Tuesday, March 29, 2011

बिस्मिल्लाह खां का नाम गलत पढते हैं बच्चे

बिस्मिल्लाह खां का नाम गलत पढते हैं बच्चे

टेक्स्ट बुक में गलत पढ़ाया जाना, जिम्मेवार कौन ?

नाम कमरुद्दीन और पढ़ाया जा रहा है अमिरुद्दीन. ये किसी आम आदमी का नाम नहीं है बल्कि शहनाई वादक उस्ताद बिस्मिल्लाह खां के बचपन का नाम है. इतना ही नहीं इस गलत नाम को छापा है बिहार टेक्स्बुक ने और पढ़ रहे हैं दसवीं कक्षा के छात्र. उस्ताद के नाम को गलती पढ़कर बिहार के बच्चे हो रहे हैं अव्वल. जी हां, ये कोई जुमला नहीं बल्कि सच है. शहनाई वादक उस्ताद बिस्मिल्लाह खां के नाम को ही गलत पढ़ाया जा रहा है. इस तरह गलत नाम को पढ़ाकर बच्चों को गुमराह किया जा रहा है. जिससे बच्चों को आगे की प्रतियोगी परीक्षाओं में भी कभी मुंह की खानी पड़ सकती है. यह एक सोचने का विषय है कि टेक्स्टबुक में इतनी बड़ी भूल के लिए कौन जिम्मेवार है.

भारत रत्न शहनाई नवाज उस्ताद बिस्मिल्लाह खां किसी परिचय के मोहताज नहीं. विश्व के कोने-कोने में अपने शहनाई से सबको मुरीद बनाने वाले उस्ताद आज अपने पैतृक राज्य में हीं गलत नाम से नवाजे गए हैं. बिहार के बक्सर जिले के डुमरांव में जनमे कमरुद्दीन हीं आगे चलकर शहनाई वादक बिस्मिल्लाह खां हुए. गांव की पगडंडी तक बजने वाली और राजघराने की चटाई तक सिमटी शहनाई को उस्ताद ने संगीत के महफिल की मल्लिका बना दिया. भोजपुरी और मिर्जापुरी कजरी पर धुन छेडने वाले उस्ताद ने शहनाई जैसे लोक वाद्य को शास्त्रीय वाद्य की श्रेणी में लाकर खड़ा कर दिया. संगीत के इस पुरोधा को पाठ्य पुस्तक में शामिल किया गया है. लेकिन ताज्जुब की बात ये है कि ऐसे व्यक्तित्व पर आम लोगों तक गलत विषय वस्तु की प्रस्तुति कई सवाल खड़े कर देते हैं. बिहार टेक्स्ट बुक के दसवीं कक्षा की हिन्दी पाठ्य पुस्तक गोधूलि (भाग-2) के प्रथम संस्करण- 2010-11 में नौबतखाने में इबादत में उस्ताद के नाम को जहां तक मुझे जानकारी है कमरुद्दीन की जगह अमिरुद्दीन( पृष्ठ संख्या-92-97) प्रकाशित किया गया है. जो किसी अपराध से कम नहीं है. इतना ही नहीं बच्चे पिछले एक साल से पढ़ते आ रहे हैं. सबसे ताज्जुब की बात ये है कि उस्ताद का नाम एक बार नहीं बल्कि 12 बार गलती छापी गयी है . इसे लेखक की गलती कहें या फिर टेक्स्टबुक की लापरवाही. यह तो जांच का विषय बन जाता है.

वर्ष 21 मार्च 1916 को जनमें उस्ताद का जीवन बहुत संघर्ष में बीता. हिन्दू-मुस्लिम संस्कृति के बीच की कड़ी बिस्मिल्लाह खां सच एक मिसाल हैं. जहां लोग जाति-धर्म के पचड़े में पड़े हैं, वहीं पांच समय के नमाजी उस्ताद मंदिर में सुबह और शाम शहनाई पर भजन की धुन छेड़कर भगवान को भी अपने शहनाई वादन से रिझाते थे. संगीत एक श्रद्धा है, संगीत एक समर्पण है संगीत आपसी मेल का सुगम रास्ता भी है. सांसारिक तनाव से दूर कुछ पल बिताने के लिए संगीत ही वो अकेला साथी है जहां दिल को सकूं आता है. वक्त ने कई बदलाव लाए, कई पहलुओं से वाकिफ करवाया. जिंदगी में कई उतार चढ़ाव देखने वाले उस्ताद 21 अगस्त 2006 को हमेशा के लिए वाराणसी में हमेशा-हमेशा के लिए चिरनिद्रा में सो गए.

सबसे चौकाने वाली बात ये है कि (राज्य शिक्षा शोध एवं प्रशिक्षण परिषद् बिहार द्वारा विकसित) बिहार टेक्स्टबुक पब्लिशिंग कॉरपोरेशन लिमिटेड द्वारा प्रकाशित यह पुस्तक निदेशक( माध्यमिक शिक्षा), मानव संसाधन विकास विभाग, बिहार सरकार द्वारा स्वीकृत भी है.

इतनी बड़ी गलती पर किसी का ध्यान नहीं गया, इससे मासूमों को गलत जानकारी परोसी जा रही है, तो आगे भी वो गलतियों को दुहराते रहेंगे. इसके अलावे सोचने का विषय यह है कि किसी प्रतियोगी परीक्षा में शामिल होने वाले कहीं इसी गलती को जानते हैं, तो अपनी मंजिल पाने से वंचित रह जाएंगे.

------मुरली मनोहर श्रीवास्तव

लेखक- शहनाई वादक उस्ताद बिस्मिल्लाह खां

(पत्रकार, लेखक, पटना)

-9430623520, 9304554492

murli.srivastava5@gmail.com

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HIMMAT SE KAM LOGE TO ZMANA V SATH DEGA...HO GAYE KAMYAB TO BCHACHA-BCHCHA V NAM LEGA.....MAI EK BAHTE HWA KA JHOKA HU JO BITE PAL YAD DILAUNGA...HMESHA SE CHAHT HAI KI KUCHH NYA KAR GUZRNE KI...MAI DUNIA KI BHID ME KHONA NHI CHAHTA....