Sunday, June 7, 2009

फर्ज खुदगर्ज बन गई

कहा जाता है कि बच्चे मां-बाप के बुढ़ापे की लाठी होते हैं। ये जमाने से सच भी होते आ रहा है। लेकिन कुछ अइसे बेटे भी है, जो अपनो को जिन्दगी के उस पड़ाव पर ठुकरा देते है, जहां उनके दामन में मौत से ज्यादा कुछ नजर नही आता।
( -अपनों को जो ठुकराएगा,वो गैरों की ठोकरें खाएगा......)
बाढ़ के रहने वाले हरि यादव। अपनी जिन्दगी के 90 बसंत देख चुके हरि अपनी आंखों में आंसू लिए किसी मददगार को खोज रहे हैं। दो बेटों के बाप हरि को उम्र की अंतिम दहलिज पर कोई देखने वाला नहीं है। जिन्दगी भर मेहनत-मजदूरी करके पाई-पाई जोड़कर हरि ने जिन संतानों को पालापोसा ,आज वही बेटों ने हरि को आत्महत्या करने पर मजबूर कर दिया है।
( -देख तेरे संसार की हालत क्या हो गई भगवान कितना बदल गया इंसान....)
आधुनिकता के इस दौर में बेटा अपने बाप को भूल गया। फर्ज खुदगर्ज बन गई और रिश्ते तार-तार हो गए। हरि के साथ ऐसा कई बार हुए और अंत में अपने बेटा-पतोहु के तानो से तंग आकर शमशान घाट के पास बुर्जुग हरि ने गंगा नदी में छलांग लगा दी, लेकिन जाको राखे साईंयां मार सके न कोय वाली कहावत चरितार्थ हो गई। आस-पास के लोगों ने गंगा की तेज धार में डुब रहे इस वृद्ध को बचा लिया।
जाहिर तौर पर सवाल खड़ा हो जाता है कि अपना खुन पसीना बहाकर अपने संतानों को सींचने वाला एक बाप को शरण देना इतना कठिन हो जाता है कि उसे आत्महत्या करना पड़े। इस तरह रिश्ते का खुन करने वाले ऐसी औलाद को इंसान का उचित दर्जा देना कितना उचित है ?

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HIMMAT SE KAM LOGE TO ZMANA V SATH DEGA...HO GAYE KAMYAB TO BCHACHA-BCHCHA V NAM LEGA.....MAI EK BAHTE HWA KA JHOKA HU JO BITE PAL YAD DILAUNGA...HMESHA SE CHAHT HAI KI KUCHH NYA KAR GUZRNE KI...MAI DUNIA KI BHID ME KHONA NHI CHAHTA....