गरीबों की थाली से दूर अंडा
बड़ी आबादी कुपोषण का शिकार हो रही है। महंगाई के चलते गरीबों की थाली से पोषक जरूरतों वाले खाद्य पदार्थ गायब हो रहे हैं। सबिजयों, फलों के साथ मांसाहारियों के लिए चिकेन, मटन भी महंगाई की वजह से दूर हो गए थे। अब अंडा भी इनसे दूर होता जा रहा है। कैरेट में सजे अंडों को देखिए। गरीबों को सबसे सस्ता खाना माना जाता था। पर वो बात अब कहां? इसकी डिमांड इतनी बढ़ी की इसके दाम भी बहुत बढ़े। जिससे अब ये भी लोगों की पहुंच से दूर होता जा रहा है। हालांकि देश में पिछले 60 वर्षों के दौरान अंडा उत्पादन में 27 गुणा बढ़ोतरी हुई है। जबकि अंडा उत्पादक देशों में भारत का तीसरा स्थान हो गया है। बावजूद इसके भारतवासियों को जरूरत का एक चैथाई अंडा हीं मिल पाता है। स्वास्थ्य मानकों के मुताबिक हर आदमी को साल में 180 अंडे की जरूरत है, लेकिन देश में 45 से 50 हीं एक आदमी के लिए उपलब्ध हो पाता है।
शहरी क्षेत्रों में प्रति व्यक्ति साल में अंडा की उपलब्धता जहां 100 है वहीं ग्रामीण इलाकेां में 10 से 15 अंडा हीं है। इसका कारण है ग्रामीण इलाकों में रहने वालों की क्रय क्षमता का काफी कम होना। इसके लिए बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के खरीफ अनुसंधान परिषद की 29 वीं बैठक में प्रजनन संबंधी अनुसंधान परियोजना प्रारंभ की गई है। जिससे लोगों तक ज्यादा से ज्यादा अंडा उपलब्ध हो सके। इसको लेकर ग्रामीण इलाकों में मुर्गा-मुर्गी पालन को प्रात्साहन देने की आवश्यकता महसूस की जा रही है, ताकि गरीब क्षेत्रों में पोषक आहार अंडे की आवश्यकता पूरी की जा सके।
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