Monday, December 28, 2009

Happy New Year-2010

नया साल लेकर
आएजीवन में बहार आपके.
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खुशीयों से भरा-पूरा,
जीवन में हो उल्लास आपके.
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हर कदम पर पूरे हो
जीवन के हर ख्वाब आपके.
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हर दिन जगमगाते रहे सितारे
खुशीयों को लगे पंख आपके.
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ईश्वर से है मेरी प्रार्थना
नव वर्ष में खुशीयों से
दामन भर दें आपके.....
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नव वर्ष पर हार्दिक शुभकामनाओं सहित.....
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-मुरली मनोहर श्रीवास्तव,

बाबू मोसाय...ये दुनिया एक रंगमंच है....

...जिंदगी के सफर में गुजर जाते हैं जो मोकाम वो फिर नहीं आते.........
.........और हम सब की डोर उपर वाले की हाथ में है....वो जब चाहे....जैसे चाहे नचा सकता है......यह डायलॉग आज भी लोगों के दिलों-दिमाग पर छाई है......और हो भी क्यो नहीं...सच्चाई से रुबरु कराती है.....राजेश खन्ना और अमिताभ बच्चन के इस जीवंत भूमिका ने फिल्म जगत में इतिहास रच दिया.......राजेश आज जिन्दगी के इस पड़ाव पर भी
अपने रूमानी अंदाज, जीवंत अभिनय और कामयाब फिल्मों के बूते करीब डेढ़ दशक तक सिनेप्रेमियों के दिलों पर राज करते रहे......राजेश खन्ना के रूप में हिन्दी सिनेमा को पहला ऐसा सुपरस्टार मिला जिसका जादू चाहने वालों के सिर चढ़कर बोलता था।29 दिसम्बर 1942 को अमृतसर में जन्मे जतिन खन्ना बाद में फिल्मी दुनिया में राजेश खन्ना के नाम से मशहूर हुए। उनका अभिनय का शुरुआती अच्छा नहीं रहा.....बाद में इतनी तेजी से परवान चढ़ा कि उसकी मिसाल बहुत कम ही मिलती है।परिवार से खिलाफत कर बतौर एक्टर करियर चुनने वाले राजेश खन्ना ने वर्ष 1966 में 24 वर्ष की उम्र में आखिरी खत फिल्म से सिनेमा में कदम रखा। बाद में बहारों के सपने और औरत के रूप में उनकी कई फिल्में आईं मगर उन्हें बॉक्स आफिस पर कामयाबी नहीं मिल सकी।वर्ष 1969 में आई फिल्म आराधना ने राजेश खन्ना के करियर को उड़ान दी और देखते ही देखते वे युवा दिलों की धड़कन बन गए। फिल्म में शर्मिला टैगोर के साथ उनकी जोड़ी बहुत पसंद की गई और वे हिन्दी सिनेमा के पहले सुपरस्टार बनकर प्रशंसकों के दिलोदिमाग पर छा गए।आराधना ने राजेश खन्ना की किस्मत के दरवाजे खोल दिए और उसके बाद उन्होंने अगले चार साल के दौरान लगातार 15 हिट फिल्में देकर समकालीन तथा अगली पीढ़ी के अभिनेताओं के लिए मील का पत्थर कायम किया। वर्ष 1970 में बनी फिल्म सच्चा-झूठा के लिए उन्हें पहली बार सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का फिल्मफेयर अवॉर्ड दिया गया।वर्ष 1971 राजेश खन्ना के अभिनय करियर का सबसे यादगार साल रहा। उस वर्ष उन्होंने कटी पतंग, आनन्द, आन मिलो सजना, महबूब की मेहँदी, हाथी मेरे साथी और अंदाज जैसी सुपरहिट फिल्में दीं। दो रास्ते, दुश्मन, बावर्ची, मेरे जीवन साथी, जोरू का गुलाम, अनुराग, दाग, नमक हराम और हमशक्ल के रूप में हिट फिल्मों के जरिये उन्होंने बॉक्स आफिस को कई वर्षों तक गुलजार रखा।भावपूर्ण दृश्यों में राजेश खन्ना के सटीक अभिनय को आज भी याद किया जाता है। आनन्द फिल्म में उनके सशक्त अभिनय को एक उदाहरण का दर्जा हासिल है। एक लाइलाज बीमारी से पीड़ित व्यक्ति के किरदार को राजेश खन्ना ने एक जिंदादिल इनसान के रूप जीकर कालजयी बना दिया।राजेश को आनन्द में यादगार अभिनय के लिए वर्ष 1971 में लगातार दूसरी बार सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का फिल्मफेयर अवॉर्ड दिया गया। तीन साल बाद उन्हें आविष्कार फिल्म के लिए भी यह पुरस्कार प्रदान किया गया। साल 2005 में उन्हें फिल्मफेयर लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड दिया गया।वैसे तो राजेश खन्ना ने अनेक अभिनेत्रियों के साथ फिल्मों में काम किया लेकिन शर्मिला टैगोर और मुमताज के साथ उनकी जोड़ी खासतौर पर लोकप्रिय हुई। उन्होंने शर्मिला के साथ आराधना, सफर, बदनाम फरिश्ते, छोटी बहू, अमर प्रेम, राजा-रानी और आविष्कार में जोड़ी बनाई जबकि दो रास्ते, बंधन, सच्चा-झूठा, दुश्मन, अपना देश, आपकी कसम, रोटी तथा प्रेम कहानी में मुमताज के साथ उनकी जोड़ी बहुत पसंद की गई।संगीतकार आरडी बर्मन और गायक किशोर कुमार के साथ राजेश खन्ना की जुगलबंदी ने अनेक हिन्दी फिल्मों को सुपरहिट संगीत दिया। इन तीनों गहरे दोस्तों ने करीब 30 फिल्मों में एक साथ काम किया। किशोर कुमार के अनेक गाने राजेश खन्ना पर ही फिल्माए गए और किशोर के स्वर राजेश खन्ना से पहचाने जाने लगे।राजेश खन्ना ने वर्ष 1973 में खुद से उम्र में काफी छोटी नवोदित अभिनेत्री डिम्पल कपाड़िया से विवाह किया और वे दो बेटियों ट्विंकल और रिंकी के माता-पिता बने। हालाँकि राजेश और डिम्पल का वैवाहिक जीवन ज्यादा दिनों तक नहीं चल सका और कुछ समय के बाद वे अलग हो गए। राजेश फिल्मों में व्यस्त रहे और डिम्पल ने भी अपने करियर को तरजीह देना शुरू किया।करीब डेढ़ दशक तक प्रशंसकों के दिलों पर राज करने वाले राजेश खन्ना के करियर में 80 के दशक के बाद उतार शुरू हो गया। बाद में उन्होंने राजनीति में भी कदम रखा और वर्ष 1991 से 1996 के बीच नई दिल्ली से कांग्रेस के लोकसभा सांसद भी रहे।वर्ष 1994 में उन्होंने खुदाई से अभिनय की नई पारी शुरू की। उसके बाद उनकी आ अब लौट चलें (1999), क्या दिल ने कहा (2002), जाना (2006) और हाल में रिलीज हुई वफा के साथ उनका सफर अब भी जारी है।...सदी के ऐसे बहुत कम ही अभिनेता हुए जिनके नाम आज भी है......और उनके जन्म दिन पर लॉट आफ कॉन्ग्राचुलेशन डीयर राजेश.....
.......घुंधरु की तरह बजता ही रहा हूं मै.......
प्रस्तुति--सिमरन

Tuesday, December 15, 2009

बिहार में उद्दोगों की तादाद............

बिहार में बिजली का उत्पादन बढ़ेगा... उद्दोगों की तादाद भी बढ़ेगीरोजी-रोटी के लिए लोगों को परदेश नहीं जाना होगा......लोग यहीं कमाएंगे और ऐसे पार्कों में अपना मन बहलाएंगे.........बिहार में तेज हो रही है विकास की रफ्तार... यकीन नही होता तो जान लीजिए कि जिस तेजी के साथ बिहार में शिक्षा के बड़े-बड़े संस्थान खुल रहे हैं... उसी रफ्तार से अब यहां इंडस्ट्री लागाने का काम भी शुरु हो चुका है... राज्य में कई तरह की इंडस्ट्री लगाने के लिए... सरकार की तरफ से पटना में ही साढ़े पांच हजार एकड़ जमीन.. के अधिग्रहण की प्रक्रिया... करीब-करीब पुरी हो चुकी है...

स्थान- बाढ़
परियोजना- एनटीपीसी पावर प्लांट
3111.22 एकड़ जमीन का अधिग्रहणबाढ़ में एनटीपीसी पावर प्लांट की स्थापना के लिए सरकार ने तीन हजार एक सौ एगारह एकड़ जमीन का अधिग्रहण कर लिया है...
साथ ही पावर ग्रिड सब स्टेशन के लिए 43.33 एकड़, और राज्य विद्युत बोर्ड के विस्तार के लिए 30.68 एकड़ जमीन का अधिग्रहण किया गया है... अगर ये परियोजनाएं पूरी हो जाती है... तो न सिर्फ हजारों लोगों को रोजगार मिलेगा बल्कि बिजली की समस्या से भी बिहार को निजात मिलेगी।

स्थान- बिहटा
परियोजना- मेगा औद्योगिक पार्क और औद्योगिक क्षेत्र

औद्योगिक क्षेत्र के लिए 99.12 एकड़ जमीन का अधिग्रहण
मेगा औद्योगिक पार्क के लिए 1810.60 एकड़ जमीन का अधिग्रहण
बिहटा में औद्योगिक क्षेत्र की स्थापना के लिए जहां सरकार ने 99.12 एकड़ जमीन का अधिग्रहण किया है वहीं मेगा औद्दोगिक पार्क के लिए 1810.60 जमीन का अधिग्रहण किया गया है... जिसके बाद यहां पर तरह-तरह के उद्योग और शिक्षण संस्थान खोलने का काम भी शुरु हो चुका है...

स्थान- नौबतपुर
परियोजना- चीनी मिल
96.71 एकड़ जमीन का अधिग्रहण

वहीं नौबतपुर के कोपा में चीनी मिल लगाने के लिए 96.71 जमीन का अधिग्रहण किया गया है, साथ ही सरकार ने मनेर शरीफ को पर्यटन स्थल के तौर पर विकसित करने के लिए भी 35.64 एकड़ जमीन अधिग्रहित की है


लोगों को अब कूड़े-कचरे से भी निजात मिलेगी, क्योंकि कूड़े-कचरे से बिजली और खाद बनाने का इंतजाम भी किया जा रहा है... इसके तहत बैरिया में ठोस अपशिष्ट प्रबंधन के लिए भी 60.73 एकड़ जमीन का अधिग्रहण किया जा चुका है... साथ ही बेघर लोगों के लिए झुग्गी झोपड़ी बनाने के लिए फतेहपुर में 12.62 एकड़ जमीन का अधिग्रहण किया गया है... औऱ सबसे बड़ी बात तो ये कि अब इलाज के लिए भी लोगों को दिल्ली नहीं जाना पड़ेगा, क्योंकि दिल्ली जैसा एम्स पटना के भुसुल्ला इलाके में बनने वाला है... इसके लिए भी सरकार ने 29.31 एकड़ जमीन के अधिग्रहण की प्रकिया पूरी कर ली है। इ सब जानकर तो हर कोई यही कहेगा कि बिहार बदल रहा है... लेकिन बदलाव के इस बयार में आपको भी ईमानदारी से अपनी पूरी ताकत झोंकनी होगी... ताकि बिहार जल्द से जल्द देश का नंबर वन स्टेट बन सके।
गरीबी से जुड़ी तेंदुलकर रिपोर्ट...

बिहार तरक्की कर रहा है ........यहां गरीबी कम हो रही है ..............रोजगार के अवसर बढ़ रहे है.. और हम कई राज्यों को पीछे छोड़ते जा रहे है... ऐसा हम नहीं कह रहे... बल्कि कह रही है... गरीबी से जुड़ी सुरेश तेंदुलकर कमेटी कि वो रिपोर्ट... जिसके मुताबिक बिहार अब देश का दूसरा गरीब राज्य है ना कि पहला...
प्रति व्यक्ति उपभोग खर्च के आधार पर.... गरीबी का आकलन करनेवाली... कमेटी की रिपोर्ट के मुताबिक देश में कुल 37.2 पर्सेंट लोग.. अब भी गरीबी रेखा के नीचे हैं... रिपोर्ट में अलग अलग मानक पर शहरी और ग्रामीण गरीबों की जो तस्वीर उभर कर सामने आई है... वो बताती है कि बिहार से ज्यादा गरीब दूसरे राज्यों में हैं... कमेटी ने... हर महीने ग्रमीण इलाकों में 446 रुपया अड़सठ पैसा, और शहरी इलाकों में 578 रुपया आठ पैसा से नीचे खर्च करने वालों को गरीब मानकर जो रिपोर्ट पेश की है... उसके मुताबिक सबसे ज्यादा गरीब उत्तर प्रदेश में हैं... यहां ग्रामीण गरीबों की संख्या 607.74 लाख है... रिपोर्ट के मुताबिक आंध्र प्रदेश के आंकड़े चौकाने वाले है... यहां के गांवों में 187.07 लाख लोग गरीबी रेखा के नीचे हैं... जबकि बिहार में ग्रामीण गरीबों की तादाद 109 लाख ही है, बिहार के बाद महाराष्ट्र में ग्रामीण गरीबों की संख्या 106 लाख और राजस्थान में 80 लाख है... हालांकि आबादी और उसके अनुपात के लिहाज से उड़ीसा सबसे ज्यादा गरीब राज्य है, उड़ीसा में जहां 57.2 फीसदी लोग गरीबी रेखा के नीचे हैं... वहीं बिहार में 54.4 फीसदी लोग गरीब है... इस क्रम में बिहार के बाद नंबर आता है छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और फिर झारखंड का। बीमारु राज्य के नाम से मशहूर बिहार विकास के जिस डगर पर चल निकला है... जानकार उसे राज्य की एनडीए सरकार और सीएम नीतीश कुमार की नीतियों का नतीजा मानते हैं।

तेंडुलकर कमेटी की रिपोर्ट
देश में कुल 37.2 parsent लोग गरीब
बिहार से ज्यादा गरीब दूसरे राज्यों में
प्रति व्यक्ति उपभोग खर्च को बनाया आधार
उत्तर प्रदेश में 607.74 लाख ग्रामीण गरीब
आंध्र प्रदेश में 187.07 लाख ग्रामीण गरीब
बिहार के गांवों में 106 लाख लोग गरीब
सबसे गरीब राज्य उड़ीसा
गरीब राज्यों की सूची

राज्य गरीबी
उड़ीसा 57.2%
बिहार 54.4%
छत्तीसगढ़ 49.4%
मध्यप्रदेश 48.6%
झारखंड 45.3%
शो कितना टिक पाता है.......
जितना नया सब्जेक्ट उतनी ही आंखे गड़ जाती है TV screen से....TRP के इसी फंडे की वजह से छोटे पर्दे पर अबतक सबकुछ आजमाया जा चुका है...सपनों से रिएलिटी तक, टैलेन्ट से परफोरमेन्स तक, विदाई से जुदाई तक....बस कुछ बचा था तो पर्दा उठना पिछले जन्म के राज से....

तो भला ये कसर क्यों छोड़ी जाती...यही सोच NDTV IMAGINE लेकर आ गया एक ऐसा शो जिसमें उठ रहा है पर्दा लोगों के पिछले जन्म के राज से...इस शो को होस्ट कर रहे हैं भोजपुरी फिल्मों के स्टार रविकिशन...जो शो में जानी-मानी हस्तियों के अलावा आम आदमी को भी उसके पिछले जन्म की झलक दिखा रहे हैं...

- इससे पहले STAR PLUS ने सच का सामना से इस जन्म के राज खोलने की कोशिश की थी....जिसके कारण उस शो ने TRP तो खुब बटोरी...लेकिन हमेशा विवादो में घिरा रहा....यही वजह थी कि चैनल वालों को वो शो बंद करना पड़ा...अब TRP के इस खेल में य शो कितना टिक पाता है ये तो दर्शकों के रिस्पॉन्स से पता चल जाएगा...
अलग राज्य का मामला तूल पकड़ा...........

तेलंगना राज्य के गठन की प्रक्रिया के बाद अब अलग मिथिला राज्य की मांग भी जोर पकड़ने लगी है....कई संगठनों ने मिथिला राज्य की मांग को लेकर आंदोलन तेज कर दिया है...
तेलंगना राज्य को लेकर जो आग उठी वो अब पूरे देश में फैलने लगी है...यूपी हो महाराष्ट्र हो या फिर बिहार...हर जगह में अलग राज्य बनाने की आवाज बुलंद हो रही है...बिहार में अलग मिथिला राज्य की मांग को लेकर कई संगठन आंदोलन पर उतारु हो गए हैं...उनका मानना है कि विकास चाहिए तो अलग राज्य का गठन जरुरी है.
हालांकि राजनीतिक विश्लेषक भाषा और क्षेत्रिय आधार पर अलग राज्य के गठन को सही नहीं मानते...अलग राज्य की मांग सही है या गलत ये तो नहीं कहा जा सकता...लेकिन असल मुद्दा है विकास...और वो हर हाल में होना चाहिए....

उम्र महज नौ साल............



उम्र नौ साल की और सिने पर हजारों जख्म । बात किसी बच्चे की नहीं , बल्कि आज से नौ साल पहले यानि 15 नवम्बर 2000 को बिहार से अलग होकर बने झारखंड स्टेट की हो रही है । नये स्टेट को रिश्वतखोरी , जंगलराज और करप्शन ने हजारो जख्म दिये है । जल – जंगल और जमीन के नाम पर पॉलिटिक्स करने वाले कई लीडर का असली चेहरा देख स्टेट के पुननिर्माण की लड़ाई में कुर्बान हुये लोगो को बड़ी तकलीफ हो रही है ।
15 नवम्बर 2000 । एही दिन झारखंड अलग स्टेट का निर्माण हुआ । लेकिन नौ सालों में झारखंड के पब्लिकों ने 6 सीएम और 6 गवर्नर को देखा । नौ साल के झारखंड ने सरकार बनाने की जोड़-तोड़ और एक निर्दलीय विधायक को सीएम भी बनते देखा । हद तो ये हुई कि झारखंड को अलग स्टेट का दर्जा मिलने पर अबुआ राज यानि अपना राज का सपना देखने वाले ही बेगाने हो गये और पब्लिक की गाढ़ी कमाई करप्शन करने वाले के हवाले हो गई । इसकी गवाही कोड़ा की बेहिसाब दौलत दे रही है ।

मजे की बात है कि करप्शन के आरोपों में कई बार घिर चुके झारखंड के एक्ससीएम इस एसेम्बली इलेक्शन प्रचार में कोड़ा को कोसने में तनिक नहीं थक रहे है । जबकि आरजेडी , कांग्रेस , और जेएमएम के समर्थन के बूते ही 23 महीने तक निर्दलीय कोड़ा सत्ता की थाली में खीर खा रहे थे ।
कहा जाये तो झारखंड बनते ही , स्टेट पर ग्रहण लग गया । स्टेट के पहिले सीएम बाबूलाल मरांडी ने डोमिसाइल का पेंच फेंक कर झारखंड को झगड़ाखंड बना दिया । डोमिसाइल की आग में झारखंड महिनों जला । बाद में सीएम की कुर्सी सम्हालने आये अर्जुन मुंडा पर टाटा के साथ सांठ-गांठ करने के आरोप लगे । कई कंपनियो के साथ एमओयू कर उद्योग नहीं खुलवा पाये । ऐसे में ये सवाल अब बीजेपी के लोग ही उठा रहे है ।
नौ साल के झारखंड में 6 बरस बीजेपी की अगुवाई में एनडीए की सरकार रही है ।इस सरकार पर भी कई बार करप्शन के आरोप लगे है । यही वजह है कि पहले चरण का इलेक्शन दस दिनों बाद होना है लेकिन बीजेपी के लीडर करप्शन को मुद्दा नहीं बना पाये है । झारखंड में अब तक जिनकी भी सरकार बनी नौ साल बीतने के बाद भी वे स्टेट को डेवलपमेंट की पटरी पर नहीं ला पाये ।


डा. जहांगीर होमी भाभा...


जहांगीर होमी भाभा...जिन्होंने वर्षों पहले परमाणु ऊर्जा के महत्व को समझकर परमाणु ऊर्जा प्रोग्राम की नींव रखी...परमाणु क्षेत्र में उनके योगदान को देखते हुए ही उन्हें आर्किटेक्ट ऑफ इंडियन एटॉमिक एनर्जी प्रोग्राम भी कहा जाता है...डा. भाभा का जन्म तीस अक्तूबर 1909 में मुबंई के एक धनी पारसी परिवार में हुआ... और इसलिए बचपन से ही उनकी परवरिश बेहद उच्चस्तरीय परिवेश में हुई।

डा. भाभा ने अपनी पढ़ाई मुबंई से ही की...लेकिन उसके बाद उन्होंने के कैअस कॉलेज से इंजनियरिंग की पढ़ाई कर वो इंजीनियर बने...लेकिन वे कभी भी इंजीनियर बनना नहीं चाहते थे...उनका झुकाव हमेशा से ही साइंस की तरफ था...इसलिए उन्होंने हमेशा खुद को अपने फेवरेट सबजेक्ट फिजीक्स से जोड़े रखा।

महात्मा गांधी के विचारों से प्रभावित डा. भाभा का व्यक्तित्व बहुते सिंपल था। लेकिन वो इरादों के उतने ही पक्के थे...Nuclear फिजीक्स के प्रति उन्हें बहुते लगाव था...इसलिए उन्होंने भारत में Nuclear energy की जरुरत को देखते हुए 1957 में atomic energy training school की स्थापना की...जहां साइंस व इंजनियरिंग के students को ट्रेनिंग दी जाती थी...

डा. भाभा के ही guidance में भारत में Atomic energy commission की स्थापना की गई। जहांगीर होमी भाभा ने atomic energy के विकास के लिए कई प्रयास किए...जिस के परिणामस्वरुप 1956 में ट्रांबे में एशिया के पहले एटोमिक रियेक्टर की स्थापना की गई...यही नहीं 1956 में जेनेवा में आयोजित यूएन कांफ्रेस on atomic energy के लिए उन्हें चेयरमैन भी चुना गया। आज उस महान व्यक्ति के जन्मतिथि के अवसर पर लोगों ने उन्हें याद किया।

Saturday, December 12, 2009

जाली नोटों का धंधा
जाली नोट हमारी अर्थव्यवस्था को घुन की तरह खाये जा रही है। हर छोटा बड़ा अपराधी इस धंधे से जुड़कर लाखों की कमाई कर रहा है। जाली नोटों का धंधा अब बन चुका है मुनाफे का धंधा। क्योंकि इस धंधे में खतरा कम और कमाई है अधिक। पुलिस लगातार इन धंधेबाजों पर नजर रखती है। लेकिन धंधेबाज हैं कि अपने नापाक कारनामों को अंजाम दे ही देते हैं। लेकिन इस बार थी पुलिस पूरी चौकन्नी। पुलिस लगातार सर्विलांस के जरिए धंधेबाजों पर नजर रख रही थी। पुलिस को खबर मिलती है कि दो लोग बेऊर के पास जाली नोटों का डिलिंग करने आने वाले हैं। पुलिस सादी वर्दी में चारों तरफ तैनात हो गई। जैसे ही वो दोनों वहां पहुंचे, पुलिस ने दोनों को अरेस्ट कर लिया।
पुलिस ने पूछताछ की तो एक ने अपना नाम रामबाबू और दूसरे ने सुरेन्द्र बताया। पुलिसिया पूछताछ के आगे दोनों की एक न चली और जल्द ही दोनों ने घुटने टेक दिए। गिरफ्तार आरोपियों ने पूछताछ में जो खुलासा किया उसे सुनकर पुलिस के होश उड़ गए।

हालांकि अरेस्ट आरोपियों का कहना है कि वो इस धंधे से कुछ दिन पहले ही जुड़े थे। उनकी माने तो पूरे धंधे का सरगना नेपाल में बैठा है। वो तो बस एक मोहरा हैं।
जाली नोटों के धंधे से सिर्फ हमारे देश की अर्थवयवस्था ही नहीं बल्कि पूरे विश्व की अर्थव्यवस्था चौपट हो रही है। अब देखने वाली बात ये है कि पुलिस कब तक इस धंधे को रोक पाने में कामयाब हो पाती है।
उपनयास पर फिल्में ............
उपनयास पर फिल्में बनने का सिलसिला काफी पुराना हैं। हिन्दी सिनेमा कि अगर बात करें तो इसमें सत्यजित रे का प्रयोग काफी सफल रहा।

उसके बाद तिसरी कसम, देवदास, परिनिता, स्लम डौग जैसे फिल्मों ने इसे ट्रेंड बना दिया ..और अब इस ट्रेंड को फौलौ कर रहे है..राज कुमारी हिरानी...अपनी फिल्म थ्री इडीयट्स में।

थ्री इडीयट्स.... बनी हैं चेतन भगत के नोवेल फाई पोन्ट समवन के आधार पर। चेतन भगत कि पहली नोवेल अ नाईट इन अ कौल सेन्टर पर फिल्म हैलो बन चूकी हैं। और अब उनके दुसरी किताब पर बनी हैं...3 idiots। ये कहानी है तीन दोस्तों कि ..उनके कॉलेज लाईफ कि, romance की...उनके career choice कि। इस फिल्म में मुख्य किरदार निभा रहे हैं। आमिर खान,आर माधवन,सरमन जोशी ,बोमन ईरानी,करीना कपूर और स्लेशल अपीयरन्स में काजोल।
इस फिल्म के promos दर्शको को खुब पसंद आ रहे है।

ओझल हो जाऐं


भूल न जाना अंजाने को,जो राहों में मिल गया था.
मिली थी इक नजर बस तेरा होकर रह गया था.

सफर करते-करते,इतनी दूर निकल गए
दूर जाने की बातें की, आंसू छलक गए

दुनिया की भीड़ में, बहुतेरे लोग मिले
ये मुझे क्या हुआ,बस तेरे होकर रह गए

दर्द तो पलते रहे,सब खिलखिलाते रहे
जख्म पर मरहम लगाया,उम्मीद पल गए

चल दूर इस जहां से,नई दुनिया बसाऐं
जहां हम-तुम,दो टूक गुफ्तगु कर पाएं

मंजिल-ए-जिंदगी का क्या कुछ कहूं
जहां को रास न आए,ओझल हो जाऐं
-मुरली मनोहर श्रीवास्तव

शम्मी को एक्टिंग तो विरासत में

पृथ्वी राजकपूर के बेटे यानि शमशेर राजकपूर का जन्म 21 october 1931 में हुआ। बॉलीवुड में अपने पेट नेम शम्मी कपूर के नाम से फेमस ये एक्टर आज मना रहा है अपना 78 birthday । रिबेल स्टार के नाम से जाने जाने वाले शम्मी कपूर का जन्म भले ही मुंबई में हुआ लेकिन उनका बचपन कोलकता में ही बीता। पर उनहोंने अपनी स्कूलिंग मुंबई के st. joseph’s convent , don bosco school और New era school से पूरी की।

कॉलेज के दिनों में उन्होंने अपने पिता पृथ्वीराज कपूर के पृथ्वी थेयटर्स को ज्वाइन किया। फिर 1948 में 50 रू के सैलरी पर उन्होंने एक जूनियर आर्टिस्ट के तौर पर इस इंडस्ट्री में कदम रखा। लेकिन शम्मी को एक्टिंग तो विरासत में ही मिली थी। तो भला इस एक्टर का सफर थेयटर तक आके कैसे रुकता। इसलिए चार साल थेयटर में काम करने के बाद उन्होंने फिल्मों की तरफ रुख किया और 1953 में जीवन ज्योति के साथ अपना डेब्यू किया।

1955 में फिल्म रंगीन रातें के सेट पर उनकी मुलाकात गीता बाली से हुई। दोनों में पहली ही नजर में प्यार हो गया। गीता उनसे एक साल बड़ी थी इसलिए समाज के डर से उन्होंने किसी को बिना बताए ही शादी कर ली। उनकी इस शादीशुदा खुशहाल जिन्दगी में और खुशियां भरने के लिए आया बेटा आदित्य और बेटी कंचन। पर ये खुशियां ज्यादा दिनों तक टिक ना सकी और 1956 में फिल्म तीसरी मंजिल के दौरान गीता बाली की चीकेन पॉक्स से डेथ हो गई। 1968 में उनका नाम उस समय की फेमस एक्ट्रेस मुमताज के साथ भी जुड़ा। लेकिन इस असफल प्रेम के बाद शम्मी कपूर ने निला देवी से शादी कर ली और दोनों आज तक खुशहाल मैरिड लाइफ बिता रहें हैं।

Sunday, December 6, 2009

Patna Daily.Com


बिस्मिल्ला खान राज्य अमेरिका के राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी, कम से कम अस्थायी
Patna: November 15, 2009 पटना: 15 नवम्बर 2009
In a rare picture of political togetherness, Chief Minister Nitish Kumar, Independent MP Jagadanand, and noted filmmaker Prakash Jha shared the same platform on Sunday at the release of a book on world-acclaimed Shehnai maestro Bismillah Khan. राजनैतिक एकजुटता का एक दुर्लभ चित्र में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, स्वतंत्र सांसद Jagadanand, और फिल्म निर्माता प्रकाश झा ने कहा रविवार को दुनिया पर एक पुस्तक का विमोचन-प्रसिद्ध शहनाई वादक बिस्मिल्ला खान को एक ही मंच साझा की है. Highlighting the life story of Khan and his music career that exceeded six decades, Kumar said that the state would honor the Shehnai player at a function next year to mark his birth anniversary. खान के जीवन की कहानी और उनके संगीत कैरियर कि छह दशक से अधिक पर प्रकाश डालते कुमार ने कहा कि राज्य के एक समारोह में अगले साल शहनाई खिलाड़ी सम्मान के लिए उसके जन्म वीं वर्षगांठ के अवसर होगा. The Chief Minister also pledged to get a park constructed in Patna to honor Khan who, he said, brought joy to millions of people across the globe. मुख्यमंत्री को भी एक पटना में निर्माण के लिए खान, जो उन्होंने कहा कि सम्मान मिल पार्क का वादा, दुनिया भर में लाखों लोगों को आनन्द ले आया. The book written by Murli Manohar Srivastava celebrates the life of Khan, his humble beginning, and his contributions to the world of music in a very lucid manner that is certain to interest people of all ages, Kumar said. मुरली मनोहर श्रीवास्तव द्वारा लिखित पुस्तक खान के जीवन, उनकी शुरूआत मनाता है, और संगीत की दुनिया के लिए अपने योगदान के एक बहुत स्पष्ट अर्थ का ढंग है कि ब्याज के लिए निश्चित है में सभी उम्र के लोग, कुमार ने कहा. The event was particularly interesting in the light of reported personal grudges against the three men sharing the same platform. घटना के आलोक में विशेष रूप से दिलचस्प था तीन एक ही मंच साझा लोगों के खिलाफ व्यक्तिगत शिकायत की सूचना दी. As reported, Jagadanand, the former Rashtriya Janata Dal (RJD) leader, and Nitish Kumar have not spoken to each other in years. के रूप में, Jagadanand, पूर्व राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के नेता, और नीतीश कुमार की रिपोर्ट के वर्षों में एक दूसरे से बात नहीं की है. Also, Jha, known for his several socially hard-hitting films like Gangajal and Apharan, after sharing friendly relationship with Kumar until he was denied a Janata Dal (U) ticket for the Lok Sabha polls earlier this year, has hardly kept in touch with the Chief Minister after making an unsuccessful bid from Bettiah on a Lok Janshakti Party (LJP) ticket. इसके अलावा, झा, के लिए जाना जाता अपनी कई सामाजिक हार्ड Gangajal और Apharan जैसी फिल्मों मार, कुमार के साथ दोस्ताना संबंध साझा जब तक वह जनता दल (यू) के पहले इस साल लोकसभा चुनाव के लिए टिकट के बाद इनकार कर दिया था, शायद ही संपर्क में रखा गया है साथ मुख्य Bettiah से लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) पर एक असफल बोली टिकट करने के बाद मंत्री. Kumar, in an attempt to mend ways with both leaders, suggested keeping line of communication open with each other despite political and ideological differences among them. कुमार, एक के लिए दोनों नेताओं के साथ तरह से ठीक करने की कोशिश में रखने का सुझाव दिया एक दूसरे के साथ खुला संचार के उनके बीच राजनीतिक और वैचारिक मतभेदों के बावजूद लाइन. He later invited both to have snacks with him. वह बाद में दोनों उसके साथ नाश्ते के लिए आमंत्रित किया है.
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Saturday, November 21, 2009

Shehnai Vadak Bismillah Khan



Chief Minister Nitish Kumar released a book on shehnai maestro Bismillah Khan in Patna on November 15, 2009. The book "Shehnai Vadak Bismillah Khan" is written by Murali Manohar Srivastava and published by Prabhat Prakashan, New Delhi.Addressing the function, Bihar Chief Minister Nitish Kumar announced that the birth anniversary of shehnai maestro Bismillah Khan would be celebrated as a state function on March 21. The state government would also set up a park in his memory in Patna."A park with Bismillah Khan statue would also be set up at Dumraon,the birth place of the great shehnai player," he added.Photo: Aftab Alam Siddiqui
Posted by Bahti Ganga at Tuesday, November 17, 2009
Labels: Bismillah Khan

एक मंच पर दिखे नीतीश, जगदानंद व प्रकाश झा


Dainik Jagaran,Patna-16 nov.
पटना लम्बे अंतराल के बाद रविवार की शाम मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, लालू-राबड़ी मंत्रिमंडल में मंत्री रहे, बक्सर के सांसद जगदानंद व फिल्मकार प्रकाश झा एक मंच पर दिखे। राजनीतिक हलकों में देर शाम से यह मंचीय एकजुटता चर्चा का विषय बनी रही। एक जमाने में नीतीश कुमार के खास समझे जाने वाले जगदानंद के साथ इन दिनों मुख्यमंत्री का संवाद नहीं है। कुछ वर्षो से मुख्यमंत्री के करीबी माने जाने वाले प्रकाश झा पिछले लोकसभा चुनाव में लोजपा की टिकट पर चुनाव लड़ गये थे।
मुख्यमंत्री सचिवालय संवाद में आयोजित यह कार्यक्रम शहनाई वादक भारत रत्न बिस्मिल्लाह खां के जीवन पर मुरली मनोहर श्रीवास्तव द्वारा लिखी पुस्तक का विमोचन का था पर इशारे-इशारे में ही राजनीति पर भी खूब चर्चा हुई।
बात संवाद से ही शुरू की मुख्यमंत्री ने और कहा-मतभेद हो सकता है पर संवाद जरूर होना चाहिए। सलाह दी-राजनीति करने वालों को करने दीजिए राजनीति पर यह मान लीजिए कि अगर नेता की चर्चा खत्म हो गयी तो उसका बाजार भाव गिर जाता है। वहीं कुछ लोग चर्चा में बने रहना जानते हैं। साहित्यिक कार्यक्रम में मुख्यमंत्री ने छायावाद का सहारा लिया और सेतु की बात करते हुए आयोजकों की ओर इशारा करते हुए कहा कि-नदी के दो पाट को जोड़ने का काम करते रहना चाहिए। चाहें तो आप विधान पार्षद प्रेम कुमार मणि की सेवा ले लीजिए। कार्यक्रम के दौरान मुख्यमंत्री बीच में बैठे थे और उनके एक किनारे प्रकाश झा और दूसरे किनारे जगदानंद की सीट थी। प्रकाश झा से तो उन्होंने मंच पर ही गुफ्तगू की और कार्यक्रम के आखिर में जगदानंद को अल्पाहार के लिए बुलाकर ले गये
वैसे बिस्मिल्लाह खां पर भी मुख्यमंत्री ने अपनी बात रखी और यह एलान किया कि इस शहनाई वादक की जन्म दिवस को अगले वर्ष से राजकीय समारोह के रूप में मनाया जायेगा और राजधानी का एक पार्क उनकी स्मृति में बनेगा। सांसद, जगदानंद ने कहा कि बिस्मिल्लाह खां ने स्थानीय स्वर को विश्व का स्वर बनाया। सांसद अली अनवर ने भी इस मौके पर अपने विचार रखे

Bismillah Khan Unites Rival Politicians; at least Temporarily


Patna: November 15, 2009

In a rare picture of political togetherness, Chief Minister Nitish Kumar, Independent MP Jagadanand, and noted filmmaker Prakash Jha shared the same platform on Sunday at the release of a book on world-acclaimed Shehnai maestro Bismillah Khan.Highlighting the life story of Khan and his music career that exceeded six decades, Kumar said that the state would honor the Shehnai player at a function next year to mark his birth anniversary.The Chief Minister also pledged to get a park constructed in Patna to honor Khan who, he said, brought joy to millions of people across the globe.The book written by Murli Manohar Srivastava celebrates the life of Khan, his humble beginning, and his contributions to the world of music in a very lucid manner that is certain to interest people of all ages, Kumar said.The event was particularly interesting in the light of reported personal grudges against the three men sharing the same platform.As reported, Jagadanand, the former Rashtriya Janata Dal (RJD) leader, and Nitish Kumar have not spoken to each other in years. Also, Jha, known for his several socially hard-hitting films like Gangajal and Apharan, after sharing friendly relationship with Kumar until he was denied a Janata Dal (U) ticket for the Lok Sabha polls earlier this year, has hardly kept in touch with the Chief Minister after making an unsuccessful bid from Bettiah on a Lok Janshakti Party (LJP) ticket.Kumar, in an attempt to mend ways with both leaders, suggested keeping line of communication open with each other despite political and ideological differences among them. He later invited both to have snacks with him.


Wednesday, October 14, 2009

नरेगा महात्मा गांधी बन जाएगा ?

कहना गलत नहीं होगा कि दौलत अच्छे-अच्छों को अंधा बना देता है। गरीबों के कल्याण के नाम पर सरकार अरबों रूपये रिलीज करती है। लेकिन सरकारी तंत्र ही दबंगों के साथ मिलकर जमकर लूट-खसोट करती है। षायद इसलिए नरेगा आज जहां गरीबों के लिए कहर बनी है वहीं बिचैलियों कुबेर।

बिहार हो या झारखंड हर जगह रिष्वत की राषि तय है.
ये खेल बेषर्मी से चल रहा है। यहां लूट की स्थिति ये है कि सरकारी पदाधिकारियांे में भी परसेंटेज बंटा हुआ है। काम के बदले में भी मजदूरों को कम पैसा दिया जाता है। लेकिन मस्टर रोल और जाॅब कार्ड में पूरी मजदूरी दर्षायी जाती है। इसी तरह कार्य दिवस को लेके भी भारी गड़बड़ी होती है। पैसा नहीं देने पर जाॅब कार्ड तक नहीं बनाए जाते।

नरेगा में लूट किस स्तर से हो रहा है विधायिका, कार्यपालिका व न्यायपालिका तक को पता है। हाल ही में इस बात पर सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस भी कह चुके हैं कि नरेगा पूरी तरह से बिचैलियों के चंगुल में है। फिर भी लूट जारी है। जनता चिल्लाती है पर कोई सुनने वाला नहीं। नेता लोग एक-दूसरे को कोसने पर तुले हैं।

देषभर में तमाम गड़बड़ी की षिकायत के बाद सरकार को कुछ सुझा तो गांधी जयंती पर नरेगा के आगे बापू का नाम जोड़ने का। क्या नरेगा के नाम के आगे बापू का नाम जुड़ने से लूट-खसोट करने वाले सुधर जाएंगे। नरेगा महात्मा गांधी बन जाएगा। कई सवाल हैं जिसका जवाब षायद सरकार के पास नहीं। अब चाहे जो भी हो सुधार न हुआ त भुगतेगी तो जनता ही।
नरेगा नहीं काल


नरेगा आया गरीबों के उद्धार के लिए। इसके आते ही लगने लगा जैसे अब सही में गरीब-गुरबा के जीवन में नई रौशनी आ जाएगी। अब उन्हें दो जून रोटी खातिर भटकना नहीं पड़ेगा। जीवन में खुशियां आएंगी। अब रहेंगे मौज में। पर ऐसा हो न सका। नरेगा जैसे-जैसे पांव पसारता गया गरीबों पर कहर बनके टूटने लगा। झारखंड में तो इसका इतना खौफ है कि वहां के लोग अब ये कहने लगे हैं कि-नरेगा जो करेगा वो मरेगा।

नरेगा को लेके सरकार चाहे जितना ढोल पीट ले--कि ये गरीब-गुरबा के बेहतरी के लिए है। उनके हाथ में हरदम काम और दू गो पैसा रहेगा। पर झारखंड में यही नरेगा कहर बनके टूटा है। इसको लेके गरीबों में इतना खौफ है कि अब वो इसका नाम तक लेना नहीं चाह रहे।
ललित प्राकृति आपदा या रोड एक्सीडेंट से नहीं, नरेगा के चलते ही जान गंवा बैठा। झारखंड का ललित इसका शिकार होने वाला अकेला शख्स है ऐसी बात नहीं। तापस सोरेन, तुरिया मंुडा के नाम भी इसमें शामिल हैं। जो नरेगा के काल के गाल में शमा

म्यूजियम की शोभा चाक और कुम्हार


रौशनी का पर्व दिवाली के नजदीक आते हीं दिए बनाने का काम जोर-शोर से शुरू होता है। और सालों भर बेरोजगारी की मार झेलने वाले कुम्हार भी इस समय का बहुत पहले से इंतजार करते हैं....ताकि वो अपने घरौंदे को न जगमगा तो कम से कम रौशन तो जरूरे हो सकें।

मिट्टी के वो कारीगर....जो मिट्टी को तराश कर उससे लोगों के घरौंदों को रौशन भी करते हैं..... एक अदभुत कलाकारी का नमूना भी है। और इस कलाकारी के बदले हीं जलते हैं इनके घरों के चुल्हे। लेकिन westernization के दौर में इनकी इस कलाकारी का कोई खास मोल लोगों की नजरों में नहीं बचा है। तभी तो कभी...जहां 8000 से 10 हजार दीयों की बिक्री होती थी, वो आज महज 3000 से 5 हजार पर सिमट कर रह गई है।
वैसे इनकी जिन्दगी की दास्तान भी अजीब होती है। सारा का सारा परिवार बड़े हीं शिद्दत के साथ लगा रहता है.....देखिए न कोई माटी सानता है.. कोई चाक चलाकर उसे आकार देता है....तो कोई उन आकृतियों को रंगने में लीन है। लेकिन अपने काम में लीन तो हैं....लेकिन एक चिंता इनको सता रही है....कि वो कहीं दुसरे कुम्हारों की तरह इन्हें भी अपना व्यवसाय बदलना न पड़े। क्योंकि आधुनिकता के इस दौर में जहां पारंपरिक दियों की जगह chineese bulb और झालर ने ले ली है....ऐसे में उनके लिए दो जून की रोटी जुटा पाना भी मुश्किल हो गया है।
fashion trend और बदलाव का दौर अगर यूं हीं जारी रहा.... तो वो दिन भी दूर नहीं जब कुम्हार की शान कही जीने वाली चाक antique बनकर meauseum की शोभा हीं बढ़ा पाएगा।

Sunday, October 11, 2009


लोकनायक जेपी तुम बहुत याद आए

(जेपी का जन्म कहां हुआ था.....एक सवाल)
बा मुद्दत बा मुलीहिजा होशियार, अपने घरों के दरवाजे बंद कर लो, बंद कर लो सारी खिड़कियां, दुबक जाओ कोने में, क्योंकी एक अस्सी साल का बुढ़ा अपनी कांपती लड़खड़ाती आवाज में , डगमगाते कदमों के साथ हिटलरी सरकार के खिलाफ निकल पड़ा है सड़कों पर ।


एक सवाल हमेशा बना रहता है कि आखिर जेपी का जन्म कहां हुआ था.....इस पर कई मान्यताऐं हैं...उसी में बक्सर जिले के डुमरांव के नावानगर प्रखंड के सिकरौल लख पर जन्म हुआ था. यहां के लोगों की मानें तो जेपी के पिता जी हरसु लाल यहां नहर विभाग में जिलदार हुआ करते थे. और यहीं जेपी का जनम हुआ था.यही नहीं इनकी प्रारंभिक शिक्षा भी सिकरौल में ही हुई थी.....अगर यहां के लोग इस बात को कहते हैं तो यह जानने का विषय बन जाता है........
धर्मवीर भारती की ये रचना ऐसे हीं नहीं याद आई। ये याद आई है उस मौके पर जिस पर याद करने के लिए इसे लिखा गया होगा । अस्सी के दशक में इसे तब लिखा गया जब इन्दिरा गांधी का हिटलरी गुमान देश को एक और गुलामी की ओर ले जा रहा था, और बुढ़े जेपी ने उसके खिलाफ आंदोलन का बिगुल फूंका था। जी हां आज उसी जेपी की जयंती है। बिहार आंदोलन वाला जेपी, संपूर्ण क्रांती वाला जेपी, सरकार की चुलें हिला देने वाला जेपी, पुरे देश को आंदोलित करने वाला जेपी और सत्ता को धूल समझने वाला जेपी। जयप्रकाश नारायण। एक ऐसा नेता जिसने संपूर्ण आंदोलन की कल्पना की। संपूर्ण मतलब सामाजिक, राजनितिक, बौद्धिक, और सांस्कृतिक आंदोलन। 11 अक्टूबर 1902 को बिहार के छपरा जिले के सिताब दियारा में जन्मे इस लोकनायक ने 1939 में दुसरे विश्वयुद्ध के समय अंग्रेजों का विरोध किया। 1943 में ये पकड़े गए। गांधी जी ने कहा जेपी छूटेंगे तभी फिरंगियों से कोइ बात होगी। 1946 में रिहा हुए। 1960 में इ नेता लोकनायक बन चुका था। इन्दिरा गांधी की नितियों की खुली आलोचना की हिम्मत थी इसमें। आंदोलन शुरु हो गया। अंग्रेजी हुकुमत की याद ताजा हो गई। अपने ही लाड़लों पर बर्बर लाठियां गिरने लगीं, गोलियों ने कइयों का सीना छलनी कर दिया। बुढ़े जेपी पीटे गए जेल गए। देश जेपी का हो गया । वो जिधर चले देश चल पड़ा। 1975 में घबराई सरकार ने देश को गुलाम बना डाला। आपातकाल की घोषणा हो गई। देश जल उठा और 1977 में हुए चुनाव में पहली बार लोगों ने कांग्रेस को सत्ता से दुर कर दिया। इन्दिरा गांधी का गुमान टूट गया। उम्मीद थी जेपी सत्ता की बागडोर संभालेंगे, पर इ फक्कड़ संत सत्ता लेकर का करता। निकल पड़ा भुदान आंदोलन पर । देश सेवा , मानव सेवा और कुछ नहीं। आज उसी जेपी की जयंती है। नमन नमन और नमन, जेपी तूझे नमन।
जयप्रकाश जी रखो भरोसा
टूटे सपनों को जोड़ेंगे, चिताभष्म की चिनगारी से अंधकार के गढ़ तोड़ेंगे ।

Saturday, October 10, 2009




याद आये गुरू दत

हिन्दी फिल्मों के महान निर्दंेषको की बात चले और गुरूदत का नाम नही आये यह हो ही नही सकता । वह एक महान निर्देषक नही बल्कि एक सफल , लेखक , निर्माता , एवं अभिनेता भी थे गुरू दत का आज 45 वी पुण्यतिथि मनाया जा रहा है
भारतीय फिल्म को एक मुकाम पर लंे जाने वाले गुरू दत का जन्म 9 जुलाई 1925 को बंगलौर में हुआ था । गुरू दत का पूरा नाम गुुरूदत षिव ष्षंकर पादूुकोने थे लेकिन फिल्मी दुनिया में आने के बाद उनका नाम गुरू दत हेा गया । अपनंे फिल्मी कैरियर की ष्षुरूआत 1944 में बनी फिल्म चाॅद से श्रीकृष्ण की एक छोटी सी भूमिका से की थी ष्षूरूआत की । 1945 में उन्होने लाखारानी में निर्देषक विश्राम बेडेकर के साथ निर्देषक का जिम्मा भी सभाला । इसके बाद 1946 में गुरूदत ने पीएल संतांेषी कंी फिल्म हम एक है के लिए सहायक निर्दंेषक और नृत्य निर्देषन भी किया । उसके बाद कई उतार चढाव देखने के बाद उन्होने 1957 में प्यासा नाम की फिल्म बनाई उसके बाद 1960 में कागज के फुल , चैदहवी का चाॅद , साहिब बीबी और गुलाम , जैसी फिल्मेा को बनाया । फिल्मों के हर क्षेत्र में अपने को साबित करने वाले गुरूदत अपने पारिवारिक जीवन का संजोय नही रख पाये
फिल्मों में काम करने जुनून इस कदर था । की वे परिवार को ज्यादा समय नही दे पायंे जिसक फल यह हुआ कि उनका परिवारिक जीवन बिखरता चला गया । और जीवन में वे बिलकुल तन्हा हो गये । इस गम से निकलने के लिए वे ष्षराब का सहारा लियंे उन्होने ष्षराब के प्याले में अपने को इस तरह डंुबाया की फिर कभी नही निकले और इसी के कारण वे केवल 39 साल के उम्र में इस लकी कलाकार की अनलंकी मौत हो गयी .





रेखा हुई 55 की

आॅखो से बोलने की अदाकारी , वो दिलकष आवाज और कभी ने ढलने वाली खूबसूरती । जी हाॅ हम बात कर रहे है जोहराबाई जी हाॅ नही समक्षे अरे , अपनी भानूरेखा गणेषन अरे लग रहा है आप अभी भी नही समक्षे । चलिए हम बता देते हंै अरे बालीबुड की मषहूर अभिनेत्री अपनी रेखा की रेखा का जन्म 10 अक्टुबर 1954 को तमिलनाड के मद्रास में हुआ था अभिनय कला उनकी विरासत में ही मिली थी । उनके पिता जैमिनी गणेषन तमिल फिल्म के अभिनेता थे और उनकी माॅ पुष्पलल्भी तेलगू फिल्म की अभिनेत्री थी । अपने 40 साल के फिल्मी कैरियर में रेखा ने लगभग 180 से ज्यादा फिल्मों में काम किया । रेखा ने 1966 से कंैरियर की ष्षुरूआत एक तेलगू फिल्म में बतौर चाइल्ड आर्टिस्ट से की थी । हिन्दी फिल्मेा में लीड रोल में उनकी फिल्म का श्रेय 1970 बनी फिल्म सावन भादेा को दिया जाता है इसके बाद उन्होने कभी पीछे मुड कर नही देखा । उनकी मषहूर फिल्मो में उमराव जान , दो अंजाने , खूबसूरत , सिलसिला , बसेरा , खून भरी माग , उत्सव जुबैदा और कामसुत्र है इन फिल्मो में रेखा की बेहतरीन अदाकारी क्षलक देखी जा सकती है । रेखा को उनकंी ष्षानदार लाइफस्टाइल और फैषन के अंदाज के लिए भी जाना जाता है 1982 में राष्ट्रीय पुरस्कार समेत रेखा को तीन बार फिल्म फेयर और 2003 में फिल्मफेयर लाइफटाइम एचीवमेट अवार्ड संे नवाजा गया । आज भी यह अपने समय सेक्सी यह अदाकारा के चाहनेा वालो की कमी नही है यही कारण है की आज भी रेखा बाॅलीबुड में सक्रिय भूमिका निभा रही है ।
हिट फिल्मों का नाम ........
रामपुर का लझमण
गांेरा और काला
सौतन
एक ही रास्ता
ग्ंागा की सौगध
कर्मयोगी
दो मुसाफिर
सुहाग
दो षिकारी
मिस्टर नटवरलाल
जानी दुष्मन
आॅचल
सिलसिला
जान हथेली पंे
बीबी हो तो ऐसी
रेखा को मिले अवार्ड
1981 फिल्म फेयर बेस्ट अभिनेत्री खूबसूरत
1982 नेषनल फिल्म एवार्ड फार बेस्ट अभिेनंेत्री फिल्म उमराव जान
1989 फिल्म फेयर बेस्ट अभिनेत्री एवार्ड फिल्म खून भरी मांग
1997 फिल्म फेयर बेस्ट सर्पोंटिग अभिनंेत्री अवार्ड फिल्म खिलाडियंेा का खिलाडी
2003 फिल्म फेयर लाइफटाइम एचीवमंेट येवार्द
जाली नोट
टेबल पर करीने से सजी हैं नोटों की गड्डियां। मानो नोटों की नुमाइश हो रही हो। पांच सौ या हजार जो भी नोट चाहिए वो हाजिर है। लेकिन हम आपको बता दें कि कोई नोटों की नुमाइश नहीं हो रही है बल्कि ई सारे नोट जाली हैं। जी हां, पुलिस को काफी दिनों से खबर मिल रही थी कि इलाके में जाली नोटों का कारोबार किया जा रहा है। पुलिस लगातार धंधेबाजों को अरेस्ट करने के लिए उनके संभावित ठिकानों पर दबिश दे रही थी। लेकिन हर बार उसे नाकामयाबी ही हाथ लग रही थी। लेकिन कहा जाता है कि गुनहगार कितना भी चालाक क्यूं न हो पुलिस के जाल में फंस ही जाता है। आखिरकार पुलिस को अपने मिशन में कामयाबी मिली। पुलिस ने छापेमारी कर दो धंधेबाजों को अरेस्ट कर सलाखों के पीछे भेज दिया है। पूछताछ में पुलिस को इनके पास से कई इंपॉर्टेंट जानकारियां मिली हैं।
शुरूआती तफ्तीश में दोनों आरोपियों ने पुलिस को काफी बरगलाने का कोशिश किया। लेकिन पुलिसिया तफ्तीश के आगे उनकी एक न चली। दोनों आरोपियों का नाम मकसूद अंसारी और सुलेमान अंसारी है। पुलिस ने इनके पास से पचास हजार का जाली नोट और कई ऑर्म्स बरामद किए हैं। पुलिस पता लगा रही है कि इनके तार कहां-कहां से जुड़े हुए हैं।
जाली नोटों का कारोबार हमारी अर्थव्यवस्था को खोखला करते जा रही है। खतरा कम होने के कारण ई धंधा में कई बड़े आपराधिक गिरोह भी शामिल होते जा रहे हैं। धंधे के मेन सौदागरों का नेपाल और बांग्लादेश में बैइठे होने का अनुमान लगाया जाता है।
लेडी डॉन

टेबल पर सजा है हथियारों का जखीरा। पिस्तौल से लेकर कार्बाइन तक है इहां। एक-एक गोली को करीने से सजा कर रखा गया है। गोलियों की कई भेराईटी है इंहा पर। एके-47, कार्बाइन या फिर नाइन एमएम सब तरह की गोलियां हैं आखिर किसका है ई हथियारों का जखीरा। कौन है इसका मालिक। तो हम आपको बता दें कि हथियारों के ई जखीरे को पुलिस ने बरामद किया है। पुलिस को काफी दिनों से खबर मिल रही थी कि इलाके के दो शातिर अपराधी किसी नामचीन व्यक्ति को ठिकाने लगाने का प्लान बना रहे हैं। जी दोनों क्रिमिनलों का नाम है संतोष सिंह उर्फ राजू और मोहम्मद माहिर। ई दोनों शातिर अपराधी भोला पाण्डेय गिरोह के शार्प शूटर हैं। धनबाद के कई थानों में इन दोनों पर रॉबरी, किडनैपिंग और मर्डर जैसे कई संगीन मामले दर्ज हैं। कई बार पुलिस ने इन दोनों को पकड़ने के लिए जाल फैलाया। लेकिन हर बार उन दोनों ने दिया पुलिस को चकमा। आखिरकार पुलिस के सीनियर ऑफिसरों ने दोनों को पकड़ने के लिए एक स्पेशल टीम का गठन किया। टीम ने जांच की कमान संभालते ही दोनों के प्रोफाइल को खंगालना शुरू कर दिया। जांच चल ही रही थी तभी पुलिस को उन दोनों के एक घर में छिपे होने की खबर मिलती है। सूचना इतनी अहम थी कि टीम ने एक पल भी गंवाना उचित न समझा। लाव लश्कर के साथ टीम निकल पड़ी छापेमारी के लिए। जल्द ही पुलिस ने दोनों को अलकापुरी स्थित एक घर से धर दबोचा। अब शुरू होती है दोनों से पुलिसिया पूछताछ। शुरूआती तफ्तीश में राजू और माहिर ने पुलिस को काफी बरगलाने का कोशिश किया लेकिन पुलिसिया तफ्तीश के आगे उनकी एक न चली। जल्द ही दोनों टूट गए। जांच टीम के सामने उन दोनों ने जो खुलासा किया वो काफी चौंकाने वाला था। उन दोनों के पास से पुलिस को कई अहम जानकारियां मिली हैं।
फैल जाता है दहशत

एक नहीं, दू नहीं, तीन नहीं चलती है पूरी पांच गोलियां। धांय-धांय की आवाज से पूरा एरिया दहल उठता है। दिनदहाड़े हुई गोलीबारी से मच जाती है खलबली, पसर जाता है सन्नाटा। अचानक चली गोलीबारी से पब्लिक के बीच फैल जाता है दहशत। कोई कुछो समझ पाता तब तक हथियारबंद दस्ते हो जाते हैं फरार। गोलीबारी शांत होते ही घटनास्थल पर लोगों की भीड़ लग जाती है। घटनास्थल का नजारा देख लोगों का दिल दहल उठा। चारों और खून ही खून और पड़ी हुई थी एक लाश। जल्द ही लाश की पहचान भी हो गई। लाश इलाके के ही रसूखदार नीरज सिंह की थी। जी हां, दो बाइक पर सवार होकर आए अपराधियों ने नीरज सिंह को गोलियों से भून डाला था। दरअसल नीरज सिंह अपने बेटे को स्कूल छोड़ने गए हुए थे। अपने बेटे को स्कूल पहुंचाकर जब ऊ वापस लौट रहे थे तब घात लगाए अपराधियों ने उन्हें अपने टारगेट पर ले रखा था। मौका मिलते ही अपराधियों ने ताबड़तोड़ फायरिंग कर नीरज सिंह को कर दिया ढेर। मृतक के परिजनों की माने तो नीरज की किसी से कोई रंजिश नहीं थी।
नीरज के मर्डर की खबर मिलते ही घरवालों पर गमों का पहाड़ टूट पड़ा। आखिर दुखों का पहाड़ टूटे भी क्यों न। घर का जवान लड़का जो मारा गया था। परिजनों का रो-रोकर बुरा हाल हुआ जा रहा है। नीरज के फादर को तो इतना गहरा सदमा लगा है बोलने की हालत में भी नहीं हैं।
पुलिस ने लाश को कब्जे में लेकर पोस्टमॉर्टम के लिए भेज दिया है। पुलिस हत्यारों का पता लगाने के लिए हर एंगल से मामले की जांच कर रही है। नीरज प्रोपर्टी के धंधे से जुड़ा हुआ था। इसलिए पुलिस नीरज के प्रोफाइल को भी खंगाल रही है ताकि मर्डर के मोटिव का पता चल सके। पुलिस जांच में जुटी थी तभी उसे खबर मिलती है कि इस हत्याकांड से जुड़े़ कुछ लोग एक घर में ठहरे हुए हैं। जांच टीम के सदस्यों ने आनन-फानन में ऊ घर को घेर लिया। तलाशी के दौरान एक संदिग्ध पुलिस के हत्थे चढ़ गया। पुलिस उसे गिरफ्तार कर थाने ले आई है और पूछताछ कर रही है।
गैंगवार

घुप्प अंधेरी रात और सन्नाटे के बीच एक बार फिरो पटनासिटी गूंज उठा गोलियों की तड़तड़ाहट से। थर्रा उठा पूरा इलाका। इलाके के लोग अनजाने खौफ से सिहर उठे। जी हां, इलाके में गोली चलती है और लोग समझ जाते हैं कि थम चुका गैंगवार फिरो शुरू हो चुका है। पटनासिटी में कई गैंग एक्टिव हैं जो इलाके में अपने वर्चस्व को लेकर वारदातों को अंजाम देते रहते हैं। टाइम टू टाइम दूसरे गैंग के गुर्गों पर अटैक करते रहते हैं। इस बार गैंगवार का इलाका था आलमगंज। आलमगंज पहले भी गैंगवार को लेकर सुर्खियों में रहा है। इलाके के छोटे मोटे अपराधियों ने भी बाजाप्ता अपना गैंग बना रखा है। इलाके के शातिर अपराधी टोनी और सोनी को दूसरे गैंग के सदस्यों ने ले रखा था अपने टारगेट पर। घात लगाए अपराधियों ने टोनी और सोनी पर अंधाधुंध गोलियों की बौछार कर दी। गोली की आवाज सुनकर मोहल्लावासी इकट्ठे हो गए और आनन-फानन में दोनों को हॉस्पीटल ले गए। लेकिन मौत ने टोनी का पीछा नहीं छोड़ा और डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया।
रात में हुई गैंगवार की वारदात ने पुलिस की नींद उड़ा कर रख दी। मामले की गंभीरता को देखते हुए पुलिस ने हॉस्पीटल पहुंचकर जांच शुरू कर दी। घायल टोनी की माने तो उस पर हमला जेल में बंद शातिर अपराधियों ने करवाया है।
कयास लगाया जा रहा है कि टोनी और सोनी दोनों पुलिस के लिए मुखबिरी का भी काम किया करते थे। खैर इस बात में कितनी सच्चाई तो जांच के बाद ही पता चल पाएगा। बहरहाल ना जाने अब तक गैंगवार में कितनी मां की गोद सूनी हो गई। या कहें कि गैंगों की ई लड़ाई ने कितनों की मांग उजाड़ डाली और कितनों को अनाथ बना डाला।

Friday, October 9, 2009

शिक्षा का गिरता स्तर ---------------------

शिक्षा के बिना मनुष्य पशु के समान है। शिक्षित होना सबके लिए जरूरी है। लेकिन अब शिक्षा का स्तर धीरे-धीरे गिरता जा रहा है। वर्तमान परिवेश में शिक्षा एक व्यापार बन कर रह गया है। प्राइवेट इंजीनियरिंग और मेडिकल कॉलेज का खुलना इसका प्रमाण है। सामान्य शिक्षा प्रणाली की बातें सिर्फ पन्नों में ही सिमट कर रह गयी है।
शिक्षा में सुधार के लिए चलाये जाने वाले अभियान जमीन पर नहीं उतर पाते हैं। शिक्षा का अलख जगाने और उसे गांव-गांव तक पहुंचाने के लिए प्रयास तो किये गये। लेकिन नतीजा कुछ भी नहीं निकला। शहरी माहौल में रह चुके शिक्षक गांव जाने से कतराते हैं, तो गांव से ताल्लुक रखने वाले शिक्षक आराम फरमाते हैं।
अब नेताओं को लें, ये बातें तो सरकारी स्कूलों की करते हैं, लेकिन खुद उनके बच्चे अंगरेजी स्कूलों में पढ़ते हैं। फिर सुधार करने की बात कहां से सोची जा सकती है ?
अगर विदेशों में शिक्षा के स्तर की बात करें, तो यहां शिक्षा का स्टाइल कुछ अलग हटकर है। यहां जिस बच्चों का जिस क्षेत्र में मन लगता है, उसी क्षेत्र में उसे करियर बनाने के लिए प्रेरित किया जाता है। जबकि हमारे यहां वो बात नहीं है।
पढ़ाई नॉलेज बेस्ड होनी चाहिए। सैम पित्रोदा की अध्यक्षता वाले नॉलेज कमीशन क्या कर रहा है, किसी को नहीं पता। क्या यह अपने मकसद में कामयाब है या नही ? इस तरह और भी कई योजनाएं चलाई जा रहीं हैं वो कहां तक सार्थक साबित हो रहा है. इस स्तर में सुधार के लिए हर कोई जिम्मेदार है....हर कोई को अपने स्तर से जुटना पड़ेगा.

Friday, October 2, 2009

गजल
जाने कहां तक पहुंचे,उजाले की चाह में
दिन में भी घुप्प अंधेरा है छाने लगा.

तिनका-तिनका चुगकर बसाया आसियां
अब तो उजाले से भी डर लगने लगा.

सबके चेहरे पर, मासूम मुस्कान है
कौन कातिल,कौन है सजा पाने लगा.

चांद पर जा पहुंचने की चाहत है मगर
उड़ान भरने से पहले,कुहरा है छाने लगा.

रोक लो उस आंधी को, जो दहला रही है
किसकी कारगुजारी,किसका दीप बुझने लगा.
------मुरली मनोहर श्रीवास्तव
9430623520, 9234929710

Tuesday, September 22, 2009


रमजान और महंगाई


रमजान का महीना सबसे पाक महीना माना जाता है। कहा जाता है कि यह बरकत और रहमत का महीना होता है। इसके शुरू होते ही बहुत कुछ बदल जाता है। बदल जाते हैं लोगों के आचार-व्यवहार, रहन-सहन, और खन-पान। ये तो हुई बातें लाइफस्टाइल की। और इसी लाइफस्टाइल के साथ बदल जाता है मार्केट भी। जी हां हम बात कर रहे हैं रमजान के महीने में मार्केट के ट्रेंड की
रमजान की बातें हो तो याद आ जाता है- ईद। और चर्चा ईद की हो तो बात बिना सेबई के कैसे बनेगी? व्यापारी भी इस बात को बखूवी जानते हैं। यही कारण है कि रमजान शुरू होते ही बाजार सज जाता है भेराइटी-भेराइटी के सेबईयों से।
तीस दिनों के रोजे के बाद ईद का चांद लेकर आता है ढेरों खुशियां। लेकिन उस खुशी को समेटने की प्लानिंग पहले ही शुरू हो जाती है। किस-किस तरह के कपड़े लेने हैं। कौन-कौन से पकवान बनाने हैं। कहां और कैसे शॉपिंग करना है। और भी कई तरह की बातें। लेकिन इन सब प्लानिंग को डिस्टर्व कर रही है बढ़ रही मंहगाई।
मंहगाई चाहे जितनी भी बढ़ जाए, लेकिन ईद का उत्साह कम नहीं होगा। और न ही बंद होगी खरीददारी। लेकिन बढ़ रही मंहगाई की इस चर्चा के बाद उत्साह तो थोड़ा फीका पड़ ही गया।
FARZI EXAM


बेगूसराय में शिक्षक बहाली की परीक्षा पूरी होने के पहले ही कॉपियां छीन ली गई। अब आप सोच रहे होगें ऐसा क्यों…? दरअसल मामला है फर्जी परीक्षा का ।इसमें तीन लोगों ने टीचर की नौकरी दिलवाने के नाम पर कई लोगों से पैसे लिए। परीक्षार्थीयों को एडमिट कार्ड भी दिया गया। इतना ही नहीं एक फर्जी परीक्षा का आयोजन भी कर दिया गया। लेकिन जब पोल खुली तो तोनों पहुंच गए सलाखों के पीछे।
कर्पूरी ठाकुर उच्च विद्यालय। यहीं पर उन तीनों जालसाजों ने परीक्षा का आयोजन किया था। लेकिन पुलिस ने मौके पर पहुंच उन्हें गिरफ्तार कर लिया। साथ ही सभी कागजात भी जब्त कर लिए। अब पुलिस उनसे पुछताछ कर मामले की तह तक जाने की कोशिश कर रही है
इससे पहले भी फर्जी परिक्षाओं के कई मामले सामने आते रहें हैं। लेकिन इस मामले के तार और कहां तक जुड़े हैं ये जांच के baad पता चलेगा ।

Monday, September 21, 2009


जहरीली मेहंदी


अल्लाह का वादा है कि रोजेदारों को उनके रोजे और ईबादतों का तोहफा खुद देंगे....पूरे महिने भर लगन से ईबादत की...कुरान पढ़ा....नमाज अदा की....जाने-अंजाने हुए गुनाहों के लिए माफी मांगी.......लेकिन ईद के मौके पर मेहंदी लगाने से कई महिलाओं को एलर्जी की शिकायत होने के बाद अस्पताल में भर्ती कराया गया.......इस बात की खबर जैसे ही मिली......लोग मेडिकल स्टोर से एभील खरीदने लगे......इस खबर के बाद अफरा-तफरी मच गई.......
ईद के मौके पर हाथों में मेहंदी लगाने से कई महिलाओं को एलर्जी की शिकायत होने के बाद अस्पताल में भर्ती कराया गया है..... इसकी खबर सुनते ही चारो ओर अफरा-तफरी मच गयी.......
......सच खुशी के मौके पर रचाई जाने वाली मेहंदी ने ईद की खुशी को बदरंग कर दिया है......आज ईद है....खुशियों में खोई महिला और लड़कियां मेहंदी रचा रही थीं......पर उन्हें क्या मालूम था कि उनकी खुशी को ग्रहण लग जाऐंगे......और देखते ही देखते घर का माहौल ही बदल गया.......मेहंदी बनाने वाले कंपनी पांच रुपये का पाउच मार्केट में उतार कर गुणवता की जांच नही करते हैं. जिस कारण लोग दहशत में आ गये हैं. मेंहंदी में केमिकल है, ये तो जांच के बाद ही पता चल पाएगा..........

Saturday, September 19, 2009



बिरोध प्रदर्शन


प्राथमिक शिक्षक के पदों पर नियुक्ति की मांग को लेकर आज झारखण्ड प्राथमिक शिक्षक बेरोजगार संघ ने राजभवन के सामने बिरोध प्रदर्शन किया .ये शिक्षक ये मांग कर रहे थे की २००७ में जिन ८७६७ पदों पर नियुक्ति के लियेसर्कार द्वारा परीक्षा ली गयी थी उसके तहत मात्र ३७१ लोगो को ही नौकरी मिली जबकि सरकार ने दूसरी लिस्ट भी नहीं निकली . अब शिक्षक ये मांग कर रहे है की इनकी बेरोजगारी को देखते हुए इन्हें रिक्त पदों पर मेघा सूचि के अधर पर नौकरी दी जाये . इन लोगो ने नौकरी नहीं मिलने पर आत्मदाह तक की धामी दे डाली है


खेल और राजनिति आमने सामने


झारखण्ड में खेल और राजनिति एक दुसरे के आमने सामने है . राज्य में नवम्बर में राष्ट्रीय खेल होने वाले है लेकिन इसके बावजूद राज्य की राजनितिक पार्टिया राज्य में जल्द से जल्द चुनाव चाहती है . आपको बता दे की राष्ट्रिय खेल की तिथि पहले ही चार बार टल चुकी है .
झारखण्ड में राजनितिक पार्टियों बिच सायद ही कोई ऐसा मुद्दा हो जिसमे मतभेद न हो . लेकिन राज्य में चुनाव के मुद्दे पर राज्य की सारी राजनितिक पार्टिया सुर में सुर मिलाती है . फिर चाहे बीजेपी हो या फिर कांग्रेस इन सभी के लिए झारखण्ड में चुनाव सबसे जरुरी है . चुनाव के मुद्दे पर राजनेता यहाँ तक कहते है की अगर चुनाव की वजह से राष्ट्रीय खेल की तिथि टलती है तो टले लेकिन चुनाव राज्य की पहली प्राथमिकता है .
झारखण्ड में राष्ट्रीय खेल को लेकर पिछले कई सालो से तैयारिया चल रही है . इस राष्ट्रीय खेल के आयोजन के पीछे सरकार ने करोडो खर्च किये है .ऐसे में जिस तरह से चुनाव को जल्द करने की मांग उठ रही है इससे यहाँ के खिलाडियों में काफी निरासा है . खिलाडियों का कहना है की इस तरह से राजनीती की वजह से अगर खेल की तारीख आगे बढ़ी तो उनकी सारी मेंहनत पानी में मिल जायेगी .वही खेल संघ के अधिकारियो ने खेल की तारीख की जानकारी चुनाव आयोग को दे दी है .
राज्य में खेल पर फिलहाल राजनीती हावी होती दिख रही है . इससे एक बात तो तय है की राज्य के राजनेता भले ही खेल और खिलाडियों को लेकर लम्बी चौडी बाते कर ले लेकिन हकिकर कुछ और ही है . बहरहाल अगर इस बार भी राष्ट्रिय खेल की तारीखों में फेर बदल होते है तो झारखण्ड से इसकी मेजबानी छिन भी सकती है .
महिला आरक्षण
Dhanbad me महिला आरक्षण बिल लागु करने के बहाने रंधीर वर्मा चौक पर
धरना पर बैठी महिलायों ने ना केवल कांग्रेस पार्टी को कोसा बल्कि जमकर
गालियाँ भी दी. गाली भी वैसी जिससे खुद महिलाये शर्मशार हो जाये.
महिलायों ने प्रधानमंत्री. सोनिया गाँधी को तो भला बुरा कहा ही
राष्ट्रपति को भी नहीं बख्शा.
रंधीर वर्मा चौक पर शोषित महिला समाज के बैनर तले धरना पर बैठी
ये महिलाये वैसे तो महिला आरक्षण को लागु कराने की मांग को लेकर बैठी थी
लेकिन इसी बहाने लालकार्ड. बीपीएल को लेकर अधिकारियो को जमकर कोसा. इससे
उनका मन नहीं भरा तो कांग्रेस पार्टी को निशाने पर ले लिया. सार्वजनिक
मंच से महिलायों ने नेताओ को जमकर गाली दी. यही नहीं प्रधानमंत्री मनमोहन
सिंह. सोनिया गाँधी व राष्ट्रपति को भी अपने निशाने पर ले लिया. महिलायों
ने सार्वजनिक मंच से कांग्रेस के बड़े नेतायो को गाली दी. इसके बाद
महिलायों ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह. सोनिया गाँधी व राष्ट्रपति का
पुतला जलाया. जलाने से पहले महिलायों ने पुतला को झाडू भी मारा. शोषित
महिला समाज की अध्यक्ष रंग्नायिका बोस सार्वजनिक मंच से गाली देने की बात
को जायज ठहराया. बोस ने कहा की जब महिलायों की बात नहीं सुनी जायेगी तो
सड़कों पर उतरने के अलावा और क्या करेगी?


ट्रेन में बिश्वकर्मा pooja


धनबाद - हावडा कोलफिल्ड एक्सप्रेस फूल मालों से सजायी गई
है. आखिर सजे भी तो क्यों न आज विश्वकर्मा पूजा जो है. डेली पेसेंजर
द्वारा मनाया जाने वाला यह पूजा वर्ष २००० से चला आ रहा है. यूँ तो पुरे
देश में आज विश्वकर्मा पूजा मनाया जा रहा है, लेकिन इस पूजा की खासियत यह
है वे डेली पेसेंजर जो काम के लीये रोज सुबह घर से निकलते है और रात को
घर लौटते है . उनके लीये यही घर और द्वार दोनों है , इसलिए ये यात्री इस
पूजा को धूम धाम और गाजे बाजे के साथ मानते है.
धनबाद हावडा कोलफिल्ड एक्सप्रेस के डेली पेसेंजर इस ट्रेन को
अपने घर से भी ज्यादा अहमियत देते है . इनलोगों का कहना है हरदिन हम सुबह
इसी ट्रेन से अपने अपने काम पर जाते है और इसी से वापस भी लौटे है. ऐसे
में इस ट्रेन से खासा लगाव हो गया है. साथ ही इन लोगों का यह भी कहना है
की ट्रेन सही से चले और सभी यात्री अपने अपने घर ठीक ठाक पहुँच जाएँ और
कोई दुर्घटना नहीं हो इसके लीये ट्रेन में बाबा बिश्वकर्मा की पूजा की
जाती है. इसके लीये बजापते डेली पेसेंजर चंदा इकठा करते है और इससे पूजा
की सामग्री से लेकर फूल माला और गाजा बजा की व्यवस्था की जाती है.
ट्रेन में सफ़र करने वाले यात्री इस पूजा को काफी
हर्षोलाश के साथ मनाया करते है. जहाँ रात से ही ट्रेन के सभी बोगियों की
सफाई और सजाने का काम शुरू हो जाता है. वही सुबह होते ही गाजे बाजे की
धों पर डेली पेसेंजर अपने को नाचने से नहीं रोक पाते है. वहीँ दूसरी और
ट्रेन के चालक को इस बात का गर्व है की वे एक एसा ट्रेन चला रहे है जिसके
सभी यात्री अपने में मिलझुल कर बाबा की पूजा में भाग लेते है.
जहाँ ट्रेन के सभी पेसेजर इस पूजा को धूम धाम से मानते है वहीँ
उनलोगों को इस बात का दुःख है की ट्रेन की बोगियां बदले जाने से वे एक
दिन ही पूजा कर उसी दिन प्रतिमा का विसर्जन कर देंगे . जबकि हर साल यह
पूजा दो दिनों तक माने जाती थी. बहरहाल इस बार भी धूम धाम से विश्वकर्मा
की पूजा कर डेली पेसेंजर अपनी सुखद यात्रा की कामना कर रहें है.

Wednesday, September 9, 2009


शहनाई नवाज
उस्ताद बिसि्मल्लाह खान

लेखक-मुरली मनोहर श्रीवास्तव
प्रकाशक- प्रभात प्रकाशन, दिल्ली
हिन्दी पर अंग्रेजी हावी

कुछ लोग हिन्दी की दुदर्षा पर हमेषा रोते रहते है । लेकिन ये पढंे लिखे लोग सम्मानित क्षेत्रों में कार्यरत होने के बावजूद भी हिन्दी या अपनी क्षंेत्रीय भाषा कें हिमायती है ।वास्तव में हिन्दी तो केवल उन लोगेा की कार्य भाषा है जिनकेा या तेा अग्रेजी आती नही है या फिर कुछ पढे लिखे लोग जिनकेा हिन्दी से कुछ ज्यादा ही मोह है और ऐसे लोगेा को सिरफिरे पिछडें या बेवकूफ की संबा से सम्मानित कर दिया जाता है । सच तो यह हैं कि ज्यादातार भारतीय अंगंे्रजी के मोहपाष में बुरी तरह से जकड्रंे हुए है आज स्वाधीन भारत में अंग्रजी में निजी व्यवहार बढता जा रहा है काफी कुछ सरकारी व पूरा गैर सरकारी काम अंग्रेजी में ही होता है । दंुकानों के बोर्ड , होटलो रेस्टूरेन्टो के मेनू , अ्रगंेजी , मंें ही होता है । ज्यादातार नियम कानून या अन्य काम की बाते किताबे इत्यादि अंगंेजी मेे होने लगे हंै । उपकरणांे या यंत्रो को प्रयोग करने की विधि अंगंेजो मेे लिखी होती है भले ही इसका प्रयेाग किसी अंगेजी के ज्ञान से वंचित व्यक्ति को ही क्येा नही करना हो । अंगेजी भारतीय मानसिकता पर पूरी तरह हावी हो गई है हिन्दी या कोई और भारतीर भाषा के नाम पर छलावें या ढोग के सिवा कुछ नही होता है ।
हमारे ष्यहा बडे बडे नेता अधिकारीगण व्यापारी हिन्दी के नाम पर लबे चैडे भाषण देते है कितु अपने बच्चांे को अंगेजी माध्यम स्कूलों में पढाएॅगे । उन स्कूलों को बढावा दंेगे । अंगंेजी मे बात करना या बीच बीच में अंगेजी के ष्षब्दो का प्रयोग ष्षान का प्रतीक समझेगे ।
कुछ लोगो का कहना है कि ष्षु़द्ध हिन्दी बोलना कठिन है सरल तो केवल अंग्रेजी बोली जाती है अंगे्रजी जितना कठिन होती जाती है उतनी ही खूबसूरत होती होती जाती है आदमी उतना ही जागृत व पढा लिखा होता जाता है । ष्आज के समय के लोगेा का मानना हंै कि ष्षुद्ध हिन्दी तो केवल पांेगा पडित या बेंवकूफ लोग बोलते है । आधुनिकरण के इस दैार में या वैष्विकरण के नाम पर जितनी अनदंेखी और दुर्गति हिन्दी व अन्य भारतीय भाषाओ की हुई है उतनी ष्षयद ही कही भी किसी और दंेष की भाषा की हुई है ।
आज अंगे्रजी इतनी हावी हो चूकि है की स्कूलो से सुबह का प्रार्थना गायब हो चूका है उसके जगह पर ऐसबली ने उसका रूप ले लिया है इसका मतलब यह नही कि भावी पीढी केा अंग्रेजी से वचित रखा जाए , अग्रेजी पढे सीखे परतु साथ साथ यह आवष्कता है कि अंगेजी को उतना ही सम्मान दे जितना कि जरूरी है इसकेा हमारे दिमाग पर राज करने से रोके और इसमे सबसे बडे यांेगदान की जरूरत समाज के पढे लिखे लोगो से है । अब हमे सुधर जाना चाहिए वरना समय बीतने के बाद हम लोगो को खुद कोसने के बजाय कुछ नही बचेगा । इसलिए केवल एक खानापूर्ति कर लेना ही ठीक नही है र्बिल्क हिन्दी दिवस के दिन यह ष्षपथ लेने की जरूरत है हिन्दी को और आगे लाने की इतने आगे लाने की ताकि अंग्रेजी की भूत इसको छू ना सके ।
हिन्दी दिवस 14 सितंबर को
हिन्दी दिवस का इतिहास

हिन्दी दिवस प्रत्येक साल 14 सितम्बर को मनाया जाता है इसकी ष्षुरूआत 14 सितंबर 1949 मेंसविधान सभा ने एक मत से यह निर्णय लिया कि हिन्दी ही भारत की राजभाषा होगी । इसी महत्वपूर्ण निर्णय के महत्व को प्रतिपादित करने तथा हिन्दी को हर क्षे़त्र में प्रसारित करने के लिए राष्टभाषा प्रचार समिति ,वर्धा के अनुरोध पर सन 1953 से सर्पूण भारत में 14 सितंबर को हर साल हिन्दी दिवस के रूप मंें मनाया जायेगा । हिन्दी इसके बाद संविधान में राजभाषा के संबंध में धारा 343 से 352 तक की गयी
हिन्दी को राजभाषा के रूप में स्वीकार किये जाने का औचित्य हिन्दी को राजभाषा का सम्मान कृपापूर्वक नही दिया गया , बल्कि यह उसका अधिकार है यहा अधिक विस्तार मंें जाने के की आवष्यकता नही । केवल राष्टपिता महात्मा गाॅधी द्वारा बताये गये निम्नलिखित लक्षणों पर दृष्टि डाल लेना ही पर्याप्त रहेगा जो राष्टीय भाषा के जरूरी होनी चाहिए
1 भाषा सरल होनी चाहिए
2 उस भाषा के द्वारा भारतवर्ष का आपसी धार्मिक ,आर्थिक , और राजनीतिक व्यवहार हो सकना चाहिए
ष्3 यह जरूरी है कि भारतवर्ष का बहुत लोग उस भाषा को बोलते है
4 राष्ट के लिए वह भाषा आसान होनी चाहिए
5 उस भाषा का विचार करते समय किसी क्षणिक या अल्प स्थायी स्थिति पर जोर नही देना चाहिए ।
और यह सब बाते हिन्दी में थी इसलिए यह बन गया राष्टभाषा और इसी राष्टभाषा को हमेषा याद करने के लिए और इसके अस्तित्व को बचायंे रखने के लिए हाल साल 14 सितंबर केा मनाया जाता है हिन्दी दिवस ।
हर साल की तरह इस साल 14 सितंबर यानि हिन्दी दिवस मनाने का दिन । आज हिन्दी को बढाने को लेकर कई तरह की सरकारी और गैरसरकारी आयोजन हिन्दी में काम को बढावा देने वाली विभिन्न प्रकार की घोषणाए । विभिन्न तरह के सम्मेलन इत्यादि-इत्यादि । अगर हम यह कह दे कई सारे पाखंड होगे तो कोई गलती नही होगी । हिन्दी की दुर्दषा पर घडियाली आॅसू बहाए जाएॅगे । हिन्दी में काम करने की झूठी ष्षपथे ली जाएगी और पता नही क्या क्या होगा । अगले दिन लेाग सब कुछ भूल कर अपने अपने काम में लग जाएगंे और हिन्दी वही की वही सिसकती झुठलाई व ठुकराई हुइ रह जाएगी ।

Tuesday, September 8, 2009

शहनाई नवाज उस्ताद बिसि्मल्लाह खान [BOOK]
के जीवन पर तल्ख सच्चाई के साथ उनके अनछुए पहलुओं को संकलित किया गया है….



लेखकमुरली मनोहर श्रीवास्तव
प्रकाशक...प्रभात प्रकाशन, दिल्ली....
राजेंद्र कॉलेज नीलाम करने की धमकी

छपरा के ऐतिहासिक राजेंद्र कॉलेज जो 20 बीघा ,12 कट्टा और 11 धूर में फैला है । इस कॉलेज को 1939 में छपरा नगर परिषद ने बिल्डिंग लीज़ पर दी थी।वो भी 20 वर्षों के लिए 800 ऱुपए सालाना पर।15 दिसम्बर 1953 में इस लीज़ का फिर से 21 वर्षों के लिए रिन्यूवल किया गया।निगम के अनुसार 1974 में इसका पुनः रिन्यूवल करना था।कॉलेज प्रबंधन ने इसकी ज़रूरत नहीं समझी और न किराया ही दिया।नतीजतन निगम का 15 लाख 30 हज़ार रुपया बकाया है।अब हालत ये है कि निगम ने कॉलेज को नीलाम करने की धमकी दे डाली है।इस सिचुएशन में कॉलेज में पढ़ाई पर ग्रहण लग गया है।
1988 में तत्कालीन प्रिंसिपल और नगर परिषद के बीच एक समझौता बुआ।यह तय किया गया कि 84 हज़ार के सालाना दर पर लीज़ को रीन्यू किया जाए।लेकिन फिर 1991 में कॉलेज प्रबंधन केवल 10 हज़ार दे कर मौन साध गया।और अब नीलामी की धमकी सामने आने के बाद कॉलेज प्रबंधन मामले को लेकर राज्य सरकार के पास गुहार लगा रहा है
अब जब स्थिती इतनी गंभीर हो गई तब जाकर विधान परिषद में यह मामला गर्माया है।इसका निवारण जैसे भी और जब भी हो लेकिन फिलहाल इस टकराहट में नुकसान तो केवल छात्रों का ही हो रहा है।देखने वाली बात होगी कि इनकी प्रोब्लम के मद्देनज़र प्रशासन इस विवाद को कितनी तेज़ी से सॉल्व करता है।



शिल्पा की कुर्सी छीन गई

ब्रिटेन के शो बिग ब्रदर को जीत रातों रात सुर्खीयां बटोरने वाली शिल्पा के सितारे इनदिनों कुछ ठीक नजर नहीं आ रहे। तभी तो ऐसी खबरें आ रही है कि शिल्पा से फेमस रियालटी शो बिग बॉस के होस्ट की कुर्सी छीन गई है। और कुर्सी छीनने वाले कोई और नहीं बल्कि बॉलीवुड सुपर स्टार बिग बी अमिताभ बच्चन हैं।
शिल्पा के करियर में बिग ब्रदर और बिग बॉस मिल का पत्थर साबित हुए । उसके बाद तो जैसे शिल्पा की गाड़ी ही निकल पड़ी । हर मैग्जीन, हर अवार्ड फंक्शन में बस शिल्पा ही शिल्पा छाई नजर आयी।
उसके बाद शिल्पा की लाइफ में राज कुन्द्रा की एंट्री हुई। लेकिन लगता है बिजनेस पार्टनर राज ओके साथ जुड़ना शिल्पा की किस्मत को कुछ रास नहीं आया। पहले तो IPL में शिल्पा का जादू नहीं चला। उनकी टीम राजस्थान रॉयल्स अपनी खिताबी ट्राफी नहीं बचा पाई। और अब बिग बॉस की मेजबानी भी उनके हाथ से चली गई है।
अब हम तो यही कहेंगे की मैडम शिल्पा अगर शादी के पहले ये हाल है तो शादी के बाद तो भगवान् ही जाने क्या होगा।
































ब्रिटेन के रिएलटी शो बिग ब्रदर का रुपांतर माने जाने वाले बिग बॉस का प्रसारण इस साल दिसंबर से शुरू किया जा सकता है। जिसमें अमिताभ बच्चन इस शो की मेजबानी करते नजर आएंगें।


विश्व शिक्षा दिवस

विश्व शिक्षा दिवस है और इस अवसर पर धनबाद के स्कूलइ बच्चों द्वारा जागरूकता रैली निकाली गई . स्कूली बच्चों में इस जागरूकता रैली को लेकर खासा उत्साह दिखा और ये बच्चे जोर जोर से जागरूकता सम्बन्धी नारे लगाते हुए सड़कों पर आगे आगे चलते चल रहे थे तो उनके शिक्षक भी उनके साथ साथ नारा लगाये जा रहे थे. इन बच्चों का मानना है की इस तरह के प्रयास से हर घर के बच्चों को प्रेरणा मिलेगी और वे स्कूल जाने को उत्सुक होंगे.
आज अंतररास्ट्रीय शिक्षा दिवस पर धनबाद में जगह जगह प्रभात फेरी निकाली गई . इस रैली से वेसे बच्चों और उनके परिवार वालों को जागरूक करने का प्रयास किया जा रहा है जो बच्चे स्कूल नहीं जाते या जिनके बच्चे स्कूल नहीं जाते है. रैली में भाग ले रहे स्कूली बच्चों का का कहना है की इस तरह के कार्यक्रम से बच्चों में स्कूल जाने की तमन्ना जागेगी और वे जायेंगे . इससे देश का साक्षरता दर बढेगा और देश और आगे बढेगा. बच्चों ने वेसे बच्चों के प्रति अपनी संवेदना भी व्यक्त की जो बचपन में ही पढाई छोड़ कहीं होटल और ढाबों में काम करने लग जाते है.
स्कूली बच्चे जहाँ इस जागरूकता रैली को लेकर खासे उत्साहित है वही जिला शिक्षा विभाग भी इन बच्चों के इस कदम से अपने को गौरवान्वित महशुस कर रहे है. जिला शिक्षा पदाधिकारी का मानना है की इस तरह से पुरे राज्य में शिक्षा का स्तर ऊपर उठेगा. शिक्षा विभाग ने भी इस जागरूकता रैली में भाग लेकर बच्चों को उत्साहित किया.

Friday, September 4, 2009


षिक्षक दिवस - डा. राधा कृष्णन


5 सितंबर केा पूरे भारत में षिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है । इसी दिन 1888 इसवी में भारत कें दूसरे राष्ट्रपति डा. सर्वपल्लवी राधा कृष्णन का जन्म हुआ था । राधाकृष्णन 1952 में भारत कें पहले उपराष्ट्रपति बने। फिर 1962 में देष के राष्ट्रपति बने । राष्ट्रपति बनने के बाद इनके कुछ विघार्थी और दोस्त इनके पास कर बोले कि हम आपके जन्म दिन को षिक्षक दिवस के रूप में मनाना चाहते है। इस आग्रह को राधाकृणन ने स्वीकार कर लिया और तब से षिक्षक 5 सितम्बर षिक्षक दिवस के रूप में मनाया जानंे लगा ।
षिक्षक दिवस- 5 सितंबर


षिक्षक काम है ज्ञान एकत्र करना या प्राप्त करना और फिर उसे बांटना । ज्ञान का दीपक बना कर चारों तरफ अपना प्रकाष विकीर्ण करना । हमारे समाज में आदिकाल से ही गुरू षिष्य पंरमरा चलते आ रही है । चाहे राम या विष्वामित्र हो या अजुर्न द्रोण और एकलब्य। इतिहास साक्षी है ंहमेषा हम गुरू को भगवान के उपर का दर्जा देते हं।ै इतना ही नही हम को गुरू को ब्रह्मा मनाते हैं। इस बात को साबित करता है ये दो ष्ष्लोक
1 गुरूब्रर्हमा गुरूर्विष्णु गुरूदंेवो महेष्वरः गुरू साक्षात परब्रहा तस्मै श्री गुरूवे नमः
2 गुरू गोविद दोउ खडे काको लागे पांव बलिहारी गुरू आपकी गोविद दियो बताए पहले के समय मेें जहां गुरू षिष्य संबंध पवित्र था, गुरू के एक मांग को षिष्य सबकुछ निछावर करके पूरा कर देते थे । महाभारत के समय में द्रोण ने जब एकलब्य से उसका अगंुठा मगा तो बिना कुछ सोचे एकलब्य ने अपनी षिष्य कर्तव्य को पूरा किया जिसको लेकर वह आज भी अमर है । पहले के षिष्य जहां अपनी कर्तव्य निभाया वही गुरूओं ने भी अपना कर्तव्य बखूबी पूरा किया ।
आज के दौर में गुरू षिष्य........
जहां सब कुछ पर बाजारवाद हावी हो चूका हेै वहा पर यह पवित्र रिष्ता भी जैसे बाजारवाद का षिकार हो गया है । इस रिष्ते को भी कलयूग जैसे निगलते जा रहा है आज ना वह एकलब्य रहे ना वे द्रोर्ण। आज इनका रूप बदल चूका है । षिक्षण एक व्यवसाय बन चूका है । षिक्षण संस्थान तरह-तरह के लुभावने विज्ञापन देकर बच्चो को लुभाते है तब षुरू होती है व्यवसायिकता। जिसकी बुनियाद होती है पैसा और केवल पैसा । ना पवित्र संबंध ना षिक्षा लेने या ना देने की परम्परा । आज कई ऐसे मामले सामने आऐ है जो इस संबध को तार तार कर देता हेै ।हाल ही में मटुक नाथ जूली प्रकरण इसका जीता जागता सबूत है । षिष्यों का गंुरूओ पर हाथ उढाना गाली दंेना जैसे पंरमपरा बनती जा रही है दो चार दिन पहले पटना के नामी काॅलेज में छात्रों ने जिस तरह से एक प्रांेफंेसर का हाथ तोड दिया है यह बहूत ही ष्षर्मनाक है
आज भी जब एक षिक्षक ही छात्र के जीवन में फैले अंधेरे को दूर करता है उसके जीवन में प्रकाष फैलाता है । वहा इस संबध केा फिर से एक पवित्र और पाक बनाने के लिए ंगंुरू और षिष्य दोनो को मिलकर सांेचना चाहिए और समाज के विद्वानेा को भी इसकें लिए आगे आने की जरूरत है । । आज कल षिक्षा और गुरू और षिष्य संबंध में गिरावट आ रही है । इस संबंधो की पवि़त्रता पर ग्रहण लगते जा रहे है इसमें 5 सितम्बर का दिन एक इस संबधो की पवित्रता का स्मरण करा जाता है । सर्वपल्ली राधाकृष्णन के बारे में कुछ महप्वपूर्ण जानकारियाॅ
डॉ. राधाकृष्णन अपनी बुद्धिमतापूर्ण व्याख्याओं, आनंददायी अभिव्यक्ति और हँसाने, गुदगुदाने वाली कहानियों से अपने छात्रों को मंत्रमुग्ध कर दिया करते थे। वे छात्रों को प्रेरित करते थे कि वे उच्च नैतिक मूल्यों को अपने आचरण में उतारें। वे जिस विषय को पढ़ाते थे, पढ़ाने के पहले स्वयं उसका अच्छा अध्ययन करते थे। दर्शन जैसे गंभीर विषय को भी वे अपनी शैली की नवीनता से सरल और रोचक बना देते थे।

वे कहते थे कि विश्वविद्यालय गंगा-यमुना के संगम की तरह शिक्षकों और छात्रों के पवित्र संगम हैं। बड़े-बड़े भवन और साधन सामग्री उतने महत्वपूर्ण नहीं होते, जितने महान शिक्षक। विश्वविद्यालय जानकारी बेचने की दुकान नहीं हैं, वे ऐसे तीर्थस्थल हैं जिनमें स्नान करने से व्यक्ति को बुद्धि, इच्छा और भावना का परिष्कार और आचरण का संस्कार होता है। विश्वविद्यालय बौद्धिक जीवन के देवालय हैं, उनकी आत्मा है ज्ञान की शोध। वे संस्कृति के तीर्थ और स्वतंत्रता के दुर्ग हैं।

उनके अनुसार उच्च शिक्षा का काम है साहित्य, कला और व्यापार-व्यवसाय को कुशल नेतृत्व उपलब्ध कराना। उसे मस्तिष्क को इस प्रकार प्रशिक्षित करना चाहिए कि मानव ऊर्जा और भौतिक संसाधनों में सामंजस्य पैदा किया जा सके। उसे मानसिक निर्भयता, उद्देश्य की एकता और मनकी एकाग्रता का प्रशिक्षण देना चाहिए। सारांश यह कि शिक्षा 'साविद्या या विमुक्तये' वाले ऋषि वाक्य के अनुरूप शिक्षार्थी को बंधनों से मुक्त करें।

डॉ. राधाकृष्णन के जीवन पर महात्मा गाँधी का पर्याप्त प्रभाव पड़ा था। सन्‌ 1929 में जब वे ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में थे तब उन्होंने 'गाँधी और टैगोर' शीर्षक वाला एक लेख लिखा था। वह कलकत्ता के 'कलकत्ता रिव्हयू' नामक पत्र में प्रकाशित हुआ था। उन्होंने गाँधी अभिनंदन ग्रंथ का संपादन भी किया था। इस ग्रंथ के लिए उन्होंने अलबर्ट आइंस्टीन, पर्ल बक और रवीन्द्रनाथ टैगोर जैसे चोटी के विद्वानों से लेख प्राप्त किए थे। इस ग्रंथ का नाम था 'एन इंट्रोडक्शन टू महात्मा गाँधी : एसेज एंड रिफ्लेक्शन्स ऑन गाँधीज लाइफ एंड वर्क।' इस ग्रंथ को उन्होंने गाँधीजी को उनकी 70वीं वर्षगाँठ पर भेंट किया था।

अमरीका में भारतीय दर्शन पर उनके व्याख्यान बहुत सराहे गए। उन्हीं से प्रभावित होकर सन्‌ 1929-30 में उन्हें मेनचेस्टर कॉलेज में प्राचार्य का पद ग्रहण करने को बुलाया गया। मेनचेस्टर और लंदन विश्वविद्यालय में धर्मों के तुलनात्मक अध्ययन पर दिए गए उनके भाषणों को सुनकर प्रसिद्ध दार्शनिक बर्टरेंट रसेल ने कहा था, 'मैंने अपने जीवन में पहले कभी इतने अच्छे भाषण नहीं सुने। उनके व्याख्यानों को एच.एन. स्पालिंग ने भी सुना था। उनके व्यक्तित्व और विद्वत्ता से वे इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में धर्म और नीतिशास्त्र विषय पर एकचेअर की स्थापना की और उसे सुशोभित करने के लिए डॉ. राधाकृष्ण को सादर आमंत्रित किया। सन्‌ 1939 में जब वे ऑक्सफोर्ड से लौटकर कलकत्ता आए तो पंडित मदनमोहन मालवीय ने उनसे अनुरोध किया कि वे बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर का पद सुशोभित करें। पहले उन्होंने बनारस आ सकने में असमर्थता व्यक्त की लेकिन अब मालवीयजी ने बार-बार आग्रह किया तो उन्होंने उनकी बात मान ली। मालवीयजी के इस प्रयास की चारों ओर प्रशंसा हुई थी।

सन्‌ 1962 में वे भारत के राष्ट्रपति चुने गए। उन दिनों राष्ट्रपति का वेतन 10 हजार रुपए मासिक था लेकिन प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद मात्र ढाई हजार रुपए ही लेते थे और शेष राशि प्रधानमंत्री के राष्ट्रीय राहत कोष में जमा करा देते थे। डॉ. राधाकृष्णन ने डॉ. राजेन्द्र प्रसाद की इस गौरवशाली परंपरा को जारी रखा। देश के सर्वोच्च पद पर पहुँचकर भी वे सादगीभरा जीवन बिताते रहे। 17 अप्रैल 1975 को हृदयाघात के कारण उनका निधन हो गया। यद्यपि उनका शरीर पंचतत्व में विलीन हो गया तथापि उनके विचार वर्षों तक हमारा मार्गदर्शन करते रहेंगे।
अनसुलझे सवाल
घर में बिखरा सामान और सड़क पर पसरा ये खून, इस बात के गवाह हैं कि यहां किसी वारदात को अंजाम दिया गया है। जी हां, इस बात की तस्दीक जांच करती पुलिस से भी हो जाती है। दरअसल पुलिस को खबर मिली कि रेस्ट हाउस में दो लाश पड़ी है। खबर मिलते ही पुलिस घटनास्थल पर पहुंच गई और जांच में जुट गई। जांच में पुलिस को पता चला कि ये लाश पति-पत्नी की है। रौशन और गुड्डू दोनों घरेलू नौकर का काम किया करते थे। घर के मालिक ने ही इन्हें रेस्ट हाउस में रहने के लिए कमरा दे रखा था। सुबह जब दोनों काम पर नहीं आए तो मालिक का माथा ठनका। मालिक ने जब कमरे में जाकर देखा तो सन्न रह गया। दरअसल दोनों की लाश खून से सनी पड़ी थी। पुलिस ने लाश को कब्जे में लेकर पोस्टमॉर्टम के लिए भेज दिया है।

गुड्डू और रौशन का एक चार साल का बेटा भी है। जिसने अपनी तोतली आवाज में पुलिस को बयान भी दिया है। उसने पुलिस को बताया कि वारदात वाले दिन मम्मी और पापा के बीच लड़ाई हुई थी। हालांकि पुलिस दो एंगल से इस पूरे मामले की जांच कर रही है और जल्द ही लाश की अनसुलझी गुत्थी को सुलझा लेने का दावा कर रही है।

गुड्डू और रौशन तो इस दुनिया से चले गए लेकिन अपने पीछे छोड़ गए कई अनसुलझे सवाल। मसलन अगर दोनों ने सुसाइड किया तो अपने मासूम को किसके भरोसे छोड़ दिया। अगर दोनों की हत्या की गई तो फिर हत्यारे का क्या मकसद हो सकता है। क्या लूटपाट के इरादे से आए बदमाशों ने उन दोनों का मर्डर कर दिया। इस तरह के कई सवाल हैं जो पुलिस के लिए बन गए हैं जांच के सवाल।

Wednesday, September 2, 2009

कर्ज के बोझ
फसल बरबाद हो जाने और कर्ज के बोझ ने इसे आत्महत्या करने को विवश कर दिया। पड़ोसियों के कारण इसकी जान तो बच गई। पर शायद ये यही सोच रहा है कि आखिर क्या फायदा ऐसी जिन्दगी का। जो अपने बच्चों की खुशियां ना खरीद सके। जिसके रहते घर के बरतन खाली पड़े हो।


सुखे के कारण पूरे जिले में फसल बर्बाद हो गई। जो बचा उसे कीड़े खा गए। अब ऐसे में किसानों के पास आत्महत्या करने के अलावा और कोई उपाय नहीं बचता। लेकिन अधिकारी हैं कि खुद को इन सब बातों से अनजान बता रहे हैं। और कार्यालय में बैठे-बैठे ही किसानों को राहत पहुंचाने की बात कर रहे हैं।



ये कोई पहली बार नहीं है जब किसी किसान ने आत्महत्या की कोशिश की हो। पहले भी सूखे के कारण कई जानें जा चुकी हैं। लेकिन प्रशासन है कि किसानों की मुशिकिलें कम करने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठा रहा।
कलयुगी बेटा

21 अगस्त.. समय रात के 10 बजे.. कोडरमा में होती है एक वारदात। पूरे इलाके में फैल जाती है सनसनी। इंसानियत हो जाती है शर्मसार। मानवता हो जाती है कलंकित। जिसने भी ये खबर सुनी वो अवाक रह गया..सन्न रह गया। मानो उसे अपनी कानों पर यकीन नहीं हो रहा हो। चाहकर भी इलाके के लोग इस वारदात को सच मानने के लिए तैयार नहीं थे। लेकिन लोगों के मानने और न मानने से क्या होता है। सच तो आखिर सच है। आखिर सच है क्या.. ये आप भी जानना चाह रहे होंगे। दरअसल पूरा मामला कोडरमा के सतगांवा का है। शांति देवी अपने दो बेटों के साथ इसी गांव में रहती थी। वर्षों पहले शांति देवी के हसबैंड गुजर चुके थे। इसीलिए शांति देवी अपने बड़े बेटे राजू के साथ रहती थी। यही बात हर हमेशा छोटे बेटे दिलीप को नागवार गुजरती थी। उसके मन में हमेशा ये खटकते रहता था कि कहीं मां भईया को तो सारी संपत्ति का वारिस नहीं बना देगी।
जायदाद का लालच दिलीप के सर इस कदर चढ़ गया था कि मां-बेटे में हमेशा अनबन रहने लगी। दरअसल दिलीप चाहता था कि मां के नाम जो दस कट्ठा जमीन है वो उसके नाम हो जाए। इसी बात को लेकर वो मां से खफा रहने लगा..झगड़ा करने लगा और एक दिन मौका मिलते ही अपनी मां का ही कर डाला कत्ल।

इस सनसनीखेज वारदात की खबर मिलते ही पुलिस भी घटनास्थल पर पहुंच गई और लाश को कब्जे में लेकर पोस्टमॉर्टम के लिए भेज दिया है। पुलिस फरार आरोपी की तलाश सरगर्मी से कर रही है।

महज जमीन के थोड़े से टुकड़े की खातिर एक बेटे ने अपनी मां का कत्ल कर दिया। जी हां, उसने अपनी मां का नहीं बल्कि उस ममता का खून कर डाला जिसने अपने खून से सींचकर उसे इतना बड़ा बनाया था।

Monday, August 31, 2009


सीएम ने स्थिती को कंट्रोल में बताया


मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सीतामढ़ी और शिवहर में आई बाढ़ का हवाई दौरा किया।हालिया स्थिती के जाएज़े के बाद सीएम ने स्थिती को कंट्रोल में बताया।और कहा कि प्रशासन पिड़ितों की बेहतरी के लिए वॉर फुट पर काम में लगा हुआ है।

इतनी जद्दोजहद बाद भी बिहार को अभी तक तो विशेष राज्य का दर्जा नहीं ही मिला।केन्द्र से आई टीम के सर्वेक्षण के बाद भी,अधिकारी कनविन्स तो दिखे लिकिन रिज़ल्ट कुछ दिख नहीं रहा।केन्द्र में कांग्रेस के सौ दिन पूरे हो गए।लेकिन सुशासन के तराज़ू पर केंन्द्र का रवैया खरा नहीं उतरा।बिहार को साफ़ ही नेगलेक्ट किया जा रहा है।
एक बात तो साफ़ है कि इस प्रजातंत्र में जनता की बेहतरी सत्ताधारियों की प्रथमिकता नहीं।और ना ही गंभीर नैशनल इशूज़ पर सीएम और केंद्र के बीच सामंजस्य की ही कोई स्थिती।ऐसे में कौमन आदमी की विपरीत परिस्थियों में सहारा आखिर है कौन ये एक बड़ा सवाल है।

राष्ट्रीय खेलों की तैयारी


झारखंण्ड में इन दिनों 34 वें राष्ट्रीय खेलों की तैयारी जोरों पे है। इसे ध्यान में रखते हुए राज्यपाल के सलाहकार टी.पी. सिन्हा ने मेगा स्पोर्ट्स कॉम्पेक्स एकुएटिव का उद्घाटन किया।
नवंबर के महीने में झारखण्ड में 34 th नैशनल गेम्स होने हैं। इसे लेकर तैयारियां भी जोरों पे हैं। इसे ध्यान मे रखते हुए राज्य तैराकी संघ ने तैयारियां शुरु कर दी हैं। इसी क्रम में होटवार स्थित मेगा स्पोर्ट्स कॉम्पेक्स में राज्य स्तरीय तैराकी प्रतियोगिता का आयेजन किया गया जिसमें कई जिलों के खिलाड़ी भाग ले रहें हैं। संघ का मानना है कि इससे अच्छे खिलाड़ी मिल पाएंगे
वहीं उद्घाटन समाहरोह मे पहुचे राज्यपाल के सलाहकार टी.पी सिन्हा ने कहा कि ऐसे आयोजनों से खिलाड़ियों का हौसला बढ़ेगा।
वैसे तो 34वें राष्ट्रीय खेलों को होनो मो अभी कुछ महीने बचे हैं। ऐसे में इस तरह के आयोजन राज्य के खिलाड़ियों के लिये काफी इम्पौर्टेंट साबित होंगे।

जाति पर तौले जा रहे बेऊर का कपल

अपने घर-परिवार की नसीहतों को दर-किनार करके शादी करने वाला ये है बेऊर का एक कपल।मखदुमपुर गांव के इस जोड़े ने जाति की बड़ी दीवार तोड़कर एक दूजे का साथ निबाया।हांलाकि लड़की के घर के लोगों के प्रथमीकि दर्ज कराने के बाद इनको पुलिस ने ऐरेस्ट कर लिया है।इतना कुछ होने के बाद भी ये दोनों साथ जीने मरने की क़समें खा रहे हैं।

नौबतपुर में नानी के पास रहते नीरज का परिचय अंजू से हुआ।धीरे-धीरे परिचय प्यार में बदला।और फिर क्या था सात जन्मों तक साथ रहने के वादे हो गए।सारी बाधाओं को लांघकर पिछले दिनों दोनों ने भागकर आरा के एक मंदिर में शादी कर ली।

कहानी में ट्विस्ट तब आया जब लड़की के घर वालों ने बेऊर छाने में अपहरण का मामला दर्ज कराया।दोनों ऐरेस्ट तो हो गए।लेकिन अब लड़की ही अपनी मां पर आरोप लगा रही है।अंजू का कहना कि उसकी मां उसे दूसरे व्यक्ति के पास बेचने की फिराक में है।इन बातों से पशोपेश में पड़ी है पुलिस।हांलाकि कुछ आरोपियों को न्यायालय भेजा गया।

ऐक्चुल मामला क्या है ये तो साफ़ होगा कुछ समय के बाद।लेकिन ये तो विडंबना ही है कि जाति पर तौले जा रहे इस कपल के प्यार को घर बसाने खुशियां तो नसीब नहीं हो रहीं ,मजबूरन जेल की हवा जंरूर खानी पड़ रही है।

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HIMMAT SE KAM LOGE TO ZMANA V SATH DEGA...HO GAYE KAMYAB TO BCHACHA-BCHCHA V NAM LEGA.....MAI EK BAHTE HWA KA JHOKA HU JO BITE PAL YAD DILAUNGA...HMESHA SE CHAHT HAI KI KUCHH NYA KAR GUZRNE KI...MAI DUNIA KI BHID ME KHONA NHI CHAHTA....