Sunday, March 24, 2013

होली से पहले दिल्ली को दहलाने की साजिश नाकाम


दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने बड़ी सफलता हासिल करते हुए होली से पहले एक बड़े आतंकी हमले की साजिश को नाकाम कर दिया है। स्पेशल सेल ने हिजबुल आतंकी की निशानदेही पर प्रतिष्ठित जामा मस्जिद के पास हाजी अराफात गेस्ट हाउस में छापा मारकर एके 47 राइफल समेत भारी मात्रा में विस्फोटक सामान बरामद किया है। छापेमारी में दो कश्मीरी लोग पकड़े गए हैं और उनसे गहन पूछताछ की जा रही है।जामा मस्जिद इलाके में बीती रात चार घंटे तक चली छापेमारी में हथियार समेत विस्फोटक बरामद हुआ है। गेस्ट हाउस को सील कर दिया गया है। दो दिन पूर्व ही गोरखपुर से हिजबुल आतंकी लियाकत अली शाह को गिरफ्तार किया था। उसी की निशानदेही पर दिल्ली में भारी मात्रा में विस्फोटक बरामद हुआ है।लियाकत अली शाह की ट्रेनिंग पाकिस्तान में हुई थी। आतंकियों का लक्ष्य होली से पहले दिल्ली के किसी भीड़ भरे इलाके में विस्फोट कराने का था।सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, एक हिजबुल आतंकी के निशानदेही पर इस छापेमारी को अंजाम दिया गया। जामा मस्जिद इलाके में स्थित गेस्‍ट हाऊस के बारे में आतंकी लियाकत अली शाह ने पुलिस को जानकारी दी थी। आतंकी लियाकत अली शाह को दो दिन पहले गोरखपुर से गिरफ्तार किया गया था।
सूत्रों के अनुसार, गेस्‍ट हाउस से पकड़े गए दोनों संदिग्‍ध आतंकी कश्‍मीरी हैं। ये दोनों पीओके से नेपाल के रास्‍ते दिल्‍ली पहुंचे हैं। बताया जा रहा है कि हमले को लेकर दिल्‍ली पुलिस के पास पहले से अलर्ट था। श्रीनगर में बीते दिनों सीआरपीएफ कैंप पर हुए हमले की तर्ज पर यहां हमले की साजिश रची गई थी। स्‍पेशल सेल अभी मामले की आगे की जांच में जुटी है।हिजबुल मुजाहिदीन के संदिग्ध आतंकवादी को गिरफ्तार करने के साथ ही पुलिस ने दावा किया है कि उसने होली से पहले राजधानी में आतंक फैलाने की साजिश का पर्दाफाश किया है।पुलिस सूत्रों ने बताया कि हिजबुल के संदिग्ध सदस्य लियाकत अली को उस समय गिरफ्तार किया गया, जब वह गोरखपुर से दिल्ली आने के लिए एक ट्रेन में सवार था। अली को गुरुवार को ही अदालत के सामने पेश किया गया, जिसने उसे 15 दिन की पुलिस हिरासत में भेज दिया।सूत्रों ने कहा कि उसने बताया है कि मध्य दिल्ली की एक कालोनी में स्थित एक गेस्ट हाउस में उसके लिए हथियार रखे गए हैं। उसकी सूचना पर उस स्थान पर धावा बोला गया और कुछ हथियार और गोली बारूद बरामद किया गया है।

अक्टूबर में फिर होगा रेल किराये-भाड़े में फेरबदल
रेल मंत्रालय ईधन के दामों में फेरबदल के हिसाब से अक्टूबर में किराये-भाड़े की समीक्षा करेगा। अगर ईधन की कीमतों में वृद्धि हुई तो किराया-भाड़ा बढ़ सकता है। ईधन के दाम घटे तो किराये-भाड़े में कटौती हो सकती है। रेलवे बोर्ड के चेयरमैन वीके मित्तल ने राष्ट्रीय संपादक सम्मेलन के दौरान इसके संकेत दिए।मित्तल ने कहा कि वर्ष 2013-14 के रेल बजट में किरायों को ईधन समायोजन मद [फ्यूल एडजस्टमेंट कंपोनेंट-एफएसी] के हिसाब से बदलते रहने की बात कही गई है। इसके मुताबिक 'अगले छह महीने में हम एफएसी का आकलन करेंगे और उसी के हिसाब से किरायों और मालभाड़ों में बदलाव की रूपरेखा तय करेंगे।' एफएसी की समीक्षा के बाद ही किराये-मालभाड़े में वृद्धि या कटौती पर कोई निर्णय लिया जाएगा। तब तक रेलवे टैरिफ अथॉरिटी का गठन भी हो जाने की संभावना है। इस अथॉरिटी को लेकर विभिन्न मंत्रालयों के बीच चर्चा हो रही है। इसके पूरा होने के बाद अथॉरिटी के गठन के लिए कैबिनेट नोट तैयार होगा। इसे बाद में मंजूरी के लिए कैबिनेट के समक्ष प्रस्तुत किया जाएगा।रेलवे में पहली बार किराये-भाड़े तय करने के लिए रेलवे टैरिफ अथॉरिटी का गठन हो रहा है। इसका काम रेलवे की लागतों के हिसाब से यात्रियों और माल वाहकों के लिए उपयुक्त दरों की सिफारिश करना होगा। इसकी सिफारिशों पर पहले सरकार कैबिनेट के जरिये फैसला करेगी। उसके बाद अनुमोदन के लिए उसे संसद में पेश करेगी। संसद की हरी झंडी के बाद ही अथॉरिटी के प्रस्तावों को लागू किया जा सकेगा। इस तरह किराया-भाड़ा बढ़ाना अब की अपेक्षा मुश्किल होगा। अभी रेल मंत्रालय को बगैर संसद के अनुमोदन के केवल कैबिनेट की मंजूरी के जरिये किराये-भाड़े बढ़ाने का अधिकार है। इस साल जनवरी में रेल बजट से पहले किराये बढ़ाकर वह ऐसा कर भी चुका है।मित्तल ने कहा, 'चूंकि हमने 22 जनवरी को ही किराये बढ़ाए थे, लिहाजा भाड़ों पर तो एफएसी को एक अप्रैल, 2013 से लागू करने का फैसला किया गया है। वहीं, किरायों पर इसे फिलहाल लागू नहीं करने का निर्णय किया गया। इससे होने वाले 800 करोड़ के नुकसान को हम फिलहाल खुद वहन कर रहे हैं। लेकिन अक्टूबर में दोनों पर विचार होगा।'रेलवे की कुल लागत में ईधन पर होने वाला खर्च [एफएसी] 16-17 फीसद है। पिछले वर्ष एक अप्रैल से इस साल जनवरी तक डीजल की कीमत में 39 और बिजली शुल्क दरों में करीब आठ फीसद इजाफा हुआ है।

नीतीश और अधिकार रैली


विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग को लेकर आज दिल्ली में बिहार के सीएम नीतीश कुमार ने रैली की .... रामलीला मैदान में हुई रैली में सबसे बड़ा सवाल ये उभरा कि क्या नीतीश बिहार के बहाने दिल्ली में पीएम की उम्मीदवारी की दस्तक दे रहे हैं.... इस रैली से कई ऐसे संकेत निकल रहे जो देश में भविष्य की राजनीति पर असर डाल सकते हैं. दिल्ली का रामलीला मैदान वैसे तो कई आंदोलनों और रैलियों का गवाह बना है लेकिन इस मैदान पर पहली बार है जब किसी राज्य की सरकार के मुखिया ने राज्य के विकास के नाम पर रैली की.... . खास ये भी है कि इस रैली में उसने एनडीए में अपने सहयोगी और बिहार की सत्ता में साझेदारी बीजेपी को भी शामिल नहीं किया है. दिल्ली में नीतीश की रैली, सिर्फ और सिर्फ जेडीयू की रही और जिसमें सबसे बड़ा चेहरा रहे नीतीश कुमार..... . वैसे 6 फरवरी को दिल्ली के SRCC कॉलेज से गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिल्ली की दौड़ शुरू की थी, मुद्दा बनाया था विकास को. अब SRCC कॉलेज से करीब आठ किलोमीटर दूर रामलीला मैदान में नीतीश की रैली इस बात का ऐलान है कि नीतीश भी दिल्ली की इस दौड़ में शामिल हैं.

इस रैली से नीतीश का दोहरा फायदा उठाते की कोशिश में दिखे........ एक तो वो बिहार में जातिगत फैक्टर से ऊपर उठकर वोटरों को एकजुट करते दिखे........ और दूसरा ये कि इस रैली से बीजेपी को दूर रखकर वो भविष्य का रास्ता भी खुला रखने के संकेत दे गए... जो बीजेपी के लिए एक चेतावनी से कम नहीं है. . नीतीश ये कोशिश करते दिखे कि विकास का पत्ता खेलते हुए वो नए ऐसे राजनैतिक समीकरण की तरफ बढ़े सकें जहां उनका समर्थन करने वालों की एक बड़ी तादाद हो जिसका फायदा वो आने वाले वक्त में उठा सकें.
. नरेंद्र मोदी की दिल्ली में पीएम बनने की संभावना को लेकर नीतीश और जेडीयू की नराजगी किसी से छिपी नहीं है. 17 मार्च को मुंबई में नरेंद्र मोदी भी रैली करना चाहते थे लेकिन खबरों के मुताबिक नीतीश के विरोध की वजह से मोदी की ये रैली रद्द कर दी गई. कहा गया कि बीजेपी फिलहाल नीतीश को नाराज नहीं करना चाहती.

बिहार में कुल 40 लोकसभा सीट हैं जिसमें 2009 चुनाव में जेडीयू और बीजेपी ने मिलकर 32 सीट जीती थीं. इसके बाद हुए विधानसभा चुनाव में भी बीजेपी और जेडीयू ने मिलकर 243 सीटों में से 206 विधानसभा सीट जीती थीं. ऐसे में बीजेपी ये बिल्कुल नहीं चाहेगी कि बिहार का ये विनिंग कॉम्बीनेश टूटे या फिर नीतीश पाला बदलकर यूपीए की तरफ चले जाएं. इस रैली से नीतीश अपनी दिक्कतें से भी ध्यान हटाने की कोशिश में भी दिखे... . कॉन्ट्रैक्ट शिक्षकों पर लाठीचार्ज मामले में नीतीश को विपक्ष पूरी तरह से घेर रहा है. बिहार में कानून व्यवस्था को भी लगातार मुद्दा बनाए जाने की कोशिशें की जा रही हैं. वहीं नीतीश के विरोध में भी लालू यादव, पासवान और उपेंद्र कुशवाहा ने भी नए समीकरणों की तलाश शुरू कर दी है. नीतीश ने रैली के जरिए पूरी कोशिश की कि रामलीला मैदान पर विराट रूप दिखा कर अपने कार्यकर्ताओँ और वोटरों में नई उम्मीद जगा जाएं. नीतीश 

अफीम की खेती



दूर दूर तक फैली हरियाली, किसी भी इंसान के चेहरे पर खुशी ला दे....लेकिन ये हरियाली कईयों की जान लेने के लिए काफी है,,,,दरअसल ये हरियाली है नशे की...यानी अफिम की...बिहार के औरंगाबाद, गया और भगलपुर के कई जिलों में बेरोजगारी और गरीबी से परेशान किसानों ने अफीम की खेती का जरिया चुना है जिससे इन्हें कम रकम में अच्छा मुनाफा होता है....लेकिन ये खेती किसान खुशी से नहीं करते बल्कि जबरन या प्रलोभन देकर कराई जाती है....मौत के इस फसल को नष्ट करने के लिए अभियान भी छिडा़....इस दौरान औरंगाबाद पुलिस ने दस एकड़ में फैले अफीम की खेती को नष्ट भी किया...


पुलिस अफीम की होर ही अवैध खेती पर लगातार छापेमारी कर रही है...लेकिन फिर भी अफीम की अवैध खेती का दायारा बढ़ता जा रहा है...मुद्दा इतना गंभीर हो गया है कि ये मुद्दा बिहार विधानसभा में भी गूंजा...सरकार ने माना कि कई जिलों में चोरी छुपे अफीम की खेती की जा रही है और इसके पीछे दूसरे राज्य के संगठित अपराधी भी काम कर रहे हैं...


किसान मजबूर है, तंगहाली में जिंदगी गुजार रहे है......ऐसे में गरीबी और प्रलोभन उन्हें नशे की खेती के लिए मजबूर कर रही है...मामला गंभीर हैलेकिन इसके साथ ही कई सवाल भी खड़े है...आखिर क्यों अपराधियों की दबिश में किसान आ जा रहे हैं...क्यों इन्हें अफीम की खेती के लिए मजबूर कर दिया जा रहा है....सवाल कई है...लेकिन जवाब के नाम पर लगाम लगाने वाले अभियान के भरोसा और उम्मीद का आश्वासन..

पानी या जहर


गढवा जिले के प्रतापपुर गांव में सालों से फ्लोराईड अपना कहर बरपा रहा है...गांव के 90 फीसदी लोग फ्लोराईड की चपेट में है....दूषित पानी की वजह से इस गांव से अर्थियां तो उठती हैं, पर सालों से इस गांव से शहनाई की गूँज सुनाई नहीं पड़ रही है....इसके बावजूद भी इस तऱफ किसी का ध्यान नहीं है.

जिला मुख्यालय से महज 10 कि0 मी0 दूर, प्रकृति की नाइंसाफी झेलता प्रतापपुर गाँव....वो गाँव जहाँ के पानी में घुला है जहर... फ्लोराईड नाम का जहर...इस जहरीले पानी को पीने से कोई कुपोषित हो रहा है, कोई अपाहिज, तो कोई हो जा रहा है वक्त से पहले बूढा...इस गांव में फ्लोराईड का कहर कुछ ऐसे बरपा कि इस गांव से जनाजे तो निकलते हैं पर न तो यहाँ नई- नवेली बहू आती है और ना उठती है किसी बेटी की डोली...गांव में छाए इस मातम से हर कोई मायूस है...

प्रतापपुर के ग्रामीणों को जनता के नुमाइंदे और सफेद लिबास वाले नेता एक अरसे से फ्लोराईड मुक्त जल मुहैया कराने की बात कर रहे हैं, ये बात दिगर है कि उनमे से शायद ही किसी ने एक अदद कोशिश की हो...प्रशासनिक कार्रवाई की बात करें तो 7 साल पहले गांव के चापाकलों में फ्लोराईडरोधी मशीन लगाई गई, लेकिन विभाग उसका रख- रखाव तक नहीं कर पाई...कागजों पर तो जल निर्माण योजनो भी उकेरी गई, पर विभागीय उदासिनता और ठेकेदारों की लापरवाही इस योजना को भी ले डूबी...ऐसे में जिला प्रशासन चापानल का सर्वे कर रही है, प्रशासन की माने तो यहाँ 11 कल फ्लोराईड वाले को चिन्हित किया गया, जबकि सिविल सर्जन ने कम फ्लोराईड वाले चापानल की संख्या चार बताई है....

फिलहाल ये वक्त आँकड़ो की फजीहत में फँसने की नहीं बल्कि जहर घुले पानी को पीने लायक पानी में तब्दील करने की है....प्रतापपुर के ग्रामीणों को अब भी उम्मीद है देर आए जिला प्रशासन के दुरूस्त आने की...

Saturday, March 23, 2013

महज पंद्रह दिनों का रेलवे स्टेशन


                 महज पंद्रह दिनों का रेलवे स्टेशन


                             क्या आपने किसी ऐसे स्टेशन का नाम सुना है या फिर उसे देखा है जो पूरे साल में सिर्फ 15 दिनों के लिए ही काम करता है. लेकिन इस तरह का बिहार में एक स्टेशन है जिसे सुनने के बाद हर कोई जानना चाहेगा. आखिर कौन सा है स्टेशन और कहां है अवस्थित...क्यों 15 दिन काम करता है.
                           तो आईये हम आपको बताते हैं ऐसे स्टेशन के बारे में गया-मुगलसराय खंड पर अनुग्रह नारयण रोड रेलवे स्टेशन से महज 3 किलोमीटर आगे पुनपुन नदी के तट पर अवस्थित है अनुग्रह नारायण रोड घाट रेलवे स्टेशन जहां पितृपक्ष के दौरान इस रास्ते से जाने वाली लगभग सभी महत्वपूर्ण रेल गाडियों को 15 दिनों के लिए यहां ठहराव दिया जाता है. जिससे यहां आने वाले श्राद्ध अर्पण के पूर्व पिंडदानी यहां से उतरकर पुनपुन नदी के किनारे पिंडदान कर पाते हैं. वर्षों पहले रेलवे की तरफ से यहां आनेवाले यात्रियों के लिए तमाम सुविधाएं उपलब्ध रहती थीं, मगर अब इस स्टेशन पर कोई सुविधा नहीं है. यहां का टिकट काउंटर पूरी तरह से बंद होकर खंडहर में तब्दिल हो चुका है. मजबूरन टिकट नहीं मिलने से यात्रियों को काफी परेशान होती है और बिना टिकट यात्रा करनी पड़ती है. रेलवे की इस लचर व्यवस्था से स्थानीय लोगों में भी काफी क्षोभ है. उनका कहना है कि यदि रेलवे की तरफ से यात्रियों के लिए आवश्यक सुविधाएं दे दी जाती तो यहां आने वाले यात्रियों की संख्या में इजाफा होता और आज के हाईटेक जमाने में शायद सुविधाओं से वो भी अपने कीमती समय को बचा पाते. इन सभी रेलवे के अधिकारियों से बात की जाती है तो उनके जवाब यह समझने के लिए काफी था कि 15 दिनी स्टेशन का यह हाल आखिर इतना बदत्तर कैसे हो गया.
                             बहरहाल पितृपक्ष में यह 15 दिन वाला यह स्टेशन आबाद है, यात्री तमाम असुविधाओं के बावजूद पिंडदान करने की गरज में हर साल यहां आते हैं. ऐसे में जरुरत है इसे पूर्व की स्थिति में लाने की ताकि पिंडदानियों को आवश्यक सुविधाएं उपलब्ध हो सके.  

Wednesday, March 20, 2013

शहनाई और बिस्मिल्लाह एक सिक्के के दो पहलू


शहनाई और बिस्मिल्लाह एक सिक्के के दो पहलू

                                                                                                               -मुरली मनोहर श्रीवास्तव
दुनिया समझ रही है जुदा मुझसे हो गया,नज़रों से दूर जाके भी दिल से न जा सका....
ये वाक्या पूरी तरह से सटिक बैठ रहा है शहनाई नवाज उस्ताद बिस्मिल्लाह खां के साथ. जिन्होंने अपनी मेहनत और रियाज के बूते लिख डाली एक ऐसी इबारत जो भुलाए नहीं भूलती. गांव की पगडंडियों पर बजने वाली शहनाई अपने प्रारंभिक दौर से जब आगे बढ़ी तो राजघराने की मल्लिका बन बैठी, इस सुषिर वाद्य को बिस्मिल्लाह खां ने अपनी मेहनत और रियाज के बूते शास्त्रीय धुन के साथ जोड़कर संगीत की अगली पंक्ति में खड़ा कर दिया. शहनाई और उस्ताद एक सिक्के के दो पहलू हैं.जिंदगी के साथ कुछ पल ऐसे होते हैं जिसे भूलना मुश्किल होता है. आज उस्ताद हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी मेहनत और लगन की चर्चाएं संगीत की दुनिया में कोई किए वगैर नहीं थकता.
भारत रत्न शहनाई नवाज उस्ताद बिस्मिल्लाह खां किसी परिचय के मोहताज नहीं. विश्व के कोने-कोने में अपने शहनाई से सबको मुरीद बनाने वाले उस्ताद आज अपने पैतृक राज्य में हीं उपेक्षित हैं. बिहार के बक्सर जिले के डुमरांव में जनमे कमरुद्दीन हीं आगे चलकर शहनाई वादक बिस्मिल्लाह खां हुए. भोजपुरी और मिर्जापुरी कजरी पर धुन छेड़ने वाले उस्ताद ने शहनाई जैसे लोक वाद्य को शास्त्रीय वाद्य की श्रेणी में लाकर खड़ा कर दिया.
(संयुक्त परिवार की मिसाल थे उस्ताद,एक छत के नीचे रहते थे सौ लोग)
संगीत एक परंपरा है, संगीत एक श्रद्घा है, संगीत एक समर्पण है, संगीत ही एक ऐसा माध्यम है जो हर एक दूसरे को जोड़े रखती है. कई कलाकार आए और अपनी स्वर लहरियां बिखेर कर दुनियां से रुख्सत हो गए.उनके द्वारा गाए-बजाए गए वाद्य उनकी यादें आज भी ताजा कर देती है, उन्हीं में से एक हैं शहनाई नवाज उस्ताद बिस्मिल्लाह खां. कभी छोटी बिलाधरी, बड़ी बिलाधरी से गुलजार रहने वाली बस्तियों में वक्त गुजारने वाले उस्ताद उन लोगों के इंतकाल के बाद कहते थे कि अब इन गलियों में आने को जी नहीं चाहता, क्यों बस्तियां तो वही है, लेकिन अब वो रौनक नहीं. समय गुजरता गया और आज वाराणसी का हड़हा सराय जहां उस्ताद रहते थे, वो भी उन विरान गलियों में शामिल हो गई है. अब जाने कब इस वाराणसी में वादन का संत आएगा, जो संगीत की दुनिया में एक नई इबारत लिखेगा, इसके बारे में कह पाना मुश्किल है.
दिल बहलाने वाली शहनाई की धुन को पहली बार उस्ताद ने वर्ष 1962 में फिल्म-गुंज उठी शहनाई में दिल का खिलौना हाय टूट गया कोई लूटेरा आके लूट गया...में संगीत देकर अपने वादन से सबके दिलों में रच बस गए.वैसे तो उस्ताद ने हजारों फिल्मों में संगीत दिया है लेकिन अपने जीवन में तीन फिल्मों हिन्दी गुंज उठी शहनाई, भोजपुरी बाजे शहनाई हमार अंगना, और मद्रासी फिल्म सनाधि अपन्ना में बतौर म्यूजिक डायरेक्टर रहे.
21 मार्च 1916 को बिहार के बक्सर जिले के डुमरांव में एक गरीब और जलालत की जिंदगी बसर करने वाले पैगम्बर बख्श के यहां बालक कमरुद्दीन ने जन्म लिया. पैगंबर बख्श डुमरांव राज के मोलाजिम थे. उस्ताद ने जीवन में कई उतार-चढ़ाव देखे...गरीबी और जलालत भरी जिंदगी बसर करने वाले परिवार में जन्मे बालक कमरुद्दीन ने महज चौथी की पढ़ाई कर डुमरांव जैसे कसबाई शहर से निकलकर दुनिया के मानचित्र पर अपने संगीत का लोहा मनवाया.जो आज हर किसी की जुबां पर शहनाई की स्वर लहरियां बजते हीं लोग इतना जरुर कहते हैं क्या बजाते हैं उस्ताद, इतनी मिठास की लोग बरबस झुम उठते हैं.
जिस बच्चे को पढ़ा-लिखाकर अब्बा जान बड़ा आदमी बनाना चाहते थे, वहीं बालक कमरुद्दीन को पढ़ने में जी नहीं लगता था, सुबह की बेला में डुमरांव के बांके-बिहारी मंदिर में जाना जहां अब्बा जान शहनाई वादन किया करते थे, शहनाई के इतने शौकिन थे कि इनके लिए अब्बा ने छोटी सी पिपही की तरह बनवा दिया था जिसे लेकर फूंकते रहते थे.इसके अलावे सवा सेर का एक लड्डु के लिए मंदिर और अब्बा के चक्कर काटते रहते थे.क्योकि यहां हर वादक को एक-एक लड्डू डुमरांव राज के तरफ से दी जाती थी.जब इससे फूर्सत मिली तो ढेकवा पोखरा, नहर से मछली मारना, गिल्ली-डंडा खेलना दिन की दिनचर्या में शामिल था.शाम ढलते ही जैसे थक हारकर अपने घर आने के बाद अम्मी के बनाए गोस्त-रोटी पर इस कदर टूट पड़ते लगता कई रोज से भूखे हैं. वक्त ने करवट ली और एक दिन पैगंबर बख्श के दो बेटों में बड़े बेटे शम्सुद्दीन और छोटे बेटे कमरुद्दीन के सर से मां का साया उठ गया. फिर आयी सोतेली मां, मगर कहने को सौतेली, अपने लाडलों से बहुत प्यार करती थी. पर होनी को कुच और ही मंजूर था दस साल की अवस्था में कमरुद्दीन को उनके मामू अली बख्श अपने साथ वारणसी लेकर चले गए.छुट गई जन्मस्थली गाहे-बगाहे आते तो डुमरांव स्टेशन से बैलगाड़ी पर आते समय बैलों के गले में बंधे घूंघरु में बी इन्हें शहनाई का धून नजर आने लगा. मामू के मरने के बाद इन दोनों भाइयो को जिविकोपार्जन के लिए बिस्मिल्लाह एंड पार्टी बनानी पड़ी उसी से कमाई कर अपना पेट भरते थे. आगे चलकर यही बिस्मिल्लाह के नाम से मशहूर हुए कमरुद्दीन.
(भोजपुरी के सबसे बड़े संवाहक, जिन्होंने विश्व में शहनाई पर भोजपुरी गीत बजाकर सबको मुरीद बनाया)
कस्बाई इलाके डुमरांव में जनमें उस्ताद का जीवन बहुत संघर्ष में बीता. हिन्दू-मुस्लिम संस्कृति के बीच की कड़ी बिस्मिल्लाह खां सच की एक मिसाल हैं. जहां लोग जाति-धर्म के पचड़े में पड़े हैं, वहीं पांच समय के नमाजी उस्ताद मंदिर में सुबह और शाम शहनाई पर भजन की धुन छेड़कर भगवान को भी अपने शहनाई वादन से रिझाते थे. संगीत एक श्रद्धा है, संगीत एक समर्पण है संगीत आपसी मेल का सुगम रास्ता भी है. सांसारिक तनाव से दूर कुछ पल बिताने के लिए संगीत ही वो अकेला साथी है जहां दिल को सकूं आता है. वक्त ने कई बदलाव लाए, कई पहलुओं से वाकिफ करवाया. जिंदगी में कई उतार चढ़ाव देखने वाले उस्ताद 21 अगस्त 2006 को हमेशा के लिए वाराणसी के हेरिटेज अस्पताल में हमेशा-हमेशा के लिए चिरनिद्रा में सो गए, जिन्हें बनारस के कब्रिस्तान फातमान में दफना दिया गया.उनके कब्र से कुछ दूरी पर है जमाने की मशहूर उमरांव जान का मजार.
(डुमरांव जन्मभूमि, बनारस बनी रियाज स्थली तो पूरी दुनिया बनी कर्मस्थली,सौ से भी अधिक देशों में पेश किए कार्यक्रम)
आजादी के बाद पहली बार दिल्ली के दीवान--खास से शहनाई वादन करने वाले उस्ताद ने आजादी के 50 वीं वर्षगांठ पर शहनाई बजाया था.लेकिन जिंदगी के आखिरी पड़ाव पर दिल्ली के इंडिया गेट पर शहनाई वादन करने की तमन्ना दिल में अधुरी रह गई. जब उस्ताद जिंदा थे तो सभी ने इनके तरफ नजर--इनायत की मगर इनके इंतकाल के बाद कोई इनके घर का पुरसा हाल तक जानने नहीं आता, जिसको लेकर उनके घर वाले खासा नाराज रहते हैं.
बनारस की रुहानी फिजा में मंदिर प्रांगण में घंटों साधना करने वाले उस्ताद एकता और भाईचारे की बहुत बड़ी मिसाल थे. शहनाई को अपनी बेगम मानने वाले उस्ताद ने ऐसी उंचाईयां बख्शी जिन्हें छु पाना किसी के लिए भी बहुत मुश्किल लगता है. उस्ताद बिस्मिल्लाह खा ने निर्विवाद रूप से शहनाई को प्रमुख शास्त्रीय वाद्य यंत्र बनाया और उसे भारतीय संगीत के केंद्र में लाए। शहनाई के पर्याय कहे जाने वाले खा ने दुनिया को अपनी सुर सरगम से मंत्रमुग्ध किया और वह संगीत के जरिए विश्व में अमन और मोहब्बत फैलाने के हामी थे। संगीत के जरिए विश्व में अमन और मोहब्बत फैलाने, उस्ताद को संगीत के प्रति उत्कृष्ट सेवा के लिए उस्ताद को संगीत के प्रति उत्कृष्ट सेवा के लिए वर्ष 2001 में सर्वोच्च सम्मान 'भारत रत्न' से नवाजा गया, बनारस के बालाजी मंदिर में जहां उस्ताद रियाज करते थे वो आज खंडहर में तब्दील हो चुका है. वहीं डुमरांव की मिट्टी में पले बढ़े उस्ताद वर्ष 1979 में डुमरांव अभिनेता बारत भूषण, नाज, मोहन चोटी के साथ पंद्रह दिनों तक रेलवे अधिकारी डॉक्टर शशि भूषण श्रीवास्तव जो बाजे शहनाई हमार अंगना फिल्म से जुड़े थे के घर ठहरे थे लोग.उसके बाद वर्ष 1983 में आखिरी बार आए उसके बाद अस्वस्थ्यता की वजह से नहीं आ सके. डुमरांव से जैसे नाता ही टूट गया उसके बाद मेरे दिल में आया की इनकी स्मृतियों को इकट्ठा किया जाए, जिसे मैंने “शहनाई वादक उस्ताद बिस्मिल्लाह खां” पर पुस्तक लिखकर संजोने की कोशिश की है. अंत में बस इतना ही कहूंगा की कई उम्मीदों को दिल में लिए वो हमसे के लिए रुख्सत तो हो गए, मगर ऐसे प्रणेता युगों-युगों तक जिंदा रहते हैं..

(NOTE - 1. तस्वीर में उस्ताद के साथ लेखक, 2.लेखक के पिता शशि भूषण श्रीवास्तव, बड़े भाई मनोज कुमार श्रीवास्तव,भाई शैलेंद्र राजू के मुंडन के समय  उस्ताद के भाई पंचकौड़िया मियां शहनाई वादन करते हुए.  )
(लेखक- शहनाई वादक उस्ताद बिस्मिल्लाह खां पुस्तक के लेखक हैं)
murli.srivastava5@gmail.com, 09430623520, 09304554492

Thursday, March 14, 2013

अजब प्रेम की गजब कहानी



 एक बार प्रेम की जीत हुई जब पति ने पत्नी को प्रेमी के हवाले कर दिया और विवाहिता ने पति का दामन छोड़ प्रेमी के साथ ससुराल  की दहलीज को पार कर दी / पति रामा मुखिया ने अपनी पत्नी मंजुला को प्रेमी के साथ जाने में कोई भी जना नुकुर नहीं किया और पंचायत के सरपंच को लिखित दिया की उसकी पत्नी मंजुला जिसके साथ जाना चाहे जा सकती है उसे कोई आपत्ति नहीं है / मंजुला एक बच्चे की माँ  भी हैदोनों प्रेमी प्रेमिका ने  गाँव के  मंदिर में सैकड़ों  ग्रामीणों के बिच एक दुसरे को माला पहनाकर फिर से शादी कर ली यह दिलचस्प  मामला   है झंझारपुर थाना बैरमा गाँव की ,मंजुला देवी का अपने मैके के युवक लल्कू यादव से वर्षों से प्रेम चल रहा था /पांच वर्ष पूर्व दोनों  की आँखे चार हुई लेकिन दो वर्ष पूर्व मंजुला के परिवार वालों ने काफी धूम धाम से मंजुला कुमारी की शादी रामा मुखिया से कर दिया  ,शादी के बाद मंजुला अपने पति के साथ ससुराल आ गयी और पति के साथ रहने लगी इस बीच उसे एक बच्चा भी हुआ ,लेकिन उसका दिल अपने नैहर के युवक लालकु यादव पर ही लगा रहा /इस बिच प्रेमी युगल के बीच लुका छिपी मेल मिलाप चलता रहा /पति रमा मुखिया को अपनी पत्नी की बेवाफाई राश नहीं आ रहा था और पति ने अनोखा फैसला लिया /अपनी पत्नी के लव मिस्ट्री की कहानी को पंचायत के सरपंच के पास रखा और लिखित रूप अपनी पत्नी को प्रेमी के हवाले करने की गुहार सरपंच से लगाई /सरपंच की माने दोनों पति पत्नी के लिखित आवेदन पर मंजुला को उसके प्रेमी के हावाले कर गाँव के मंदिर में शादी करा कर उसे प्रेमी के साथ जाने दिया गया /कहा गया है प्रेम अंधा होता है जिसे सच कर दिखाया मंजुला और लल्कू यादव ने /मंजुला की शादी के दो वर्ष के बाद लालकु ने अपनी प्रेमिका को पा लिया /प्रेमिका अपनी एक वर्ष के बच्चे के साथ ससुराल से अपने मैके प्रेमी के घर चली गयी

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HIMMAT SE KAM LOGE TO ZMANA V SATH DEGA...HO GAYE KAMYAB TO BCHACHA-BCHCHA V NAM LEGA.....MAI EK BAHTE HWA KA JHOKA HU JO BITE PAL YAD DILAUNGA...HMESHA SE CHAHT HAI KI KUCHH NYA KAR GUZRNE KI...MAI DUNIA KI BHID ME KHONA NHI CHAHTA....