Wednesday, December 19, 2012


                  मानो तो मैं गंगा मां हूं ... ना मानो तो बहता पानी...

                                       इन गीतों के धुन आज भी गंगा मइया के लिए दिलों में श्गंरद्दधा जगाती है तो इस मैली होती गंगा के लिए कई बार कदम उठाए गए, मगर अब तक कोई माकूल बचाव नहीं हो सका. गंदगी की मार झेल रही गंगा को गंदगी बचाने के लिए सरकार ने ज़ोर आजमाइश की  लेकिन फिर चाहे गंगा एक्शन प्लान हो या नेशनल गंगा रिवर बेसिन का गठन करोड़ो रुपये खर्च होने के बाद भी गंगा मैली ही है.
                                      दुखों को दूर करने वाली मां गंगा की गोद में भक्तगण सालों-साल से डुबकियां लगाते आए है... लेकिन आज मां गंगा मैली हो चुकी है...मैली गंगा को साफ किए जाने की मुहिम छिड़ चुकी है... लेकिन ये मुहिम सियासत के गलियारों में कही नरम तो कही गरम दिखाई दे रही है... खासकर उस राज्य के मुखिया के तेवर नरम दिखाई दे रहे है जहां से गंगा निकलती है...
                                              विजय बहुगुणा को छोड़कर तीनों मुख्यमंत्रियों ने कहा कि गंगा साफ-सुथरी और पवित्र होनी चाहिए...ये बैठक का मुख्य मुद्दा था... लेकिन परिणाम नहीं निकला ... गंगा के लिए अनशन तब तक जारी रहेगा... जब तक कोई परिणाम नहीं निकलता...
                                    साल 1985 में गंगा एक्शन प्लान लागू हुआ... इसके तहत गंगा में नालों को मिलने से रोकना था... लेकिन ढाक के तीन पात की तरह ये प्लान फेल हो गया... पर्यावरण सुरक्षा अधिनियम 1986 के तहत नेशनल गंगा रिवर बेसिन का गठन हुआ... जिसके तहत गंगा की साफ-सफाई और विभिन्न योजनाओं के लिए 2589 करोड़ रुपये आवंटित किए गए थे... नेशनल गंगा रिवर बेसिन की तीसरी बैठक में गंगा को बचाने के लिए बाचतचीत की गई...फिल्म राम तेरी गंगा मैली में अभिनेता राज कपूर ने इन गीतों के माध्यम से एक बड़ा थीम दिया था....
                  राम तेरी गंगा मैली हो गई पापियों के पाप धोते-धोते.........
                                     माना जा रहा है कि गंगा की 50 फीसदी गंदगी के लिए यूपी जिम्मेदार है... अकेले इलाहाबाद में गंगा और यमुना के 50 गरीब नाले गिरते है...जबकि गंगा एक्शन प्लान लागू होने से पहले यहां केवल 13 नाले थे.
                                     हालांकि गंगा को बचाने के लिए विश्वबैंक ने भी 7 हजार करोड़ रुपये की मदद के लिए सहमति दी थी... यही नहीं साल 2010 में पर्यावरण एवं वन मंत्रालय और देश की सात आईआईटी के बीच एक MO साइन हुआ... जिसका उद्देश्य नदी के पूरे सिस्टम को रिस्टोर करना और नदी के इकोलॉजिकल बैलेंस को बनाए रखना था... गंगा को साफ करने की मुहिम से जुड़े लोग अपने मकसद को पूरा करने के लिए हर संभव कोशिश के लिए तैयार है...

                                       गंगा एक्शन प्लान कितने एक्शन में है... ये गंगा में बहती गंदगी साफ बयां करती है... ये हाल तब है जब गंगा की सफाई को लेकर सरकार 2 हजार करोड़ रुपए खर्च कर चुकी है लेकिन हैरानी है कि हालात जस के तस बने है. एक लंबे समय से गंगा को बटाने की मुहिम जारी है, कोई इसका निदान नहीं  निकल रहा है . अगर इस तरह इस पर ध्यान नहीं दिया गया तो कहीं गंगा भी विलुप्त सरस्वती नदी की तरह न हो जाए. और आने वाली पीढ़ी को सिर्फ किताब के पन्नों तक पढ़ने को मिले यानि कोरी कल्पना....

                                विववेेेिेवि
लुप्ति के कगा      विलुप्त होती हस्तकलाएं हस्तकलाएं           

                             झारखंड एक संपन्न प्रांत है. यहां कला,कौशल और मेहनती लोगों की कमी नहीं. यहां के लोग अपनी मेहनत के बूते आए दिन एक नई इबारत लिखते हैं. लेकिन वक्त के साथ पुराने किस्से-कहानियों की तरह होती जा रही है यहां कि हस्त कलाएं.
                              झारखंड की कई ऐसी हस्त कला है जो अब बिलुप्त होने के कगार पर है।....इन्ही में से एक है खजूर की टहनियों पर की गयी कारीगरी।....लेकिन बदलते दौर में यह कलाकृति और इन्हे बनाने वाले कारीगर दोनो दम तोड़ रहे है।
                                    एक समय था जब हमारा भारत अपने कलाकृतियो के लिए जाना जाता था।.... इन्ही कलाकृतियो में से एक था खजूरो कि टहनियो से बननें वाले सामान, जो की अब यदा कदा ही देखने को मिलता है।....काम के अनुसार सही मेहनताना नही मिलने के कारण और साल में केवल 6 महिने ही उपयोग होने के कारण इससे जुड़े कारीगर अब यह कारीगरी छोड़ने को मजबूर हो रहे हैं।....

                                     बदलते समय के साथ साथ लोगो का नजरिया भी बदलता जा रहा है.लोग पेड़ के टहनियो से बनने वाले सामानो की जगह प्लास्टिक से बने सामानो को ज्यादा तवज्जो देने लगे है, ज्यादातर खरीदारो का भी मानना है कि आधुनिकता के इस दौर में चीजो का खुबसुरत होना ज्यादा जरूरी है.

                                      जरूरत है बिलुप्त होती इस हस्त कला को सपकारी संरक्षन मिलने की, ताकि इस हस्त कला के कारीगर और उनकी कला दोनो को बचाया जा सके....नहीं तो यह कारीगर और इनकी कलाकृतियां इतिहास के पन्नो में ही सिमट कर रह जाएगी।

                                      घरों के चूल्हे नहीं जलते...
                        
                                       मजदूरों की गरीबी और भूखमरी दूर हो सके इसके लिए सरकार कई योजनाएं चला रही है.लेकिन इन योजनाओं का क्या हश्र होता है इसकी बानगी बिहार में आए दिन देखने को मिलती हैं.यहां मनरेगा के तहत मजदूरों को न तो रोजगार मिला और न रोटी.

                                     सर पर ईंटे ढ़ोते हैं ये, लेकिन आशियाने किसी और के बनते हैं.ये ढ़ोती हैं टोकरियां लेकिन जो सड़कें बनती हैं उस पर दौड़ती हैं किसी और की गाड़ियांहर दूसरे दिन इनके घरों के चूल्हे नहीं जलते और जब जलती भी हैं तो थाल में सजती हैं सिर्फ रोटियां.ये कहानी चन्द मजदूरों की बदहाली की नहीं बल्कि सूबे में दम तोड़ती मनरेगा योजना की भी है.

                                              समस्तीपुर के दलसिंहसराय प्रखण्ड के करीब दर्जनों पंचायत में गरीबों की तंगहाली को दूर करने के नाम पर मनरेगा योजना की शुरूआत की गई थी.लेकिन बाकी सारी योजनाओं की तरह इस योजना ने भी अपने घुटने टेकने शुरू कर दिये हैं.सरकार ने मनरेगा जैसी दूरदर्शी योजना को धरातल पर तो जरूर उतारा. पहले तो ये सरकार के लिए सुर्खियां बटोरने का माध्यम बनी फिर अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों की लूट-खसोट का जरिया.यह हाल तो सिर्फ एक जगह का आपने देखा या सुना अभी इस तरह के हाल से परेशान है प्रदेश, अगर वक्त रहते इस पर ध्यान नहीं दिया जाएगा तो वो दिन दूर नहीं जब अपराध, नक्सल,अपहरण जैसी अमानवीय घटनाओं में भारी मात्रा में बढ़ोतरी होगी और इस समाज का बिद्रुप रुप सबको भयावह लगने लगेगी.

                                      प्रखण्ड में मनरेगा पीड़ितों की ये दुर्दशा 2009 से ही परवान पर है. इस हकीकत को बयां करती हैं मजदूरों के खाली पड़े ये जॉब कार्ड.महज 12 दिनों का काम देकर खानापूर्ति कर ली गई और उसकी भी रकम अदायगी आज तक नहीं हो सकी.आलम ये है कि अधिकारियों और बिचोलियों की पौ-बारह है.जबकि गरीबों के लिए वही भूख की बेबसी और पलायन की मजबूरी.

                                                अब जब मामला उजागर हो चुका है.तो ज़ाहिर सी बात है कि जांच कमिटियां बैठेंगी.गहन चर्चा-परिचर्चा होगी लेकिन गरीबों के दिन सुधरेंगे और भूख मिटेगी, तन पर कपड़े सजेंगे ये उम्मीद करना जल्दबाजी ही होगी.

Monday, December 10, 2012

                                 चांदनी रात में दीदार होंगे काले हिरण के

                                                 भोजपुर और बक्सर जिले के दियारा क्षेत्र में  कृष्ण मृग बड़ी संख्या में पाए जाते हैं. कृष्ण मृग का मतलब काला हिरण, जिसका दीदार इस एरिया के लोग भाखूबी करते हैं. लेकिन एक बड़ी आबादी यह नहीं  जानती कि कैसे दिखते हैं काले हिरण. आम लोग उन्हें देखने को लालायित रहते हैं. तो प्रशासन इनकी सुरक्षा को लेकर चिंतित रहता है.
                                                अब आम जनता के लिए सरकार ने एक निर्णय लेते हुए इन्लिहें देखने के लिए एक योजना बनाई है. कृष्ण मृग हमारे देश में प्राकृतिक का बेद खूबसुरत उपहार है. काला हिरण बक्सर और आरा जिले के इलाके में आमतौर पर विचरण करते पाए जाते हैं. बिहार सरकार के पर्यटन विभाग ने इनके दीदार के लिए पर्यटन बस चलाने की योजना बनाई है. जो इन इलाकों में लोगों को घुमाएगा भी और ठहरने का भी प्रबंध किया जाएगा.
                                               इन दियारा इलाकों में विचरण करने वाले काले हिरण शिकारियों के भी निसाने पर रहते हैं. आए दिन इनका शिकार हो जाता है. वैसे तो आम ग्रामीण काला हिरण के शिकार से काफी खफा है कि अपने सवार्थ में लोग इन्हें मार डालते हैं. आपको बता दें कि इसी काले हिरण के शिकार करने के मामले में चर्चित सिने स्टार सलमान खान को सजा सुनाई गई थी. मगर यहां लोग खुलेआम शिकार कर रहे हैं और कोई देखने वाला नहीं है.लोगों में इस बात का भी रोष रहता है कि इनके संरक्षण के लिए सरकार कोई कारगर कदम नहीं उठा रही है. जिससे ऐसा लगता है कि प्रकृति का ये बेहतरीन पशु कहीं विलुप्त न हो जाएं.
पर्यटन विभाग के इस पहल से ग्रामीणों में उम्मीद की किरण जागी है. इस इलाके में लोग चांदनी रात में लग्जरी बस से काले हिरण को देख पाएंगे. सरकार इनकी सुरक्षा के लिए कदम बढ़ा चुकी है. बस जरुरत है आम जनता को भी इसके लिए पहल करने की
1998 में फिल्म 'हम साथ साथ हैं' की शूटिंग के दौरान जोधपुर में काले हिरण का शिकार करने को लेकर फिल्म के हीरो सलमान खान सहित तब्बू, नीलम और सैफ अली खान के खिलाफ दायर किये गये केस के चलते अब जोधपुर कोर्ट ने इन चारों एक्टरों को कोर्ट में पेश होने का नोटिस दिया है। कुछ समय पहले ही खबर आई है कि सलमान खान को जोधपुर कोर्ट में हाजिर होने के लिए समन भेजा गया है और साथ ही उनसे साथ इस केस में शामिल अन्य तीनो एक्टरों तब्बू, नीलम और सैफ को भी उनके साथ आने को कहा गया है। ज्ञात हो कि इस केस को लेकर जोधपुर के विश्नोई समाज ने काफी विरोध जताया था और उन्होंने ही इस केस को दर्ज भी कराया था। कोर्ट ने सलमान खान को इस मामले में वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शअन एक्ट 1972 के सेक्शन 51 के तहत दोषी पाया था। सलमान खान इस केस के दौरान तीन रातें जोधपुर के सेंट्रल जेल में बिता चुके हैं। अरेस्ट होने के बाद और तीन दिन जेल में बिताने के बाद सलमान खान को डिस्ट्रिक्ट कोर्ट ने बेल पर छोड़ दिया था उसके बाद सलमान ने 9 मार्च 2006 को अपनी तरफ से अपील दायर की थी। कुछ दिन पहले भी इस केस को लेकर कई खबरें आई थीं लेकिन अब जाकर कोर्ट ने इस केस पर सलमान और बाकी तीनों कलाकारों को कोर्ट में पेश होने के लिए समन भेजा है।

1998 में फिल्म 'हम साथ साथ हैं' की शूटिंग के दौरान जोधपुर में काले हिरण का शिकार करने को लेकर फिल्म के हीरो सलमान खान सहित तब्बू, नीलम और सैफ अली खान के खिलाफ दायर किये गये केस के चलते अब जोधपुर कोर्ट ने इन चारों एक्टरों को कोर्ट में पेश होने का नोटिस दिया है। कुछ समय पहले ही खबर आई है कि सलमान खान को जोधपुर कोर्ट में हाजिर होने के लिए समन भेजा गया है और साथ ही उनसे साथ इस केस में शामिल अन्य तीनो एक्टरों तब्बू, नीलम और सैफ को भी उनके साथ आने को कहा गया है। ज्ञात हो कि इस केस को लेकर जोधपुर के विश्नोई समाज ने काफी विरोध जताया था और उन्होंने ही इस केस को दर्ज भी कराया था। कोर्ट ने सलमान खान को इस मामले में वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शअन एक्ट 1972 के सेक्शन 51 के तहत दोषी पाया था। सलमान खान इस केस के दौरान तीन रातें जोधपुर के सेंट्रल जेल में बिता चुके हैं। अरेस्ट होने के बाद और तीन दिन जेल में बिताने के बाद सलमान खान को डिस्ट्रिक्ट कोर्ट ने बेल पर छोड़ दिया था उसके बाद सलमान ने 9 मार्च 2006 को अपनी तरफ से अपील दायर की थी। कुछ दिन पहले भी इस केस को लेकर कई खबरें आई थीं लेकिन अब जाकर कोर्ट ने इस केस पर सलमान और बाकी तीनों कलाकारों को कोर्ट में पेश होने के लिए समन भेजा है।

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          राह के बटोही - डॉ. सच्चिदानंद सिन्हा
                                                                                                    --मुरली मनोहर श्रीवास्तव

धीरे-धीरे यूं ही उनकी कीर्तियां, धुमिल पड़ जाती हैं क्या,
जो गढ़ते हैं इतिहास, उन्हें लोग कभी याद करते हैं क्या....मुरली

         वर्षों बीत गए, मगर उस घर में आज तक कोई दीप नहीं जल सका. कोई उसे सुरक्षित करना भी मुनासिब नहीं समझा. लोग आते गए, शब्दों से नवाजते गए. इसे विडंबना नहीं तो और क्या कहेंगे जिस व्यक्तित्व को पूरी दुनिया अविभाजित आधुनिक बिहार के निर्माता के रुप में जानती है वो अपने ही में घर बेगाने हैं. हम बात कर रहे हैं संविधान सभा के प्रथम अस्थायी अध्यक्ष डॉ. सच्चिदानंद सिन्हा की.
बिहार को उंचा उठाना ही इनके जीवन की एकमात्र प्रबल अभिलाषा थी. इन्होंने बिहार टाइम्स नामक पत्र के संचालन में तथा इलाहाबाद की कायस्थ पाठशाला को सर्वांगीण विकास में अपना पूरा सहयोग दिया था. सिन्हा साहब ने ही हिन्दुस्तान रिव्यू तथा इंडियन पिपुल नामक पत्रों को निकाला. सिन्हा साहब का जन्म बिहार के बक्सर जिले के डुमरांव अनुमंडल के मुरार गांव के एक कायस्थ कुल में 10 नवंबर 1871 को हुआ था. इनके पितामह बख्शी शिवप्रसाद सिन्हा डुमरांव अनुमंडल के तहसीलदार थे. इनके पिता बख्शी रामयाद सिन्हा एक उच्चकोटि के वकील थे तथा ये स्वभाव से ही परोपकारी एवं उदार थे.
बाल्यकाल में बड़े लाड़-प्यार से सिन्हा साहब का लालन-पालन हुआ. इनकी प्रारंभिक शिक्षा आरा जिला स्कूल में हुई थी. ये बचपन से ही बड़े कुशाग्र बुद्धि के थे. अपने सहपाठियों में ये सदा सर्वोत्तम हुआ करते थे तथा उनके सरदार बने रहते थे. इस कारण डॉ. सिन्हा की कुछ क्षति भी हुई, परंतु इन्होंने सभी कठिनाइयों पर विजय प्राप्त की.
होनहार वीरवान के होत चिकने पात वाली कहावत इन पर ठीक लागू होती थी. आरा जिला स्कूल से मैट्रिक पास कर आगे की पढ़ाई के लिए ये कोलकाता चले गए. इन्हें विदेश जाने की प्रबल इच्छा थी. अतः बिहार से विदेश जाने वाले प्रथम व्यक्ति डॉ. सच्चिदानंद सिन्हा ही थे, जो 18 वर्ष की अवस्था में ही सिन्हा साहब कट्टर सनातनियों के घोर विरोध की कुछ भी परवाह न कर विलायत चले गए, इस प्रकार इन्होंने बिहार के हिन्दुओं को विलायत जाने का मार्ग निष्कंटक बना दिया.

                             (10 नवंबर डॉ.सिन्हा जी के जन्म दिवस पर विशेष)

तीन वर्ष तक रहकर बैरिस्ट्री पास की और पुनः वर्ष 1893 में भारत लौट आए. इन्होंने सर्वप्रथम इलाहाबाद के हाईकोर्ट में अपनी बैरिस्ट्री आरंभ की थी, फिर 10 वर्ष के बाद ये पटना लौट आए थे. डॉ. सिन्हा ने अपनी शादी पंजाब के कायस्थ परिवार में की थी, मगर गांव के विरादरीवालों ने इसका विरोध किया, पर डॉ. सिन्हा ने इसकी कुछ भी परवाह न की.
बिहार और बंगाल को अलग करने के लिए आंदोलन शुरु था, इन्होंने उसी पर एक छोटी सी पुस्तक लिखी थी. इन्हीं के संघर्षरत जीजिविषा के कारण बंगाल से बिहार पृथक हो गया, यही कारण है कि डॉ. सिन्हा आधुनिक बिहार के पिता कहे जाते हैं. मुरार गांव शिक्षा के ख्याल से बहुत प्राचीन काल से ही शाहाबाद जिले के अंतर्गत (वर्तमान बक्सर जिला) अपना एक विशिष्ट स्थान रखता था. यहां सन् 1868 . में एक मिडिल इंगलिश स्कूल अत्यंत सुव्यवस्थित रुप में चलाया जा रहा था. ये स्कूल उस प्राचीन काल में अपने जमाने का प्रथम स्कूल माना जाता है. इनकी ख्याति अनेक दूर-दूर गांव में विख्यात थी. जबकि सन्1941 में यह मि..स्कूल को वर्तमान हाई स्कूल के साथ मिला दिया गया.
अपने जीवन में हर बार एक नई इबारत लिखने वाले डॉ.सिन्हा को बड़े लाट साहब व्यवस्थापिका सभा के सदस्य भी चुना गया. बिहार में एक हाईकोर्ट और विश्वविद्यालय स्थापित करने के लिए इन्हें सदा लड़ना पड़ा था. बिहार नामक दैनिक भी इन्हीं की उत्कंठा का परिणाम रहा. दान में भी कभी पीछे नहीं हटने वाले डॉ. सिन्हा ने पटना में पुराना सचिवालय की भूमि को दान में दिया, तो पटना का सिन्हा लाईब्रेरी को भी स्थापित करने का श्रेय जाता है. मगर मुरार गांव में उनकी जन्मभूमि आज विरान पड़ी है. अब तो कुछ लोगों द्वारा उसे अतिक्रमित भी किया गया है. सरकारें बदलती रहीं मगर नहीं बदली तो उनके पैतृक गांव की स्थिति, वह सिर्फ एक कहानी बनकर रह गई है.
सन् 1921 . में डॉ.सिन्हा अर्थ सचिव और कानून मंत्री 5 वर्ष के लिए बनाए गए थे. तत्-पश्चात ये पटना विश्वविद्यालय के उपकुलपति पद पर नियुक्त हुए थे. इनके समय में शिक्षा एवं न्याय के क्षेत्र में उन्नति हुई थी. प्रदेश से लगायत उस अंग्रेजी शासन के शीर्ष पर बैठे प्रत्येक शासक, बुद्धिजीवी वर्ग इनकी सहृदयता, विद्वता एवं लक्ष्य के प्रति दक्ष तरीके से परिणाम तक पहुंचने की कला का लोहा मानता था.
डॉ.सिन्हा आरंभ से ही कांग्रेस के सदस्य थे और आजीवन सदस्य बने रहे. वर्ष 1912 . के इंडियन नेशनल कांग्रेस के अधिवेशन के जेनरल सेक्रेटरी भी थे. ये नरम दल के नेताओं में एक थे. महात्मा गांधी की मृत्यु के बाद सिन्हा साहब ही कांग्रेस के वयोवृद्ध नेता थे. इसी कारण उन्हें स्थायी कांग्रेस के सदस्य बना दिए गए. इनकी शारीरिक अवस्था ढ़ल जाने के कारण ही सन् 1946 . में डॉ.सच्चिदानंद सिन्हा को संविधान सभा के अस्थायी सदस्य बनाए गए.
विद्या से सिन्हा साहब को काफी अनुराग था. इनकी विद्यानुरागिता का सबसे बड़ा कीर्ति स्तंभ पटना का सिन्हा पुसिताकालय है. यह नगर का सबसे बड़ा पुस्तकालय है. इस पुस्तकालय में जितनी पुस्तकें उस वक्त थी डॉ. सिन्हा साहब की पढ़ी हुई थी.
06 मार्च 1950 को डॉ.सिन्हा दुनिया से कूच कर गए पर हमारे हृदय में आज भी अमर हैं. ये मुरार और बिहार के ही नहीं बल्कि बारत के सर्वश्रेष्ठ नेताओं में से एक दूरदर्शी नेता थे. स्वतंत्रता के पुजारी, सरस्वती एवं न्याय की देवी के उपासक रहे हैं.
.............................मुरली मनोहर श्रीवास्तव  (पत्रकार सह लेखक



Sunday, December 9, 2012

मुझे एक बेटी है

बेटी !
प्रेम और पीड़ा का प्रतीक है.
प्रेम उनके लिए ,
मेरे लिए
जो जननी के रूप में देखते हैं.
पीड़ा उनके लिए
जो दकियानुसी विचारों में जीते हैं.
बेटी क्या होती है ?
एक बाप ही समझ सकता है.
क्योंकि
अक्सर पत्नी से
जब सुखद विवाद होता है,
तो बेटी ही बाप का पक्ष लेती है.
मैं खुशनसीब हूं,
मुझे एक बेटी है.
थक हारकर जब आता हूं
तो बड़े प्यार से कहती है
पापा, आप क्यों उदास हो
फिर चेहरे पर हंसी लौट आती है.
आज की बेटी
कल की समाज है
बेटी मुझे है, मुझे इस पर गर्व है
ईश्वर आपको भी दे
यही कामना है.
         .......सुनील पांडेय (पत्रकार)

महादलितों के लिए बनी योजनाएं नहीं उतरी जमीन पर

     महादलितों के लिए बनी योजनाएं नहीं उतरी जमीन पर 
           
                        राज्य महादलित आयोग सूबे के महादलितों के कल्याण के लिए बना। बने हुए पांच साल भी हो गये...इन पांच सालों में महादलितों के की योजनाएं पूरी तरह जमीन पर तो नही उतरीं लेकिन आयोग के भीतर की अनियमितताएं और आपसी खीचतान सतह पर जरुर आ गया है।
                         राज्य महादलित आयोग में सब कुछ ठीक ठाक नही चल रहा है। इस बात की तस्दीक आयोग के सदस्य रामचंद्र राम का इस्तिफा देते वक्त उठाये गये सवाल ही करते है।
                         राज्य महादलित आयोग के अध्यक्ष उदय मांझी अपने सदस्य के इस्तिफे की नियत पर तो सवाल उठा रहें है लेकिन इस्तिफे के वक्त उठाये गये एतराजों से भी इत्तेफाक रखते है।
                         लड़ाई महज़ राज्य महादलित आयोग और राज्य महादलित मिशन की नही है। आयोग के अध्यक्ष समेत सदस्य भी तकरीबन 9 महिनों से दफ्तर में अपने सचिव का दिदार तक नही कर पाये है। उनका चेंम्बर में खाली पड़ी ये कुर्सी इस बात की तस्दीक भी करती है।
                         जिस संस्था के कंधों पर महादलितों के कल्याण की जिम्मेवारी है, वहीं पर अंधेरगर्दी के ये नमूने इस बात को बताने के लिए लिए काफी है कि महादलितों की जमीनी हलकीकत सूबे में कहां है।
प्रमोद चतुर्वेदी की रिपोर्ट

Friday, December 7, 2012

                       हिन्दी ग्रन्थ अकादमी
पूरे विश्वविद्यालयों में हिन्दी को बढ़ावा दिया जा सके और उसके लिए हिन्दी में पुस्तकें सुलभ हो इस उद्देश्य के साथ देश के सभी राज्य़ो में 1970 के आसपास हिन्दी ग्रन्थ अकादमी का गठन किया गया..बिहार भी उनमें से एक है..लेकिन 41 साल के बाद हिन्दी की स्थिति को दर्शाने वाला ग्रन्थ अकादमी अपनी पूरी कहानी बयां कर रहा है

एक करोड़ चालिस लाख पुस्तकों वाला पुस्तकालय का मालिक है बिहार हिन्दी ग्रन्थ अकादमी..और अकादमियों की अपेक्षा इसकी स्थिति थोड़ी अच्छी है...यहां के कर्मचारियों को पंचम वेतन आयोग के आधार पर भुगतान होता है...इसके पास अपना भवन है..और किताबे बिकती हैं..कुछ आमदनी भी होती है..लेकिन फिर भी शिकायत बनी हुई है

अकादमी की स्थिति अन्य जगहों के अपेक्षा ज्यादा अच्छी है..लेकिन अपने शुरूआती दिनों में तीन लाख अस्सी हजार का राजकीय अनुदान पाने वाला ये अकादमी आज 80 लाख सालाना अनुदान पाता है..पर खर्च तकरीबन एक करोड़ 37 लाख के आसपास है

अपने स्थापना काल से इस अकादमी ने अब तक 375 टाइटिक की किताबों को प्रकाशित कर चुका है...उद्देश्य है हिन्दी को छात्रों के बीच सुलभ करना...लेकिन बदलते पढ़ाई के विषयवस्तु ने हिन्दी को जब पीछे की ओर धकेलना शुरू किया..तो अकादमी का कहना है कि सरकार अब इसे अपने अंदर सीधे तौर पर लेले...देश के सभी राज्य ऐसा कर चुके हैं
धीरेंद्र की रिपोर्ट

Thursday, December 6, 2012

भोजपुरी अकादमी के अध्यक्ष रविकांत दुबे के साथ मुरली की भेंटवार्ता 

सड़क से सदन तक भोजपुरी के लिए संघर्ष जारी है...कभी आठवीं अनुसूची में दर्ज करने के लिए...तो अब भोजपुरी दिवस के रुप में मनाने के लिए भी आवाज उठने लगी है.
भोजपुरी एक लोकप्रिया भाषा है...इसे बोलने वाले लोगों की संख्या 25-30 करोड़ से भी ज्यादा है...इस भाषा के बोलने वाले हिन्दुस्तान के पूर्वोत्तर राज्यों के अलावे कई देशों में भी हैं....लेकिन इसके लिए कोई दिवस अब तक नहीं निर्धारित किया जा सका है....

भोजपुरी के विकास और संवैधानिक पहचान के लिए सड़क से लेकर सदन तक लड़ाई लड़ी जा रही है...की लड़ाई लड़ी जा रही है...इसे अष्टम सूची में दर्ज करने की बात पर बहस का होना आम हो गया है...लेकिन भोजपुरी भाषी ही अपने घर में भोजपुरी बोलने से परहेज कर रहे हैं...जब तक घर में नहीं बोली जाएगी विकास संभव नहीं...

(पी.चिदंबरम ने सदन में कहा था - हम रउवा सभे के भावना के समझत बानी....मगर वो भावना के साथ अब तक कोई निर्णायक भूमिका नहीं निकाल सके...)
भोजपुरी को आठवीं अनुसूची में दर्ज करने के लिए आम-आवाम की उठती आवाज के बाद सदन में भी यह आवाज गुंज गई...लेकिन इस पर कितना कारगर कदम उठाया गया सभी वाकिफ हैं.....

अब देखने वाली बात है कि कब तक भोजपुरी को आठवी अनुसूची में जगह मिलती है...और इसके लिए किसी दिवस का कब तक निर्धारण किया जा सकेगा...
मुरली मनोहर श्रीवास्तव 

Tuesday, June 12, 2012


इच्छा मृत्यु मांग रही सोनाली  .
बोकारो की 27 वर्षीय सोनाली मुखर्जी अपने जीवन की बोझ भरी जिन्दगी से मायूस होकर इच्छा मृत्यु की मांग प्रशासन से कर रही है .सोनाली बोझ की जिन्दगी जीने को मजबूर है पिछले आठ सालो से कानूनी प्रक्रिया में फंसे मामलों से अब सोनाली पूरी तरह से उब गयी है .जिसके कारण सोनाली मुखर्जी इच्छा मृत्यु मांग रही है .सोनाली की जिन्दगी को बर्बाद करने वाला तीन हैवान युवक को उसकी कड़ी की सजा तो नहीं मिली और पैसे के बल पर निचली अदालत से जमानत पर रिहा हो गया है और मौज मस्ती की जिंदगी जी रहा है साथ ही बाहरी जिन्दगी मे सोनाली को बार -बार धमकी देने की वजह से सोनाली का परिवार भागा फिर रहा है.पढने लिखने में तेज तर्रार सोनाली पढ़ लिखकर कुछ करना चाहती थी .उसने झारखण्ड बिहार का एनसीसी का कॉलेज के समय मे कामंडेट भी रह चुकी है और इस लिए सोनाली ने उन बदमाशों का मुकाबला किया लेकिन उन बुजदिलों ने सोनाली को सोने के क्रम मे सोनाली के चेहरे पर तेजाब डाल दिया जिससे सोनाली का पूरा का पूरा चेहरा जल गया .
                        बोकारो जिला के कसमार प्रखंड के धधकी गाँव की रहने वाली सोनाली वर्ष 2003 मे धनबाद के बरवाडा थाना के क्षेत्र मे अपने परिवार के साथ एक किराया के मकान में रहती थी .सोनाली के पिता चंडी दास मुखर्जी एक निजी कंपनी में गार्ड का काम करते थे .घर में बूढी दादी ,माँ ,पिता एक बहन और एक भाई था लेकिन उसी वर्ष के 22 अप्रैल को एक ऐसा हादसा हुआ की जिससे न सिर्फ सोनाली की सूरत बदल गयी साथ ही जिन्दगी भी बदल गयी .
पड़ोस के तीन मनचले युवकों ने अपने इस हैवानियाह से सोनाली को बदसूरत बना दिया .इस हैवानियत के खेल मे सोनाली की बहन भी शिकार हुई लेकिन सोमा बहुत ज्यादा नहीं जली ..यह घटना छेड़खानी का विरोध करने के कारण हुआ .मामला को बरवाडा थाना मे दर्ज कराया गया है .तीनो मनचले युवक को कुछ साल की सजा भी हुई लेकिन उन लोगों ने उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया जहां से उन युवकों को जमानत मिल गया है.
                     सोनाली ने इन्साफ और मदद के लिए किसका दरवाजा तक नहीं खटखटाया विधायक से लेकर सांसद तक यंहा तक ही नहीं झारखण्ड के तीनो मुख्यमंत्री तक साथ ही शिबू सोरेन तक के घर का दरवाजा खटखटाकर गुहार लगायी लेकिन हार दरवाजे पर सिर्फ आश्वासन के आलावे और कुछ भी हासिल नहीं हुआ तो सोनाली ने अब अपने जीवन से हारकर झारखण्ड के महिला आयोग के कार्यालय पर अपनी इच्छा मृत्यु की गुहार लगायी है की मुझे अब मौत दे दिया जाय ताकि सोनाली किसी की बोझ बनकर न रहे .
               सोनाली के परिवार की माली हालत अच्छी नहीं है पिता पूजा पाठ कराकर किसी तरह से रोजी-रोटी चला रहे है.अपनी आँख गँवा चुकी सोनाली अपने पिता के लिए कुछ करना चाहती है लेकिन अब वह हर तरफ से निराश होकर मरना चाहती है सोनाली को लगता है की इस जिन्दगी से बेहतर मौत हीं है और इसीलिए सोनाली इच्छा मृत्यु की मांग प्रशासन से कर रही है.
इस मामले को गंभीरता से लेते हुए चाहे कितने भी कदम उठाए जाएं, आरोपियों को सजा भी मिल जाए तो क्या सोनााली की पुरानी यादें...दिलों में संजोए सपने..और उसका बीता हुआ कल कौन लौटाएगा...उसके आंखों की रौशनी कोन लौटाएगा...और आखिरकार बेचारी बनकर रह गई सोनाली किसी के टुकड़े पर किसी तरह जिंदगी काटने से बेहतर उसने समझा की क्यों न अपनी जिंदगी को हमेशा के लिए खत्म करलूं....जरा सोचो न्याय दिलाने वालों अगर आपके घर वालों के साथ ऐसा होता तो क्या करोगे...यह एक सवाल है.....   

मेघा तुम पर नाज़ है
नक्सल प्रभावित इलाके से मेघा बनी फिल्मी दुनिया की गायक....
पलामू हमेशा से अकाल सुखाड़ नक्सल हिंसा के लिए पूरे देश में जाना जाता है., पूरे देश में पलामू की नकारात्मक क्षवि रही है, अब इस सकारात्मक छवि को बदल रही है पलामू की एक बेटी. मेघा श्रीराम नामक यह बेटी आज पलामू जैसे छोटे जगह से निकल कर मुंबई तक का सफ़र तय किया है . जहां के लोग गोली बन्दुक और विस्फोट की आवाज सुनते और जानते है आज वहां की बेटी अपनी आवाज से पूरे देश में मशहुर हो गई है.

              अपनी जादुई आवाज से लोगो को मंत्रमुग्ध कर देने वाली मेघा श्रीराम पलामू के डाल्टनगंज की रहने वाली है. एक मध्यमवर्गीय परिवार से आती है . मेघा आज हिमेश रेशमिया , मधुरभंडारकर जैसे संगीतकारों के साथ काम कर रही है. मेघा ने तेरह वर्ष की उम्र से गाना प्रारभ किया था. अपनी माँ के कहने पर उसने संगीत के क्षेत्र में कैरियर बनाने की सोची,इस दौरान मेघा को भारत सरकार से स्कॉलरशिप भी मिली . शिक्षा के बाद मेघा ने मुम्बई का रुख किया जहां उसे अपनी आवाज के बल पर काम मिलना प्रारम्भ हो गया. मेघा से सबसे पहले इकबाल फिल्म के लिये गाना गाया.उसके बाद मेघा ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा.मेघा MTV कोक से काफी मशहुर हुई.
बकौल मेघा उसने बहुत ही मुश्किल भरा सफ़र तय किया है.पलामू जैसे छोटे शहर से होने के बावजूद उसने संगीत के क्षेत्र में अपनी कैरियर बनायी. जहां इसके बारे में सोचना भी गुनाह है.खासकर के एक कट्टर परिवार से होने पर . शुरुवाती दौर में लोगों से उन्हें ताने भी सुनना पड़ा.लेकिन परिवार का सहयोग उसे मिलता रहा,आज वह झारखंड के लिए कुछ करना चाहती है,मेघा का कहना है की भोजपुरी संगीत आज काफी मशहुर है इसी तरह वह नागपुरी को भी मशहुर करना चाहती है और कुछ करना चाहती है,परिवार के लोग भी मेघा से काफी खुश हैं,उनका कहना है उनकी बेटी उनके नाम के साथ गांव और सूबे का भी नाम रौशन कर रही है 
मेघा का जुड़ाव थियटर के तरफ जायदा है,उसका कहना है की उसका थियटर से काफी लगाव है,हलांकि प्लेबैक गाना गाती हैं,लेकिन उसे जो मजा थियटर में आता है और कहीं नहीं,आर्ट थियटर में मुश्किल सफ़र होने के बावजूद उन्होंने इसे कैरियर के रूप में लिया.इसके पीछे वह कारण बताती है की वह तकनीक का सहारा नहीं लेना चाहती है तकनिकी से आवाज खो जाती है.धीरे-धीरे उनकी पहचान भी थियटर से जुड़ी है....

Subrata Roy Sahara(Saharasri)
(Founder and Chairman of the Sahara India Pariwar) - Kayasthas-Pride of India...!!!

Subrata Roy was born on 10 June 1948 at Araria (40 km. north to Poornia, Bihar). He is born in Bengali Kayasth family to Sri Sudhir Chandra Roy and Srimoti Chhabi Roy. Sri Sudhir Chandra was a mechanical engineer with a transferable job and Srimoti Chhabi Roy is from Bikampur, Bangladesh. His mother Chabbi Roy along with her brothers migrated to West Bengal in 1947 during partition of Bengal. Subrata Roy studied at Holy Child School in Kolkata. He was from an upper middle class family. As a child he was always a bright student and went on to hold a diploma in Mechanical Engineering from the Government Technical Institute, Gorakhpur. Before he founded the Sahara Group, he had already gathered 32 years of precious experience in business development along with 18 years of experience in real estate business. He always believed in Collective Materialism and that why he calls it as Sahara Pariwar and not by some corporate company name. He believes in the collective growth through collective sharing and caring. The Group also organizes 'Sahara India Sports Awards' to felicitate the achievement and efforts of Indian sportspersons in their respective fields and provide recognition to the upcoming young talents.

Birth of the Spark
Subrata Roy is into every business, as we already came across he was into real estate business likewise he was into aviation, media, film, hospitality,tourism,and many and many recently he has taken up the ownership of Pune warriors team in Indian Premier League, with all these he is into social service too.
In 1978, he opened a small office in Gorakhpur, Uttar Pradesh, where his journey started. He started with three workers as a small deposits para - banking business. His office was small with a table and some chairs.

इंसेफेलाइटिस और मां की चीत्कार.............


इंसेफेलाइटिस और मां की चीत्कार.............

मां तेरा आंचल रोज सूना हो रहा है
कितनों के कूल के दीप बुझ रहे हैं
दिल दहल जाता है, उस मां को देखकर
जिनका हंसता-खेलता मासूम,
पल-पल कूम्हला रहे हैं.
मां जब रोती है तो कहती है,
मेरा लाल तू कुछ बोलता क्यूं नहीं
यह सुनकर रोज,
अस्पतालों में रोगटे खड़े हो रहे हैं.
जाने क्यूं नहीं सुनते सरकार के रहनुमा
या फिर सुनकर अंजान बन रहे हैं.
अरे, जाकर देखो क्या होती है मां की ममता
जिनके घरों में खाने को दाने नहीं
वो कैसे अपनों का इलाज करा रहे हैं.
धरती के रहनुमाओं को नहीं सुनायी देती
हे प्रभु तु ही कुछ कर, मां की चीत्कार को सुनकर
अपनों की रक्षा करने के लिए
आंखों में अश्क भरकर पल-पल गुहार लगा रहे हैं…मुरली...

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HIMMAT SE KAM LOGE TO ZMANA V SATH DEGA...HO GAYE KAMYAB TO BCHACHA-BCHCHA V NAM LEGA.....MAI EK BAHTE HWA KA JHOKA HU JO BITE PAL YAD DILAUNGA...HMESHA SE CHAHT HAI KI KUCHH NYA KAR GUZRNE KI...MAI DUNIA KI BHID ME KHONA NHI CHAHTA....