राहें जुदा पर--------
कहते हैं खुशियां और बदनसीबी किसी से पूछ के नहीं आती है। इन दोनों का मानों चोली दामन का साथ होता है, कब ये किसका दामन थाम ले इस बात का इल्म तो किसी को भी नहीं होता है। कुछ इनकी तरह। ये हैं तो बाढ़ जिले में रहने वाले दो अलग-अलग लोग पर जिंदगी के रंग तो देखिए दो होते हुए भी इनकी किस्मत की लकीरें इस कदर मिलती हैं कि दोनों झेल रहे हैं एक सी बदनसीबी की मार।
ये हैं तो अजनबी पर जिंदगी ने इन दोनों की तकदीर में मानों एक हीं तरह की बदनसीबी की रेखाएं खिंची है। इन दोनों ने शादी के हसीन सपनों के साथ अग्नि के सात फेरे भी लिए। शुरू में तो रिश्ता बहुत मधुर रहा पर पर गुजरते वक्त के साथ इनके वैवाहिक जीवन में दुख के दस्तक ने मानों इनके अरमानों की मिट्टी पलीद कर दी। जो दरकते वैवाहिक जीवन की मिशाल है।
बात अगर बिरजू की करें तो वो अपने ससुराल वालों की मांग से परेशान है। उसके ससुरालवालों की चाहते हैं कि बिरजू अपनी बेवा मां को बेसहारा छोड, सारे जमीन-जायदात को बेच और उन पैसों के साथ बन जाए घरजमाई। उधर अर्चना की दास्तान भी कम कष्टदायी नहीं है। उसके भी सफल दांपत्य जीवन के भ्रम में गुजारे गए सारे पल तब मिथ्या साबित होने लगी, जब उन्हें दो बेटियां जनने के कारण शादी के 6 साल बाद उनकी अबोध बच्चियों के साथ घर से बेघर कर दिया गया।
बाढ़ के इन दोनो ंनिवासी की राहें तो जुदा है पर किस्मत एक सी.....इन दोनों के हीं यहां जब शहनाई के स्वर लहरियां गंुजी थी तो मानो जसे इनके अरमानों में सतरंगी पंख लग गए थे....पवर आज वो जीवन के जिस मुकाम पर खड़ंे हैं वो भी अपने-अपने ससुराल वालों के स्वार्थ की वजह से वो न केवल उनके स्वार्थी होने की गवाही देता है बल्कि उनके अरमानों के पूरे होने से पहले हीं खाक होने की दास्तां को भी बयां कर रहा है।
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