Wednesday, March 13, 2013

आपसी सौहर्द का प्रतिक है महावर


                  आपसी सौहर्द का प्रतिक है महावर
               * छठ पूजा  इसके बिना रह जाएगा अधूरा 

छठ पूजा पूरे बिहार के साथ बंगाल, पूर्वी उत्तरप्रदेश, नेपाल की तराई के साथ-साथ असम के कुछ भागों में भी मनाया जाता हैं। यह पूजा अब इन इलाकों से बाहर निकलते हुए देश के अन्य भागों में भी होने लगी हैं। इस पूजा के प्रयोग होने वाले पूजा सामग्रीयों की अपनी ही विशेषता होती हैं। छोटी भी पूजा सामग्री अपनी ही विशेषता रखती हैं। इस पूजा में प्रयोग होने वाला महावर का अपना ही महत्व है। गौरतलब है कि महावर सिर्फ डुमरांव में ही बनाया जाता हैं। डुमरांव की चिक टोली में। इस महावर को मुस्लिमों के द्वारा बनाया जाता हैं। भारतीय राजनीतिक दल भले ही अपनी वोट बैंक की राजनीति के लिए हिन्दू मुस्लिमों को अलग कर अपनी राजनीतिक रोटियों को सेकने की कोशिश करे, परंतु इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि जिस प्रकार देव प्रयाग में भागीरथी व अलकनन्दा एक साथ सम्मिलित होकर गंगा नदी का निर्माण करती है गंगा नदी के निर्माण के बाद भागीरथी व अलकनन्दा के जलों को जिस प्रकार अलग नहीं किया जा सकता हैं उसी प्रकार भारतीय सभ्यता और संस्कृति में हिन्दू और मुस्लमान इस प्रकार से घुले-मिले हुए है कि इनको अलग नहीं किया जा सकता हैं। हरेक पूजा पाठ में दोनों कही ना कही एक दूसरे का योगदान करते हैं। महावर बनाने वाली एक मुस्लिम महिला जुबैना खातुन का कहना है कि छठी मईया सबकी है इस लिए महावर बनाते वक्त स्वच्छता का विशेष ध्यान रखना पड़ता हैं। जानकारों का कहना है कि यह पूजा में अपना अलग ही महत्व रखता है इसके बिना पूजा को पूरा नहीं मना जा सकता हैं। महावर को बनाने के लिए रूई को छोटा-छोटा गोल बनाकर रखा जाता है इसके बाद मैदा या माढ़ के घोल को तैयार किया जाता है इसमें लाल रंग को मिलाया जाता है इस घोल को छोटे-छोटे रूई के टुकड़ो को थाली पर डाला जाता है इसके बाद इनके ऊपर एक तिनका रखा जाता है तिनका इसलिए रखा जाता है कि सुखने के बाद इन्हें आसानी से निकाला जा सके। रूई सुखने के लिए धूप में डाल दिया जाता है। अच्छी तरह से सुख जाने के बाद इनका बंडल बनाकर बाजारों में बेचा जाता हैं। देश के जिन भागों में भी छठ पूजा होती है वहां पर डुमरांव से महावर भेजा जाता हैं। डुमरांव के तकरीबन 30 से 40 परिवार इसे बनाते है इसे मुख्यतः महिलाओं के द्वारा बनाया जाता है। जुबैना खातुन का कहना है कि इस महावर को बनाने में काफी मेहनत लगती है, लेकिन जिस हिसाब से मेहनत होती है उस प्रकार से हमें मेहनताना नहीं मिल पाता हैं। सरकार भी हमारी तरफ कोई ध्यान नहीं देती हैं। जिससे हमलोगों को कोई सरकारी लाभ मिल सके। हमलोग इसे बनाने का कार्य इसलिए करते रहते है जिससे छठी मईया की कृपा हमलोगों पर बनी रहे।
                                                        -नवीन पठक (पत्रकार)


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HIMMAT SE KAM LOGE TO ZMANA V SATH DEGA...HO GAYE KAMYAB TO BCHACHA-BCHCHA V NAM LEGA.....MAI EK BAHTE HWA KA JHOKA HU JO BITE PAL YAD DILAUNGA...HMESHA SE CHAHT HAI KI KUCHH NYA KAR GUZRNE KI...MAI DUNIA KI BHID ME KHONA NHI CHAHTA....