केरोसिन की बंदरबांट
अब बात झारखंड में लालकार्डधारियों के लिए आने वाले केरोसिन के बंदरबांट की। यहां लालकार्डधारियों के लिए केरोसिन तो आता है, लेकिन उन्हें मिल नहीं पाता है। प्रतिमाह लाखों रुपये के केरोसिन अफसर और डिस्ट्रीब्यूटर मिलकर बंदरबांट कर लेते हैं।
हाथ में डब्बा लटकाये ये लोग केरोसिन के लिए लाइन में लगे हुए हैं। पिछले कई दिनों से ये लोग केरोसिन के लिए डीलर के पास आ रहे थे। लेकिन इन्हें बैरंग ही लौटना पड़ता था। आज लगता है कि केरोसिन मिल जाएगा। हर आदमी पहले लेने की होड़ में है। कहीं डीलर यह न कह दे कि अब केरोसिन खतम हो गया। क्योंकि अक्सरहां ऐसा ही होता है।
यहां पर गांवों में बांटे जाने वाले केरोसिन के अलाॅटमेंट का अधिकार सचिवालय ने अपने पास रखा है। सचिवालय से प्रतिमाह हर पंचायत के लिए केरोसिन का आवंटन दिया जाता है। लेकिन जरूरतमंदों तक पहुंचते पहुंचते यह केरोसिन हवा हो जाता है।
झारखंड की आवादी दो करोड़ नब्बे लाख है। केन्द्र से प्रतिमाह दो करोड़ छब्बीस लाख नब्बे हजार लीटर केरोसिन की आपूर्ति की जाती है। इसमें रांची के ग्रामीण इलाकों के लिए पंद्रह लाख 12 हजार लीटर केरोसिन की आपूर्ति होती है। कोटे से मिलने वाले इस केरोसिन का दर नौ रुपये प्रति लीटर होता है। जबकि बाजार में केरोसिन 28 से 30 रुपये प्रति लीटर मिलता है। ऐसे में मोटी रकम कमाने के लालच में डीलर इस केरोसिन की कालाबाजारी करने से नहीं हिचकते।
झारखंड के गठन के बाद आम जनता ये सोच कर खुश थी कि अब गरीबों को उनका हक मिलेगा। लेकिन ठीक इसके उलट अफसर से मंत्री तक सभी जनता की गाढ़ी कमाई लूटने में लगे हुए हैं। केरोसिन का मामला बानगी भर है लगभग सारी योजनाओं का यही हाल है।
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