Friday, May 22, 2009

झुलसता बचपन
( बच्चे मन के सच्चे सारे जग की आंख के तारे....हम वो नन्हें....)
बालश्रम उन्मुलन के चाहें जितने दावे किए जा रहे हों, लेकिन सच्चाई यही है कि आज भी हजारों बच्चों का बचपन पेट की आग से
झुलस रहा है। इन मासूमों के जीवन में अंधेरा दूर नहीं करने के लिए जिम्मेवार महकमा भी कम दोषी नहीं।
पसीना से लथपथ मासूमों को कभी भी देख सकते हैं। जो ठेले को पकड़ कर खड़े रखवाली नहीं करते। बल्कि इसके चालक हैं। अपने पेट की आग बुझाने के लिए अपनी जान पर खेलकर रोजी-रोटी की व्यवस्था में जुटे रहते हैं। खेलने-खाने की उम्र में इन्हें अपने परिवार की पेट भरने के लिए हाड़तोड़ मेहनत करनी पडती है।
बालश्रम उन्मुलन के लिए चलाये जा रहे कार्यक्रम और सर्व शिक्षा अभियान इनके लिए कोई मायने नहीं रखता है। क्योंकि इन्हें कलम और काॅपी से ज्यादा दो शाम के रोटी की आवश्यकता है। इस मामले का सबसे स्याह पहलू तो यह है कि बाल श्रमिकों कल्याण के लिए जिम्मेवार महकमा पूरी तरह कुंभकरणी नीन्द सो रही है। आए दिन सड़कों पर ठेला चलाते, मजदूरी करते छोटे-छोटे बच्चों का दिख जाना आम है।
बालश्रमिकों के कल्याण के लिए लाखों रुपए अनुदान लेने वाली स्वयं सेवी संस्थाओं की नजर भी इन बच्चों की ओर नहीं पड़ती। ये संस्था बालश्रम दिवस के नाम पर रैली और संगोष्ठी कर हीं अपने कर्तव्य की इतिश्री समझ लेते हैं। इन्हें बाल श्रमिक स्कूल चलाने में मोटा मुनाफा नजर आता है। इसे लेने के लिए ये लोग किसी भी हथकंडे को अपनाने के लिए तैयार रहते हैं। लेकिन इन मासूमों के भविष्य की किसी को चिंता नही है।
बात चाहें जो भी हो लेकिन इन मासूमों के भविष्य सुधारने के लिए किए गए प्रयास महज दिखावा साबित हो रहा है।

टेªन यात्रा ना बाबा ना.....
न सुरक्षा और ना हीं आरामदायक यात्रा। जी हां सुरक्षा और यात्रा के लिए टेªनों की एसी कोच में हीं यात्रा करना पसंद करते हैं यात्री। लेकिन यकिन मानिए अब इन बोगियों में भी असुरक्षा का माहौल है। एसी बोगियों में लफंगों का शिकार होना आम हो गया है।
सीट एक और यात्रा करते वक्त बैठने के लिए तेरह करते हैं तकरार। चैंकिए मत। यह कड़वा सच है। आप हीं देखिए दानापुर रेलमंडल पर दौड़ती गाड़ियों के एसी बोगियों का नजारा। बिना रोक-टोक एसी बोगी में यात्रा करने वाले बिना टिकट यात्री बैठते वक्त शेखी बघारते हैं। टीटीई बाबू ने टिकट मांगी तो आरा जाना है कहते हैं। बेटिकट यात्रियों का खौफ ऐसा कि बोगियों का दरवाजा नहीं खोलते कोच अटेंडेंट। गलती से खुल गई तो नजारा किसी राहत शिविर से कम नहीं।
सभी सीटों पर यात्री हैं। इससे ये मत समझिए कि टेªेन फूल है। ये आपकी गलतफहमी है, क्योंकि इसमें 90 फीसदी अनअथराइज्ड लोग हीं हैं। इन मनचले लफंगों को देखिए। अपनी मोबाइल पर बजते गाने...दीवानी मैं दीवानी...पर झुमने के साथ उल्टी-सीधी बातें भी करते हैं। और हो भी क्यों नहीं इसमें यात्रा करने वाली अधिकांश महिलाऐं जो हैं।
अरे बाप! ये किन्नरों को देखिए। ये तो जैसे अपना घर हीं समझ बैठे हैं और दातुन कर अपने जलवे के साथ पैसे एंठेंगे। ऐसा नहीं कि रेल प्रशासन इन पर रोक लगाने में सक्षम नहीं। पर करे तो क्या, टीटीई अपनी नौकरी करें या लफंगों से जुझें। क्योंकि इन्हें तो डेली इसी रास्ते डयूटी बजानी है। फिर आफत कौन मोल ले।
बहरहाल इस तरह यात्रियों के आतंक सभी बोगियों पर है। इस पर शिकंजा कसना कठिन नहीं तो आसान भी नहीं है। इसमें पैसेन्जर या बड़ी टेªनों का समय पर परिचालन न होना भी बड़ा कारण है।

बंदी महिलाओं को टेªनिंग
( स्वावलंबी बनेंगी बंदी महिलाएं
)
भले हीं वो कैद हैं-समाज की निगाहों में गुनहगार पर एक बड़ी सच्चाई ये है कि वो बेहद हुनरमंद हैं। हम बात कर रहें हैं समस्तीपुर के मंडल कारा की जहां महिलाओं के हुनर को पहचान कर उन्हें स्वावलंबी बनाने का अनोखा प्रयास हो रहा है
( हिम्मत से काम लोगे तो क्या हो नहीं सकता, वो कौन सा उकदा है........)
सिलाई मशीन पर घिरनी की तरह नाचते पांव, फटाफट ब्लाउज-पेटीकोट तो मिनटों में कपड़ों पर चित्रकारी करने से लेकर
कढ़ाई कर सुन्दर कलाकृतियां उकेरती ये कोई प्रोफेश्नल महिला नहीं हैं। बल्कि ये हैं समस्तीपुर मंडल कारा की बंदी महिलाएं।
मंडल कारा प्रशासन इन दिनों महिला बंदियों के लिए विशेष टेªेनिंग अभियान चला रहा है। इस योजना के तहत ये महिला बंदी हत्या और विभिन्न आरोपों में आजीवन कारावास की सजा काट रही हैं। कई मामलों में बंदी बनी इन महिलाओं में हुनरमंद महिलाओं ने स्वावलंबी बनने के गुर सीखने के लिए दिन-रात एक कर दिया है। इस जेल में कुल 31 महिला बंदी हैं। किसी पर हत्या का मामला है तो कोई अपहरण कांड में सजा काट रही है
इस योजना से दो फायदे हुए हैं। एक तो शांत रहने वाली महिला बंदियों के बीच संवाद स्थापित हुआ। वहीं दूसरी तरफ इस अभियान से ये हुनर मंद भी
हो रही हैं।

साल 47 टाॅपर 4
मैट्रिक परीक्षा में अव्वल स्थान पाने में पटना के विद्यार्थी फिसड्डी साबित हो रहे हैं। इनको मात दे रहे हैं गांव के मेहनती छात्र। इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि 1962 के बाद अब तक मात्र चार विद्यार्थी हीं पहले पादान पर पहुंच पाए हैं। यानि 47 साल के सफर में पटना से सिर्फ चार टाॅपर का होना। पटना के छात्रों की पढ़ाई पर कई सवाल खड़ा कर रहा है।
प्रतिभा किसी खास जगहों में कैद नहीं होती है। यह परिश्रम और लगन से प्राप्त होता है। जमाने से लोगों का मानना है कि शहरों में पढ़ाई अच्छी होती है। लेकिन ये कैसी पढ़ाई की संसाधन से भरे पटना के छात्र पिछले 47 सालों में केवल चार अव्वल हो पाए हैं। इनके मुकाबले गांवों के छात्र मैट्रिक में अपनी पढ़ाई का लोहा मनवा रहे हैं। हर साल पटना के बाहर के हीं छात्र अपनी प्रतिभा की खुशबू बिखेर रहे हैं। जो पटना के छात्रों की पढाई के प्रति उदासीनता को दर्शाता है।
पटना के टाॅपरों में 1962 में सैदनपुर, मसरी के ब्रज किशोर सिंह यह मुकाम पाने वाले पटना के पहले छात्र थे। सात वर्षों बाद राजीव कुमार सेठ ने फिर इस इतिहास को दुहराया। इसके बाद इस मुकाम को दोबारा पहुंचने के लिए पटना के विद्यार्थियों को 28 वर्ष का समय लग गया। लंबे अंतराल के बाद 1998 में जयश्री ने टाॅपर के लिए छलांग लगाई। इसके चार वर्ष बाद हीं आनंद कुमार ने अपनी प्रतिभा के झंडे फहराए।
शहरों में गांवों के मुकाबले अच्छे संसाधन है, पर टाॅपर बनने के लिए प्रतिभा और लगन की जरुरत होती है। सिर्फ संसाधन के बल पर टाॅपर नहीं बना जा सकता है। गांवों के छात्रों पर ये कहावत अभावग्रस्त इंसान हीं दूरियां तय कर पाता है पूरी तरह से सटिक बैठता है।


दाने-दाने को मोताज

अपने हीं लोगों के बीच शरणार्थी बनकर जीने को विवश हैं अग्निपीड़ित.....भीषण गर्मी में भी खुले आसमान के नीचे गुजर-बसर कर रहे हैं.....तो अपना पेट पालने के लिए दाने-दाने को मोहताज हैं.....सरकार के उदासीन रवैये से किस्मत के मारे ये बेचारे भी खासे परेशान हैं।
(..रहने को घर नहीं, सोने को बिस्तर नहीं...अपना खुदा है रखवाला......)
कल तक जहां बस्तियां गुलजार हुआ करती थीं....बच्चों की किलकारियां गुंजती थीं....वहां सन्नाटा पसरा है....ऐसा नहीं कि यहां लोग नहीं रहते....बल्कि लोग भी हैं और उनके मासूम भी.....पर उनके मुंह से आवाज भला कैसे निकलेगी.....ये बेचारे कई दिनों से भूखे हैं.....पिछले एक माह से जारी आगलगी की घटना में जहां करोड़ो की संपति राख हो गई....वहीं 500 से ज्यादा परिवार अपना सब कुछ खोकर शरणार्थी का जीवन जी रहे हैं।
ये है छपरा का गोपालपुर गांव.....जहां हर आने जाने वालों को याचक की तरह निहारते इन पीड़ितों को
देखिए.....इनके घरों के साथ हीं खलिहानों में रखे गेहूं के हजारो बोझे भी जलकर राख हो गए.....तो कई मासूम इस आगलगी की बलिबेदी पर चढ़ गए....तो दर्जनों लोग इसके शिकार हो गए....कई घरों में शहनाईयां गुंजनी थी....बिटीया की शादी के लिए रखे गए सामान भी जल गए....अब कहां से होंगे उनके हाथ पीले.....सब कुछ आग निगल गई....इनके दामन में रह गई....तो सिर्फ और सिर्फ दर्द भरी दास्तान।
हर साल की तरह इस साल भी इलाके के दर्जनों गांव में भीषण आग लगी हो चुकी है......सब कुछ जल गया.....अब कुछ नहीं रहा......सरकारी सहायता की बात करें तो कई जगहों पर प्रशासन का कोई भी अधिकारी मौके पर नहीं पहुंचा...और पहुंचा भी तो....ज्यादातर जगहों पर राहत देने की घोषणा महज एक छलावा साबित होकर रह गई
इन अग्निपीड़ितो के लिए कि गई राहत की घोषणा.....फाइलों से निकलकर पीड़ितों के पास कब तक पहुंचेगी......या पहले की तरह इन लोगों को मिलने वाली सहायता की घोषणा भर रह जाएगी....ये तो आने वाला वक्त हीं बताएगा।
मां
हर पल, दर्द को सहने वाली
जुबां से उफ! न कहने वाली
हर मुश्किल से लड़ने वाली
मां! तू और तेरी ममता बड़ी निराली है.
तन से अपने साट-साटकर
मुझको जीवन देती हो
लाख मारी पैरों को तन पर
उसको हंस-हंस सहती हो
सोचता हूं, कितनी धीरज वाली है
मां!--------------
बिस्तर हो गए गिले तो
खुद उस पर सो,हमे उससे बचाती हो
लगे किसी की नजर न हमको
सीने से लगा हौसला देने वाली है
मां!--------------
भूख लगे तो दूध पिलाया
चोट लगी ममता के मरहम लगाती हो
खुद तो भूखे सो जाती
चेहरे पर शिकन नहीं दिखाती हो
मां तू कितनी प्यारी हो!
जिन्दगी की खुशीयां कुर्बान करने वाली है
मां!---------------
पौधों सा सींच-सींचकर
एक दिन बड़ा बनाती हो
ये कैसी दुनियां की रीत
उम्मीदों की दुनियां में खुद बुढ़ी हो जाती हो
पर, मां!
तेरी ममता हर पल जवां रहने वाली है
मां!---------------
दुनियां के कोने-कोने में ढूंढ़ा
मां की ममता हीं सबसे प्यारी है
ढंूढ़ रहा था मंदिर-मस्जिद में तुझको
घर में बैठी मां हीं अमृत की प्याली है
मां!---------------
हर मुश्किल को सहने वाली
जीवन के गुर सीखाती हो
हो गया जब बड़ा लाड्ला
प्यारी सी दुल्हन घर में लाती हो
माथे को चुमकर,उसे भी गले लगाती हो
थक गई तू
जो हर मुश्किल को सहने वाली है
मां!---------------
खुशीयों का एक बाग सजाकर
फूल रंग-बिरंगे खिलाया था
कैसा अब ये दिन आया
सब आंखों से ओझल हो जाते हैं
कितने दिन की मेहमां, मां
गम को अंदर पीने वाली है
मां!---------------
एक दिन ऐसा भी आया
बुढ़ी हो गई मां
उसे भी अब तेरी जरुरत है
नहीं चाहिए रुपया-पैसा
तेरे ममता की उन्हें जरुरत है
धरती सा धीरज, कुछ न कहने वाली है
मां!---------------
--मुरली मनोहर श्रीवास्तव

9430623520/९२३४९२९७१०

अजूबा षादी

जहां दहेज मिटाने की बात की जा रही है......वहीं दहेज के लालच में दूल्हे राजा मंडप से फरार हो गया....तो बाराती में आए एक लड़के को हीं सात फेरे लेने पड़े....बात इतने से भी नहीं बनी तो दूल्हे मियां को पकड़कर गांव वालों ने दूसरी लड़की से शादी करा दी....इसको लेकर दोनों पक्षों में तनाव है।
(xkuk....जलेगी कब तक इसी आग में बेटी हिन्दुस्तान की....दर-दर दूल्हे की तालाश बापू उमर गंवाए बेबस मां आंसू में डुबे और भाई बिक जाए....)
;s है समस्तीपुर का मोहिउद्दीननगर जहां एक दूल्हे मियां के दहेज में कमी का हुई.......उ सात फेरा लेने से पहिलहीं मंडप छोड़कर फरार हो गए.....और रातभर में गांव वाले अपनी इज्जत बचाने के लिए दुल्हे मियां रंजीत को खोज हीं निकाले....ई मुंह लटकाए खड़ा दुल्हा के भेष में कौनो नौटंकी वाला नहीं है......बल्कि ई उहे दूल्हे मियां हैं......जो सजधज के घोड़ा चढ़ बारात लेकर आए थे.....जयमाल तो किया खुश्बू के साथ.....बारात थोड़ी देर से का आई....वहां का सब सीने बदल गया.....लेकिन गांव वाले भी कोई कम नहीं थे....लाख फरार होने के बादो....नहीं बख्शा ......और उसी गांव के परशुराम पंडित की बेटी कंचन से सबेरे रायसुमारी के बाद शादी करा दी गई....ई बात इहें खत्म नहीं हुई.....मामला और तूल पकड़ लिया.......और अब खुश्बू के घर वाले रंजीत के परिजन से दहेज वापसी की मांग कर रहे हैं।
(....कोई लाख करे चतुराई.....करम का लेख मिटे ना रे भाई........)
आए थे हरिभजन को ओटन लगे कपास.....वाली कहावत भी इहां पूरी तरह से चरितार्थ हो गई......रंजीत के भागने के बाद नर्वस हुए खुश्बू के परिजन अपनी इज्जत बचाने के लिए.....बाराती में आए हसनपुर निवासी विशेश्वर पंडित के पुत्र तारक पंडित से शत्रुघ्न पंडित की बेटी खुश्बू की शादी करा दी......ई मामला होने के बाद यह शादी कौनो फिल्मी स्टाईल से कम नजर नहीं आया....तो गांव वालों और आस-पास के इलाके में ई शादी कौतुहल का विषय बना रहा।
थोड़ी सी गलती रंजीत के घर वालों की खुश्बू के जीवन से खिलवाड़ पर बन आई....कल तक सपनों में बसने वाले रंजीत को बिसराकर तारक हीं खुश्बू का तारनहार बना....अगर वक्त पर तारक नहीं होता.....तो दहेज की लालच में खुश्बू के अरमानरुपी पराग फैलने से पहले हीं बिखर कर रह जाती।

कोर्ट मैरेज का बढ़ता

क्रेज
शादी जिन्दगी का अहम हिस्सा है....जिसे पारंपरिक ढंग से किया जाता रहा है.....लेकिन इस नए जमाने में शादी के मायने भी बदलने लगे हैं.....आज की युवा पीढ़ी उन पचड़ों से बचकर खुद की दुनियां बसाने के लिए कोर्ट मैरेज करने लगे......तो कोर्ट मैरेज का रजिस्ट्रेशन शादी-शुदा भी कराने में पीछे नहीं रहे।
जब लड़का-लड़की राजी तो क्या करेगा काजी....यानि दोनों एक-दूसरे को पसंद करने लगे.....साथ जीने-मरने की कसम खा ली हों तो.....फिर शादी कराने वाले पंडितजी और शुभ मुहुर्त कि क्या जरुरत......जी हां हम बात कर रहे हैं आज की युवा पीढ़ी की....जो जाति-धर्म की जकड़न से दूर.....बस जिला निबंधन कार्यालय में अर्जी दी और एक माह बाद बन गए कानूनी रुप से पति-पत्नी।
महानगर कल्चर में ढल रहे पटना के युवाओं का प्यार भी इन दिनों जिला निबंधन कार्यालय के माध्यम से परवान चढ़ रहा है.....अपने मनमर्जी से जीवन साथी चुनने वालों की तादाद बढ़ रही है.....अधिकारियों की मानें तो विवाह करने वाले लड़के-लड़कियों की उम्र 21 और 18 वर्ष से कम नहीं होनी चाहिए.....इसके साथ हीं आवासीय प्रमाण-पत्र भी देने पड़ते हैं.....तो शादी-शुदा लोग भी अपने विवाह का रजिस्ट्रेशन इस लिए करा रहे हैं.....क्योंकि विदेश जाने के लिए निबंधन कार्यालय का मैरेज सर्टिफिकेट जरुरी होता है।
इस तरह बढ़ते कोर्ट मैरेज के क्रेज से जहां युवाओं में उत्साह है....दहेज और जाति-धर्म के जंजाल से जहां लोग बच रहे हैं......वहीं इस कोर्ट मैरेज का दुरुपयोग भी कुछ कम नहीं हो रहा है।


हाथियों का उत्पात
झारखंड में पानी की भारी किल्लत की वजह से अब हाथियों का जंगलों में रहना दूभर हो गया है। जंगल के तालाबों में पानी सुख चुका है। ऐसे में पानी की तालाश में हाथियों का झुंड आस-पास के गांवों में उत्पात मचाने लगा है।
;gka किसी भूकंप का कहर नहीं है। बल्कि इन घरों की दुर्दशा जंगली हाथियों ने कर रखी है। हजारीबाग जिले के लगभग बीस गांव के लोग इन दिनों हाथियों के उत्पात से दहशत में जी रहे हैं। जाने कब पानी की तालाश में हाथियों का झुंड इनके घरों को तोड़ डालेंगे। इसके चलते ये दिन रात सो भी नहीं पाते हैं। पिछले पंद्रह दिनों से इन क्षेत्रों में हाथियों का कहर जारी है। वन विभाग के अधिकारी कहते हैं कि जल्द हीं हाथी जंगल में लौट जाएंगे। गांव वालों से हाथियों को नहीं छेड़ने की भी अपील कर रहे हैं।
हजारीबाग में हाथी के उत्पात से बंटे गांव के लोग परेशान हैं। इसको लेकर पुलिस भी कम परेशान नहीं है। दरअसल वन विभाग जब फरियादियों की शिकायत को टाल देती है। उसके बाद वो पुलिस से गुहार लगाते हैं। पर पुलिस को भी हाथियों के उत्पात के आगे कुछ नहीं सूझ रहा है। हाथी को पकड़ भी नहीं सकती। जिससे इस मामले में खुद को मजबूर बताती है।
झारखंड के लिए हाथियों की समस्या आम है। वन विभाग कागजों पर कार्रवाई भी खूब करता है। पर उन अधिकारियों पर कार्रवाई क्यों नहीं होती जो ग्रामीणों की व्यथा को अनसुनी कर देते हैं।






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HIMMAT SE KAM LOGE TO ZMANA V SATH DEGA...HO GAYE KAMYAB TO BCHACHA-BCHCHA V NAM LEGA.....MAI EK BAHTE HWA KA JHOKA HU JO BITE PAL YAD DILAUNGA...HMESHA SE CHAHT HAI KI KUCHH NYA KAR GUZRNE KI...MAI DUNIA KI BHID ME KHONA NHI CHAHTA....