Sunday, May 31, 2009


गर्दिश में कारखाना


देश का सबसे विशाल बिस्कोमान माॅडल चावल रिसर्च सेंटर, बिक्रमगंज इकाई केन्द्रीय उदासीनता और विभागीय मनमानी के कारण गर्दिश में है। पिछले चार साल से बंद रहने के चलते 60 से अधिक कर्मचारी सहित सौ से अधिक मजदूर भुखमरी के कगार पर हैं।
ये है रोहतास जिले के बिक्रमगंज में बना माॅडल चावल रिसर्च सेंटर। जो कभी कितने मजदूरों का पालनहार हुआ करता था। लेकिन आज ये अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहा है। उम्मीद पर जी रहे इन कर्मचारियों को देखिए जिन्हें नौ साल से वेतन नहीं मिले हैं। जिससे इनके अरमान पल-पल टूटकर बिखरते नजर आ रहे हैं। बड़ी शौक से यहां नौकरी करने वाले कर्मी क्या जानते थे कि उम्र के इस पड़ाव पर इन्हें दो जून की रोटी के लाले पडे़ंगे। अपने पर आश्रित लोगों के अरमान भी इनके साथ तार-तार हो जाएंगे।
किसानों के हित और बेरोजगारी को लेकर बिक्रमगंज शहर के मुख्य मार्ग पर तत्कालीन केन्द्रीय मंत्री जगजीवन राम की अध्यक्षता में 26 जनवरी 1962 को चावल रिसर्च सेंटर का शिलान्यास किया गया था। अरबों की लागत से बने इस कारखाने को सांसद तपेश्वर सिंह की अध्यक्षता में 9 अप्रैल 1984 को मुख्यमंत्री चंद्रशेखर सिंह के हाथों किसानों को सौंप दिया गया। आश्चर्य की बात ये है कि देश की आर्थिक रीढ़ कहलाने वाले किसानों की आर्थिक मजबूती के लिए चलने वाले बिस्कोमान पर वर्ष 2000 में ग्रहण लग गये। लूट-खसोट की नीतियों से व्यवस्था चरमरा गई। इसका सीधा असर इस पर पड़ा और 2005 में यह पूरी तरह ठप्प हो गया। इसमें लगाए गए विदेशी संयंत्र भी अब खराब हो चुके हैं।
बिस्कोमान ने एक बार फिर इसकी तरफ रूख किया 8 मई 2004 को बिक्रमगंज के सभी यूनिट और सोल्मेंट प्लांट की मरम्मति के साथ रखरखाव और चालू करने के शर्त पर 11 साल के कौड़ी के मोल लीज पर प्रमेन्द्र सिंह को दे दिया गया। इसमें 3 साल तक केाई किराया नहीं देने और लीज की शर्तों को पूरा नहीं करने के चलते कार्यपालक पदाधिकारी ने सेंटर के दोनों गेटों को सील कर दिया।
सबसे ताज्जुब कि बात तो ये है कि मीरा कुमार इसी क्षेत्र से सांसद चुनीं जाती हैं मगर इस पर ध्यान देना उन्होंने भी मुनासिब नहीं समझा। सरकारें बदलती रहीं वादे होते रहे, लेकिन आज तक नहीं पूरे हुए तो इन अभागे मजदूरों की तकदीर और तस्वीर।


लालू हाल्ट पर नहीं रूकेंगी त्रेनें

अब लालू हाल्ट पर टेªनें नहीं रूकेंगी। बिहार के कब्जे से रेल मंत्रालय के हटते हीं उसमें फेर बदल शुरू हो गया है। ममता के कमान संभालते हीं राज्य के 17 ट्रेनों का 33 स्टेशनों पर से ठहराव रद्द कर दिया गया है।
लंबे समय से रेल मंत्रालय बिहार के पाले में आता था। इसलिए जहां जिसको जी में आता डिमांड किया और लालू जी उसे हरी झंडी देकर रोक देते थे। मगर अब उनके दिन लद गए। गाड़ियों के बेवजह ठहराव मानते हुए पूर्व मध्य रेलवे ने अधिसूचना जारी कर तत्काल प्रभाव से 17 स्टेशनों पर 33 टेªनों को रद्द कर दिया गया है। इन टेªनों को लालू यादव के कार्यकाल में ठहराव दिया गया था।
पटना साहिब में नहीं रूकने वाली टेªनों में श्रमजीवी एक्सप्रेस, जनशताब्दी एक्सप्रेस है। तो और भी कई स्टेशनों पर टेªनों के इहराव रोक दिए गए है। जिससे लोगों में नाराजगी देखने को मिल रही है।
अब देखना ये है कि लालू हाल्टों से टेªनों के ठहराव को हटा कर अब ममता के सरपट टेªन दौड़ाने की चाहत कहां तक पूरी होगी ये तो वक्त हीं बताएगा।

अब कैद में नहीं मुस्लिम महिला

आज के जमाने में जहां एक ओर पुरूष और महिला कदम से कदम मिलाकर चल रहे हैं। वहीं मुस्लिम महिला भी अपने आपको स्ववालंबी बनाने मे पीछे नहीं हट रही हैं और हटे भी क्यों जब मुख्यमंत्री ही इनका साथ दे रहे हैं। जी हां मुख्यमंत्री की ओर से इन मुस्लिम महिलाओं को स्वावलंबी बनाने के लिए एक नया मुहीम शुरू किया गया है। इस बारे में पेश है एक रिपोर्ट।
सुशासन के सरकार में महिलाओं को आगे बढ़ने का बहुत मौका मिला है और हर क्षेत्र में मुख्यमंत्री द्वारा चलायी गयी परियोजनाओं के अच्छे नतीजे भी सामने आ रहे हैं। इसी को आगे बढ़ाते हुए मुख्यमंत्री और मानव संसाधन विकास मंत्री ने एक अनोखी पहल शुरू की है। जो है हुनर स्वरोजगार कार्यक्रम। यह एक वोकेशनल कोर्स है जिसमे मुस्लिम महिलाएं और लड़कियां कुल 300 घंटे की पढ़ाई कर ख्ुाद का रोजगार चला रही हैं। इस परियोजना में अबतक 13700 मुस्लिम लड़कियों को प्रशिक्षण दिया जा चुका है। इसमे सिखाए जाने वाले कोर्सों में सिलाई-कटाई ग्रामिण तकनीक,ग्रामिण स्वास्थ्य और सौंदर्य प्रसाधन सरीखे कोर्य शामिल हैं।
जितनी भी प्रशिक्षित लड़कियां हैं उनके लिए 13 जून को लिखित परीक्षा भी होगा परीक्षा में जो भी लड़कियां सफल होंगी उनको प्रमाण दिया जाएगा उसके बाद उन प्रशिक्षित लड़कियों के लिए रोजगार के दरवाजे फटाफट खुल जाएंगे। मुख्यमंत्री के इस मुहिम से मुस्लिम महिलाएं बहुत खुश हैं। एक तरफ जहां ये अपना पूरा दिन घर में ही बैठ कर गुजार देती थीं और बोर होते रहती थीं जो इनके भी आगे बढ़ने का रास्ता खुल गया है।
अब वो जमाना गया जब मुस्लिम महिलाओं को घर मे कैद कर रखा पर्दे के अंदर रखा जाता था। अब तो इनका भी आगे बढ़ने का रास्ता साफ हो गया है। अब तक तो विकास के जितने भी मुहिम शुरू किए गए हैं सफल ही हुए हैं। अब बारी इस स्वावलंबी मुहिम की। इसमे कितनी मुस्लिम महिलाएं बाजी मारती हैं ये तो इम्तेहान और रिजल्ट होने के बाद ही पता चलेगा।
एक और मासूम का अपहरण.....

अपहरणकर्ताओं के बढ़ते हौसलों ने सुशासन के दावे को तार-तार कर दिया है। अगवा करने की घटनाओं की एकबारगी से जैसे बाढ़ आ गई है। मुजफ्फरपुर के डाॅक्टर दंपति के मासूम बेटे का चार दिन पहले अपहरण हुआ था लेकिन पुलिस उसके बारे में अब तक कुछ भी पता नहीं लगा सकी है। पुलिस के ढील रवैये से लोगों में भारी गुस्सा है।
डाॅक्टर सुधीर कुमार और इनकी पत्नी डाॅक्टर किरण कुमारी इनके आठ साल के मासूम ऋतिक कुमार का चार दिन पहले अपहरण हो गया है। मासूम के अगवा होने के बाद से इनकी आंखों से बहते आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे। बेजार होकर रोती इस मां को उम्मीद है कि इनका बेटा सही सलामत वापस आ जाएगा। पर चार दिन बाद भी उसका कोई सुराख नहीं मिल पाया है।
मासूम ऋतिक को कुरकुरे बहुत अच्छा लगता है। इसी को खिलाने के बहाने डाॅक्टर दंपति का कंपाउण्डर चंद्रशेखर सहनी बाहर ले जाकर उसे अपराधियों के हवाले कर दिया। कल तक का विश्वासी कंपाउंडर रूपये के लालच में अपराधी बन गया। इस घटना के बाद कंपाउंडर को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है। इसके साथ हीं इस अपहरण मामले में मोतिहारी के 6 अपराधियों को भी गिरफ्तार किया गया है। इतना होने के बाद भी बच्चे का सुराग अब तक नहीं मिल पाया है। पुलिस तहकिकात की बात कहकर अपना पल्ला झाड़ने में लगी हुई है।
इस तरह बिहार में बढ़ते अपहरण से हर मासूमों के परिजन दहशत में हैं। राजनैतिक सरगर्मियां खत्म होने के साथ अपहरण का धंधा बिहार में हावी होने लगा है। अब देखना ये है कि डाॅक्टर दंपति के मासूम को पुलिस बरामद कर पाती है या फिर सत्यम मामले की तरह उसे यहां भी निराशा हीं हाथ लगती है।
टाॅफी की दीवानी दादी
रोजाना 80 टाॅफियां खाने की लत

बच्चों की टाॅफी के लिए दीवानगी के किस्से तो दुनिया में मशहुर है...लेकिन अगर कोई 100 साल वृद्ध महिला टाॅफी की दिवानी हो जाए तो इसे क्या कहेंगे। जी हां हैरतअंगेज मगर सौ फीसदी सच....ये घटना है लौह नगरी, जमशेदपुर की जहां की कस्तुरी बाई पर दीवानगी के हद तक टाॅफियां खाने का भूत सवार है।
चाॅक्लेट-आईसक्रीम मेरी सहेलियां पहले से अब मेरे शौक है कहां, ये गाना शायद आज भी लोगों को याद होगा पर और सच भी है कि बढ़ती उम्र के साथ लोगों की पसंद में भी बदलाव होता है....लेकिन लौह नगरी की कस्तुरी बाई ने मानों उम्र के साथ पसंद में वाले इस गाने को भी झुठा साबित कर दिया है। काहे की 100 साल की उम्र में उन्हें लग गई है रोजाना 80 टाॅफियां खाने की लत
हालाaकि शुरूआत में उनकी खुराक काफी कम थी, पर पिछले कुछ दिनों से इनकी खुराक में काफी इजाफा हुआ है। अब वो रोजाना सैकड़े के बहुत करीब पहुंच जाती हैं और वो भी बिना दांतो के , पर इसके लिए भी उन्होंने एक आसान सा रास्ता भी निकाल लिया है। चलने-फिरने में लाचार कस्तुरी बाई बिस्तर पर बैठे-बैठे एक हीं ब्रांड विशेष की मुलायम सी टाॅफियों को अपने पोपले मुंह में गटक जाती हैं कुछ इस तरह ...खुदे देखिए न...कइसे टाॅफी खाते हुए मनोहारी मुस्कुराहट बिखेरते हुए अपनी लड़खड़ाती आवाज में कह रही हैं कि इसे खाने में बहुत मजा आता है।
इस उम्र में इतनी टाॅफियां खाने के बावजूद इसे कुदरत का करिश्मा हीं कहेंगे कि उन्हें इससे कोई तकलीफ नहीं,न हीं इन्हें मधुमेह है और न हीं कोई और बिमारी। लेकिन इनकी टाॅफी खाने की बिमारी ने घर के लोगों को परेशान कर रखा है...कैसे अरे भई वो ऐसे कि एक तो इससे महीने का बजट तो बिगड़ता है हीं साथ-साथ इज्जत पर भी पड़ने लगता है जब वो घर आए हुए मेहमानों से टाॅफी की मांग करती हैं और न देने पर हंगामा करने लगती हैं।
लोगों के शौक और आदतों के बारे में तो बहुत कुछ सुना और देखा होगा पर इस उम्र में ऐसी आदत के बारे में क्या किसी ने सोचा होगा। सचमुच ये तो एक नायाब शौक है जो बच्चे और बुढ़ों को एक कहने वाली बात को बदस्तुर सच कर रही है।
पीने की सजा

लगन के शुरू होते हीं मानों कैंडिडेट लड़कों के साथ-साथ उनके परिजनों की भी बांछे खिल उठती हैं लेकिन अब वो जमाना नहीं रहा जब लड़के वाले अपनी अंगुलियों पर लड़की वालों को नचाया करते थे लेकिन लड़के वाले हो जाओ सावधान क्योंकि आपकी एक गलती आपकी शादी टुटने का कारण बन सकती है....जैसा कि भुगत रहे हैं ये जनाब।
पूसा के कल्याणपुर गांव में अवधेश राय के घर में शादी को लेकर जश्न और तैयारियां अपने चरम पर थी, बारात भी पुरे रंग में रंगी अपने समय से आ रही थी...लेकिन दुल्हन के घर से चंद फासले पर हीं अचानक से मानो सारी आबो हवा हीं बदल गई और अचानक हंगामा होने लगा क्यों अरे भई दुल्हे राजा ने जाम को अपने होठों से जो लगाई थी और दुल्हन ने उसे देख भी लिया था। तो हंगामा बरपा तो लाजमी है न।
अब इसे लड़के का दुर्भाग्य कहिए या फिर लड़की का सौभाग्य की दरवाजा लगने से पहले हीं लड़की ने लड़के को मद्यपान करते हुए देख लिया फिर उसने इसकी जानकारी घरवालों को दी । फिर घर वालों ने बारातियों को तो खिला-पीलाकर भेज दिया लेकिन दुल्हे के पिता और एक अन्य को बंधक बना लिया। पर दुल्हे राजा जो कि टल्ली थे उनकी तंद्रा उस वक्त टुटी जब शादी की तैयारियों में हुए खर्चे की वापसी की सुरत में,उनकी शादी टूट चुकी थी। पर बीच में हुए इस सारे एपिसोड्स का तो उन्हें इल्म भी नहीं था पर जब जागे तो मानों अपनी दबी जुबां से यही कह रहे हो कि थोड़ी सी जो पी ली है....चोरी तो नहीं की है।
कहते हैं जो होता है अच्छे के लिए होता है। शीला भी यही सोचकर तसल्ली कर रही है । क्योंकि जिस पति के मजबूत कंधों पर शीला के सुख-दुख की जिम्मेदारी होनी थी , वो खुद हीं मदिरा के नषें में टल्ली होकर दुसरे कंधों का सहारा लेने को मजबुर था। ऐसे में उसके शराबी होने की खबर पहले मिलने से शीला कि जिन्दगानी लुटने से बच गई ।
राहें जुदा पर--------

कहते हैं खुशियां और बदनसीबी किसी से पूछ के नहीं आती है। इन दोनों का मानों चोली दामन का साथ होता है, कब ये किसका दामन थाम ले इस बात का इल्म तो किसी को भी नहीं होता है। कुछ इनकी तरह। ये हैं तो बाढ़ जिले में रहने वाले दो अलग-अलग लोग पर जिंदगी के रंग तो देखिए दो होते हुए भी इनकी किस्मत की लकीरें इस कदर मिलती हैं कि दोनों झेल रहे हैं एक सी बदनसीबी की मार।
ये हैं तो अजनबी पर जिंदगी ने इन दोनों की तकदीर में मानों एक हीं तरह की बदनसीबी की रेखाएं खिंची है। इन दोनों ने शादी के हसीन सपनों के साथ अग्नि के सात फेरे भी लिए। शुरू में तो रिश्ता बहुत मधुर रहा पर पर गुजरते वक्त के साथ इनके वैवाहिक जीवन में दुख के दस्तक ने मानों इनके अरमानों की मिट्टी पलीद कर दी। जो दरकते वैवाहिक जीवन की मिशाल है।
बात अगर बिरजू की करें तो वो अपने ससुराल वालों की मांग से परेशान है। उसके ससुरालवालों की चाहते हैं कि बिरजू अपनी बेवा मां को बेसहारा छोड, सारे जमीन-जायदात को बेच और उन पैसों के साथ बन जाए घरजमाई। उधर अर्चना की दास्तान भी कम कष्टदायी नहीं है। उसके भी सफल दांपत्य जीवन के भ्रम में गुजारे गए सारे पल तब मिथ्या साबित होने लगी, जब उन्हें दो बेटियां जनने के कारण शादी के 6 साल बाद उनकी अबोध बच्चियों के साथ घर से बेघर कर दिया गया।
बाढ़ के इन दोनो ंनिवासी की राहें तो जुदा है पर किस्मत एक सी.....इन दोनों के हीं यहां जब शहनाई के स्वर लहरियां गंुजी थी तो मानो जसे इनके अरमानों में सतरंगी पंख लग गए थे....पवर आज वो जीवन के जिस मुकाम पर खड़ंे हैं वो भी अपने-अपने ससुराल वालों के स्वार्थ की वजह से वो न केवल उनके स्वार्थी होने की गवाही देता है बल्कि उनके अरमानों के पूरे होने से पहले हीं खाक होने की दास्तां को भी बयां कर रहा है।
बेवफा पति

एंकर-विवाह एक ऐसा पवित्र बंधन जिसमें बंधते हीं मानो जैसे लोगों के अरमानों के पांख हीं लग जाते हैं और वो उड़ चलते हैं अपनी प्रेम नगरी में हजारो कहे और अनकहे सपनों के साथ बेहतर कल के लिए। लेकिन औरंगाबाद नगर थानांतर्गत फारूखी मुहल्ले की कुसुम के लिए मानो कारवां गुजर गया, स्वप्न झरे फूल से, जब उसका मीत हीं चुभने लगा उसे शुल सा , लूट गए श्रृगार सारे अपने हीं बाग के बबूल से। जी हां हम बयां कर रहे हैं एक ऐसे हीं बदनसीब की दासतां।

वीओ 1-इन्हें देखिए ये हैं कुलसुम जो खुद हीं अपनी बदनसीबी की दास्तां बयां कर रही है। ऐसा नहीं है कि इनकी जिन्दगी का आगाज हीं बदनसीबी के साथ हुआ था। कभी इनके चेहरे पर भी खुशियां दस्तक दिया करती थीं और उड़ा करती थीं ये भी अपने हवा महल में उंची पेंगे मार-माकर अपने शौहर आबिद के साथ। पर उसे क्या पता था कि निकाह में मिल रहे सारे हकूकों के साथ उसे मिलने वाला है ऐ और हकूक-बदनसिबी का और जिसे दिलाने पर अमादा है उसका खुद का शौहर-आबिद कुरैशी।
कुलसुम की जिंदगी निकाह के बारह वर्षों बाद भी अच्छी भली कट रही थी लेकिन अचानक इनके शौहर को लगा अपनी हीं भाभी से दिल्लगी करने का शौक और ये शौक इस कदर आगे बढ़ गया कि उनके अवैध संबंध भी हो गए जो कुलसुम के लिए बदनसिबी की सुनामी से कम नहीं था। क्योंकि आबिद के अवैध रिश्ते को लेकर उन दोनों के बीच बराबर झगरे होते रहते थे। जुल्म की इंतहां तो तब हो गई जब आबिद ने सारी हदें पार कर रविवार को कुलसुम को मार-पीट कर उसके सारे गहने-कपड़े छीन कर पांच बच्चों समेत उसे घर से निकाल दिया।
गौरतलब है कि आबिद के इस शर्मनाक हर्कत में उसके घरवालों का भी सयिोग रहता था। घर से निकाले जाने पर विवश होकर कुलसुम ने कानून का सहारा लिया और अपने पति समेत सारे ससुराल वालों पर भी मुकदमा दर्ज करवा दिया है। पुलिस ने मामले की छानबीन करते हुए कुलसुम के बयान के आधार पर सभी लोगों पर प्राथमिकी दर्ज कर लिया है और साथ हीं साथ उसकी सास को गिरफ्तार भी कर लिया है।
कहते हैं कि समय के साथ बदलाव लाजमी है... पर क्या कोई इस कदर बदल सकता है कि निकाह के बारह साल बाद भी अपने दिल के तार को कहीं और जोड़ कर अपनी बेगम और पांच बच्चों को सताने की इंतहां पार कर देता है। अगर बदलाव का एक उदाहरण यह भी हो सकता है जिससे किसी कि जिन्दगानी हीं लूट जाए तो हम तो यही दुआ करेंगे कि या खुदा हटा दे इस जिन्दगी से बदलाव की कहानी ताकि लिखी न जा सके इससे किसी और की बर्बादी की कहानी।
मुन्नीबाई नौटंकीवाली बढ़ायेगी धड़कन

भोजपुरी फिल्म के दर्शकों के लिए एक खुशखबरी काहे कि भोजपुरी फिल्मों की लिस्ट में 29 मई को जुड़ने जा रहा है एक नया नाम-मुन्नीबाई नौटंकीवाली का। निर्माता और निर्देशक तो इसके रिलीज के पहले हीं इसकी स्टोरी लाईन के बेसिस पर इसे आने वाले समय की हीट फिल्म बता रहे हैं...पर क्या इस फिल्म में इतना दम है,
देहाती परिवेश में बनी ये फिल्म शामियाना लगाकर गांव-देहात में नौटंकी करने वाली लड़कियों की जिन्दगी की सच्चाई बयां कर रही है- कि क्या, क्यों, कब और कइसे किन मजबूरियों के तहत एक लड़की को अपने सारे अरमानों का गला घोंट कर बनना पड़ता है नौटंकीवाली। जहां कभी उनकी पहचान माना जाने वाला उनका नाम भी नौटंकी के अंधेरे में कहीं खो जाता है। वो जानी जाती हैं तो महज नौटंकीवाली कं नाम से।
फिल्म के गानों की अगर बात करें तो रिलीज के पहले हीं ये मार्केट में धूम मचा रहे हैं। इस फिल्म का निर्माता जितेश दुबे ने किया है, जबकि निर्देशन किया है सुपरहीट निर्देशक बाली ने, जी हां वही जो भोजपुरी फिल्मों में छेदी के नाम से जाने जाते हैं वो भी इस फिल्म को लेकर खूबे उत्साहित दिखाई दे रहे हैं और हो भी क्यों नहीं इस फिलिम से खुद्दे सोलो हीरो के रूप में लाॅच जो हो रहे हैं।
वहीं फिल्म में मुन्नीबाई नौटंकीवाली की भूमिका निभा रही रानी चटर्जी भी इस फिल्म में अपने रोल से बहुते उत्साहित हैं और उन्होंने अपने रोल में जान डालने के लिए कई नौटंकीवाली लड़कियों से बात-चीत की और उनके हाव-भाव को भी सीखा। क्यों अरे भई मामला परफेक्सन का हो तो लोग कुछ भी करने पर उतारू हो जाते हैं फिर ये तो उगता हुआ सुरज यानि कि पाॅलीवुड है।
बात चाहे जो भी हो लेकिन सच्चाई तो यही है कि भोजपुरी फिल्में जो दर्शकों को अश्लीलता का तड़का लगाने के लिए जानी जाती थीं, ऐसे में मुन्नीबाई नौटंकीवाली जैसी आॅफबीट और दर्दनाक विषय पर फिल्म का बनना एक घोर आश्चर्य की बात है। इस फिल्म ने अपने सारे युनिट मेंबर्स को मजबूत पटकथा और दमदार अदाकारी के बल पर रूलाया है पर देखने वाली बात तो ये होगी की अश्लीलता के तड़के के आदि हो चुके दर्शकों को ये फिल्म कितनी रास आती है...ये तो आने वाला वक्त हीं बताएगा।
आत्महत्या और घरेलू हिंसा

आत्महत्या जिसे लोग गुनाह का दर्जा देते हैं, लेकिन सच तो यह है कि आत्महत्या स्वयं के प्रति एक कठोर निर्णय है। जिसके लिए शायद कहीं न कहीं समाज भी जिम्मेवार है। समाज में तेजी से बढ़ रहे आत्महत्या को देखते हुए आंगनबाड़ी सेविकाओं और महिला हेल्प लाईन ने संयुक्त रुप से इसके जड़ पर प्रहार करने की एक अनोखी पहल की है।
किशनगंज में आत्महत्या की बढ़ती हुई तादात को देखते हुए आंगनबाड़ी सेविकाओं और महिला हेल्प लाइन ने संयुक्त रुप से मिलकर आत्म हत्या के जड़ पर प्रहार करने की ठान ली है।जिसके तहत आंगनबाड़ी सेविकाएं ऐसी घटनाओं को लिखित रुप से महिला हेल्प लाइन तक पहुंचाएंगी और फिर हेल्पलाइन इस पर कारवाई करेगी। ऐसा करने से इस तरह की घटनाओं पर कुछ हद तक अंकुश जरुर लगाया जा सकता है।
इसके अलावा समाज में महिलाओं की दशा को लेकर जिला कार्यक्रम पदाधिकारी-अजहरुद्दीन ने हेल्प लाइन के अधिवक्ता के साथ बैठक की जिसमें सभी प्रखंडों के सी.डी.पी.ओ. भी मौजूद थे। इस बैठक में आत्म हत्या के रोकथाम के लिए घरेलू हिंसा सहित विभिन्न पहलूओं पर विचार किया गया।
अब महिला हेल्पलाइन आत्म-हत्या के अलावा 15 से 50 वर्ष तक मौत या संदिग्ध मौत पर कड़ी नजर के साथ-साथ हत्या के संभावित कारणों जैसे अज्ञानता , घरेलू हिंसा ,गरीबी , आदि का निवारण भी कराएगी।जिसमें जिले में सेविकाओं की बड़ी फौज का होना है ,मानो हेल्पलाइन के लिए वरदान साबित साबित होगा।
बात चाहे जो भी हो , लेकिन सच्चाई तो यही है कि समाज में आत्महत्या की बढ़ती हुई घटनाएं चिंतनीय मुद्दा जरुर है ,ऐसे में इस तरह के पहल से महिलाओं की दशा में सुधार होने की संभावनाएं जरुर दिखने लगी है। अभी ये तो आगाज है, पर इसका अंजाम कैसा होगा ? ये तो आने वाला वक्त हीं बताएगा।
अदालत ने किया कुत्ते को बरी....

कुत्ते...तो आपने जरुर हीं देखें होंगे....जी हां...वही चैपाया जानवर जो लावारिश के रुप में रोड पर....और पालतू के रुप में हमारे घरों के स्टेटस और खुबसुरती को जार चांद लगाते....लेकिन आज हम आपको दिखने जा रहे हैं....एक स्पेशल कुत्ते की कहानी....बना दिया है....

पूर्णिया के अनुमंडल दण्डाधिकारी के न्यायालय में घूम रहे कौनो पालतू कुत्ता नहीं हैं...बल्कि....ई स्पेशल कुत्ता है...जिसे न सिर्फ पागल करार दिया गया है...बल्कि मामला भी दर्ज..... है.....अब जरा गौर फरमाइए कि आखिर ऐसी ....क्या बात हुई जिसने कुत्ते को न र्सिफ पागल करार दिया...बल्कि...मामला भी दर्ज कर दिया...
दरअसल हुआ यूं कि....पूणियां निवासी राजकुमारी देवी के कुत्ते को उनके पड़ोसी ने पागल करार दे कर सीधे...... कोर्ट में हीं मामला दर्ज करवा दिया....अरे भई उसने उन्हें काटा जो था.....और उनका आरोप था कि काटने से उनकी जान भी तो जा सकती थी..... ...अब आप हीं कहिए....सांप अगर फुंफकारे नहीं, कुत्ता अगर काटे नहीं....फिर तो चाल,प्रकृति, बेमाय, तीनों साथ हीं जाय वाली कहावत....हीं पूरी तरह से गलत साबित हो जाएगी....
इतना हीं नहीं....ये मामला तब और दिलचस्प हो गया....जब मामला दर्ज होने के बाद तत्कालीन एस.डी.ओ. ने कुत्ते को फांसी की सजा देने देने का आदेश दिया....लेकिन सामाजिक संगठनों एवं मेनका गांधी के हस्तक्षेप के बाद....कुत्ते की फांसी की सजा को रद्द कर दिया गया....इतने के बावजूदो मामला यहां खत्म नहीं हुआ...बल्कि किसी फिल्मी पटकथा की तरह आगे बढ़ी....और एक बार फिर उस कुत्ते पर 107 के तहत मामला दर्ज कराया गया......तो कहिए...क्यों है न कहानी पूरी फिल्मी....
कहानी....भले हीं पूरी फिल्मी लगती हो पर....सच्चाई तो यही है कि भारत जैसे देश में जहां...न्याय और न्यायिक व्यवस्था को जितना सम्मान दिया जाता है....वैसे में इस तरह के केसों का मामला और सुनवाई दोनों हीं नयायालयों के सम्मान को ठेस पहुंचाना तो है हीं.....साथे-साथ उन लोगों की जिन्दगी के साथ खिलवाड़ भी है....जो सालों साल...जेल में बैठे अपनी बारी....के आने की प्रतीक्षा करते रहते है.....
अस्तित्व खोते मंदिर

सरकार भले हीं...बड़े-बड़े वादे करती हो...अपनी धरोहरों को बचाने की...उसकी देखरेख करने की....पर आज वो सारे दावे इस समय टांय-टांय फिस साबित हो रहे हैं....जिन मंदिर-मस्जिदों में चुनाव जीतने की मन्नत मांगते हैं राजनेता......चुनाव जीतने के बाद उन स्थापत्य कला की धरोहरों पर नजर-ए-इनायत करना मुनासिब नहीं समझते....जिससे उनकी स्थिति बद से बद्तर होती जा रही है।
खंड़हर समझने की भूल मत कीजिएगा...काहे की ई है...रोहतास जिले का कैमूर पहाड़ी....जहां घने जंगलों में स्थित है हजारांे वर्ष पुराना गणेश मंदिर....जिसमें से गणेश की प्रतिमा तो वर्षों पहले गायब हो गई थी...लेकिन मंदिर में लोगों की आस्था अब भी बनी हुई है.....लगभग 20 फीट उंचे इस मंदिर को बड़े-बड़े पत्थरों से बनाया गया था.....लेकिन रखरखाव के अभाव में जर्जर हो गयी है.....अब इस मंदिर के पत्थर खिसकने लगे हैं......ऐसे में मंदिर का अस्तित्व हीं समाप्त होता नजर आ रहा है....
कहा जाता है...कि रोहतास किला के पूर्वी घाट पर स्थित गणेश मंदिर का निर्माण....राजा हरिशचन्द्र के पुत्र -रोहिताश्व ने करवाया था....जिसे मुगलकाल में इस प्रदेश के सुबेदार-राजा मानसिंह ने इस मंदिर की मरम्मत कराई थी...फिर क्या था....जिसने भी इसे देखा वो इसकी बनावट और प्राचीनता का कायल हीं हो गया....जिसकी गवाही दे रहा है इतिहास का वो पल....जिसने इसे स्थापत्य कला का अद्भुत नजारा देखा था...और अंग्रेज इतिहासकार फ्रेमसीज बुकानन को इसका कायल बना दिया था...
गणेश मंदिर को किसने बनवाया ये तो इतिहास के गर्भ में छुपा हुआ है....लेकिन आज रखरखाव के अभाव में जर्जर और अपना अस्तित्व खोते इस मंदिर को आज जरुरत है....अपने रख रखाव की......देखना ई है कि....कला और संस्कृति के इस धरोहर को बचाने के लिए सरकार कौन सा कदम उठाती है...ई तो आने वाला समए बताएगा।
कराह रही जिन्दगी....

कभी रौशन हुआ करता था...इनका भी आशियाना खुशियों.......लेकिन घड़ी के कांटों को जैसे किसी बलवान ने दबोच लिया है...और पूरी शक्ति से नहीं छठ रहे हैं....इनकी उदासीनता के बादल.....ये मर्मस्पशी कहानी है....पटना की कमला खातून की जो पिछले कई महीनों से बिमारी रुपी अभिशाप से लड़ने को मजबूर है...
बना के क्यों बिगाड़ा रे....बिगाड़ा रे नसीबा.....ये गाना पटना के कमलानेहरु इलाके में रहने वाली.....मुन्नी खातुन पर सटीक बैठता है.....ये देखिए....ये हैं...मुन्नी खातुन....जिनकी उम्र तो महज 35 साल है...लेकिन बीमारी ने उसे 50 का बना दिया है...और आज उसके चेहरे की लकीरें...उसकी,लाचारी,बेबसी...और सारे दर्द बयां करती है...दर्द...एक पत्नी का घर के प्रति, दर्द एक मां का अपने 3 बच्चों के प्रति...उन्हें थपकी देकर कभी सुलाने ,तो कभी प्यार से चुमकर पास बुलाने की...
मुन्नी कुमारी भी आम लोगों जैसी हीं थी...बिल्कुल सामान्य...लेकिन 6 महीने पहले हुए एक एक्सीडेंट के बाद मुन्नी के पैरों में सुजन आ गई थी....और जब ड़ाक्टर को दिखाया गया...तो पैर काटने की नौबत आ गई.....इस खबर ने तो जैसे मुन्नी के सारे सपनों को हीं बिखेर कर रख दिया....
लेकिन जरा सोचिए....वो कहते हैं न कि नंगा नहाएगा क्या....और निचोड़ेगा क्या....वैसे हीं अपनी तंगहाली...से पहले से जूझ रहे....इस परिवार.....के लिए.....ऐसे में आॅपरेशन के लिए...पैसे जुटा पाना....बहुत मुश्किल था.....क्योंकि आॅपरेशन का खर्च 90 हजार जो था....और वो इनके बस का नहीं था....लेकिन मुन्नी के पति सराज बक्खो ने हार नहीं मानी और मुहल्ले वालों की मदद से उसने 50 हजार रुपए चंदा से जमा किसा और रेस्ट पैसों के लिए उसने अपने घर और जमीन भी बेच दी....ताकि अपनी बेगम को जानलेवा बिमारी से बचाया जा सके.....लेकिन इसके आगे के ईलाज के लिए ये पैसों के मोहताज हैं।
सराज की मेहनत ने....मुन्नी को आगामी....भयावह और जानलेवा बिमारी से तो बचा लिया....लेकिन आज वो अपनी इस बोझील जिन्दगी से मानो मौत की गुहार लगा रही है.....जिसकी वजह दूसरों के भरोसे बांकी की जिन्दगी को काटना है...इतनी हीं नहीं...पहले से हीं मुफलिसी के दिन काट रहे इस परिवार.....के लिए तो मानो अब फांकाकशी के दिन भी आ गए हैं....क्योंकि इनकी बच्चों की थाली या तो खाली होती है...या फिर दूसरों के सहारे हीं भरती हैं...पर...मुन्नी के बच्चों को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता वो तो आज भी अपनी मां के ठीक होने का इंतजार कर रहे हैं।
बात चाहे जो भी हो लेकिन एक ओर मुन्नी कुमारी आज शायद अपने शब्दों में यही कह रही होगी कि...मैं खुद को कमटा नहीं सकती...जीने की चाहत है...तुम सभी के लिए...लेकिन कैसे बताउं की इस कशमकश में दर्द कितने हैं मैंने पीए....और दुसरी तरफ उसका परिवार आज भी इस आस में जी रहा है कि शायद कोई....हाथ इनके सहायता के लिए भी बढ़ेंगे....

Friday, May 29, 2009




कोचिंगों पर आइटी का डंडा
आयकर के छापे ने दिखाई रंग। कोचिंग संस्थानों की अब खैर नहीं। आयकर विभाग के कसे शिकंजे से अब कोचिंग संचालकों की नीन्द उड़ गई है। सूबे के मशहूर कोचिंग सेन्टरों ने अपनी सवा सात करोड़ रूपये का किया खुलासा। यह आयकर विभाग की छापामारी का नतीजा है।
पटना का मशहूर कोचिंग सेंटर जो कभी अपनी आमदनी मात्र 15 लाख बताकर सलाना 4 लाख रुपये हीं टैक्स दिया करते थे। अब ये टैक्स के रुप में सवा दो करोड़ रुपये चुकता करेंगे।
आयकर विभाग ने गुरुवार को इनके 20 ठिकानों पर छापा मारकर करोड़ो रुपये की चल-अचल संपति के साथ उसके दस्तावेज बरामद किए थे। छापामारी ने भारी मात्रा में टैक्स चोरी उजागर की। आयकर के कठोर कदम से कोचिंग संचालकों ने अपनी बेनामी संपति को कबूल कर लिया। छापामारी में जहां एक करोड़ नगद पाया गया वहीं 32 बैंक खाते भी सील किए गये हैं।
लंबे समय से कोचिंग संचालक करोड़ो रुपये टैक्स का चुना लगाते रहे हैं। लेकिन अब आयकर की नजरों से ये बच नहीं पाएंगे।

अब शादी हो जाएगी--------
गरीब और लाचार लड़कियों की। जिनकी शादी पैसे की कमी के चलते नहीं हो रही थी। लेकिन अब इनके भी हाथ पीले होगें अब ये भी दुल्हन बनेंगी। इनके सपनों के राजकुमार को हकीकत में लाने का बीड़ा उठाया है महावीर मंदिर ने।
महावीर मंदिर न्यास समिति ने समाज के ऐसी कन्याओं की शादी कराने के लिए हाथ बढ़ाया है जिनकी शादी गरीबी के चलते नहीं हो रही थी। इसके लिए मंदिर की ओर से जानकी विपन्न विवाह योजना शुरू की गयी है। इस योजना में ऐसी लड़कियों की शादी कराई जाएगी ,जिनके पिता की हत्या अपराधियों द्वारा कर दी गयी हो या फिर किसी दुर्घटना में उनकी मौत हो गयी हो।
सभी लाचार और बेबस लड़कियों की शादी धार्मिक विधि विधान से महावीर मंदिर की ओर से करायी जाएगी। इसके लिए कदम कुआं के मछली गली में एक विशाल मंडप तैयार किया गया है। विवाह के लिए वर वधू की ओर से महावीर मंदिर में पंजियन कराया जाएगा। जो 20 मई से शुरू होगा। जो लड़का लड़की शादी के लिए तैयार होंगे उनको मंदिर की ओर से साड़ी और धोती दिया जाएगा। इसके लिए शादी में जितनी सामग्री पूजा पाठ के लिए लगेगी सब मंदिर के ओर से ही दी जाएगी। इस विवाह में दोनो पक्षों के 25-25 लोग शामिल हो सकते हैं। उनके लिए भोजन की व्यवस्था भी समिति ही करेगी
अभी तक कितनी ऐसी कन्याएं हैं जो दहेज की मांग के वजह से कुंवारी बैठी हुयी हैं। इनको इंतजार रहता है कि इनके पास भी कोई आकर कहे कि मैं तुम्हें अपना जीवन साथी बनाउंगा। राह तकते इनकी ख्वाहीश मर जाती है पर कोई नहीं आता है। क्योंकि सब लोभी हैं दहेज के। जब तक दहेज नहीं मिलेगी शादी नहीं करूंगा। फिर कौन करेगा इनसे शादी क्या ये कुंवारी बैठे रहेंगी। इन्हीं बातों को ध्यान में रखते हुए महावीर मंदिर की ओर से जानकी विपन्न योजना शुरू की जा रही है।


प्यार के दुश्मन
पे्रम शब्द सुनकर ही लगता है कि ये अधूरा शब्द जिसके भी जिंदगी में घुला उसकी भी जिंदगी अधूरी ही रह जाती है। प्यार की शुरूआत जिस खुशी से होती है असका अंत भी उतना ही दुखद होता है। बोकारो में भी एक प्रेमी युगल का यही हश्र हुआ। आइए देखते हैं इस पर एक रिपोर्ट।
(गीत-मेरे प्यार की उमर हो इतनी सनम ...तेरे नाम से शुरू...तेरे नाम से खतम)
बोकारो के पीड़ाजोड़ा थाना के सरदहा गांव में एक प्रेमी युगल को बाप ने पहले तो खूब पीटा फिर बाद में फांसी लगाकर दोनों की हत्या कर दी। दरअसल बात कल रात की है। लड़की के पिता ने दोनों प्रेमी युगलों को मिलते हुए देख लिया। इनको क्या मालूम कि ये रात इनके मिलन की आखिरी रात होगी। लेकिन हुआ ऐसा ही।
लड़की का बाप दोनों को पकड़कर अपने घर ले आया और एक कमरा में बंद कर दिया। उसके बाद दोनों की खूब पीटाई की। जब इससे भी बात न बनी तो दोनों को फांसी लगाकर हत्या कर दी। इस घटना में लड़की के परिवार के और लोग भी शामिल हैं।
इस बात की जानकारी लड़के के परिवार वालों को जैसे ही मिली सब लोग तिलमिलाए दौड़े-दौड़े लड़की के घर पहुंचे। यहां पहुंचने के बाद दोनों पक्षों मे जमकर मार पीट हुयी। जिसमे दो लोग घायल भी हो गए। जैसा अक्सर होता है सब कुछ होने के बाद पुलिस घटनास्थल पर पहुंची है ,और मामले की छानबीन करने लगी। कई लोगों पर एफआईआर भी दर्ज हुआ है।
इनको क्या मालूम था कि एक मुलाकात इनकी जान ही ले लेगी। अगर इनको मालूम होता तो शायद ये मिलते ही नहीं। प्यार की कीमत इस कदर चुकानी पड़ती है। इस घटना को सुन सबके जुबान से यही निकली प्यार ना बाबा ना।


गाड़ीयों के हाॅर्न से मरीज परेषान
स्ूाबे का सबसे बड़ा अस्पताल है पीएमसीएच। जहां पर बिहार के गांव और षहर के हर तबके के लोग आते हैं अपना इलाज कराने .....चाहे वो गरीब हो चाहे अमीर....अस्पताल में आए मरीजों को चाहीए होता है.....और अस्पतालों मे षातिं माहौल होता भी है। लेकिन पीएमसीएच का हाल ये है कि दिनभर इसके परीसर में हाॅर्न बजाते गाड़ीयो से मरीज परेषान रहते हैं।
ं अगर आपने कभी किसी अस्पताल में गया होगा तो देखा होगा कि वहां लिखा रहता है कीप साइलेंस या कृप्या षांतीं बनाए रखें। गाड़ी को कोई हाॅर्न बजाते अंदर न लाए इसके लिए मेन गेट से कुछ ही दूरी पर दो दो सुरक्षाकर्मी खडे रहते हैं लेकिन परिसर मे कौन किस स्थिती में अंदर प्रवेष कर रहे हैं इससे सुरक्षाकर्मीयों को काई मतलब नहीं है। हथुआ वार्ड के मरीजों का कहना है कि पुरे दिन तो गाड़ीयों के हार्न की आवाज सुनकर दिनभर चैन से आराम भी नहीं कर पाते हैं रात में ही आराम मिलता है।
पटना मेडीकल काॅलेज हाॅसपीटल साइलेंस जोन के श्रेणी में आता है लेकिन ये सिर्फ कहने की बात है...पूरे दिन अस्पताल परिसर में गाड़ीचालक अपने मूड में गाड़ी चलाते हैं। सुरक्षा के लिए सुरक्षाकर्मियों की बहाली भी की गयी हैं। असपताल के उपाधिक्षक ने भी बताया कि अगर कोई चालक गाड़ी हाॅर्न बजाते अंदर ले आता है तो उसपर जुर्माना किया जाता है....यहां तक कि एमबुलेंस चालक भी बिना हाॅर्न बजाए ही गाड़ी को अंदर ले आते हैं। इतना कुछ करने के बावजूद भी गाड़ी चालक आराम से हाॅर्न बजाते असपताल परिसर में अपनी गाड़ी दौड़ाते हैं।
पाबेदी के बावजूद भी बज रहे हैं हाॅर्न ....अस्पताल परीसर मे तो रहना चाहीए षांती का माहौल...ये काम वही लोग करते हैं जिनके मरीज यहां पर एउमिअ हैं ...मरीज का ख्याल रखते हुए यहां आए लोगों को षांती बनाए रखना चाहीए।



लुट गए किसान
किसान ख्ूाब मेहनत कर खून पसीने बहा खेती करते हैं क्योंकि वही उनकी कमाई होती है। उसी मेहनत से विक्रम के किसानों ने खेती की औरब धान भी खूब हुआ। जब उसको क्रय केन्द्र पर बेचने के लिए ले गए तो पुछने वाला कोई नहीं है। और धान से फिर से पौधे निकलने शुरू हो गए।
ये देखिए हजारों बोरे धान जो क्रय केन्द्र में पड़े हुए हैं जिससे फिर से पौधा निकलना शुरू हो गया, और इसको पुछने वाला कोई नहीं है। ये धान के बोरे लवारिश नहीं पड़े हैं बल्कि ये विक्रम के किसानों के धान। बहुत उम्मीद से अपनी खून पसीने से सींच धान उपजाया था इनलोगों ने। फिर क्रय केन्द्र पर बेचने के लिए ले गए। लेकिन इहां इस धान के बोरीयों को देखने आ पूछने वाला कोई नहीं। फिर इसका वाजिब दाम कहां से मिलेगा। बिजड़े के दाम भी नहीं मिला। क्रय केन्द्र के अधिकारियों की लापरवाही से धान बर्बाद हो गए। जब सरकार कृषि वर्ष मना रही है तो किसान अपनी दुर्दशा पर आंसू बहा रहे हैं। सारी मेहनत पर पानी फिर गया।
जब किसान क्रय केन्द्र पर पहुंचे तो देखते हैं कि इनके धान से पौधे निकलने शुरू हो गए हैं। बड़ी आशा के साथ क्रय केन्द्र पर धान लेकर आए थे बेचने, ये सोच कर कि जो पै सा आएगा उससे अपनी बेटी के हाथ पीले करेंगें। लेकिन आशा के बदले निराशा हाथ लगी। धान क्रय को लेकर हमेशा इनको आश्वासन मिलते रहा है कि धान की खरीद कर ली जाएगी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ और अभी तक पड़े हैं हजारों बोरे धान।
सभी किसानों की मेहनत मिट्टी में मिल गयी है। अब तो इन मेहनती किसानों के लिए बस एक ही कहावत चरितार्थ बैठता है कि अब पछतावत होत क्या जब चिड़िया चुग गयी खेत। खैर अभी तक जितने धान के बोरे बचे हुए हैं अगर इसको भी क्रय केन्द्र नहीं लेती है तो ये भी बर्बाद हो जाएंगे और फिर किसान कहीं के नहीं रहेंगे।


कुत्तों की समाधी पर पूजा-अर्चना
कहा जाता है कि औलाद जिगर का टूकड़ा होता है.....लेकिन महाकवि जानकी बल्लभ षास्त्री के लिए अनबोलता पषु हीं उनके बच्चे है.....
मुजफ्फरपुर में महाकवि अपने कुत्तों के मरने के बाद उनकी समाधी बनायी और हर रोज इनकी पूजा अर्चना भी करते हैं।
तेरी मेहरबानियां ...तेरी कदरदानियां......कुर्बान तुझपे मेरी.....तेरी मेहरबानियां.....ये गीत पूरी तरह से दरसाता है कि सचमें कितना वफादार होते हैं..... बात सदियों पुरानी है धार्मिक गुरूओं और महापुरूषों की समाधी पर हर कोई सिर झुकाता है......पूजा अर्चना करता है....मगर कुत्तों की समाधी बनाना और उनकी पूजा अर्चना करना अजूबा जरुर लगता है.....लेकिन यह सच है कि मुजफ्फरपुर के महाकवि जानकी बल्लभ षास्.त्री का पषुओं के प्रति इतना प्यार है कि उनके मरने के बाद समाधी भी बनवाते हैं......यही नहीं हर रोज समाधी पर जाकर पूजा-अर्चना भी करते हैं....इनके पास दो कुत्ते थे जिनका नाम भालचन्द्र और विनायक था....लेकिन 1997 में भालचन्द्र और 1998 में विनायक ने इनका साथ छोड़........भगवान को प्यारे हो गए।
इंसान हो या जानवर आत्मा सब में होती है.....क्योंकि इंसान और जानवर दोनों भगवान की हीं देन हैं....इनका सम्मान क्यों नहीं ......इनकी समाधी क्यों नही बन सकती है.......अगर कोई इंसान किसी को अपना समझने लगता है तो ,धोखा भी वही देता है....मगर जानवर ऐसा नहीं करता ,खासकर कुत्ते....वो जिसका खाते हैं उसके प्रति ईमानदार होते हैं....और मरते दम तक। महाकवि जी जितना अपने स्वास्थ्य की चिंता नहीं करते उससे अधिक चिंता अपने जानवरों का करते है।
आज के दौर में किसी को फुर्सत नहीं है ........कि काई किसी के प्रति प्यार दिखाए या निभाए......लेकिन महाकवि जानकी बल्लभ षास्त्री इसके मिसाल हैं....इनके द्वारा बनाए गए जानवरों के समाधी और उससे भी ज्यादा उसपर रोज पूजा करना जरुर लोगों को भाव-विभोर कर डालता है-।-------रजिया सुल्ताना
नक्सलियों का प्रकोप बच्चों पर
पेट की भूख इंसान को कुछ भी बना देता है....वो भी ऐसे लोगों को जो बिल्कुल गरीब और लाचार होते हैं....और जिनको सरकारी सुविधा नहीं मिल पाता है... जितने भी पिछड़े जाति और आदिवासी बच्चे हैं वो भी जंगलों मे रहने वाले..... इनलोगों को नक्सली बहला फुसला कर ले जाते हैं और बना देते हैं नक्सली। हम बात कर रहे हैं रोहतास प्रखण्ड की।
आजादी के 60वर्ष बित जाने के बाद भी रोहतास के प्रखण्डों में रहने वाले आदिवासी ,महादलित अनुसुचित जाति और जनजातियों को सरकारी सुविधा नहीं मिल पायी है...जिसके चलते इन क्षेत्रों मे भूखमरी अषिक्षा और बेरोजगारी फैला हुआ है। यही वजह है कि यहां के बस्तियों मे रहने वाले भोले-भाले युवक युवतियों को बहका कर ले जाने में नक्सलियों को सफलता मिलती है।
आदिवासी बस्तियों में षिक्षा , स्वास्थ्य, सड़क ,बिजली इन सारी सुविधाओं का घोर अभाव है सरकार अपनी ओर से इन बच्चों के पढ़ाई के लिए हर माह लाख रूपये खर्च करती है लेकिन सरकारी षिक्षक षिक्षा पदाधिकारियों से मिल का अपने बांट लेते हैं.....दर्जनों सरकारी स्कूल हैं मगर न यहां कोई पढ़ने जाता और नाही काई पढ़ाने......सारे बच्चे अपने माता पिता के साथ काम करते हैं या फिर पेट का आग बुझाने के लिए षिकार करते हैं। ऐसे में नक्सलियो को मिल जाता है मौका और मार लेते हैं बाजी....तरह-तरह का प्रलोभन देकर आसानी से अपनी ओर मिलाने में सफल हो जाते हैं बच्चों को।
सरकारी उपेक्षा के षिकार ये बच्चे नक्सलीयों के साथ जाने को विवष हैं....अगर यही रवैया रहा तो नक्सलियों द्वारा विकास को मुद्दा बनाकर पूरे क्षेत्र को अपने चपेट में ले लिया जाएगा।


महिला टैªफिक करेंगी वाहन चेकिंग
अब औरत किसी भी क्षेत्र मे पीछे नहीं हैं। हर क्षेत्र में पुरूष से कदम से कदम मिलाकर चल रही हैं। अभी कुछ ही दिन की बात है कि महिला टैªफिक पुलिस को आपने देखा होगा इन्हीं लोग के हाथों में वाहन कंट्रोल का कमान संभालने को मिला है और संभाल भी.रही हैं ....और अब चुनाव को देखते हुए इन्हीं के जिम्मे दिया गया है वाहन चेकिंग का।
अगर आप षहर में गाड़ी से कहीं जा रहे हैं और आपके पास कोई महिला अधिकारी वाहन चेकींग करने के लिए आ गई तो चैंकिएगा नहीं.....क्योंकि अब ये भी करेंगी वाहन का चेकिंग...वाहन चेकिंग का जिम्मादारी अब महिला अधिकारियों को सौंप दिया गया है। ये किसी भी चैक चैराहों पर किसी भी गाड़ी को रोक कर गाड़ी को चेक कर सकती हैं साथ हीं गाड़ी के कागजात को भी चेक करेंगी।
ये जिम्मेवारी महिला अधिकारीयों को सिर्फ चुनाव तक ही दिया गया है....ऐसा इसलिए किया गया है कि चुनाव के चलते साढ़े तीन हजार से अधिक अधिकारी दूसरे जिला में भेज दिए गए हैं। इसीलिए एसएसपी और डीएसपी वाहन और हथियार चेकिंग के लिए महिला अधिकारियों को ये काम सौंप दिए। सबसे बड़ी बात तो ये है कि चुनाव का वक्त होने के चलते वाहन के जरिए महीलाओं द्वारा हथियार को अपराधी तक पहुंचाया जाता...इस तरह के महीला को चेक एक महीला अधिकारी ही कर सकती है....हरएक डीएसपी को दस-दस महिला आरक्षी ओर दो-दो महिला एसआई उपलब्द्ध करा दिए गए हैं। जहां ये लोग अपने सुविधा अनुसार अपने -अपने थानों मे रोटेषन कर वाहन का चेकिंग कराएंगे।

अनाथालय हुआ अनाथ
जब किसी मासूम को कहीं सहारा नहीं मिलता है या जिसकी मां बच्चे को पैदा कर सड़क किनारे कहीं पगडंडी पर फेंक देती है तो उस नाचीज मासूम को रखने के लिए बस एक ही जगह होता है और वो है अनाथालय। अनाथालय को चलाने के लिए सरकारी अनुदान चाहीए होता है ,लेकिन भागलपुर का अनाथालय तो खुद हीं अनाथ बना हुआ है। आइए देखते हैं एक रिपोर्ट।
ये है रमानंदी देवी हिंदू अनाथालय ,जो भागलपुर के नाथनगर में है। जितने भी नवजात बच्चे सड़क या कहीं पगडंडी पर फेंके हुए होते हैं यही अनाथालय अपनी आगोश में लेता है। अनगिनत बच्चों का अभिभवक बने इस अनाथालय का देखरेख करने वाला कोई नहीं है जो इसका उद्धार कर सके। 1925 में स्थापित इस अनाथालय में आज 70 बच्चे हैं। जिनमें 8 लड़कियां और बाकी लड़के हैं।1982 में दीनबंध्ुा योजना के तहत इसको सरकारी अनुदान तो मिलता रहा लेकिन दस पन्द्रह साल के बाद वो भी बंद हो गया। तब से यह शहर के कुछ नामचीन और गुमनाम दाताओं द्वारा दिए जा रहे अनुदान पर चल रहा है।
इसमे रहनेवाले बच्चों को अच्छी शिक्षा तो दी ही जाती है उनके कैरियर और शादी ब्याह के बारे में निर्णय यहीं से होता है। छात्रों को पढ़ाई संस्कार के अलावा मनोरंजन के साधन भी उन्लब्ध कराये गए हैं। इनकी देखरेख करने के लिए चार आया एक नर्स और एक डाॅक्टर इनके साथ रहते हैं। अनाथालय प्रशासन के लिए एक कमिटी गठित की गई है। जिसका हर तीन साल के बाद चुनाव होता है। इहां रहने वाले बच्चों की मानें तो इनको इहां प्यार दुलार मिलता है कि कभी मां बाप की कमी हीं नहीं खलती है ।
अनाथालय तो होता ही है अनाथ ,बेसहारा बच्चों के लिए। इनकी सहायता करने के लिए हर कोई अपने स्तर पर हाथ बढ़ाता है। खासकर सरकार का अनुदान ऐसे जगहों पर ज्यादा होती है। लेकिन इस अनाथालय के लिए सरकार की ये उदासीनता ठीक नहीं है।



बदहाल किला
( उपेक्षित है दाउद खां का किला
)
अपनी जांबाजी के लिए हिन्दुस्तान में विख्यात मुगल सम्राट औरंगजेब के सिपहसलार दाउद खां का किला अपने वजूद को लेकर संघर्ष कर रहा है। इस लुप्त होते धरोहर को बचाना तो दूर सरकारी उदासीनता का दंश झेल रहा है।
(बैक ग्राउण्ड म्यूजिक-कल चमन था, आज एक सहरा हुआ,देखते हीं देखते ये क्या हुआ)
ये है बिहार के औरंगाबाद का दाउद खां का किला। जो कभी लोगों के आकर्षण का केन्द्र हुआ करता था। अपनी राजसी आन-बान-शान के लिए मशहुर यह किला आज खंडहर में तब्दील हो गया है। वो भी क्या जमाना था जब इसकी रखवाली में हजारों लोग लगे रहते थे। आज वही किला लोगों के आने की राह निहारता है। शायद कोई आएगा हमारी वजूद को बचाएगा। पर आज तक इसकी तरफ किसी ने नजर-ए-इनायत करना मुनासिब नहीं समझा। जिससे यह अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहा है।
वर्ष 1659 में औरंगजेब ने दाउद खां को बिहार का सूबेदार नियुक्त किया। जिसमे मनौरा, अंछा, और गोह परगना सौंपकर अपने साम्राज्य के विस्तार के लिए रखा था। वर्ष 1660 में में उसने औरंगजेब के आदेश से पलामू किला पर फतह कर अपनी बहादूरी का सिक्का जमाया। उसके बाद गया कोठी, कुंडा किला पर फतह कर हिन्दुस्तान में अपना परचम लहराया। वर्ष 1664 में अंछा परगना के अंतर्गत दाउदनगर शहर बसाया। शहर बसने के साथ इसी साल किला निर्माण शुरु करायी, जो 1674 में बनकर तैयार हो गया।
शिल्प और वास्तु कला का बेजोड़ नमूना प्रस्तुत करने वाले इस किले के जीर्णोद्धार के लिए आज से दो वर्ष पहले विधायक सत्यनारायण यादव के फंड से 8 लाख रूपये आवंटित किये गये थे। चाहारदीवारी बनाने के लिए। चाहारदीवारी बनना तो दूर इस किले में अब तक एक ईंट भी नहीं रखी जा सकी है।
किला को बचाने के लिए स्थानीय लोगों ने कई बार कोशिश की। सबसे बड़ी बात तो यह है कि सरकारें बदली पर नहीं बदली तो इन धरोहरों की तकदीर और तस्वीर।

धान उत्पादन में आत्मनिर्भर हुआ बिहार


कृषि के रोड मैप ने रंग दिखाना शुरु कर दिया है। इसका नतीजा है कि धान उत्पादन में बिहार आत्मनिर्भर हो गया है। मुख्यमंत्री तीव्र बीज विस्तार कार्यक्रम और बीज वितरण के लिए लाखों क्विंटल धान का बीज उपलब्ध है।
इन पैकेटों में धान का बीज है। इस बीज को चयनित किसानों के बीच आधे दाम पर उपलब्ध कराया जा रहा है। खरीफ में 20 प्रतिशत बदलाव के तहत लगभग 4 क्विंटल धान के बीज की जरूरत है। पिछले साल किसानों को उपलब्ध कराये गये बीज का असर इस साल असर दिखाई दे रहा है। इसके अलावे सरकार के कृषि फार्म में 40 हजार क्विंटल बीज का उत्पादन हुआ है। इसकी आपूर्ति बिहार राज्य निगम को की गयी है।
मुख्यमंत्री तीव्र बीज विस्तार कार्यक्रम के तहत 40,514 गांवों के 80,128 चयनित किसानों के बीच 4,862 क्विंटल और बीज ग्राम योजना के के लिए चयनित 529 गांवों के 26,450 किसानों के बीच 1,587 क्विंटल धान बीज आधे दाम पर उपलब्ध कराए गए। बीज के लिए ऐसे किसानों का चयन किया गया है, जिनको 2008 में लाभ नहीं मिला है। जिला कृषि अधिकारियों के अनुसार बीज वितरण के लिए राज्य के बाहर से बीज की खरीद नहीं पायी है।
खरीफ 2009 के लिए मुख्यमंत्री तीव्र बीज विस्तार कार्यक्रम के लिए 39,124 गांवों के 78,241 किसानों का चयन किया गया है। इनके बीच 4,695 क्विंटल बीज का वितरण किया जायेगा।

मुरझाने लगे मालाकार


फूल की खुश्बू और इसकी सुगंध सभी को लुभाती है। लेकिन इसकी खेती करने वाले मालाकारों की जिन्दगी उसके विपरीत रंगहीन और गंधहीन हो रही है। जिससे इसके खेतीहर मालाकार दूसरे व्यवसाय की ओर रूख कर रहे हैं।
ये है नालंदा जिला का रुपसपुर गांव। जहां डेढ़ दशक से दर्जनों मालाकार खेत पट्टे पर लेकर फूल की खेती करते हैं। चारो ओर फूलों से लथराई इस बगीया में अपनी फूलों को निहारते मालाकार इंद्रदेव को देखिए! कितना जतन से इसे सजा-सवांर रहे हैं। समय के साथ इसकी मांग तो बाजारों में बढ़ी जरूर, लेकिन अब इस व्यवसाय में पहले वाली बात नहीं रही।
एक वर्ष में फूल के पौधे तीन बार लगाये जाते हैं। जिसके लिए पौधे कोलकाता से मंगाये जाते हैं। मौसम अनुकुल मिला तो, फूल तीन से चार महिने में तोड़े जाते हैं। अन्यथा पूरी फसल के बर्बाद होने का डर रहता है। उपर से खेत मालिकों का आर्थिक कहर भी मालाकारों को झेलनी पड़ती है। महंगे फूलों की खेती करना लगभग खत्म हो गया है। सबसे बड़ी बात तो यह है कि कई बार कृषि वैज्ञानिक यहां आए बीज दिलवाने के लिए नाम नोट करके ले भी गए। पर आज तक कोई सरकारी सहायता नहीं मिल पायी।
सुगंध बिखेरने वाले मालाकार परिवारों को सरकारी सहायता न मिलना एक छलावा है। जिसके चलते ये लोग इस रोजगार से मुंह मोड़कर दूसरे व्यवसाय की ओर जाने लगे हैं।

इंजीनियरों का gaon


विश्व प्रसिद्ध गया नगरी इन दिनों फिर सुर्खियों में है। पर इस बार धार्मिक और ऐतिहासिक कारण से नहीं, बल्कि युवकों की मेहनत के बूते चर्चा में है। आइआइटी में केवल गया के 42 विद्यार्थियों ने अपनी सफलता का परचम लहराया है।
( कौन कहता है आसमां में सुराग नहींे होता, एक पत्थर तबियत से तो उछालो यारो )
ये है गया जिले का मिनी मैनचेस्टर के नाम से चर्चित मानपुर का पटवा टोली। जहां से पांच छात्रों ने आइआइटी की प्रवेश परीक्षा में सफलता पायी है। इस जगह को देखने से लगता है कि सच कीचड़ में कमल खिलता है। यहां पढ़ने का कोई माहौल और सुविधा नहीं है। बावजूद इसके इन पांचों छात्रों के चेहरे पर तेज टपक रहा है। तो इनके घर वालों के अलावे इस गांव के लोग बहुत खुश हैं। गया जिले में 42 विद्यार्थियों ने अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया। जिसमें 36 छात्र के अलावे 6 छात्रा भी शामिल हैं।
देश की सबसे बड़ी इंजीनियरिंग परीक्षा आइआइटी में सफलता के इतिहास गढ़कर गया के छात्रों ने यह साबित कर दिया कि हमारे अंदर लगन है, जज्बा है। लेकिन हमे जरूरत है सही मार्गदर्शन की। और इसे संवारने का काम पटना में सबसे पहले बीएमपी के डीजीपी तथा मगध सुपर 30 के संचालक अभ्यानन्द ने की थी, जो आज भी इसे आगे बढ़ा रहे हैं। इनके बाद तो जैसे इस क्षेत्र में सभी लोग हाथ बटाने लगे। इनके अलावे गया के एरोडाॅप स्कूल आॅफ फिजिक्स एण्ड मैथ कोचिंग सेंटर के भी 14 छात्र सफल रहे।
जमाने से धार्मिक और ऐतिहासिक चर्चाओं में रहने वाला गया। इन दिनों गया एजुकेशन हब बनता जा रहा है। और इसी के साथ तकनीकि के क्षेत्र में अपनी पहचान बनाने में अग्रसर है।




Thursday, May 28, 2009

खुनी वारदात

बात करते हैं 21 दिन और 21 से भी ज्यादा खूनी वारदातों की। बिहार की पुलिस मुष्तैद रहने के लाख दावें कर ले लेकिन मौत बेगुसराय के लोगों के सर पर मडरा रही है और दावे दूर कहीं दम तोड़ रहे हैं।

अपराधियों को प्रषासन का कोई खौफ़ नही है। वे जब चाहे जहां चाहे मौत का तांडव कर सकते हैं। हम किसी फिल्म की पटकथा को नहीं दोहरा रहे हैं बल्कि ये सच्ची कहानी, बिहार की है। बिहार के बेगूसराय में अपराधियों ने पुलिस को नाको चने चबाने के लिये मजबूर कर दिया है। अपने नापाक मंसूबों को अंजाम तक पहुंचाने में अब इन्हे किसी का डर नही है। इसका सबूत है 21 दिन में 21 से भी ज्यादा हत्या। कुछ दिनों पहले बदमाषों ने रामी सिंह हत्याकांड के गवाह को मौत के घाट उतार कर सबसे बड़े वारदात को अंजाम दिया है।

महज 10 रुपये की ख़ातिर खूंखार बदमाषों ने जमुई क्षेत्र के पषुपालक डोमन यादव की हत्या कर दी। तो वहीं बदमाषों की पिटाई से पूर्व गन्ना मंत्री की पत्नी रंजना सिंह की मौत हो गई। लेकिन पुलिस की नींद नहीं टूटी। अहम में चूर अपराधियों ने गढ़पुरा थाना क्षेत्र में बेकसूर दामोदर महतो को मौत की नींद सूला दिया। विधि व्यवस्था का माखौल उड़ाते हुए बदमाषों ने जिले में 21 दिनों के अंदर दर्जन भर से ज्यादा गोलीबारी, बमबाजी, राहजनी और बलात्कार जैसे संगीन जुर्म को करके अपने इरादे साफ कर दिये हैं।

21 दिन और 21 वारदात ये है चुस्त पुलिस के काम करने का तरीका। तो क्या हम ये मान ने अपराधिक धटनाओं में हो रहे इजाफे को रोकने में पुलिस नाकामयाब है और उसने हथियार डाल दिये हैं या फिर कहीं वो खुद तो कहीं इनके आतंक से डर तो नहीं गई है इसका जवाब पुलिस को देना ही होगा।


अभिव्यक्ति का माध्यम है कला

कहा जाता है कि कला विहिन मनुष्य पषु के समान होता है। कला के बिना जीवन षून्य होता है। कला जीवन को एक नई दिषा देती है। ये कला किसी के लिए धर्म है तो किसी के लिए पूजा । कोई मानता है इसे अभिव्यक्ति का माध्यम तो कोई ऐसेसरीज के खुबसुरत इस्तेमाल का जरिया ।
फोम ,फटे हुए कपड़े आमतौर पर बेकार माने जाते है। या तो इन्हे काबाड़ी के यहाॅ दे दिया जाता है या कुड़ेदान मे फेंक दिया जाता है ।पर इन सबके परे भी एक दुनियाॅ है जिसमें लोग इन्हीं बेकार चीजों का इस्तेमाल करते है खुबसूरती बढ़ाने के लिए ।
यह खुबसुरत नजारा इन्हीं बेकार चीजों की देन है। ये कला का ही कमाल है कि बेकार चीजें श्ी अच्छी नजर आती है । कला देती है एक नया नजरिया चीजों कों देखने और समझने का ।
कला विवधता का रूप है। एक नई पहचान के साथ -साथ अपने को बताने , दर्षाने और अभिव्यक्ति करने का श्ी ये सषक्त माध्यम बन गया है ।

संकट में बेतिया द्य्रुपद घराना

संगीत की घुन जहाॅ बजती थी वहीं बेतिया आज विरान हो अपने अस्तित्व के लिए जूझ रहा है।अंतरराष्टीय स्तर पर ख्याति प्राप्त बेतिया द्य्रुपद धराने पर संकट के बादल मंडरा रहे है।
संगीत जिंदगी में रस घोलते है।गायिकी अषांत मन को षांत कर आत्मा को सुकुन पहुचाती है। लेकिन बेतिया के ख्याति प्राप्त द्य्रुपद धराने में षिष्य -परंपरा के लोप होने से इसका गौरवपूर्ण अतीत धुंधला पड़ता दिखाई दे रहा है।
द्य्रुपद गाायन जहाॅ बड़े चाव से लोग सुनते थंे वहीं आज यह क्षय होने के कगाार पर खड़ा है । महराजा गज सिंह द्वारा स्थापित इस द्य्रुपद धराने के ढेर सारे रचित बंदिषे नष्ट हो चुकी है । 84 वर्षीय गाायक राजकिषोर मल्लिक तो पाॅच हजार द्य्रुपद जानते है। परन्तु इनके षिष्य पुत्र अरूण कुमार मल्लिक को सौ से भी कम द्य्रुपद की जानकारी है।
राजकिषोर के बाद उनके पुत्र अरूण कुमार इस द्य्रुपद गाायन परमपरा को आगे बढ़ा पाते है या ये भी एक याद बनकर हमारे बीच रह जायेगाा।

रिक्षाचालकों का........हुआ हाल बेहाल

कड़ी मेहनत के बाद भी रिक्षाचालकों को दो वक्त की रोटी तक नहीं मिल पाती और सरकार कल्याण योजनाओं और सुविधाओ के नाम पर ज्यादा पैसे वसूल रही है।

पुरानी चिथड़ो में लिपटे रिक्षाचालक है। दो जून की रोटी के लिए कोल्हू के बैल की तरह ये पिसता है पर अपनी स्थिति में सुधार नहीं ला पाया है। दिन श्र कड़ी मेहनत कर वह कुछ पैसे कमा तो लेता है पर उसमें श्ी हिस्सेदारी हो जाती है रिक्षा मालिकों की।खून पसीने की गाढ़ी कमाई का कुछ हिस्सा अपने मालिकों को देने के लिए रामप्रसाद ही नहीं इसके जैसे कई हैं। इनके कल्याण के लिए सरकार योजनाएॅ तो बनाती है पर सब बेकार
सम्मान संस्था ने रिक्षाचालकों को रिक्षा मुहैया तो कराया पर एक साल में ही ये पटना की सड़कों से कबाड़ खाने तक पहॅुच गई है। सुविधाएॅ नदारद और उपर से रिक्षा का किराया मूल्य श्ी ज्यादा है।वर्दी के तौर पर दिए गए है ये सेलफोन मुहर वाले टी-षर्ट जो रिक्षे की तरह ही बदहाल है।
तेज धूप हो या बारिष ये रिक्षाचालक हमेषा पटना की सड़कों पर दौड़ते दिखाई देते है । दिन श्र कड़ी मेहनत के बावजूद ना ही इनकी हालत में कोई सुधार आया है और ना ही सरकार इनके लिए कोई ठोस कदम उठा रही है।

अपने तीन मासूम की हत्यारिन मां

सिरदला थाना क्षे़त्र की एक महिला ने अपने तीन बच्चों को कुएॅ में फेंक कर उनकी जान ले ली। ससुराल द्वरा तंग करने की वजह से यह कदम उसने उठाया।
यह महुगाॅव का वही कुआ है जहाॅ से इन तीनों बच्चों की लाषें मिली है। मंाॅं रो रो कर बेहाल है और गाॅव वाले हैरान कि आखिर ऐसी क्या मजबूरी थी जो माॅ ने ही ऐसा कदम उठाया।
ससुराल वालों ने महेष राजवंषी की इस पत्नि को इस कदर परेषान किया कि आज ये कुछ भी बोलने की स्थिती में नही हैै। बच्चों के साथ खुदकुषी करने की कोषिष तो की पर होनी को तो कुछ और ही मंजूर था। गाॅववाले उन मासुम बच्चों को तो नहीं बचा सके लेकिन बेचारी माॅ को बचा लिया उसे उसके हाल में जीने के लिए।
धटना पर पर्दा डालने के लिए पूलिस को अब तक सूचित नहीं किया गया है तो क्या महेष के धरवाले अब भी कानून के हाथों से बच जाएगें।




निरहुआ के साथ जूनियर निरहुआ

शेजपुरी फिल्मों का कारोबार दिन ब दिन अपने पाॅव पसार रहा है। पाॅलीवुड की तो चाॅदी ही चाॅदी है, यहाॅ आये दिन कोई न कोई फिल्म रिलीज होती ही रहती है, और इस बार बारी है निरहुआ की
शेजपुरी के स्टार निरहुआ यानी की हमारे दिनेषलाल यादव पहली बार अपने निरहुआ ब्रदर प्रवेष लाल के साथ रूपहले पर्दे पर दिखाई देंगे।
चलनी के चालल दुलहा में दोनो साथ है। जूनियर निरहुआ नायक की श्ूमिका है और उनके अपोजिट है नई तारिका ष्षुभी ष्षर्मा । इस फिल्म का निर्देषन कर रहे है
दोनों निरहुआ के साथ ष्षुभी ष्षर्मा की जोड़ी दर्षकों पर क्या असर डालेगी ये तो फिल्म के रिलीज के बाद ही पता चलेगा ।


पासवान ने रिकार्ड बनाया

पी.एम बनने की ख्वाहिष जब चुनाव के हकीकत से टकराई तो सारे सपने धाराषायी हो गए । विजय के दंगल के बदले मन रहा है अब हार का मातम।
सपने जब हकीकत के मंजर से टकराते और चूर होते है तो सचमुच बहुत दर्द होता है । और इस दर्द की हद से अब गुजर रहे है लोजपा के नेता रामविलास पासवान । होठ खामोष है लेकिन अपनी हार का दर्द वो फिर श्ी नही छुपा पा रहे है ।
चुनावी दंगल में किसी की षह किसी की मात तो होती ही है , लेकिन समय का पहिया इस बार ऐसा घूमा कि हाजीपुर से कभी शरी बहुमत से जीतने वाले पासवान इसी रामसुंदर से आज हार गए है, जिन पर जीत दर्ज कर उन्होने गीनीज बुक में अपना नाम दर्ज कराया था। सियासी खेलों में हार जीत तो होती ही रहती है, जहाॅ जीत कर उन्होने रिकार्ड बनाया था वहीं ये हार श्ी अपने आप में एक अनोखा रिकार्ड है जिससे नेतागण षायद सीख लें ।

चिड़ियाघर में नौकाविहार

मौसम खुषनुमा हो तो घूमने- फिरने में बहुत आनन्द आता है। पटना का सुहाना मौसम लोगों को चिड़ियाघर की ओर खींच रहा है। पेष है एक खास रिपोर्ट ।
मौसम खुषमिजाज होते ही घूमने के लिए चिड़ियाघर लोंगो का पसंदीदा जगह बन गया है। ये छुक छुक करती रेलगाड़ी बच्चों के साथ - साथ बड़ों का भी दिल बहला रही है। तभी तो बच्चों के साथ बड़े भी छककर मजा ले रहे है ।
चांदनी रातों में नौकाविहार का आनंद अब लोग दिन में ले रहे है, वो भी चिड़ियाघर में ।यहां जमा भीड़ वोटिंग करने को बेहाल है मगर अधिकतर वोट खराब पड़े हुए है जिससे लोगों को परेषानी हो रही है और उन्हें मायुस ही लौटना पड़ रहा है । उद्यान के कर्मचारी वोटों को ठीक करवाने की जुगत में लगे है।
खुषनुमा मौसम का लुफ्त लोग जमकर उठा रहे है पर वोट की खराबी घूमने आए लोगों को उदास भी कर रही है। बहरहाल सिर्फ यही उम्मीद की जा रही है कि उद्यान के कर्मचारी वोट जल्दी ठीक करवा कर लोगों के आनन्द को दुगना करेगी ।


सिमट गई धरोहर

इतिहास के आइने में हजारों रंगीन तस्वीरें कैद है, लेकिन आज उन्हीं तस्वीरों पर धूल पड़ने लगी है।धूल श्ी ऐसी कि अब ये खत्म होने की कगार पर है। जी हाॅ आज हम बात कर रहे है कचैड़ी गली की जो कभी अपनी षान-ओ-षौकत के लिए मषहुर था।
ये पटना सिटी का वही मोहल्ला है जहाॅ मुगलों और अंगरेजी हुकूमत के वक्त कचहरी लगती थी इसलिए इसका नाम कचहरी गली पड़ा था। बदलते वक्त के साथ कचहरी लगनी श्ी बंद हो गई और गली के नुक्कड़ पर खुल गई कचैड़ियों की दुकानें,इसलिए कचहरी गली का नाम बदला और इसकी षिनाख्त कचैड़ी गली के नाम से हाने लगी
अब आइए अतीत के बाद जायजा लेते है मौजूदा हाल का। यह इस गली का वही खुबसुरत रंगमहल है जिसमें कई खुषनुमा कमरें थे, और जहाॅ सूर और साज की महफिलंें सजती थी।लेकिन आज यह वीरान है । यह अपनी जर्जर स्थिती में पहुॅच चुका है लेकिन इसकी सुध लेने वाला कोई नहीं है ।
अगर अब श्ी किसी ने इस धरोहर की सुध नहीं ली तो ये श्ी इतिहास के पन्नों में दबकर एक याद बनकर रह जाएगी ।


मच्छलियों की विलुप्त प्रजातियाॅ

अब बात बिहार के मषहूर कांवर झील से गायब हो रही मछलियों की। इन दिनों इस झील की मछलियां तेजी से से गायब हो रही है। और जिसका कारण है इस झील के संरक्षण का अभाव।
एक समय था जब केवल ये नाम ही काफी था कि ये कावर की मछलियां है। ये नाम ही मछलियों की कीमत दोगूनी कर देता था। और मछली खने के शौकीन इन मछलियों को उंचे दामों पर भी खरीदने से नही हिचकते थे। इसकी मांग सूबे में इतनी थी कि सिलीगुड़ी से लेकर मुंबई तक इन मछलियों का एक्सपोर्ट होता था।
इन मछलियों की खासियत यह थी कि इनमें गंध ना के बराबर होती थी परन्तु आज झील में फैली गन्दगी की वजह से मछलियों की ढ़ेरों प्रजातियां विलुप्त हो चुकी है। ओर जो बच गई हैं उनपर भी गुम होने का खतरा बढ़ता जा रहा है।
मीठे जल को लेकर ख्याति बटोर चुकी इस झील की सफाई नहीं की गई तो मछलियों के साथ- साथ इसकी ख्याति भी नष्ट हो जाएगी । अगर समय रहते प्रषासन ने कार्रवाई नही कि तो लोग कांवर झील की मछलियों का स्वाद भूल जाएंगे।

पुलिस-नक्सली मुठभेड़
नक्सलियों का कहर दिनोंदिन बढ़ता हीं जा रहा है। इससे निबटने के लिए पुलिस आॅपरेशन चला रही है। इस आॅपरेशन के दौरान खूंटी में 10 नक्सलियों को पुलिस ने मार गिराया। तथा भारी मात्रा में विस्फोटक भी बरामद किया ।
खूंटी के बीहड़ जंगल में नक्सलियों के खिलाफ पुलिस कांबिंग आॅपरेशन चला रही है। काम्बिंग आॅपरेशन के दौरान पुलिस और नक्सलियों में जमकर मुठभेड़ हुई। चार घंटे चले मुठभेड़ में झारखंड पुलिस को जबरदस्त सफलता हाथ लगी। जिसमे पुलिस 10 नक्सलियों को मार गिराने का दावा कर रही है। आॅपरेशन के दौरान हीं रनिया में हुई मुठभेड़ में 6 नक्सलियों को पुलिस ने पकड़ लिया। इसी जंगल से दो 20-20 किलो का केन बम और डेटोनेटर भी बरामद किया गया।
हालांकि मुठभेड़ के दरम्यान हीं नक्सली अंधेरे का फायदा उठाकर भागने में जहां सफल रहे। वहीं बीहड़ जंगल होने के कारण पुलिस शाम होने से पहले वहां से निकल लेने में हीं अपनी भलाई समझी।
घने जंगल में नक्सलियों का बसेरा होने के कारण पुलिस सही से काम नहीं कर पाती है। फिर भी इन नक्सलियों के फन कूचलने के लिए चला रही आॅपरेशन से हर संभव कोशिश जरुर कर रही है।


पूर्वोत्तर प्रदेश में मंत्रालय की खानापूर्ति

पिछली सरकार में केन्द्र में बिहार से 11 मंत्री थे। वहीं इस बार बिहार को सिर्फ एक मंत्री पर संतोष करना पड़ा। राजनैतिक महकमे में चल रही चर्चा कांग्रेस को हिन्दी प्रदेशों के साथ सौतेला रवैया विधान सभा में क्या गुल खिलाएगा। कहना मुश्किल नहीं बात तो आसान भी नहीं है।
अपने पैरों पर खड़े होने के प्रयासों में लगी कांग्रेस मनमोहन मंत्री परिषद में हिन्दी राज्यों को विशेष प्रतिनिधित्व नहीं दिला सकी। बिहार से कांग्रेस के दो सांसदों में मीरा कुमार को मंत्रालय मिला है। बिहार से उनकी सक्रियता बस नाम के लिए हीं है। जबकि पिछली बार इनके अलावे डा. शकिल अहमद को राज्य मंत्री बनाया गया था। मीरा कुमार के अलावे बिहार से जीते कांग्रेस के इसरारुल हक के भी मंत्री बनाए जाने कि चर्चा जोरों पर थी। वहीं झारखंड से कांग्रेस के केवल एक सुबोध कांत सहाय को प्रमोशन देकर कैबिनेट में जगह दी गई है।
पिछली बार मनमोहन सरकार में बिहार से कुल 11 मंत्री थे। इस बार उत्तर प्रदेश से पिछले दो दशकों में 21 सदस्य लोकसभा सदस्य चुनकर आए हैं। लेकिन उनमें से किसी को कैबिनेट मंत्री बनने का सौभाग्य नहीं मिल पाया है। जबकि पिछली बार उत्तर प्रदेश से केवल 9 सदस्य हीं जीतकर आए थे। जिसमें से दलित नेता महावीर प्रसाद को कैबिनेट, श्रीव्रकाश जायसवाल और जितिन प्रसाद को राज्य मंत्री बनाया गया था। इस बार श्रीप्रकाश जायसवाल और सलमान खुर्शीद को स्वतंत्र प्रभार वाले राज्य मंत्री, जितिन प्रसाद, प्रदीप जैन के अलावे यूपी के कुशीनगर में बसपा के अध्यक्ष और राज्य सरकार के मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य को धुल चटाने वाले को भी राज्य मंत्री बनाया गया है।
हिन्दी प्रदेशों के साथ सौतेला रवैया अपना कर मनमोहन सरकार क्या दिखाना चाहती है यह कहना आसान नहीं है। इसे एक राजनीतिक चाल कही जाए या हिन्दी प्रदेशों में मुंह की खाई कांग्रेस का गुस्सा।


पशुपालन विभाग

राज्य सरकार ने कृषि के साथ-साथ पशुपालन, मुर्गी, मत्स्यपालन व डेयरी के विकास पर पहल करना शुरू कर दिया है। इसके लिए राज्य सरकार ने एक हजार करोड़ की योजना शुरू करने वाली है।
बिहार से पलायन को रोकने की मुहिम में राज्य सरकार ने कदम उठाना शुरू कर दिया है। इसी कड़ी में राज्य के उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी की अध्यक्षता में एक बैठक हुई जिसमें पशुपालन, मुर्गी, मत्स्यपालन व डेयरी उद्योग को बढ़ावा देने पर जोर दिया गया। राज्य सरकार ने डेयरी के लिए 557 करोड़ रुपये, मुर्गी पालन में 133 करोड़, बकरी एवं सूअर पालन में 130 करोड़ और मत्स्य पालन में 133 करोड़ की योजना बनाई है।
उपमुख्यमंत्री द्वारा इन छोटे रोजगार के साधन जल्द शुरू किये जाने से पशुपालक और मत्स्यपालकों के चहेरे पर खुशी साफ दिखाई पर रही है।
सरकार ने तो अपनी योजना शुरू करने की घोषणा कर दी हैं। अब देखना हैं कि राज्य सरकार की योजना पर बैंको का क्या रूख होता है क्योंकि अभी तक तो पशुपालकों का आरोप है कि इस मामले पर बैंक की बेरुखी ही रही है।


सुसाइड जोन

एशिया में सबसे लंबे पुल के रूप में पहचान बनाने वाली गांधी सेतु इन दिनों सुसाइड जोन के लिए पहचाना जाने लगा है। पिछले एक सप्ताह में दो युवती ने छलांग लगाकर आत्महत्या की है।
राजधानी को उत्तर बिहार से जोड़ने वाली ई हैं महात्मा गांधी सेतु। इस सेतु से हजारों वाहनों का आवागमन प्रतिदिन होता है। लेकिन इन दिनों इस सेतु से गंगा नदी में छलांग लगाकर जान देने का मामला बढ़ता ही जा रहा है। पिछलें कुछ दिनों से इसकी संख्या में अप्रत्याशित वृद्धि हुई है। कुछ लोगों की माने तो पोल संख्या 40 से 44 के बीच ही इस तरह की घटनाएं अधिक घट रहीं है। इसको लेकर लोग तरह-तरह की बातें भी करने लगे है।
इस तरह की घटना से पुलिस की भी नींद उड़ी हुई है। पुलिस का कहना है कि लाख चाहने के बावजूद खुदकुशी करने वालों को वो रोक नहीं पाती। क्योंकि सेतु की लंबाई काफी अधिक है और यह व्यस्त मार्ग भी है। ऐसे में हर वक्त हर किसी पर नजर रख पाना मुमकिन नहीं है।
खुदखुशी एक पाप है। पर सवाल यह उठता है कि लोगो को कब ये समझ आयेगा कि इस जघन्य अपराध के लिए शायद भगवान भी माफ नहीं करते है।


पगार पर नक्सलियों की भर्ती

गुरिल्ला युद्ध के लिए पगार पर नक्सलियों की भर्ती की सूचना है। पड़ोसी राज्य झारखंड में भर्ती अभियान चरम पर है। साथ ही उत्तर बिहार में भी ऐसी सूचना मिल रही है। इसको लेकर पुलिस भी सकते में है
झारखंड के हजारीबाग, चतरा, पलामू एवं डाल्टेनगंज के जंगलों में दर्जनों स्थान पर प्रशिक्षण पहले से चल रहा है। मानदेय एवं परिवार के सुरक्षा की गारंटी का भरोसा दिलाकर गरीब एवं बेरोजगार युवकों को यहां गुरिल्ला युद्ध के लिए प्रशिक्षण के लिए लाया जाता है। इसमें अब उत्तर बिहार के युवक भी शामिल हो रहे हैं। शामिल युवकों को चार-पांच हजार मासिक वेतन का प्रलोभन भी दिया जा रहा है।
खुफिया विभाग के अनुसार लोकसभा चुनाव के बाद उत्तर बिहार में नक्सली हमले की आशंका जतायी गयी है। साथ ही इन इलाकों के युवकों को मासिक वेतन पर भर्ती किये जाने की बात भी सामने आयी है। इसके मद्देनजर गृह विभाग के प्रधान सचिव ने प्रभावित जिलों को एसपी को तत्काल प्रभाव से सतर्कता बढ़ाने का निर्देश दिया है।
उत्तर बिहार के इलाकों में बढ़ रहे नक्सली हमले से पुलिस ऐसे ही परेशान है। अब नक्सलियों द्वारा पगार पर इन क्षेत्रों के युवकों की भर्ती की चर्चा ने होश उड़ा दिये है। अब देखना यह होगा कि गृह विभाग द्वारा जारी किया गया निर्देश कितना काम आती है।

पलायन को मजबूर हीरामन

मैला आंचल से रोजी की तलाश में हीरामन चला परदेश - नरेगा से एक दिन भी काम नहीं मिलने से निराश।
अमर कथा शिल्पी फणीश्वर नाथ रेणु की प्रसिद्ध रचना तीसरी कसम का नायक हीरामन आज भी लोगों के जेहन में है। वो बैल गाड़ी की सवारी आज भी लोग नहीं भूल पाते है। लेकिन आज रेणु के इस क्षेत्र से न जाने कितने हीरामन रोज बेकार हो रहे है और काम की तलाश में जिले से पलायन कर रहे है
ये है रेणु जी का पैतृक गांव औराही हिंगना की कहानी। बैलगाड़ी चलाकर दो पैसे कमाना गांववासियों का प्रमुख रोजगार था। ई धनिक लाल मंडल भी पहले बैलगाड़ी ही चलाते थे। रेणु जी को सिमराहा स्टेशन से गांव और गांव से स्टेशन ले जाते थे। गाड़ियों का परिचालन घटा तो धनिक लाल बेरोजगार हो गये और काम की तलाश में बाहर चले गये। धनिक ने जब नरेगा के बारे में सुना तो गांव आ गये। जाब कार्ड भी मिला लेकिन एक भी दिन काम नहीं मिला
जिले में न जाने कितने धनिक लाल हैं। एक अनुमान के मुताबिक अररिया जिले के लगभग तीन लाख लोग काम के लिए बाहर में रह रहे हैं। वहीं, एक लाख की संख्या फ्लोटिंग है, इनका घर आना-जाना लगा रहता है। सरकार का बहुप्रचारित नरेगा योजना भी इनके पलायन को रोकने में पूरी तरह विफल दिख रहा है। इसका नजारा स्टेशन पर ट्रेनों से बाहर जाने वाली युवाओं की फौज को देखकर साफ समझी जा सकती है कि बेरोजगारों श्रमिकों के पलायन निरंतर जारी है।
करोड़ों रुपयों के फंड के बावजूद भी सरकार की बहुप्रचारित राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कार्यक्रम इस जिले में विफल ही साबित हो रहा है। योजना के क्रियान्वयन में हर स्तर पर भ्रष्टाचार का बोलबाला बना हुआ है। ऐसे में जरुरत है कड़े कदम उठाने की, जिससे इन मजदूरों को अपने घर में ही नियोजित किया जा सके।

शाही लीची

देश और दुनिया में शाही लीची के लिए बिहार का मुजफ्फरपुर मशहूर है। लेकिन मौसम के बदले मिजाज के कारण इस वर्ष उत्पादन अच्छा नहीं हुआ है। इससे किसान काफी निराश है। अब असमय होने वाली बारिश ने किसानों की कमड़ ही तोड़ दी है। हालत यह कि किसान पूरी तरह तैयार होने से पहले ही लीची तोड़कर बेचने को विवश है।
लीची किसानों का कहना है कि इस वर्ष उत्पादन लगभग 40 प्रतिशत कम होने की संभावना है। इस वर्ष अप्रैल महीने में ही तेज धूप होने और बारिश नहीं होने के कारण उत्पादन प्रभावित होने की आशंका है। अभी लीची टूटने का समय है। इस मौसम में तेज हवा और बारिश इस फसल को नुकसान पहुंचा रही है। तेज हवा और वारिश से लीची में कीड़ा लगने की संभावना बढ़ गयी है।
लीची उत्पादक किसान भोलानाथ झा ने बताया केन्द्र और राज्य सरकार द्वारा राष्ट्रीय बागवानी मिशन के तहत किसानों को नए लीची के पौधे तो उपलब्ध कराए जा रहे हैं, लेकिन पुराने बगानों को प्राकृतिक आपदाओं व मौसम की अस्थिरता से बचाने और जीर्णोद्धार करने की ओर सरकार द्वारा कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है। शहर में ही राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केन्द्र है। फिर भी वैज्ञानिक किसानों को कोई जानकारी उपलब्ध नहीं करा पाते हैं।
वहीं अनुसंधान केन्द्र के वैज्ञानिकों का कहना है कि इस वर्ष लीची तैयार होने से पहले पेड़ों से गिरने का कारण जलवायु में अस्थिरता होना है। इसके साथ ही किसानों द्वारा अपने बगानों का समय-समय पर उचित प्रबंधन नहीं किया जाना भी है।
लीची की बढ़ती लाली से किसानों के चेहरे पर लाली बढ़ती जाती थी। इस बार लीची में तो लाली तो आयी लेकिन किसानों के चेहरे पर लाली नहीं छा पायी। एक तो मौसम की मार और ऊपर से अनुसंधान केन्द्र के वैज्ञानिकों का लापरवाह रवैये ने किसानों को बेहाल कर रखा है।

Monday, May 25, 2009

बिहार में दो सौ नए आईटीसी

बिहार में दो सौ नए औद्योगिक प्रशिक्षण केन्द्र खोलने का रास्ता साफ हो गया है। इसके खुलने से राज्य में बीस हजार छात्र अब हर साल पा सकेंगे औद्योगिक प्रशिक्षण।

नए आईटीसी के प्रस्तावों को केन्द्र से मंजूरी मिलते हीं सूबे में केन्द्रों की संख्या 382 हो जाएगी। जबकि इस समय 117 केन्द्र काम कर रहे हैं। इसके अलावे 65 का प्रस्ताव केन्द्र के पास लंबित पड़ी है। कुछ पुराने औद्योगिक प्रशिक्षण केन्द्रों में सीट बढ़ाने का भी फैसला लिया गया है।
राज्य सरकार की रिपोर्ट के आधार पर केन्द्र सरकार की टीम के जायजा लेने के बाद हीं संस्थानों में नामांकन हो पाएगी। ये नये संस्थान पटना, नालंदा, खगड़िया, मधुबनी, वैशाली, भोजपुर, कटिहार, अररिया, दरभंगा, मोतिहारी, भागलपुर, बक्सर, जहानाबाद और मुंगेर जिले में खुलेंगे। हालांकि सरकार ने यह भी फैसला किया है कि एक साथ दो आईटीसी केन्द्र खोलने की अनुमति नहीं दी जाएगी। इसका लाभ राज्य के हजारों वैसे छात्रों को मिलेगा जिनका एडमिशन आईटीसी में नहीं हो पाता था।


आइआइटी में बिहारी छात्रों की जय हो
( 10,035 विद्यार्थियों में 750 बिहारी सफल रहे )

जिस बिहार को पिछड़ा राज्य माना जाता था। वही बिहार फिर से अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा रहा है। इस बार के आइआइटी प्रवेश परीक्षा में सात सौ से अधिक विद्यार्थी की सफलता इसका प्रमाण है।

खुशीयां मनाते इन विद्यार्थियों को गौर से देखिए। लगता है इनके सपनों की दुनियां आज धरातल पर आ गई है। जी हां ये वही छात्र हैं जिनके लिए आइआइटी की तैयारी के लिए बाहर जाकर पढ़ना संभव नहीं था। क्योंकि ये विद्याार्थी कुछ कर दिखाने का जज्बा तो रखते थे। पर संसाधन और आर्थिक बोझ की वजह से इनके सपनों को नई उड़ान नहीं मिल पाती थी। इन लोगों के लिए बिहार पुलिस के वरिष्ठ अधिकारी अभ्यानन्द ने एक नया प्रयोग कर दिखला दिया कि बिहारी विद्यार्थियों के पास आज भी तेज दिमाग है। जरूरत है सलीके से संवारने की

आइआइटी प्रवेश परीक्षा में बिहारी विद्यार्थी एक बार फिर अपनी मेधा का परिचय दिया है। इस परीक्षा में कुल दस हजार 35 विद्यार्थियों में सूबे के साढ़े सात सौ विद्यार्थी सफलता के परचम लहरा दिए। जिसमें पटना के रितिकेश ने अपने पहले हीं प्रयास में 39 वां स्थान प्राप्त किया। परीक्षा में बिहार से साढ़े चार हजार प्रतिभागी थे। पटना में सुपर थर्टी से जुड़े 30 विद्यार्थियों ने सफलता पायी है। अल्पसंख्यक विद्याार्थियों के लिए रहमानी थर्टी कोचिंग के सभी 10 विद्यार्थी सफल रहे। वहीं सुपर थर्टी से नाता तोड़ चुके वरिष्ठ आइपीएस अधिकारी अभ्यानन्द ने त्रिवेणी सुपर थर्टी के जरीये 48 को दिलायी सफलता। इसके अलावा जिलों के कई जगहों से छात्रों को दिलायी सफलता।
बात जब प्रतिभा की हो तो बिहार को कैसे भुलाया जा सकता है। बस जरूरत है तो बिहार की प्रतिभा को पहचानने की उसे वक्त पर निखारने की
आदमी मुसाफिर है ......
( संगीतकार लक्ष्मीकांत की पुण्यतिथि)

संगीत एक शक्ति है, इसी के माध्यम से लोग को अपना दर्द बांटते हैं। संगीत जाति और धर्म से परे होता है। लेकिन संगीत को सजाने और संवारने वाले की बात करें तो भला लक्ष्मीकांत को कैसे भुलाया जा सकता है।

(आदमी मुसाफिर है आता है जाता है........)


लक्ष्मीकांत कांताराम कुदलकर का जन्म 1937 में हुआ था। ये इतने अभागे थे कि 9 वर्ष की अवस्था में हीं पिता का निधन हो गया, जिसके कारण उन्हें अपनी पढ़ाई छोड़ देनी पड़ी। बचपन के दिनों से लक्ष्मीकांत का रूझान संगीत की ओर था। और वह संगीतकार बनना चाहते थे। संगीत की प्रारंभिक शिक्षा उन्होंने उस्ताद हुसैन अली से हासिल की। अपनी जरूरत को पूरा करने के लिए उन्होंने संगीत समारोहों में भाग लेना शुरु कर दिया। आगे चलकर वाद्य यंत्र मेंडोलियन बजाने की शिक्षा बालमुकुंद इंदौरकर से ली।


(-वो जब याद आए बहुत याद आए........)


बाद के दिनों में लक्ष्मीकांत-प्यारे लाल की जोड़ी के रूप में फिल्म जगत में अपने संगीत का लोहा मनवाकर हीं माने। अपने कैरियर की शुरुआत कल्याण जी आनन्द के बतौर सहायक के तौर पर उन्होंने मदारी, सत्ता बाजार, छलिया और दिल ीाी तेरा हम भी तेरे जैसी कई फिल्मों में काम किया। इसी दरम्यान चार भेजपुरी फिल्मों में संगीत देने का प्रस्ताव दुर्भाग्यवश नहीं मिल पाया। इस जोड़ी पर संगीत का ऐसा जुनुन था कि मशहूर निर्माता-निर्देशक बाबू भाई मिस़्त्री की क्लासिकल फिल्म पारसमणि ने इनकी तकदीर बदल कर रख दी। फिर पीछे मुड़कर देखने का मौका हीं नहीं मिला।
हंसता हुआ नूरानी चेहरा...और वो जब याद आए....जैसी इन मधुर गीतों की तासीर आज भी लोगों के जेहन में बरकरार है।





राॅकेट लांचर चलाएंगे माओवादी

अब माओवादी राॅकेट लांचर से हमला करने की फिराक में जुट गए हैं। इसको लेकर युवा माओवादी सीख रहे हैं राॅकेट लांचर चलाने के गुर। इस तरह का खुलासा आइबी के भेजी गई रिपोर्ट से हुआ है। गृह मंत्रालय को भेजी गई रिपोर्ट में आइबी के अधिकारियांे ने इसका खुलासा किया।

इरादों को खतरनाक बनाने की मंशा पाल रखे माओवादी नेता युवा माओवादियों के अंदर नफरत का बीज भी बो रहे हैं। इसके लिए बजाप्ता युवाओं को प्रशिक्षित करने में जुटे हुए हैं। आईबी की रिपोर्ट में कहा गया है कि मुजफ्फरपुर जिले के मोतीपुर बरजी के कई उन्मादी युवक गया जिले के चउरा इलाके में प्रशिक्षण ले रहे हैं। और इनको प्रशिक्षण देने वाला भूषण हार्डकोर गुरिल्ला दस्ते का स्पेशल एरिया कमांडर के रूप में चिन्हित किया गया है।
हाल के दिनों में माओवादी संगठन की गतिविधियां तेज हो गई है। लोकसभा चुनाव के दौरान अपने खुंखार इरादों से उसने मुजफ्फरपुर के देवरिया के अलावा मोतिहारी के पताही थाना अंर्तगत दो-दो लैंड माइंस का प्रयोग किया गया। इससे पहली बार उत्तर बिहार में लैंड माइंस का प्रयोग किया गया। जिससे पुलिस महकमें में भी भय व्याप्त है।
अमन पसंद लोगों की जिंदगी में खलल डालने की इस नाकामयाब योजना से निबटारा पुलिस के लिए एक बड़ी चुनौती के रूप में दिख रही है।



33 सौ बसों की खरीद

बिहार में मृतप्राय निगम में नयी जान फंूकने की कवायद हुई तेज। बिहार राज्य पथ परिवहन निगम के लिए तीन हजार से ज्यादा बसें खरीदी जायेंगी। राज्य सरकार ने इसका प्रस्ताव योजना एवं विकास विभाग को भेज दिया है।
बिहार के बंटवारे के बाद बिहार में परिवहन निगम को दिल्ली और दक्षिणी राज्यों के परिवहन निगम की बराबरी में खड़ा करने की योजना पर सरकार गंभीरता पूर्वक विचार कर रही है। पंचवर्षीय योजना के तहत निगम को नयी बसें मुहैया करायी जायेगी। फिलहाल गरमी की छुट्टियों के बाद सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर करने की तैयारी में परिवहन विभाग और निगम प्रबंधन जुटा है। सुप्रीम कोर्ट से बंटवारे पर अंतिम मुहर लगते हीं निगम को फिर से पांव खड़ा करने की कवायद शुरू हो जाएगी।
इस योजना में विकास विभाग को निगम के लिए 52 सीटवाली 2225 साधारण, 95व डीलक्स, 100 बसों की खरीद का प्रस्ताव भेजा गया है। इन बसों की खरीद पर 528 करोड़ खर्च आने का अनुमान है। जबकि निगम के सभी दफ्तरों को कंप्यूटरीकृत करने का भी लक्ष्य है। जिस पर 2.06 करोड़ रूपये का खर्च आएगा।
बसों का बेड़ा खड़ा करने के साथ हीं पथ परिवहन में जहां सुधार क्रांति आएगी। वहीं इस काम में कितना वक्त लगेगा ये कहना कठिन है।

Sunday, May 24, 2009

नरेगा में फिसड्डी बिहार
( बिहार में कोई भी जिला नहीं खर्च कर सका नरेगा की राशि )
जन उपयोगी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना की राशि सूबे का कोई भी जिला नहीं खर्च कर सका। इस योजना का लाभ उठाने में बिहार के सभी जिले साबित हो रहे हैं।
पिछले 3 सालों से इस गरीब हितैषी योजना का सही तरीके से संचालन नहीं किया गया। सूबे के 26 जिले बाढ़ग्रस्त जिले हैं। अब 30 मई के बाद मिट्टी के कार्य पर रोक लगा दिया जाएगा। पर सरकार और प्रशासन की उदासीनता से इस योजना को धरातल पर नहीं उतरने दिया और इसका परिणाम सभी जिलों में यह योजना फेल साबित हो गया है।
राष्ट्रीय ग्रामीण योजना के तहत राज्य को 2096.88 करोड़ रुपए उपलब्ध कराया गया था। इतने धन की लागत से 10563 योजनाओं को स्वीकृत दी गयी। अभी तक मात्र 53668 योजनाओं के बारे में कार्य प्रगति पर बताया जाता है। अब सहरसा को हीं ले लिजिए 94.61 करोड़ रुपया दिया गया था। इन राशियों को 2424 योजनाओं पर खर्च करने की योजना तैयार की गई थी। जिसमे से 2080 पर कार्य पूरा हो गया है और 344 पर कार्य प्रगमि पर बताया जाता है। वैसे सबसे ज्यादा राशि खर्च करने वाले जिले में शुमार हो गया है।
बात चाहें जो भी हो लेकिन नरेगा पर खर्च किए जाने वाली राशि का नहीं खर्च होना कई सवाल खड़
कर रहा है। देखना ये है कि कब तक इन योजनाओं को पूरा कर लिया जाएगा।
छोड़ गए बालम......
कल तक साथ जीने मरने की कसम खाने वाला पति एक दिन अचानक अपनी पत्नि को छोड़कर फरार हो जाए तो कई सवाल उठ खड़े होते हैं। हम बात कर रहे हैं रीम्स में एमबीबीएस फाइनल के एक ऐसे हीं पति की। जो हाॅस्टल में हीं अपनी पत्नी को बंद कर भाग निकला। आखिर क्या हुआ जो ऐसा कदम उठाया।
(आए हो मेरी जिन्दगी में तुम बहार बनके, मेरे साथी मेरे साजन मेरे साथ यूं हीं चलना......)
के हाथ सुसाइड नोट भेज दिया। इस घटना के बाद अब तक कोई जानकारी नहीं मिल पायी है। ये एक ऐसे युगल जोड़ी की सच्चाई है। जो एक दूसरे से बेहद प्यार करते थे। लेकिन ऐसी कौन सी बात हुई की, रांची के रीम्स में एमबीबीएस फाइनल-2004 का छात्र अमित कुमार मांझी अपनी पत्नी जया को हाॅस्टल में बंद कर फरार हो गया। अमित हाॅस्टल के कमरा नंबर-1 में रहता था। उसी हाॅस्टल के रूम नंबर-4 में अपनी पत्नी जया को बंद कर दिया। और थोड़ी हीं देर बाद अपने दोस्तों
( ....चिट्ठी ना कोई संदेश... जाने वो कौन सा है देश, जहां तुम चले गए........)
विरह की आग में जलती इस बेचारी को देखिए। इसने आखिर क्या बिगाड़ा था। पति-पत्नी के बीच नोक-झोंक की बातें सदियों से चली आ रही है। इसका मतलब ये तो नहीं की इतनी बड़ी सजा दी जाए। आज से ढाई साल पहले अमित ने जया से लव मैरेज किया था। और इन दोनों के बीच सबकुछ अच्छा चल रहा था। जया देवघर के एक अधिकारी की बेटी है। जबकि अमित घाटशिला का रहने वाला है। करीब पंद्रह दिनों से दोनों एक हीं हाॅस्टल में रह रहे थे। 21 मई को दोनांे के बीच किसी बात को लेकर तकरार हो गई। और हाॅस्टल में जया को बंदकर उसे उसी के हाल पर अमित छोड़कर चला गया। विरह की आग में जलती इस बेचारी का मारे हाल बूरा है। डाॅक्टर के अचानक गायब होने, मोबाइल आॅफ होना कई सवाल खड़ा कर रहा है। इसको लेकर पुलिस तफतीश कर रही है।
दूसरे के मर्ज का इलाज करने वाले डाॅक्टर बाबू अपनी जया को छोड़ कहां चले गए। ये तो किसी को मालूम नहीं लेकिन इनकी आंखों में आंसूओं का सैलाब जरूर छोड़ गए।

दुनियां करे सवाल
( मशहूर शायर,गीतकार मजरूह सुल्तानपुरी की 9 वीं पुण्यतिथि )
दुनियां में बहुत लोग आते हैं, लेकिन कुछ लोगों के कारनामे उनकी याद अक्सर दिलाते हैं। उन्हीं हस्तियों में मशहूर शायर, गीतकार मजरूह सुल्तानपुरी को भला कैसे भुलाया जा सकता है। उनके लिखे गीत बरबस दिल को छु जाते हैं।
(एक दिन बिक जाएगा माटी के मोल जग में रह जाएगा प्यारे तेरे बोल......)
जिन्दगी की सच्चाई को बयां करता मजरुह सुल्तानपुरी के कलाम में जिंदगी के अनछुए पहलुओं से रूबरू कराने की जबरदस्त कुव्वत थी। असरार-उल-हसन खान उर्फ मजरूह सुल्तानपुरी का जन्म वर्ष 1919 में उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर में हुआ था। प्रारंभिक और माध्यमिक शिक्षा हासिल करने के बाद उन्हांेने लखनऊ से यूनानी की पढ़ाई कर हकीम बन गए। लेकिन उनके अंदर का शायर जाग उठा। मुशायरा में भाग लेने लगे, लोगों की तारीफ क्या मिली। इनकी दुनियां हीं बदल डाली और हकिमी छोड़ 1945 में मुम्बई में एक मुशायरे में कलाम क्या पेश की सब वाह! वाह! कर उठे। उसमें फिल्म निर्माता ए।आर।करदार भी थे। जिन्होंने अपनी फिल्मों में लिखने की पेशकश की। फिर क्या 1946 में शाहजहां के लिए ’जब दिल हीं टूट गया....’ ने तो धूम मचा दी। उसके बाद अंदाज और आरजू फिल्म ने इन्हें गीतकार के रूप में स्थापित कर दिया। 1949 में एक दिन बिक जाएंगे माटी के मोल....के रूप में जिन्दगी की सच्चाई को बयां करता नग्मा रच डाली।
( ...चाहूंगा मै तूझे सांझ-सवेरे आवाज मैं न दूंगा.....)
मजरूह की कलम की स्याही नज्मों की शक्ल में ऐसी गाथा के रूप में फैली जिसने उर्दू शायरी को महज मोहब्बत के सब्जबाग से निकालकर दुनियां के दीगर स्याह सफेद पहलुओं से भी जोड़ा। इन्हें सर्व श्रेष्ठ गीतकार का फिल्म फेयर अवार्ड दिया गया था। बाद में ये पहले गीतकार हैं जिन्हें दादा साहब फाल्के पुरस्कार से भी नवाजा गया। मजरूह ने फिर वही दिल लाया हूं, तीसरी मंजिल, बहारों के सपने, कारवां हम किसी से कम नहीं, कयामत से कयामत तक, जो जीता वही सिकंदर, अकेले हम अकेले तुम और खामोशी द म्यूजिकल के जरिये उन्होंने फिल्म जगत को एक से बढ़कर एक गीत दिये। सरकार विरोधी लिखने की वजह से कुछ दिन जेल में भी गुजारने पड़े। उन्होंने जिन्दगी को एक दार्शनिक के नजरिये से देखा और उर्दू शायरी को नया आयाम दिया।
अपने गीतों के जरिए लोगों को जिन्दगी के अहम पहलुओं पर सोचने को मजबूर करने, मोहब्बत की ताजगी भरी छुअन का एहसास कराने और जीवन के अनछुए पहलुओं को गीतों और गजलों में पिरोने वाले मजरूह 24 मई 2000 को ’माटी के मोल बिक गए.’........और चले गए हमे अपनी यादों में बसाकर। जब उनके लिखे गीत बजते हैं तो दिल से निकली कशीश लगती है।

Saturday, May 23, 2009

जब दूल्हा रो पड़ा....
दूल्हे राजा जब सजधज कर बारात संग चलते हैं तो सभी लोग दुल्हन लाने के धुन में मगन रहते हैं। लेकिन कल्पना किजीए कि जब कोई दूल्हा बीच रास्ते में हीं रो पड़े और बाराती मुंह देखते रह जाए। कुछ ऐसा हीं होता है आए दिन यहां सबके साथ।
( दूल्हे राजा आएंगे सहेली को ले जाएंगे, दिल तो हमारा भी डोलेगा जब डोली लेके आएंगे....)
जी हां यह कोरी कलपना नहीं बेगूसराय के सिमरिया घाट राजेन्द्र पुल का सच है। खगड़िया जिला के महेशखूंट निवासी विजय प्रकाश बारात संग अपनी दुल्हन लाने पटना जा रहे हैं। देखिए इनकी सफारी बिल्कुल दुल्हन की तरह सजाई गई है। लेकिन दूल्हे मियां को क्या पता था कि दुल्हन के दरवाजे पर फूलों से सजी गाड़ी से नहीं पैदल पहुंचेंगे। सबसे ताज्जुब कि बात तो यह है कि पटना पहुंचने के लिए बारात 12 बजे दिन में हीं घर से चले लेकिन 2 बजे दिन में बीहट एन.एच.-28 पर जाम में गाड़ी ऐसी फंसी की रात के 10 बजे तक सिमरिया नहीं पार कर सकी।
पैदल चल रहे इस दूल्हे राजा को देखिए। ये खुशी के मौके पर रोते हुए जा रहे हैं। मामला ये है कि रास्ता कई घंटों से जाम है। कदम जमीन पर जैसे हीं रखा वन-डे-किंग यानि दूल्हे राजा ने उसका धैर्य जवाब दे गया। और उसकी आंखों में आंसू का सैलाब चल पड़ा। रो पड़ा बेचारा कि मेरे नसीब में क्या लिखा है। बेचारा 3 किलोमीटर पैदल चलकर किसी तरह स्टेशन से गाड़ी पकड़कर जाना पड़ा। आपको बताते चलें कि यह समस्या कोई एक दिन से नहीं है। बल्कि पिछले दो माह से बनी है। पुल रिपेयर हो रहा है। लेकिन एकतरफा परिचालन की तरफ प्रशासनिक लापरवाही के कारण रोज-ब-रोज दर्जनों बारात दूसरे दिन हीं अपनी मंजील तक पहुंच पाती है।
ये तो हुई दूल्हे राजा की बात जो किसी तरह तो अपनी मंजिल तक पहुंच गए। लेकिन उन मरीजों के बारे में सोचिए जो अपने मंजिल तक पहुंचने से पहले हीं राहों में दम तोड़ देते हैं।


अब भी फरार
( 48 अपराधी सलाखों के पीछे, 33 लाख इनाम )
जहां कभी बिहार अपराधियों का सेफ्टी जोन माना जाता था। दिन दहाड़े अपराधी निर्भिक होकर देते थे अपराध को अंजाम। वहीं नीतीश सरकार के प्रशासनिक नकेल कसने से अपराधियों का मनोबल गिरा है। जिसका प्रत्यक्ष उदाहरण सरकारी आंकड़े दर्शाते हैं।
हम आपको बता दें की वर्ष 2006 में जब नीतीश सरकार बनी तो सरकार की पहली प्राथमिकता बिहार को अपराध मुक्त बनाना था। इसी कड़ी में वर्ष 2006 से अब तक 48 इनामी अपराधी सलाखों के पीछे किए जा चुके हैं। जबकि 11 कुख्यात अपराधियों ने आत्म समर्पण कर दिया।
सारे अपराधियों पर 33 लाख इनाम घोषित था। इनामी को दबोचने का सारा श्रेय स्पेशल टास्क फोर्स को जाता है। युद्ध स्तर पर शुरु हुए इस अभियान को पहली सफलता 27 जनवरी 2006 को मिली थी। अब तक 41 माह में 48 इनामी धराए हैं। पांच की गैंगवार या संदिग्ध परिस्थितियों में जहां मौत हो गई है। वहीं 50 से अधिक अभी भी फरार हैं। इस अभियान में सबसे बड़ी बात तो यह है कि कई माओवादियों को भी गिरफ्तार किया गया है।
अपराधियों पर कसते नकेल से सूबे में अपराध का ग्राफ जहां नीचे गया है। वहीं पूरी तरह से इसका खात्मा टास्क फोर्स के लिए अब भी बड़ी चुनौती बनी है।



Friday, May 22, 2009

नेपाली पत्थरों की तस्करी
नेपाल से तस्करी के पत्थरों से हो रहा है पश्चिमी चंपारण का विकास। विभागीय अधिकारी भी इस बात को अच्छी तरह से जानते हैं। इसके बाद भी इस पर रोक लगाने की कोई पहल नहीं की जा रही है।
ये हालात है पश्चिमी चंपारण जिले का बेतिया। ईहां चालू वित्तीय वर्ष में जिले के विभिन्न प्रखंडों में नगर निकाय क्षेत्रों में करीब 50 करोड़ के वैसे कार्यों को स्वीकृति मिली है। जिसमें से करीब 10 करोड़ के पत्थरों को पीसीसी या छत्त के कामों में लगाया जाना है। कुछ कार्यों के प्राक्कलन में पाकुड़ या शेखपुरा स्टोन की व्यवस्था की गई है। वहीं ज्यादातर में बीटीस्टोन हीं लिखा गया है। जो प्राक्कलन संवेदको के लिए कठिनाई पैदा कर रहा है। ऐसा नहीं कि विभागीय अभियंता इस बात को नहीं जानते। वहीं दूसरी तरफ भिखनाठोरी स्टोन वाले प्राक्कलन में शेखपुरा या पाकुड़ के पत्थर को लगाना घाटे का काम हो जाएगा।
भीखनाठोरी क्षेत्र को वन विभाग ने वन्य आश्रय क्षेत्र घोषित कर दिया है। इसको लेकर इस एरिया के खनन पर रोक लगा दी गई है। जिससे नेपाली पत्थरों के तस्करों को काफी बल मिल रहा है। नेपाल से बिना किसी टैक्स भुगतान किए उपरी चढ़ावा की बदौलत बेतिया तक पहुंचाए गए पत्थरों को सरकारी कार्यों में लगाया जा रहा है।
बात चाहें जो भी हो लेकिन इतना तो तय है कि नेपाली पत्थरों से खुलेआम काम किया जा रहा है। इससे तस्करों को जहां बल मिल रहा है। वहीं इसके बढ़ावा के लिए आला अफसर भी कोई कम दोषी नहीं।


मंत्री जी के नुस्खे
जब से निगरानी ने नेताओं की अथाह संपत्ति पर पैनी नजर रखनी शुरू की है तब से नेता माल ठिकाने लगाने की जुगत में जुट गये हैं। झारखंड के नेता एनोस एक्का और हरिनारायण खुद को निगरानी की तलवार से बचाने के लिये कुछ अलग ही नुस्खा अपना रहे हैं।
इस दान को देखकर आप ये कयास लगा रहे होंगे कि जरूर ये किसी पुण्य के लिये हो रहा है। पर इस गफलत में आप ना ही रहे तो बेहतर होगा। दरअसल ऐषो-आराम की ये चीजें किसी पुण्य के लिये नही बल्कि अपने पापों को छिपाने के लिये दान के तौर पर दी जा रही है। इस बार अपने कुकर्मों पर पर्दा डालने की कोषिष कर रहे हैं झारखंड के मंत्री एनोस एक्का और हरिनारायण। जिनकी गाढ़ी कमाई पर जब से निगरानी विभाग की नजर टेढी हुई है ये अपनी गर्दन बचाने के लिये हर तरह का नुस्खा इस्तेमाल कर रहे हैं।
कहा जाता है अमीरों के घरों में लगी ईटें भी महंगी होती है। किसी मंत्री के घर में रखी वस्तुओं की चमक कितनी लाजवाब होती है ये कौन नही जानता ? जिस कमाई की बदौलत मंत्री जी ने नायाब सामानों से अपने घर को स्वर्ग जैसा सजाया था उसपर निगरानी की नजर लग गई है और आज मंत्री जी उन्हे सस्ते दामों पर बेच रहे हैं। भाई कम दाम में मोती मिले तो कोई कैसे छोड़ दे। जनता भी इन कीमती सामानों को पाकर काफी खुष है।
निगरानी के चंगुल में फसे ये दोनो मंत्री खुद को बेगुनाह साबित करने में कोई कसर नही छोड़ रहे है। पर मंत्री जी जरा ये भी तो बतलाईये कि, अगर आप के पास काली कमाई नही है तो फिर ये दान का स्वांग रचने का क्या मतलब है ?
झुलसता बचपन
( बच्चे मन के सच्चे सारे जग की आंख के तारे....हम वो नन्हें....)
बालश्रम उन्मुलन के चाहें जितने दावे किए जा रहे हों, लेकिन सच्चाई यही है कि आज भी हजारों बच्चों का बचपन पेट की आग से
झुलस रहा है। इन मासूमों के जीवन में अंधेरा दूर नहीं करने के लिए जिम्मेवार महकमा भी कम दोषी नहीं।
पसीना से लथपथ मासूमों को कभी भी देख सकते हैं। जो ठेले को पकड़ कर खड़े रखवाली नहीं करते। बल्कि इसके चालक हैं। अपने पेट की आग बुझाने के लिए अपनी जान पर खेलकर रोजी-रोटी की व्यवस्था में जुटे रहते हैं। खेलने-खाने की उम्र में इन्हें अपने परिवार की पेट भरने के लिए हाड़तोड़ मेहनत करनी पडती है।
बालश्रम उन्मुलन के लिए चलाये जा रहे कार्यक्रम और सर्व शिक्षा अभियान इनके लिए कोई मायने नहीं रखता है। क्योंकि इन्हें कलम और काॅपी से ज्यादा दो शाम के रोटी की आवश्यकता है। इस मामले का सबसे स्याह पहलू तो यह है कि बाल श्रमिकों कल्याण के लिए जिम्मेवार महकमा पूरी तरह कुंभकरणी नीन्द सो रही है। आए दिन सड़कों पर ठेला चलाते, मजदूरी करते छोटे-छोटे बच्चों का दिख जाना आम है।
बालश्रमिकों के कल्याण के लिए लाखों रुपए अनुदान लेने वाली स्वयं सेवी संस्थाओं की नजर भी इन बच्चों की ओर नहीं पड़ती। ये संस्था बालश्रम दिवस के नाम पर रैली और संगोष्ठी कर हीं अपने कर्तव्य की इतिश्री समझ लेते हैं। इन्हें बाल श्रमिक स्कूल चलाने में मोटा मुनाफा नजर आता है। इसे लेने के लिए ये लोग किसी भी हथकंडे को अपनाने के लिए तैयार रहते हैं। लेकिन इन मासूमों के भविष्य की किसी को चिंता नही है।
बात चाहें जो भी हो लेकिन इन मासूमों के भविष्य सुधारने के लिए किए गए प्रयास महज दिखावा साबित हो रहा है।

टेªन यात्रा ना बाबा ना.....
न सुरक्षा और ना हीं आरामदायक यात्रा। जी हां सुरक्षा और यात्रा के लिए टेªनों की एसी कोच में हीं यात्रा करना पसंद करते हैं यात्री। लेकिन यकिन मानिए अब इन बोगियों में भी असुरक्षा का माहौल है। एसी बोगियों में लफंगों का शिकार होना आम हो गया है।
सीट एक और यात्रा करते वक्त बैठने के लिए तेरह करते हैं तकरार। चैंकिए मत। यह कड़वा सच है। आप हीं देखिए दानापुर रेलमंडल पर दौड़ती गाड़ियों के एसी बोगियों का नजारा। बिना रोक-टोक एसी बोगी में यात्रा करने वाले बिना टिकट यात्री बैठते वक्त शेखी बघारते हैं। टीटीई बाबू ने टिकट मांगी तो आरा जाना है कहते हैं। बेटिकट यात्रियों का खौफ ऐसा कि बोगियों का दरवाजा नहीं खोलते कोच अटेंडेंट। गलती से खुल गई तो नजारा किसी राहत शिविर से कम नहीं।
सभी सीटों पर यात्री हैं। इससे ये मत समझिए कि टेªेन फूल है। ये आपकी गलतफहमी है, क्योंकि इसमें 90 फीसदी अनअथराइज्ड लोग हीं हैं। इन मनचले लफंगों को देखिए। अपनी मोबाइल पर बजते गाने...दीवानी मैं दीवानी...पर झुमने के साथ उल्टी-सीधी बातें भी करते हैं। और हो भी क्यों नहीं इसमें यात्रा करने वाली अधिकांश महिलाऐं जो हैं।
अरे बाप! ये किन्नरों को देखिए। ये तो जैसे अपना घर हीं समझ बैठे हैं और दातुन कर अपने जलवे के साथ पैसे एंठेंगे। ऐसा नहीं कि रेल प्रशासन इन पर रोक लगाने में सक्षम नहीं। पर करे तो क्या, टीटीई अपनी नौकरी करें या लफंगों से जुझें। क्योंकि इन्हें तो डेली इसी रास्ते डयूटी बजानी है। फिर आफत कौन मोल ले।
बहरहाल इस तरह यात्रियों के आतंक सभी बोगियों पर है। इस पर शिकंजा कसना कठिन नहीं तो आसान भी नहीं है। इसमें पैसेन्जर या बड़ी टेªनों का समय पर परिचालन न होना भी बड़ा कारण है।

बंदी महिलाओं को टेªनिंग
( स्वावलंबी बनेंगी बंदी महिलाएं
)
भले हीं वो कैद हैं-समाज की निगाहों में गुनहगार पर एक बड़ी सच्चाई ये है कि वो बेहद हुनरमंद हैं। हम बात कर रहें हैं समस्तीपुर के मंडल कारा की जहां महिलाओं के हुनर को पहचान कर उन्हें स्वावलंबी बनाने का अनोखा प्रयास हो रहा है
( हिम्मत से काम लोगे तो क्या हो नहीं सकता, वो कौन सा उकदा है........)
सिलाई मशीन पर घिरनी की तरह नाचते पांव, फटाफट ब्लाउज-पेटीकोट तो मिनटों में कपड़ों पर चित्रकारी करने से लेकर
कढ़ाई कर सुन्दर कलाकृतियां उकेरती ये कोई प्रोफेश्नल महिला नहीं हैं। बल्कि ये हैं समस्तीपुर मंडल कारा की बंदी महिलाएं।
मंडल कारा प्रशासन इन दिनों महिला बंदियों के लिए विशेष टेªेनिंग अभियान चला रहा है। इस योजना के तहत ये महिला बंदी हत्या और विभिन्न आरोपों में आजीवन कारावास की सजा काट रही हैं। कई मामलों में बंदी बनी इन महिलाओं में हुनरमंद महिलाओं ने स्वावलंबी बनने के गुर सीखने के लिए दिन-रात एक कर दिया है। इस जेल में कुल 31 महिला बंदी हैं। किसी पर हत्या का मामला है तो कोई अपहरण कांड में सजा काट रही है
इस योजना से दो फायदे हुए हैं। एक तो शांत रहने वाली महिला बंदियों के बीच संवाद स्थापित हुआ। वहीं दूसरी तरफ इस अभियान से ये हुनर मंद भी
हो रही हैं।

साल 47 टाॅपर 4
मैट्रिक परीक्षा में अव्वल स्थान पाने में पटना के विद्यार्थी फिसड्डी साबित हो रहे हैं। इनको मात दे रहे हैं गांव के मेहनती छात्र। इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि 1962 के बाद अब तक मात्र चार विद्यार्थी हीं पहले पादान पर पहुंच पाए हैं। यानि 47 साल के सफर में पटना से सिर्फ चार टाॅपर का होना। पटना के छात्रों की पढ़ाई पर कई सवाल खड़ा कर रहा है।
प्रतिभा किसी खास जगहों में कैद नहीं होती है। यह परिश्रम और लगन से प्राप्त होता है। जमाने से लोगों का मानना है कि शहरों में पढ़ाई अच्छी होती है। लेकिन ये कैसी पढ़ाई की संसाधन से भरे पटना के छात्र पिछले 47 सालों में केवल चार अव्वल हो पाए हैं। इनके मुकाबले गांवों के छात्र मैट्रिक में अपनी पढ़ाई का लोहा मनवा रहे हैं। हर साल पटना के बाहर के हीं छात्र अपनी प्रतिभा की खुशबू बिखेर रहे हैं। जो पटना के छात्रों की पढाई के प्रति उदासीनता को दर्शाता है।
पटना के टाॅपरों में 1962 में सैदनपुर, मसरी के ब्रज किशोर सिंह यह मुकाम पाने वाले पटना के पहले छात्र थे। सात वर्षों बाद राजीव कुमार सेठ ने फिर इस इतिहास को दुहराया। इसके बाद इस मुकाम को दोबारा पहुंचने के लिए पटना के विद्यार्थियों को 28 वर्ष का समय लग गया। लंबे अंतराल के बाद 1998 में जयश्री ने टाॅपर के लिए छलांग लगाई। इसके चार वर्ष बाद हीं आनंद कुमार ने अपनी प्रतिभा के झंडे फहराए।
शहरों में गांवों के मुकाबले अच्छे संसाधन है, पर टाॅपर बनने के लिए प्रतिभा और लगन की जरुरत होती है। सिर्फ संसाधन के बल पर टाॅपर नहीं बना जा सकता है। गांवों के छात्रों पर ये कहावत अभावग्रस्त इंसान हीं दूरियां तय कर पाता है पूरी तरह से सटिक बैठता है।


दाने-दाने को मोताज

अपने हीं लोगों के बीच शरणार्थी बनकर जीने को विवश हैं अग्निपीड़ित.....भीषण गर्मी में भी खुले आसमान के नीचे गुजर-बसर कर रहे हैं.....तो अपना पेट पालने के लिए दाने-दाने को मोहताज हैं.....सरकार के उदासीन रवैये से किस्मत के मारे ये बेचारे भी खासे परेशान हैं।
(..रहने को घर नहीं, सोने को बिस्तर नहीं...अपना खुदा है रखवाला......)
कल तक जहां बस्तियां गुलजार हुआ करती थीं....बच्चों की किलकारियां गुंजती थीं....वहां सन्नाटा पसरा है....ऐसा नहीं कि यहां लोग नहीं रहते....बल्कि लोग भी हैं और उनके मासूम भी.....पर उनके मुंह से आवाज भला कैसे निकलेगी.....ये बेचारे कई दिनों से भूखे हैं.....पिछले एक माह से जारी आगलगी की घटना में जहां करोड़ो की संपति राख हो गई....वहीं 500 से ज्यादा परिवार अपना सब कुछ खोकर शरणार्थी का जीवन जी रहे हैं।
ये है छपरा का गोपालपुर गांव.....जहां हर आने जाने वालों को याचक की तरह निहारते इन पीड़ितों को
देखिए.....इनके घरों के साथ हीं खलिहानों में रखे गेहूं के हजारो बोझे भी जलकर राख हो गए.....तो कई मासूम इस आगलगी की बलिबेदी पर चढ़ गए....तो दर्जनों लोग इसके शिकार हो गए....कई घरों में शहनाईयां गुंजनी थी....बिटीया की शादी के लिए रखे गए सामान भी जल गए....अब कहां से होंगे उनके हाथ पीले.....सब कुछ आग निगल गई....इनके दामन में रह गई....तो सिर्फ और सिर्फ दर्द भरी दास्तान।
हर साल की तरह इस साल भी इलाके के दर्जनों गांव में भीषण आग लगी हो चुकी है......सब कुछ जल गया.....अब कुछ नहीं रहा......सरकारी सहायता की बात करें तो कई जगहों पर प्रशासन का कोई भी अधिकारी मौके पर नहीं पहुंचा...और पहुंचा भी तो....ज्यादातर जगहों पर राहत देने की घोषणा महज एक छलावा साबित होकर रह गई
इन अग्निपीड़ितो के लिए कि गई राहत की घोषणा.....फाइलों से निकलकर पीड़ितों के पास कब तक पहुंचेगी......या पहले की तरह इन लोगों को मिलने वाली सहायता की घोषणा भर रह जाएगी....ये तो आने वाला वक्त हीं बताएगा।
मां
हर पल, दर्द को सहने वाली
जुबां से उफ! न कहने वाली
हर मुश्किल से लड़ने वाली
मां! तू और तेरी ममता बड़ी निराली है.
तन से अपने साट-साटकर
मुझको जीवन देती हो
लाख मारी पैरों को तन पर
उसको हंस-हंस सहती हो
सोचता हूं, कितनी धीरज वाली है
मां!--------------
बिस्तर हो गए गिले तो
खुद उस पर सो,हमे उससे बचाती हो
लगे किसी की नजर न हमको
सीने से लगा हौसला देने वाली है
मां!--------------
भूख लगे तो दूध पिलाया
चोट लगी ममता के मरहम लगाती हो
खुद तो भूखे सो जाती
चेहरे पर शिकन नहीं दिखाती हो
मां तू कितनी प्यारी हो!
जिन्दगी की खुशीयां कुर्बान करने वाली है
मां!---------------
पौधों सा सींच-सींचकर
एक दिन बड़ा बनाती हो
ये कैसी दुनियां की रीत
उम्मीदों की दुनियां में खुद बुढ़ी हो जाती हो
पर, मां!
तेरी ममता हर पल जवां रहने वाली है
मां!---------------
दुनियां के कोने-कोने में ढूंढ़ा
मां की ममता हीं सबसे प्यारी है
ढंूढ़ रहा था मंदिर-मस्जिद में तुझको
घर में बैठी मां हीं अमृत की प्याली है
मां!---------------
हर मुश्किल को सहने वाली
जीवन के गुर सीखाती हो
हो गया जब बड़ा लाड्ला
प्यारी सी दुल्हन घर में लाती हो
माथे को चुमकर,उसे भी गले लगाती हो
थक गई तू
जो हर मुश्किल को सहने वाली है
मां!---------------
खुशीयों का एक बाग सजाकर
फूल रंग-बिरंगे खिलाया था
कैसा अब ये दिन आया
सब आंखों से ओझल हो जाते हैं
कितने दिन की मेहमां, मां
गम को अंदर पीने वाली है
मां!---------------
एक दिन ऐसा भी आया
बुढ़ी हो गई मां
उसे भी अब तेरी जरुरत है
नहीं चाहिए रुपया-पैसा
तेरे ममता की उन्हें जरुरत है
धरती सा धीरज, कुछ न कहने वाली है
मां!---------------
--मुरली मनोहर श्रीवास्तव

9430623520/९२३४९२९७१०

अजूबा षादी

जहां दहेज मिटाने की बात की जा रही है......वहीं दहेज के लालच में दूल्हे राजा मंडप से फरार हो गया....तो बाराती में आए एक लड़के को हीं सात फेरे लेने पड़े....बात इतने से भी नहीं बनी तो दूल्हे मियां को पकड़कर गांव वालों ने दूसरी लड़की से शादी करा दी....इसको लेकर दोनों पक्षों में तनाव है।
(xkuk....जलेगी कब तक इसी आग में बेटी हिन्दुस्तान की....दर-दर दूल्हे की तालाश बापू उमर गंवाए बेबस मां आंसू में डुबे और भाई बिक जाए....)
;s है समस्तीपुर का मोहिउद्दीननगर जहां एक दूल्हे मियां के दहेज में कमी का हुई.......उ सात फेरा लेने से पहिलहीं मंडप छोड़कर फरार हो गए.....और रातभर में गांव वाले अपनी इज्जत बचाने के लिए दुल्हे मियां रंजीत को खोज हीं निकाले....ई मुंह लटकाए खड़ा दुल्हा के भेष में कौनो नौटंकी वाला नहीं है......बल्कि ई उहे दूल्हे मियां हैं......जो सजधज के घोड़ा चढ़ बारात लेकर आए थे.....जयमाल तो किया खुश्बू के साथ.....बारात थोड़ी देर से का आई....वहां का सब सीने बदल गया.....लेकिन गांव वाले भी कोई कम नहीं थे....लाख फरार होने के बादो....नहीं बख्शा ......और उसी गांव के परशुराम पंडित की बेटी कंचन से सबेरे रायसुमारी के बाद शादी करा दी गई....ई बात इहें खत्म नहीं हुई.....मामला और तूल पकड़ लिया.......और अब खुश्बू के घर वाले रंजीत के परिजन से दहेज वापसी की मांग कर रहे हैं।
(....कोई लाख करे चतुराई.....करम का लेख मिटे ना रे भाई........)
आए थे हरिभजन को ओटन लगे कपास.....वाली कहावत भी इहां पूरी तरह से चरितार्थ हो गई......रंजीत के भागने के बाद नर्वस हुए खुश्बू के परिजन अपनी इज्जत बचाने के लिए.....बाराती में आए हसनपुर निवासी विशेश्वर पंडित के पुत्र तारक पंडित से शत्रुघ्न पंडित की बेटी खुश्बू की शादी करा दी......ई मामला होने के बाद यह शादी कौनो फिल्मी स्टाईल से कम नजर नहीं आया....तो गांव वालों और आस-पास के इलाके में ई शादी कौतुहल का विषय बना रहा।
थोड़ी सी गलती रंजीत के घर वालों की खुश्बू के जीवन से खिलवाड़ पर बन आई....कल तक सपनों में बसने वाले रंजीत को बिसराकर तारक हीं खुश्बू का तारनहार बना....अगर वक्त पर तारक नहीं होता.....तो दहेज की लालच में खुश्बू के अरमानरुपी पराग फैलने से पहले हीं बिखर कर रह जाती।

कोर्ट मैरेज का बढ़ता

क्रेज
शादी जिन्दगी का अहम हिस्सा है....जिसे पारंपरिक ढंग से किया जाता रहा है.....लेकिन इस नए जमाने में शादी के मायने भी बदलने लगे हैं.....आज की युवा पीढ़ी उन पचड़ों से बचकर खुद की दुनियां बसाने के लिए कोर्ट मैरेज करने लगे......तो कोर्ट मैरेज का रजिस्ट्रेशन शादी-शुदा भी कराने में पीछे नहीं रहे।
जब लड़का-लड़की राजी तो क्या करेगा काजी....यानि दोनों एक-दूसरे को पसंद करने लगे.....साथ जीने-मरने की कसम खा ली हों तो.....फिर शादी कराने वाले पंडितजी और शुभ मुहुर्त कि क्या जरुरत......जी हां हम बात कर रहे हैं आज की युवा पीढ़ी की....जो जाति-धर्म की जकड़न से दूर.....बस जिला निबंधन कार्यालय में अर्जी दी और एक माह बाद बन गए कानूनी रुप से पति-पत्नी।
महानगर कल्चर में ढल रहे पटना के युवाओं का प्यार भी इन दिनों जिला निबंधन कार्यालय के माध्यम से परवान चढ़ रहा है.....अपने मनमर्जी से जीवन साथी चुनने वालों की तादाद बढ़ रही है.....अधिकारियों की मानें तो विवाह करने वाले लड़के-लड़कियों की उम्र 21 और 18 वर्ष से कम नहीं होनी चाहिए.....इसके साथ हीं आवासीय प्रमाण-पत्र भी देने पड़ते हैं.....तो शादी-शुदा लोग भी अपने विवाह का रजिस्ट्रेशन इस लिए करा रहे हैं.....क्योंकि विदेश जाने के लिए निबंधन कार्यालय का मैरेज सर्टिफिकेट जरुरी होता है।
इस तरह बढ़ते कोर्ट मैरेज के क्रेज से जहां युवाओं में उत्साह है....दहेज और जाति-धर्म के जंजाल से जहां लोग बच रहे हैं......वहीं इस कोर्ट मैरेज का दुरुपयोग भी कुछ कम नहीं हो रहा है।


हाथियों का उत्पात
झारखंड में पानी की भारी किल्लत की वजह से अब हाथियों का जंगलों में रहना दूभर हो गया है। जंगल के तालाबों में पानी सुख चुका है। ऐसे में पानी की तालाश में हाथियों का झुंड आस-पास के गांवों में उत्पात मचाने लगा है।
;gka किसी भूकंप का कहर नहीं है। बल्कि इन घरों की दुर्दशा जंगली हाथियों ने कर रखी है। हजारीबाग जिले के लगभग बीस गांव के लोग इन दिनों हाथियों के उत्पात से दहशत में जी रहे हैं। जाने कब पानी की तालाश में हाथियों का झुंड इनके घरों को तोड़ डालेंगे। इसके चलते ये दिन रात सो भी नहीं पाते हैं। पिछले पंद्रह दिनों से इन क्षेत्रों में हाथियों का कहर जारी है। वन विभाग के अधिकारी कहते हैं कि जल्द हीं हाथी जंगल में लौट जाएंगे। गांव वालों से हाथियों को नहीं छेड़ने की भी अपील कर रहे हैं।
हजारीबाग में हाथी के उत्पात से बंटे गांव के लोग परेशान हैं। इसको लेकर पुलिस भी कम परेशान नहीं है। दरअसल वन विभाग जब फरियादियों की शिकायत को टाल देती है। उसके बाद वो पुलिस से गुहार लगाते हैं। पर पुलिस को भी हाथियों के उत्पात के आगे कुछ नहीं सूझ रहा है। हाथी को पकड़ भी नहीं सकती। जिससे इस मामले में खुद को मजबूर बताती है।
झारखंड के लिए हाथियों की समस्या आम है। वन विभाग कागजों पर कार्रवाई भी खूब करता है। पर उन अधिकारियों पर कार्रवाई क्यों नहीं होती जो ग्रामीणों की व्यथा को अनसुनी कर देते हैं।






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HIMMAT SE KAM LOGE TO ZMANA V SATH DEGA...HO GAYE KAMYAB TO BCHACHA-BCHCHA V NAM LEGA.....MAI EK BAHTE HWA KA JHOKA HU JO BITE PAL YAD DILAUNGA...HMESHA SE CHAHT HAI KI KUCHH NYA KAR GUZRNE KI...MAI DUNIA KI BHID ME KHONA NHI CHAHTA....