Tuesday, June 12, 2012


इच्छा मृत्यु मांग रही सोनाली  .
बोकारो की 27 वर्षीय सोनाली मुखर्जी अपने जीवन की बोझ भरी जिन्दगी से मायूस होकर इच्छा मृत्यु की मांग प्रशासन से कर रही है .सोनाली बोझ की जिन्दगी जीने को मजबूर है पिछले आठ सालो से कानूनी प्रक्रिया में फंसे मामलों से अब सोनाली पूरी तरह से उब गयी है .जिसके कारण सोनाली मुखर्जी इच्छा मृत्यु मांग रही है .सोनाली की जिन्दगी को बर्बाद करने वाला तीन हैवान युवक को उसकी कड़ी की सजा तो नहीं मिली और पैसे के बल पर निचली अदालत से जमानत पर रिहा हो गया है और मौज मस्ती की जिंदगी जी रहा है साथ ही बाहरी जिन्दगी मे सोनाली को बार -बार धमकी देने की वजह से सोनाली का परिवार भागा फिर रहा है.पढने लिखने में तेज तर्रार सोनाली पढ़ लिखकर कुछ करना चाहती थी .उसने झारखण्ड बिहार का एनसीसी का कॉलेज के समय मे कामंडेट भी रह चुकी है और इस लिए सोनाली ने उन बदमाशों का मुकाबला किया लेकिन उन बुजदिलों ने सोनाली को सोने के क्रम मे सोनाली के चेहरे पर तेजाब डाल दिया जिससे सोनाली का पूरा का पूरा चेहरा जल गया .
                        बोकारो जिला के कसमार प्रखंड के धधकी गाँव की रहने वाली सोनाली वर्ष 2003 मे धनबाद के बरवाडा थाना के क्षेत्र मे अपने परिवार के साथ एक किराया के मकान में रहती थी .सोनाली के पिता चंडी दास मुखर्जी एक निजी कंपनी में गार्ड का काम करते थे .घर में बूढी दादी ,माँ ,पिता एक बहन और एक भाई था लेकिन उसी वर्ष के 22 अप्रैल को एक ऐसा हादसा हुआ की जिससे न सिर्फ सोनाली की सूरत बदल गयी साथ ही जिन्दगी भी बदल गयी .
पड़ोस के तीन मनचले युवकों ने अपने इस हैवानियाह से सोनाली को बदसूरत बना दिया .इस हैवानियत के खेल मे सोनाली की बहन भी शिकार हुई लेकिन सोमा बहुत ज्यादा नहीं जली ..यह घटना छेड़खानी का विरोध करने के कारण हुआ .मामला को बरवाडा थाना मे दर्ज कराया गया है .तीनो मनचले युवक को कुछ साल की सजा भी हुई लेकिन उन लोगों ने उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया जहां से उन युवकों को जमानत मिल गया है.
                     सोनाली ने इन्साफ और मदद के लिए किसका दरवाजा तक नहीं खटखटाया विधायक से लेकर सांसद तक यंहा तक ही नहीं झारखण्ड के तीनो मुख्यमंत्री तक साथ ही शिबू सोरेन तक के घर का दरवाजा खटखटाकर गुहार लगायी लेकिन हार दरवाजे पर सिर्फ आश्वासन के आलावे और कुछ भी हासिल नहीं हुआ तो सोनाली ने अब अपने जीवन से हारकर झारखण्ड के महिला आयोग के कार्यालय पर अपनी इच्छा मृत्यु की गुहार लगायी है की मुझे अब मौत दे दिया जाय ताकि सोनाली किसी की बोझ बनकर न रहे .
               सोनाली के परिवार की माली हालत अच्छी नहीं है पिता पूजा पाठ कराकर किसी तरह से रोजी-रोटी चला रहे है.अपनी आँख गँवा चुकी सोनाली अपने पिता के लिए कुछ करना चाहती है लेकिन अब वह हर तरफ से निराश होकर मरना चाहती है सोनाली को लगता है की इस जिन्दगी से बेहतर मौत हीं है और इसीलिए सोनाली इच्छा मृत्यु की मांग प्रशासन से कर रही है.
इस मामले को गंभीरता से लेते हुए चाहे कितने भी कदम उठाए जाएं, आरोपियों को सजा भी मिल जाए तो क्या सोनााली की पुरानी यादें...दिलों में संजोए सपने..और उसका बीता हुआ कल कौन लौटाएगा...उसके आंखों की रौशनी कोन लौटाएगा...और आखिरकार बेचारी बनकर रह गई सोनाली किसी के टुकड़े पर किसी तरह जिंदगी काटने से बेहतर उसने समझा की क्यों न अपनी जिंदगी को हमेशा के लिए खत्म करलूं....जरा सोचो न्याय दिलाने वालों अगर आपके घर वालों के साथ ऐसा होता तो क्या करोगे...यह एक सवाल है.....   

मेघा तुम पर नाज़ है
नक्सल प्रभावित इलाके से मेघा बनी फिल्मी दुनिया की गायक....
पलामू हमेशा से अकाल सुखाड़ नक्सल हिंसा के लिए पूरे देश में जाना जाता है., पूरे देश में पलामू की नकारात्मक क्षवि रही है, अब इस सकारात्मक छवि को बदल रही है पलामू की एक बेटी. मेघा श्रीराम नामक यह बेटी आज पलामू जैसे छोटे जगह से निकल कर मुंबई तक का सफ़र तय किया है . जहां के लोग गोली बन्दुक और विस्फोट की आवाज सुनते और जानते है आज वहां की बेटी अपनी आवाज से पूरे देश में मशहुर हो गई है.

              अपनी जादुई आवाज से लोगो को मंत्रमुग्ध कर देने वाली मेघा श्रीराम पलामू के डाल्टनगंज की रहने वाली है. एक मध्यमवर्गीय परिवार से आती है . मेघा आज हिमेश रेशमिया , मधुरभंडारकर जैसे संगीतकारों के साथ काम कर रही है. मेघा ने तेरह वर्ष की उम्र से गाना प्रारभ किया था. अपनी माँ के कहने पर उसने संगीत के क्षेत्र में कैरियर बनाने की सोची,इस दौरान मेघा को भारत सरकार से स्कॉलरशिप भी मिली . शिक्षा के बाद मेघा ने मुम्बई का रुख किया जहां उसे अपनी आवाज के बल पर काम मिलना प्रारम्भ हो गया. मेघा से सबसे पहले इकबाल फिल्म के लिये गाना गाया.उसके बाद मेघा ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा.मेघा MTV कोक से काफी मशहुर हुई.
बकौल मेघा उसने बहुत ही मुश्किल भरा सफ़र तय किया है.पलामू जैसे छोटे शहर से होने के बावजूद उसने संगीत के क्षेत्र में अपनी कैरियर बनायी. जहां इसके बारे में सोचना भी गुनाह है.खासकर के एक कट्टर परिवार से होने पर . शुरुवाती दौर में लोगों से उन्हें ताने भी सुनना पड़ा.लेकिन परिवार का सहयोग उसे मिलता रहा,आज वह झारखंड के लिए कुछ करना चाहती है,मेघा का कहना है की भोजपुरी संगीत आज काफी मशहुर है इसी तरह वह नागपुरी को भी मशहुर करना चाहती है और कुछ करना चाहती है,परिवार के लोग भी मेघा से काफी खुश हैं,उनका कहना है उनकी बेटी उनके नाम के साथ गांव और सूबे का भी नाम रौशन कर रही है 
मेघा का जुड़ाव थियटर के तरफ जायदा है,उसका कहना है की उसका थियटर से काफी लगाव है,हलांकि प्लेबैक गाना गाती हैं,लेकिन उसे जो मजा थियटर में आता है और कहीं नहीं,आर्ट थियटर में मुश्किल सफ़र होने के बावजूद उन्होंने इसे कैरियर के रूप में लिया.इसके पीछे वह कारण बताती है की वह तकनीक का सहारा नहीं लेना चाहती है तकनिकी से आवाज खो जाती है.धीरे-धीरे उनकी पहचान भी थियटर से जुड़ी है....

Subrata Roy Sahara(Saharasri)
(Founder and Chairman of the Sahara India Pariwar) - Kayasthas-Pride of India...!!!

Subrata Roy was born on 10 June 1948 at Araria (40 km. north to Poornia, Bihar). He is born in Bengali Kayasth family to Sri Sudhir Chandra Roy and Srimoti Chhabi Roy. Sri Sudhir Chandra was a mechanical engineer with a transferable job and Srimoti Chhabi Roy is from Bikampur, Bangladesh. His mother Chabbi Roy along with her brothers migrated to West Bengal in 1947 during partition of Bengal. Subrata Roy studied at Holy Child School in Kolkata. He was from an upper middle class family. As a child he was always a bright student and went on to hold a diploma in Mechanical Engineering from the Government Technical Institute, Gorakhpur. Before he founded the Sahara Group, he had already gathered 32 years of precious experience in business development along with 18 years of experience in real estate business. He always believed in Collective Materialism and that why he calls it as Sahara Pariwar and not by some corporate company name. He believes in the collective growth through collective sharing and caring. The Group also organizes 'Sahara India Sports Awards' to felicitate the achievement and efforts of Indian sportspersons in their respective fields and provide recognition to the upcoming young talents.

Birth of the Spark
Subrata Roy is into every business, as we already came across he was into real estate business likewise he was into aviation, media, film, hospitality,tourism,and many and many recently he has taken up the ownership of Pune warriors team in Indian Premier League, with all these he is into social service too.
In 1978, he opened a small office in Gorakhpur, Uttar Pradesh, where his journey started. He started with three workers as a small deposits para - banking business. His office was small with a table and some chairs.

इंसेफेलाइटिस और मां की चीत्कार.............


इंसेफेलाइटिस और मां की चीत्कार.............

मां तेरा आंचल रोज सूना हो रहा है
कितनों के कूल के दीप बुझ रहे हैं
दिल दहल जाता है, उस मां को देखकर
जिनका हंसता-खेलता मासूम,
पल-पल कूम्हला रहे हैं.
मां जब रोती है तो कहती है,
मेरा लाल तू कुछ बोलता क्यूं नहीं
यह सुनकर रोज,
अस्पतालों में रोगटे खड़े हो रहे हैं.
जाने क्यूं नहीं सुनते सरकार के रहनुमा
या फिर सुनकर अंजान बन रहे हैं.
अरे, जाकर देखो क्या होती है मां की ममता
जिनके घरों में खाने को दाने नहीं
वो कैसे अपनों का इलाज करा रहे हैं.
धरती के रहनुमाओं को नहीं सुनायी देती
हे प्रभु तु ही कुछ कर, मां की चीत्कार को सुनकर
अपनों की रक्षा करने के लिए
आंखों में अश्क भरकर पल-पल गुहार लगा रहे हैं…मुरली...

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HIMMAT SE KAM LOGE TO ZMANA V SATH DEGA...HO GAYE KAMYAB TO BCHACHA-BCHCHA V NAM LEGA.....MAI EK BAHTE HWA KA JHOKA HU JO BITE PAL YAD DILAUNGA...HMESHA SE CHAHT HAI KI KUCHH NYA KAR GUZRNE KI...MAI DUNIA KI BHID ME KHONA NHI CHAHTA....