भूखे बुजुर्ग
भूलते जा रहे हैं समाज में बुजुर्गों को
आधुनिकता के दौर में आज हम मानवीय संवेदनाओं को भूलते जा रहे हैं। इसी का नतीजा है कि समाज में बुजुर्गों की स्थिति दिनों दिन उपेक्षित होती जा रही है। हालांकि सरकार ने उनकी सुरक्षा के लिए कई तरह के कानून भी बनाये हैं। लेकिन व्यवहार में ये कानून कहीं नजर नहीं आते। यही कारण है कि आराम करने की उम्र में भी हजारों वरिष्ठ नागरिक अपना पेट भरने के लिए दैनिक मजदूरी करने के लिए विवश हैं।
मजदूरों की झुंड में बैठा यह बूढ़ा इंतजार कर रहा है कि कोई आये और उसे मजदूरी के लिए ले जाए। लेकिन लगता है कि आज भी इसे कोई बुलाकर नहीं ले जाएगा। अगर आज भी मजदूरी नहीं मिली तो इसे खाने के लाले पड़ जाएंगे। यह किसी एक मजदूर की कहानी नहीं है। मजदूरों को ढूंढ़ने के लिए आने वाले अधिकतर लोग जवान मजदूरों को ही तलाशते हैं। और घर में बैठे जवान बेटों को ये बूढ़े भार लगते हैं। नतीजा इन बुजुर्गों को अपना पेट भरने के लिए मजदूरी करने के सिवाए कोई और चारा नहीं होता है।
वरिष्ठ नागरिकों के भरण-पोषण, सामाजिक सुरक्षा, वित्तीय सुरक्षा और सम्मान के साथ जीने के लिए अबतक सरकार ने जो कानून बनाया है, उसका पालन नहीं हो रहा है। योजना आयोग की एक रिपोर्ट के मुताबिक देश में ऐसे मजबूर बुजुर्गों की संख्या लगभग 10.35 करोड़ है। इसमें लगभग 30.44 लाख महिलाएं शामिल हैं। इन लोगों को आराम की उम्र में भी काम करना पड़ रहा है। इनकी मजबूरी यह है कि काम नहीं करेंगे तो खाना भी नहीं मिलेगा।
इन बुजुर्गों को समाजिक सुरक्षा प्रदान करने के लिए कई कानून भी बने हुए हैं। इसके तहत किसी बुजुर्ग का अपमान करना कानूनी अपराध है। यह साबित होने पर अपराधी को तीन वर्ष की कैद या पांच हजार रुपये का जुर्माना या फिर दोनों दंड एक साथ दिये जाएंगे। इसके साथ ही भारतीय दंड संहिता प्रक्रिया 1973 के तहत बूढ़े मां-बाप के भरण-पोषण की पूरी जिम्मेदारी उनके बच्चों को दी गयी है। भारतीय दंड प्रक्रिया की धारा 125 में सीनियर सिटीजन को अपने बच्चों से भरण-पोषण लेने का अधिकार है। इसके अतिरिक्त सरकार ने राष्ट्रीय वृद्धावस्था पंेशन योजना, भविष्य निधि पंेशन योजना भी लागू किया है।
सरकारी कागजों पर ये योजनाएं तो बहुत ही मनभावन लगती है। लेकिन हकीकत में ये योजनाएं कितनी सफल है सड़क के किनारे दिहाड़ी मजदूर के रूप में खुद को बेचने के लिए बैठे इन बूढ़े मजदूरों को देखकर ही पता चल जाता है।
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