एक बार फिर अपहरण की राह पर बिहार
------मुरली मनोहर श्रीवास्तव
आपका बेटा मेरे पास है.......50 लाख रूपया दो अपने लाडले को ले जाओ.......पुलिस को खबर दिया तो अच्छा नहीं होगा......तुम्हारा बेटा सही सलामत है.....खुदा हाफिज.......पैसा देना तो दूर अपहर्ता इतना क्रुर निकला कि इस मासूम को मार डाला। तनिक भी दया नहीं आयी इस मासूम का गला दबाते हुए। उनके हाथ भी नहीं कांपे। कितने लाड़-प्यार से कोई अपने बच्चों की परवरिश करता है। बंद आंखों में सपने बुन डालता है। पर ! अपहरण करने वालों से यह पुछो कि तेरे साथ तेरे घर वाले कुछ पल के लिए अलग हो जाते हैं तो तेरे हाथ-पांव फुलने लगते हैं। यह अपहरण केवल बच्चों के साथ हीं नहीं। बल्कि घर के रखवालों को भी नहीं बख्शते। जिससे यह बिहार में एक बार फिर पनपने लगा है। राजनैतिक सरगर्मिया थमने के साथ हीं बिहार में एक बार फिर अपहरण और हत्या का दौर जारी हो गया है। इसका प्रमाण है दस दिनों में तीन अपहरण। जिसने लोगों की नीन्द उड़ा रखी है। पटना में जहां तीन लोगों का अपहरण हुआ वहीं मुजफ्फरपुर के एक डाॅक्टर दंपति के मासूम बेटे का अपहरण हो गया है। अपराध पर शिकंजा कसने की बात पर पुलिस जहां अपनी पीठ थपथपा रही थी। वहीं इस तरह से बेतहासा बढ़ोतरी हुए अपहरण उद्योग से उनकी सारी कलई खोलकर रख दिया है।
19 मई को एयर पोर्ट इलाके से मुम्बई से पटना आने पर फिल्म निर्माता बृज टाक को अपराधियों ने अगवा कर लिया था। पुलिस ने इसकी भनक मीडिया को नहीं लगने दिया और उन्हें सकुशल मोतिहारी से बरामद कर लिया। यह मामला दिनों दिन एक के बाद एक बढता हीं जा रहा है। 23 मई को श्रीकृष्णापुरी से ट्रांसपोर्टर सत्येन्द्र का अपहरण हो गया। अब तक इनका पता नहीं लग पाया है कि आखिर ये कहां हैं। कौन है इस मामला को अंजाम देने वाला। 28 मई की मनहूस शाम बनकर आई कंकड़बाग के राजेश कुमार के लिए। इनका आठ बरस का मासूम सत्यम के अपहरण ने पुलिस की मुश्किलें बढ़ा दी। वहीं इस मासूम की गला दबाकर हत्या किया जाना इंसानी जज्बात को फिर एक बार दागदार कर के रख दिया। सबसे चैंकाने वाली बात तो यह है कि इस मासूम के गरीब बाप से 50 लाख की फिरौती मांग की तो पुलिस भी हरकत में आई। इस तरह से पुलिस दबदबा से सक्ते में आकर नाबालिग अपहर्ताओं ने सत्यम की हत्या कर डाली। बात बस इतनी थी कि इन अपहर्ताओं को पैसे की लालच थी। लेकिन उस मासूम को क्या पता था कि रोना-धोना उसके लिए इतना महंगा पड़ेगा कि अपने मां-पापा के पास जाने की जिद्द उसे हमेशा-हमेशा के लिए उनसे दूर कर देगा। वहीं 27 मई को मुजफ्फरपुर के डाॅक्टर दंपति के आठ वर्षीय मासूम ऋतिक का अपहरण उनके हीं कंपाउंडर ने महज एक लाख रूपये की लालच में करवा डाली। बच्चा का मिलना तो दूर उसका सुराग तक नहीं मिला पा रहा है।
इस तरह फिर एक बार अस्तित्व में आए अपहरण उद्योग के पीछे किसी न किसी बड़ी हस्तियों का हाथ जरूर होता है। तभी तो चुनाव खत्म होने के बाद से बेतरतीब हो रहे अपहरण और हत्या इसकी पोल खोल रहा है। बिहार में यह उद्योग कभी परवान पर था। लेकिन वक्त के साथ सरकार बदली। कुछ दिनों तक अपहरण उद्योग का धंधा थम गई थी। लेेकिन अपनी उपस्थिति बहुत बेकार ढंग से की । इस धंधे में भले हीं कम उम्र के लोग हों मगर कहीं न कहीं बड़े लोगों के हाथ होने से इंकार नहीं किया जा सकता है। वैसे चुनाव के बाद ऐसी वारदात कइ्र सवाल खड़े कर रहा है। तो दूसरी तरफ सुशासन के बढ़ते कदम को रोकने की साजिश तो नहीं। बात चाहे जो भी हो लेकिन इतना तो जरूर है कि किसी मासूम के बिछड़ने का दर्द किसी मां से पुछो, पति के बिछड़ने का दर्द उसकी पत्नी से पुछो उनके दिलों पर क्या गुजरती है। पर ! इंसान के रूप में दानवी भेड़ियों को इससे क्या लेना। उन्हें तो धनवान बनने की चाहत है। लेकिन मेहनत के बूते नहीं बल्कि किसी के सुहाग उजाड़कर, किसी की गोद सुनी कर.......हाय तौबा ऐसी कमाई की जो किसी के दर्द, किसी के खुन से सिंची गई हो। ठहर जाओ नहीं तो अनर्थ हो जाएगा । तुम्हारे भी बनाए उम्मीदों के महल पल भर में बिखर कर रह जाएंगे।
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