पादन में आत्मनिर्भर हुआ बिहार


कृषि के रोड मैप ने रंग दिखाना शुरु कर दिया है। इसका नतीजा है कि धान उत्पादन में बिहार आत्मनिर्भर हो गया है। मुख्यमंत्री तीव्र बीज विस्तार कार्यक्रम और बीज वितरण के लिए लाखों क्विंटल धान का बीज उपलब्ध है।
इन पैकेटों में धान का बीज है। इस बीज को चयनित किसानों के बीच आधे दाम पर उपलब्ध कराया जा रहा है। खरीफ में 20 प्रतिशत बदलाव के तहत लगभग 4 क्विंटल धान के बीज की जरूरत है। पिछले साल किसानों को उपलब्ध कराये गये बीज का असर इस साल असर दिखाई दे रहा है। इसके अलावे सरकार के कृषि फार्म में 40 हजार क्विंटल बीज का उत्पादन हुआ है। इसकी आपूर्ति बिहार राज्य निगम को की गयी है।
मुख्यमंत्री तीव्र बीज विस्तार कार्यक्रम के तहत 40,514 गांवों के 80,128 चयनित किसानों के बीच 4,862 क्विंटल और बीज ग्राम योजना के के लिए चयनित 529 गांवों के 26,450 किसानों के बीच 1,587 क्विंटल धान बीज आधे दाम पर उपलब्ध कराए गए। बीज के लिए ऐसे किसानों का चयन किया गया है, जिनको 2008 में लाभ नहीं मिला है। जिला कृषि अधिकारियों के अनुसार बीज वितरण के लिए राज्य के बाहर से बीज की खरीद नहीं पायी है।
खरीफ 2009 के लिए मुख्यमंत्री तीव्र बीज विस्तार कार्यक्रम के लिए 39,124 गांवों के 78,241 किसानों का चयन किया गया है। इनके बीच 4,695 क्विंटल बीज का वितरण किया जायेगा।

मुरझाने लगे मालाकार


फूल की खुश्बू और इसकी सुगंध सभी को लुभाती है। लेकिन इसकी खेती करने वाले मालाकारों की जिन्दगी उसके विपरीत रंगहीन और गंधहीन हो रही है। जिससे इसके खेतीहर मालाकार दूसरे व्यवसाय की ओर रूख कर रहे हैं।
ये है नालंदा जिला का रुपसपुर गांव। जहां डेढ़ दशक से दर्जनों मालाकार खेत पट्टे पर लेकर फूल की खेती करते हैं। चारो ओर फूलों से लथराई इस बगीया में अपनी फूलों को निहारते मालाकार इंद्रदेव को देखिए! कितना जतन से इसे सजा-सवांर रहे हैं। समय के साथ इसकी मांग तो बाजारों में बढ़ी जरूर, लेकिन अब इस व्यवसाय में पहले वाली बात नहीं रही।
एक वर्ष में फूल के पौधे तीन बार लगाये जाते हैं। जिसके लिए पौधे कोलकाता से मंगाये जाते हैं। मौसम अनुकुल मिला तो, फूल तीन से चार महिने में तोड़े जाते हैं। अन्यथा पूरी फसल के बर्बाद होने का डर रहता है। उपर से खेत मालिकों का आर्थिक कहर भी मालाकारों को झेलनी पड़ती है। महंगे फूलों की खेती करना लगभग खत्म हो गया है। सबसे बड़ी बात तो यह है कि कई बार कृषि वैज्ञानिक यहां आए बीज दिलवाने के लिए नाम नोट करके ले भी गए। पर आज तक कोई सरकारी सहायता नहीं मिल पायी।
सुगंध बिखेरने वाले मालाकार परिवारों को सरकारी सहायता न मिलना एक छलावा है। जिसके चलते ये लोग इस रोजगार से मुंह मोड़कर दूसरे व्यवसाय की ओर जाने लगे हैं।

इंजीनियरों का gaon


विश्व प्रसिद्ध गया नगरी इन दिनों फिर सुर्खियों में है। पर इस बार धार्मिक और ऐतिहासिक कारण से नहीं, बल्कि युवकों की मेहनत के बूते चर्चा में है। आइआइटी में केवल गया के 42 विद्यार्थियों ने अपनी सफलता का परचम लहराया है।
( कौन कहता है आसमां में सुराग नहींे होता, एक पत्थर तबियत से तो उछालो यारो )
ये है गया जिले का मिनी मैनचेस्टर के नाम से चर्चित मानपुर का पटवा टोली। जहां से पांच छात्रों ने आइआइटी की प्रवेश परीक्षा में सफलता पायी है। इस जगह को देखने से लगता है कि सच कीचड़ में कमल खिलता है। यहां पढ़ने का कोई माहौल और सुविधा नहीं है। बावजूद इसके इन पांचों छात्रों के चेहरे पर तेज टपक रहा है। तो इनके घर वालों के अलावे इस गांव के लोग बहुत खुश हैं। गया जिले में 42 विद्यार्थियों ने अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया। जिसमें 36 छात्र के अलावे 6 छात्रा भी शामिल हैं।
देश की सबसे बड़ी इंजीनियरिंग परीक्षा आइआइटी में सफलता के इतिहास गढ़कर गया के छात्रों ने यह साबित कर दिया कि हमारे अंदर लगन है, जज्बा है। लेकिन हमे जरूरत है सही मार्गदर्शन की। और इसे संवारने का काम पटना में सबसे पहले बीएमपी के डीजीपी तथा मगध सुपर 30 के संचालक अभ्यानन्द ने की थी, जो आज भी इसे आगे बढ़ा रहे हैं। इनके बाद तो जैसे इस क्षेत्र में सभी लोग हाथ बटाने लगे। इनके अलावे गया के एरोडाॅप स्कूल आॅफ फिजिक्स एण्ड मैथ कोचिंग सेंटर के भी 14 छात्र सफल रहे।
जमाने से धार्मिक और ऐतिहासिक चर्चाओं में रहने वाला गया। इन दिनों गया एजुकेशन हब बनता जा रहा है। और इसी के साथ तकनीकि के क्षेत्र में अपनी पहचान बनाने में अग्रसर है।




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HIMMAT SE KAM LOGE TO ZMANA V SATH DEGA...HO GAYE KAMYAB TO BCHACHA-BCHCHA V NAM LEGA.....MAI EK BAHTE HWA KA JHOKA HU JO BITE PAL YAD DILAUNGA...HMESHA SE CHAHT HAI KI KUCHH NYA KAR GUZRNE KI...MAI DUNIA KI BHID ME KHONA NHI CHAHTA....