Monday, August 31, 2009


सीएम ने स्थिती को कंट्रोल में बताया


मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सीतामढ़ी और शिवहर में आई बाढ़ का हवाई दौरा किया।हालिया स्थिती के जाएज़े के बाद सीएम ने स्थिती को कंट्रोल में बताया।और कहा कि प्रशासन पिड़ितों की बेहतरी के लिए वॉर फुट पर काम में लगा हुआ है।

इतनी जद्दोजहद बाद भी बिहार को अभी तक तो विशेष राज्य का दर्जा नहीं ही मिला।केन्द्र से आई टीम के सर्वेक्षण के बाद भी,अधिकारी कनविन्स तो दिखे लिकिन रिज़ल्ट कुछ दिख नहीं रहा।केन्द्र में कांग्रेस के सौ दिन पूरे हो गए।लेकिन सुशासन के तराज़ू पर केंन्द्र का रवैया खरा नहीं उतरा।बिहार को साफ़ ही नेगलेक्ट किया जा रहा है।
एक बात तो साफ़ है कि इस प्रजातंत्र में जनता की बेहतरी सत्ताधारियों की प्रथमिकता नहीं।और ना ही गंभीर नैशनल इशूज़ पर सीएम और केंद्र के बीच सामंजस्य की ही कोई स्थिती।ऐसे में कौमन आदमी की विपरीत परिस्थियों में सहारा आखिर है कौन ये एक बड़ा सवाल है।

राष्ट्रीय खेलों की तैयारी


झारखंण्ड में इन दिनों 34 वें राष्ट्रीय खेलों की तैयारी जोरों पे है। इसे ध्यान में रखते हुए राज्यपाल के सलाहकार टी.पी. सिन्हा ने मेगा स्पोर्ट्स कॉम्पेक्स एकुएटिव का उद्घाटन किया।
नवंबर के महीने में झारखण्ड में 34 th नैशनल गेम्स होने हैं। इसे लेकर तैयारियां भी जोरों पे हैं। इसे ध्यान मे रखते हुए राज्य तैराकी संघ ने तैयारियां शुरु कर दी हैं। इसी क्रम में होटवार स्थित मेगा स्पोर्ट्स कॉम्पेक्स में राज्य स्तरीय तैराकी प्रतियोगिता का आयेजन किया गया जिसमें कई जिलों के खिलाड़ी भाग ले रहें हैं। संघ का मानना है कि इससे अच्छे खिलाड़ी मिल पाएंगे
वहीं उद्घाटन समाहरोह मे पहुचे राज्यपाल के सलाहकार टी.पी सिन्हा ने कहा कि ऐसे आयोजनों से खिलाड़ियों का हौसला बढ़ेगा।
वैसे तो 34वें राष्ट्रीय खेलों को होनो मो अभी कुछ महीने बचे हैं। ऐसे में इस तरह के आयोजन राज्य के खिलाड़ियों के लिये काफी इम्पौर्टेंट साबित होंगे।

जाति पर तौले जा रहे बेऊर का कपल

अपने घर-परिवार की नसीहतों को दर-किनार करके शादी करने वाला ये है बेऊर का एक कपल।मखदुमपुर गांव के इस जोड़े ने जाति की बड़ी दीवार तोड़कर एक दूजे का साथ निबाया।हांलाकि लड़की के घर के लोगों के प्रथमीकि दर्ज कराने के बाद इनको पुलिस ने ऐरेस्ट कर लिया है।इतना कुछ होने के बाद भी ये दोनों साथ जीने मरने की क़समें खा रहे हैं।

नौबतपुर में नानी के पास रहते नीरज का परिचय अंजू से हुआ।धीरे-धीरे परिचय प्यार में बदला।और फिर क्या था सात जन्मों तक साथ रहने के वादे हो गए।सारी बाधाओं को लांघकर पिछले दिनों दोनों ने भागकर आरा के एक मंदिर में शादी कर ली।

कहानी में ट्विस्ट तब आया जब लड़की के घर वालों ने बेऊर छाने में अपहरण का मामला दर्ज कराया।दोनों ऐरेस्ट तो हो गए।लेकिन अब लड़की ही अपनी मां पर आरोप लगा रही है।अंजू का कहना कि उसकी मां उसे दूसरे व्यक्ति के पास बेचने की फिराक में है।इन बातों से पशोपेश में पड़ी है पुलिस।हांलाकि कुछ आरोपियों को न्यायालय भेजा गया।

ऐक्चुल मामला क्या है ये तो साफ़ होगा कुछ समय के बाद।लेकिन ये तो विडंबना ही है कि जाति पर तौले जा रहे इस कपल के प्यार को घर बसाने खुशियां तो नसीब नहीं हो रहीं ,मजबूरन जेल की हवा जंरूर खानी पड़ रही है।

किडनैपिंग ग्राफिक्स

बिहार में क्राइम रूकने का नाम नहीं ले रहा है। पुलिस की लाख कोशिशों के बावजूद भी अपराधी कहीं न कहीं वारदातों को अंजाम देकर हो जा रहे हैं फरार। राजधानी पटना भी अब नहीं है सेफ। अपराधियों ने अपना ठिकाना बना लिया है पटना को। अपराधियों के सॉफ्ट टारगेट पर होते हैं बिजनेसमैन और छोटे-छोटे स्कूली बच्चे। जी हां, हम बात कर रहे हैं किडनैपिंग की। नब्बे के दशक में किडनैपिंग ने ले लिया था एक इंडस्ट्री का रूप। बिहार में सक्रिय ज्यादातर गैंगों ने लूटपाट छोड़ किडनैपिंग को ही बना लिया अपना मुख्य धंधा। आइए एक नजर डालते हैं...अब तक के किडनैपिंग केसों पर। 2001 में किडनैपिंग के 1689 मामले दर्ज हुए थे जिसमें रेनसम के लिए 385 मामले सामने आए थे। 2002 में 1948 किडनैपिंग मामले दर्ज हुए थे जिसमें रेनसम के लिए 396 केस दर्ज हुए थे। वहीं 2003 में 1956 मामले दर्ज हुए थे जिसमें 335 मामले रेनसम के थे। 2004 में 2566 मामले किडनैपिंग के सामने आए जिसमें रेनसम के लिए 411 केस दर्ज हुए थे। 2005 में किडनैपिंग के 2226 मामले सामने आए जिसमें रेनसम के लिए 251 केस दर्ज हुए थे। वहीं 2006 में किडनैपिंग के 2301 मामले सामने आए जिसमें रेनसम के लिए 194 मामले सामने आए। जहां 2007 में किडनैपिंग के 2092 केस दर्ज हुए जिसमें रेनसम के लिए 89 मामले सामने आए। वहीं 2008 में किडनैपिंग के 2735 केस दर्ज हुए जिसमें 66 मामले रेनसम के थे। 2009 में टोटल किडनैपिंग के 1505 मामले सामने आए जिसमें 38 केस रेनसम के दर्ज हुए।
भारत और नेपाल के इन लोगों को सड़क पर

रोजी-रोटी के सवाल ने भारत और नेपाल के इन लोगों को सड़क पर उतरने को मजबूर कर दिया है। दो जून की रोटी जुटाने के लिए इन लोगों को सीमा पार करने की जरुरत होती है। पर एसएसबी के जवानों की गलत नीति ने इनका जीना मुहाल कर रखा है। एसएसबी के जवानों की मनमानी के विरोध में ये लोग बन्द और सड़क जाम कर प्रदर्शन कर रहे हैं।
वहीं एसएसबी के सिनियर अधिकारी खुद पर लगाए गए आरोपों को सिरे से नकार रहें हैं। उसका कहना है ये महज उन्हें बदनाम करने की साजिश है और एसएसबी के जवान सिर्फ अपनी ड्यूटी कर रहे हैं
एसएसबी के अधिकारी चाहे जो भी कहें, धुआं वहीं उठता है जहां आग होती है। कुछ जवानों के कारण पूरी एसएसबी बदनाम हो रही है। ऐसे में एसएसबी के अधिकारीयों को इस मामले को गंभीरता से लेते हुए उन जवानों पर कड़ी कारवाई करने की जरुरत है।
रांची में जिस्म का बाज़ार

झारखंड की राजधानी रांची में सज रहा है जिस्म का बाजार। जी हां, यहां के पार्लरों में हो रहा है जिस्म का सौदा। दरअसल रांची के लालपुर इलाके में काफी दिनों से जिस्मफरोशी का धंधा चल रहा था। जिस्मफरोशी का ये धंधा कारोबार का रूप लेते जा रहा था। इलाके के लोगों ने पहले भी पुलिस में इसकी शिकायत की थी। लेकिन अब तक इस धंधे को बेनकाब करने में पुलिस नाकाम रही थी। हालांकि पुलिस पूरी मु्स्तैदी से इस धंधे पर नजर रख रही थी लेकिन उसके हाथ कोई क्लू नहीं लग रहा था। तभी पुलिस को खबर मिली कि मेंस ब्यूटी पार्लर में कुछ लोग गलत काम कर रहे हैं। पुलिस ने जब इस सूचना पर ब्यूटी पॉर्लर में छापा मारा तो वहां भगदड़ मच गई। पुलिस ने वहां से कई लड़के-लड़कियों को आपत्तिजनक अवस्था में गिरफ्तार किया है।

Sunday, August 30, 2009


कोसी का उद्गम और सत्कौशिकी क्षेत्र



कोसी का उद्गम मध्य -पूर्व हिमालय के विशाल हिमनदों से हुआ है । इनकी सात धाराओ मंे सबसे पश्चिम इन्द्रावती है और इसके बाद क्रमश पूरब की ओर सुन कोसी, तामा कोसी, लिक्खु या लिक्षु कोसी ; दूध कोसी, अरूण कोसी तथा तमर कोसी की धाराएॅ हैं । सप्तकौशिकी की धाराओं का क्षे़त्र पष्चिम संे पूर्व 248 किलोमीटर और दक्षिण से उतर मंें 150 किलोमीटर तक विस्तृत है । सप्तकौषिकी में सबसे बडा प्रवाह मार्ग अरूण कोसी का है इसके बाद सबसे लंबी धारा सुन कोसी की है तथापि सुन कोसी को ही मुख्य कोसी नदी मानी जाती है कोसी के सात धाराअेा के संगम हो जाने पर ,इसका नाम महा कोसी हो जाता है महाकेासी को नियंत्रित करने के लिए 1965 में भीमनगर में बराज बनाया गया । बराज के फाटकों से महाकोसी के पानी को दो तटबंधो के बीच छोडा जाता है । यही महाकोसी कुरसेला के पास गंगा से संगम करती है । सत्तकौषिकी की धाराओें में सबसे पूरब तामर कोसी है । यह तामर कोसी महाभारतकालीन तामा्र नदी हो सकती है । कंचनजधा के हिम सरोवरांे से तामर कोसी का उद्भव हुआ है । तामर कोसी अपने उद्गम स्थान से संगम तक लगभग 153 किलोमीटर का प्रभाव मार्ग बनाती है । इसका हिमनद क्षंेत्र 256 वर्गमील मेें फैला है जिसका विस्तार वर्षा के समय मेें 20 हजार वर्ग मील हो जाता है तामर कोसी अपनंे उद्गम स्थल से प्रथम दक्षिण की ओर चलकर मची अंचल मेे प्रवेष करती है । प्रवाह मार्ग में कई हिमनदांे से संगम करती हुूइ कोसी अंचल के बसंतपुर जिला मुख्यालय की बगल से बहती हुई धनकुटा पहुचती है धनकुटा के दक्षिणी भाग से होती हूइ पष्चिम दिषा में मुड जाती है यही मोलू घाट होते हूए सुन केासी और अरूण कोसी की सयुक्त धारा के साथ त्रिवेणी संगम पर अपने को विलीन करती र्है


बैंक फ्रेंडली


आरबीआई ने पूरे किए 75 साल।और ज़ेहन में आया एक नेक विचार ।कि किया जाए गांवों में बैंकों का प्रचार और इन भोले भाले लोगों को भी बनाया जाए ऐकाउन्ट और बैंक फ्रेंडली।खा़सतौर पे इनको बताया जाए ऐटीऐम कार्ड के बारे में। सो ये अधिकारी चल पड़े सूबे के सबसे गरीब गांव की ओर,बांका बौसी प्रखंड के रतनसार गांव।शुरूआत हुई रंग से सराबोर सांस्कृतिक प्रोग्रामों से।
अब इसमें आपने सोचा होगा कि ई तो एक बढ़िया पहल है।लेकिन तमाम सुविधाओं से महरूम,हालात से लाचार और सरकार की उपेक्षा झेल रहे इन ग्रामीणों को क्या सचमुच ऐटीऐम जैसे हाई फंडे की ज़रूरत है।क्या ये गांव की कच्ची सड़कों पे मीलों नंगे पैर चलकर एटीए से पैसे निकालने जाएंगे।घर में खाना नहीं,जेब में पैसा नहीं,देह पर पूरा कपड़ा नहीं और बगल में एटीएम कार्ड।कुछ अटपटा नहीं लगता। इस पूरे कार्यक्रम के बाद इन ग्रामीणों को समझ में क्या आया ये ज़रा आप भी सुनिये।
अभी तो यहां की जनता लाल और पीला कार्ड ही समझती है क्योंकि ये इनकी लाइफ़ से सीधा सरोकार रखता है।आरबीआई इन्हें अगर ग्रमीण योजनाओं,किसानों के लिए लोन सुविधाओं के बारे में विस्तार से बताती तो शायद इनके लिए आज के हालात में ज़्यादा साभप्रद होता।अभी तो ज़रूरत है इन्हें भोजन,जल,आवास और शिक्षा जैसी बुनियादी चीज़ों की।कहां हम इन भारी भरकम चीज़ों को इन सादे लोगों पर थोपने चले हैं।


ज़मीन को बचाने के लिए


ये है झारखंड के खूंटी जिले का तोरपा गांव।यहां के लोगों को डर है,कि कहीं सरकार इन लोगों से इनकी ज़मीन छीन कर बड़े कंपनियों के हवाले न कर दें ।यही वजह है की यहां के लोग गोलबंद हो रहे है।इस गांव में आम सभा बुलाई गई है और उनका मकसद है अपने ज़मीन को बचाना।जी हां यहां के लोग जल जंगल और ज़मीन की लड़ाई लड़ रहे है।इनको डर है की अगर सरकार इनकी ज़मीन कारखाने लगाने के लिए कंपनियों को देती है तो इसके बदले उन्हें अश्वासन के अलावा कुछ भी नही मिलेगा।और यही वजह है कि ये सब अपनी ज़मीन को बचाने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार है।

हैरत की बात यह है कि पिछले पांच सालो में सरकार ने देश की नामी-गिरामी कंपनियो के साथ सौ से भी ज्यादा MOU किए मगर किसी समझौते से पहले वहां की ग्राम सभा या पंचायत से कोई भी राय नही लिया गया।जिससे नाराज़ होकर ग्रामीनों ने पोटका में ज़िदल और भूषण के स्टील प्लांट लगाये जाने का विरोध किया।
गौरतलब है कि पिछले चार साल मे झारखंड सरकार ने दो लाख करोड़ का MOU किया है जिसमें मित्तल ,जिंदल,टाटा,जैसे बड़े निवेशक भी शामिल हैं।लगभग पचास MOU के बावजूद मात्र आधे दर्जन कंपनियों ने ही अपना काम शुरु किया हैबाकि का काम ज़मिन विवाद को लेकर अटका पड़ा है।वजह साफ है,सरकार ने अभी तक विस्थापितों के लिए कोई ठोस नीति नहीं बनाई है।

प्रतिमा लगाकर ड्यूटी पूरी


साधारण से दिखने वाले इस घर में एक बहुत ही खास परिवार रहता है। अमर शहीद ठाकुर विश्वनाथ साहदेव का परिवार। विश्वनाथ साह देव अंगरेजों से लड़ते-लड़ते शहीद हो गये। और उनका परिवार आज गरीबी और तंगहाली से लड़ रहा है। सरकार इन्हें आश्वासन तो देती है, लेकिन करती कुछ भी नहीं है
देश को आजाद करने में हंसते हंसते शूली पर चढ़ने वाले शाह देव की संपत्ति भी सरकार और आम लोगो ने हथिया ली है . शहीद के उत्तराधिकारी सरकार से बार बार मांग कर रहे है की उनकी संपत्ति ही उन्हें वापस कर दी जाये. सरकार से उन्हें ज्यादा कुछ नहीं चाहिए .

लगता है सरकार ने शहीद ठाकुर शाह देव की एक प्रतिमा लगाकर अपनी ड्यूटी पूरी कर ली। जबकि उनके उत्तराधिकारी आज भी उपेक्षित हैं।
अब सवाल यह उढ़ता है की क्या शहीद ठाकुर साह देव ने इसी आजादी का सपना देखा होगा जहां उनके परिवार के लोग ही बदहाली में जीने के लिए मजबूर होंगे।

नक्सलियों ने बर्बाद कर दिया


लेवी की मांग को लेकर माओवादियों ने कई जगहों के अलावा हज़रीबाग –कोडरमा और रांची-लोहरदगा कोरी रूट को तोड़ने वाले काम को रोक दिया है। इस कारण साल 2007 तक पूरा होने वाली इस परियोजना का आधा काम भी नहीं हो पाया है.....इस परियोजना की शुरुआत तत्कालीन पीएम अटल बिहारी वाजपेयी ने किया था....हम आपको बता दें कि कोडरमा,गीरिडीह,हजारीबाग के लोगों ने ये आश लगा रखी है कि कब इस इलाके से ट्रेन गुजरेगी....लेकिन अभी तक कई बुनियादी काम नहीं हो पाया है..इस काऱण आने वाले 2-4 सालों में भी इसके पूरे होने की संभावना कम ही दीखती है....इस वजह से यहां के लोगों में काफी मायूसी है....
सवाल ये है कि आखिर ये परियोजना अब तक क्यों नहीं पूरी हो पायी है....इसके कारण तो कई हैं लेकिन मेन वजह है कि....नक्सली हमला...आये दिन निर्माणाधीन ट्रैक पर होता है....नक्सलियों का हमला...कई बार ठेकेदारों के मशीन को आग के हवाले कर दिया जाता है...यहां बतातें चलें कि अब तक लगभग 15 करोड़ की संपत्ति को नक्सलियों ने बर्बाद कर दिया है....इस कारण कोई भी ठेकेदार यहां काम करना नहीं चाहता है...और तो और नक्सलियों का खौफ ठेकेदारों में इस कदर व्याप्त है कि वो कैमरे के सामने भी आने से कतरते हैं....
पुलिस के बड़े आलाअधिकारी भी मानते हैं कि इस प्रोजेक्ट में दिक्कतें आ रही हैं.....
नक्सली ही इस परियोजना के मेन अवरोध बने हुये हैं..... लोग केवल उम्मीद कर रहे हैं...कि सारी रुकावट दूर हों और रेल प्रोजेक्ट जल्द से जल्द पूरा हो....

नरमुंडों की तस्करी


यहां ये कैसी भीड़ है.....आखिर क्या हो रहा है यहां....लोगों का हुजूम मानो टूट पड़ा हो....जो जिस हाल में था इधर की तरफ चल पड़ा.....चलिये हम आपको बताते हैं...जी हां...यहां लोग नरमुंडों के दर्शन के लिये जमा हुये हैं.....दरअसल रामनगर थाना की पुलिस ने छापामारी कर सात लोगों को गिरफ्तार किया है...इसके साथ ही तीन नरमुंडों की बरामदगी भी की है.....
हम आपको बता दें कि इन दिनों राज्य में नरमुंडों की तस्करी बड़े पैमाने पर चल रही है....पुलिस भी इस बात से इंकार नहीं कर रही है...पुलिस इस तरह के गिरोह के भंडाफोड़ के लिये बहुत दिनों से दबिश दे रही थी....कयास तो ये भी लगाया जा रहा है कि...इस गिरोह का संबंध न सिर्फ देश के बड़े गिरोह के साथ बल्कि विदेशी गिरोह से भी हो सकता है.....
नरमुंडों की मांग बड़े-बड़े शहरों में बढ़ती जा रही है...इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि नरमुंड का प्रयोग दवा बनाने में किया जाता है और इसके अलावे तंत्र-मंत्र के लिये भी इसका प्रयोग धड़ल्ले से होता है.....यही कारण है कि तस्करों के लिये नरमुंडों का सौदा बड़े ही मुनाफे का सौदा होता है...इस गिरोह के भंडाफोड़ से कुछ हद तक इसपर लगाम जरुर लगेगी.....
चूल्हा नहीं जल रहा है....

एक तरफ बेरोजगारी का बढता दंश....महंगाई...सातवें आसमान पे....पूरा सूबा सूखा ग्रस्त घोषित किया जा चुका है....बावजूद इसके....लोग भूखों मरने को बेबश हैं....इस सबके बीच...मृत पड़ी ये हाईटेंशन फैक्ट्री....जो कभी हजारों लोगों को रोजगार देती थी...वो आज बंद पड़ी हुई है....इसमें काम करने वाले कर्मचारी सब्जी तक बेचने को मजबूर हैं....जिनके पास घर है..उनके यहां चूल्हा नहीं जल रहा है....और जो किराये पे रह रहे हैं...उनको तो घर छोड़ने की नौबत आ गई है....
इस विशाल इमारत का दाम जानकारी के अनुसार सरकार ने 7 करोड़ लगाया है।क्योंकि यह नामकुम में बन रहे हाइवे के पास है। जानकारी के अनुसार सरकार इसपे 2 करोड़ की निकासी भी कर चुकी है। पिछले 13 साल से बेना वेतन यहां का स्टाफ़ की अब बिल्कुल ही दयनीय स्थिती बन गई हगै। कई कर्मचारी तो जान भी गवां बैठे हैं। लेकिन सरकार कान में रूई स कर और आंख पे पट्टी बांधे बैठी है।
पूर्व सीएम अर्जुन मुंडा के कार्यकाल में इसे फिर से शुरू करने की कोशिश की गई थी। लेकिन जो भी कारण रहा हो,कामयाबी नही मिली।और फिर राजनैतिक इच्छा शक्ती की कमी के कारण.... ये फिर से अंधेरों से जूझती नज़र आ रही है। एक तरफ़ झारखंड बिजली बोर्ड अपने उपकरण बाहर के राज्यों से मंगा रहा है जबकि प्रदेश में इसके विकल्प मौजूद हैं। इस सरकारी उदासीनता में भी यहां का स्टाफ़ उम्मीद के सहारे इंतज़ार कर रहा है।

Friday, August 21, 2009

जंगलों में जीवन

झारखंड के इन जंगलों में जीवन सालों से फल-फूल रहा है।लेकिन प्रकृति की गोद में खेलते इस जीवन को कई बार वन अधिकारियों द्वारा विस्थापित करने की कोशिश की गई है।सालों के संघर्ष के बाद अब जाकर इन बस्तियों में उम्मीद जगी है कि शायद अब इन्हें सरकार द्वारा ज़मीन के पट्टे दे दिए जाएं।
केन्द्र सरकार ने कई माह पहले ही इन आदिवासियों को ज़मीन के पट्टे देने का कानून बनाया था।लेकिन अब जाकर इसपे कार्रवाई होने जा रही है।झरखंड में सरकार ने वन अधिकार कानून के प्रचार प्रसार का निर्देश देते हुए हकदारों को वन पट्टा अविलंब देने को कहा है।
इतनी मशक्कत के बाद यहां रह रहे लोगों को इनका हक मिलने के आसार तो दिखे हैं ।लेकिन अब भी इन्हें डर है कि कहीं फॉरेस्ट अधिनियम इनकी ज़मीन और सरकार के फैसले के बीच ना आ जाए।इस अधिनियम को कितने कारगर तरीके से सरकार यथार्थ की ज़मीन पर उतारती है देखने वाली बात होगी।
रेप करना चाहा

पटना के पालीगंज में एक लड़की के साथ दुष्कर्म की
खबर मिलते ही पुलिस मौका-ए-वारदात पर पहुंच गई।
पुलिस ने घटनास्थल का चप्पा-चप्पा खंगाल डाला। पुलिस
को तलाश थी उन तीन युवकों की जिस पर लगा था
दुष्कर्म का इल्जाम। दरअसल पीड़िता गाड़ी पकड़ने के
लिए खड़ी थी तभी तीन युवक आए और उसे खींच कर ले
गए कमरे में.... और करना चाहा उसके साथ रेप। हालांकि
वो अपने नापाक मंसूबे में कामयाब नहीं हो पाए
पुलिस ने पीड़िता के बयान पर तीनों आरोपियों के
खिलाफ मामला दर्ज कर कार्रवाई शुरू कर दी है। पुलिस
ने इस मामले में एक आरोपी को गिरफ्तार कर सलाखों
के पीछे भेज दिया है और फरार आरोपियों की तलाश
में जगह-जगह छापेमारी कर रही है।
हालांकि गिरफ्तार आरोपी अपने ऊपर लगे आरोपों को बेबुनियाद बता रहा है। उसका कहना है कि उसे झूठे मुकदमे में फंसाया जा रहा है।
पुलिस की हैवानियत

एक बार फिर कुछ पुलिसवाले इंसानियत की हद को पार कर गये। घटना दुमका की है, जहां एक मेंटली रिटार्डेड आदमी को पुलिसवालों ने हाथ पैर बांध कर पीटा । इस घटना के बाद चार पुलिसकर्मी को निलंबित कर दिया गया है।
पुलिस की हैवानियत का शिकार ये शख्स कोई अपराधी नहीं है, बल्कि थोड़ा मेंटली रिटार्डेड रामविलास है। फिर भी पुलिस इस पर अपनी मर्दानगी दिखाने में कोई कसर नहीं छोड़ रही है। ये आजाद हिन्दुस्तान की खौफनाक तस्वीर है।
दरअसल दुमका के दुम्मा गांव में दो पक्षों के बीच विवाद होने के बाद पुलिस रामविलास सहित आधे दर्जन लोगों को पकड़ कर थाने ले आई। रामविलास की बीमारी के बारे में पता चलने पर पुलिसवालों ने उसे अस्पताल में भर्ती करा दिया। जहां रामविलास पुलिस पर हाथ उठा दिया। जिसके बाद गुस्साये पुलिसवाले बेकबू हो गये। और फिर शुरू कर दिया दरिंदगी का घिनौना खेल।
हर चीज़ की इंतहा होती है, लेकिन इन बेशर्मों को देखकर तो लगता है कि बेरहमी की इंतहा नहीं होती । तभी तो ये लोग मेंटली रिटार्डेड एक आदमी को जानवर की तरह मार रहे हैं। देखिये किस तरह से ये लोग मिलकर एक बेबस को खामोश करने के लिए इंजेक्शन दे रहा है। इंसान का ये चेहरा देखकर आज जानवर भी खुश हो रहा होगा कि चलो हम तो भला जंगल में रहते हैं और जंगली कहलाते हैं।
कहते हैं कि दर्द का हद से गुजर जाना है दवा होना। और धीरे – धीरे दर्द के आगोश में जाता रामविलास कुछ देर के लिए खामोश हो गया....लेकिन इस सब के बीच एक सवाल छोड़ गया कि आखिर कब तक बेरहमों के हाथों इंसानियत शर्मशार होती रहेगी..........
तटबंध टूट गया
.
सूबे के सीतामढ़ी जिले के समीप रूनी सैदपुर प्रखंड के तिलक ताजपुर गांव में शनिवार तड़के बागमती नदी पर बने तटबंध का दाहिना हिस्सा टूट गया है जिससे 40 से अधिक गांवों में पानी प्रवेश कर गया है . जिलाधिकारी विश्वनाथ सिंह ने आज यहां बताया गया कि नेपाल के जलाग्रहण क्षेत्रों में पिछले कई दिनों से जारी वर्षा के बाद भारी मात्रा में पानी छोड़े जाने से सीतामढ़ी जिले के रून्नी सैदपुर प्रखंड तिलक ताजपुर गांव स्थित बागमती नदी का दाया हिस्सा तड़के साढ़े पांच बजे करीब 10 फुट की लंबाई तक टूट गया . पानी के भारी दबाव के कारण टूटे तटबंध की लंबाई लगातार बढ़ती जा रही है . अब तक तटबंध लगभग 70 मीटर टूट कर नदी में विलीन हो चुका है . तटबंध टूटने के कारण रून्नी सैदपुर प्रखंड के 40 से अधिक गांवों में नदी का पानी प्रवेश कर गया है . तेज बहाव के कारण नदी का पानी तेजी से नये इलाको मे भी प्रवेश कर रहा है . ग्रामीण लगातार सुरक्षित स्थानो की ओर पलायन को मजबूर हैं . हालांकि तेज बहाव के कारण उन्हे सुरक्षित स्थानो पर पहुंचने मे भारी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है . इस बीच मामले की गंभीरता को देखते हुए
बेड़ियों में जकड़ी मां

ऐसी मां की दास्तान, जिसके लिए आजादी शब्द, महज एक मजाक है। भारत मां को आजाद हुए भले ही 62 साल हो गये, लेकिन एक मां आज भी बेड़ियों में जकड़ी हुई है। ये अभागिन मां रहती है रामगढ़ में, जिनको आज भी इंतजार है स्वतंत्रता की।
अभागिन मां की आंखे खोज रही है एक ऐसे हाथ को जो इसे आजाद कर सके। ये महीनो से बेड़ियों में जकड़ी हुई है। जब गैरों ने भारत मां को गुलामी की जंजीर में जकड़ा था तो उसे आजाद कराने के लिए, उसके लाखों बेटों ने कुर्बानी दी थी, लेकिन आज एक बेटे ने ही अपनी मां को जंजीर में जकड़ दिया है,, ऐसे इस मां को आखिर कौन आजाद करायेगा..
कहते हैं कि दर्द का हद से गुजर जाना है दवा होना। और अपने दर्द को दवा बना चुकी ये लाचार मां आज स्वतंत्रता का इंतजार कर रही है। ये आजाद हिन्दुस्तान की वो कड़वी तस्वीर है, जो हमें अपनी सच्ची आजादी का आइना दिखा रही है। सवाल है कि गांधीजी ने जो आजादी का सपना देखा था, क्या उसकी यही हकीकत है ?

Thursday, August 20, 2009








कहवां भुलाइल मोतिया हो रामा............
(बिस्मिल्लाह खां के पुण्यतिथि 21 अगस्त पर विषेष)
---मुरली मनोहर श्रीवास्तव
एही मटिया में भुलाइल हमार मोतीया हो रामा.......जैसी अनेको लोक परंपरा वाली भोजपुरी गीत पर शहनाई की धुन को छेड़ने वाले शहनाई उस्ताद को भोजपुरी के विकास का संवाहक कहा जा सकता है। संसार के कोने-कोने में अपनी शहनाई की स्वर लहरियां बिखेरने वाले बिस्मिललाह खां आज भले हीं हमारे बीच नहीं हैं। मगर उनके द्वारा सात सुरों की संगिनी में छेड़ी गई स्वर लहरियां आज भी सबके जेहन में रच बस गई है।
आपसे हमको बिछड़े हुए एक जमाना बीत गया.......और आज भी दिल को दहला देता है वो बीता पल। 21 अगस्त 2006 को रात के 2-20 मिनट पर वाराणसी के हेरिटेज अस्पताल में शहनाई की सुर थम गई। हमेषा को सो गये षहनाई के पीर उस्ताद बिस्मिल्लाह खां। रह गई तो बस उनकी यादें और उनके बजाए धुन।
भोजपुरी गीत और मिर्जापुरी कजरी को बाखूबी शहनाई पर बजाने वाले उस्ताद गंगा-जमनी संस्कृति, हिन्दू-मुस्लिम दोनों धर्मों के बीच के सेतू बड़े सहज भाव के थे। जिन्हें अपने वतन से बेहद प्यार था। तभी तो लाख विदेषों में बसने की बातें भी उस सख्श को बिचलित नहीं कर पाई। बिहार में जन्में, उत्तर प्रदेष से पूरे विष्व को शहनाई की धुनों से परिचित कराने वाले शहनाई उस्ताद बिस्मिल्लाह खां पर आज भले ही जो राजनीतिक गोटियां सेंकी जाए। मगर वो महापुरुष उन दुर्भावनाओं से परे थे।
21 मार्च 1916 को गरीबी और जलालत की जिन्दगी जीने वाले उस्ताद का जन्म बिहार के बक्सर जिले के डुमरांव में हुआ था। कमरुददीन को अब्बा जान पैगम्बर बख्श उर्फ बचई मियां बड़ा अधिकारी बनाना चाहते थे। मगर इन्हें पढ़ाई में कोई रुची नहीं थी। तभी तो महज चैथी तक ही किसी तरह पढ़ाई कर पाए। अब्बा जान डुमरांव राज में दरबारी वादक हुआ करते थे। घर में इस माहौल को देखकर- सुनकर बालक कमरुद्दीन एक दिन शहनाई का बादशाह बन बैठा। दस वर्ष की अवस्था में अपने मामू अली बख्श के साथ वाराणसी जा पहुंचे। 14 वर्ष की उम्र में Allahabad me शहनाई वादन कर पीछे मुड़कर देखने का मौका ही नही मिला। अपनी जिन्दगी में कमरुद्दीन ने बहुत उतार-चढ़ाव देखी। वक्त से पहले मामू अली बख्स की मौत ने इन्हें झकझोर कर रख दिया। इस दर्द से उबर भी नहीं पाए थे कि बड़े भाई शम्सुद्दीन की मौत से टूट गए। इनकी शहनाई धुन छेड़ना भुल गई। बस रह गई इनके पास तो दर्द भरी यादें.....
उस्ताद के उपर पुस्तक लिखने के दरम्यान मुझे उनके सानिध्य में काफी वक्त बिताने का मौका मिला। बहुत कुछ सीखने को मिला। फर्ष से अर्ष तक के सफर तय करने वाले उस्ताद ने गरीबी में भी अपने पैतृक जमीन को नहीं बेची। लेकिन इस वक्त उनका पैतृक जमीन बेचे जाने की चर्चा सुनने में आ रही है। इसमें कितनी सच्चाई है यह तो नहीं पता। लेकिन यह चर्चा आम जनता से लेकर सरकार तक के मुंह पर किसी थपड़ से कम नही है। लालू से लेकर नीतीष कुमार ने सिर्फ घोषणाएं की। आज वो बंजर पड़ी है......विरान पड़ी खंडहर वाली वो जमीन आज भी अपने शहनाई के पीर को पुकार रही है।
(लेखक उस्ताद पर पुस्तक लिख चुके हैं)
मो.नं.9234929710] 9430623520

Saturday, August 15, 2009



सबसे ज्यादा जल संकट


मानसून में देरी के कारण देष मेें जल संकट लगातार बढ़ते जा रहा है बिहार ,उतरप्रदेष ,पंजाब ,हरियाणा , आध्रप्रदेष तथा उडीसा आदि राज्यों में पानी की भारी कमी हो गई । पानी के लिए हाहाकार है । एक तरफ सावन के सूखा - सूखा निकल जाने के बाद लोगो की पानी के लिए
लोगो की आॅखे बरसने लगी है पानी के कमी के कारण किसान पषुओं को औन पौने भाव में बेच रहे है । नहर पोखर तालाब सूखे पडे । अधिकतर चापाकल सूखे पडे है कही कही लोगो को पीने के पानी के लिए गाॅव के लोग लाईन लगा के खडा रहते है । और राजकीय नल कूप बंद पडे है लोगो का स्नान किऐ और कपडा़ धेाऐ हुए कई कई दिन बित जा रहा है कही कही पानी के कारण बंदूके भी गरजी ।
मानसून की बारिष सही से नही होन के कारण फसल पर असर
इस साल किसानो पर इंद्रदेव का कहर एकतरफा किसानो पर पड़ा है पानी के लिए इद्रदेव का आस लगाए किसानो का अब संयम अब टूट गया है । मौसम की बेरूखी तथा पर्याप्त सिंचाई अभाव मेे किसानेां सूखे की दांेहरी मार झेल रहे है


2009 सदी का सबसे बडा़ सूखा


वितमंत्री प्रणव मुखर्जी ने देष मे पडे सूखे को सदी का सबसे बडा़ और भयानक सूखा करार दिया है ं। मुखर्जी ने कहा कि मानसून की बेरूखी से सरकार बेहद चिंतित है हालात से निपटने के लिए केन्द्र तैयार है देष में 1987 के बाद ऐसा सूखा देखा जा रहा है केन्द्र सरकार ने 167 जिलो को सूखाग्रस्त घोषित कर दिया है इसमे बिहार के 26 , असम के 27 जिले झारखण्ड के 24 जिले ,उतर प्रदेष के 20 से अधिक अलावा महाराष्ट्र की 129 तहसीले ष्षामिल है । उतर भारत में सूखे की मार ज्यादा पडी है इसकी वजह से खरीफ फसलोें की बंुआई में बीस प्रतिषत की गिरावट आई है धान की रोपाई के क्षेत्र मेें 60 लाख हेक्टयर से ज्यादा की कमी आई है सूखे के कारण अनाज की पैदावार में कमी तय है गा्रमीण अंचलो में हालात अधिक भयावह होगें । हालांकि सरकार के पास इस संकट से निपटने केे लिए पर्यात्त संसाधन मौजूद है
अकालग्रस्त भारत की दास्तान

मानसून ने एक बार फिर धोखा दिया । मानसून पर अपनी निर्भरता के कारण किसी अन्य देष की तुलना मेें भारत मंे फसल पैदावार में कमी अथवा सूखे की संभावना हमेषा से बनी रहती है । जिसके कारण सदियांे से भारत में अकाल जैसी स्थिति बनती रही है । भारत में 11 वीं और 17 वीं ष्षताब्दी के बीच 14 बार अकाल पडे़ 1022 -1033 के बीच आये भीषण अकाल की वजह संे जनसंख्या का गणित बिगड़ गया । वहीें 1702 -1704 के दौरान डेक्कन मेे आये अकाल के कारण तकरीबन 20 लाख लोगेा की मौते हुई । ष्षुरूआती दौंर मेें स्थान विषंेष के आधार पर अकाल की स्थिति देखी जाती थी । लेकिन ब्रिटिष हुकूमत के दौरान 1860 के पष्चात देष मंें अनाज की कमी स्पष्ट देखी गयी । 19 वी सदंी के मध्य कई राज्यों जिनमंे तमिलनायडु ,बंगाल , और बिहार प्रमुख मेें 25 बार बडे़ अकाल पडे़ ़नोबेल पुरस्कार विजेता अमत्र्य सेन के अनुसार अकाल की प्रमुख वजह बारिष की अनियमितता थी ।
1770 में बंगाल में आये भीषण अकाल ने करीब एक करोड़ की जान ली थी । जो बंगाल की कुल जनसंख्या की एक तिहाई थी । देष मेेें 1876-1878 में आयंे अकाल में 61 लाख से अधिक लोगेां की जाने गयी । जबकि 1899 -1900 के बीच में आये अकाल में एक करोड लोग मारे गयंे । अकाल की स्थिति स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भी बनती रही । 1943 -44 के दौरान बंगाल में आये अकाल में तकरीबन 15 से 30 लाख लोगों की मौत हो गयी , जबकि इसमें किसी फसल पैदावार में कमी की भी खबर नही थी । 1880 मेंे गठित आयेाग ने अपनी रिर्पोट में कहा कि इसके लिए आनाज का वितरण अधिक जिम्मेवार था । इसके बाद 1996 में बिहार में अनाज की कमी देखी गयी इस समय संयुक्त राष्ट्र संघ की ओर से इस अकाल से निपटने के लिए 9 लाख टन अनाज प्रदान किया गया । तीन साल के दौरान भूखमरी और बीमारियेा के कारण तकरीबन 15 लाख लोगो की मौतें हुई
एक नजर
वर्ष अकाल का फैलाव व प्रकृति
650 पूरे देष में अकाल की स्थिति
1022-1033 भीषण अकाल ,बडी आबादी तितर -बितर
1344-1345 भीषण अकाल
1396-1407 दुर्गादेवी अकाल
1630-1631 अहमदाबाद, गुजरात में अकाल
1630-1632 डेक्कन में अकाल 20 लाख लोग मरे ।
1661 अकाल पूरे दो वर्ष बारिष की एक बूंद नसीब नही ।
1702-1704 डेक्कन क्षेत्र मंें अकाल 20 लाख लोगेा की मौतें
1770 बंगाल में अकाल एक करोड़ लोग मरे
1783-84 वर्तमान ओडिया ,दिल्ली , राजपूताना , पूर्वी पंजाब
व कष्मीर के क्षेत्र में चालीसा अकाल ,एक
क्रोड लोगों की मौत
1788 -92 दोजीबारा अकाल , हैदाराबाद , गुजरात
मारवाड़ ,एक करोड लोगो की मौत
1800-1825 देष भर मंे अकाल से 10 लाख लोगो की मौत
1866 ओडिषा क्षेत्र में अकाल 25 लाख लोगा की मौत
1869 राजपूताना अंकाल
1873-74 बिहार मे अकाल
1875-1902 देंष भर में अकाल में 80लाख लोग की मौत
1943 बगाल मेें अकाल 30 लाख लोग की मौत
1966 बिहार मेें अकाल ष् सयुक्त राष्ट्र द्वारा मदद
1979


सूखे की चपेट मे 15 लाख लोगो की मौतें


मानसून के दगा से देष के सात राज्यों का एक बहूत बडा हिस्सा सूखे की चपेट मेें आ गया है । देष के लगभग 167 जिलो को सूखा ग्रस्त घोषित भले हीं कर दिया गया मगर इस समस्या से निबटना किसी अकाल से कम नहीं है ।
स्ूाखा का कारण वर्षा का कम होना होता है । आपदा विभाग की माने तो औसत से कम बारिष होने पर सूखा क्षेत्र घोषित किया जाता है । बिहार की अगर हम बात करे तो 2009 के अगस्त के महिने तक प्रदेष में औसत 569,93 मिली मीटर बारिष होनी चाहिए थी जबकि इस बार मात्र 325,04 मिली मीटर हृइ है । जिसको लेकर बिहार के 26 जिलो को सूखा घोषित किया गया है
सरकार द्वारा आपात स्थिति तय करना
1 रोपनी के समय वर्षा नही होना या अल्प वर्षा होना
2 मौसम के बीच ही मानसून की समाप्ति
3 चार सप्ताह या अधिक समय तक ड्राई स्पेल
4 जुलाई से सितम्बर के बीच में पानी की कमी , गर्म हवा संे फसल का सूखना
5 रोपनी मेे गिरावट
वर्षा कम होने के कारण रोपनी नही हुई । जहा हुई वहा काफी विलम्ब से दक्षिण पष्चिम मानसून में विलंब , वर्षा में 62 प्रतिषत की गिरावट , जुलाई के अंत में वर्षा मेें 45 प्रतिषत की कमी । यह स्थिति जारी रही तो लगी फसलो के भी सूखने का खतरा
मानसून ने एक बार फिर धोखा दिया । मानसून पर अपनी निर्भरता के कारण किसी अन्य देष की तुलना मेें भारत मंे फसल पैदावार में कमी अथवा सूखे की संभावना हमेषा से बनी रहती है । जिसके कारण सदियांे से भारत में अकाल जैसी स्थिति बनती रही है । भारत में 11 वीं और 17 वीं ष्षताब्दी के बीच 14 बार अकाल पडे़ 1022 -1033 के बीच आये भीषण अकाल की वजह संे जनसंख्या का गणित बिगड़ गया । वहीें 1702 -1704 के दौरान डेक्कन मेे आये अकाल के कारण तकरीबन 20 लाख लोगेा की मौते हुई । ष्षुरूआती दौंर मेें स्थान विषंेष के आधार पर अकाल की स्थिति देखी जाती थी । लेकिन ब्रिटिष हुकूमत के दौरान 1860 के पष्चात देष मंें अनाज की कमी स्पष्ट देखी गयी । 19 वी सदंी के मध्य कई राज्यों जिनमंे तमिलनायडु ,बंगाल , और बिहार प्रमुख मेें 25 बार बडे़ अकाल पडे़ ़नोबेल पुरस्कार विजेता अमत्र्य सेन के अनुसार अकाल की प्रमुख वजह बारिष की अनियमितता थी ।
1770 में बंगाल में आये भीषण अकाल ने करीब एक करोड़ की जान ली थी । जो बंगाल की कुल जनसंख्या की एक तिहाई थी । देष मेेें 1876-1878 में आयंे अकाल में 61 लाख से अधिक लोगेां की जाने गयी । जबकि 1899 -1900 के बीच में आये अकाल में एक करोड लोग मारे गयंे । अकाल की स्थिति स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भी बनती रही । 1943 -44 के दौरान बंगाल में आये अकाल में तकरीबन 15 से 30 लाख लोगों की मौत हो गयी , जबकि इसमें किसी फसल पैदावार में कमी की भी खबर नही थी । 1880 मेंे गठित आयेाग ने अपनी रिर्पोट में कहा कि इसके लिए आनाज का वितरण अधिक जिम्मेवार था । इसके बाद 1996 में बिहार में अनाज की कमी देखी गयी इस समय संयुक्त राष्ट्र संघ की ओर से इस अकाल से निपटने के लिए 9 लाख टन अनाज प्रदान किया गया । तीन साल के दौरान भूखमरी और बीमारियेा के कारण तकरीबन 15 लाख लोगो की मौतें हुई
इब्राहिम खान का दरगाह

पीर मखदूम शाह दौलत का मकबरा स्थानीय श्रेत्र मे छोटी दरगाह के नाम से जाना जाता है । स्थानत्व कला कि दृष्टि से यह अपने समय का बिहार मे सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है इसके मघ्य मे प्रसिद्व पीर मखदूम शाह दैालत कि समाघि है जिनका देहान्त 1608 इ मंे हुआ था ।
मकबरा मे घुसते हि बाएं साइड मे पीर मखदूम शाह के शिष्य इब्राहिम खान को दफनाया गया है और इसके दाहिने साइड मे पीर मखदूम शाह कि पप्नी केा दफनाया गया है ।
हजरत मखदूम शाह दौलम मनेरी बाबा का मकबरा यह मकबरा बिहार कि मुगल इमारतो मे सबसे सुन्दर है इसकी बनावट और कारिगरो के ,द्वारा इमारत मे बनाए गए फुल पति का काम देखने योग्य है इसे मुगल समा्र्रट जहागीर के बिहार प्रान्त के शासक जो इस समय पश्चिम बगाल उडीसा क्षारखण्ड हो गया है के शासक इब्राहिम खाॅ काॅकड ने अपने गंुरू मखदूम शाह दौलत की कब्र पर 1616 इ मे बनवाया था मकबरा के पश्चिम मे एक मस्जिद है जो 1619 इ मे बनवाया गया था लेकिन 1934 के महा प्रलकारी भुकप के वजह यह संे यह क्षति ग्रस्त हो गया । जिसको को लेकर सरकार ने इसमे ताला लगा दिया इसके उतर का दरवाजा 1623 इ मे बनवाया गया था ।
मखदूम शाह के दादा सउदी के बैतुल मोकदम से आऐ थे उन्ही के राह पर चलते हुए बाबा भी पीर बन गऐ अैार अल्लाह से नाता जोड लिया बाबा उस समय के नामी पीर थे उनकी मृत्यु 1608 इ मे हुआ था ं । इसके दो तरफ स्नानागार बने हुए जिसमे स्नान करने के बाद महिलाए कपडा बदलती थी । तालाब ़के ठीक उतर किनारे पर सरकार के तरफ से सैलानियो कि लिए गेस्ट हाउस बनवाया गया है
बाबा के मकबरा के ठीक पिछे चिराग दान है । इसमे रात मे यहा के मौलवियो के द्वारा चिराग जलाया जाता है चिराग दान के ठीक पिछे एक चिल्ला खडा किया गया है जिसमे लोग धागा बाॅधकर अपनी मनौती मागते है मन्नत पुरी होने पर लोग बाबा के मजार पर चादर पोशी करके चिल्ला मे से कोइ भी एक धागा खोल देते है ।
ऐसे तो यहा शेाबेरात के चाॅद के महिना मे ज्यादा भीड लगता है लेकिन हिन्दी के जेठ महिना के आखिरी अतवार के दिन भी कम भीड नहीलगता
बाबा के वारिस के लोग अभी भी इसी मनेर मे रहते है अभी बाबा के परिवार के मुखिया शहिद शाह नुसूरूद्यीन अहमद गद्यी नसी सजदा है
बाबा जिस घर मे रहते थे आज भी वह घर बाबा के मकबरा के कुछ हि दुरी पर है जिसे खानकाह कहते है
ऐसे तो लोगो का मानना है कि बाबा जिसकेा चाहते है वही इस मकबरा के पास आता है

लड़ते.लड़ते शहीद हो गये


साधारण से दिखने वाले एक खास अमर शहीद ठाकुर विश्वनाथ साहदेव का परिवार। विश्वनाथ साह देव अंगरेजों से लड़ते.लड़ते शहीद हो गये। और उनका परिवार आज गरीबी और तंगहाली से लड़ रहा है। सरकार इन्हें आश्वासन तो देती हैए लेकिन करती कुछ भी नहीं है।
देश को आजाद करने में हंसते हंसते शूली पर चढ़ने वाले शाह देव की संपत्ति भी सरकार और आम लोगो ने हथिया ली है ण् शहीद के उत्तराधिकारी सरकार से बार बार मांग कर रहे है की उनकी संपत्ति ही उन्हें वापस कर दी जायेण् सरकार से उन्हें ज्यादा कुछ नहीं चाहिए ण् लगता है सरकार ने शहीद ठाकुर शाह देव की एक प्रतिमा लगाकर अपनी ड्यूटी पूरी कर ली। जबकि उनके उत्तराधिकारी आज भी उपेक्षित हैं।
अब सवाल यह उढ़ता है की क्या शहीद ठाकुर साह देव ने इसी आजादी का सपना देखा होगा जहां उनके परिवार के लोग ही बदहाली में जीने के लिए मजबूर होंगे।


साईकिल चलाएं


साईकिल चलाएंएसेहत बनाएएजब दिल करे घुमने निकल जाएंएस्कूल जाएं शान सेएसमय बचाएं जाम सेएसाईकिल की है अपनी शान चलने की नहींएबढ़ाने की जरुरत है जब साईकिल हो अपने पासएतो सेहत रहे सलामत एतेल बचाओ प्रदूषण घटाओएसाईकिल चलाओ।आई नेक्स्ट द्वारा आयोजित बाइकाथन में पार्टिशिपेट कर रही सुम्य्या फरोग ने अपनी इस कविता के ज़रिए साइक्लिंग की खूबियो को फोकस करने की कोशिश की है।सुम्मया संत जासेफ कान्वेंट स्कूल में क्लास 9 की स्टूडेंट हैं।खास अंदाज में उनका कहना है कि मैने तो रजिस्ट्रेशन करवा लियाएक्या आपने रजिस्ट्रेशन करवाया।नहीं करवाया तो जल्दी करिएएआज है लास्ट चांस ।इसमें पार्टिशिपेट नहीं किया तो कुछ भी नही किया।आईए साथ मिलकर साइकिल चलाएंएअपने लिए एसमाज के लिए और अपने देश के लिए।फिर क्या सोंच रहे


पाया नहीं ठीकाना


ए शहीदों !
लौट आना
भारत को तुम बचाना.
देकर गए
आजाद भारत
सभ्यता-संस्कृति
सौहार्द का सागर,
अफसोस मुझे है
आपसी रंजीश से
मुश्किल हुआ बचाना.
ऐ शहीदों.................
इतिहास मेरी
आंखों को
दे जाते हैं आंसू
खिलते हुए
क्रांतीवीरों ने
मुक्ति-संघर्ष के दौर में
आपसी भाईचारे के बूते
जाति-धर्म से
परे हो,
अंग्रेजों से जेहाद छेड़ा,
वीर सपूतों ने
सहर्ष आहूति दे
छोड़ गए आशियाना.
ए शहीदों..................
कर गए
माताओं की गोद सुनी
सहनशील देवियों को
छोड़ गए
यादों के सहारे,
दिल कांप उठता है,
आजतक असहायों ने
पाया नहीं ठीकाना.
ए शहीदों...................
--मुरली मनोहर श्रीवास्तव
9234929710/ 9430623520

Friday, August 14, 2009

13 मजदूर पाताल के बिच

धनबाद के भालगोरा न्यू पिट में 13 मजदूर लगभग ८ घंटे जमीन और पाताल के बिच मौत से लड़ते रहे. आखिरकार उन्हें सुरक्षित निकल लिया गया. कंपनी के अधिकारी घटना का कारण तकनिकी बता रहे है.
कुस्तौर के एरिया नं. ९ के भालगोरा न्यू पिट खदान में काम कर के वापस लौट रहे १३ मजदूरों की स्थिति उस समय ख़राब हो गयी जब लिफ्ट अचानक बीच में रुक गयी. लगभग ८ घंटे मजदूर जिन्दगी और मौत के बीच जूझते रहे. बाद में उन्हें दूसरे लिफ्ट से बहार निकाला गया. बीसीसीएल के तकनिकी निदेशक के अनुसार तकनिकी खराबी के कारण यह स्तिथि उत्पन्न हुई.
कोलियारी में मशीनो के रख रखाव से मजदूर काफी खफा है. मजदूरों का कहना है की कोलियरी में पंखा काफी दिनों से ख़राब पड़ा हुआ है. मजदूरों को इससे काफी परेशानी हो रही है. स्थिति यह है कि कभी भी किसी मजदूर की मौत हो सकती है।
खादानों में नीचे जाकर काम करना काफी रिस्की होता है। ऐसे में यहां के प्रशासन को तकनीकी तौर पर एकदम अपडेट रहना होगा, ताकि किसी इमरजेंसी का सामना नहीं करना पड़े।

विश्व युवा दिवस के इतिहास


In 1984, Pope John Paul II announced 1985 as a Jubilee year for the Catholic Church. 1984 में पोप जॉन पॉल द्वितीय के कैथोलिक चर्च एक जयंती वर्ष के रूप में करने के लिए 1985 की घोषणा की. In an effort to recognize the growing youth of the Church, he invited them from around the world to travel to Rome for Palm Sunday. एक प्रयास चर्च की बढ़ती युवाओं पहचान करने के लिए में उन्होंने से दुनिया भर के रोम करने के लिए पाम रविवार के लिए यात्रा करने के लिए उन्हें आमंत्रित किया है. He declared that day to be the first World Youth Day, and that the youth should go back to their home towns and communities and celebrate their new-found fellowship and continue the tradition for each year to follow. उन्होंने कहा कि दिन पहले विश्व युवा दिवस हो, और घोषणा की है कि युवाओं को वापस उनके घर कस्बों और समुदायों और उनके नए पाया फैलोशिप मनाने और प्रत्येक वर्ष के लिए इस परंपरा का पालन करने के लिए जारी रखने के लिए जाना चाहिए.
From that year forward, there have been World Youth Days each year on both an international and diocesan level. Past WYDs have existed throughout the world. उस साल आगे से, वहाँ दुनिया युवा दिन दोनों एक अंतरराष्ट्रीय और बिशप के स्तर पर प्रत्येक वर्ष किया गया है. विगत WYDs ने दुनिया भर में ही अस्तित्व में है. [ Top ] [शीर्ष]
Days in the Diocese इस प्रांत में दिन दुनिया युवा दिन दो स्तरों पर मनाया जाता है. Each year, since the initial WYD in Rome, Italy, celebrations occur on a diocesan level throughout the world. हर साल, रोम, इटली, समारोह में प्रारंभिक WYD के बाद से दुनिया भर में एक बिशप के स्तर पर होते हैं. However, every two or three years, an international celebration occurs in a selected city somewhere in the world. हालांकि, हर दो या तीन साल, एक अंतरराष्ट्रीय उत्सव एक चयनित शहर में दुनिया में कहीं होता है.
2005 - 20th World Youth Day: Cologne, Germany 2005 - 20. विश्व युवा दिवस: कोलोन, जर्मनी
2004 - 19th World Youth Day: Rome, Italy 2004 - 19. विश्व युवा दिवस: रोम, इटली
2003 - 18th World Youth Day: Rome, Italy 2003 - 18. विश्व युवा दिवस: रोम, इटली
2002 - 17th World Youth Day: Toronto, Canada (July 23-28) 2002 - 17. विश्व युवा दिवस: टोरंटो, कनाडा (23-28 जुलाई)
2001 - 16th World Youth Day: Rome, Italy (April 8) Palm Sunday 2001 - 16. विश्व युवा दिवस: रोम, इटली (अप्रैल 8) पाम रविवार
2000 - 15th World Youth Day: Rome, Italy (August 15-18) 2000 - 15. विश्व युवा दिवस: रोम, इटली (15-18 अगस्त)
1999 - 14th World Youth Day: Rome, Italy (March 28) Palm Sunday 1999 - 14 वें विश्व युवा दिवस: रोम, इटली (28 मार्च) पाम रविवार
1998 - 13th World Youth Day: Rome, Italy (April 5) Palm Sunday 1998 - 13 वें विश्व युवा दिवस: रोम, इटली (अप्रैल 5) पाम रविवार
1997 - 12th World Youth Day: Paris, France (August 19-24) 1997 - 12 वें विश्व युवा दिवस: पेरिस, फ्रांस (19-24 अगस्त)
1996 - 11th World Youth Day: Rome, Italy (March 31) Palm Sunday 1996 - 11 वें विश्व युवा दिवस: रोम, इटली (31 मार्च) पाम रविवार
1995 - 10th World Youth Day: Manila, Philippines (January 10-15) 1995 - 10. विश्व युवा दिवस: मनीला, फिलीपींस (10-15 जनवरी)
1994 - 9th World Youth Day: Rome, Italy (March 27) Palm Sunday 1994 - 9. दुनिया युवा दिवस: रोम, इटली (27 मार्च) पाम रविवार
1993 - 8th World Youth Day: Denver, USA (August 10-15) 1993 - 8 वें विश्व युवा दिवस: Denver, संयुक्त राज्य अमरीका (10-15 अगस्त)
1992 - 7th World Youth Day: Rome, Italy (April 12) Palm Sunday 1992 - 7. दुनिया युवा दिवस: रोम, इटली (12 अप्रैल) पाम रविवार
1991 - 6th World Youth Day: Czestochowa, Poland (August 10-15) 1991 - 6. दुनिया युवा दिवस: Czestochowa, पोलैंड (10-15 अगस्त)
1990 - 5th World Youth Day: Rome, Italy (April 8) Palm Sunday 1990 - 5. दुनिया युवा दिवस: रोम, इटली (अप्रैल 8) पाम रविवार
1989 - 4th World Youth Day: Santiago de Compostela, Spain (August 15-20) 1989 - 4. दुनिया युवा दिवस: Santiago de Compostela, स्पेन (15-20 अगस्त)
1988 - 3rd World Youth Day: Rome, Italy (March 17) Palm Sunday 1988 - 3. विश्व युवा दिवस: रोम, इटली (17 मार्च) पाम रविवार
1987 - 2nd World Youth Day: Buenos Aires, Argentina (April 11-12) 1987 - 2. विश्व युवा दिवस: ब्यूनस आयर्स, अर्जेंटीना (11-12 अप्रैल)
1986 - 1st World Youth Day: Rome, Italy (March 23) Palm Sunday 1986 - 1. दुनिया युवा दिवस: रोम, इटली (23 मार्च) पाम रविवार
Source: http://209.85.231.132/translate_c?hl=hi&langpair=en%

Monday, August 10, 2009


गोपाल सिंह नेपाली

1911 में बिहार के चंपारन जिले के बेतिया नामक स्थान में गोपाल सिंह नेपाली जन्म hua.गोपाल सिंह नेपाली हिंदी के छायावाद कवियों में महत्वपूर्ण थे। वे उस काल के कवियों में से थे जब बड़े बड़े साहित्यकार और कवि फ़िल्मों के लिए काम करते थे। 1944 से 1963 तक मृत्यु पर्यंत वे बंबई में फ़िल्म जगत से जुड़े रहे। उन्होंने एक फ़िल्म का निर्माण भी किया।
वे पत्रकार भी थे और उन्होंने चार हिंदी पत्र-पत्रिकाओं रतलाम टाइम्स, चित्रपट, सुधा और योगी का संपादन किया। फ़िल्मों के लिए लिखे गए उनके कुछ गीत अत्यंत लोकप्रिय हुए। 1962 में भारत-चीन युद्ध के समय उन्होंने देशभक्ति की अनेक कविताएँ रचीं। कविता के क्षेत्र में गोपाल सिंह नेपाली ने देश प्रेम, प्रकृति प्रेम, तथा मानवीय भावनाओं का सुंदर चित्रण किया है। काव्य संग्रह me उमंग, पंछी, रागिनी तथा नीलिमा, पंचमी, सावन, कल्पना, आंचल, नवीन, रिमझिम और हमारी राष्ट्र वाणी।

मुझे यूं भूला ना पाओगे

अब बात हिन्दी सिनेमा जगत के सबसे सफल गायक मोण्रफी की। मोहम्मद रफी३ण्एक ऐसा नाम है जिसे शायद ही कोई नहीं जानता। रफ़ी साहब ने अपनी जादुई आवाज के जरिए इंडियन फिल्म इंडस्ट्री को कई दशकों तक हजारों बेहतरीन नगमें दिए। आज इस महान गायक की 25 वीं पुण्यतिथि पर उन्हें याद किया जा रहा है।
तुम मुझे यूं भूला ना पाओगे रफ़ी साहब के ही गाए इस गीत से बेहतर श्रद्धांजली उन्हें भला और क्या होगी। अपने करियर में रफ़ी साहब ने करीब 26 हजार गाने गाए। जिनमें हर रंगए मिजाज और मूड को उन्होनें इस बखूबी से अपनी आवाज में उतारा कि हर कोइ उनकी मखमली आवाज़ का कायल हो गया। चौदवी का चांदण्ण्ण्बाबुल की दुआएं लेती जा जैसे गानों को परदे पर जीवंत करने वाले मोण्रफी एक अच्छे सिंगर होने के साथ एक अच्छे इंसान भी थे।
31 जुलाई 1980 को सुरों के जादूगर कहे जाने वाले इस फंकार की आवाज़ सदा के लिए खामोश हो गई। लेकिन उनके गीत हमेशा के लिए अमर हो गए। 60.70 के दशक में उन्होनें दिलीप कुमारए देवानंदए शम्मी कपूर जैसे कई स्टारों को अपनी आवाज़ के ज़रिए अलग पहचान दिलवाइ। फिल्म इंडस्ट्री में उन्हें उनके बेहतरीन सिगिंग के लिए पद्मश्री और फिल्मफेयर जैसे कई अवार्डस से भी नवाजा़ गया।
आज भले ही रफी साहब हमारे बीच नहीं हैं लेकिन उनकी आवाज़ का जादु संगीत प्रेमियों के दिलों में कुछ ऐसे बसा है जिसकी गूंज सदियों तक जिंदा रहेगी।
सनसनी फैल गई

बिहार की राजधानी पटना के अतिव्यस्ततम इलाके एक्जीबिषन रोड में सरेषाम एक महिला को कुछ युवकों द्वारा निर्वस्त्र कर दिया गया। अचानक हुई इस वारदात से पूरे इलाके में सनसनी फैल गई। बाद में एक कांस्टेबल ने पीड़िता को थाने पहुंचाया।
ये नजारा है पटना के एक्जीबिषन रोड का। आप सोच रहे होंगे कि एक युवति इतने सारे लोग के बीच क्या कर रही है। दरअसल इस युवति के साथ कुछ युवक जबर्दस्ती कर रहे हैं, उसे निर्वस्त्र कर रहे हैं और लोग तमाषबीन बने हुए हैं। एक युवति की इज्जत तार-तार हो रही है और भीड़ इस सीन का भरपूर लुत्फ उठा रही है। जी हां, युवकों के साथ ही भीड़ की इंसानियत भी खत्म हो चुकी है। भीड़ भी युवकों की इस घिनौनी कृत्य का समर्थन कर रही है। तभी वहां एक कांस्टेबल आता है और उसे अपनी जिम्मेदारी का अहसास होता है। कांस्टेबल आरोपी युवक और पीड़िता को स्थानीय थाने के हवाले कर देता है। हालांकि आरोपी राकेष कुमार अपने ऊपर लगे सभी आरोपों को बेबुनियाद बताता है। उसका कहना है कि युवति के पास उसके कुछ पैसे बाकी थे जिसका तकादा वो युवति से कर रहा था। साथ ही युवति के चरित्र को भी वो संदिग्ध बताता है।
इस सनसनीखेज वारदात से जहां पूरा पटना सन्न है वहीं पुलिस के आलाअधिकारी भी मामले की संगीनता को देखते हुए आरोपी और पीड़िता दोनों से गहन पूछताछ कर रहे हैंे। पुलिस ने इस बात से इंकार किया है कि भीड़ ने युवति के साथ किसी तरह की छेड़छाड़ की है। पूछताछ में ये बात छनकर आई है कि युवति यूपी की रहनेवाली है और आरोपी उसे नौकरी दिलवाने का झांसा देकर
जिंदगी की आस

जब एक इंसान गंभीर हालत में हाॅस्पीटल के गेट पर पहुंचता है तो उसके जिंदगी की आस डब्ल हो जाती है। वहां जाने वाला हर पेसेन्ट अच्छे इलाज की कामना करता है पर आज हम आपको एक ऐसे हाॅस्पीटल की स्टोरी दिखाएंगे जहां इलाज के नाम पर अंधविष्वास का नंगा खेल खेला जाता है।
सिवान के सदर हाॅस्पीटल में दर्द से करहाते इस मरीज की लाइफ टोटको पर डिपेंड है। इसे एक जहरीले सांप के जहर ने जख्मी कर दिया है। ये विष इससे इसकी लाइफ छिन ना ले ये सोचकर परिजनों ने इसे हाॅस्पीटल में एडमिट कर दिया। पर आप खुद देख सकते हैं कि इसका ट्रीटमेंट यहां दवाईयों के बजाए झाड़- फूंक से किया जा रहा है
ये सब कुछ हो रहा है यहां के डाॅक्टरों के प्रजेंस में। हाॅस्पीटल के बेड पर पड़ी इस औरत की हालत बिगड़ती जा रही है। पर शायद डाॅक्टरों के आंखों पर बंधी अंधविष्वास की पट्टी अब पेसेन्ट के बाडी के ठंडे होने का वेट कर रही है।
सरकार ने हेल्थ सर्विस को नंबर वन बनाने के हजारो दावे किए। पर ना जाने कब उसकी नजर जीवनदाताओं की इस भारी भूल को देख पाएगी।


बंदरिया की ममता

कहते हैं ममता की कोई परिभाषा नहीं होती। ना तो इसकी कोई जाति होती है और ना ही धर्म। और ना ही ये इंसान और जानवरों में कोई फर्क करती है। तभी तो एक कुत्ते के पिल्ले पर अपनी ममता न्योछावर करती एक बंदरिया को देख सभी अचंभित हैं।
कुत्ते के बच्चे को कभी दुलारती तो कभी पुचकारती इस बंदरिया को देखकर लोग हैरान हैं। कारण है कि इसने कुत्ते के बच्चे को वो प्यार और दुलार दिया है जो सिर्फ एक मंा ही दे सकती है। दरअसल इस बंदरिया के बच्चे की मौत सड़क दुर्घटना मंे हो गई थी। तब उसने लावारिस पड़े एक पिल्ले को गोद ले लिया। और आगे की कहानी आपके सामने है।
पिल्ला कूं-कूं करता तो बंदरिया उसे सीने से लगा कर दूध पिलाती। एक मां की तरह पिल्ले का पूरा ख्याल रखती। यही नहीं जब लोग इसे देखने के लिए इकठ्ठे होते तो बच्चे को गोद में लिए सरपट दौड़ लगाकर दूर भाग जाती। इसके अलावा इसका पूरा ध्यान रखती है कि फिर से कोई दुर्घटना ना घटे।
मां की ममता के तो आपने कई किस्से सुने होंगे। पर झारखंड की राजधानी रांची में सड़कों पर एक बंदरिया द्वारा अनोखे ढ़ंग से मातृत्व लुटाना सचमुच ममता की एक मिसाल है।
दरिंदगी का घिनौना खेल

एक बार फिर कुछ पुलिसवाले इंसानियत की हद को पार कर गये। घटना दुमका की हैए जहां एक मेंटली रिटार्डेड आदमी को पुलिसवालों ने हाथ पैर बांध कर पीटा । इस घटना के बाद चार पुलिसकर्मी को निलंबित कर दिया गया है।
पुलिस की हैवानियत का शिकार ये शख्स कोई अपराधी नहीं हैए बल्कि थोड़ा मेंटली रिटार्डेड रामविलास है। फिर भी पुलिस इस पर अपनी मर्दानगी दिखाने में कोई कसर नहीं छोड़ रही है। ये आजाद हिन्दुस्तान की खौफनाक तस्वीर है।
दरअसल दुमका के दुम्मा गांव में दो पक्षों के बीच विवाद होने के बाद पुलिस रामविलास सहित आधे दर्जन लोगों को पकड़ कर थाने ले आई। रामविलास की बीमारी के बारे में पता चलने पर पुलिसवालों ने उसे अस्पताल में भर्ती करा दिया। जहां रामविलास पुलिस पर हाथ उठा दिया। जिसके बाद गुस्साये पुलिसवाले बेकबू हो गये। और फिर शुरू कर दिया दरिंदगी का घिनौना खेल।
हर चीज़ की इंतहा होती हैए लेकिन इन बेशर्मों को देखकर तो लगता है कि बेरहमी की इंतहा नहीं होती । तभी तो ये लोग मेंटली रिटार्डेड एक आदमी को जानवर की तरह मार रहे हैं। देखिये किस तरह से ये लोग मिलकर एक बेबस को खामोश करने के लिए इंजेक्शन दे रहा है। इंसान का ये चेहरा देखकर आज जानवर भी खुश हो रहा होगा कि चलो हम तो भला जंगल में रहते हैं और जंगली कहलाते हैं।
कहते हैं कि दर्द का हद से गुजर जाना है दवा होना। और धीरे दृ धीरे दर्द के आगोश में जाता रामविलास कुछ देर के लिए खामोश हो गयाण्ण्ण्ण्लेकिन इस सब के बीच एक सवाल छोड़ गया कि आखिर कब तक बेरहमों के हाथों इंसानियत शर्मशार होती रहेगी-
अपनों ने ही बेच दिया

पटना के जक्कनपुर थाना अन्तर्गत एक ऐसा मामला सामने आया है। जिसमें रिष्तेदारों ने ही एक नाबालिग लड़की का सौदा कर दिया।
करबिगहिया की एक गली में बसा ये है एक छोटा सा गरीबी का सताया यह दलित परिवार भूख से तो पहले ही त्रस्त था। लेकिन अब इन अभागों की खामोष दर्द का कारण वह जख्म है जो इन्हें उनलोगों ने दिया है । जिनपर इन्हें हद से ज्यादा यकीन था। जी हां इनके अपने रिष्तेदारों ने ही इनकी बड़ी बेटी को चन्द रूपयों के लालच में बाजार में बेच डाला।
इस बेबस लड़की को इसके अपने ही चचेरी बहन मुन्नी देवी ने बहला फुसलाकर राजस्थान के सिघारा गांव में ले जाकर हवस के पुजारियों के बीच बेच दिया । जहां यह बुरी तरह से प्रताड़ित की गयी।
मौका पाकर पूनम उन दरिन्दों के चंगूल से भागकर घर तो लौट आयी।लेकिन इन दस महिनों के दर्द में पुलिस और कानून व्यवस्था से जुड़ी
एक निराषाजनक सच्चाई सामने आयी।
अपने कर्म के प्रति सजगता का पुलिस लाख दावा कर ले । लेकिन सच तो यही है कि असली मुजरिम अबतक इनकी पकड़ से बाहर है और रह गयी है तो बस एक अंधेरी गली के झोपड़े में समाज और कानून से मायुस यह दलित परिवार और अपने स्याह अतीत के कारण मुंह ढक कर जीने को बेबस यह लड़की।

Friday, August 7, 2009


जनता सांसदों को पीटने लगेगी

बढ़ती महंगाई ऐसे ही बढ़ती रही तो जनता अपने सांसदों को पीटने लगेगी। यह डर किसी और का नहीं बल्कि पूर्व रेलमंत्री लालू प्रसाद का है जो उन्होंने गुरुवार को लोकसभा में महंगाई पर बहस के दौरान जताया।सरकार को सांसदों की सुरक्षा की पूरी व्यवस्था कर लेनी चाहिए क्योंकि उनके निर्वाचन क्षेत्रों में जनता उनकी पिटाई करने वाली है। पूर्व रेलमंत्री ने यह भी कहा कि वे यह मजाक में नहीं बल्कि पूरी गंभीरता से. जनता अपने सांसदों को पीटने लगेगी। संसद का सत्र खत्म होते ही सब अपने निर्वाचन क्षेत्रों में जाएंगे और सबको तेजी से बढ़ती महंगाई का जवाब देना होगा। उन्होंने बढ़ती महंगाई को काबू में करने के लिए प्रधानमंत्री से आग्रह किया कि वे सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों की बैठक बुलाएं और उन्हें जमाखोरी रोकe


कसाब पल्टी मार गया



मुंबई को दहलाने वाले जिंदा गिरफ्तार आतंकी अजमल कसाब का आज एक बार फिर कोर्ट में देखने को मिला। मुंबई की विशेष अदालत में अपने बयान से पल्टी मार गया।
26 नवंबर 08 को सबसे बड़ी बात यह है कि आज सुबह कोर्ट में आने के 2 घंटे पहले कसाब ने कहा था कि वह अपने सारे गुनाह कबूल कर लेगा जिसके बाद कोर्ट में जब उसकी पेशी हुई तो एक बार तो उसने उसपर लगे सारे आरोपों को स्वीकार कर लिया लेकिन जैसे ही ब्रेक के बाद एक बार फिर जज ने कसाब से कुछ पूछा तो वह एकाएक पल्टी मार गया।
जज के पूछे जाने पर कि तुमने तो एक बार अपने सारे गुनाह कबूल कर लिया तो फिर अब क्यों मुकर रहे हो इस पर बड़े नाटकीय अंदाज में कसाब ने कहा वह पिछली बार भी ऐसे ही सारे गुनाह कबूल किए थे और बाद में मना कर दिया था। उसने कहा कि जज साहब आप जैसा समझें केस चलाएं मैं कुछ कहना नहीं चाहता।
गौरतलब है कि इसके ठीक पहले वाली पेशी पर कसाब ने जज के सामने अपने सारे गुनाह कबूल कर कहा था कि अब जल्द से जल्द उसे सजा दे दी जाए। इस कबूलनामे के साथ ही उसने मुंबई हमले के दौरान किए गए सारी कहानी को भी बताया था। उसने जज के सामने कहा था कि मैंने स्टेशनों पर गोलियां बरसाईं थीं, कितने लोगों को मौत के घाट उतार दिया था।

धोनी आर्म्स लाइसेंस

टीम इंडिया के कप्तान महेंद्र सिंह धोनी के परिजनों ने इस बात से इनकार किया है की जम्मू कश्मीर से उन्होंने किसी भी तरह के आर्म्स के लाइसेंस के लिए आवेदन किया है .इतना ही नहीं बिना कैमरा में आये उन्होंने साफ़ तौर पर कहा है की झारखण्ड सर्कार उनके लिए तमाम बाधाओं को दूर करने के लिए कई नियमो में ढील दे रही है तो कोई वजह नहीं है की वे J & K से आवेदन करे .लेकिन हम बता रहे हैं की आखिर झारखण्ड से लाईसेन्स के लिए धोनी को इतनी देर क्यों हो रही है .
ये है भारत सर्कार द्वारा भेजा गया वह लैटर जिसमे धोनी को लाईसेन्स रिलीज़ करने के लिए कई नए कुएर्री जरी किये गए हैं . हलाकि एक बार धोनी के आवेदन को केन्द्रीय गृह मंत्रालय में भेज दिया गया लेकिन कई सवाल ऐसे थे जिनका जवाब झारखण्ड सरकार नहीं दे पाई है. लैटर का सेकंड कुएर्री ME पूछा गया है की आखिर आवेदक को सुरक्षा की ऐसी क्या जरूरत पद गयी की अपनी सुरक्षा के लिए उन्हें प्रिहिबितेड आर्म्स चाहिए. गौर तलब है की धोनी को Z श्रेणी की सुरक्षा मिली हुई है UNKE साथ AK 47 से लैस कमांडो तक रहते HAI ऐसे में 9 MM पिस्टल की जरूरत क्यों है. कुएर्री में तीसरा सवाल है की किस अपेसिअल ग्राउंड पर उन्हें P B आर्म्स दिया JA सकता है. जाहिर HAI इसके बारे में प्रशासन केवल सेलिब्रिटी का हवाला दे सकता है. धोनी KO लाइसेंस में देरी की EK वजह YAH भी है की पहले का ऍप्लिकेशन पूरी तरह से नहीं भरा गया था. जिसे कुएर्री में फिर से भरकर माँगा गया है. बताया जा रहा है की धोनी ने JO फोटो भेजा था WAH पुराना था इसलिए भी नए फोटोग्राफ की मांग की गयी है. जाहिर है इन वजहों से धोनी KO लाईसेन्स मिलने में देरी HO रही है . हलाकि POLICE विभाग KI और से केंद्र सरकार को रिपोर्ट सौंप दी गयी है लेकिन 30 DEC 2008 को जारी इस पत्र का पूरा जवाब प्रशासन ने अब तक नहीं भेजा है.
उधर JAMMU कश्मीर से आवेदन निरस्त किये जाने और IB की रिपोर्ट पर झारखण्ड का कोई अधिकारी बोलने को तैयार नहीं है लेकिन धोनी का गुस्सैल होने के बारे में उनका इतना ही कहना है की केवल कैरेक्टर सर्तिफिकाते ही यहाँ से भेजा जाता है न की उसका पर्सनल व्यव्हार .
-उधर J & K से लाइसेंस के लिए आवेदन के बारे में धोनी के परिजनों ने बिना कैमरा में आये इतना ही कहा की उनकी और से कोई आवेदन नहीं दिया गया है . मीडिया रिपोर्ट में छपे धोनी के पिता का नाम भी उत्तम सिंह बताया गया है जबकि धोनी के पिता का नाम पान सिंह है . इसके अलावा जो एड्रेस बताया गया है ( SECTOR 14 C ) वह रांची में कही है ही नहीं . वैसे इस पूरे मामले पर धोनी के परिवारवाले बाकायदा प्रेस कांफ्रेंस करने वाले हैं जिसमे इस बात का खंडन किया जायेगा की धोनी ने J & K से कोई आवेदन किया भी है .
धोनी के लाईसेन्स को लेकर जो विवाद उठा है उससे संभव है की झारखण्ड SE जो प्रक्रिया चल रही थी उसमे कुछ और देरी हो और धोनी को 9 MM पिस्टल का शौक जल्दी ही पूरा हो.
रांची के जमीन कि कीमत सातवे आसमान पर

राजधानी रांची के शहरी क्षेत्रों में जमीन ,माकन और फ्लैटों की सरकारी कीमतों में भारी बढोतरी के बाद से इनकी --खरीद बिक्री का काम पूरी तरह प्रभावित हो गया है ,वही सरकार को इससे राजस्व का भारी नुकसान हो रहा है .वर्ष 2008 की विपरीत इस वर्ष लगभग 80 प्रतिशत तक सरकारी कीमत में वृद्धि की गई है ,जबकि नेशनल होसिंग स्कीम के तह्त ये वृद्धि सही नहीं है , अगर नियमों की माने तो इसमें 10 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि नहीं की जा सकती है .और अगर समय रहते इसे नहीं सुधार गया तो इससे कई लोग प्रभावित होंगे .
राजधानी रांची और आसपास कि जमीन कि सरकारी कीमत सातवे आसमान पर पहुंच गयी है. रांची में जमीन और फ्लैट कि सरकारी कीमतों में भारी बढोत्तरी कि गयी है. सरकार ने नई दर कि घोषणा कर दी है जो कि पहली अगस्त से प्रभावी भी हो गई है . नए दर के मुताबिक रांची के प्रमुख स्थानों कि जमीन का मूल्य तक़रीबन 10 लाख रूपये प्रति कट्ठा होगा जो कि पिछले साल के मुकाबले 80 फीसदी अधिक है. व्यापारिक और आवासीय फ्लैटों कि दरो में भी भारी बृद्धि हुई है. मूल्य बृद्धि से आम जनता तो परेसान है ही व्यापारी वर्ग भी खाशा नाराज है ,इन सब मसलों को लेकर झारखण्ड चैंबर कॉमर्स का एक प्रतिनिधिमंडल रांची के उपायुक्त से मिला और उनसे जमीन की सरकारी दरों में सुधार करने को कहा है ,वही ये चेतावनी भी दी है की अगर दरे कम नहीं की जाती है तो वो आन्दोलन करने के लिये विवश हो जायेंगे .
वही जमीन के सरकारी दरों में वृद्धि को लेकर उठ रहे विरोध के स्वर को देखते हुए अब रांची उपायुक्त ने इस बार एक बार फिर से पुनर्विचार करने का आश्वासन दिया है ,और दो दिनों के अन्दर वो इसपर कोई ना कोई निर्णय लेने का भरोसा दिलाया है .
रांची में अपनी जमीन और आसियाने का सपना सजाये उन हजारों लोगों का सपना टूट गया है ,क्योकि जमीन और फ्लैट्स की सरकारी रेट इतनी अधिक है की उस रेट पर घर या जमीन खरीदना aam wekti के लिए नामुमकिन है ,हां इतना सकून जरुर है की इसके खिलाफ अब विरोध के स्वर उठने लगे है ,जिसके बाद शायद सराकी दरों के रेट में सुधार हो जाये

Monday, August 3, 2009

यूनीसेफ ने सरकार को कटघरे में खड़ा किया

कहने को तो सर्व षिक्षा अभियान सरकार की बेहतरीन योजनाओं में से एक है1 इस योजना के तहत छात्रों को पढ़ाई के साथ-साथ भोजन भी मुफ्त में उपलब्ध कराया जाता है, लेकिन अब इस योजना के तहत मिलने वाले भोजन पर कई सवाल खड़े हो रहे हैं1
दरअसल पूरा मामला यूनिसेफ के एक रिपोर्ट से जुड़ा हुआ है1 यूनिसेफ के एक रिपोर्ट में सर्वषिक्षा अभियान के तहत मिलने वाले भोजन की गुणवत्ता पर सवाल खड़े किए गए हैं1 रिपोर्ट में खुलासा किया गया है कि भोजन में पौष्टिकता की कमी के कारण लड़कियों में आयरन की कमी हो जाती है जिससे वे एनीमिया नामक बीमारी से ग्रसित हो जाती हैं1 दरअसल आयरन की कमी से शरीर में हिमोग्लोबिन की मात्रा कम हो जाती है और षरीर में पर्याप्त मात्रा में खून नहीं बन पाता है1 डाॅक्टरों का कहना है कि खून की कमी के कारण कई तरह की बीमारी होने की संभावना बनी रहती है1 इस बीमारी का असर छात्राओं के स्मरण ष्षक्ति पर भी पड़ता है1
एनीमिया नामक बीमारी से लड़कियों को निजात दिलाने के लिए यूनिसेफ ने राज्य सरकार के सहयोग से विदयालय एनीमिया नियंत्रण कार्यक्रम की षरूआत की है1 षुरूआत में इस योजना को 16 जिलों के उच्चतर एवं माध्यमिक विदयालयों में चलाया जाएगा1 इस योजना के तहत हर बुधवार को छात्राओं को आयरन फोलिक एसिड की गोलियां दी जायेंगी1 छात्राओं को ये गोली 52 सप्ताह तक खानी होंगी1 छात्राओं के परिजनों ने यूनिसेफ द्वारा चलाए जा रहे इस कार्यक्रम का स्वागत किया है1 उनका कहना है कि वो काफी दिनों से मीड मिल की षिकायत कर रहे थे लेकिन सरकार के कान पर जूं तक नहीं रेंग रही थी1
यूनीसेफ के इस खुलासे से सरकार की नींद उड़ गई है1 यूनीसेफ ने सरकार को कटघरे में खड़ा कर दिया है1 अब गेंद सरकार के पाले में है1 उसे विदयालय एनीमिया नियंत्रण कार्यक्रम को सही ढंग से चलाकर छात्राओं के परिजनों की षिकायत को दूर करना चाहिए1
अंधविष्वास का नंगा खेल

जब एक इंसान गंभीर हालत में हाॅस्पीटल के गेट पर पहुंचता है तो उसके जिंदगी की आस डब्ल हो जाती है। वहां जाने वाला हर पेसेन्ट अच्छे इलाज की कामना करता है पर आज हम आपको एक ऐसे हाॅस्पीटल की स्टोरी दिखाएंगे जहां इलाज के नाम पर अंधविष्वास का नंगा खेल खेला जाता है।
सिवान के सदर हाॅस्पीटल में दर्द से करहाते इस मरीज की लाइफ टोटको पर डिपेंड है। इसे एक जहरीले सांप के जहर ने जख्मी कर दिया है। ये विष इससे इसकी लाइफ छिन ना ले ये सोचकर परिजनों ने इसे हाॅस्पीटल में एडमिट कर दिया। पर आप खुद देख सकते हैं कि इसका ट्रीटमेंट यहां दवाईयों के बजाए झाड़- फूंक से किया जा रहा है
ये सब कुछ हो रहा है यहां के डाॅक्टरों के प्रजेंस में। हाॅस्पीटल के बेड पर पड़ी इस औरत की हालत बिगड़ती जा रही है। पर शायद डाॅक्टरों के आंखों पर बंधी अंधविष्वास की पट्टी अब पेसेन्ट के बाडी के ठंडे होने का वेट कर रही है।
सरकार ने हेल्थ सर्विस को नंबर वन बनाने के हजारो दावे किए। पर ना जाने कब उसकी नजर जीवनदाताओं की इस भारी भूल को देख पाएगी।
शिक्षको की वर्षो से लंबित मांग

यूजीसी वेतनमान लागू करने और सेवानिवृत्ति की उम्र सिमा 62 से बढ़ाकर 65 साल करने समेत दस सूत्रीय मांगो के समर्थन सूबे के सभी विश्वविद्यालयों के शिक्षको ने सोमवार को नीतिश सरकार के खिलाफ हुंकार भरी ।बिहार राज्य विश्वविद्यालय शिक्षक संघ (फुटाब)तथा बिहार राज्य विश्वविद्यालय (सेवा) शिक्षक महासंघ (फुस्टाब) के संयुक्त आह्वान पर शिक्षकों ने राजधानी के आर ब्लाक चौराहे पर धरना दिया और प्रदेश सरकार पर उच्चशिक्षा को बर्बाद करने का आरोप लगाया।शिक्षक नेताओ ने कहा की राज्य सरकार शिक्षको की वर्षो से लंबित मांगो को पूरा करने में आनाकानी कर रही है।धरने की
अध्यक्षता करते हुए फुस्टाब के अध्यक्ष डा.रामजतन सिन्हा ने कहा की दूसरे राज्यो में विश्वविद्यालय शिक्षकों की सेवानिवृति की उम्रसीमा 62 से बढ़ाकर 65 वर्ष कर दी गई है।लेकिन यहां शिक्षकों के साथ नाइंसाफी ही की,जबकि पूर्ववर्ती सरकारो ने यूजीसी की अनुशंसा लागू की थी । फुटाब-फुस्टाब के संयुक्त समिति के अध्यक्ष डा.केबी सिन्हा ने यूजीसी के पुनरिक्षित वेतन संबंधी पैकेज को लागू
बिहार अब पंजाब और हरियाणा से बेहतर राज्य-- प्रबंध निदेशक

याडू कारपोरेशन के प्रबंध निदेशक दीपक यादव ने कहा कि निवेशको के लिए बिहार अब पंजाब और हरियाणा से बेहतर राज्य बन गया है।उन्हें यहां काम करने में कोई दिक्कत नही आ रही हैं।
मीडिया में पिछले एक दशक के दौरान जो सबसे अहम बदलाव आया है।उसमें इलेक्ट्रानिक नीडिया खासकर निजी चैनलो की महत्वपूर्ण भूमिका रही है।इस माध्यम ने मीडिया के स्वरूप में क्रातिकारी बदलाव जोड़ दिए है।एक दशक पहले टीवी पर समाचार का मतलब महज सरकारी सुचनाएं देने से होता है।ख़बरो के प्रसारण पर सरकारी टीवी यानी दूरदर्शन का एकाधिकार था ।इस एकाधिकार में सबसे पहले टीवी टुडे और एनडीटीवी जैसे प्रोडक्शन हाउसो ने सेंध लगाई ,लेकिन असली बदलाव निजी चैनलो की शरूआत की शुरूआत के बाद ही देखने को मिला । पहले अंग्रेजी बाद में हिन्दी के खबरिया चैनल एक बाद एक आने शुरू हुए।

लोजपा कार्यकर्ताओ पर लाठीचार्ज


सत्ता से हटने के बाद सड़क पर आदोलन पर उतरे पूर्व केनद्रीय मंत्री रामविलास करीब आठ वर्षो के बाद सोमवार को गिरफ्तार हुए.हालांकि गिरफ्तारी के बाद उन्हें जेल जाने का मौका नहीं मिला.प्रशासन ने बीच सड़क पर उन्हें गिरफ्तार किया और सड़क पर ही उनकी रिहाई भी हो गई।लोजपा के जेल भरो आंदोलन को लेकर पुलिस पूरी तरह चौकस थी।लोजपा कार्यालय से करीब 50 मीटर की दूरी पर पटेल चौराहा के पास बैरियर बनाया गया था।
आवाजाही बंद कर दी गई थी।यहा वज्रवाहन,वाटर टैंक व बड़ी संख्या में जवानो की तैनाती की गई थी। उनके आगे आगे कार्यकताओ की कतार थी ।सरकार विरोधी नारे लगाते हुए कार्यकर्ता बैरियर के पास पहुंचे तो पुलिस ने उनलोगों को रोक दिया.पांच मीनट की जद्दोजहद के बाद कार्यकर्ता बैरियर तोड़ कर आगे निकलने में सफल हो गए।
इधर लोजपा कार्यकर्ताओ पर पुलिस द्वारा पटना में लाठीचार्ज किये जाने की राजद के राष्ट्रीय अध्यक्ष लालू प्रसाद ने कड़ी आलोचना की ।उन्होंने कहा की राज्य सरकार तानाशाही रवैया अपना रही है।
लोजपा कार्यकर्ताओ पर लाठी चार्ज का राजद नेताओ ने विरोध करते हुए राज्यव्यापी आंदोलन खड़ा करने की घोषणा की है।प्रदेश अध्यक्ष अब्दुलबारी सिद्धकी ,प्रधान महासचिव रामकृपाल यादव और विधानसभा में पार्टी के मुख्य सचेतक डा.रामचन्द्र पूर्वे ने कहा कि सरकार सभी मोरचो पर अपनी विफलता से बौखला गई है। इधर पार्टी ने इसके विरोध में राज्यव्यापी आदोलन की बात कह रही

लव मर्डर
एक ऐसे शख्स की जिसे प्यार के बदले मिली मौत। दरअसल गणेश का गुनाह सिर्फ इतना था कि उसने हिना से लव करने की खता कर डाली थी। ये वाकया है बेतिया के छावनी इलाके की।
शादीशुदा गणेश को अपने ही पड़ोस में रहने वाली हिना से प्यार हो गया। दोनों ने साथ में जीने मरने का फैसला तक कर डाला। दोनों का प्यार जब परवान चढ़ने लगा तो पूरे इलाके में इसकी चर्चा होने लगी। हिना के परिवार वालों को इन दोनों का मिलना-जुलना पसंद न था। हिना का भाई हमेशा गणेश को हिना से न मिलने की धमकी दिया करता था। गणेश के परिजनों की माने तो हिना के परिवारवालों ने ही गणेश का मर्डर किया है।
गणेश के मर्डर की खबर मिलते ही पूरे इलाके में सनसनी फैल गई। घरवालों पर तो मानो गम का पहाड़ टूट पड़ा हो। मां का तो रो-रोकर बुरा हाल हुआ जा रहा है। मामले की संजीदगी को देखते हुए पुलिस मौका-ए-वारदात पर पहुंच गई और लाश को कब्जे में लेकर पोस्टमॉर्टम के लिए भेज दिया। फिल्हाल पुलिस इस मामले में कुछ भी बताने से इंकार कर रही है। उसका कहना है कि जांच के बाद ही कुछ पता चल पाएगा।
गणेश के मर्डर को लेकर अफवाहों का बाजार गर्म है। सभी लोग मर्डर के मकसद को लेकर अपने-अपने तरीके से कयास लगा रहे हैं।

सीतामढ़ी में बागमती का तटबंध टूटा

सूबे के सीतामढ़ी जिले के समीप रूनी सैदपुर प्रखंड के तिलक ताजपुर गांव में शनिवार तड़के बागमती नदी पर बने तटबंध का दाहिना हिस्सा टूट गया है जिससे 40 से अधिक गांवों में पानी प्रवेश कर गया है . जिलाधिकारी विश्वनाथ सिंह ने आज यहां बताया गया कि नेपाल के जलाग्रहण क्षेत्रों में पिछले कई दिनों से जारी वर्षा के बाद भारी मात्रा में पानी छोड़े जाने से सीतामढ़ी जिले के रून्नी सैदपुर प्रखंड तिलक ताजपुर गांव स्थित बागमती नदी का दाया हिस्सा तड़के साढ़े पांच बजे करीब 10 फुट की लंबाई तक टूट गया . पानी के भारी दबाव के कारण टूटे तटबंध की लंबाई लगातार बढ़ती जा रही है . अब तक तटबंध लगभग 70 मीटर टूट कर नदी में विलीन हो चुका है . तटबंध टूटने के कारण रून्नी सैदपुर प्रखंड के 40 से अधिक गांवों में नदी का पानी प्रवेश कर गया है . तेज बहाव के कारण नदी का पानी तेजी से नये इलाको मे भी प्रवेश कर रहा है . ग्रामीण लगातार सुरक्षित स्थानो की ओर पलायन को मजबूर हैं . हालांकि तेज बहाव के कारण उन्हे सुरक्षित स्थानो पर पहुंचने मे भारी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है . इस बीच मामले की गंभीरता को देखते हुए
24 लड़कियka गिरफ्तार
मुन्ना भाई एमबीबीएस को मात दे रही

अब पटना की लड़कियां भी मुन्ना भाई एमबीबीएस को मात दे रही है। शास्त्रीनगर थाने की पुलिस ने ऐसी 24 लड़कियों को गिरफ्तार किया है जो किसी दूसरे के बदले परीक्षा दे रही थी । खबर के मुताबिक पटेलनगर स्थित संत अलबर्ट हाई स्कूल में पारा मेडिकल की परीक्षा चल रही थी । परीक्षक ने जब एक छात्रा का एडमिट कार्ड चेक किया तब उसके होश उड़ गये । एडमिट कार्ड पर किसी और छात्रा का फोटो था और परीक्षा देने वाली छात्राएं कोई और ही थीं । एडमिट कार्ड चेक करने के दौरान पता चला कि दो दर्जन लड़िकया किसी दूसरी के बदले परीक्षा रही थीं । हैरानी की बात ये थी कि चोरी पकड़े जाने के बावजूद ये लड़िकया सीनाजोरी कर रही थी . कुछ लड़िकयां तो ये मानने को तैयार ही नही थी कि वे फर्जी है और किसी और की कांपियां लिख रही है . लेकिन कुछ लड़कियां स्कूल प्रबंधन की सख्ती के सामने झूक गयीं . उन्होने स्वीकार कर लिया कि मुन्ना भाई एमबीबीएस की तरह वे आज दूसरे के लिए परीक्षा दे रही है . स्कूल प्रबंधन ने शास्त्रीनगर थाने को फोन कर सूचना दी और ये सारी लड़िकयां हिरासत में ले ली गयी हैं . पुलिस इनसे कड़ी पूछताछ कर रही है . पुलिस का मानना है कि ये सभी लड़िकयां दो हजार से पांच हजार रुपये लेकर किसी दूसरे के बदले परीक्षा दे रही थीं . खास बात ये है कि ये सभी लड़कियां काफी होनहार है . कोई बड़े धर की बेटी है तो कोई छात्रावास में रहती है . पुलिस इस मामले में कुछ भी बोलने को तैयार नही है . क्योकि ये लड़कियां है और किसी बड़े धर की बेटी हो सकती है . पुलिस दिन भर इस खबर पर पर्दा डालती रही लेकिन खबर इतनी बड़ी थी कि जंगल की आग की तरह फैल गई . पुलिस का कहना है कि ये अपने तरह का पहला मामला है . जब दो दर्जन से भी ज्यादा लड़कियां दूसरे के बदले परीक्षा देती पकड़ी गयी है . अभी तक लड़कों के बदले दूसरे लड़के परीक्षा दे रहे थे . लेकिन इस घटना से साबित हो गया कि बिहार की लड़कियां जालसाजी और गैरकानूनी काम मे भी लड़को से काफी आगे है . पुलिस पकड़ी गयी लड़कियों से पूछताछ कर उन लड़कियों के बारे में पता कर रही है जिनके बदले में ये परीक्षा दे रही थी .

Sunday, August 2, 2009


नक्सलियों के कारण दम तोड़ रही योजाना


औरंगाबाद में केन्द्र सरकार द्वारा चलायी जा रही मज़दूरों के लिए रोजगार गारंटी योजना नक्सलियों के कारण दम तोड़ रही हैं।इस योजना के तहत मज़दूरो को मज़दूरी कम और लूट-खसोट ज्यादा हो रही है।
राष्ट्रीय रोज़गार गारंटी योजना जिसे मज़दूरो की सहूलियत के लिए बनाया गया है।लेकिन औरंगाबाद का देव प्रखंड पंचायत अतिनक्सल प्रभावित होने के कारण इस योजना पर नक्सलियों की नज़र लग गयी है। इस पंचायत में नरेगा की योजनाओं में कार्य कराए बगैर ही पैसे निकाल लिए जाते है और पंचायत में मज़दूरों का मास्टर रौल भी फर्जी बनते हैं। इधर नक्सलियों से अगर कुछ बचता है तो उसका फायदा नरेगा के कार्य कराने वाले अभिकर्ता व अधिकारी उठाते है।जब हमारे संवाददाता ने इस कार्य योजना की सच्चाई के बारे में जानना चाहा तो उनका जवाब कुछ यूं था।
यह योजना लूटखसोट का पर्याय बन गया है, इस योजना के तहत मज़दूरो से मज़दूरी तो करायी जाती है लेकिन उन्हें उचित पैसे नही मिलते।इधर पंचायत में बिना ग्राम सभा में पारित योजनाओं का कार्य भी कराया जा रहा है और इन सब के बीच ख़ामियाज़ा मज़दूरों को उठाना पड़ रहा
बहरहाल अब जरूरत है कि इस योजना की केन्द्रीय स्तर पर जांच हो ताकि इसका फायदा मज़दूरों को मिल सके।


DOSTI

Happy friendship day
अहसास भर से
चेहरे पर
खुशियां छाने लगती हैं.
मन में हजारों ख्याल
सात समंदर पार
अपने बीते पल में
खोये-खोये ख्वाबों में
अपनी दोस्ती के
सफर करने लगती है.
खुशियों का बसेरा
दिल में
उल्लासों का सबेरा है
हर के चेहरे पर
देखो !
दोस्ती के नाम पर
मन के सारे तार
बजने लगती है.
इसके कोई दायरे नहीं
कब किससे हो जाए
कह पाना आसान नहीं
ये वैसे रिश्ते हैं
जहां पहुंचकर
सारी मुश्किलें
खुद-ब-खुद
हल होने लगती है.
बीते कल की यादें
बचपन की खुश्बू
जवानी के सपने
याद आते हीं
होठों पर मुस्कान
तैर जाती है.
कभी-कभी तो लगता है
कि
सबसे सुखी है वो इंसान
जो सपनों से
दोस्ती करना सीख जाता है,
दोस्ती यानी त्याग,
समर्पण-बलिदान के नींव पर टीकी
सबसे नाजूक रिश्ता कहलाती है.
----मुरली मनोहर श्रीवास्तव

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HIMMAT SE KAM LOGE TO ZMANA V SATH DEGA...HO GAYE KAMYAB TO BCHACHA-BCHCHA V NAM LEGA.....MAI EK BAHTE HWA KA JHOKA HU JO BITE PAL YAD DILAUNGA...HMESHA SE CHAHT HAI KI KUCHH NYA KAR GUZRNE KI...MAI DUNIA KI BHID ME KHONA NHI CHAHTA....