Tuesday, September 22, 2009


रमजान और महंगाई


रमजान का महीना सबसे पाक महीना माना जाता है। कहा जाता है कि यह बरकत और रहमत का महीना होता है। इसके शुरू होते ही बहुत कुछ बदल जाता है। बदल जाते हैं लोगों के आचार-व्यवहार, रहन-सहन, और खन-पान। ये तो हुई बातें लाइफस्टाइल की। और इसी लाइफस्टाइल के साथ बदल जाता है मार्केट भी। जी हां हम बात कर रहे हैं रमजान के महीने में मार्केट के ट्रेंड की
रमजान की बातें हो तो याद आ जाता है- ईद। और चर्चा ईद की हो तो बात बिना सेबई के कैसे बनेगी? व्यापारी भी इस बात को बखूवी जानते हैं। यही कारण है कि रमजान शुरू होते ही बाजार सज जाता है भेराइटी-भेराइटी के सेबईयों से।
तीस दिनों के रोजे के बाद ईद का चांद लेकर आता है ढेरों खुशियां। लेकिन उस खुशी को समेटने की प्लानिंग पहले ही शुरू हो जाती है। किस-किस तरह के कपड़े लेने हैं। कौन-कौन से पकवान बनाने हैं। कहां और कैसे शॉपिंग करना है। और भी कई तरह की बातें। लेकिन इन सब प्लानिंग को डिस्टर्व कर रही है बढ़ रही मंहगाई।
मंहगाई चाहे जितनी भी बढ़ जाए, लेकिन ईद का उत्साह कम नहीं होगा। और न ही बंद होगी खरीददारी। लेकिन बढ़ रही मंहगाई की इस चर्चा के बाद उत्साह तो थोड़ा फीका पड़ ही गया।
FARZI EXAM


बेगूसराय में शिक्षक बहाली की परीक्षा पूरी होने के पहले ही कॉपियां छीन ली गई। अब आप सोच रहे होगें ऐसा क्यों…? दरअसल मामला है फर्जी परीक्षा का ।इसमें तीन लोगों ने टीचर की नौकरी दिलवाने के नाम पर कई लोगों से पैसे लिए। परीक्षार्थीयों को एडमिट कार्ड भी दिया गया। इतना ही नहीं एक फर्जी परीक्षा का आयोजन भी कर दिया गया। लेकिन जब पोल खुली तो तोनों पहुंच गए सलाखों के पीछे।
कर्पूरी ठाकुर उच्च विद्यालय। यहीं पर उन तीनों जालसाजों ने परीक्षा का आयोजन किया था। लेकिन पुलिस ने मौके पर पहुंच उन्हें गिरफ्तार कर लिया। साथ ही सभी कागजात भी जब्त कर लिए। अब पुलिस उनसे पुछताछ कर मामले की तह तक जाने की कोशिश कर रही है
इससे पहले भी फर्जी परिक्षाओं के कई मामले सामने आते रहें हैं। लेकिन इस मामले के तार और कहां तक जुड़े हैं ये जांच के baad पता चलेगा ।

Monday, September 21, 2009


जहरीली मेहंदी


अल्लाह का वादा है कि रोजेदारों को उनके रोजे और ईबादतों का तोहफा खुद देंगे....पूरे महिने भर लगन से ईबादत की...कुरान पढ़ा....नमाज अदा की....जाने-अंजाने हुए गुनाहों के लिए माफी मांगी.......लेकिन ईद के मौके पर मेहंदी लगाने से कई महिलाओं को एलर्जी की शिकायत होने के बाद अस्पताल में भर्ती कराया गया.......इस बात की खबर जैसे ही मिली......लोग मेडिकल स्टोर से एभील खरीदने लगे......इस खबर के बाद अफरा-तफरी मच गई.......
ईद के मौके पर हाथों में मेहंदी लगाने से कई महिलाओं को एलर्जी की शिकायत होने के बाद अस्पताल में भर्ती कराया गया है..... इसकी खबर सुनते ही चारो ओर अफरा-तफरी मच गयी.......
......सच खुशी के मौके पर रचाई जाने वाली मेहंदी ने ईद की खुशी को बदरंग कर दिया है......आज ईद है....खुशियों में खोई महिला और लड़कियां मेहंदी रचा रही थीं......पर उन्हें क्या मालूम था कि उनकी खुशी को ग्रहण लग जाऐंगे......और देखते ही देखते घर का माहौल ही बदल गया.......मेहंदी बनाने वाले कंपनी पांच रुपये का पाउच मार्केट में उतार कर गुणवता की जांच नही करते हैं. जिस कारण लोग दहशत में आ गये हैं. मेंहंदी में केमिकल है, ये तो जांच के बाद ही पता चल पाएगा..........

Saturday, September 19, 2009



बिरोध प्रदर्शन


प्राथमिक शिक्षक के पदों पर नियुक्ति की मांग को लेकर आज झारखण्ड प्राथमिक शिक्षक बेरोजगार संघ ने राजभवन के सामने बिरोध प्रदर्शन किया .ये शिक्षक ये मांग कर रहे थे की २००७ में जिन ८७६७ पदों पर नियुक्ति के लियेसर्कार द्वारा परीक्षा ली गयी थी उसके तहत मात्र ३७१ लोगो को ही नौकरी मिली जबकि सरकार ने दूसरी लिस्ट भी नहीं निकली . अब शिक्षक ये मांग कर रहे है की इनकी बेरोजगारी को देखते हुए इन्हें रिक्त पदों पर मेघा सूचि के अधर पर नौकरी दी जाये . इन लोगो ने नौकरी नहीं मिलने पर आत्मदाह तक की धामी दे डाली है


खेल और राजनिति आमने सामने


झारखण्ड में खेल और राजनिति एक दुसरे के आमने सामने है . राज्य में नवम्बर में राष्ट्रीय खेल होने वाले है लेकिन इसके बावजूद राज्य की राजनितिक पार्टिया राज्य में जल्द से जल्द चुनाव चाहती है . आपको बता दे की राष्ट्रिय खेल की तिथि पहले ही चार बार टल चुकी है .
झारखण्ड में राजनितिक पार्टियों बिच सायद ही कोई ऐसा मुद्दा हो जिसमे मतभेद न हो . लेकिन राज्य में चुनाव के मुद्दे पर राज्य की सारी राजनितिक पार्टिया सुर में सुर मिलाती है . फिर चाहे बीजेपी हो या फिर कांग्रेस इन सभी के लिए झारखण्ड में चुनाव सबसे जरुरी है . चुनाव के मुद्दे पर राजनेता यहाँ तक कहते है की अगर चुनाव की वजह से राष्ट्रीय खेल की तिथि टलती है तो टले लेकिन चुनाव राज्य की पहली प्राथमिकता है .
झारखण्ड में राष्ट्रीय खेल को लेकर पिछले कई सालो से तैयारिया चल रही है . इस राष्ट्रीय खेल के आयोजन के पीछे सरकार ने करोडो खर्च किये है .ऐसे में जिस तरह से चुनाव को जल्द करने की मांग उठ रही है इससे यहाँ के खिलाडियों में काफी निरासा है . खिलाडियों का कहना है की इस तरह से राजनीती की वजह से अगर खेल की तारीख आगे बढ़ी तो उनकी सारी मेंहनत पानी में मिल जायेगी .वही खेल संघ के अधिकारियो ने खेल की तारीख की जानकारी चुनाव आयोग को दे दी है .
राज्य में खेल पर फिलहाल राजनीती हावी होती दिख रही है . इससे एक बात तो तय है की राज्य के राजनेता भले ही खेल और खिलाडियों को लेकर लम्बी चौडी बाते कर ले लेकिन हकिकर कुछ और ही है . बहरहाल अगर इस बार भी राष्ट्रिय खेल की तारीखों में फेर बदल होते है तो झारखण्ड से इसकी मेजबानी छिन भी सकती है .
महिला आरक्षण
Dhanbad me महिला आरक्षण बिल लागु करने के बहाने रंधीर वर्मा चौक पर
धरना पर बैठी महिलायों ने ना केवल कांग्रेस पार्टी को कोसा बल्कि जमकर
गालियाँ भी दी. गाली भी वैसी जिससे खुद महिलाये शर्मशार हो जाये.
महिलायों ने प्रधानमंत्री. सोनिया गाँधी को तो भला बुरा कहा ही
राष्ट्रपति को भी नहीं बख्शा.
रंधीर वर्मा चौक पर शोषित महिला समाज के बैनर तले धरना पर बैठी
ये महिलाये वैसे तो महिला आरक्षण को लागु कराने की मांग को लेकर बैठी थी
लेकिन इसी बहाने लालकार्ड. बीपीएल को लेकर अधिकारियो को जमकर कोसा. इससे
उनका मन नहीं भरा तो कांग्रेस पार्टी को निशाने पर ले लिया. सार्वजनिक
मंच से महिलायों ने नेताओ को जमकर गाली दी. यही नहीं प्रधानमंत्री मनमोहन
सिंह. सोनिया गाँधी व राष्ट्रपति को भी अपने निशाने पर ले लिया. महिलायों
ने सार्वजनिक मंच से कांग्रेस के बड़े नेतायो को गाली दी. इसके बाद
महिलायों ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह. सोनिया गाँधी व राष्ट्रपति का
पुतला जलाया. जलाने से पहले महिलायों ने पुतला को झाडू भी मारा. शोषित
महिला समाज की अध्यक्ष रंग्नायिका बोस सार्वजनिक मंच से गाली देने की बात
को जायज ठहराया. बोस ने कहा की जब महिलायों की बात नहीं सुनी जायेगी तो
सड़कों पर उतरने के अलावा और क्या करेगी?


ट्रेन में बिश्वकर्मा pooja


धनबाद - हावडा कोलफिल्ड एक्सप्रेस फूल मालों से सजायी गई
है. आखिर सजे भी तो क्यों न आज विश्वकर्मा पूजा जो है. डेली पेसेंजर
द्वारा मनाया जाने वाला यह पूजा वर्ष २००० से चला आ रहा है. यूँ तो पुरे
देश में आज विश्वकर्मा पूजा मनाया जा रहा है, लेकिन इस पूजा की खासियत यह
है वे डेली पेसेंजर जो काम के लीये रोज सुबह घर से निकलते है और रात को
घर लौटते है . उनके लीये यही घर और द्वार दोनों है , इसलिए ये यात्री इस
पूजा को धूम धाम और गाजे बाजे के साथ मानते है.
धनबाद हावडा कोलफिल्ड एक्सप्रेस के डेली पेसेंजर इस ट्रेन को
अपने घर से भी ज्यादा अहमियत देते है . इनलोगों का कहना है हरदिन हम सुबह
इसी ट्रेन से अपने अपने काम पर जाते है और इसी से वापस भी लौटे है. ऐसे
में इस ट्रेन से खासा लगाव हो गया है. साथ ही इन लोगों का यह भी कहना है
की ट्रेन सही से चले और सभी यात्री अपने अपने घर ठीक ठाक पहुँच जाएँ और
कोई दुर्घटना नहीं हो इसके लीये ट्रेन में बाबा बिश्वकर्मा की पूजा की
जाती है. इसके लीये बजापते डेली पेसेंजर चंदा इकठा करते है और इससे पूजा
की सामग्री से लेकर फूल माला और गाजा बजा की व्यवस्था की जाती है.
ट्रेन में सफ़र करने वाले यात्री इस पूजा को काफी
हर्षोलाश के साथ मनाया करते है. जहाँ रात से ही ट्रेन के सभी बोगियों की
सफाई और सजाने का काम शुरू हो जाता है. वही सुबह होते ही गाजे बाजे की
धों पर डेली पेसेंजर अपने को नाचने से नहीं रोक पाते है. वहीँ दूसरी और
ट्रेन के चालक को इस बात का गर्व है की वे एक एसा ट्रेन चला रहे है जिसके
सभी यात्री अपने में मिलझुल कर बाबा की पूजा में भाग लेते है.
जहाँ ट्रेन के सभी पेसेजर इस पूजा को धूम धाम से मानते है वहीँ
उनलोगों को इस बात का दुःख है की ट्रेन की बोगियां बदले जाने से वे एक
दिन ही पूजा कर उसी दिन प्रतिमा का विसर्जन कर देंगे . जबकि हर साल यह
पूजा दो दिनों तक माने जाती थी. बहरहाल इस बार भी धूम धाम से विश्वकर्मा
की पूजा कर डेली पेसेंजर अपनी सुखद यात्रा की कामना कर रहें है.

Wednesday, September 9, 2009


शहनाई नवाज
उस्ताद बिसि्मल्लाह खान

लेखक-मुरली मनोहर श्रीवास्तव
प्रकाशक- प्रभात प्रकाशन, दिल्ली
हिन्दी पर अंग्रेजी हावी

कुछ लोग हिन्दी की दुदर्षा पर हमेषा रोते रहते है । लेकिन ये पढंे लिखे लोग सम्मानित क्षेत्रों में कार्यरत होने के बावजूद भी हिन्दी या अपनी क्षंेत्रीय भाषा कें हिमायती है ।वास्तव में हिन्दी तो केवल उन लोगेा की कार्य भाषा है जिनकेा या तेा अग्रेजी आती नही है या फिर कुछ पढे लिखे लोग जिनकेा हिन्दी से कुछ ज्यादा ही मोह है और ऐसे लोगेा को सिरफिरे पिछडें या बेवकूफ की संबा से सम्मानित कर दिया जाता है । सच तो यह हैं कि ज्यादातार भारतीय अंगंे्रजी के मोहपाष में बुरी तरह से जकड्रंे हुए है आज स्वाधीन भारत में अंग्रजी में निजी व्यवहार बढता जा रहा है काफी कुछ सरकारी व पूरा गैर सरकारी काम अंग्रेजी में ही होता है । दंुकानों के बोर्ड , होटलो रेस्टूरेन्टो के मेनू , अ्रगंेजी , मंें ही होता है । ज्यादातार नियम कानून या अन्य काम की बाते किताबे इत्यादि अंगंेजी मेे होने लगे हंै । उपकरणांे या यंत्रो को प्रयोग करने की विधि अंगंेजो मेे लिखी होती है भले ही इसका प्रयेाग किसी अंगेजी के ज्ञान से वंचित व्यक्ति को ही क्येा नही करना हो । अंगेजी भारतीय मानसिकता पर पूरी तरह हावी हो गई है हिन्दी या कोई और भारतीर भाषा के नाम पर छलावें या ढोग के सिवा कुछ नही होता है ।
हमारे ष्यहा बडे बडे नेता अधिकारीगण व्यापारी हिन्दी के नाम पर लबे चैडे भाषण देते है कितु अपने बच्चांे को अंगेजी माध्यम स्कूलों में पढाएॅगे । उन स्कूलों को बढावा दंेगे । अंगंेजी मे बात करना या बीच बीच में अंगेजी के ष्षब्दो का प्रयोग ष्षान का प्रतीक समझेगे ।
कुछ लोगो का कहना है कि ष्षु़द्ध हिन्दी बोलना कठिन है सरल तो केवल अंग्रेजी बोली जाती है अंगे्रजी जितना कठिन होती जाती है उतनी ही खूबसूरत होती होती जाती है आदमी उतना ही जागृत व पढा लिखा होता जाता है । ष्आज के समय के लोगेा का मानना हंै कि ष्षुद्ध हिन्दी तो केवल पांेगा पडित या बेंवकूफ लोग बोलते है । आधुनिकरण के इस दैार में या वैष्विकरण के नाम पर जितनी अनदंेखी और दुर्गति हिन्दी व अन्य भारतीय भाषाओ की हुई है उतनी ष्षयद ही कही भी किसी और दंेष की भाषा की हुई है ।
आज अंगे्रजी इतनी हावी हो चूकि है की स्कूलो से सुबह का प्रार्थना गायब हो चूका है उसके जगह पर ऐसबली ने उसका रूप ले लिया है इसका मतलब यह नही कि भावी पीढी केा अंग्रेजी से वचित रखा जाए , अग्रेजी पढे सीखे परतु साथ साथ यह आवष्कता है कि अंगेजी को उतना ही सम्मान दे जितना कि जरूरी है इसकेा हमारे दिमाग पर राज करने से रोके और इसमे सबसे बडे यांेगदान की जरूरत समाज के पढे लिखे लोगो से है । अब हमे सुधर जाना चाहिए वरना समय बीतने के बाद हम लोगो को खुद कोसने के बजाय कुछ नही बचेगा । इसलिए केवल एक खानापूर्ति कर लेना ही ठीक नही है र्बिल्क हिन्दी दिवस के दिन यह ष्षपथ लेने की जरूरत है हिन्दी को और आगे लाने की इतने आगे लाने की ताकि अंग्रेजी की भूत इसको छू ना सके ।
हिन्दी दिवस 14 सितंबर को
हिन्दी दिवस का इतिहास

हिन्दी दिवस प्रत्येक साल 14 सितम्बर को मनाया जाता है इसकी ष्षुरूआत 14 सितंबर 1949 मेंसविधान सभा ने एक मत से यह निर्णय लिया कि हिन्दी ही भारत की राजभाषा होगी । इसी महत्वपूर्ण निर्णय के महत्व को प्रतिपादित करने तथा हिन्दी को हर क्षे़त्र में प्रसारित करने के लिए राष्टभाषा प्रचार समिति ,वर्धा के अनुरोध पर सन 1953 से सर्पूण भारत में 14 सितंबर को हर साल हिन्दी दिवस के रूप मंें मनाया जायेगा । हिन्दी इसके बाद संविधान में राजभाषा के संबंध में धारा 343 से 352 तक की गयी
हिन्दी को राजभाषा के रूप में स्वीकार किये जाने का औचित्य हिन्दी को राजभाषा का सम्मान कृपापूर्वक नही दिया गया , बल्कि यह उसका अधिकार है यहा अधिक विस्तार मंें जाने के की आवष्यकता नही । केवल राष्टपिता महात्मा गाॅधी द्वारा बताये गये निम्नलिखित लक्षणों पर दृष्टि डाल लेना ही पर्याप्त रहेगा जो राष्टीय भाषा के जरूरी होनी चाहिए
1 भाषा सरल होनी चाहिए
2 उस भाषा के द्वारा भारतवर्ष का आपसी धार्मिक ,आर्थिक , और राजनीतिक व्यवहार हो सकना चाहिए
ष्3 यह जरूरी है कि भारतवर्ष का बहुत लोग उस भाषा को बोलते है
4 राष्ट के लिए वह भाषा आसान होनी चाहिए
5 उस भाषा का विचार करते समय किसी क्षणिक या अल्प स्थायी स्थिति पर जोर नही देना चाहिए ।
और यह सब बाते हिन्दी में थी इसलिए यह बन गया राष्टभाषा और इसी राष्टभाषा को हमेषा याद करने के लिए और इसके अस्तित्व को बचायंे रखने के लिए हाल साल 14 सितंबर केा मनाया जाता है हिन्दी दिवस ।
हर साल की तरह इस साल 14 सितंबर यानि हिन्दी दिवस मनाने का दिन । आज हिन्दी को बढाने को लेकर कई तरह की सरकारी और गैरसरकारी आयोजन हिन्दी में काम को बढावा देने वाली विभिन्न प्रकार की घोषणाए । विभिन्न तरह के सम्मेलन इत्यादि-इत्यादि । अगर हम यह कह दे कई सारे पाखंड होगे तो कोई गलती नही होगी । हिन्दी की दुर्दषा पर घडियाली आॅसू बहाए जाएॅगे । हिन्दी में काम करने की झूठी ष्षपथे ली जाएगी और पता नही क्या क्या होगा । अगले दिन लेाग सब कुछ भूल कर अपने अपने काम में लग जाएगंे और हिन्दी वही की वही सिसकती झुठलाई व ठुकराई हुइ रह जाएगी ।

Tuesday, September 8, 2009

शहनाई नवाज उस्ताद बिसि्मल्लाह खान [BOOK]
के जीवन पर तल्ख सच्चाई के साथ उनके अनछुए पहलुओं को संकलित किया गया है….



लेखकमुरली मनोहर श्रीवास्तव
प्रकाशक...प्रभात प्रकाशन, दिल्ली....
राजेंद्र कॉलेज नीलाम करने की धमकी

छपरा के ऐतिहासिक राजेंद्र कॉलेज जो 20 बीघा ,12 कट्टा और 11 धूर में फैला है । इस कॉलेज को 1939 में छपरा नगर परिषद ने बिल्डिंग लीज़ पर दी थी।वो भी 20 वर्षों के लिए 800 ऱुपए सालाना पर।15 दिसम्बर 1953 में इस लीज़ का फिर से 21 वर्षों के लिए रिन्यूवल किया गया।निगम के अनुसार 1974 में इसका पुनः रिन्यूवल करना था।कॉलेज प्रबंधन ने इसकी ज़रूरत नहीं समझी और न किराया ही दिया।नतीजतन निगम का 15 लाख 30 हज़ार रुपया बकाया है।अब हालत ये है कि निगम ने कॉलेज को नीलाम करने की धमकी दे डाली है।इस सिचुएशन में कॉलेज में पढ़ाई पर ग्रहण लग गया है।
1988 में तत्कालीन प्रिंसिपल और नगर परिषद के बीच एक समझौता बुआ।यह तय किया गया कि 84 हज़ार के सालाना दर पर लीज़ को रीन्यू किया जाए।लेकिन फिर 1991 में कॉलेज प्रबंधन केवल 10 हज़ार दे कर मौन साध गया।और अब नीलामी की धमकी सामने आने के बाद कॉलेज प्रबंधन मामले को लेकर राज्य सरकार के पास गुहार लगा रहा है
अब जब स्थिती इतनी गंभीर हो गई तब जाकर विधान परिषद में यह मामला गर्माया है।इसका निवारण जैसे भी और जब भी हो लेकिन फिलहाल इस टकराहट में नुकसान तो केवल छात्रों का ही हो रहा है।देखने वाली बात होगी कि इनकी प्रोब्लम के मद्देनज़र प्रशासन इस विवाद को कितनी तेज़ी से सॉल्व करता है।



शिल्पा की कुर्सी छीन गई

ब्रिटेन के शो बिग ब्रदर को जीत रातों रात सुर्खीयां बटोरने वाली शिल्पा के सितारे इनदिनों कुछ ठीक नजर नहीं आ रहे। तभी तो ऐसी खबरें आ रही है कि शिल्पा से फेमस रियालटी शो बिग बॉस के होस्ट की कुर्सी छीन गई है। और कुर्सी छीनने वाले कोई और नहीं बल्कि बॉलीवुड सुपर स्टार बिग बी अमिताभ बच्चन हैं।
शिल्पा के करियर में बिग ब्रदर और बिग बॉस मिल का पत्थर साबित हुए । उसके बाद तो जैसे शिल्पा की गाड़ी ही निकल पड़ी । हर मैग्जीन, हर अवार्ड फंक्शन में बस शिल्पा ही शिल्पा छाई नजर आयी।
उसके बाद शिल्पा की लाइफ में राज कुन्द्रा की एंट्री हुई। लेकिन लगता है बिजनेस पार्टनर राज ओके साथ जुड़ना शिल्पा की किस्मत को कुछ रास नहीं आया। पहले तो IPL में शिल्पा का जादू नहीं चला। उनकी टीम राजस्थान रॉयल्स अपनी खिताबी ट्राफी नहीं बचा पाई। और अब बिग बॉस की मेजबानी भी उनके हाथ से चली गई है।
अब हम तो यही कहेंगे की मैडम शिल्पा अगर शादी के पहले ये हाल है तो शादी के बाद तो भगवान् ही जाने क्या होगा।
































ब्रिटेन के रिएलटी शो बिग ब्रदर का रुपांतर माने जाने वाले बिग बॉस का प्रसारण इस साल दिसंबर से शुरू किया जा सकता है। जिसमें अमिताभ बच्चन इस शो की मेजबानी करते नजर आएंगें।


विश्व शिक्षा दिवस

विश्व शिक्षा दिवस है और इस अवसर पर धनबाद के स्कूलइ बच्चों द्वारा जागरूकता रैली निकाली गई . स्कूली बच्चों में इस जागरूकता रैली को लेकर खासा उत्साह दिखा और ये बच्चे जोर जोर से जागरूकता सम्बन्धी नारे लगाते हुए सड़कों पर आगे आगे चलते चल रहे थे तो उनके शिक्षक भी उनके साथ साथ नारा लगाये जा रहे थे. इन बच्चों का मानना है की इस तरह के प्रयास से हर घर के बच्चों को प्रेरणा मिलेगी और वे स्कूल जाने को उत्सुक होंगे.
आज अंतररास्ट्रीय शिक्षा दिवस पर धनबाद में जगह जगह प्रभात फेरी निकाली गई . इस रैली से वेसे बच्चों और उनके परिवार वालों को जागरूक करने का प्रयास किया जा रहा है जो बच्चे स्कूल नहीं जाते या जिनके बच्चे स्कूल नहीं जाते है. रैली में भाग ले रहे स्कूली बच्चों का का कहना है की इस तरह के कार्यक्रम से बच्चों में स्कूल जाने की तमन्ना जागेगी और वे जायेंगे . इससे देश का साक्षरता दर बढेगा और देश और आगे बढेगा. बच्चों ने वेसे बच्चों के प्रति अपनी संवेदना भी व्यक्त की जो बचपन में ही पढाई छोड़ कहीं होटल और ढाबों में काम करने लग जाते है.
स्कूली बच्चे जहाँ इस जागरूकता रैली को लेकर खासे उत्साहित है वही जिला शिक्षा विभाग भी इन बच्चों के इस कदम से अपने को गौरवान्वित महशुस कर रहे है. जिला शिक्षा पदाधिकारी का मानना है की इस तरह से पुरे राज्य में शिक्षा का स्तर ऊपर उठेगा. शिक्षा विभाग ने भी इस जागरूकता रैली में भाग लेकर बच्चों को उत्साहित किया.

Friday, September 4, 2009


षिक्षक दिवस - डा. राधा कृष्णन


5 सितंबर केा पूरे भारत में षिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है । इसी दिन 1888 इसवी में भारत कें दूसरे राष्ट्रपति डा. सर्वपल्लवी राधा कृष्णन का जन्म हुआ था । राधाकृष्णन 1952 में भारत कें पहले उपराष्ट्रपति बने। फिर 1962 में देष के राष्ट्रपति बने । राष्ट्रपति बनने के बाद इनके कुछ विघार्थी और दोस्त इनके पास कर बोले कि हम आपके जन्म दिन को षिक्षक दिवस के रूप में मनाना चाहते है। इस आग्रह को राधाकृणन ने स्वीकार कर लिया और तब से षिक्षक 5 सितम्बर षिक्षक दिवस के रूप में मनाया जानंे लगा ।
षिक्षक दिवस- 5 सितंबर


षिक्षक काम है ज्ञान एकत्र करना या प्राप्त करना और फिर उसे बांटना । ज्ञान का दीपक बना कर चारों तरफ अपना प्रकाष विकीर्ण करना । हमारे समाज में आदिकाल से ही गुरू षिष्य पंरमरा चलते आ रही है । चाहे राम या विष्वामित्र हो या अजुर्न द्रोण और एकलब्य। इतिहास साक्षी है ंहमेषा हम गुरू को भगवान के उपर का दर्जा देते हं।ै इतना ही नही हम को गुरू को ब्रह्मा मनाते हैं। इस बात को साबित करता है ये दो ष्ष्लोक
1 गुरूब्रर्हमा गुरूर्विष्णु गुरूदंेवो महेष्वरः गुरू साक्षात परब्रहा तस्मै श्री गुरूवे नमः
2 गुरू गोविद दोउ खडे काको लागे पांव बलिहारी गुरू आपकी गोविद दियो बताए पहले के समय मेें जहां गुरू षिष्य संबंध पवित्र था, गुरू के एक मांग को षिष्य सबकुछ निछावर करके पूरा कर देते थे । महाभारत के समय में द्रोण ने जब एकलब्य से उसका अगंुठा मगा तो बिना कुछ सोचे एकलब्य ने अपनी षिष्य कर्तव्य को पूरा किया जिसको लेकर वह आज भी अमर है । पहले के षिष्य जहां अपनी कर्तव्य निभाया वही गुरूओं ने भी अपना कर्तव्य बखूबी पूरा किया ।
आज के दौर में गुरू षिष्य........
जहां सब कुछ पर बाजारवाद हावी हो चूका हेै वहा पर यह पवित्र रिष्ता भी जैसे बाजारवाद का षिकार हो गया है । इस रिष्ते को भी कलयूग जैसे निगलते जा रहा है आज ना वह एकलब्य रहे ना वे द्रोर्ण। आज इनका रूप बदल चूका है । षिक्षण एक व्यवसाय बन चूका है । षिक्षण संस्थान तरह-तरह के लुभावने विज्ञापन देकर बच्चो को लुभाते है तब षुरू होती है व्यवसायिकता। जिसकी बुनियाद होती है पैसा और केवल पैसा । ना पवित्र संबंध ना षिक्षा लेने या ना देने की परम्परा । आज कई ऐसे मामले सामने आऐ है जो इस संबध को तार तार कर देता हेै ।हाल ही में मटुक नाथ जूली प्रकरण इसका जीता जागता सबूत है । षिष्यों का गंुरूओ पर हाथ उढाना गाली दंेना जैसे पंरमपरा बनती जा रही है दो चार दिन पहले पटना के नामी काॅलेज में छात्रों ने जिस तरह से एक प्रांेफंेसर का हाथ तोड दिया है यह बहूत ही ष्षर्मनाक है
आज भी जब एक षिक्षक ही छात्र के जीवन में फैले अंधेरे को दूर करता है उसके जीवन में प्रकाष फैलाता है । वहा इस संबध केा फिर से एक पवित्र और पाक बनाने के लिए ंगंुरू और षिष्य दोनो को मिलकर सांेचना चाहिए और समाज के विद्वानेा को भी इसकें लिए आगे आने की जरूरत है । । आज कल षिक्षा और गुरू और षिष्य संबंध में गिरावट आ रही है । इस संबंधो की पवि़त्रता पर ग्रहण लगते जा रहे है इसमें 5 सितम्बर का दिन एक इस संबधो की पवित्रता का स्मरण करा जाता है । सर्वपल्ली राधाकृष्णन के बारे में कुछ महप्वपूर्ण जानकारियाॅ
डॉ. राधाकृष्णन अपनी बुद्धिमतापूर्ण व्याख्याओं, आनंददायी अभिव्यक्ति और हँसाने, गुदगुदाने वाली कहानियों से अपने छात्रों को मंत्रमुग्ध कर दिया करते थे। वे छात्रों को प्रेरित करते थे कि वे उच्च नैतिक मूल्यों को अपने आचरण में उतारें। वे जिस विषय को पढ़ाते थे, पढ़ाने के पहले स्वयं उसका अच्छा अध्ययन करते थे। दर्शन जैसे गंभीर विषय को भी वे अपनी शैली की नवीनता से सरल और रोचक बना देते थे।

वे कहते थे कि विश्वविद्यालय गंगा-यमुना के संगम की तरह शिक्षकों और छात्रों के पवित्र संगम हैं। बड़े-बड़े भवन और साधन सामग्री उतने महत्वपूर्ण नहीं होते, जितने महान शिक्षक। विश्वविद्यालय जानकारी बेचने की दुकान नहीं हैं, वे ऐसे तीर्थस्थल हैं जिनमें स्नान करने से व्यक्ति को बुद्धि, इच्छा और भावना का परिष्कार और आचरण का संस्कार होता है। विश्वविद्यालय बौद्धिक जीवन के देवालय हैं, उनकी आत्मा है ज्ञान की शोध। वे संस्कृति के तीर्थ और स्वतंत्रता के दुर्ग हैं।

उनके अनुसार उच्च शिक्षा का काम है साहित्य, कला और व्यापार-व्यवसाय को कुशल नेतृत्व उपलब्ध कराना। उसे मस्तिष्क को इस प्रकार प्रशिक्षित करना चाहिए कि मानव ऊर्जा और भौतिक संसाधनों में सामंजस्य पैदा किया जा सके। उसे मानसिक निर्भयता, उद्देश्य की एकता और मनकी एकाग्रता का प्रशिक्षण देना चाहिए। सारांश यह कि शिक्षा 'साविद्या या विमुक्तये' वाले ऋषि वाक्य के अनुरूप शिक्षार्थी को बंधनों से मुक्त करें।

डॉ. राधाकृष्णन के जीवन पर महात्मा गाँधी का पर्याप्त प्रभाव पड़ा था। सन्‌ 1929 में जब वे ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में थे तब उन्होंने 'गाँधी और टैगोर' शीर्षक वाला एक लेख लिखा था। वह कलकत्ता के 'कलकत्ता रिव्हयू' नामक पत्र में प्रकाशित हुआ था। उन्होंने गाँधी अभिनंदन ग्रंथ का संपादन भी किया था। इस ग्रंथ के लिए उन्होंने अलबर्ट आइंस्टीन, पर्ल बक और रवीन्द्रनाथ टैगोर जैसे चोटी के विद्वानों से लेख प्राप्त किए थे। इस ग्रंथ का नाम था 'एन इंट्रोडक्शन टू महात्मा गाँधी : एसेज एंड रिफ्लेक्शन्स ऑन गाँधीज लाइफ एंड वर्क।' इस ग्रंथ को उन्होंने गाँधीजी को उनकी 70वीं वर्षगाँठ पर भेंट किया था।

अमरीका में भारतीय दर्शन पर उनके व्याख्यान बहुत सराहे गए। उन्हीं से प्रभावित होकर सन्‌ 1929-30 में उन्हें मेनचेस्टर कॉलेज में प्राचार्य का पद ग्रहण करने को बुलाया गया। मेनचेस्टर और लंदन विश्वविद्यालय में धर्मों के तुलनात्मक अध्ययन पर दिए गए उनके भाषणों को सुनकर प्रसिद्ध दार्शनिक बर्टरेंट रसेल ने कहा था, 'मैंने अपने जीवन में पहले कभी इतने अच्छे भाषण नहीं सुने। उनके व्याख्यानों को एच.एन. स्पालिंग ने भी सुना था। उनके व्यक्तित्व और विद्वत्ता से वे इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में धर्म और नीतिशास्त्र विषय पर एकचेअर की स्थापना की और उसे सुशोभित करने के लिए डॉ. राधाकृष्ण को सादर आमंत्रित किया। सन्‌ 1939 में जब वे ऑक्सफोर्ड से लौटकर कलकत्ता आए तो पंडित मदनमोहन मालवीय ने उनसे अनुरोध किया कि वे बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर का पद सुशोभित करें। पहले उन्होंने बनारस आ सकने में असमर्थता व्यक्त की लेकिन अब मालवीयजी ने बार-बार आग्रह किया तो उन्होंने उनकी बात मान ली। मालवीयजी के इस प्रयास की चारों ओर प्रशंसा हुई थी।

सन्‌ 1962 में वे भारत के राष्ट्रपति चुने गए। उन दिनों राष्ट्रपति का वेतन 10 हजार रुपए मासिक था लेकिन प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद मात्र ढाई हजार रुपए ही लेते थे और शेष राशि प्रधानमंत्री के राष्ट्रीय राहत कोष में जमा करा देते थे। डॉ. राधाकृष्णन ने डॉ. राजेन्द्र प्रसाद की इस गौरवशाली परंपरा को जारी रखा। देश के सर्वोच्च पद पर पहुँचकर भी वे सादगीभरा जीवन बिताते रहे। 17 अप्रैल 1975 को हृदयाघात के कारण उनका निधन हो गया। यद्यपि उनका शरीर पंचतत्व में विलीन हो गया तथापि उनके विचार वर्षों तक हमारा मार्गदर्शन करते रहेंगे।
अनसुलझे सवाल
घर में बिखरा सामान और सड़क पर पसरा ये खून, इस बात के गवाह हैं कि यहां किसी वारदात को अंजाम दिया गया है। जी हां, इस बात की तस्दीक जांच करती पुलिस से भी हो जाती है। दरअसल पुलिस को खबर मिली कि रेस्ट हाउस में दो लाश पड़ी है। खबर मिलते ही पुलिस घटनास्थल पर पहुंच गई और जांच में जुट गई। जांच में पुलिस को पता चला कि ये लाश पति-पत्नी की है। रौशन और गुड्डू दोनों घरेलू नौकर का काम किया करते थे। घर के मालिक ने ही इन्हें रेस्ट हाउस में रहने के लिए कमरा दे रखा था। सुबह जब दोनों काम पर नहीं आए तो मालिक का माथा ठनका। मालिक ने जब कमरे में जाकर देखा तो सन्न रह गया। दरअसल दोनों की लाश खून से सनी पड़ी थी। पुलिस ने लाश को कब्जे में लेकर पोस्टमॉर्टम के लिए भेज दिया है।

गुड्डू और रौशन का एक चार साल का बेटा भी है। जिसने अपनी तोतली आवाज में पुलिस को बयान भी दिया है। उसने पुलिस को बताया कि वारदात वाले दिन मम्मी और पापा के बीच लड़ाई हुई थी। हालांकि पुलिस दो एंगल से इस पूरे मामले की जांच कर रही है और जल्द ही लाश की अनसुलझी गुत्थी को सुलझा लेने का दावा कर रही है।

गुड्डू और रौशन तो इस दुनिया से चले गए लेकिन अपने पीछे छोड़ गए कई अनसुलझे सवाल। मसलन अगर दोनों ने सुसाइड किया तो अपने मासूम को किसके भरोसे छोड़ दिया। अगर दोनों की हत्या की गई तो फिर हत्यारे का क्या मकसद हो सकता है। क्या लूटपाट के इरादे से आए बदमाशों ने उन दोनों का मर्डर कर दिया। इस तरह के कई सवाल हैं जो पुलिस के लिए बन गए हैं जांच के सवाल।

Wednesday, September 2, 2009

कर्ज के बोझ
फसल बरबाद हो जाने और कर्ज के बोझ ने इसे आत्महत्या करने को विवश कर दिया। पड़ोसियों के कारण इसकी जान तो बच गई। पर शायद ये यही सोच रहा है कि आखिर क्या फायदा ऐसी जिन्दगी का। जो अपने बच्चों की खुशियां ना खरीद सके। जिसके रहते घर के बरतन खाली पड़े हो।


सुखे के कारण पूरे जिले में फसल बर्बाद हो गई। जो बचा उसे कीड़े खा गए। अब ऐसे में किसानों के पास आत्महत्या करने के अलावा और कोई उपाय नहीं बचता। लेकिन अधिकारी हैं कि खुद को इन सब बातों से अनजान बता रहे हैं। और कार्यालय में बैठे-बैठे ही किसानों को राहत पहुंचाने की बात कर रहे हैं।



ये कोई पहली बार नहीं है जब किसी किसान ने आत्महत्या की कोशिश की हो। पहले भी सूखे के कारण कई जानें जा चुकी हैं। लेकिन प्रशासन है कि किसानों की मुशिकिलें कम करने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठा रहा।
कलयुगी बेटा

21 अगस्त.. समय रात के 10 बजे.. कोडरमा में होती है एक वारदात। पूरे इलाके में फैल जाती है सनसनी। इंसानियत हो जाती है शर्मसार। मानवता हो जाती है कलंकित। जिसने भी ये खबर सुनी वो अवाक रह गया..सन्न रह गया। मानो उसे अपनी कानों पर यकीन नहीं हो रहा हो। चाहकर भी इलाके के लोग इस वारदात को सच मानने के लिए तैयार नहीं थे। लेकिन लोगों के मानने और न मानने से क्या होता है। सच तो आखिर सच है। आखिर सच है क्या.. ये आप भी जानना चाह रहे होंगे। दरअसल पूरा मामला कोडरमा के सतगांवा का है। शांति देवी अपने दो बेटों के साथ इसी गांव में रहती थी। वर्षों पहले शांति देवी के हसबैंड गुजर चुके थे। इसीलिए शांति देवी अपने बड़े बेटे राजू के साथ रहती थी। यही बात हर हमेशा छोटे बेटे दिलीप को नागवार गुजरती थी। उसके मन में हमेशा ये खटकते रहता था कि कहीं मां भईया को तो सारी संपत्ति का वारिस नहीं बना देगी।
जायदाद का लालच दिलीप के सर इस कदर चढ़ गया था कि मां-बेटे में हमेशा अनबन रहने लगी। दरअसल दिलीप चाहता था कि मां के नाम जो दस कट्ठा जमीन है वो उसके नाम हो जाए। इसी बात को लेकर वो मां से खफा रहने लगा..झगड़ा करने लगा और एक दिन मौका मिलते ही अपनी मां का ही कर डाला कत्ल।

इस सनसनीखेज वारदात की खबर मिलते ही पुलिस भी घटनास्थल पर पहुंच गई और लाश को कब्जे में लेकर पोस्टमॉर्टम के लिए भेज दिया है। पुलिस फरार आरोपी की तलाश सरगर्मी से कर रही है।

महज जमीन के थोड़े से टुकड़े की खातिर एक बेटे ने अपनी मां का कत्ल कर दिया। जी हां, उसने अपनी मां का नहीं बल्कि उस ममता का खून कर डाला जिसने अपने खून से सींचकर उसे इतना बड़ा बनाया था।

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HIMMAT SE KAM LOGE TO ZMANA V SATH DEGA...HO GAYE KAMYAB TO BCHACHA-BCHCHA V NAM LEGA.....MAI EK BAHTE HWA KA JHOKA HU JO BITE PAL YAD DILAUNGA...HMESHA SE CHAHT HAI KI KUCHH NYA KAR GUZRNE KI...MAI DUNIA KI BHID ME KHONA NHI CHAHTA....