कराह रही जिन्दगी....
कभी रौशन हुआ करता था...इनका भी आशियाना खुशियों.......लेकिन घड़ी के कांटों को जैसे किसी बलवान ने दबोच लिया है...और पूरी शक्ति से नहीं छठ रहे हैं....इनकी उदासीनता के बादल.....ये मर्मस्पशी कहानी है....पटना की कमला खातून की जो पिछले कई महीनों से बिमारी रुपी अभिशाप से लड़ने को मजबूर है...
बना के क्यों बिगाड़ा रे....बिगाड़ा रे नसीबा.....ये गाना पटना के कमलानेहरु इलाके में रहने वाली.....मुन्नी खातुन पर सटीक बैठता है.....ये देखिए....ये हैं...मुन्नी खातुन....जिनकी उम्र तो महज 35 साल है...लेकिन बीमारी ने उसे 50 का बना दिया है...और आज उसके चेहरे की लकीरें...उसकी,लाचारी,बेबसी...और सारे दर्द बयां करती है...दर्द...एक पत्नी का घर के प्रति, दर्द एक मां का अपने 3 बच्चों के प्रति...उन्हें थपकी देकर कभी सुलाने ,तो कभी प्यार से चुमकर पास बुलाने की...
मुन्नी कुमारी भी आम लोगों जैसी हीं थी...बिल्कुल सामान्य...लेकिन 6 महीने पहले हुए एक एक्सीडेंट के बाद मुन्नी के पैरों में सुजन आ गई थी....और जब ड़ाक्टर को दिखाया गया...तो पैर काटने की नौबत आ गई.....इस खबर ने तो जैसे मुन्नी के सारे सपनों को हीं बिखेर कर रख दिया....
लेकिन जरा सोचिए....वो कहते हैं न कि नंगा नहाएगा क्या....और निचोड़ेगा क्या....वैसे हीं अपनी तंगहाली...से पहले से जूझ रहे....इस परिवार.....के लिए.....ऐसे में आॅपरेशन के लिए...पैसे जुटा पाना....बहुत मुश्किल था.....क्योंकि आॅपरेशन का खर्च 90 हजार जो था....और वो इनके बस का नहीं था....लेकिन मुन्नी के पति सराज बक्खो ने हार नहीं मानी और मुहल्ले वालों की मदद से उसने 50 हजार रुपए चंदा से जमा किसा और रेस्ट पैसों के लिए उसने अपने घर और जमीन भी बेच दी....ताकि अपनी बेगम को जानलेवा बिमारी से बचाया जा सके.....लेकिन इसके आगे के ईलाज के लिए ये पैसों के मोहताज हैं।
सराज की मेहनत ने....मुन्नी को आगामी....भयावह और जानलेवा बिमारी से तो बचा लिया....लेकिन आज वो अपनी इस बोझील जिन्दगी से मानो मौत की गुहार लगा रही है.....जिसकी वजह दूसरों के भरोसे बांकी की जिन्दगी को काटना है...इतनी हीं नहीं...पहले से हीं मुफलिसी के दिन काट रहे इस परिवार.....के लिए तो मानो अब फांकाकशी के दिन भी आ गए हैं....क्योंकि इनकी बच्चों की थाली या तो खाली होती है...या फिर दूसरों के सहारे हीं भरती हैं...पर...मुन्नी के बच्चों को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता वो तो आज भी अपनी मां के ठीक होने का इंतजार कर रहे हैं।
बात चाहे जो भी हो लेकिन एक ओर मुन्नी कुमारी आज शायद अपने शब्दों में यही कह रही होगी कि...मैं खुद को कमटा नहीं सकती...जीने की चाहत है...तुम सभी के लिए...लेकिन कैसे बताउं की इस कशमकश में दर्द कितने हैं मैंने पीए....और दुसरी तरफ उसका परिवार आज भी इस आस में जी रहा है कि शायद कोई....हाथ इनके सहायता के लिए भी बढ़ेंगे....
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