Monday, June 8, 2009

सलाखों के पीछे की उम्मीद

जेल में बंद महिला कैदियों का जीवन अंधकारमय माना जाता है और
उनके साथ साथ उनके बेकसूर नवजातों को भी इसका दंश
झेलना पडता है।लेकिन अब ऐसा नहीं होगा सरकार ने ऐसे मासूमों की
जिंदगी को बदलने का फैसला लिया है ताकि सलाखों के आगे का
उनका जीवन संवर सके।
जेल में किसी कारण से बंद महिला कैदीयों के लिए जेल काजल की
कोठरी की तरह होती है न चाहते हुए भी बदनामी और अंधकारमय जीवन का
कलंक उन्हें ढोना ही पडता है, और कभी कभी परिस्थितियां ऐसी हो जाती हैं
की इसकी कालिख उनके बच्चों के भविष्य को भी काला कर देती हैं क्योंकि
बच्चों की उम्र मां से अलग रहने की होती नहीं और उन्हें अपनी मां के साथ
जेल में ही रहना पडता है।लेकिन सरकार ने ऐसे बच्चों की किस्मत को
बदलने का फैसला लिया है।
सरकार सिर्फ महिला कैदियों के बच्चे को ही नहीं पढाएगी बल्कि
आठवीं नौवीं तक की पढाई कर चुके कैदियों को मैट्रिक भी कराएगी।
इसके लिए उन्हें पढाई के साधन मुहैया कराये जाएंगे।
जिस तरह से अपराध का ग्राफ बढ रहा है वैसे में जेल के भीतर अपराध और
आपराधिक मनोवृत्तियों के बीच ज्ञान का दीपक जलाने का सरकार का यह प्रयास सराहनीय है।

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HIMMAT SE KAM LOGE TO ZMANA V SATH DEGA...HO GAYE KAMYAB TO BCHACHA-BCHCHA V NAM LEGA.....MAI EK BAHTE HWA KA JHOKA HU JO BITE PAL YAD DILAUNGA...HMESHA SE CHAHT HAI KI KUCHH NYA KAR GUZRNE KI...MAI DUNIA KI BHID ME KHONA NHI CHAHTA....