Tuesday, June 30, 2009

अभियान या छलावा
बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग उठ तो रही है एक लम्बे समय से। लेकिन बिहार को अब तक नहीं मिल पाया है विशेष राज्य का दर्जा। ऐसे में इस बात पर चर्चा लाजिमी है कि नेताओं की यह मांग एक अभियान है या फिर मात्र एक छलावा।
बिहार को विशेष राज्य का दर्जा मिले इसे लेकर राजनीतिक हल्कों में बयानबाजी का दौर बदस्तूर जारी है। बिहार को यह दर्जा मिलेगा या नहीं? यह तो आने वाला कल बताएगा लेकिन सूबे के बुद्धिजीवियों में इस मुद्दे को लेकर अलग-अलग राय है।
बिहार को विषेष राज्य का दर्जा देने की मांग बिहार के व्यवसायी वर्ग भी एक दशक से उठाते आ रहे हैं। बिहार चैम्बर आॅफ काॅमर्स का एक शिष्टमंडल 1991 में ही इस मांग को मजबूती के साथ तत्कालीन केन्द्र सरकार के पास रखा था लेकिन उन्हें निराशा हाथ लगी। अब जब वर्तमान बिहार सरकार इस मुद्दे को गंभीरतापूर्वक उठा रही है तो सूबे के व्यवसायियों में भी आशा की किरण जगी है। बिहार के राजनेता भले ही इस मुद्दे को राजनीतिक रंग देना शुरु कर दिए हों लेकिन आम नागरिकों को इस राजनीति से कोई लेना देना नहीं। बिहार की जनता को चाहिए सिर्फ सूबे का विकास और ये विकास चाहे जिस तरीके से हो।


यश राज की न्यूयार्क


हम लेकर आए हैं न्यूयार्क। अरे नहीं जनाब हैरान होने की बात नहीं। ये न्यूयार्क न त कोई डिश है और न हीं यू.एस.ए. का हिस्सा ।बात कर रहे हैं आज रिलीज हुई यश राज के बैनर तले बनी फिल्म न्यूयार्क की। यश राज एक बार फिर देकर आए हैं तीन दोस्तों की कहानी न्यूयार्क के रूप में । जिसे देखकर दोस्ताना की याद आ हीं जाएगी। वैसे आपको बता दें कि इस फिल्म में दोस्तों की भूमिका में नजर आने वाले हैं जाॅन इब्राहिम , नील नितीन मुकेश, और उनका साथ देती नजर आ रही हैं बाॅलीवुड की र्बाबी डाॅल यानि कि अपनी कैटरीना कैफ। ये एक एक्शन थ्रिलर होने के साथ-साथ साॅफ्ट रोमैटिक भी है। जिसमें दिखाया गया है कि किस तरह से बड़ी
घटनाएं हमारी जिन्दगी में असर छोड़ जाती हैं। तान दोस्तों के इर्द-गिर्द घुमती इस फिल्म की पृष्ठभूमि में अमेरिका में हुए 9/11 हमले को रखा गया है। साथ हीं साथ ये भी दिखाया गया है कि उसके बाद उनके रिश्ते किन मोड़ों से गुजरती हैं। फिल्म में समथिंग डिफरेंट की अगर बात की जाए तो जाॅन का नाम सबसे पहले आएगा। क्योंकि उन्होंने इस फिल्म में न्यूड सीन जो दिए हैं।हालाकि जाॅन ने दोस्ताना में भी कम एक्सपोज नहीं किया था। लेकिन न्यूड ये शायद उनके फैन्स को सेंटर शैाक जरूर देगा। हालाकि न्यूयार्क के बैकग्राउंड में एक्सपोज करना तो हजम हो जामता है पर जब इसे इंडिया में दिखाने की बात आती है । तो मामला फिर वही सेंटर साॅक वाला हीं हो जाता है। बात चाहे जो भी हम तो हम तो यही कहेंगे कि 9/11 जैसे मुद्दे पर फिल्म बनाना काकई आसान काम तो है नहीं ।खासकर तब जब दर्शकों को सिनेमाघरों तक खिंचना भी तो होता है जिसके लिए न्यूड और अदर प्रोमोश्नल फैक्टर्स को यूज किया है। अब देखने वानी बात तो ये होग ी कि ये सारे फंडे दार्शकों को खींच पाने में करगर साबित हो पाएगी कि नहीं




संसद से सडक पर



कभी सरकार की तकदीर लिखने का दावा करने वाले आज अपनी ही तकदीर
पर मायूस हैें। खुद को संसद का शहंशाह समझने वालों केहालात ऐसे हो गये हैं कि अपनी अस्तित्व की लडाई के लिए ,वे अब सडकों पर हैं।ये हैं हमारे पूर्व रेलमंत्री लालू प्रसाद यादव। कल तक इनके शानके क्या कहने थे। शान भी ऐसा मानो संसद इन्हीं के शान से रौशन हो। चुनाव पहले तक इनका दावा भी यही था किइनके और इनकी पार्टी की बदौलत ही संसद की शोभा है और इनके बिना सरकार की कल्पना नहीं की जा सकती। लेकिन कहते हैं न कि सितारों की चाल बदलते ही किस्मत भी
दगा दे जाती है ।बिहार के इन दोनों सूरमाओं लालू और रामविलास के साथ भी
ऐसा ही हुआ।नौबत यहां तक आ गयी कि कल तक शाही ठाठ
का मजा लेने वाले इ नेता आज अपने अस्तित्व की लडाई के लिए
सडकों पर हैं और इस बात का इनको कौनो मलाल भी नहीं है।वो कहते हैं न कि सब दिन होत न एक समाना ।तो भइया ।कहावत को याद रखिए और इसी के आधार पर जनता को जर्नादन समझते हुए उनकी सेवा शुरु कर दिजीए।काहे कि नेताओं के किस्मत की चाभी तो जनता के ही हाथ में रहती है।




दरोगा बने प्रशिक्षु



लंबे समय से पुलिस अधिकारियों की घोर कमी झेल रहे बिहार पुलिस की समस्या आखिरकार दूर हो जाएगी। जी हां आज राजधानी बीएमपी 5 के मिथलेश स्टेडियम में 639 सब इंस्पेक्टरों को नियुक्ति पत्र दी गयी। गौरतलब है कि इनमें 606 पुरूष और 33 महिलाएं शामिल हैं। प्रदेश के पुलिस महानिदेशक डा0 डी0 एन0 गौतम ने इन पुलिस सब इंस्पेक्टरों का अपना काम बखूबी करने की सलाह दी। इन सब इंस्पेक्रों की कुल संख्या 2070 है जिन्हें 5 जगहों पर ट्रेनिंग दी जा रही है। ट्रेनिंग के दौरान इन्हें कानून, परेड एवं वर्दी की ज्ञान दी जाएगी। लंबे समय से लंबित इस मामले में आखिरकार प्रक्रिया पूरी कर ली गयी। अब देखना ई है कि इस पहल से अपराध पर काबू पाने में सरकार को कितनी सफलता मिलती है।



भाजपा का सीता प्रेम


राम के नाम पर राजनीति करने वाली भाजपा का अब राम से मोह भंग होता दिख रहा है। अब इन्हें राम की अयोध्या से ज्यादा सीता की नगरी भाने लगी है।
लोकसभा में मिली करारी हार से तिलमिलाई भाजपा अब अपनी जमीन तलाशने में जुटी है। उसे लगता है कि अब राम नाम उसकी डूबती नैया को पार लगाने में उतना कारगर नहीं रहा। अब राम के साथ सीता मैया का नाम लेने के बाद ही उसका उसका बेड़ा पार लगेगा।
भाजपा के महामंत्री प्रभात झा की मानें तो राम की अयोध्या तो विवादास्पद रही है, लेकिन सीता की जन्मस्थली पर त कौनों विवादे नहीं है। फिर भी इस स्थान का जितना विकास होना चाहिए उतना नहीं हो पाया है। नब्बे के दशक में भाजपा को अपना भविष्य राम में दिख रहा था। लेकिन अब वह अपना भविष्य सीता की नगरी में तलाश रहा है। ठीक है भइया राम नहीं तो सीता ही सही, प्रयोग करने में क्या जाता है।
12 सालों तक कीर्तन

भक्ति और जज्बा का कौनों मोल नहीं होता। तभी तो लोग देव भक्ति में सालों बीता देते हैं। कुछ ऐसा ही हुआ जहानाबाद के एक गांव में जहां 12 सालों तक देश में अमन-चैन शांति के लिए अखंड हरिकीर्तन किया गया।
रामकृष्ण नाम महायज्ञ और 12 वर्षीय अखंड संकीर्तन का समापन की तैयारी कर रहे है। कहते हैं यहां कीर्तन का एक युग बीत गया। पुराने अवशेष वाले इस मंदिर में भक्त प्रभु की पूजा-अर्चना करते हैं। इस यज्ञ को सभी वर्गों से भिक्षाटन करके पूरा किया गया। इस यज्ञ से अंर्तजातीय संबंध में जहां सुधार आया, वहीं क्षेत्र में अमन-चैन बरकरार रहा। जहानाबाद का बेम्बई काको-पाली में 12 साल से कीर्तन चल रहा है। 25 जून 1997 को शाम चार बजे इस हरिकीर्तन की शुरूआत हुई। इसका उद्देश्य है सबके लिए सदभावना, आपसी जातिगत भेदभाव को मिटाना। सबके लिए भगवत प्राप्त करना, जिससे लोग खुशहाली से जीवन जी सकें। इस यज्ञ में सबका सहयोग रहा। इस तरह के आयोजन से लोगों में आस्था तो बरकरार रहती हीं है और आपसी संबंध में भी सुधार होता है।


समर स्पेशल-हाल बूरा


टेªनों में रिजर्वेशन का मतलब आराम से यात्रा करना होता है। लेकिन आप रिजर्वेशन कराए हों, गाड़ी समय पर नहीं आए और आए भी तो रिजर्वेशन की जगह जेनरल बोगी लगी हो, तो पैसेन्जर का क्या हाल होगा, आप खुदे समझ सकते हैं।
छपरा जंक्शन पर टेªन जैसे ही आकर लगी, पैसेन्जरों में अफरा-तफरी मच गई। क्योंकि दरभंगा से चलने वाली 0423 समर स्पेशल में एस-8 स्लीपर बोगिए नहीं लगी थी। पैसेन्जर आपे से बाहर हो गए। हो भी क्यों नहीं एक तो उमस भरी गर्मी, उपर से रिजर्वेशन वाली बोगिए नहीं है। ऐसे में अपने मंजिल तक पहुंचने से पहले हीं यात्रियों के हलख सुखने लगे हैं। इन बेचारों का टिकट कनफर्म है। फिर भी जेनरल में यात्रा करना इनकी मजबूरी है।
रेलवे एक व्यवसाय है, यात्रियों के लिए सुविधा मुहैया करवाना उसकी ड्यॅटी है। पर यहां तो यात्रियों की सुविधा के दावा करने वाली रेलवे फिसड्डी साबित हो रही है। यात्रियों की असुविधा की बात को छपरा के स्टेशन अधीक्षक भी मान रहे हैं। उपर से ये कह कर अपना पिण्ड छुड़ा रहे हैं, कि पैसा रिफंड कर दिया जाएगा। जबकि इसी गाड़ी में छपरा बनारस जोन के डीआरएम का सैलून भी लगा हुआ है।
यात्रियों को बेहतर सुविधा देने के दावा करने वाला रेलवे, आला अफसरों का सैलून लगाना तो नहीं भूला, लेकिन ई का जिन यात्रियों से आमदनी होती है। उनके साथ इतनी बड़ी भूल करना रेलवे की कौन सी अदा है।

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HIMMAT SE KAM LOGE TO ZMANA V SATH DEGA...HO GAYE KAMYAB TO BCHACHA-BCHCHA V NAM LEGA.....MAI EK BAHTE HWA KA JHOKA HU JO BITE PAL YAD DILAUNGA...HMESHA SE CHAHT HAI KI KUCHH NYA KAR GUZRNE KI...MAI DUNIA KI BHID ME KHONA NHI CHAHTA....