Wednesday, October 14, 2009

नरेगा महात्मा गांधी बन जाएगा ?

कहना गलत नहीं होगा कि दौलत अच्छे-अच्छों को अंधा बना देता है। गरीबों के कल्याण के नाम पर सरकार अरबों रूपये रिलीज करती है। लेकिन सरकारी तंत्र ही दबंगों के साथ मिलकर जमकर लूट-खसोट करती है। षायद इसलिए नरेगा आज जहां गरीबों के लिए कहर बनी है वहीं बिचैलियों कुबेर।

बिहार हो या झारखंड हर जगह रिष्वत की राषि तय है.
ये खेल बेषर्मी से चल रहा है। यहां लूट की स्थिति ये है कि सरकारी पदाधिकारियांे में भी परसेंटेज बंटा हुआ है। काम के बदले में भी मजदूरों को कम पैसा दिया जाता है। लेकिन मस्टर रोल और जाॅब कार्ड में पूरी मजदूरी दर्षायी जाती है। इसी तरह कार्य दिवस को लेके भी भारी गड़बड़ी होती है। पैसा नहीं देने पर जाॅब कार्ड तक नहीं बनाए जाते।

नरेगा में लूट किस स्तर से हो रहा है विधायिका, कार्यपालिका व न्यायपालिका तक को पता है। हाल ही में इस बात पर सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस भी कह चुके हैं कि नरेगा पूरी तरह से बिचैलियों के चंगुल में है। फिर भी लूट जारी है। जनता चिल्लाती है पर कोई सुनने वाला नहीं। नेता लोग एक-दूसरे को कोसने पर तुले हैं।

देषभर में तमाम गड़बड़ी की षिकायत के बाद सरकार को कुछ सुझा तो गांधी जयंती पर नरेगा के आगे बापू का नाम जोड़ने का। क्या नरेगा के नाम के आगे बापू का नाम जुड़ने से लूट-खसोट करने वाले सुधर जाएंगे। नरेगा महात्मा गांधी बन जाएगा। कई सवाल हैं जिसका जवाब षायद सरकार के पास नहीं। अब चाहे जो भी हो सुधार न हुआ त भुगतेगी तो जनता ही।
नरेगा नहीं काल


नरेगा आया गरीबों के उद्धार के लिए। इसके आते ही लगने लगा जैसे अब सही में गरीब-गुरबा के जीवन में नई रौशनी आ जाएगी। अब उन्हें दो जून रोटी खातिर भटकना नहीं पड़ेगा। जीवन में खुशियां आएंगी। अब रहेंगे मौज में। पर ऐसा हो न सका। नरेगा जैसे-जैसे पांव पसारता गया गरीबों पर कहर बनके टूटने लगा। झारखंड में तो इसका इतना खौफ है कि वहां के लोग अब ये कहने लगे हैं कि-नरेगा जो करेगा वो मरेगा।

नरेगा को लेके सरकार चाहे जितना ढोल पीट ले--कि ये गरीब-गुरबा के बेहतरी के लिए है। उनके हाथ में हरदम काम और दू गो पैसा रहेगा। पर झारखंड में यही नरेगा कहर बनके टूटा है। इसको लेके गरीबों में इतना खौफ है कि अब वो इसका नाम तक लेना नहीं चाह रहे।
ललित प्राकृति आपदा या रोड एक्सीडेंट से नहीं, नरेगा के चलते ही जान गंवा बैठा। झारखंड का ललित इसका शिकार होने वाला अकेला शख्स है ऐसी बात नहीं। तापस सोरेन, तुरिया मंुडा के नाम भी इसमें शामिल हैं। जो नरेगा के काल के गाल में शमा

म्यूजियम की शोभा चाक और कुम्हार


रौशनी का पर्व दिवाली के नजदीक आते हीं दिए बनाने का काम जोर-शोर से शुरू होता है। और सालों भर बेरोजगारी की मार झेलने वाले कुम्हार भी इस समय का बहुत पहले से इंतजार करते हैं....ताकि वो अपने घरौंदे को न जगमगा तो कम से कम रौशन तो जरूरे हो सकें।

मिट्टी के वो कारीगर....जो मिट्टी को तराश कर उससे लोगों के घरौंदों को रौशन भी करते हैं..... एक अदभुत कलाकारी का नमूना भी है। और इस कलाकारी के बदले हीं जलते हैं इनके घरों के चुल्हे। लेकिन westernization के दौर में इनकी इस कलाकारी का कोई खास मोल लोगों की नजरों में नहीं बचा है। तभी तो कभी...जहां 8000 से 10 हजार दीयों की बिक्री होती थी, वो आज महज 3000 से 5 हजार पर सिमट कर रह गई है।
वैसे इनकी जिन्दगी की दास्तान भी अजीब होती है। सारा का सारा परिवार बड़े हीं शिद्दत के साथ लगा रहता है.....देखिए न कोई माटी सानता है.. कोई चाक चलाकर उसे आकार देता है....तो कोई उन आकृतियों को रंगने में लीन है। लेकिन अपने काम में लीन तो हैं....लेकिन एक चिंता इनको सता रही है....कि वो कहीं दुसरे कुम्हारों की तरह इन्हें भी अपना व्यवसाय बदलना न पड़े। क्योंकि आधुनिकता के इस दौर में जहां पारंपरिक दियों की जगह chineese bulb और झालर ने ले ली है....ऐसे में उनके लिए दो जून की रोटी जुटा पाना भी मुश्किल हो गया है।
fashion trend और बदलाव का दौर अगर यूं हीं जारी रहा.... तो वो दिन भी दूर नहीं जब कुम्हार की शान कही जीने वाली चाक antique बनकर meauseum की शोभा हीं बढ़ा पाएगा।

Sunday, October 11, 2009


लोकनायक जेपी तुम बहुत याद आए

(जेपी का जन्म कहां हुआ था.....एक सवाल)
बा मुद्दत बा मुलीहिजा होशियार, अपने घरों के दरवाजे बंद कर लो, बंद कर लो सारी खिड़कियां, दुबक जाओ कोने में, क्योंकी एक अस्सी साल का बुढ़ा अपनी कांपती लड़खड़ाती आवाज में , डगमगाते कदमों के साथ हिटलरी सरकार के खिलाफ निकल पड़ा है सड़कों पर ।


एक सवाल हमेशा बना रहता है कि आखिर जेपी का जन्म कहां हुआ था.....इस पर कई मान्यताऐं हैं...उसी में बक्सर जिले के डुमरांव के नावानगर प्रखंड के सिकरौल लख पर जन्म हुआ था. यहां के लोगों की मानें तो जेपी के पिता जी हरसु लाल यहां नहर विभाग में जिलदार हुआ करते थे. और यहीं जेपी का जनम हुआ था.यही नहीं इनकी प्रारंभिक शिक्षा भी सिकरौल में ही हुई थी.....अगर यहां के लोग इस बात को कहते हैं तो यह जानने का विषय बन जाता है........
धर्मवीर भारती की ये रचना ऐसे हीं नहीं याद आई। ये याद आई है उस मौके पर जिस पर याद करने के लिए इसे लिखा गया होगा । अस्सी के दशक में इसे तब लिखा गया जब इन्दिरा गांधी का हिटलरी गुमान देश को एक और गुलामी की ओर ले जा रहा था, और बुढ़े जेपी ने उसके खिलाफ आंदोलन का बिगुल फूंका था। जी हां आज उसी जेपी की जयंती है। बिहार आंदोलन वाला जेपी, संपूर्ण क्रांती वाला जेपी, सरकार की चुलें हिला देने वाला जेपी, पुरे देश को आंदोलित करने वाला जेपी और सत्ता को धूल समझने वाला जेपी। जयप्रकाश नारायण। एक ऐसा नेता जिसने संपूर्ण आंदोलन की कल्पना की। संपूर्ण मतलब सामाजिक, राजनितिक, बौद्धिक, और सांस्कृतिक आंदोलन। 11 अक्टूबर 1902 को बिहार के छपरा जिले के सिताब दियारा में जन्मे इस लोकनायक ने 1939 में दुसरे विश्वयुद्ध के समय अंग्रेजों का विरोध किया। 1943 में ये पकड़े गए। गांधी जी ने कहा जेपी छूटेंगे तभी फिरंगियों से कोइ बात होगी। 1946 में रिहा हुए। 1960 में इ नेता लोकनायक बन चुका था। इन्दिरा गांधी की नितियों की खुली आलोचना की हिम्मत थी इसमें। आंदोलन शुरु हो गया। अंग्रेजी हुकुमत की याद ताजा हो गई। अपने ही लाड़लों पर बर्बर लाठियां गिरने लगीं, गोलियों ने कइयों का सीना छलनी कर दिया। बुढ़े जेपी पीटे गए जेल गए। देश जेपी का हो गया । वो जिधर चले देश चल पड़ा। 1975 में घबराई सरकार ने देश को गुलाम बना डाला। आपातकाल की घोषणा हो गई। देश जल उठा और 1977 में हुए चुनाव में पहली बार लोगों ने कांग्रेस को सत्ता से दुर कर दिया। इन्दिरा गांधी का गुमान टूट गया। उम्मीद थी जेपी सत्ता की बागडोर संभालेंगे, पर इ फक्कड़ संत सत्ता लेकर का करता। निकल पड़ा भुदान आंदोलन पर । देश सेवा , मानव सेवा और कुछ नहीं। आज उसी जेपी की जयंती है। नमन नमन और नमन, जेपी तूझे नमन।
जयप्रकाश जी रखो भरोसा
टूटे सपनों को जोड़ेंगे, चिताभष्म की चिनगारी से अंधकार के गढ़ तोड़ेंगे ।

Saturday, October 10, 2009




याद आये गुरू दत

हिन्दी फिल्मों के महान निर्दंेषको की बात चले और गुरूदत का नाम नही आये यह हो ही नही सकता । वह एक महान निर्देषक नही बल्कि एक सफल , लेखक , निर्माता , एवं अभिनेता भी थे गुरू दत का आज 45 वी पुण्यतिथि मनाया जा रहा है
भारतीय फिल्म को एक मुकाम पर लंे जाने वाले गुरू दत का जन्म 9 जुलाई 1925 को बंगलौर में हुआ था । गुरू दत का पूरा नाम गुुरूदत षिव ष्षंकर पादूुकोने थे लेकिन फिल्मी दुनिया में आने के बाद उनका नाम गुरू दत हेा गया । अपनंे फिल्मी कैरियर की ष्षुरूआत 1944 में बनी फिल्म चाॅद से श्रीकृष्ण की एक छोटी सी भूमिका से की थी ष्षूरूआत की । 1945 में उन्होने लाखारानी में निर्देषक विश्राम बेडेकर के साथ निर्देषक का जिम्मा भी सभाला । इसके बाद 1946 में गुरूदत ने पीएल संतांेषी कंी फिल्म हम एक है के लिए सहायक निर्दंेषक और नृत्य निर्देषन भी किया । उसके बाद कई उतार चढाव देखने के बाद उन्होने 1957 में प्यासा नाम की फिल्म बनाई उसके बाद 1960 में कागज के फुल , चैदहवी का चाॅद , साहिब बीबी और गुलाम , जैसी फिल्मेा को बनाया । फिल्मों के हर क्षेत्र में अपने को साबित करने वाले गुरूदत अपने पारिवारिक जीवन का संजोय नही रख पाये
फिल्मों में काम करने जुनून इस कदर था । की वे परिवार को ज्यादा समय नही दे पायंे जिसक फल यह हुआ कि उनका परिवारिक जीवन बिखरता चला गया । और जीवन में वे बिलकुल तन्हा हो गये । इस गम से निकलने के लिए वे ष्षराब का सहारा लियंे उन्होने ष्षराब के प्याले में अपने को इस तरह डंुबाया की फिर कभी नही निकले और इसी के कारण वे केवल 39 साल के उम्र में इस लकी कलाकार की अनलंकी मौत हो गयी .





रेखा हुई 55 की

आॅखो से बोलने की अदाकारी , वो दिलकष आवाज और कभी ने ढलने वाली खूबसूरती । जी हाॅ हम बात कर रहे है जोहराबाई जी हाॅ नही समक्षे अरे , अपनी भानूरेखा गणेषन अरे लग रहा है आप अभी भी नही समक्षे । चलिए हम बता देते हंै अरे बालीबुड की मषहूर अभिनेत्री अपनी रेखा की रेखा का जन्म 10 अक्टुबर 1954 को तमिलनाड के मद्रास में हुआ था अभिनय कला उनकी विरासत में ही मिली थी । उनके पिता जैमिनी गणेषन तमिल फिल्म के अभिनेता थे और उनकी माॅ पुष्पलल्भी तेलगू फिल्म की अभिनेत्री थी । अपने 40 साल के फिल्मी कैरियर में रेखा ने लगभग 180 से ज्यादा फिल्मों में काम किया । रेखा ने 1966 से कंैरियर की ष्षुरूआत एक तेलगू फिल्म में बतौर चाइल्ड आर्टिस्ट से की थी । हिन्दी फिल्मेा में लीड रोल में उनकी फिल्म का श्रेय 1970 बनी फिल्म सावन भादेा को दिया जाता है इसके बाद उन्होने कभी पीछे मुड कर नही देखा । उनकी मषहूर फिल्मो में उमराव जान , दो अंजाने , खूबसूरत , सिलसिला , बसेरा , खून भरी माग , उत्सव जुबैदा और कामसुत्र है इन फिल्मो में रेखा की बेहतरीन अदाकारी क्षलक देखी जा सकती है । रेखा को उनकंी ष्षानदार लाइफस्टाइल और फैषन के अंदाज के लिए भी जाना जाता है 1982 में राष्ट्रीय पुरस्कार समेत रेखा को तीन बार फिल्म फेयर और 2003 में फिल्मफेयर लाइफटाइम एचीवमेट अवार्ड संे नवाजा गया । आज भी यह अपने समय सेक्सी यह अदाकारा के चाहनेा वालो की कमी नही है यही कारण है की आज भी रेखा बाॅलीबुड में सक्रिय भूमिका निभा रही है ।
हिट फिल्मों का नाम ........
रामपुर का लझमण
गांेरा और काला
सौतन
एक ही रास्ता
ग्ंागा की सौगध
कर्मयोगी
दो मुसाफिर
सुहाग
दो षिकारी
मिस्टर नटवरलाल
जानी दुष्मन
आॅचल
सिलसिला
जान हथेली पंे
बीबी हो तो ऐसी
रेखा को मिले अवार्ड
1981 फिल्म फेयर बेस्ट अभिनेत्री खूबसूरत
1982 नेषनल फिल्म एवार्ड फार बेस्ट अभिेनंेत्री फिल्म उमराव जान
1989 फिल्म फेयर बेस्ट अभिनेत्री एवार्ड फिल्म खून भरी मांग
1997 फिल्म फेयर बेस्ट सर्पोंटिग अभिनंेत्री अवार्ड फिल्म खिलाडियंेा का खिलाडी
2003 फिल्म फेयर लाइफटाइम एचीवमंेट येवार्द
जाली नोट
टेबल पर करीने से सजी हैं नोटों की गड्डियां। मानो नोटों की नुमाइश हो रही हो। पांच सौ या हजार जो भी नोट चाहिए वो हाजिर है। लेकिन हम आपको बता दें कि कोई नोटों की नुमाइश नहीं हो रही है बल्कि ई सारे नोट जाली हैं। जी हां, पुलिस को काफी दिनों से खबर मिल रही थी कि इलाके में जाली नोटों का कारोबार किया जा रहा है। पुलिस लगातार धंधेबाजों को अरेस्ट करने के लिए उनके संभावित ठिकानों पर दबिश दे रही थी। लेकिन हर बार उसे नाकामयाबी ही हाथ लग रही थी। लेकिन कहा जाता है कि गुनहगार कितना भी चालाक क्यूं न हो पुलिस के जाल में फंस ही जाता है। आखिरकार पुलिस को अपने मिशन में कामयाबी मिली। पुलिस ने छापेमारी कर दो धंधेबाजों को अरेस्ट कर सलाखों के पीछे भेज दिया है। पूछताछ में पुलिस को इनके पास से कई इंपॉर्टेंट जानकारियां मिली हैं।
शुरूआती तफ्तीश में दोनों आरोपियों ने पुलिस को काफी बरगलाने का कोशिश किया। लेकिन पुलिसिया तफ्तीश के आगे उनकी एक न चली। दोनों आरोपियों का नाम मकसूद अंसारी और सुलेमान अंसारी है। पुलिस ने इनके पास से पचास हजार का जाली नोट और कई ऑर्म्स बरामद किए हैं। पुलिस पता लगा रही है कि इनके तार कहां-कहां से जुड़े हुए हैं।
जाली नोटों का कारोबार हमारी अर्थव्यवस्था को खोखला करते जा रही है। खतरा कम होने के कारण ई धंधा में कई बड़े आपराधिक गिरोह भी शामिल होते जा रहे हैं। धंधे के मेन सौदागरों का नेपाल और बांग्लादेश में बैइठे होने का अनुमान लगाया जाता है।
लेडी डॉन

टेबल पर सजा है हथियारों का जखीरा। पिस्तौल से लेकर कार्बाइन तक है इहां। एक-एक गोली को करीने से सजा कर रखा गया है। गोलियों की कई भेराईटी है इंहा पर। एके-47, कार्बाइन या फिर नाइन एमएम सब तरह की गोलियां हैं आखिर किसका है ई हथियारों का जखीरा। कौन है इसका मालिक। तो हम आपको बता दें कि हथियारों के ई जखीरे को पुलिस ने बरामद किया है। पुलिस को काफी दिनों से खबर मिल रही थी कि इलाके के दो शातिर अपराधी किसी नामचीन व्यक्ति को ठिकाने लगाने का प्लान बना रहे हैं। जी दोनों क्रिमिनलों का नाम है संतोष सिंह उर्फ राजू और मोहम्मद माहिर। ई दोनों शातिर अपराधी भोला पाण्डेय गिरोह के शार्प शूटर हैं। धनबाद के कई थानों में इन दोनों पर रॉबरी, किडनैपिंग और मर्डर जैसे कई संगीन मामले दर्ज हैं। कई बार पुलिस ने इन दोनों को पकड़ने के लिए जाल फैलाया। लेकिन हर बार उन दोनों ने दिया पुलिस को चकमा। आखिरकार पुलिस के सीनियर ऑफिसरों ने दोनों को पकड़ने के लिए एक स्पेशल टीम का गठन किया। टीम ने जांच की कमान संभालते ही दोनों के प्रोफाइल को खंगालना शुरू कर दिया। जांच चल ही रही थी तभी पुलिस को उन दोनों के एक घर में छिपे होने की खबर मिलती है। सूचना इतनी अहम थी कि टीम ने एक पल भी गंवाना उचित न समझा। लाव लश्कर के साथ टीम निकल पड़ी छापेमारी के लिए। जल्द ही पुलिस ने दोनों को अलकापुरी स्थित एक घर से धर दबोचा। अब शुरू होती है दोनों से पुलिसिया पूछताछ। शुरूआती तफ्तीश में राजू और माहिर ने पुलिस को काफी बरगलाने का कोशिश किया लेकिन पुलिसिया तफ्तीश के आगे उनकी एक न चली। जल्द ही दोनों टूट गए। जांच टीम के सामने उन दोनों ने जो खुलासा किया वो काफी चौंकाने वाला था। उन दोनों के पास से पुलिस को कई अहम जानकारियां मिली हैं।
फैल जाता है दहशत

एक नहीं, दू नहीं, तीन नहीं चलती है पूरी पांच गोलियां। धांय-धांय की आवाज से पूरा एरिया दहल उठता है। दिनदहाड़े हुई गोलीबारी से मच जाती है खलबली, पसर जाता है सन्नाटा। अचानक चली गोलीबारी से पब्लिक के बीच फैल जाता है दहशत। कोई कुछो समझ पाता तब तक हथियारबंद दस्ते हो जाते हैं फरार। गोलीबारी शांत होते ही घटनास्थल पर लोगों की भीड़ लग जाती है। घटनास्थल का नजारा देख लोगों का दिल दहल उठा। चारों और खून ही खून और पड़ी हुई थी एक लाश। जल्द ही लाश की पहचान भी हो गई। लाश इलाके के ही रसूखदार नीरज सिंह की थी। जी हां, दो बाइक पर सवार होकर आए अपराधियों ने नीरज सिंह को गोलियों से भून डाला था। दरअसल नीरज सिंह अपने बेटे को स्कूल छोड़ने गए हुए थे। अपने बेटे को स्कूल पहुंचाकर जब ऊ वापस लौट रहे थे तब घात लगाए अपराधियों ने उन्हें अपने टारगेट पर ले रखा था। मौका मिलते ही अपराधियों ने ताबड़तोड़ फायरिंग कर नीरज सिंह को कर दिया ढेर। मृतक के परिजनों की माने तो नीरज की किसी से कोई रंजिश नहीं थी।
नीरज के मर्डर की खबर मिलते ही घरवालों पर गमों का पहाड़ टूट पड़ा। आखिर दुखों का पहाड़ टूटे भी क्यों न। घर का जवान लड़का जो मारा गया था। परिजनों का रो-रोकर बुरा हाल हुआ जा रहा है। नीरज के फादर को तो इतना गहरा सदमा लगा है बोलने की हालत में भी नहीं हैं।
पुलिस ने लाश को कब्जे में लेकर पोस्टमॉर्टम के लिए भेज दिया है। पुलिस हत्यारों का पता लगाने के लिए हर एंगल से मामले की जांच कर रही है। नीरज प्रोपर्टी के धंधे से जुड़ा हुआ था। इसलिए पुलिस नीरज के प्रोफाइल को भी खंगाल रही है ताकि मर्डर के मोटिव का पता चल सके। पुलिस जांच में जुटी थी तभी उसे खबर मिलती है कि इस हत्याकांड से जुड़े़ कुछ लोग एक घर में ठहरे हुए हैं। जांच टीम के सदस्यों ने आनन-फानन में ऊ घर को घेर लिया। तलाशी के दौरान एक संदिग्ध पुलिस के हत्थे चढ़ गया। पुलिस उसे गिरफ्तार कर थाने ले आई है और पूछताछ कर रही है।
गैंगवार

घुप्प अंधेरी रात और सन्नाटे के बीच एक बार फिरो पटनासिटी गूंज उठा गोलियों की तड़तड़ाहट से। थर्रा उठा पूरा इलाका। इलाके के लोग अनजाने खौफ से सिहर उठे। जी हां, इलाके में गोली चलती है और लोग समझ जाते हैं कि थम चुका गैंगवार फिरो शुरू हो चुका है। पटनासिटी में कई गैंग एक्टिव हैं जो इलाके में अपने वर्चस्व को लेकर वारदातों को अंजाम देते रहते हैं। टाइम टू टाइम दूसरे गैंग के गुर्गों पर अटैक करते रहते हैं। इस बार गैंगवार का इलाका था आलमगंज। आलमगंज पहले भी गैंगवार को लेकर सुर्खियों में रहा है। इलाके के छोटे मोटे अपराधियों ने भी बाजाप्ता अपना गैंग बना रखा है। इलाके के शातिर अपराधी टोनी और सोनी को दूसरे गैंग के सदस्यों ने ले रखा था अपने टारगेट पर। घात लगाए अपराधियों ने टोनी और सोनी पर अंधाधुंध गोलियों की बौछार कर दी। गोली की आवाज सुनकर मोहल्लावासी इकट्ठे हो गए और आनन-फानन में दोनों को हॉस्पीटल ले गए। लेकिन मौत ने टोनी का पीछा नहीं छोड़ा और डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया।
रात में हुई गैंगवार की वारदात ने पुलिस की नींद उड़ा कर रख दी। मामले की गंभीरता को देखते हुए पुलिस ने हॉस्पीटल पहुंचकर जांच शुरू कर दी। घायल टोनी की माने तो उस पर हमला जेल में बंद शातिर अपराधियों ने करवाया है।
कयास लगाया जा रहा है कि टोनी और सोनी दोनों पुलिस के लिए मुखबिरी का भी काम किया करते थे। खैर इस बात में कितनी सच्चाई तो जांच के बाद ही पता चल पाएगा। बहरहाल ना जाने अब तक गैंगवार में कितनी मां की गोद सूनी हो गई। या कहें कि गैंगों की ई लड़ाई ने कितनों की मांग उजाड़ डाली और कितनों को अनाथ बना डाला।

Friday, October 9, 2009

शिक्षा का गिरता स्तर ---------------------

शिक्षा के बिना मनुष्य पशु के समान है। शिक्षित होना सबके लिए जरूरी है। लेकिन अब शिक्षा का स्तर धीरे-धीरे गिरता जा रहा है। वर्तमान परिवेश में शिक्षा एक व्यापार बन कर रह गया है। प्राइवेट इंजीनियरिंग और मेडिकल कॉलेज का खुलना इसका प्रमाण है। सामान्य शिक्षा प्रणाली की बातें सिर्फ पन्नों में ही सिमट कर रह गयी है।
शिक्षा में सुधार के लिए चलाये जाने वाले अभियान जमीन पर नहीं उतर पाते हैं। शिक्षा का अलख जगाने और उसे गांव-गांव तक पहुंचाने के लिए प्रयास तो किये गये। लेकिन नतीजा कुछ भी नहीं निकला। शहरी माहौल में रह चुके शिक्षक गांव जाने से कतराते हैं, तो गांव से ताल्लुक रखने वाले शिक्षक आराम फरमाते हैं।
अब नेताओं को लें, ये बातें तो सरकारी स्कूलों की करते हैं, लेकिन खुद उनके बच्चे अंगरेजी स्कूलों में पढ़ते हैं। फिर सुधार करने की बात कहां से सोची जा सकती है ?
अगर विदेशों में शिक्षा के स्तर की बात करें, तो यहां शिक्षा का स्टाइल कुछ अलग हटकर है। यहां जिस बच्चों का जिस क्षेत्र में मन लगता है, उसी क्षेत्र में उसे करियर बनाने के लिए प्रेरित किया जाता है। जबकि हमारे यहां वो बात नहीं है।
पढ़ाई नॉलेज बेस्ड होनी चाहिए। सैम पित्रोदा की अध्यक्षता वाले नॉलेज कमीशन क्या कर रहा है, किसी को नहीं पता। क्या यह अपने मकसद में कामयाब है या नही ? इस तरह और भी कई योजनाएं चलाई जा रहीं हैं वो कहां तक सार्थक साबित हो रहा है. इस स्तर में सुधार के लिए हर कोई जिम्मेदार है....हर कोई को अपने स्तर से जुटना पड़ेगा.

Friday, October 2, 2009

गजल
जाने कहां तक पहुंचे,उजाले की चाह में
दिन में भी घुप्प अंधेरा है छाने लगा.

तिनका-तिनका चुगकर बसाया आसियां
अब तो उजाले से भी डर लगने लगा.

सबके चेहरे पर, मासूम मुस्कान है
कौन कातिल,कौन है सजा पाने लगा.

चांद पर जा पहुंचने की चाहत है मगर
उड़ान भरने से पहले,कुहरा है छाने लगा.

रोक लो उस आंधी को, जो दहला रही है
किसकी कारगुजारी,किसका दीप बुझने लगा.
------मुरली मनोहर श्रीवास्तव
9430623520, 9234929710

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HIMMAT SE KAM LOGE TO ZMANA V SATH DEGA...HO GAYE KAMYAB TO BCHACHA-BCHCHA V NAM LEGA.....MAI EK BAHTE HWA KA JHOKA HU JO BITE PAL YAD DILAUNGA...HMESHA SE CHAHT HAI KI KUCHH NYA KAR GUZRNE KI...MAI DUNIA KI BHID ME KHONA NHI CHAHTA....