Tuesday, June 30, 2009

अभियान या छलावा
बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग उठ तो रही है एक लम्बे समय से। लेकिन बिहार को अब तक नहीं मिल पाया है विशेष राज्य का दर्जा। ऐसे में इस बात पर चर्चा लाजिमी है कि नेताओं की यह मांग एक अभियान है या फिर मात्र एक छलावा।
बिहार को विशेष राज्य का दर्जा मिले इसे लेकर राजनीतिक हल्कों में बयानबाजी का दौर बदस्तूर जारी है। बिहार को यह दर्जा मिलेगा या नहीं? यह तो आने वाला कल बताएगा लेकिन सूबे के बुद्धिजीवियों में इस मुद्दे को लेकर अलग-अलग राय है।
बिहार को विषेष राज्य का दर्जा देने की मांग बिहार के व्यवसायी वर्ग भी एक दशक से उठाते आ रहे हैं। बिहार चैम्बर आॅफ काॅमर्स का एक शिष्टमंडल 1991 में ही इस मांग को मजबूती के साथ तत्कालीन केन्द्र सरकार के पास रखा था लेकिन उन्हें निराशा हाथ लगी। अब जब वर्तमान बिहार सरकार इस मुद्दे को गंभीरतापूर्वक उठा रही है तो सूबे के व्यवसायियों में भी आशा की किरण जगी है। बिहार के राजनेता भले ही इस मुद्दे को राजनीतिक रंग देना शुरु कर दिए हों लेकिन आम नागरिकों को इस राजनीति से कोई लेना देना नहीं। बिहार की जनता को चाहिए सिर्फ सूबे का विकास और ये विकास चाहे जिस तरीके से हो।


यश राज की न्यूयार्क


हम लेकर आए हैं न्यूयार्क। अरे नहीं जनाब हैरान होने की बात नहीं। ये न्यूयार्क न त कोई डिश है और न हीं यू.एस.ए. का हिस्सा ।बात कर रहे हैं आज रिलीज हुई यश राज के बैनर तले बनी फिल्म न्यूयार्क की। यश राज एक बार फिर देकर आए हैं तीन दोस्तों की कहानी न्यूयार्क के रूप में । जिसे देखकर दोस्ताना की याद आ हीं जाएगी। वैसे आपको बता दें कि इस फिल्म में दोस्तों की भूमिका में नजर आने वाले हैं जाॅन इब्राहिम , नील नितीन मुकेश, और उनका साथ देती नजर आ रही हैं बाॅलीवुड की र्बाबी डाॅल यानि कि अपनी कैटरीना कैफ। ये एक एक्शन थ्रिलर होने के साथ-साथ साॅफ्ट रोमैटिक भी है। जिसमें दिखाया गया है कि किस तरह से बड़ी
घटनाएं हमारी जिन्दगी में असर छोड़ जाती हैं। तान दोस्तों के इर्द-गिर्द घुमती इस फिल्म की पृष्ठभूमि में अमेरिका में हुए 9/11 हमले को रखा गया है। साथ हीं साथ ये भी दिखाया गया है कि उसके बाद उनके रिश्ते किन मोड़ों से गुजरती हैं। फिल्म में समथिंग डिफरेंट की अगर बात की जाए तो जाॅन का नाम सबसे पहले आएगा। क्योंकि उन्होंने इस फिल्म में न्यूड सीन जो दिए हैं।हालाकि जाॅन ने दोस्ताना में भी कम एक्सपोज नहीं किया था। लेकिन न्यूड ये शायद उनके फैन्स को सेंटर शैाक जरूर देगा। हालाकि न्यूयार्क के बैकग्राउंड में एक्सपोज करना तो हजम हो जामता है पर जब इसे इंडिया में दिखाने की बात आती है । तो मामला फिर वही सेंटर साॅक वाला हीं हो जाता है। बात चाहे जो भी हम तो हम तो यही कहेंगे कि 9/11 जैसे मुद्दे पर फिल्म बनाना काकई आसान काम तो है नहीं ।खासकर तब जब दर्शकों को सिनेमाघरों तक खिंचना भी तो होता है जिसके लिए न्यूड और अदर प्रोमोश्नल फैक्टर्स को यूज किया है। अब देखने वानी बात तो ये होग ी कि ये सारे फंडे दार्शकों को खींच पाने में करगर साबित हो पाएगी कि नहीं




संसद से सडक पर



कभी सरकार की तकदीर लिखने का दावा करने वाले आज अपनी ही तकदीर
पर मायूस हैें। खुद को संसद का शहंशाह समझने वालों केहालात ऐसे हो गये हैं कि अपनी अस्तित्व की लडाई के लिए ,वे अब सडकों पर हैं।ये हैं हमारे पूर्व रेलमंत्री लालू प्रसाद यादव। कल तक इनके शानके क्या कहने थे। शान भी ऐसा मानो संसद इन्हीं के शान से रौशन हो। चुनाव पहले तक इनका दावा भी यही था किइनके और इनकी पार्टी की बदौलत ही संसद की शोभा है और इनके बिना सरकार की कल्पना नहीं की जा सकती। लेकिन कहते हैं न कि सितारों की चाल बदलते ही किस्मत भी
दगा दे जाती है ।बिहार के इन दोनों सूरमाओं लालू और रामविलास के साथ भी
ऐसा ही हुआ।नौबत यहां तक आ गयी कि कल तक शाही ठाठ
का मजा लेने वाले इ नेता आज अपने अस्तित्व की लडाई के लिए
सडकों पर हैं और इस बात का इनको कौनो मलाल भी नहीं है।वो कहते हैं न कि सब दिन होत न एक समाना ।तो भइया ।कहावत को याद रखिए और इसी के आधार पर जनता को जर्नादन समझते हुए उनकी सेवा शुरु कर दिजीए।काहे कि नेताओं के किस्मत की चाभी तो जनता के ही हाथ में रहती है।




दरोगा बने प्रशिक्षु



लंबे समय से पुलिस अधिकारियों की घोर कमी झेल रहे बिहार पुलिस की समस्या आखिरकार दूर हो जाएगी। जी हां आज राजधानी बीएमपी 5 के मिथलेश स्टेडियम में 639 सब इंस्पेक्टरों को नियुक्ति पत्र दी गयी। गौरतलब है कि इनमें 606 पुरूष और 33 महिलाएं शामिल हैं। प्रदेश के पुलिस महानिदेशक डा0 डी0 एन0 गौतम ने इन पुलिस सब इंस्पेक्टरों का अपना काम बखूबी करने की सलाह दी। इन सब इंस्पेक्रों की कुल संख्या 2070 है जिन्हें 5 जगहों पर ट्रेनिंग दी जा रही है। ट्रेनिंग के दौरान इन्हें कानून, परेड एवं वर्दी की ज्ञान दी जाएगी। लंबे समय से लंबित इस मामले में आखिरकार प्रक्रिया पूरी कर ली गयी। अब देखना ई है कि इस पहल से अपराध पर काबू पाने में सरकार को कितनी सफलता मिलती है।



भाजपा का सीता प्रेम


राम के नाम पर राजनीति करने वाली भाजपा का अब राम से मोह भंग होता दिख रहा है। अब इन्हें राम की अयोध्या से ज्यादा सीता की नगरी भाने लगी है।
लोकसभा में मिली करारी हार से तिलमिलाई भाजपा अब अपनी जमीन तलाशने में जुटी है। उसे लगता है कि अब राम नाम उसकी डूबती नैया को पार लगाने में उतना कारगर नहीं रहा। अब राम के साथ सीता मैया का नाम लेने के बाद ही उसका उसका बेड़ा पार लगेगा।
भाजपा के महामंत्री प्रभात झा की मानें तो राम की अयोध्या तो विवादास्पद रही है, लेकिन सीता की जन्मस्थली पर त कौनों विवादे नहीं है। फिर भी इस स्थान का जितना विकास होना चाहिए उतना नहीं हो पाया है। नब्बे के दशक में भाजपा को अपना भविष्य राम में दिख रहा था। लेकिन अब वह अपना भविष्य सीता की नगरी में तलाश रहा है। ठीक है भइया राम नहीं तो सीता ही सही, प्रयोग करने में क्या जाता है।
12 सालों तक कीर्तन

भक्ति और जज्बा का कौनों मोल नहीं होता। तभी तो लोग देव भक्ति में सालों बीता देते हैं। कुछ ऐसा ही हुआ जहानाबाद के एक गांव में जहां 12 सालों तक देश में अमन-चैन शांति के लिए अखंड हरिकीर्तन किया गया।
रामकृष्ण नाम महायज्ञ और 12 वर्षीय अखंड संकीर्तन का समापन की तैयारी कर रहे है। कहते हैं यहां कीर्तन का एक युग बीत गया। पुराने अवशेष वाले इस मंदिर में भक्त प्रभु की पूजा-अर्चना करते हैं। इस यज्ञ को सभी वर्गों से भिक्षाटन करके पूरा किया गया। इस यज्ञ से अंर्तजातीय संबंध में जहां सुधार आया, वहीं क्षेत्र में अमन-चैन बरकरार रहा। जहानाबाद का बेम्बई काको-पाली में 12 साल से कीर्तन चल रहा है। 25 जून 1997 को शाम चार बजे इस हरिकीर्तन की शुरूआत हुई। इसका उद्देश्य है सबके लिए सदभावना, आपसी जातिगत भेदभाव को मिटाना। सबके लिए भगवत प्राप्त करना, जिससे लोग खुशहाली से जीवन जी सकें। इस यज्ञ में सबका सहयोग रहा। इस तरह के आयोजन से लोगों में आस्था तो बरकरार रहती हीं है और आपसी संबंध में भी सुधार होता है।


समर स्पेशल-हाल बूरा


टेªनों में रिजर्वेशन का मतलब आराम से यात्रा करना होता है। लेकिन आप रिजर्वेशन कराए हों, गाड़ी समय पर नहीं आए और आए भी तो रिजर्वेशन की जगह जेनरल बोगी लगी हो, तो पैसेन्जर का क्या हाल होगा, आप खुदे समझ सकते हैं।
छपरा जंक्शन पर टेªन जैसे ही आकर लगी, पैसेन्जरों में अफरा-तफरी मच गई। क्योंकि दरभंगा से चलने वाली 0423 समर स्पेशल में एस-8 स्लीपर बोगिए नहीं लगी थी। पैसेन्जर आपे से बाहर हो गए। हो भी क्यों नहीं एक तो उमस भरी गर्मी, उपर से रिजर्वेशन वाली बोगिए नहीं है। ऐसे में अपने मंजिल तक पहुंचने से पहले हीं यात्रियों के हलख सुखने लगे हैं। इन बेचारों का टिकट कनफर्म है। फिर भी जेनरल में यात्रा करना इनकी मजबूरी है।
रेलवे एक व्यवसाय है, यात्रियों के लिए सुविधा मुहैया करवाना उसकी ड्यॅटी है। पर यहां तो यात्रियों की सुविधा के दावा करने वाली रेलवे फिसड्डी साबित हो रही है। यात्रियों की असुविधा की बात को छपरा के स्टेशन अधीक्षक भी मान रहे हैं। उपर से ये कह कर अपना पिण्ड छुड़ा रहे हैं, कि पैसा रिफंड कर दिया जाएगा। जबकि इसी गाड़ी में छपरा बनारस जोन के डीआरएम का सैलून भी लगा हुआ है।
यात्रियों को बेहतर सुविधा देने के दावा करने वाला रेलवे, आला अफसरों का सैलून लगाना तो नहीं भूला, लेकिन ई का जिन यात्रियों से आमदनी होती है। उनके साथ इतनी बड़ी भूल करना रेलवे की कौन सी अदा है।
इंटरनेट पर पिंडदान

नीतीश सरकार ने मोक्ष प्राप्ति के लिए पिंडदान का धार्मिक महत्व संसार के पटल पर अधिक ख्याति दिलाने के लिए देश-विदेश के कोने-कोने में रहने वाले हिन्दुओं के लिए अब इंटरनेट से आॅनलाइन पिण्डदान कराने की व्यवस्था कराए जाने की घोषणा की है। सरकार की घोषणा के बाद पंडा समाज में विरोध के स्वर उठने लगे हैं।
इंटरनेट पर पिंडदान जैसे सवा रूपये में गउदान, के सलोगन के साथ सरकार विरोधी नारा लगाते इ्र हैं गया के पंडा लोग। इ्र पंडा लोग आवाज बुलंद कर रहे हैं धर्म विरोधी नीति और गंदी नीतियों के खिलाफ। इनका मानना है कि इंटरनेट पर पिंडदान धार्मिक भावनाओं को ठेस पहंुचा रही है।
दरअसल ये अपनी बात उन हुक्मरानों तक पहुंचाना चाहते हैं जिनकी नीतियों ने इन्हंे आघात पहंुचाया है। इंटरनेट पर पिंडदान को लेकर इतने गुस्साए हैं कि ई विधानसभा का घेराव करने की भी चेतावनी दे रहे हैं। आगे ये भी कहा कि नीतीश कुमार अपने स्वार्थ में हिन्दू धर्म को नष्ट न करें।
हिन्दू आस्था के पिण्डदान को इंटारनेट पर करवाने के खिलाफ पंडा सड़क पर उतर आए है। अब देखना है कि इनकी बात पर सरकार अमल करती है कि नहीं तो आने वाला समइये बताएगा।

Sunday, June 28, 2009



गरीबी के साये में...


सारा जहां गुलजार है
फिर मेरे दामन
क्यों ?
दिन के उजाले में भी
अंधकार है.
जाने-अंजाने
जिन्दगी को उजालों से
भर देने की
खुदा से
गुजारिश करने वाले
तेरे दामन में
आज भी अंधकार है.
जमीं से आसमां तक
इंसान उड़ान
भर रहा है.
विश्व के मानचित्र पर
विकास का
परचम लहरा है.
फिर भी
गरीबी मिटाने की
बात करने वालों
जरा सोचो
कि
आज भी इनके जिन्दगी में
अंधकार है.
सदियों से
गरीबी मिटाने की
चर्चाएं होती हैं,
जहां लोग
कचड़े फेंकते हैं
वहीं इन्हें
दो जून की रोटी
नसीब होती है.
कुछ पल के लिए
भूख मिट जाते हैं
जिन्दगी के दिन चार
कट जाते हैं
पर !
तब दिल तड़प उठता है
जब जानवरों की तरह
इन्हें भी
मौत सरेआम मिलती है.
चारो ओर
गरीबी मिटाने की
चहूं ओर चर्चा होती है
गरीबी को,
विषय बनाकर
आए दिन सेमिनार
होती है.
लेकिन ये क्या?
इंसान ही इंसान को
अपना गुलाम बनाकर
गरीबी का माखौल
उड़ा रहे हैं.
रोटी तू !
जो, न करादे
इन गरीबों को
आजीवन गरीबी की
लकीर खींचने वाले
कभी मेरी जगह पर
आकर तो देख
रौशन जहां में भी
सिर्फ और सिर्फ
अंधकार है.
--मरली मनोहर श्रीवास्तव
9430623520/9234929710



10,000 किसानों ने इच्छा मृत्यु की मांगी


पलामू के किसान सुखाड़ से त्रस्त होकर अब सामूहिक रूप से देश के राष्ट्रपति इच्छा मृत्यु की मांग कर रहे। अब तक 10,000 किसानों ने इच्छा मृत्यु की मांग का आवेदन राष्ट्रपति व संबंधित न्यायिक पदाधिकारियों भेजने के लिए हस्ताक्षर अभियान चलाया है. किसान हस्ताक्षर अभियान के लिए गांव-गांव में पंचायत लगाकर इच्छा मृत्यु के लिए पत्र लिख रहें।
पलामू के किसान पिछले वर्षों से सुखा की मार झेलते आ रहे है, इस वर्ष किसानों के सामने खाने, पीने तथा मवेशियों के पानी के लिए विकट समस्या खड़ा हो गया। पलामू 2008 के मुकाबले इस मई माह में मात्र 8 मिलीमिटर वर्षा हुई, जबकि पिछले वर्ष माई और जून कर 130 मिलीमिटर वर्षा हुआ था। पलामू में लगभग 8 लाख एकड़ भूमि पर खेती होती है. इन में मात्र एक लाख 50 हजार एकड़ भूमि पर ही सिंचाई साधन उपलब्ध है. यहां की लगभग 90 प्रतिशत भूमि खेती के लिए बर्षा जल पर ही निर्भर है. वर्षा नहीं होने किसानों के अंदर मायुसी छा गयी है. पलामू जिला के छतरपुर प्रखंड के विभिन्न गांवों के किसानों के समक्ष वर्षा नहींे हो ने कारण भूखमरी की स्थिति उत्पन्न हो गयी. किसान समस्याओं से तंग आकर अब देश के राष्ट्रपति से इच्छा मृत्यु की मांग करना शुरू कर दिया है. इसके लिए किसान बजाप्ते पंचायत वार पंचायत लगार कर इच्छा मृत्यु के लिए हस्ताक्षर अभियान चलाना शुरू कर दिया. किसानों का कहना कि लगातार तीन वर्षाें से पलामू के सुखाड़ और किसी तरह अपने तथा परिवार व जनवरों को जीविका चला रहे है, वे कर्ज बोझ से भी दबे हुए, उनके पास एक मात्र उपाय बच गयो अत्माहत्या। किसानों राष्ट्रपति सुखाड़ नजात के उपाय करे, नहीं तो हम सभी किसानों को इच्छा मृत्यु की इजाजत दे। इच्छा मृत्यु अभियान में सामाजिक संगठन के लोग भी जुटे हुए हैं, लोगों का कहना कि सरकार उन्हें इजत से जीने के लिए अगर नहीं व्यवस्था करती है, तो उन्हें मरने के लिए भी इजाजत दे। लोगों को कहना कि अत्महत्या करना अपराध है, इसलिए लोग इच्छा मृत्यु के लिए राष्ट्रपति सहित देश के तामम लोगों को पत्र लिखा है. मरता क्या नहीं करता, पलामू के किसान पिछले कई वर्षा से सुखाड़ की मार से त्रस्त हो गये और अब वे जीना नहीं चाहते हैं.


इंडस्ट्री बंद होने की कगार पर


विकास की ढ़ेरों बातें की जाती है। जाहिर है ये विकास बिना उद्योग-धंधों के नहीं हो सकता। लेकिन बिहार में बिजली की जो हालत है उससे यहां चल रहे उद्योगों पर इसका खासा प्रभााव देखने को मिल रहा है। यही कारण है कि आज ये इंडस्ट्री बंद होने की कगार पर हंै। बंद पड़ी मषीन और काम से गायब कामगार। जी हां ये हालत है राजधानी पटना के पाटलिपुत्रा इंडस्ट्रियल एरिया का। जहां बिजली की कमी कमी के चलते आज काम बंद पड़ा है। राज्य के विकास की पहचान बना ये केंद्र आज बिजली की कमी कंे चलते आराम फरमा रहा है। बिजली की कमी से जूझ रहे राज्य में उद्योगों की कमोवेष स्थिति यही है।
ऐसा नहीं है कि ये हाल केवल राज्य में चल रहे उद्योगों का ही है। बिजली की कमी के चलते राजधानी के होटल व्यवसाय पर भी इसका असर पड़ा है। हाल ये है कि बिजली की
आंख मिचैनी के चलते होटलों के जयादातर कमरे खाली ही रहते हैं। किसी भी राज्य का विकास बिजली के बगैर संभव नहीं है। लेकिन फिलहाल राज्य में बिजली की जो हालत है उसे देखकर ये साफ लगता है कि राज्य में कारोबार ठप्प होने की कगाार पर है। जरूरत है बिजली व्यवस्था में सुधार करने की जिससे राज्य के विकायस के साथ साथ लोगों की जिंदगी भी सही ढ़ंग से चल सके।


गरीबी एक अभिशाप
( गरीब दिवस 28 जून पर खास)


इंसान के जन्म के साथ ही गरीबी का भी जन्म होता है। यह बात अलग है कि आज भी यह कुछ खास लोगों और समुदायों के लिये अभिषाप बनी हुई है। आज गरीब दिवस है। गरीबों को इससे कोइ सरोकार भी नहीं कि उनकी मजबूरी भी देष में दिवस के रुप में मनाई जाती है। क्योकि उनकी जो स्थिति 70 साल पहले थी वह आज भी बरकरार है। राजधानी के महेन्द्रुघाट इलाके में रहता है। कागज के कबाड़ियों का एक परिवार। पूरा कुनबा 18 परिवार का है। जिसमें बच्चों को साथ ले लिया जाए तो यह पूरे मिलकर 72 हो जाएंगे। सतर साल पहले इन परिवारों के मुखिया ने पटना में कदम रखा। और शहर के कचड़े को चुनने के साथ शुरु की एक जिंदगी। सोचा बाद में चलकर वक्त बदलेगा, तो हमारा भी कुछ कल्याण होगा। लेकिन उनके बच्चे आज भी बताते हैं कि कुछ नहीं बदला।
इस परिवार के बच्चे गरीबी का दंष झेलकर जवान होते है। पढाइ-लिखाई की कोई सुविधा नहीं मिल पाती। पूरा कुनबा रद्दी कागज के टुकड़े और कुट का कार्टुन चुनकर अपनी जिविका चलाता है। इनकी दिनभर की कमाइ मात्र 50 रुपये होती है। किसी दिन वह भी नहीं मिल पाती। बस्ती के बच्चों में आये दिन बीमारी फैलते रहती है। जिसका इलाज तक नहीं हो पाता। बस्ती के सबसे बुजुर्ग सदस्य बताते हैं कि सरकार के तरफ से मिलने वाली कोइ भी सुविधा इन्हे नहीं मिल पाती। गत 50 सालों में खासकर बिहार ने कइ बड़े बदलाव देखे। लेकिन इस बदलाव का हल्का सा भी असर वैसे परिवारों पर देखने को नहीं मिला जिन्हे बदलाव की सही में जरुरत थी।

Saturday, June 27, 2009



हौसले बुलंद हो तो -----

क्या कभी अपने मौत से खिलते हुए देखा है ,मौत का खेल जिसमे खीलाडी अपने हथली पर मौत को लेकर चलते है इन देनो रांची के जगरनाथ mela में ये खूब वह वही बटोर रहा है मो अफरोज आलम महज दस साल से इनपर रिस्क उठाने का ऐसा जूनून छाया की ये मौत का खेल ही खेलना शुरू कर दीये और कंधे पर घर को चलाने जिम्मेदारी ने यह करने पर मजबूर भी कर दीया अपने जीवेका और घर का खर्च को चलाने के लिये इनके जैसा और भी कई यूवक ऐसे है जो इस खेल से जुड़ गए और इस जानलेवा और दिल को दहलादेने वाले खेल को करते समय इन खेलादेओ के चेहरे पर कही भी कोइ सीकन नहीं दीखती है बेरोजगारी आदमी से क्या नहीं करवाती है पर इंसान के हौसले बुलंद हो तो वो कुछ भी कर सकता है इसी हौसले के पुजारी है ये मौत के खीलाडी




मिनरल वाटर


बात जब पानी की हो तो उससे जुड़ता है पूरा का पूरा जीवन। और जब बात मिनरल वाटर की हो तो फिर शुरू होती है स्वस्थ्य जीवन की कहानी। लेकिन आज ई का हो रहा है। जिसे हम मिनरल वाटर समझकर खरीदते हैं, दरअसल उ है तो डीªंकिंग वाटर।
पानी से भरा बिसलेरी का बोतल। जिसे आम जनता बड़े प्यार से मिनरल वाटर समझके खरीदती है। लेकिन रियल में तो है एक डिंªकिंग वाटर। जीे हां साधारण पानी को मिनरल वाटर बनाने में काफी खर्च होता है। क्योंके कि मिनरल वाटर में सोडियम, पोटैशियम, सल्फेट, नाइटेªट, मैग्नेशियम, कैल्सियम और भी कई तत्व जो होते हैं। जो मनुष्य को स्वस्थ्य रखता है।
पब्लिक तो बस पब्लिक होती है भईया। एक बार किसी ने कह दिया कि बोतल में भरी पानी नहीं बल्कि ये मिनरल वाटर है। फिर क्या, जनाब इसे खरीद जाए अपनी प्यास बुझाने के लिए। चाहें ई बोतल पर एडे काहें नहीं छपी हो, उसे पढ़ना तो मुनासिबे नहीं समझते हैं। अब इनको का मालूम कि मिनरल वाटर में आखिर कौन सा तत्व होता है। इन्हें तो बस अपनी प्यास बुझाने को पड़ी है। ई केतना फायदेमंद है इससे इनको का, ये तो डिंªकिंगे वाटर को मिनरल वाटर समझके गटगट पी रहे हैं।
अब भला आपहीं बताईये इसमें पब्लिक का क्या दोष है। उसको तो बस ऐतने मालूम है कि ये मिनरल वाटर है, इसे प्यास लगने पर पीया जाता है। लेकिन यहां तो मिनरल वाटर बड़ी मुश्किल से मिलता है। क्योंकि कि बिहार में मिनरल वाटर बनाने की कौनों व्यवस्थे नहीं है। और जब वैज्ञानिक रूप से प्रुभड मिनरल वाटर कहीं मिलता हीं नहीं हो तो कोई क्या करे?
मिनलर वाटर की बात तो दूर ड्रिंकिंग वाटरे मिल जाए तो बहुते है। अगर वैज्ञानिक तौर पर देखा जाए तो पीने के पानी की जरूरत में मिनरल वाटर की हिस्सेदार नगण्य है।

लालू का हरफौली गीत
( लालू का नीतीष को बारिस के लिए गाने की सलाह)
अदरा नक्षतर के आने के बाद भी बादल दूर दूर तक नजर नहीं आ रहे तो सूखे की चिंता कुछ ज्यादा ही सताने लगी है। ऐसे में कहीं मेढक- मेढकी की शादी करायी जा रही है तो कहीं यज्ञ कराये जा रहे हैं। इतना हीें नहीं अब तो इंद्र देवता केा मनाने के लिये गीत गाने की भी बात हो रही है।
पुराने जमाने में गीत और संगीत में भी इतना असर होता था कि वे जादू की तरह काम करते थे। जैसे बारिश न हो रही हो तो मेघ को बुलाने के राग मेघ मल्हार गाया जाता था। पूर्व रेलमंत्री लालू यादव ने कुछ इसी अंदाज में जब हरफौली गीत गाया और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को भी ये गीत गाने की सलाह दे डाली तो हरफौली गीत अचानक सुर्खियों में आ गया। लालू प्रसाद ने बताया कि पुराने जमाने में बारिश को बुलाने के लिए यह गीत गाया जाता था।
अब जब बारिश की अमृत बूंदों का इंतजार लंबा खिंचने लगा है और धरती का हर कोना प्यास से तड़प उठा है तो कोई न कोई जतन करने की आवश्यकता आन पड़ी है। ऐसे में लालू की सलाह मानकर अगर नीतीश हरफौली गीत गायें तेा कोई बुरा भी तो नहीं। ये अलग बात है कि नीतीश कहीं ये न सोच रहे हेां कि अगर वे हरफौली गीत गाये और सचमुच बारिश हो गयी तो कहंी लालू केा राजनीतिक लाभ न मिल जाये। लेकिन नीतीश जी हम तो यही कहेंगे आप तो जनता के सच्चे सेवक हैें और अगर हरफौली गीत गाने से ही पानी का धार आसमान से टपक पड़ता है तो आपको देर नहीं करनी चाहिये।

बारिस के लिए गया में यज्ञ और कलष यात्रा

गया में इन दिनों प्रचंड गर्मी पड़ रही है....चारो ओर हाहाकार मचा हुआ है.....सूर्य की तपती गर्मी से लोगों का जीना मुहाल हो गया है...पीने के पानी के लिए कहीं लोग तड़प रहे हैं, तो कहीं पानी के बिना जमीन का हलक भी सुख रहा है....ऐसे में अब लोगों को उपरवाले का हीं सहारा है....पानी के लिए गया के लोग हवन और यज्ञ करने में लगे हुए हैं......चिलचिलाती धूप में जो घर से कभी बाहर नहीं निकलती हैं। वहां गया के रसूलपुर की औरत और लडकियां सड़कों पर इंद्र देवता को मनाने के लिए कलश यात्रा लेकर निकल पड़ी हैं। इनको इसका तनिक भी मलाल नहीं है कि इनके पांव में छाले भी पड़े हैं। इन्हें तो बस बारिस हो जाए इसकी पड़ी है। सड़कों पर गाजे बाजे हाथी-घोड़ों के साथ निकला कारवां में चल रहे सभी लोगों को पूरा विश्वास है कि भगवान इन्द्र इनकी जरूर सुनेंगे। गया में इन्द्र भगवान का पारा 44.45 डिग्री तक पहुंच गया है.....गर्मी के चलते लोग घर से नहीं निकल रहे हैं.....वैसे में इंद्र भगवान को रिझाने के लिए गया के धरम सभा भवन में यज्ञ किया जा रहा है। एक अटल विश्वास के साथ यज्ञ में बहुत लोग जुटे हैं। कहते हैं जब इंसान खुद से हार जाता है तो उसे भगवान का सहारा हीं नजर आता है। लोग गर्मी और पानी के बिना इतना बेहाल है कि इंद्र भगवान को मनाने के लिए जो समझ में आता है, उपाय करने से बाज नहीं आ रहे हैं।

ट्रैफिक कंट्रोल

एक तो चिलचिलाती धूप, उपर से टैªफिक जाम। अगर बड़े षहरों की बात करें तो ट्रैफिक जाम का होना जैसे आम बात हो गई है। जाम लगने से आम लोगों का जीवन जहां बेहाल हो गया है। वहीं टैªफिक विभाग डयूटी बजाकर अपनी पीठ खूदे थपथपाती है।
टैªफिक की समस्या से कोई अछूता नहीं है। लोग घंटो टैªफिक जाम में फंसे रहते हैं। जिसके चलते बेचारे अपनी मंजिल पर समय पर नहीं पहुंच पाते हैंे। टैªफिक जाम होने का एक और कारण है नो पार्किंग जोन में गाड़ियों का पार्किंग होना। एक तो कनजस्टेड सड़के उपर से लोग कहीं भी गाड़ियां पार्क कर देते हैं। ये गलती केवल आम आदमी ही नहीं करते, बल्कि कई बड़े अधिकारी भी इस गलती करने से नहीं कतराते हैं।

Friday, June 26, 2009



मेले में अवैध रूप से जानवरों की बिक्री


रांची के जगरनाथपुर इलाके में चलने वाले मेले में इनदिनों अवैध रूप से जानवरों की बिक्री हो रही है .दरअसल छ दिनों तक चलने वाले इस मेले में दूर -दराज से ग्रामीण जानवरों को लेकर आते है और बेचते है . गौर तलब है की प्रशासन द्वारा किसी भी जंगली जानवरों की बिक्री पर पाबन्दी लगी हुई है फिर भी प्रशासन के नाक के निचे धड्ले से इन जानवरों की बिक्री हो रही है साल भर में एक बार लगने वाले भगवान जगरनाथ की पूजा में लगने वाले मेले का .जहाँ रांची के आस -पास के गावों से लोग इस मेले को देखने आते है .जाहिर है जब मेला इतना विशाल हो तो इसमें व्यपार तो होगा ही .इसी बात का फायदा जानवरों की अविध तस्करी करने वाले उठाते है और जंगलो से पकड़कर छोटे -छोटे जानवरों को इस मेले में बेच देते है .हलाकि इनका कहना है ये हामार पुश्तैनी व्यापार है और हमारे पूर्वज भी जानवरों को बेचते है
वैसे मेले की हालत वो है की न ही यहाँ पीने के लिये पानी और न ही चिकित्सा सुबिधा ही है इससे यहाँ के लोगो में खाफी रोष है राज्य में रास्त्रपती शासन है लेकीन यहाँ की हालत ऐसी है की जनता को सोवेधाओ के नाम पर कुछ भी नहीं है


रांची में शिक्षक बने कलाम


पूर्व राष्ट्रपति डॉ. ऐपीजे अब्दुल कलाम का बच्चो से लगाव जग जाहिर है , यही वजह है की कलाम जब रांची के स्कूल में एक कार्यक्रम के दौरान पहुचे तो वे खुद को रोक न सके और लगभग 1 घंटे तक बच्चो की क्लास ली .गौरतलब है की डॉ. कलाम दो दिनों की रांची प्रवास में है .रांची में आज डॉ .कलाम आज एक शिक्षक की तरह नज़र आये इस दौरान डॉ. कलाम ने बच्चो को नैतिक शिक्षा से लेकर मिशाइल तकनीक के बारे में बताया. डॉ. कलाम ने अपनी इस क्लास में बच्चो को कई पाठ पढाये, और सारे बच्चो से देश के विकास में हाथ बटाने को कहा.जाहिर तौर पर देश जिस आतंकवाद से जूझ रहा है ऐसे में डॉ. कलाम का चिंतित होना भी लाज़मी है ,इसी वजह से आज जब बच्चो ने आतंकवाद से निपटने के लिए सुझाव मांगे तो डॉ. कलम ने बुनयादी सुधार के साथ साथ व्यस्था में सुधार के सुझाव दिए .डॉ. कलाम अपने रांची दौरे में hec यानि हैवी इन्जिनिरयिंग कारपोरेशन भी गए ,जहा उन्होंने hec में चल रहे मून मिशन जैसे प्रोजेक्ट के तहत बनाये जा रहे उपकरणों का जायजा भी लिया .


हरमू नदी भू माफियाओ ने बेच डाला


कभी रांची के शान कहे जाने वाले हरमू नदी के उदगम स्थल को भू माफियाओ ने भरकर बेच डाला जब स्थानिये लोगो की नजर इस पर गया तो इसका बिरोध किया अब इसके बिरोध में आज रांची में हरमू नदी बचाओ संकल्प सभा का आयोजन हरमू मुक्ति धाम में किया गया .हरमू नदी के किनारे भू माफियाओ ने अब्ना कब्जा सा बना दिया है .और इसी से हरमू नदी को बचने के लिए लोगो ने ये अभियान छेदा है /..
यहाँ तक की जमीं दलालों ने पहाडो को भी बेच दिया है .लोग पहाड़ को तोड़ कर भी घर बना रहे है .लोगो जब मालूम हुआ की हरमू नदी का उद्गम स्थल को भू माफिया भर रहे है .तब कुछ लोगो ने इसका विरोध शुरू किया .धीरे धीरे इसमें राजनितिक दल भी अपना पावं पसार रहे है
गौरतलब है की राजधानी में दिन प्रतिदिन भुमफ़िआओ का जाल फैलता जा रहा है ,यहाँ पहले सौ नदियाँ हुआ करती थी .जमीं दलालों ने साडी नदियों को बेच दिया .जो भी नदि९ बची है उसपे भू माफियाओ की नजर गाड़ी हुई है

Thursday, June 25, 2009




39 की करिश्मा कपूर



-जहां आज हम और आप मिलकर मनाएंगे करिश्मा कपूर का बर्थ-डे। जी हां वही करिश्मा कपूर जिन्होंने इंडस्ट्रीज को कई हिट फिल्में दी हैं। बावजूद इसके पहचान के लिए बेबो का सहारा लेना पड़ा।
आए हो मेरी जिन्दगी में तुम बहार बनकर............फिल्म इंडस्ट्रीज में कभी बहार बनकर आई दिलकश अदाओं से लोगों के दिलों पर राज करने वाली लोलो यानि करिश्मा कपूर आज 39 साल की हो गईं। बचपन में लोलो बहुत शांत स्वभाव की रही है। लेकिन फिल्मों इनकी मासूमियत भरी अदाकारी और जलवों की वजह से ये आज भी लोगों की फेवरेट बनी हुई हैं। वैसे कपूर खानदान के लिए फिल्म कोई नई बात नहीं , काहें कि इनको तो कला बिरासते में मिली थी। फूलों सा चेहरा तेरा, और कलियों सी मुस्कान वाली ये अदाकारा ने अपने क्ेरियर की शुरूआत प्रेम पुजारी फिल्म से की थी। जहां वो बेहद शोख , चंचल अदाओं के साथ पर्दे पर दिखीं। पर ये तो बस इनका आगाज था। उसके बाद तो जैसे इनकी हिट फिल्मों की झड़ी सी लग गई। इनकी फेमस फिल्मों में जीगर, अनाड़ी, राजा बाबू, कुली नं.-1, साजन चले ससुराल दिल तो पागल है,जुबैदा और राजा हिन्दुस्तानी फिल्मों ने तो फिल्म इंडस्ट्रीज में इनकी अदा का लोहा मनवा दिया।
अपनी बेहतरीन अदाकारी और जलवों की वजह से अभिनय के लंबे सफर तय करने वाली करिश्मा के लिए वक्त के साथ मानों सब कुछ बदलता गया। और 25 सितंबर 2003 को उद्योगपति संजय कपूर के साथ लोलो ने शादी कर, अपने फिल्मी ग्राफ पर विराम लगा हो गई अपने प्रशंसकों से दूर । और उनके दीवाने यही गुनगुनाते रह गए कि......... ले गई ले गई दिल ले गई..........
हर कलाकार यही चाहता है कि उसे ताउम्र याद रखें इसी बाबत शायद अपनी लोलो ने भी अपने दूसरे पारी की शुरूआत स्टेज शो और रियल्टी शो के माध्यम से रीइंट्री मार रही हैं। अब देखना ई है लंबे अंतराल के बाद इनकी अदाएं और शोखियां लोगों और निर्माता, निर्देशकों को कितना लुभाती है ई तो सामने हीं है। लेकिन इस बात का उनको जरूर मलाल होगा कि आज की तारिख में उनका बर्थ-डे बहुत कम ही लोगों को याद है। बहरहाल हम तो इहे कहेंगे कि इतने दिनों तक पर्दे से दूरी के बादो मीडिया से नजदीकियां बनाए रखती तो शायद कुछ फायदा होईए जाता। फिल्में मिलती न मिलती, लेकिन शुभकामनाओं का तांता जरूरे लग जाता।
---------निवेदिता झा

Wednesday, June 24, 2009



माओवादियों का दहशत

माओवादियों का दहशत अरवल जिला के इमामगंज बाजार में भी देखने को मिला। यहां माओवादी ने रात को पर्चा चिपका दिया। इस पर्चे ने हंगामा मचा रखा है।
लोग अपने-अपने कारोबार बंद दिये हैं। दुकानदार दुकान खोलने से डर रहे हैं।
ये वही पर्चा है। इसी पर्चे को बीती रात माओवादी ने जगह-जगह चिपका रखा है। जबसे लोगोे ने इस पर्चे को देखा है लोग अपने घर से भी निकलने से डर रहे हैं। लोगों ने अपना कारोबार बंद कर दिया है। कोई भी दुकानदार दुकान नहीे खोल रहे हैं। सभी गाड़ी-घोड़ा बंद है। लोगों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।सबसे ज्यादा तो महिलाओं और बच्चों को परेशानी उठानी पड़ रही हैं
हलांकि इस बंद पर वहां के असिसटेंट सब इंस्पेक्टर का मानना है कि ये कोई माओवादी की घटना नहीं है। ये किसी असामाजिक तत्वों ने किया है। उन्होंने तो बंद से भी साफ इंकार कर दिया है। एक तरफ तो प्रशासन इसे हल्के में ले रहे हैं। जबकि दूसरी तरफ लोगों में दहशत का माहौल है। लोगों में ये डर व्याप्त है कि हो न हो कोई न कोई अनहोनी घटने वाली हैं।अब ये तो आने वाला समय बताएगा कि अगर माओवादी का हमला हो जाता है तो प्रशासन कितनी तैयार है।

मौत का इंतजार ......

सरकारी दावों के बाद भी सरकारी अस्पतालों में व्यवस्था के नाम पर कोई बड़ा परिवर्तन नहीं हुआ है।
राज्य का सबसे बड़ा सरकारी अस्पताल पी एम सी एच । सुशासन के सरकारी दावे को सुन कर लोंगो को लगा कि चलों व्यवस्था में सुधार हुआ है , हम भी यहां आकर भला- चंगा हो सकते हैं। हमें भी मिल सकती है नई जिन्दगी लेकिन यहां आने के बाद उन्हें नहीं दिखती कोई सुशासन और अंत में भगवान को प्यारे हो जाते हैं उनके मरीज।
आए दिन सरकार दावा करती रहती है कि यहां मरीज को दवा , दुध , केला और ब्रेड का नाश्ता मुफ्त दिया जाता है। भले ही कुछ लोंगो को इसका लाभ भी मिला हो लेकिन ज्यादा लोग इससे वंचित ही रह जाते हैं । लुट-खसोट की पुरानी प्रवृति में आज भी कोई बड़ा परिवर्तन नहीं हो पाया है। मृत शरीर के लिए यहां गेट पर बांस-बल्ली और कफन तक मंहगे बेचे जाते हैं।
स्वास्थ्य सुविधा के नाम पर सरकारी बयानबाजी और भले जो भी बताते हो लेकिन जमीनी सच्चाई इससे अलग है। भगवान भरोसे मरीज और बेहाल परिजन को शायद अब कोई फरिश्ता ही बचा पाये।
सन्नाटा पसरा रहा

नक्सलियों द्वारा दुसरे दिन भी झारखण्ड में बंद का व्यापक असर रहा .लम्बी दुरी की गाडियां नहीं चली और नॅशनल हाइवे में भी सन्नाटा पसरा रहा .इस दौरान झारखण्ड के कोल माइन्स और दुसरे खनिज माइनसो में भी काम ठप रहे और इस दौरान राज्य सरकार को करोडो के राजस्व का नुकसान उठाना पड़ा
ये नजारा है झारखण्ड के हाइवे का जहाँ कर्फु की तरह ही सन्नाटा पसरा हुआ है लेकिन पिछले दो दिनों से नक्सलियों के झारखण्ड बंद के भय से यहाँ एक्का -दुक्का गाडियां ही देखी गयी .यहाँ के वाहन चालक नक्सलियों के भय से बंदी में गाड़ी चलाना नहीं चाहते, इन्हें नक्सलियों का खौफ इनता है की नक्सलियों द्वारा बंदी के ऐलान के बाद इनकी गाड़ी जहाँ रहती है वहीँ ठहर जाती है .
वैसे इन दो दिनों के बंदी में झारखण्ड को लगभग 600 करोड़ से भी ज्यादा के व्यापार का नुकसान हुआ है .दरअसल आये दिन नक्सलियों द्वारा किये जा रहे बंद से बड़े व्यापारी तो बड़े व्यापारी छोटे व्यपारियों की कमर भी टूट गयी है .गावों से आकर जो व्यापरी शहर में रोजी रोटी कमाते है उनका तो जीना मुहाल हो गया है .
झारखण्ड में सिर्फ इसी साल नक्सलियों मने एक दर्जन से अधिक बंद का काल किया है .दरअसल नक्सली अपनी गतिविधि दिखा कर ये माहोल बनाना चाहते है की किसी भी सरकार या ओर्ग्निजेसशन से अधिक लोगो के बीच उनकी पैठ है और इस राज्य में इनका सामानांतर सरकार चलता है .

अगेन मेट शाहिद एंड करीना


कपूर खानदान की लाडली....यानि अपनी बेबो...इन दिनों बदली-बदली नजर आ रही हैं....क्योंकि एक बार फिर उन्हें याद आ गई है अपने पुराने आशिक और चाॅकलेटी बाॅय शाहिद कपूर की। एंड औल्सो क्या हुआ जब दे मेट और ह ुए थे एक दुसरे पर फिदा। करीना की राहें एक बार फिर शाहिद की राहों से जा मिली है।
पिछले दिनों नवाबी रंग-ढंग अपनाने में व्यस्त रहने वाली करीना ने एक बार फिर बदला अपना मिजाज । और अपने सैफअली खान को छोड़ एक बार फिर लौटीं अपने शर्मीले प्रेमी शाहिद की बांहों में....वैसे आपको बता दें कि छोटे नवाब ने अपनी बेबो के लाइफ में अकाउंट तब खोला जब अमृता राव और विद्या बालन के दिल के आंगन में शाहिद के लिए फूल खिलने लगे। लेकिन कभी शाहिद के साथ अपने प्रेम प्रसंगों का खंडन करने वाली करीना एक बार फिर शाहिद के साथ रीयल और रील लाईफ दोनों में हीं बल्ले-बल्ले करने को तैयार हैं।
छोटे नवाब के साथ कुछ समय पहले तक टशन में घुमती हुई करीना कपूर एक ओर जहां पर्दे पर छोटे नवाब के साथ अपनी अच्छी केमेस्ट्री को प्रुभ किया है....भले हीं आॅडियन्स को ये ज्यादा रास नहीं आया हो...लेकिन छोटे नवाब अपनी लव केमेस्ट्री को प्रुभ करने के लिए काफी कुछ करते दिखे...फिर वो अपने हाथों पर करीना का नाम लिखवाना हो या कुछ और। पर जनाब इससे तो अच्छा होता जनाब कि हो जाते शाकाहारी......दिल भी रहता और दर्द भी न होता। पर अब पछताए होगा क्या जब बेबो ने ले ली यू टर्न।
बहरहाल वजह चाहे र्सिफ छोटे नवाब का मांसाहारी होना हो या कुछ और पर एक ओर जहां शाहिद और करीना फिर से 24/7 आई थिंक आॅफ यू करते दिख रहे हैं....वहीं फिल्म निर्माताओं के दिलों में भी मानों नगाडे़ बज उठे हैं....तो दूसरी ओर इन दोनों के ब्रेक अप से दुखी आॅडियन्स , इनके पैच अप की खबर सुनके मानों कह रहे हों कि हैप्पी डेज यार हियर अगेन।
By-Nivedita Jha

तिरंगा जलाने का आरोप

झारखण्ड के रामगढ़ में आज तिरंगा जलाने के आरोप में एक व्यक्ति को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया . ये पूरा वाक्य हुआ झारखण्ड में इ- गवर्नेंस प्लान के तहत चलने वाले (प्रज्ञा केंद्र) कोमन सर्विस सेंटर के बहार .चस्मदिदो के मुताबिक प्रज्ञा केंद्र संचालक के यहाँ काम करने वाले व्यक्ति ने कचरा साफ़ करने के बाद तिरंगे को भी कचरे में जला डाला .बाद में लोगो ने तिरंगे को आग से बहार निकला और पुलिस को इसकी जानकारी दी . पुलिस फिलहाल प्रज्ञा केंद्र संचालक और उसके स्टाफ से मामले कि पुच ताछ कर रही है .

बिहार मछली उत्पादन में भी आत्मनिर्भर

चावल, सब्जी के बाद अब बिहार मछली उत्पादन में भी आत्मनिर्भर हो रहा है। और इसके लिए सूबे की सरकार ने कई कारगर योजनाएं चला
रखी है। गौरतलब है कि सूबे में मछली का उत्पादन करीब 2.56 लाख मिट्रीक टन है। जबकि बिहार में इसकी मांग 4.56 लाख मिट्रीक टन की है।
खाद्य सामानों में बिहार चावल, सब्जी के बाद मछली उत्पादन में भी आत्मनिर्भर हो रहा है। मत्स्य विभाग के अनुसार सूबे में मछली का कुल उत्पादन और मांग के बीच अन्तर को पाटने के लिए सरकार ने कई योजना भी चलायी है। मसलन-
राज्य में मछली पालन को कृषि का दर्जा, सूबे के करीब 50,000 मछुआरों का सामूहिक जीवन दुर्घटना बीमा योजना को लागू किया जाना, उत्तरी बिहार इसके उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए वृहत योजना लागू की जा रही है, तालाबों का भौतिक सर्वेक्षण कराया जाना, के साथ ही मतस्य स्नातकों को पारा एक्सटेंशन वर्कर के रूप में किसानो तक सेवाएं उपलब्ध कराने की पायलट योजना को 10 जिलों में शुरू भी कर दी गई है।
दरअसल बिहार की मंडियो में लोकल मछलियों के अलावा आंध्र प्रदेश से भी बड़े पैमाने पर मछलियां आती हैं। जानकारों की माने तो रोजाना सूबे की मछली मंडियों में आंध्रा से करीब 2500 से 3000 क्विन्टल मछली की आवक होती है। इतना के बादो सूबे के लोगों की जरूरत पूरी नहीं हो पाती है। गौरतलब है कि इन मछलियों में रोहू, कतला, मांगूर और और पंगास भेरायटी की बिक्री बहुत ज्यादा होती है। उधर सूबे में मछली उत्पादन का ग्राफ गिरने की वजह तालाब का खत्म होना और गंगा नदी पर फरक्का बांध का बनना माना जा रहा है।
सूबे में मछली उत्पादन के कम होने की सबसे बड़ी वजह जितनी मात्रा में मत्स्य स्पाॅन का उपयोग किया जाता है, उसमें मात्र दस परसेंट ही मछली के रूप में बच पाता है। अब ऐसे में राज्य सरकार छोटे किसानों को 60,000 रूपया सूद मुक्त ऋण उपलब्ध कराने की योजना बनाकर इसके लिए करोड़ो रूपये तक खर्च करने की तैयारी कर रही है।

सडक पर लालू

लालू यादव अपने आप में एक कमाल की हस्ति हैं।
उनकी हरेक बात हरेक अंदाज सुर्खियों में रहती है।
आज एक बार फिर लालू ने कुछ ऐसा कर दिया
है कि सहसा एक बार यकीन करना मुश्किल है।
क्या ये वही लालू हैं जिनके पैर कल तक जमीन पर
नहीं टिकते थे? क्या ये वही लालू हैं जिनका हरेक
काम उडनखटोले पर होता था? क्या ये वही लालू
हैं जो कभी अपने आप को बिहार का राजा कहा
करते थे? जी हां ये समय की ही कहनी है कि
कभी चुटकियों में फरमान जारी करने वाला एक
समय का राजा आज खुद रंक बना अपनी मांगों को
लेकर सडकों पर है। दरअसल लालू उस मुद्दे को लेकर आज धडने पर बैठे जिसको
को लेकर कभी उनके भी दामन पर उंगलियां उठती रही थीं। सत्ता पक्ष की माने
तो बिगडति कानून व्यवस्था के मसले पर राजद का यह रूख कुछ शोभनीय नहीं दिख रहा।बहरहाल राजनीति में आरोप प्रत्यारोप का यह दौर तो सहज है।लेकिन राष्ट्रीय जनता दल के इतिहास का यह पहला मौका है जब लालू को अपने कार्यकत्र्ताओं का मनोबल बढाने के लिए सडकों पर आना परा।

भाकपा माओवादियों का खूनी सिलसिला

भाकपा माओवादी ने अपने अब तक के सफर में खून की कई बड़ी होली खेली है। कई बार हैवानियत की हद पार कर दी है। जब सिर के उपर से पानी बहने लगा तो केन्द्र सरकार ने भाकपा माओवादी को करार दिया आतंकी संगठन। इस घोषणा के पहले न तो केन्द्र सरकार और न ही राज्य सरकार ने इस दिशा में कोई ठोस कदम उठाने की जरुरत महसूस की। पिछले एक सप्ताह से लालगढ़ में माओवादियों की कार्रवाई से परेशान केन्द्र सरकार ने इस संगठन पर प्रतिबंध लगाया।
बिहार-झारखंड के भाकपा माओवादी संगठन ने पिछले एक दशक में कई ऐसी घटनाओं को अंजाम दिया जो सिर्फ बिहार और झारखंड को ही नहीं बल्कि पूरे देश को झकझोड़ कर रख दिया। आईए डालते हैं भाकपा माओवादी की पिछले दस वर्षों की उन बड़ी घटनाओं पर जो रही सुर्खियों में ..............
कैसे-कैसे खेले हैं इस आतंकी संगठन ने खूनी खेल आइये डालते हैं एक नजर-
18 मार्च, 1999
-जहानाबाद के सेनारी गांव में माओवादियों द्वारा 35 उच्च जाति के लोगों की हत्या।
18 नवम्बर, 1999
- झारखंड के पलामू जिले में लाटू गांव में 12 लोगों की हत्या।
12 फरवरी, 2000
-झारखंड के पलामू में लैंड माइंस ब्लास्ट में 19 पुलिसकर्मी सहित 22 लोगों की मौत।
5 अक्टूबर, 2000
- लोहरदग्गा के एस पी अजय कुमार की हत्या।
12 नवम्बर, 2000
- हजारीबाग के डिप्टी कमिश्नर के पत्नी की हत्या।
18 दिसम्बर, 2000
मुजफ्फरपुर से पुलिस की छः राईफल और दो कार्बाइन की लूट
14 अप्रेल,2001 - हजारीबाग के बेल्पू गांव में 14 लोगों की हत्या।
21 मई, 2001 - रांची में पुलिस जवानों पर हमला बोल चार राईफल की लूट
24 जून, 2001 - शिवहर जिले के डेकुली पुलिस पीकेट पर हमला बोल कर छः राईफल की लूट
6 सितम्बर, 2001 - लातेहार में माओवादी हमले में दो पुलिस जवान सहित पांच लोगों की मौत
23 सितम्बर, 2001 - हजारीबाग के अबरोज जंगल में माओवादी हमले में 12 सीआरपीएफ जवानों की मौत
31 अक्टूबर, 2001 - धनबाद के तोपचांची के पास 13 पुलिसकर्मियों की हत्या।
इस तरह की कई अन्य बड़ी घटनाओं को अंजाम देते हुए माओवादियों का कारवां बढ़ता चला गया। माओवादियों ने 2005 के नवम्बर माह में जहानाबाद जेल ब्रेक कांड को अंजाम दिया जिसमें अपने संगठन के चीफ अजय कानू सहित जेल में बंद कई नक्सलियों के साथेसाथ 400 कैदियों को छुड़ा ले गए। इस वर्ष फरवरी माह में माओवादियों ने नवादा जिले के महुलीटांड गांव में एक सभा में हमला बोल 11 पुलिसकर्मियों को सदा के लिए नींद में सुला दिया और उनकी राईफलें भी लूट ली। 16 अप्रेल 2009 को माओवादियों ने 7 बीएसएफ के जवानों को उनके वाहन पर हमला बोल हत्या कर दी।
इस संगठन की गतिविधियों केा देखकर तो यही कहा जा सकता है कि इस खूनी संगठन को पहले ही निषाने पर लिया जाना चाहिये था। आखिर अबतक क्यों बरती गई ढिलाई और अगर अब इसके खूनी खेल को रोकने की दिषा में पहल की गई है तो उसमें गंभीरता होनी चाहिये ताकि इस जैसे संगठन फिर पनप न सकें।

Tuesday, June 23, 2009






विधवा का सवाल
हर हुक्म को
पत्थर की लकीर मानना
जिन्दगी में
हर पल
मान-अपमान को
सहना
क्या यही औरत की
धर्म कही जाती है.
आए दिन
माथे पर लाल दमकती
बिंदिया, कुमकुम,
हाथों में
सुन्दर चुड़ियां पहनने वाली
यही औरत !
जब पहनती है,
विधवा का चोला
अपने सारे सुखों को
कैसे,
पल में छोड़ देती है.
अपने बच्चों,परिवार
की खुशी में
अपनी जवानी
और अपने सारे सपनों को
बीती रात की तरह
भूल जाती है.
पहाड़ों सी सहनशील
कल तक की
सबला को अबला बनाकर
पति के मौत का
कारण बता
पल-पल कोसी जाती है.
सोचो !
मेरे सपनों को
बदलते देखो अपनों को
विधवा का नाम देकर
जीवनभर के लिए
हल्के रंगों
या सफेद वस़्त्रों का
जीते जी औरत को
कफन ओढ़ा दिया जाता है.
पति के साथ
साज-श्रृंगार में रहने वाली
पति, न हो !
तो
विधवा का ताज
पहना दी जाती है.
खुशियों में खोई रहकर
सपनों के मंदिर सजाने वाली
ये, क्या ?
समाज, क्यूं नहीं सोचता
हमारे वर्तमान पर,
पति न रहे, तो जीवन भर
विधवा के रूप में
अकेलेपन की सजा
दिन के उजाले में भी
बंद कमरे में आंसू बहाती है.
कल की बेटी
किसी की पत्नी बनी
फिर क्या ?
दुनियां वालों
मैं अबला हूं,
एक सवाल मेरा भी है
गर कल मैं न रही
तो ये
पुरूषों के साथ क्यों नहीं ?
यही सवाल
औरतों के जेहन में उठता होगा
लेकिन, ये क्या
अंधविश्वासी व रूढ़ीवादी
रीति-रिवाजों की आड़ में
मौन रहकर
समाज के ठेकेदारों से
ये ! प्रश्न पुछ न पाती
आखिर क्यों ?
वो औरत इंसान नहीं......?
शायद !
यही औरत के जीवन की
संक्षिप्त कहानी है.
----मुरली मनोहर श्रीवास्तव









Sunday, June 21, 2009


चिलचिलाती धूप, जीना मुहाल

गर्मी परवान पर है। चिलचिलाती धूप ने लोगों का जीना मुहाल कर दिया है। ऐसे में सन स्ट्रोक तथा कम और गंदे पानी की सप्लाई के कारण लोग कई जनजनित बीमारियों के शिकार हो रहे हैं। हालात ये है कि बीमार लोगों की अस्पताल में भीड़ लगी रहती है।
कहते हैं चलती का नाम ही जिन्दगी है। चाहे कितनी भी गर्मी पड़े, आग ही क्यों न बरसे। लेकिन परिवार का पेट पालने की खातिर काम तो करना ही पड़ेगा। ये हैं वेा मेहनतकश जो हमेशा की तरह निकल पड़े हैं दो जून की रोटी की जुगाड़ में। ये अलग बात है कि कभी- कभी ये मेहनत जानलेवा भी साबित होती है। यकीन नहीें होता तो इस मेहनतकश की ही बात सुन लीजिये।
इस गर्मी में इतनी मेहनत कभी- कभी जान का जंजाल बन जाती है। लेकिन इंसान ही एक ऐसा जीव है जो हर समस्या से समझौता कर लेता है।
लेकिन शरीर आखिर कब तक साथ दे। तेजी से भागती जिन्दगी के पहियों पर तब ब्रेक लग जाता है जब ये सूरज की तपिश अस्पताल के बेड पर लाकर पटक देती है। ये देखिये अस्पताल में अपनी बारी का इंतजार कर रहे ये वैसे लोग हैं जिसमें से अधिकतर गर्मी और जलजनित बीमारियों के शिकार हैं। डाॅक्टर भी कुछ ऐसा ही मानते हैं और गर्मी से बचने की सलाह देते हैं।
भीषण गर्मी से बचने के लिये लोग तरह-तरह के उपाय कर रहे हैं। अब तो बस मौसम के बदलने का इंतजार हैं।
बिहार में सुखाड़ के आसार

भीषण गर्मी में पानी की बूंद-बूंद को तरसते लोगों की। कहने को तो इस समस्या के समाधान के लिए हर साल योजनाएं बनती है, करोड़ों खर्च होते हैं। लेकिन जब धरती तपती है और जल स्त्रोत सूखने लगते हैं तो पता चलता है कि सारी योजनाएं धरी रह गइ्र्र हैं। न जाने कहां खर्च हो जाते हैं इतने पैसे। विष्वास नहीं तो देखिए सोन प्रोजेक्ट का हाल।
सरकारी उपेक्षा का शिकार सोन नदी आज अपनी बदहाली पर जार-जार रो रहा है। भोजपुर जिले की सोन नदी में पानी नहीं रहने से पूरा इलाका सूखे की चपेट में आ गया है। ऐसे में सोन प्रोजेक्ट के माध्यम से लाखों रूपए खर्च करने वाली सरकार की चुप्पी रहस्यमय बनी हुई है। नदी में पानी नहीं होने के चलते किसानों की समस्या बढ़ती जा रही है। और हजारों खेतीहर मजदूर दो जून की रोटी के लिए तरस गये हैं।
सरकार के इस अनदेखी से किसान अब भगवान पर भरोसा करना ही ज्यादा बेहतर समझते हैं। पानी नहीं होने से खेतों से धरती का सीना चाक हो गया है। जमीन फट गयी है। अगर भगवान की मेहरबानी नहीं हुई, तो इस इलाकों को अकाल का सामना करना पड़ेगा।
हम आपको बतादें कि इस क्षेत्र को धान का कटोरा के नाम से जाना जाता है। सोन नदी का अस्तित्व खतरे में है और इसका खामियाजा किसानों को भुगतना पड़ रहा है। अब बेचारे किसान सरकार का मुंह देखें या फिर भगवान का, ये तय नहीं कर पा रहे।





एक षाम मधुकर के नाम

पटना का नृत्यकला मंदिर इन दिनों कलाकारों की कला के कद्रदानों का केन्द्र बन चुका है। इसी कड़ी में मषहूर कत्थक कलाकार मधुकर आनंद की याद में एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया।
भारतीय नृत्य कला मंदिर जहां देष- भर से आये कत्थक कलाकारांे की टोली मषहूर कत्थक कलाकार मधुकर आनंद को श्रद्धांजलि देने के लिए जुटी । इस मौके पर आये कलाकारों ने अपने नृत्य से समां बांध दिया।
इस आयोजन के दौरान मधुकर आनंद के पुत्र आर्यव की नृत्य प्रस्तुति ने सब का मन मोह लिया। अपने पिता केा आदर्ष मानने वाले आर्यव का कहना है कि भी अपने पिता की ही तरह कत्थक नृत्य के क्षेत्र में देष- विदेष में नाम कमाना चाहता है।
इस आयेाजन के दौरान मधुकर आनंद के साथ काम कर चुके कई कलाकारों को सम्मानित भी किया गया। इस आयोजन को देखकर यही कहा जा सकता है कि तेज रफ्तार के इस युग में गंभीर कलाआंें को भूलते जा रहे लोगों केा अपनी मिट्टी से जोड़ने की ये अच्छी कोषिष रही।


मानसून में देर भयंकर परिणाम


कहा जाता है कि जल हीं जीवन है। समय से मानसून का न आना एक साथ कई समस्याओं को जन्म देता है। एक तरफ किसान परेशान हैं अपनी फसल को लेकर तो दूसरी तरफ आम जनता की परेशानी है भीषण गर्मी हाय रे गर्मी।
मानसून आने में देरी और तापमान लगातार 40 डिग्री के उपर रहने से बिहार के खेतों में लगी फसल सुखने लगी है। खेतों में भी दरारें पड़ने लगी है। किसानों के हाल बेहाल हैं। धरती पुत्र कहलाने वाले ये लोग मानसून की बेरूखी के चलते गांव से शहर में आकर रिक्शा चलाने लगे हैं। ताकि कुछ पैसों की आमदनी हो जिससे परिवार का भरण-पोषण हो सके।
बारिस में देरी के वजह से आलम यह है कि पशु-पक्षी और जानवर का हाल भी बेहाल है। बारिस के मौसम में जो मोर अपने पंख फैलाकर अपने खुशी का इजहार करते थे। वो भी अपने पंख को समेटे पानी के इंतजार में आसमान निहार रहे हैं। बढते गर्मी से बेहाल भारी-भरकम शरीर वाले गेंडा भी अपने आशियाने को छोड़ पानी में रहना ही बेहतर समझते हैं।
मौसम विज्ञानी की मानें तो अभी कुछ दिन और यही आलम रहेगा। मानसून का समय से नहीं आने के पीछे आइला साइक्लोन का हाथ है। ई देखिए ये है भारत के पूर्वांचल राज्य जिसे सेवेन सिस्टर के नाम से जाना जाता है। यहां तो खुबे बादल है, लेकिन ई है बिहार जहां आसमान बिल्कुल साफ दिखाई दे रहा है। और आने वाले 48 घंटों तक बरसा होने की कौनों संभावना भी नजर नहीं आ रही है।
अगर ऐसे हीं कुछ दिनों तक मानसून नहीं आ पाया, तो पीने के पानी तक को लाले पड़ जाएंगे। जमीनी पानी के जलस्तर तो पहले से ही नीचे हैं, अब और भी नीचे चले जाएंगे। जिसके भयंकर परिणाम हो सकते हैं।

रहस्य बना इंजीनियर की मौत

इंजीनियर योगेन्द्र पांडेय की रहस्यमय मौत पर सवाल उठने लगे हैं। क्या योगेन्द्र पांडेय की हत्या की गई है? क्या इस मामले में कुछ अफसरों की भी मिलीभगत है ? इन सवालों के जवाब के लिए राजद ने इस घटना की न्यायिक जांच कराने की मांग की है।
इंजीनियर योगेन्द्र पांडेय की मौत को लेकर सरकार भी असमंजस में है । उसे अपने ही पोस्टमार्टम रिपोर्ट पर भरोसा नहीं,तभी यह दोबारा कराया गया। आखिर ऐसा क्यों हुआ? पिछले सात दिनों से योगेन्द्र पोडेय क्यों तड़प रहे थे? जिले के बड़े अफसरों की ठेकेदारों से क्या सांठगांठ है? राजद ने योगेन्द्र पांडेय की हत्या की आशंका जतायी है और इस घटना की न्यायिक जांच कराने की मांग की है।
जब एसपी ही शक के घेरे में हो तो भला प्रशासनिक जांच पर कैसे भरोसा किया जा सकता है। मौजूदा एसपी के रहते निष्पक्ष जांच नहीं हो सकती। किस ठेकेदार से योगेन्द्र पांडेय आतंकित थे यह पता लगाया जाना चाहिए। इस बात की भी चर्चा है कि पटना के कुछ लोग दबंग ठेकेदार को संरक्षण देते रहे हैं।
योगेन्द्र पांडेय की मौत का मामला काफी उलझ गया है। न्यायिक जांच से शायद इन उलझी हुई गुत्थियों को सुलझाने में मदद मिले।
मीलो तक का सफर तय करते हैं।

भीषण गर्मी से बेहाल पटनावासियों के लिए पानी की किल्लत एक बड़ी समस्या बनती जा रही है। भूमिगत जलस्तर के नीचे चले जाने से यह समस्या बहुत बढ़ गई है। उधर जल विभाग भी शहर में जरूरत के मुताबिक जल की आपूर्ति नही कर पा रहा है।
हैण्ड पंप पर लगे लोगों की यह भीड़ पानी लेने के लिए खड़े हैं। यह नजारा किसी एक हैण्ड पंप का नहीं है। इन दिनों अधिकतर हैंड पंपों के पास का यही नजारा होता है। घंटों लाइन में खड़े रहने के बाद ही लोगों को थोड़ा सा पानी मिल पाता है। कई बार तो ऐसा होता है कि पानी की समस्या से जुझते ये लोग मीलो दूर तक का सफर भी तय करते हैं। अगर इनकी मानें तो सरकार एक बार हैंडपम्प लगवाने के बाद दुबारा इसकी सुध भी नहीं लेती है।
गौरतलब है कि शहर के करीब 16 लाख की आबादी को इन दिनों रोजाना 7500 लाख गैलन पानी की जरूरत है। मगर आपूर्ति महज 1200 लाख गैलन पानी ही हो पाती है। शहर में करीब 30 से 40 हजार हैंडपंप भी लगाए गए हैं, जिसमें से 15 से 20 परसेंट हैण्डपंप खराब ही रहता है। उधर शहर के महापौर का मानना है कि गर्मी में अक्सर ऐसा ही होता है।
जानकारों की माने तो हर साल गर्मी में भूमिगत जलस्तर भी 5 से 20 फीट और नीचे चला जाता है। जिससे आए दिन लोगों को पानी की किल्लत का सामना करना पड़ता है।
आसमान छुती महंगाई

तमाम अटकलों को सही साबित करते हुए 6 जून को मुद्रास्फिति की दर षून्य से नीचे पहुंच गई। बावजूद इसके रोजमर्रा के चीजों के दाम अभी भी आसमान छू रहे हैं। जिससे आम आदमी को मंहगाई से राहत मिलती नजर नहीं आ रही है। सरकारी आंकड़ों में भले ही महंगाई दर षून्य के नीचे पहुंच गई हो, लेकिन लोग अभी भी परेषान दिख दे रहे हैं। जरूरियात के खाद्य वस्तुओं की कीमतों में लगातार उछाल जारी है। इसी वजह से दुकानों पर ग्राहकों की भीड़ कम दिखाई पड़ रही है। बाजारों की रौनक जहां खत्म हो गई है, वहीं रोजमर्रा के लिए सामान खरीदने में पसीना छूट रहा है कमर तोड़ महंगाई के चलते लोगों को अपनी जरुरतों में कटौती करनी मजबूरी बन गई है।
मुद्रास्फीति की दर ने गिरावट के मामले में 32 वर्षों का रिकाॅर्ड तोड़ दिया है। लेकिन कोई भी इंसान करे तो क्या ? उसे अपने पेट की आग बुझाने के लिए रोजमर्रा के सामानों को तो खरीदना हीं पड़ेगा। सबसे बड़ी बात तो ये है कि महंगाई घटने की बजाए आसमान ही छुता जा रहा है। इतना के बाद भी आम जनता के लिए सरकार कोई मुकम्मल इंतजाम नहीं कर पा रही है। बहरहाल बात चाहें जो भी हो लेकिन इतना तो तय है कि इस मुद्रास्फिती के गिरने के बाद भी खाद्य पदार्थों की कीमत में कमी न होने से जीना मोहाल हो गया है।

Saturday, June 20, 2009




बढ़ता बुके कल्चर

पटना भी अब बूके कल्चर से अछूता नही हैं। लोगो में बढ़ते रूझान की वजह से बाजार में आज हर भेरायटी के बूके और गुल्दस्ते मिल जाएगे। इसके अलावा षहर में फूलो के दूकानो के अलावा इसके कई षोरुम भी मिल जाएगें। समय के साथ पटनावासी भी काफी फैषनेबूल हो चुके है। और ये फैषन लोग की जीवन षैली बन चुकी हैं। लोगो में अब हर खुषी के मौको पर बुके और गुलदस्ते देने का चलन बढ़ता जा रहा हैं। उधर बाजार में भी हर रेंज के खूबसूरत गुलदस्ते और बूके की बिकरी ग्राफ भी बहुत बढ़ गया हैं। फूल व्यवसायिओं के मुताबिक अब हर मौके पर लोगो ने बूके और गुलदस्ते खरीदना षुरु कर दिया हैं।
बूके और गुलदस्तांे में गुलाब लोगो की पहली पसंद है। मगर अब बाजार में आर्केट और जरबेरा से बने बूके और गुलदस्ते की तरफ लोगो का रुझान बढ़ता जा रहा हैं। हाॅलाकि इन फूलों से बने बुके के लिए गा्रहकों को अपनी जेबें थोड़ी सी ज्यादा ढीली करनी पड़़ रही है। मसलन साधारण गुलाब से बने गुलदस्ते की कीमत जहाॅ पचास रुपये हैं, तो जरवेरा, आरकेट, लिलि और गुलाब मिक्स गुलदस्तें की कीमत पच्चहत्तर रुपये से लोगो के बजट पर निर्भर करता हैं।
गौरतलब हैं कि बूके और गुलदस्तांे के बढ़ते बिकरी की वजह से फूलो की खपत भी काफी बढ़ गयी हैं। फूल व्यवसायीयों की माने तो सन 2005 के पहले ष्षहर में बूके और गुलदस्तांे की जहाॅ सालाना बीस से तीस हजार पीस तो साल 2005 के बाद यह बढ़कर करीब सत्तर हजार पीस तक पहुच चुका हैं। उधर गा्रहकों के बढ़ते रुझान को देखते हुए आने वाले दिनों में इन बुके की ब्रिकी में और इज़ाफा होगा।
सुभाष घई की पेंग गेस्ट

मनोरंजन का सौलिड डोज सुभाष घई की पेंग गेस्ट कें रूप में। एक बार फिर दर्शकों के सामने आ रही है पेइंग गेस्ट। हालाकि पुराने पेइंग गेस्ट में नूतन और देवानंद की जोड़ी और छोड़ दो आंचल जमाना क्या कहेगा आज भी लोगों के दिलों में जिंदा है। ऐसे में सुभाष घई की नई पेइ्रंग गेस्ट लोगों के लिए क्या नया लेकर आई है। जानने के लिए देखिए हमारी खास रिपोर्ट।
पेइंग गेस्ट की स्टोरी लाइन बिल्कुल उसके नाम के तरह हीं है। जहां चार दोस्त यानि श्रेयस तलपड़े, जावेद जाफरी, आशीष चैधरी और हैदर कुमार घर की तलाश में घुमते हैं क्योंकि बैंकाॅक में पेइंग गेस्ट बनना इतना आसान जो नहीं था। फिर क्या था घर की तलाश में पहुंचे ये चारो एक ऐसे घर में पेइंग गेस्ट बनते हैं जहां रहने के लिए उन्हें बदलनी परती है अपनी पहचान।
जी हां इन चारो दोस्तों में से दो को निभाना पड़ता है अपने दो दोस्तों की वाइफ का किरदार। क्योंकि पेइंग बनने के लिए जोड़ियों में होना प्राइम रिक्वायरमेंट जो था। सो बन गए ये कपल्स। कुछ इस तरह कि उनकी अपनी गर्लफ्रेंड से मिलना और उन्हें मैनेज करना उन्हें भारी पड़ने लगा । कुछ ऐसे हीं जैसे भारी पड़ा था जाॅन और अभिषेक को पेइंग गेस्ट बनने के लिए गे बनना।
हालाकि फिल्म में हीरो का लड़की के किरदार में होना कोई नई बात तो नहीं है। क्योंकि हीरों हिरोइन का रूप धरने का इतिहास बहुत पुराना है जहां हीरो अपने इस रूप को बखूब हीं इंजाॅय करते नजर आते हैं लेकिन इससे इंडस्ट्री की हिरोइनों की चिंता जरूर बढ़ गई है। क्योंकि जिन हीरोज को हीरो बनकर फिल्में नहीं मिल पाती वो अब नए फैशन के तहत हिरोइन बनकर भी फिल्में कर सकते हैं।
बहरहाल सुभाष घई के बैनर तले बनी फिल्म पेइंग गेस्ट में घई साहब ने भी बाॅलीवुड की रीत निभाते हुए कुछ आॅफबीट करने की कोशिश की है। या फिर यूं कहें कि वो अपनी पिछली फिल्में यादें और किसना के बूरी तरह पिटने की वजह से ऐसा कर रहे हैं।

पिता एक विष्वास का

पिता......एक विष्वास का नाम है पिता। वैसे कहें तो......पिता आकाष है,वह सुरक्षा कवच है जो अपनी छाती पर तूफान झेलकर संतान की रक्षा करता है। पिता के होते संतान को ज्यादा चिंता नहीं होती। लेकिन जब पिता उम्र के अंतिम पड़ाव पर पहुंचकर बेटे की ओर आषा भरी निगाहों से देखता है और जब बटे की ओर से दुत्कार मिलती है तो उसका दर्द उभरकर चेहरे पर आ जाती है।
राजधानी पटना के मंदीरी इलाके में गत सतर सालों से एक पिता की निगाहें उस बेटे को बार बार खोजती हैं। जिसे जवान करने के लिए इस पिता ने अपनी पुरी जवानी कुर्बान कर दी। हम बात कर रहे हैं ..भगवान मिस्त्री की। भगवान मिस्त्री भागवत भजन करने की उम्र में.......अपना भगवान हथौड़ी और आग की भट्ठी को बना चुके हैं। जब बेटे से सेवा कराने की उम्र हुइ तो बेटे का दिमाग खराब हो गया और भगवान मिस्त्री को मिला सिर्फ दर्द और आग की भट्ठी।
आज भी सुबह से शाम तक भगवान मिस्त्री अपनी किस्मत को हथौड़े से पिटते हैं। इसके बदले में इन्हें दो हरी मिर्च और सुखी रोटी पर पूरा दिन गुजारना पड़ता है।
इतना ही नहीं जो पिता अपने सपने को कुर्बान कर उसे बेटे की उन्नती में लगाता है। उसके सपने यह होते हैं कि बेटा बुढ़ापे की लाठी का सहारा बनेगा। लेकिन ऐसा होता नहीं है।
कुछ साल पहले बी आर चोपड़ा की एक फिल्म आइ थी बागवान जिसमें यह दिखाया गया था जहां उम्र के अंतिम पड़ाव में एक पिता को जब बेटे मदद करने से मना कर देते हैं तो पिता दुबारा जीवन की शुरुआत किताब लिखकर करता है। परदे की यह कहानी हकीकत में भी कुछ ऐसी हीं है।


FATHER'S DAY --21 JUNE


पापा,उड़ना सीखाते हैं


पापा !
एक विश्वास
नील गगन आकाश
अपने लाडलों का
सुरक्षा कवच होते हैं.
सीने पर अपने
तूफान झेलकर
अपनी गोद में
दुलार से
पूरी दुनिया
दिखाते हैं.
कहते!
चिंता नहीं चिंतन
की पाठ
पढ़ाने वाले
हर मुश्किल में
डटकर
दुनिया की भीड़ में
उड़ना सीखाते हैं.
आंखों में भविष्य के
सपने सजाने वाले
पूरा करने की
खातिर
दिन-रात
वक्त की भट्ठी में
खुद को जलाते हैं.
पर वो बात नहीं
आज पापा!
उम्र की ढ़लान पर हैं.
कल तक
राह दिखाने वाले
अपनों की ओर
उम्मीद और
कातर निगाहों से
टकटकी लगाए
बच्चों की खुशी में
अपने बचे दिन
तील-तील कर
काट लेते हैं.
कल तक अपनों पर
सब कुछ
कुर्बान करने वाले
पापा !
बीते कल को भूल गए
आंखें में
खुशियों की जगह
अश्कों की कहानी
रच जाते हैं.
पर !
ये क्या
बुढ़ापे की लाठी
जिसे सहारा बनाया
वो आज
इनके इसी हालात पर
जीने-मरने को
छोड़ जाते हैं.
ठहरो, सोचो !
कल तू भी
पापा बनोगे
कहीं ऐसा मत करो कि
आने वाले वक्त
तुम्हें भी
इसी चक्की में
न पीस डाले.

--मुरली मनोहर श्रीवास्तव
9430623520 / 9234929710

Friday, June 19, 2009

jpse के खिलाफ आदिवासी मंच ने मोर्चा खोल दिया

झारखण्ड में jpse यानि झारखण्ड लोक सेवा आयोग के खिलाफ आदिवासी मूलवासी जनाधिकार मंच ने मोर्चा खोल दिया है .जनाधिकार मंच ने ये आरोप लगाया की राज्य में किसी भी तरह की नियुक्ति में बड़ी धांधली हो रही है और पैसे लेकर नौकरिया दी जा रही है . उनकी ये मांग है की सरकार आयोग के आरोपित सदस्यों की बर्खास्तगी और नियुक्ति घोटले की सीबीआई जाँच करवाई जाये .अपनी इन्ही मांगो को लेकर आज मंच ने राजभवन के सामने धरना दिया .जनाधिकार मंच ने इस मामले में जल्द करवाई न होने पर आन्दोलन तेज करने की धमकी भी दी .
रांची में हत्या और लुट में ब्रिधि

झारखण्ड की राजधानी रांची में पिछले दिनों बढे अपराध की घटनाओ के बिरोध में आज बीजेपी ने राजभवन के सामने बिरोध प्रदर्शन किया .बीजेपी ने शहर में बढ़ी अपराधिक घटनाओ के लिए प्रशासन को आड़े हाथो लिया .बीजेपी ने आरोप लगाया है की राष्ट्रपति शासन में राज्यपाल हर तरह से विफल रहे है . गौरतलब है की पिछले दस दिनों दे रांची में हत्या और लुट के मामलो में बेतहासा ब्रिधि हुई है .
अनोखा नमूना

बिहार विद्यालय परीक्षा समिति के अधिकारियों ने लापरवाही का एक अनोखा नमूना पेश किया है,जिसे देखने और सुनने के बाद आपकी आखें खुली की खुली रह जाएंगी, कौंसिल ने न सिर्फ एक लड़के के सपनों को तोड़ा है,बल्कि उसे उस हाल में लाकर खड़ा कर दिया है,जहां से सिर्फ उसे अंधेरा ही दिख रहा है....
आईआईटी..छात्र का सपना

......आईआईटी...जहां पहुंचना हर छात्र का सपना होता है,और कड़ी मेहनत,लगन की बदौलत ही इस परीक्षा को पास किया जा सकता है और इसी मेहनत की बदौलत वसीम ने 2009 आईआईटी परीक्षा पास की लेकिन उसे क्या पता था कि उसके सपने को नजर लग जाएगी वो भी इंटर कौंसिल
की,जी हां वसीम ने 2008 में इंटर परीक्षा में कम अंक मिलने की शिकायत करते हुए कौसिंल से काॅपी की फिर से जांच करने की मांग की थी लेकिन एक साल बीत जाने के बावजूद उसका परिणाम नहीं आया है जिसकी वजह से उसका नामांकन आईआईटी में नही हो सकता...
वही जब हमने इस मामले को माध्यमिक बोर्ड सचिव के सामने रखा तो उन्होने तुरंत जांच के आदेश के साथ ही कार्यवाही की बात कही....
देश के पूर्व राष्ट्रपति और महान वैज्ञानिक एपीजे अब्दुल कलाम ने कहा था सपने देखो क्यांेकि सपने सच होते हंै,लेकिन जब सपने पर किसी की बुरी नजर पड़ जाए तो उसके पूरे होने पर ग्रहण लग जाते हैं....
शाइनी हुए बेशाइन

कहते हैं सितारा वो होता है जो हमेशा न र्सिफ अपने बल्कि दुसरों के लिए चमकते रहे। आज बात एक ऐसे हीं सितारे कि जो चमका तो था हजारों ख्वाहिशों के साथ पर जल्द हीं अपनी हरकतों की वजह से अपनी रील लाइफ गैंगस्टर में तब्दील हो गया।
विद्या का वो मंदिर जहां जाने कितने बच्चे पढ़ने के साथ-साथ,रूल्स, रेग्युलेशन्स, सोसल वैल्यूज और मोरल की बातें सिखते है जो जीवन के हरेक मोड़ पर उनका साथ देती हैं। कभी इस स्कूल के इन बच्चों में शामिल हुआ करते थे अपने गैंगस्टर फेम शाइनी अहुजा । जिनके हीरो बनने से इस स्कूल के छात्र और शिक्षक दोनों हीं अपने आप को गौरवांवित महसूस करते थे।
ये लोग इनकी फिल्में खूब चाव से देखा करते थे। ये सारी चीजें इनके सितारे का बुलंदी पर होने का दावा करते थे । लेकिन शाइनी ने विनाश काल विपरीत बुद्धी। कुछ ऐसी हीं बुद्धी का परिचय देते हुए शाइनी खुद अपने सितारे को बुलंदी से गरदिश पर ले आए।जब उनका उनकी नौकरानी के साथ बलात्कार का मामला सामने आया और एसकी पुष्टि भी हुई। इस मामले में शाइनी को 2 जुलाई तक पुलिस हिरासत में रखा जा रहा है। इस शर्मनाक हर्कत ने एक रील लाइफ विलेन को रीयल लाइफ विलेन बना दिया है। आप खुद हीं देखिए इनकी इस हर्कत से कल तक इनकी करक्की से खुश होने वाले किस कदर सदमें में है
लेकिन कल तक लोगों के चहेते माने जाने वाले शाइनी ने मानो अपने हीं पैरों पर कुल्हाड़ी मार ली है। इस घटना से पहले भी इनके पास फिल्मों की कोई झड़ी तो नहीं लगी होती थी , पर इनके इस करतूत से जहां लोगों में इनके प्रति आक्रोश है हीं । साथ-साथ इनके पर्सनल और प्रोफेशनल लाइफ दोनों हीं होने के आसार नजर आ रहे हैं। ऐसे में इनका करियर को रफ्तार पकड़ने से पहले हीं ब्रेक लगने के कयास लगाए जा रहे हैं।
भोज से बदले इमेज

आम तौर पर अपराध और राजनीतिक बयानों केा लेकर सुर्खियों
में रहने वाला बिहार इन दिनों भोज को लेकर सुर्खियों में है।
राजनीतिक दलों द्वारा इन दिनों भोज बनाम भोज की जंग
छिडी है।इसमें सबसे कमाल की बात ये है कि यह भोज
किसी की इमेज बदलने वाला भोज माना जा रहा है।
आपने क्रिकेट में भारत बनाम आस्टेªलिया सुना होगा।
फुटबाल में ब्राजील बनाम फ्रांस सुना होगा। लेकिन
भोेज बनाम भोज सुनकर आप को थोडा आश्चर्य
जरुर होगा।जी हां लेकिन ये हकीकत है बिहार की राजनीति
में इन दिनों भोज की लडाई चल रही है।वो भी ऐसी वैसी नहीं
इमेज बदलने वाली भोज की लडाई । दरअसल नीतीश के
बाद अब लालू अपने कार्यकत्र्ताओं और नेताओं को भोज
देने जा रहे हैं और यह भोज लालू की अपने कार्यकत्र्ताओं
में इमेज बदलने की कोशिश मानी जा रही है। लेकिन पार्टी
के दिग्गज इसे इमेज नहीं कार्यकत्र्ताओं के मोरल मोटिभेशन की कोशिश मान हैं।
ये तो बात हुई भोज से इमेज बदलने की । लेकिन लालू अपनी और
अपनी पार्टी की इमेज पूरी तरह बदल देना चाहते हैं।चाहे वह
कार्यकत्र्ताओं के बीच का इमेज हो या फिर बिहार विधान मंडल का।
यही कारण है कि हाल ही में हुए विधायकों की बैठक में आने वाले
सत्र में हंगामा किये बगैर जनता के जेनुइन मुद्दों पर सरकार से
बहस की बात पर भी सहमति बन गई है।
लालू प्रसाद का इ हिसकियाह भोज और सोच उनकी और उनकी
पार्टी के इमेज में क्या बदलाव लाएगा इसके लिए तो थोडा इंतजार
तो करना ही पडेगा।


अधिसूचना जारी, राजनीतिक सरगर्मी तेज


निकाय कोटे से भरी जाने वाली विधान परिषद की 24 सीटों के लिए अधिसूचना जारी हो गयी है । बिहार की वर्तमान सरकार की पहल से इस चुनाव के दलीय आधार पर लड़े जाने की संभावना प्रबल हो गयी है। लोकसभा चुनाव के बाद एक बार फिर राजनीतिक सरगर्मी तेज हो गयी है बिहार में। सभी राजनीतिक दलों में सीटों के बंटवारे को लेकर वार्ता का दौर जारी है।
75 सदस्यीय परिषद में 16 जुलाई को निकाय कोटे से भरी जाने वाली परिषद की 24 सीटें खाली हो रही है। इस चुनाव के लिए आयोग द्वारा आज अधिसूचना जारी कर दी गयी है। राज्य निर्वाचन आयोग भी इस चुनाव को लेकर सारी तैयारियां पूरी कर ली है।
निकाय कोटे से भरी जाने वाली परिषद की 24 सीटें अस्सी के दशक से रिक्त थी। अदालत के दबाब पर 2003 में विधान परिषद की इन सीटों के लिए चुनाव हुए। लेकिन ये चुनाव दलीय आधार पर नहीं लड़े गए थे। उस वक्त बिहार में राजद की सरकार थी और सरकार की मंशा नही थी कि चुनाव दलीय आधार पर हों। इस बार बिहार में एनडीए की सरकार है और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की इच्छा है कि चुनाव दलीय आधार पर लड़े जांए।
दलीय आधार पर चुनाव लड़ने की बात आते ही सभी दलों में राजनीतिक सरगर्मी तेज हो गयी है। गठबंधन दलों के बीच वार्ताओं का दौर हो गया है शुरु। राजग गठबंधन में भी कौन कितनी सीटों पर चुनाव लड़ेगा इसके लिए भाजपा और जदयू में वार्ता जारी है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथेसाथ भाजपा नेता भी आश्वस्त हैं कि समझौता सही समय पर हो जाएगा।
सरकार के दलीय आधार पर इस चुनाव को लड़ने की मंशा पर विपक्ष को भी कोई एतराज नहीं है।

रेलवे क्रासिंग

अकसर रेलवे क्रासिंग के दौरान लोगों की जान जाती है। लेकिन लोग हैं कि अपने थोड़े समय को बचाने के चक्कर में अपनी जान गंवा देते हैं थोड़ी सी जल्दीबाजी और लापरवाही लोगों की मौत सबब बन जाती है।हालांकि प्रशासन इसके लिए अकसर अभियान चलाता है ओर लोगों को पकड़ती है। लोग जुर्माना देकर छूट जाते हैं ओर गलती करना जारी रखते हैं।यहां तक कि सुरक्षा की दृष्टिकोण से रेलवे क्रासिंग को पूरी तरह बंद कर दिया जाता है। वहां भी लोग गलती करने से बाज नहीं आते। लापरवाही की हद तो तब ीो जाती है जब सामने से आती ट्रेन को देखकर भी लोग बंद फाटक को पार करते हैं। वेंडरों का कहना है कि अक्सर दुर्घटनाएं होती हैं लेकिन फिर भी लोग ट्रेक पार करने के लिए उपरी पुल का इस्तेमाल नहीं करते।
वहीं आम लोगों की माने तो उनका कहना है कि रेल ट्रेक पार करना खतरनाक तो है लेकिन इससे समय की बचत होती है। अन्य व्यक्ति का कहना है कि ट्रेक पार करने से रोकना तो रेल प्रशासन की जिम्मेवारी है।अगर कोई रोकने वाला रहेगा तभी तो लोग रुकेंगे।
पति ने की पत्नी की हत्या

न्यू पाटलीपुत्रा कालोनी में कल देर रात एक महिला की गला दबाकर हत्या कर दी गई... हत्या करने वाला उस महिला का अपना पति ही है...बताया जाता है कि मनोज दास नामक शख्स की दो बीवियां थी ....घर में आपसी कलह के कारण उसने अपनी पत्नी कंचन देवी की हत्या की है....पेशे से मनोज मोची था और शराब के नशे मे रहता था....आज सुबह कंचन की लाश एक बोरे मे बंद पाया गया....आप को बता दे कि मनोज बख्तीयारपुर , चमारटोली का रहने वाला है....जो न्यू पाटलीपुत्रा कालोनी में किराये के मकान में रहता है....मौके पर पहुंची पुलिस लाश को पोस्मार्टम के लिए भेंज दिया गया है....और पुलिस मामले की तफसीस कर रही है....अभी तक किसी की गिरफतारी नही हो पाई है....
दलालों की सक्रियता

आपका लाड़ला पढ़ने में तेज है तो क्या, उसने परीक्षा में सारे सवालों केा हल कर दिए तो क्या । बिहार विद्यालय परीक्षा समिति उसका रिजल्ट ही पेंडिंग कर देगा। और अब षुरु होगा आपके भागदौड़ और लेन देन का खेल। क्या आपकी बेटी या बेटे ने इंटर की परीक्षा दी है। और उसका रिजल्ट इनकंप्लिट है तो फिर सावधान हो जाइए। आपने पूरी परीक्षा दी है, लेकिन आपके दो विषयों का रिजल्ट नहीं आया है या फिर आपको अब्सेंट दिखा दिया गया है, तो आप आइये बुद्ध मार्ग ,पटना के कौंसिल बिल्डिंग के सामने। और दिनभर रहिए परेषान क्योकि यहां आने वालों का कहना है कि...... दरवाजे पर दलालों की सक्रियता रहती है । जहां कुछ एक्स्ट्रा पैसे लेकर आपका काम करवा देंगे। वरना टहलते रहिए इन बच्चों की तरह जो रिजल्ट प्रकाशन के बाद से अभी तक दौड़ रहे हैं। कौंसिल ने गलतियां भी बच्चों वाली ही की है। किसी को मैथ के माकर््स की जगह बायोलाॅजी का नंबर दे दिया है और किसी को परीक्षा देने की बजाए उस विषय में ही अनुपस्थित दिखा दिया गया है। जिस परीक्षा में वो शामिल हुए थे। कोई पटना सिटी तो कोई राज्य के अन्य जिलों से आकर रोजाना कार्यालय का चक्कर काट रहे हैं लेकिन काम नहीं हो रहा है। इतना ही नहीं कौंसिल के सचिव का भी मानना है कि दलालों की सक्रियता बढ़ी है, लेकिन स्थानीय प्रशासन इसमें मदद नहीं करता।
इंटरमीडिएट छात्रों के भविष्य का एक ऐसा पड़ाव होता है, जहां से कैरियर की सभी संभावनाएं खुल जाती है। लेकिन नए काॅलेजों में नामांकन की जगह छात्र कौंसिल में दलालों के आगे-पीछे घुमते हैं।

Thursday, June 18, 2009

सारे दल अपने ठौर तलाशेंगे

झारखण्ड में राज्यसभा चुनाव को लेकर राज्य का राजनितिक पारा उफान पर है . चुनाव में जीत के लिए पार्टिया हर तरह की जोर आजमाइस कर रही है , यही वजह है कि upa से rjd कि नाराजगी को भापते हुए बीजेपी ने rjd पर भी डोरे डालने शुरू कर दिए है .
झारखण्ड में राज्यसभा कि दो सीटों पर आख गडाये बैठी यहाँ कि राजनितिक पार्टिया चुनाव से पहले वो हर दाव आजमाना चाहती है जो उसे जित का स्वाद चखा सके . यही वजह है कि बीजेपी के प्रदेश अद्यक्ष रघुवर दास झारखण्ड कि बदहाली के लिए कांग्रेस पर तो खुल कर प्रहार करते है लेकिन rjd और jmm को क्लीन चिट दे डालते है . सायद रघुवर को ये पता है कि जीत के लिए जरुरी आकडे फिलहाल उनके पास नहीं है ऐसे में upa से नाराज rjd और jmm के कुछ बिधयाको पला बदला तभी जाकर बात बन सकती है .
राज्यसभा चुनाव को लेकर अगर सबसे जयादा खलबली मची है तो वो है upa कुनबे में .rjd नेता खुद को फिलहाल upa से बाहर बता रहे है जिसके बाद upa कि परेशानी बढ़ गई दिखती है .गौरतलब है कि पिछले दिनों upa कि मीटिंग में rjd के नेता नदारत थे .
झारखण्ड कि राजनितिक पार्टियों में चल रहा कवायद का ये दौर २० जून को होने वाले चुनाव के के लिए है संभव है कि इसके बाद सारे दल अपने ठौर फिर तलाशेंगे
वैट लगने के बाद 20 कड़ोर का राजस्व

झारखण्ड में आलू प्याज और खाद्यान पर से वैट हटाये जाने की मांग को लेकर आज कोंग्रेस अद्यक्ष प्रदीप बालमुचू के नेत्रित्व में झारखण्ड चेंबर ऑफ़ कोमर्स का प्रतिनिधि मंडल राज्यपाल से मिला . चेंबर के लोगो ने अपनी मांगो के समर्थन में वैट से आम जनता पर पड़ने वाले अतिरिक्त बोझ के बारे में राज्यपाल को अवगत कराया . राज्यपाल से मिलने के बाद कांग्रेस अद्यक्ष प्रदीप बालमुचू और चेंबर अद्यक्ष ने ये उम्मीद जताई की राज्यपाल जल्द उनकी मांगो पर फैसला लेंगे . गौरतलब है की राज्य के व्यापारियों ने आलू प्याज जैसी चीजो पर वैट लगाये जाने के विरोध में अनाज और सब्जियों को राज्य के बहार से मंगवाना बंद कर दिया है . जिसकी वजह से बाजार में इनकी कीमते आसमान छू रही है .वैट लगने के बाद 1 रूपये किलो पर बढे .
चेंबर के अनुसार अनाज और आलू प्याज पर वैट लगाने से राज्य सरकार को मात्र 20 कड़ोर रूपये का राजस्व मिलेगा .16 हज़ार किवंटल आटा , 15 हज़ार किवंटल मैदा , 20 से 30 हज़ार किवंटल सूजी , 10 हज़ार किवंटल से अधिक चावल , 25 सो किवंटल से अधिक दाल पहुचता है .
लगभग 50 ट्रक आलू और प्याज मंडियो me पहुचते है
पिकनीक मानाने गए चार यूवक की मौत

पिकनीक मानाने गए सिमडेगा के केला घाट डैम में चार यूवक की डूबने से मौत हो गयी है श्री छात्र से तीन किलोमीटर दूर डैम में 10-12 यूवक पिकनिक मानाने गए थे ,आठ यूवक नहाने के लिये एक नाव लेकर डैम में उतरे सभी 25-30-फिट गहरे पानी में चले गए इसी बीच नाव में अचानक पानी भर गया नाव असंतुलित होकर पलट गयी ,छह यूवक तैर कर डैम से बाहर निकल गए जबकी चार यूवक की डैम में डूबने से मौत हो गयी ,गाँव वालो ने काफी खोज बिन की लेकीन शव का कोइ पता नहीं चला ,फिर प्रसाशन इनके शव को खोजने के लिये धनबाद से गोताखोर को बुलाया जा रहा है ,गोताखोर को आने में लेट होने से ग्रामीण काफी गुस्से में है और इसको लेकर सिमडेगा मुख्या मार्ग को जाम कर दीया है
रईस बाप का बिगड़ैल बेटा

सत्येन्द्र सिंह हत्या मामले में विजय कृष्ण के साथ उनके बेटे चाणक्य का नाम सामने आ रहा है। ऐसा आरोप है कि उसी ने सत्येन्द्र को गोली मारी। चाणक्य पर पहले भी एक हत्या का आरोप लग चुका है।
नाम केतना सुन्दर और काम कैसा। चाणक्या पर लगा यह आरोप पहला नहीं है। इससे पहले भी उस पर मुन्ना सिंह की हत्या का आरोप लग चुका है। लेकिन उस मामले में उंचे रसूख के बल पर लीपापोती कर दी गई। शायद इसी बात ने उसके हौसले को उड़ान दी। दरअसल चाणक्य का चालचलन पहले से संदिग्ध रहा था जिसके कारण उसे स्कूल से निकाल दिया गया था।
चाणक्य के जीवन को देखकर तो ऐसा ही लगता है कि ये भी एक रईस बाप के बिगड़ैल संतान की कहानी है। इस घटना ने एक बार फिर अभिभावकों को ये सोचने के लिये मजबूर कर दिया है कि वे अपने बच्चों को किस तरह का जीवन देना चाहते हैं।
अकेले रह जाऐंगे लालू ?

कभी अपने मजबूत कुनबे की बदौलत राज्य में पन्द्रह वर्षों तक शासन करने
वाले लालू का कुनबा धीरे धीरे बिखडने लगा है। सूबे में सत्ता परिवत्र्तन से
लेकर आज तक लालू के कुनबे का टूटना जारी है।ऐसे में सबके जेहन में एक
ही सवाल उठ रहा है कि क्या अकेले रह जाऐंगे लालू ?
छोटे कार्यकत्र्ता को अगर नेता बनाने की हिम्मत अगर किसी में है तो वो हैं लालू।
फर्श से अर्श तक का सम्मान अगर किसी में दिलाने की छमता है तो
वो हैं लालू। लेकिन कभी अपने कार्यकत्र्ताओं के आयडल रहे लालू
अब अपने ही लोगों की नजरों में जंॅच नहीं रहे। यही कारण है कि एक एक
कर उनके सिपहसालार उन्हें छोड कर जा रहे हैं। मंगलवार को भी राजद के
एक वरिष्ठ नेता ने लालू का दामन छोड नीतीश का दामन थाम लिया।
यह कहानी शुरू होती है लालू के खासम खास रहे रंजन यादव के
पार्टी छोडने के बाद से ।लालू जब चारा घोटाले में जेल गये तो
उन्होंने राबडी देवी को मुख्यमंत्री बना दिया।लालू पर परिवारवाद का
आरोप लगा क्योंकि पहले ही लालू अपने दोनों सालों पर काफी मेहरबान थे।
जो लालू के करीबी थे वे लालू के सालों के रवैये से खुश नहीं थे।
असंतोष धीरे धीरे बढता गया।इसी असंतोष का कारण था कि कई नेता
अपने को अपमानित महसूस करने लगे इसी कडी में रंजन के बाद शिवानंद
ने भी लालू को अलविदा कह नीतीश का दामन थाम लिया और नौबत यहां
तक आ गयी कि जिस साले को लालू ने सर आंखों पे बिठाया उसी ने उन्हें
धोखा दे दिया।
रही सही कसर लोकसभा में निकल गयी जब टिकट बंटवारे को लेकर
लालू की नीतियों के खिलाफ कई नेता मुखर होकर न केवल सामने
आये बल्कि दूसरी पाटिर्यों के टिकट पर चुनाव भी लडा।इनमें महाबली सिंह,
रमा देवी, कैप्टन जय नारायण निषाद, रमईराम, साधू यादव के नाम शामिल हैं।
ये सारे लालू के विश्वस्तों में थे। ऐसा नहीं है कि लालू में आस्था रखने वालों
विश्वस्तों की संख्या खत्म हो गयी है।आज भी कई्र ऐसे नेता हैं जिनके लिए
लालू भगवान का दर्जा रखते हैं। लेकिन वे इस बात से भी इन्कार नहीें करते कि पार्टी के
अंदर सब कुछ ठीक ठाक चल रहा है।
लोकसभा चुनाव में लालू के गठबंधन और आए परिणाम ने लालू की पार्टी के अंदर असंतोष को काफी
बढा दिया है हलांकि सभी इस असंतोष को ढकने की कोशिश में लगे हंै
लेकिन गाहे बगाहे वह जाहिर भी हो रहा है । ऐसे में सवाल यह उठता है
कि असंतोष की इस हवा में क्या लालू अकेले रह जाऐंगे।
क्षेत्रवाद पर प्रतिक्रिया

मुंबई में बिहारी छात्रों पर क्षेत्रवादी टिप्पणी ने राजनीतिक रंग ले लिया है।
राजद सुप्रमो लालू प्रसाद ने मुंबई में बिहारी छात्रों पर क्षेत्रवाद के नाम
पर की गई टिप्पणी पर कडी प्रतिक्रिया जाहिर की है।
बिहारी छात्रों पर क्षेत्रवादी हमले एक बार फिर तेज हो गए हैें।लाॅ की
परीक्षा में मुंबई इन्टरव्यू के लिए गए बिहारी छात्रों को एक बार फिर
आपत्तिजनक सवालों का सामना करना पडा।बिहार से जुडे इन सवालों से नाराज छात्रों
ने इसका खुलकर विरोध भी किया।उधर दिल्ली से पटना लौटे राजद
सुप्रीमो लालू प्रसाद ने बिहारियों पर लगातार हो रही इस तरह
की टिप्पणियों को निंदनीय कहा है।
वहीं राजद सुप्रीमो ने बिहार में चल रही राजनीतिक गतिविधियों
पर भी अपनी प्रतिक्रिया दी। रामविलास पासवान द्वारा नीतीश
कुमार पर लगाए आरोपों को सही ठहराते हुए लालू प्रसाद
ने कहा कि बिहार में विधायकों के खरीद फरोख्त की साजिश
चल रही है।
संसद के विशेष सत्र से लौटे लालू नीतीश कुमार को हरेक
मोर्चे पर घेरने के मूड में दिखे।
बदलेगी निबंधन प्रक्रिया

भूमि विवाद को लेकर अब न तो गोलियां बरसेंगी और न एक ही जमीन कई लोगों को बेची जा सकेगी। जी हां ! सरकार भूमि विवाद को रोकने के लिए निबंधन प्रक्रिया ही बदल रही है। इसके लिए राज्य भूमि सुधार आयोग ने भी महत्वूपर्ण सुझाव दिए हैं। यही नहीं भारत सरकार ने भी नेषनल लैंड रिकार्ड मार्डनाइजेषन प्रोगाम के तहत इस पर काम प्रारंभ कर दिया है। इसके लिए बिहार में इसी माह प्रषिक्षण की योजना है।
एक दिन में ही गाड़ियों के नंबर

नये वाहनों की खरीद पर रजिस्ट्रेषन नंबर के लिए अब परेषानी नहीं होगी। वाहन मालिकों को अब तुरंत अपने रजिस्ट्रेशन नम्बर मिल जायेगा। परिवहन विभाग जल्दी ही आॅनलाइन सेवा षुरू करने जा रहा है। इसके लिए परिवहन विभाग वाहन बेचने वालों को भी आॅन लाइन यह सुविधा देगी।
इस वाहन को देखिए इसे खरीदने वाले बिना नंबर का ही नया गाड़ी लेकर सड़को पर सरपट दौड़ा रहे हैं। लेकिन इन से पूछिए तो एक ही जवाब होता है कि हमें समय पर विभाग नंबर एलाॅट नहीं करता। जिससे इन लोगों को बिना नंबर की गाड़ी ही चलानी पड़ती है।
परिवहन विभाग शुरू करने जा रहा है अब आॅन लाइन सेवा। जिससे वाहन खरीदने वाले ग्राहकों को गाड़ियों पर नंबर के लिए महीनों इंतजार नही करना पड़ेगा। इसके अलावे अप-टू-डेट टैक्सवालों को मिलेगी सुविधा और डीलरों को नंबर दिलाने के लिए बैंक में जमा करेगें राशि। जबकि इंटरनेट से होगी राशि वसूली की जांच। यह सुविधा वैसे डीलरों को वाहन के रजिस्ट्रेशन की दी जाएगी। जिनका टेªड टैक्स जमा हो।
इस प्रक्रिया से जहां वाहन मालिक परेशान होंगे वहीं अपराधियों को इससे बढावा भी मिलने की आशंका बढ़ जाएगी।
छिनेगी कुर्सी

मानव संसाधन विकास विभाग फील्ड में तैनात अपने प्रमुख शिक्षा अधिकारियों की ग्रेडिंग करा रहा है। ग्रडिंग के बाद जो डीएसई-डीईओ नकारा पाये जाएंगे उन्हें फील्ड से हटाया दिया जाएगा।
राज्य सरकार के अहम फैसले से शिक्षा विभाग में एक बार फिर हड़कंप मच गया है। अब तक आराम फरमा रहे अफसरों पर गिरेगी गाज। तीन साल से जमे अधिकारियों का होगा ट्रांसफर, दागी आॅफिसर को नहीं मिलेगी मन मुताबिक पोस्टिंग, विभाग ने तैयार कराया फील्ड अफसरों का रिपोर्ट कार्ड। इस रिपोर्ट कार्ड में हासिल ग्रेड के आधार पर हीं तय होगी अफसरों की कुर्सी।
बिहार शिक्षा संवर्ग के अधिकारियों के तबादले की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है। विधान सभा के 26 जून से शुरू होने वाले सत्र से पहले यह प्रक्रिया पूरी कर ली जाएगी। इस हेरफेर में उप निदेशक, आरडीडीई, डीएसई, डीईओ, एसडीईओ और एरिया अफसर स्तर के अधिकारी होंगे। यह खास तौर पर ध्यान रखा गया है कि दागियों की पोस्टिंग प्रमुख जगहों पर न हो।
कहां गई बापू की कार

कहां गई वो विदेशी फोर्ड लाल रंग की कार जो बापू केा तोहफे में मिला था। मोतिहारी के नामचीन स्वतंत्रता सेनानी देवीलाल साह ने करोड़ों की भूमि के साथ राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को आजादी से पहले भेंट दिया था।
इस खाली पड़ी मोतिहारी की भूमि को देखिए। ये वही भूमि है जिसे बापू को देवीलाल ने दी थी। लेकिन आज यह अतिक्रमणकारियों की चपेट में है। इस जगह पर कांगे्रस पार्टी की जिला कार्यालय प्रजापति आश्रम में बदल गया है। परन्तु इस आश्रम में बापू के सभी सामान है। पर वो विदेशी फोर्ड कार अब नजर नहीं आ रहा है।
इस धरोहर की रक्षा के लिए राष्ट्रपति से लेकर बिहार के राज्यपाल, मुख्यमंत्री को 07 मार्च 2009 को आवेदन दिया गया था। दिए गए आवेदन में यह भी कहा गया है कि राष्ट्रपिता गांधी की मोतिहारी में रखी गई संग्रहालय की वस्तुएं आखिर विदेश कैसे पहुंच गई। और अब तो उसके निलामी तक की बात होने लगी है जो देश के लिए शर्म की बात है।
इसकी खबर लगते ही गृह मंत्रालय ने संस्कृति मंत्रालय के संयुक्त सचिव को पत्र भेजकर आवश्यक कार्रवाई के आदेश दिए हैं। अब देखना ये है कि इस पर कितना अमल हो पाता है।
बंद होगा रेलमंत्री का षिकायत कोषांग

नई रेलमंत्री ममता बनर्जी ने पटना जंक्षन पर स्थित रेलमंत्री षिकायत कोषांग को बंद करने का फैसला किया है। ऐसा बताया जा रहा है कि रेल विभाग ऐसा फिजूलखर्ची रोकने के लिए कर रही है। लेकिन ममता इस बहाने किस पर निषाना साध रही हैं यह सबको मालूम है।
पदभार संभालते ही नई रेलमंत्री ने जो पहला काम किया है वह लालू प्रसाद के किए फैसले को बदलने का रहा है। पिछले दिनों रेलवे ठहराव को लेकर बवाल हुआ और अब षिकायत कोषांग को बंद करने के फैसला इसी की एक कड़ी है। ऐसे माना जा रहा है कि यह फैसला अगले महीने से लागू हो सकता है।
एमआर में के जरिये कई स्थानों पर यात्रियों को षिकायत करने की सुविधा दी गई है। प्लेटफार्म के साथ ही बुकिंग काउंटर और एसएम कक्ष के बाहर भी षिकायत पेटी लगाई गई है। यात्री भी इसे एक बेहतर विकल्प मानते हैं, लेकिन ममता का तर्क अलग ही है।
रेलमंत्री बनते ही ममता ने अब तक जो भी फैसले किए हैं उसके निषाने पर लालू ही रहे हैं, लेकिन रेलमंत्री का ये फैसला क्या गुल खिलाता है यह देखने वाली बात होगी।
हजार साल का समोसा

भूख लगे तो समोसा, मेहमान नवाजी में भी समोसा। यह एक ऐसा जंक फूड हैं, जिसको हर उम्र के लोग पसन्द करते हैं। क्या आप जानते हैं कि इसकी उम्र एक हजार साल की हो चुकी हैं। लेकिन आप इसकी उम्र पर मत जाइये क्योंकि आज भी यह पहले की तरह चुस्त तंदरुस्त बना हुआ है।
’तुम जियो हजारो साल -- साल की उम्र हो पसास हजार साल‘
जी हां समोसे को देख आज यही गाना गुनगुनाने को मन करता है। आप कहेंगे ऐसी क्या बात हो गयी । तो भईया हम आपको बता दें कि समोसे का उम्र हजार साल हो चुकी है। ऐसा माना जाता है कि चटपटे स्वाद वाले समोसे बनाने की षुरुआत दसवीं षताब्दी के दौरान मध्य एषिया में हुई थी। लेकिन चैदहवीं षताब्दी में ई जनाब घूमते फिरते भारत आ पहुचे। बस फिर क्या था, ...भारतीय भी इसके दीवाने हो गये।
साधारण सा दिखने वाले और तिकोने आकार वाले समोसे जी की सूरत पर मत जाइये। काहे कि जनाब की अहमियत ऐसी कि ज्यादातर लोगों की पलेट में नजर आ ही जाते हैं। समय के साथ हर चीज बदलता गयी, नहीं बदला तो ई जनाब का आकार और स्वाद। हम आपको ई भी बता दें कि दुनिया के करीब नब्बे परसेंट देष में इसी आकार का समोसा मिलता है। स्टफ्ड डीप फ्राई समोसे का जादू अब छोटे-बड़े सभी लोगो के सिर चढ़ कर बोल रहा है।
षहर में खुली स्नैक्स की हर दुकान पर ई जनाब हाजिर मिल जाऐंगे। इनकी कीमत भी ऐसी कि सब की जेब की पहुंच में है। एक अनुमान के मुताबिक साधारण तौर पर 2 से 4 रुपये की कीमत वाले इन समोसों की षहर में रोजाना करीब डेढ़ लाख से दो लाख पीस समोसे की बिकरी होती हैं।

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HIMMAT SE KAM LOGE TO ZMANA V SATH DEGA...HO GAYE KAMYAB TO BCHACHA-BCHCHA V NAM LEGA.....MAI EK BAHTE HWA KA JHOKA HU JO BITE PAL YAD DILAUNGA...HMESHA SE CHAHT HAI KI KUCHH NYA KAR GUZRNE KI...MAI DUNIA KI BHID ME KHONA NHI CHAHTA....