Monday, April 11, 2011

सपने साकार करो

चलते रहो तब तक

जब तक मंजिल न मिल जाए,

आंखों में बसी उम्मीद को

ख्वाबों को आयाम न मिल जाए.

सोचते हैं सब, पर आप

उन सपनों को साकार करो,

राहें थोड़ी मुश्किल हो,तो घबराना मत

मंजिल मिलेगी एक दिन

किसी से दर्द का,

भूले से भी इजहार न करो.

ले लो आप भी एक शपथ

सच्चे दिल से करेंगे मेहनत,

आएगा वो दिन भी

एक दिन होंगे हम शिखर पर,

गुजारिश बस इतना ही करेंगे

अपनी ईमानदारी-कर्म से प्यार करो.

मालूम नहीं कल यहां हो न हो

ये जिंदगी जाने फिर कब नसीब हो

इसीलिए तो सबसे कहते हैं

आओ दुनिया में एक नई इबारत गढ़ जाएं.

चलते रहो तब तक,

जब तक मंजिल न मिल जाए.

......................मुरली मनोहर श्रीवास्तव

Monday, April 4, 2011

आखिर उस्ताद को भूला ही दिया

सरकार ने उस्ताद के जन्मदिन को राजकीय समारोह की तरह मनाने की घोषणा की थी पर शहनाई नवाज का जन्मदिन 21 मार्च को, नहीं मना राजकीय समारोह। और आखिरकार उस्ताद को भुला ही दिया बिहार सरकार ने.जी हां, हम बात कर रहे हैं शहनाई नवाज उस्ताद बिस्मिल्लाह खां की. इतने महान संगीतकार की कोई कदर करे न करे, लेकिन इतना तो तय है कि इस तरह घोषणा के बाद भुला दिया जाना अपने आप में किसी राजनीतिक घोषणा से कम नहीं है. इसे इतने बड़े व्यक्तित्व पर किसी क्रूर मजाक से कम नहीं कहा जा सकता. नीतीश कुमार ने घोषणा किया था कि उस्ताद के जन्म दिन राजकीय समारोह के रुप में प्रत्येक वर्ष मनायी जाएगी.एक साल इसे मनाया भी गया.लेकिन ये क्या सरकार बदली फिर वही सरकार काबिज हुई और तेवर बदल गए, नतीजा इनकी तस्वीर पर किसी ने एक फूल चढ़ाना भी मुनासिब नहीं समझा.

संगीत के बदलते दौर में गांव तक सिमटी रहने वाली शहनाई को महज चौथी पास उस्ताद ने शहनाई के घराने में इसे स्थापित कर दिया. 21 मार्च 1916 को डुमरांव में एक गरीब और पिछड़े मुस्लिम परिवार में जन्मे उस्ताद ने अपनी कर्मभूमी 21 अगस्त 2006 को वाराणसी में हमेशा-हमेशा के लिए आखिरी सफर पर निकल गए.

भारत रत्न से नवाजे गए उस्ताद दुनिया के कोने-कोने में कई पुरस्कारों से नवाजे गए. लेकिन अपने ही घर में बेगाने हो गए. हर बार अपने ही प्रांत में हासिए पर रहे उस्ताद, तभी तो 2001 में भारत रत्न मिलने के बाद बिहार की तत्कालीन मुख्यमंत्री राबड़ी देवी ने बिहार रत्न से नवाजा. यह सिलसिला यहीं नहीं थमा और 20 अप्रैल 1994 को उस्ताद की जन्मस्थली डुमरांव में बिस्मिल्लाह खां टाउन हॉल सह पुस्तकालय का शिलान्यास किया वो भी माखौल बनकर रह गया. इसके अलावे इनकी पैतृक भूमि आज तक (पौने दो कट्ठा) विरान पड़ी है.

एक तरफ बिहार अपना 99 वां स्थापना दिवस मना रहा था, 22 मार्च 2011 को लेकिन ये कैसी त्रासदी कि स्थापना दिवस से एक दिन पहले यानि 21 मार्च को उस्ताद को किसी ने याद तक नहीं किया. माना अगर अलग से दो फूल नहीं चढ़ाया तो कोई बात नहीं काश ! स्थापना दिवस में एक बार नाम भी किसी ने ले लिया होता तो शायद उसकी खानापूर्ति हो जाती. मगर लानत है इस प्रांत पर हर दिन अपने प्रगति की नई इबारत लिखने वाला आज अपने मूल से ही भटक रहा है. या यों कहे कि इसे बिता कल और बीते जमाने के विभूति सिर्फ एक कहानी बनकर रह गए हैं.

यह बात यहीं खत्म नहीं होती उस्ताद के गृह जिला बक्सर में जिला स्थापना दिवस 17 मार्च को उन्हें याद करना किसी ने मुनासिब नहीं समझा. दिगर करने वाली बात ये है कि जब इस बाबत बक्सर के जिलाधिकारी अजय यादव को इसके बारे में बताया गया कि उस्ताद पर एक डॉक्यूमेंट्री है 6-7 मिनट की है कृपया इसे चलवा दिया जाए तो डीएम ने कहा कि लोग शारदा सिन्हा को देख लेंगे तब आगे देखा जाएगा. चलना तो दूर उस्ताद का कहीं जिक्र तक नहीं किया जाना इससे बड़ा हास्यास्पद और क्या हो सकता है. इतना ही नहीं उनेक गृह जिले में ही भूला दिया गया. कहीं जिक्र तक नहीं किया जाना, आकिर किस मानसिकता को दर्शाता है. समाज के तथाकथित पहरुए इसके लिए दोषी हैं, जिले का एक जिम्मेदार अधिकारी जिम्मेवार हैं या फिर सरकार का उदासीन रवैया. ये गलती अगर जिले में हुई तो सोचा आगे इसमें सुधार होगी, लेकिन राज्य स्थापना दिवस पर भी उन्हें याद तक नहीं किया गया.

एक बार फिर कहूंगा घोषणा करने वाले महान आत्माओं से कि आप वही घोषणा किजीए जिसे आप पूरा कर सकते हैं. नीतीश कुमार ने घोषणा तो कि मगर उसे पूरा नहीं कर पाए. इन्होने ये भी कहा था कि पटना में बन रहे 19 पार्कों में से एक का नाम बिस्मिल्लाह खां के नाम पर रखा जाएगा. डुमरांव में उनके नाम पर कोई यादगार काम किया जाएगा, पर वो सारे सिफर साबित हुए.

15 नवंबर 2009 को बिहार सचिवालय के संवाद भवन में शहनाई वादक उस्ताद बिस्मिल्लाह खां पर लिखी गई पुस्तक के लोकार्पण के मौके पर मुख्यमंत्री नीतिश कुमार ने उस्ताद के जनम दिन को राजकीय समारोह के रुप में मनाए जाने की घोषणा की थी. एक साल मनाया भी गया. लेकिन एस साल इनका जनम दिन मनाना किसा ने मुनासिब नही समझा. और बिहार दिवस की धूम में राजकीय समारोह मनाना तो दूर किसी ने याद तक नही किया. ये कैसी घोषणा है इससे बड़ी बेइज्जती इतने बड़े महान कलाकार की और क्या हो सकती है.

बिस्मिल्लाह खां का नाम किसी जाति-धर्म से नहीं जुड़ा है, बल्कि पवित्र संगीत से जुड़ा हुआ है. संगीत से जो भी ताल्लुक रखने वाला होता है, वो कोमल हृदय होता है. उसमें भी बात अगर उस्ताद की कि जाए तो वो खुद में ही संगीत की संस्था हैं. हां, एक बात है उस्ताद किसी दल या राजनेता से नहीं जुड़े थे. जिससे इन्हें कोई लाभ मिल सके. अगर उस्ताद चाहते तो बहुत रुपए कमा सकते थे. परंतु उस शख्सियत ने संगीत की सेवा के अलावे कुछ नहीं देखा और ना ही सुना. वैसे महान आत्मा को कोई याद करे ना करे, पर संगीत के श्रद्धालुओं के दिल में युगों-युगों तक जिंदा रहेंगे.

--( मुरली मनोहर श्रीवास्तव,पत्रकार सह लेखक-शहनाई वादक उस्ताद बिस्मिल्लाह खां)

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HIMMAT SE KAM LOGE TO ZMANA V SATH DEGA...HO GAYE KAMYAB TO BCHACHA-BCHCHA V NAM LEGA.....MAI EK BAHTE HWA KA JHOKA HU JO BITE PAL YAD DILAUNGA...HMESHA SE CHAHT HAI KI KUCHH NYA KAR GUZRNE KI...MAI DUNIA KI BHID ME KHONA NHI CHAHTA....